NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 9 आत्मत्राण

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है?
उत्तर
कवि ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि वे विपत्ति का सामना करने के लिए शक्ति प्रदान करें। निर्भयता का वरदान दें ताकि वह संघर्षों से विचलित न हो। वह अपने लिए सहायक नहीं आत्मबल और पुरुषार्थ चाहता है। सांत्वना-दिलासा नहीं बहादुरी चाहता है। वंचना, निराशा और दुखों के बीच प्रभु की कृपा शक्ति और सत्ता में आत्म-विश्वास का भाव चाहता है।

प्रश्न 2.
‘विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं-कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है?
उत्तर
‘विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं’- के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि हे ईश्वर ! मेरे जीवन में जो भी दुख और कष्ट आने वाले हैं आप उनसे मुझे मत बचाओ। मैं आपसे इसको सहने के लिए साहस और शक्ति माँगता हूँ ताकि इन दुखों से घबराकर हार न मान बैठें। मैं साहसपूर्वक इनसे संघर्ष करना चाहता हूँ।

प्रश्न 3.
कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है?
उत्तर
कवि जीवन संघर्ष में सहायक न मिलने पर ईश्वर को कोई दोष नहीं दे रहा है, बल्कि प्रभु से प्रार्थना कर रहा है कि विपत्ति में उसका बल और पौरुष न हिले यदि समस्त संसार भी उसके साथ धोखा करे तो भी उसका आत्मबल और विश्वास न डिगे। वह साहस और दृढ़ता से आपदाओं को कुचल दे।।

प्रश्न 4.
अंत में कवि क्या अननुय करता है?
उत्तर
अंत में कवि ईश्वर से यही प्रार्थना करता है कि सुख के पलों में भी वह ईश्वर को न भूले तथा इस समय में उसे प्रभु का चेहरा बार-बार नज़र आए। वह यह भी याद रखना चाहता है कि ये सुख भी उसके प्रभु की ही देन है। वह दुख के समय में प्रभु पर आस्था और विश्वास बनाए रखना चाहता है। वह किसी भी स्थिति में न अपने प्रभु पर विश्वास कम होने देना चाहता है और न उनकी शक्तियों के प्रति शंकाग्रस्त होना चाहता है।

प्रश्न 5.
“आत्मत्राण’ शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
“आत्मत्राण’ कविता के संदर्भ में यह शीर्षक पूर्णरूप से सार्थक है। आत्मत्राण का अर्थ है-अपने भाव से निवारण या बचाव। कवि अपने मन के भय से छुटकारा पाना चाहता है और ईश्वर से इसी छुटकारे के लिए शक्ति प्राप्त करना चाहता है। वह जीवन की हर परिस्थिति का निर्भय होकर सामना करना चाहती है। वह समस्त विपदा, भय, ताप-दुख, हानि-लाभ और
वंचना स्वयं झेलने को तैयार है। केवल आत्मबल, पौरुष व आस्था का सहारा लेकर आत्मत्राण की कामना करता है।

प्रश्न 6.
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आप प्रार्थना के अतिरिक्त क्या-क्या प्रयास करते हैं?
उत्तर
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए मैं ईश्वर से प्रार्थना के अतिरिक्त निम्नलिखित प्रयास करता हूँ-

  1. इच्छाओं की पूर्ति के लिए उपाय सोचता हूँ।
  2. इसके लिए योजनाबद्ध कदम उठाता हूँ।
  3. इसे पूरा करने के लिए कठोर परिश्रम करता हूँ।
  4. यदि एक प्रयास में इच्छापूर्ति नहीं होती है तो निराश नहीं होता हूँ।
  5. भाग्य के सहारे बैठने के बजाय पुनः उत्साहपूर्वक प्रयास करता हूँ।
  6. साहस एवं मनोबल बनाए रखने के लिए प्रभु से प्रार्थना करता हूँ।

प्रश्न 7.
क्या कवि की यह प्रार्थना आपको अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है? यदि हाँ, तो कैसे?
उत्तर
कवि की यह प्रार्थना अन्य प्रार्थनाओं से भिन्न है। अधिकतर प्रार्थनाएँ सुख-सुविधाओं से भरा जीवन, धन-वैभव की लालसा आदि लिए रहती हैं और दुख से बचने के लिए प्रयत्नशील होती हैं। जबकि इस प्रार्थना में कवि हर काम में ईश्वर की सहायता नहीं चाहता। अन्य प्रार्थना गीतों में दास्यभाव व आत्मसमर्पण की भावना अधिक होती है। प्रायः मनुष्य ईश्वर से प्रार्थना करता है। कि उसे दुखों का सामना न करना पड़े किंतु इस गीत में कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि ईश्वर उसे दुखों को सहन करने की शक्ति दे। वह मुसीबत में भयग्रस्त नहीं होना चाहता है और सुख के दिनों में भी प्रभु का स्मरण बनाए रखना चाहता है।

(ख) निम्नलिखित अंशों का भाव स्पष्ट कीजिए

प्रश्न 1.
नत शिर होकर सुख के दिन में
तव मुख पहचानँ छिन-छिन में।
उत्तर
भाव-कवि चाहता है कि हमें ईश्वर को हर क्षण याद रखना चाहिए। प्रायः मनुष्य दुख में तो ईश्वर को याद करते हैं परंतु सुख में भूल जाते हैं। हमें सुख के प्रत्येक पल में परमात्मा का अहसास करना चाहिए। उन्हें स्मरण रखना चाहिए। प्रायः लोग सुख में परमात्मा को भूल जाते हैं। वे अपनी शक्ति पर घमंड करने लगते हैं। कवि की कामना है कि वह ऐसे घमंड से बची रहे।

प्रश्न 2.
हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचनी रही
तो भी मन में न मार्ने क्षय। |
उत्तर
भाव यह है कि कवि को अपने जीवन में भले ही बार-बार हानि उठानी पड़े और लोगों के छल-कपट का शिकार होना पड़ा हो, तब भी कवि इसके लिए प्रभु का दोष न मानते हुए अपने मन में निराशा और दुख नहीं आने देना चाहता है। वह चाहता है कि दुख की दशा में भी प्रभु से उसकी आस्था, विश्वास में कमी न आने पाए।

प्रश्न 3.
तेरने की हो शक्ति अनमय
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
उत्तर
भाव-कवि कामना करता है कि विपरीत परिस्थितियों से घिरा होने पर दुख में भी यदि प्रभु उसे सांत्वना न दे, न सही। सांत्वना के अभाव में उसके जीवन का दुख भार कम न हो तो न सही, परंतु ईश्वर उसे दुखों को सहने की अदम्य शक्ति प्रदान करे ताकि उस शक्ति व आत्मबल से वह दुःखों पर काबू पा सके। कवि किसी प्रकार की सांत्वना का इच्छुक नहीं है; वह तो निर्भय होकर हर दुख का सामना करना चाहता है।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 8 कर चले हम फ़िदा

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
क्या इस गीत की कोई ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है?
उत्तर
इस गीत की पृष्ठभूमि ऐतिहासिक है। सन् 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया था। इस युद्ध में अनेक भारतीय सैनिकों ने भारत चीन-सीमा पर लड़ते-लड़ते अपना अमर बलिदान दिया था। इसी युद्ध की पृष्ठभूमि पर चेतन आनंद ने ‘हकीकत फ़िल्म बनाई थी। इस फिल्म में भारत चीन युद्ध के यथार्थ को मार्मिकता के साथ दर्शाते हुए उसका परिचय जन सामान्य से करवाया गया था। इसी फिल्म के लिए प्रसिद्ध शायर कैफ़ी आज़मी ने ‘कर चले हम फिदा’ नामक मार्मिक गीत लिखा था।

प्रश्न 2.
‘सर हिमालय का हमने न झुकने दिया’, इस पंक्ति में हिमालय किस बात का प्रतीक है?
उत्तर
‘सर हिमालय का हमने न झुकने दिया’ इस पंक्ति में हिमालय भारत देश और देशवासियों के आन-बान और शान का प्रतीक है। हिमालय पर्वत भारत के उत्तर में स्थित है जो हमारे देश का मुकुट सरीखा है। इसे भारत का मस्तक भी कहा जाता है। चीन के आक्रमण के समय यह युद्ध हिमालय की तराई में हुआ था जिसमें भारतीयों ने अदम्य साहस और वीरता से शत्रुओं को वापस कदम खींचने पर विवश कर दिया और हिमालय का मान-सम्मान बचाए रखा।

प्रश्न 3.
इस गीत में धरती को दुल्हन क्यों कहा गया है?
उत्तर
इस गीत में धरती को ‘दुलहन’ की संज्ञा दिया गया है। जिस प्रकार दूल्हा अपनी दुलहन को पाने के लिए कुछ भी कर सकता है उसी प्रकार भारतीय सैनिक भी धरती रूपी दुलहन को पाने के लिए तथा उसके मान-सम्मान की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने को उत्सुक थे। इस धरती को पाना ही उनका एकमात्र लक्ष्य था भारतीय सैनिकों ने अपने बलिदान के खून से धरती रूपी दुलहन की माँग भरी थी। अतः सैनिक देश की रक्षा करते हुए मौत को गले लगाकर धरती को ही अपनी दुलहन स्वीकार करते हैं।

प्रश्न 4.
गीत में ऐसी क्या खास बात होती है कि वे जीवन भर याद रह जाते हैं?
उत्तर
गीतों में ऐसी अनेक बातें होती हैं जो उसे आजीवन के लिए यादगार बना देती हैं-

  1. तुकांतता- गीतों में पाई जाने वाली तुकांतता उसे सहज कंठस्थ बना देती है।
  2. छंदबद्धता- गीत छंदों में बँधे होते हैं जिससे ये आसानी से कंठस्थ हो जाते हैं।
  3. तुकांत की उपस्थिति- तुकांतता गीतों को सहज स्मरणीय बना देती है।
  4. गेयता- गीतों का एक प्रमुख गुण है गेयता जिसके कारण ये सरलता से लोगों की जुबान पर रचबस जाते हैं।
  5. मर्मस्पर्शिता- गीतों का एक गुण है-सहज ही मर्म को छू जाते हैं, जिससे ये लोगों की जुबान पर चढ़ जाते हैं।

प्रश्न 5.
कवि ने ‘साथियो’ संबोधन का प्रयोग किसके लिए किया है?
उत्तर
कवि ने ‘साथियों संबोधन का प्रयोग दूसरे सैनिक साथियों व देशवासियों के लिए किया है। घायल सैनिक मातृभूमि पर स्वयं को न्योछावर करते हुए मृत्यु को गले लगा रहे हैं। ये घायल सैनिक अपने देशवासी साथियो पर देश की रक्षा का भार सौंपकर ही दम तोड़ना चाहते हैं। घायल सैनिकों की अपने साथियों से अपेक्षा है कि वे उनकी मृत्यु के पश्चात देश की रक्षा कर अपने कर्तव्य का निर्वाह करें। यदि अन्य साथी इनके बलिदान के पश्चात देश के सम्मान को बनाए रखेंगे तो इनकी कुर्बानियाँ व्यर्थ नहीं जाएँगी।

प्रश्न 6.
‘कवि ने इस कविता में किस काफिले को आगे बढ़ाते रहने की बात कही है?
उत्तर
कविता में कवि ने युद्ध भूमि में जाने वाले सैनिकों के काफ़िले को बढ़ाने की बात कही है जो रणक्षेत्र की ओर बढ़ रहा है। कवि चाहता है कि इस काफ़िले में सैनिकों की कमी नहीं होनी चाहिए। इसे सजाने का आह्वान करके कवि ने हर भारतीय को अपनी मातृभूमि की रक्षा करने की प्रेरणा दी है ताकि शत्रुओं से मुकाबला करने वाली टोली अपने पीछे रणक्षेत्र में आत्मोत्सर्ग करने को तत्पर साथियों को देखकर उत्साहित हो और दुश्मनों से वीरतापूर्वक युद्ध करते हुए उन्हें पराजित कर दे। देश की रक्षा करने वाले सैनिकों का यह काफ़िला शत्रुओं से मुकाबला करने से कभी पीछे न हटे।

प्रश्न 7.
इस गीत में ‘सर पर कफन बाँधना’ किस ओर संकेत करता है?
उत्तर
‘सर पर कफन बाँधना’ का अर्थ है-मृत्यु के लिए तैयार रहना। इस गीत में सर पर कफन बाँधना देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने की ओर संकेत करता है। देश की खातिर स्वयं को न्योछावर करने वाला बलिदानी अपने प्राणों का मोह त्याग कुर्बानी की राह पर निडरता से बढ़ता चला जाता है। उसे मौत का भय नहीं होता है। वह तो देश के मान-सम्मान
की खातिर हर समय मरने-मिटने को तैयार रहता है।

प्रश्न 8.
इस कविता को प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
‘कर चले हम फ़िदा’ नामक की रचना गीतकार कैफ़ी आज़मी द्वारा की गई है। इस पाठ की पृष्ठभूमि 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध पर आधारित है। इस कविता का केंद्र बिंदु भारतीय सैनिकों को साहसपूर्ण प्रदर्शन तथा देशवासियों से देश की रक्षा के लिए किया गया आह्वान है। उनके मन में देश प्रेम एवं देशभक्ति की उत्कट भावना है। वे घायल होकर किसी भी क्षण इस दुनिया से विदा हो सकते हैं परंतु उनकी देशभक्ति में कमी नहीं आने पाई है। वे चाहते हैं कि जिस देश के लिए वे साहस एवं वीरतापूर्वक लड़े और अपना बलिदान करने जा रहे हैं, उसे देशवासी कभी गुलाम न होने दे। वे अपने साथी सैनिकों एवं देशवासियों को अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए प्रेरित करते हुए प्राणोत्सर्ग करने का आह्वान करते हैं ताकि देश की शान और प्रतिष्ठा पर आँच न आने पाए। वे शत्रुओं को ऐसा मुंहतोड़ जवाब दें कि फिर कोई शत्रु देश की ओर आँख उठाकर बुरी निगाह से देखने का साहस न कर सके।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए

प्रश्न 1.
साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई
फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दिया
उत्तर
भाव यह है कि सन् 1962 में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया था तो भारतीय सैनिकों ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर उनका मुकाबला किया। यह हिमालय की घाटियों में हुआ था जहाँ तापमान बहुत कम था। ऐसी सरदी में धमनियों का रक्त जमता जा रहा था फिर भी सैनिक जोश और साहस से शत्रुओं का मुकाबला करते हुए आगे कदम बढ़ाते जा रहे थे।

प्रश्न 2.
खींच दो अपने खें से ज़मीं पर लकीर
इस तरफ आने पाए न रावन कोई
उत्तर
भाव-इन पंक्तियों का भाव यह है कवि सैनिक के माध्यम से यह कहना चाहता है कि हे साथियो! देश की रक्षा की खातिर खून की नदियाँ बहाने के लिए तैयार हो जाओ। कारण यह है कि शत्रु को देश की ओर कदम बढ़ाने से रोकने के लिए रक्त से लक्ष्मण रेखाएँ अर्थात् लकीरें खींचनी पड़ती हैं तभी शत्रु हमारे देश की सीमा में घुसने का दुस्साहस नहीं कर पाता है। कवि का ऐसा मानना है कि देश की रक्षा शक्ति और बलिदान से ही होती है और हमें देश की रक्षा के लिए बलिदान देने से हिचकना नहीं चाहिए।

प्रश्न 3.
छू न पाए सीता का दामन कोई
राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियो
उत्तर
भाव यह है कि हमारा देश भारत और हमारी जन्मभूमि सीता की तरह ही पवित्र है। किसी समय रावण ने सीता का दामन छूने का दुस्साहस कर लिया था परंतु अब शत्रुओं को ऐसा मुंहतोड़ जवाब दो कि भारत माता की ओर आने का साहस कोई न कर सके। सीता रूपी भारत माता की रक्षा का दायित्व अब तुम्हारे कंधों पर है। तुम्हें राम-लक्ष्मण बनकर इसके मान-सम्मान को बनाए रखना है।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
इस गीत में कुछ विशिष्ट प्रयोग हुए हैं। गीत के संदर्भ में उनका आशय स्पष्ट करते हुए अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
कट गए सर, नब्ज़ जमती गई, जान देने की रुत, हाथ उठने लगे
उत्तर

  1. कट गए सर-मृत्यु को प्राप्त होना-देश की रक्षा के लिए अनेक सैनिकों के सर कट गए।
  2. नज़ जमती गई-नसों में खून जमने लगा-अत्यधिक ठंड के कारण हिमालय की बर्फीली चोटियों पर देश की रक्षा के लिए लड़ने वाले सैनिकों की नब्ज़ जमती गई परंतु वे लड़ते रहे।
  3. जान देने की रुत-बलिदान देने का उचित अवसर-जब शत्रु देश पर आक्रमण करता है तब सैनिकों के लिए जान देने की रुत आती है।
  4. हाथ उठने लगे-आक्रमण होना-जब भी दुश्मन ने हमारे देश की ओर हाथ उठाया है तो हमारे वीरों ने उसका डटकर मुकाबला किया है।

प्रश्न 2.
ध्यान दीजिए संबोधन में बहुवचन ‘शब्द रूप’ पर अनुस्वार का प्रयोग नहीं होता; जैसे भाइयो, बहिनो, देवियो, सज्जनो आदि।
उत्तर
विद्यार्थी वाक्य में संबोधन शब्दों का प्रयोग करके स्वयं समझें ।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 7 तोप

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
विरासत में मिली चीज़ों की बड़ी सँभाल क्यों होती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
विरासत में मिली चीज़ों की सँभाल इसलिए की जाती है क्योंकि वे हमारे पूर्वजों व बीते समय की देन होती है। उन चीज़ों से हमें प्राचीन इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है। ये हमारे पूर्वजों की धरोहर है और इनकी रक्षा का भार हम पर होता है। धरोहर हमें हमारी संस्कृति व इतिहास से जोड़ती है। ये हमें हमारे पूर्वजों, परंपराओं, उपलब्धियों आदि से परिचय कराती है। इन्हीं के माध्यम से हम अपनी पुरानी पीढ़ियों से जुड़े रहते हैं। हम उन्हें इसलिए भी सँभालकर रखते हैं ताकि हमारे बच्चों के भविष्य निर्माण का आधार मजबूत बन सके।

प्रश्न 2.
इस कविता में आपको तोप के विषय में क्या जानकारी मिलती है?
उत्तर
भाव यह है कि समय परिवर्तनशील है। जो तोप कभी अत्यंत ताकतवर हुआ करती थी, आज उसकी दशा दयानीय बन चुकी है अर्थात् अत्याचारी कितना भी ताकतवर क्यों न हो एक दिन उसका अंत होकर ही रहता है। जो तोप शूरमाओं की धज्जियाँ उड़ा देती थी आज वही बच्चों और चिड़ियों के खेलने के साधन से ज्यादा कुछ नहीं है।

प्रश्न 3.
कंपनी बाग में रखी तोप क्या सीख देती है?
उत्तर
कंपनी बाग में रखी तोप यह सीख देती है कि अत्याचारी शक्ति चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, पर उसका अंत अवश्य होता है। मानवशक्ति सबसे प्रबल होती है और वही विजयी होकर रहती है। यह हमें अतीत से प्रेरणा लेकर भविष्य को सँवारने का संदेश देती है। हमें याद रखना होगा कि भविष्य में कोई हमारे देश में पाँव न जमाने पाए और यहाँ फिर वह तांडव न मचे, जिसके घाव अभी तक हमारे दिलों में हरे हैं। कवि हमें यह बताना चाहता है कि कोई कितना भी बलवान और शक्तिशाली क्यों न हो, एक निश्चित अवधि के बाद उसकी उपयोगिता समाप्त हो जाती है। अर्थात् उसका अंत अवश्य होता है।

प्रश्न 4.
कविता में तोप के दो बार चमकाने की बात की गई है। ये दो अवसर कौन-से होंगे?
उत्तर
कविता में तोप को दो बार चमकाने की बात कही गई है। ये दो अवसर है-

  1. स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त),
  2. गणतंत्र दिवस (26 जनवरी)

हमारे देश की आजादी के इतिहास में ये दोनों दिन अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। इनमें से 15 अगस्त, 1947 को हमारे देश कों आज़ादी मिली और 26 जनवरी को हमारे देश का अपना संविधान लागू किया गया। ये दोनों ही अवसर हमारे राष्ट्रीय पर्व हैं। इस अवसर पर राष्ट्रीय महत्त्व और विरासत से जुड़ी वस्तुओं की साफ़-सफ़ाई करके चमकाया जाता है ताकि आने वाली पीढ़ी इनसे प्रेरणा ले सके।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए

प्रश्न 1.
अब तो बहरहाल
छोटे लड़कों की घुड़सवारी से अगर यह फ़ारिग हो
तो उसके ऊपर बैठकर
चिड़ियाँ ही अकसर करती हैं गपशप।
उत्तर
भाव-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने स्पष्ट किया है कि सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में प्रयोग की गई तोप हमारी विरासत के रूप में कंपनी बाग के एक कोने में विद्यमान है। अब इस तोप का कोई महत्त्व नहीं रह गया। यह एक प्रदर्शन की वस्तु बनकर रह गई है। कवि उसकी निरर्थकता की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि ईस्ट इंडिया कंपनी के युग में वह तोप महत्त्वपूर्ण थी। कितने ही सूरमाओं को इसने मौत की नींद सुला दिया था परंतु आज वह पर्यटकों के देखने में बच्चों की घुड़सवारी करने का साधन मात्र बनकर रह गई है। दिनभर उछल-कूद करनेवाले बच्चों से उसे जरा सी भी फुरसत मिलती है तो उसकी पीठ पर चिड़ियों का डेरा सा जम जाता है और ढेर सारी चिड़ियों का झुंड उसकी पीठ पर इकट्ठा होकर, अपनी चहचहाहट से उसे परेशान करती रहती हैं। जिस तोप की आवाज़ किसी जमाने में अच्छे-अच्छे सूरमाओं के हौसले पस्त कर देती थी वह तोप अब चिड़ियों की गपशप सुनने को विवश है। इसके माध्यम से कवि यह संदेश देना चाहता है कि समय बलवान होता है। जैसे-जैसे वह चलता है वैसे-वैसे मनुष्य या किसी शक्तिशाली वस्तु की उपयोगिता घटती-बढ़ती रहती है।

प्रश्न 2.
वे बताती हैं कि दरअसल कितनी भी बड़ी हो तोप
एक दिन तो होना ही है उसका मुँह बंद।
उत्तर
भाव-कवि ने तोप की दयनीय दशा का चित्रण करते हुए कहा है कि कितना भी बड़ा अत्याचारी क्यों न हो उसके शासन का अंत एक दिन अवश्य होता है। यही कारण है कि तोप इस दयनीय अवस्था में पड़ी हुई है। कंपनी बाग में रखी तोप के अंदर कभी चिड़िया घुस जाती है तो कभी बच्चे उस पर घुड़सवारी का आनंद उठाते हैं। कवि ने इन प्रतीकों के माध्यम से सत्ता के बदलते स्वरूप पर व्यंग्य किया है। कवि बताता है कि समय के आगे किसी की नहीं चलती। चाहे कोई कितना ही बड़ा शक्तिशाली क्रूर शासक हो। एक-न-एक दिन उसका अंत सुनिश्चित है। तब कमजोर-से-कमजोर व्यक्ति भी उसका उपहास उड़ाता है।

प्रश्न 3.
उड़ा दिए थे मैंने
अच्छे-अच्छे सूरमाओं के धज्जे।
उत्तर
भाव-कवि इन पंक्तियों में कंपनी बाग में रखी तोप के विषय में बताता है कि उसने बड़े-बड़े योद्धाओं और वीरों को मार गिराया था। वह बहुत जबरदस्त थी, शक्तिशाली थी, उसके आगे कोई नहीं टिक सकता था। ब्रिटिश सेना ने भारतीय देशभक्तों का दमन करने के लिए इसका प्रयोग किया था। यह तोप एक ही समय में बड़े-बड़े सूरमाओं की धज्जियाँ उड़ाने में सक्षम थी। इसने अनेक बेगुनाहों को मौत की नींद सुला दिया था युद्ध में तोप की मौजूदगी शत्रुओं की मौत का कारण बनती थी। आज स्थिति यह है कि छोटे-छोटे बच्चे उसकी पीठ पर घुड़सवारी कर रहे हैं।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
कवि ने इस कविता में शब्दों का सटीक और बेहतरीन प्रयोग किया है। इसकी एक पंक्ति देखिए ‘धर रखी गई है यह 1857 की तोप’ । ‘धर’ शब्द देशज है और कवि ने इसका कई अर्थों में प्रयोग किया है। ‘रखना’, ‘धरोहर’ और ‘संचय’ के रूप में।
उत्तर
विद्यार्थी ध्यानपूर्वक पढ़े।

प्रश्न 2.
‘तोप’ शीर्षक कविता का भाव समझते हुए इसका गद्य में रूपांतरण कीजिए।
उत्तर
कंपनी बाग के मुहाने पर 1857 की तोप को धरोहर के रूप में रखा गया है। जिस प्रकार विरासत में मिले कंपनी बाग को संभालकर रखा जाता है, उसी प्रकार इस तोप को भी साल में दो बारे चमकाया जाता है। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को अंग्रेज़ी सरकार ने तोप अर्थात् ताकत के बलबूते पर अवश्य कुचल दिया था, पर अंत में इस सत्ता को यहाँ से जाना पड़ा। अब इस क्रूर सत्ता की प्रतीक यह तोप प्रदर्शन की वस्तु बनकर कंपनी बाग के मुख्य द्वार पर रखी है। इसे बड़ी संभाल कर रखा जाता है ताकि लोग जान सके कि हमारे पूर्वजों ने अपना अमर बलिदान देकर इस तोप से अत्याचार करने वाले शासकों को इस देश से विदा कर दिया। अब इस तोप का प्रयोग बच्चे या पक्षी करते हैं, और वे इससे डरने के स्थान पर इससे खेलते हैं। गौरैयाँ तो इसके मुँह तक में घुस जाती हैं। अब इससे किसी को किसी भी प्रकार का भय नहीं है। यह तोप बताती है कि अन्यायी और ताकतवर का भी एक-न-एक दिन अंत अवश्य होता है।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 6 मधुर-मधुर मेरे दीपक जल

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
प्रस्तुत कविता में ‘दीपक’ और ‘प्रियतम’ किसके प्रतीक हैं?
उत्तर
प्रस्तुत कविता में ‘दीपक’ प्रभु आस्था व प्रेम का प्रतीक है और ‘प्रियतम कवयित्री के आराध्य अर्थात् परमात्मा का प्रतीक है। कवयित्री आस्था का दीपक जलाती है। उसकी आस्था स्नेह से परिपूर्ण है। ‘प्रियतम कवयित्री के आराध्य देव हैं। वह अपने प्रियतम को पाने के लिए आस्था रूपी दीपक जलाना चाहती है। वह प्रियतम के साथ एकाकार होना चाहती है।

प्रश्न 2.
दीपक से किस बात का आग्रह किया जा रहा है और क्यों?
उत्तर
कवयित्री द्वारा दीपक से निरंतर हँस-हँसकर जलने का आग्रह किया जा रहा है। इसका कारण यह है कि यह दीपक कवयित्री की आस्था एवं भक्ति का दीप है। वह इस आस्था और भक्ति को कभी कम नहीं होने देना चाहती है, इसलिए वह चाहती है कि दीपक हँस-हँसकर जलता रहे।

प्रश्न 3.
‘विश्व-शलभ’ दीपक के साथ क्यों जल जाना चाहता है?
उत्तर
‘विश्व-शलभ’ का आशय है-सारा संसार। कवयित्री शलभ अर्थात् पतंगों के समान प्रभु भक्ति की लौ में लगकर अपने अहं को गलाना चाहती है। जिस प्रकार पतंगा दीपक के साथ जलकर अपना अस्तित्व मिटा देना चाहता है। वह सोचता है कि जब एक छोटा-सा दीपक अपने शरीर का कण-कण जलाकर औरों को प्रकाश दे सकता है तो वह भी किसी के लिए पना बलिदान देकर अनंत के साथ मिलकर एकाकार होना चाहता है। दूसरे शब्दों में, संसार के लोग अपने अहंकार को गलाकर प्रभु को पा लेना चाहते हैं।

प्रश्न 4.
आपकी दृष्टि में ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल’ कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर है?
(क) शब्दों की आवृत्ति पर।
(ख) सफल बिंब अंकन पर।
उत्तर
(क) मेरा मानना यह है कि ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल।’ कविता का सौंदर्य शब्दों की आवृत्ति और सफल बिंबांकन दोनों पर ही निर्भर है; जैसे-
शब्दों की आवृत्ति से उत्पन्न सौंदर्य- इस कविता में अनेक स्थानों पर शब्दों की आवृत्ति से उत्पन्न सौंदर्य देखिए-

मधुर मधुर मेरे दीपक जल !
युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर !
सौरभ फैला विपुल धूप बन,
मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन;
दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल गल !
पुलक पुलक मेरे दीपक जल !

(ख) सफल बिम्बांकन से उत्पन्न सौंदर्य- कविता में बिम्बों को सफल अंकन हुआ है, इस कारण सौंदर्य में वृद्धि हो गई है-
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल
सौरभ फैला विपुल धूप बन
विश्व-शलभ सिर धुन कहता मैं
जलते नभ में देख असंख्यक
स्नेहहीन नित कितने दीपक
विद्युत ले घिरता है बादल !

प्रश्न 5.
कवयित्री किसका पथ आलोकित करना चाह रही हैं?
उत्तर
कवयित्री अपने प्रियतम का पथ आलोकित करना चाह रही हैं ताकि परमात्मा तक उसका पहुँचना आसान हो जाए। यदि प्रियतम तक पहुँचने का मार्ग अंधकारमय होगा तो लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो पाएगी। परमात्मा की प्राप्ति के लिए अहंकार को मिटाना पड़ता है। मन की अज्ञानता ही अंधकार है। कवयित्री अपना आस्था रूपी दीपक जलाकर अपने प्रियतम का पथ आलोकित करना चाह रही है।

प्रश्न 6.
कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन से क्यों प्रतीत हो रहे हैं?
उत्तर
कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन इसलिए प्रतीत हो रहे हैं, क्योंकि-

  • आकाश में असंख्य तारे होने पर उनसे प्रकाश न निकलने पर ऐसा लगता है, जैसे उनका तेल समाप्त हो गया है।
  • ये तारागण दया, करुणा, प्रेम और सहानुभूति रहित मनुष्यों की भाँति हैं।
  • यदि इन तारों को तेल मिल जाए तो इनसे प्रकाश फूट पड़ेगा।
  • मनुष्य की भाँति ही इन दीपकों को भी प्रकाशपुंज की आवश्यकता है।

प्रश्न 7.
पतंगा अपने क्षोभ को किस प्रकार व्यक्त कर रहा है?
उत्तर
पतंगा दीपक की लौ में जलना चाहता है परंतु वह जल नहीं पाता। वह अपना क्षोभ सिर धुन-धुनकर व्यक्त कर रहा है। पतंगा दीपक से बहुत स्नेह करता है और उसकी लौ पर मर-मिटना चाहता है जब वह यह अवसर खो देता है तब वह पछताकर अपना क्षोभ व्यक्त करता है। इसी प्रकार मनुष्य भी अपने अहंकार को त्यागकर परमात्मा को पाना चाहता है परंतु अहंकार के रहते वह ईश्वर को पाने में असफल रहता है।

प्रश्न 8.
कवयित्री ने दीपक को हर बार अलग-अलग तरह से मधुर मधुर, पुलक-पुलक, सिहर-सिहर और विहँस-विहँस जलने को क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कवयित्री अपने प्रभु के प्रति असीम आस्था और आध्यात्मिकता का दीप खुशी से जलाए हुए है। भक्ति का यह भाव निरंतर बनाए रखने के लिए दीपक अलग-अलग जलने के लिए कहती है। दीपक जलने के लिए प्रयुक्त किए गए अलग-अलग शब्दों के भाव इस प्रकार हैं-
मधुर-मधुर- मन की खुशी को प्रकट करने के लिए मंद-मंद मुसकान का प्रतीक।
पुलक-पुलक- मन की खुशी को मुखरित करने के लिए हँसी का प्रतीक।
विहँसि-विहँसि- मन के उल्लास को प्रकट करने के लिए उन्मुक्त हँसी का प्रतीक।

प्रश्न 9.
नीचे दी गई काव्य-पंक्तियों को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए

जलते नभ में देख असंख्यक,
स्नेहहीन नित कितने दीपक;
जलमय सागर का उर जलता,
विद्युत ले घिरता है बादल!
विहँस विहँस मेरे दीपक जल!

(क) ‘स्नेहहीन दीपक’ से क्या तात्पर्य है?
(ख) सागर को जलमय’ कहने का क्या अभिप्राय है और उसका हृदय क्यों जलता है?
(ग) बादलों की क्या विशेषता बताई गई है? ।
(घ) कवयित्री दीपक को ‘विहँस विहँस’ जलने के लिए क्यों कह रही हैं?
उत्तर
(क) स्नेहहीन दीपक का अर्थ है-कांतिहीन दीपक। आकाश में तारे ऐसे चमकते हैं मानो इन तारे रूपी दीपकों में स्नेह (तेल) समाप्त हो गया।

(ख) सागर को ‘जलमय’ कहने का तात्पर्य है-संसार के लोगों को सांसारिक सुख वैभव से भरपूर बताना, परंतु हर प्रकार की सुख-समृधि में रहते हुए भी लोग ईष्र्या, द्वेष और तृष्णा के कारण जल रहे हैं। वे पीड़ित हैं। वे सांसारिक तृष्णाओं के कारण जल रहे हैं तथा आध्यात्मिक ज्योति के अभाव में जल रहे हैं।

(ग) बादल अपने जल के दुवारा धरती को शीतल एवं हरा-भरा बना देते हैं। जब वे गरजते हैं तो उनमें बिजली पैदा होती है। बादलों में उत्पन्न बिजली क्षणभर के लिए प्रकाश फैला देती है। इसका सांकेतिक अर्थ है-युग के महा प्रतिभाशाली | लोग आध्यात्मिक क्षेत्र को छोड़कर सांसारिक उन्नति में विलीन हो गए हैं।

(घ) कवयित्री दीपक को विहँस-विहँस कर जलने के लिए इसलिए कह रही है क्योंकि वह अपनी प्रभु आस्था को लेकर संतुष्ट है, प्रसन्न है और वह उसे संसार भर में फैलाना चाहती है। उसे जलाना तो हर हाल में है ही। इसलिए विहँस-विहँस कर जलते हुए दूसरों को भी सुख पहुँचाया जा सकता है।

प्रश्न 10.
क्या मीराबाई और आधुनिक मीरा ‘महादेवी वर्मा इन दोनों ने अपने-अपने आराध्य देव से मिलने के लिए जो युक्तियाँ अपनाई हैं, उनमें आपको कुछ समानता या अंतर प्रतीत होता है? अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर

मीराबाई और आधुनिक मीरा कहलाने वाली कवयित्री महादेवी वर्मा दोनों ने जो युक्तियाँ अपनाई हैं उनमें असमानता अधिक समानता कम है क्योंकि-
असमानता – मीराबाई अपने प्रभु कृष्ण के रूप सौंदर्य पर मोहित हैं। वे उनसे मिलने के लिए उनकी चाकरी करना चाहती हैं। उनके लिए बाग लगाना चाहती है, ताकि कृष्ण वहाँ विहार के लिए आएँ तो मीरा उनके दर्शन कर सकें। वे लाल रंग की साड़ी पहनकर अर्धरात्रि में यमुना किनारे आने के लिए कृष्ण से कहती हैं। महादेवी वर्मा के प्रभु निराकार ब्रह्म हैं जिन तक पहुँचने के लिए वे अपनी आस्था का दीपक जलाए रखना चाहती हैं।
समानता – मीराबाई और महादेवी वर्मा दोनों ही अपने-अपने आराध्य की अनन्य भक्त हैं। वे पलभर के लिए भी अपने आराध्य को नहीं भूलना चाहती हैं।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए

प्रश्न 1.
दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल गल!
उत्तर
दीपक के व्यवहार की प्रशंसा करते हुए कहा गया है कि सागर अपार, असीमित होता है, शरीर प्रतिदिन क्षीण होता है, दीपक की लौ भी प्रतिक्षण क्षीण होती है वह फिर भी प्रकाश फैलाती है उसी प्रकार हे हृदय रूपी दीपक, तू ज्ञान रूपी प्रकाश फैला तथा जीवन को प्रतिक्षण ईश्वर की आराधना में लीन कर दे। यहाँ मनुष्य को ईश्वर आराधना में लीन होने की प्रेरणा दी गई है।

प्रश्न 2.
युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर!
उत्तर
भाव यह है कि कवयित्री अपनी आस्था का दीप एक पल के लिए भी नहीं बुझने देना चाहती है। यह दीप निरंतर अर्थात् प्रतिपल, प्रतिदिन और हर क्षण जलता रहे ताकि परमात्मा तक पहुँचने के मार्ग पर सर्वत्र आलोक बिखरा रहे।

प्रश्न 3.
मृदुल मोम-सा घुल रे मृदु तन!
उत्तर
कवयित्री का सर्वस्व समर्पण भाव व्यक्त हुआ है। वह कहती है-तू अपने नरम शरीर को कोमल मोम के समान पिघला दो अर्थात् तू अपनी कोमल भावनाओं के लिए प्रभु के चरणों में समर्पित हो जा । यहाँ मानव को मोमबत्ती के समान कोमल बनने की सलाह दी गई है।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
कविता में जब एक शब्द बार-बार आता है और वह योजक चिह्न द्वारा जुड़ा होता है, तो वहाँ पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार होता है; जैसे–पुलक-पुलक। इसी प्रकार के कुछ और शब्द खोजिए जिनमें यह अलंकार हो।
उत्तर
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 6 1

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 5 पर्वत प्रदेश में पावस

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
पावस ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
वर्षा ऋतु में पर्वतीय प्रदेश में प्रकृति प्रतिपल नया वेश ग्रहण करती दिखाई देती है। इस ऋतु में प्रकृति में निम्नलिखित परिवर्तन आते हैं- विशाल आकार वाला पर्वत तालाब के स्वच्छ जल रूपी दर्पण में अपना प्रतिबिंब देखता है। — पर्वत पर असंख्य फूल खिल जाते हैं। – झरनों का पानी मोती की लड़ियों के समान सुशोभित होता है। – ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर एकटक देखते हैं। – बादलों के छा जाने से पर्वत अदृश्य हो जाता है। – ताल से उठते हुए धुएँ को देखकर लगता है, मानो आग लग गई हो। – आकाश में तेजी से इधर-उधर घूमते हुए बादल, अत्यंत आकर्षक लगते हैं।

प्रश्न 2.
‘मेखलाकार’ शब्द का क्या अर्थ है? कवि ने इस शब्द का प्रयोग यहाँ क्यों किया है? ।
उत्तर
‘मेखलाकार’ शब्द ‘मेखला + आकार’ से मिलकर बना है। मेखला अर्थात् करधनी नामक एक आभूषण जो स्त्रियों द्वारा कमर में पहनी जाती है। पर्वतों का ढलान देखकर ऐसा लगता है जैसे पृथ्वी ने इस मेखला से स्वयं को आवृत्त कर रखा हो।
यहाँ इस शब्द का प्रयोग कवि ने पहाड़ की विशालता बताने के लिए किया है जो पृथ्वी को घेरे हुए हैं।

प्रश्न 3.
‘सहग्न दृग-सुमन’ से क्या तात्पर्य है? कवि ने इस पद का प्रयोग किसके लिए किया होगा?
उत्तर
‘सहस्र दृग-सुमन’ का अर्थ है-हजारों पुष्प रूपी आँखें । कवि ने इसका प्रयोग पर्वत पर खिले फूलों के लिए किया है। वर्षा काल में पर्वतीय भाग में हजारों की संख्या में पुष्प खिले रहते हैं। कवि ने इन पुष्पों में पर्वत की आँखों की कल्पना की है। पर्वत अपने नीचे फैले तालाब रूपी दर्पण में फूल रूपी नेत्रों के माध्यम से अपने सौंदर्य को निहार रहा है। कवि इसके
माध्यम से पर्वत का मानवीकरण कर फूलों के सौंदर्य को चित्रित करना चाहता होगा।

प्रश्न 4.
कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है और क्यों?
उत्तर
कवि ने तालाब की समानता दर्पण के समान दिखाई है। इसका कारण यह है कि पर्वतीय प्रदेश में पर्वत के पास स्थित जल से परिपूर्ण तालाब का जल अत्यंत स्वच्छ है। इसी जल में पहाड़ का प्रतिबिंब बन रहा है जिसे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। मानो तालाब दर्पण हो। पहाड़ भी इस तालाब रूपी दर्पण में अपना प्रतिबिंब निहारकर आत्ममुग्ध हो रहा है।

प्रश्न 5.
पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर क्यों देख रहे थे और वे किस बात को प्रतिबिंबित करते हैं?
उत्तर
पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर देखकर उसे छूने की कोशिश कर रहे हैं मानो वे अपने किसी उच्च आकांक्षा को पाने के लिए उसे देख रहे हों। वे बिलकुल मौन रहकर स्थिर रहकर भी संदेश देते प्रतीत होते हैं कि उद्देश्य को पाने के लिए अपनी दृष्टि स्थिर करनी चाहिए और बिना किसी संदेह के चुपचाप मौन रहकर अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होना चाहिए।

प्रश्न 6.
शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों फँस गए?
उत्तर
पर्वतीय प्रदेश में जब वर्षा होती है तो बादल काफ़ी नीचे आ जाते हैं। कभी-कभी तो लगता है कि हम बादलों के बीच हो गए हैं। ऐसे में जब अचानक वर्षा होने लगती है बादल और कोहरा इतना घनीभूत हो जाता है कि आसपास का दृश्य दिखना बंद-सा हो जाता है। ऐसे में शाल के वृक्ष भी बादलों में बँक से जाते हैं। ऐसा लगता है कि इस मूसलाधार वर्षा से ही डरकर शाल के पेड़ धरती में धंस गए हैं।

प्रश्न 7.
झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है?
उत्तर
झरने पर्वत के गौरव का गान कर रहे हैं। कवि ने बहते हुए झरनों की तुलना मोतियों की लड़ियों से की है। पहाड़ों की छाती | पर बहने वाले झाग जैसे जल वाले झरने ऐसे मनोरम लगते हैं मानो वे झर-झर की ध्वनि करते हुए पर्वत की महानता का गुण गान कर रहे हैं। ये उत्साह और उमंग से ओत-प्रोत हो जाते हैं।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए

प्रश्न 1.
ये टूट पड़ा भू पर अंबर।
उत्तर
मूसलाधार वर्षा होने लगी है। बादलों ने सारे पर्वत को ढक लिया है। पर्वत अब बिलकुल दिखाई नहीं दे रहे। ऐसी लगता
है मानो आकाश ही टूटकर धरती पर आ गिरा हो। पृथ्वी और आकाश एक हो गए हैं। अब बस झरने का शोर ही शेष
रह गया है।

प्रश्न 2.
-यों जलद:यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।
उत्तर
पावस ऋतु में पहाड़ी प्रदेश में प्रकृति पल-पल अपना रूप बदलती प्रतीत होती है। बादलों की सघनता के कारण पेड़-पौधों, पहाड़ झरने इससे आच्छादित होकर अदृश्य से हो जाते हैं। तालाब के पानी से धुआँ उठने लगता है। शाल के पेड़ भयभीत होकर धरती में धंसे नजर आते हैं। बादलों के साथ पहाड़ भी उड़ते प्रतीत होते हैं। इधर वर्षा के बीच बादल उड़कर इधर-उधर घूमते फिरते हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि इंद्र इन बादलों के विमान पर बैठकर इंद्रजाल अर्थात् अपनी माया की लीला दिखा रहा है।

प्रश्न 3.
गिरिवर के उर से उठ-उठकर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर है
झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।
उत्तर
वृक्ष भी पर्वत के हृदय से उठ-उठकर ऊँची आकांक्षाओं के समान शांत आकाश की ओर देख रहे हैं। वे आकाश की ओर स्थिर दृष्टि से देखते हुए यह प्रतिबिंबित करते हैं कि वे आकाश की ऊँचाइयों को छूना चाहते हैं। इसमें उनकी मानवीय भावनाओं को स्पष्ट किया गया है कि मनुष्य भी सदा आगे बढ़ने का भाव अपने मन में लिए रहता है। वे कुछ चिंतित
भी दिखाई पड़ते हैं।

कविता का सौंदर्य

प्रश्न 1.
इस कविता में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किस प्रकार किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कवि सुमित्रानंदन पंत ने कविता में कई स्थानों पर मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया है। पर्वत द्वारा अपने फूल रूपी
नेत्रों के माध्यम से अपना प्रतिबिंब निहारते हुए गौरव अनुभव करना, झरनों द्वारा पर्वत का यशोगान, पेड़ों द्वारा उच्च आकांक्षा से आकाश की ओर देखना, बादल का पंख फड़फड़ाना, इंद्र द्वारा बादल रूपी यान पर बैठकर जादुई खेल दिखाना,
सभी में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग है, जिन्हें कवि ने अत्यंत सुंदर ढंग से प्रयोग किया है।

प्रश्न 2.
आपकी दृष्टि में इस कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर करता है
(क) अनेक शब्दों की आवृत्ति पर।
(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर।
(ग) कविता की संगीतात्मकता पर।
उत्तर
कविता का सौंदर्य किसी एक कारण पर निर्भर नहीं है। वे तीनों कारण ही कविता को सुंदर बनाने में सहायक रहे हैं
(क) अनेक शब्दों की आवृत्ति पर
उदाहरण-

  1. पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश ।
  2. गिरि का गौरव गाकर झर-झर।
  3. मद में नस-नस उत्तेजित कर।
  4. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर।
    शब्दों की आवृत्ति से कविता में गति व तीव्रता आई है।

(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर

  1. मेखलाकार पर्वत अपांर।
  2. उड़ गया, अचानक लो, भूधर।
  3. फड़का अपार पारद के पर।
  4. है टूट पड़ा भू पर अंबर।।
    इन चित्रात्मक शब्दों ने कविता में सौंदर्य उत्पन्न किया है।

(ग) कविता की संगीतात्मकता पर
-कविता में संगीत, लय का भी ध्यान रखा गया है।

प्रश्न 3.
कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। ऐसे स्थलों को छाँटकर लिखिए।
उत्तर
इस प्रकार के स्थल निम्नलिखित हैं-

-मेखलाकार पर्वत अपार ।
अपने सहग्न दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार,
-जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण-सा फैला है विशाल!
मोती की लड़ियों-से सुंदर
झरते हैं झाग भरे निर्झर
-गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 4 मनुष्यता

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
कवि ने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है?
उत्तर
कवि के अनुसार संसार नश्वर है जिस मनुष्य ने इस संसार में जन्म लिया है, उसकी मृत्यु अवश्यंभावी है। इस संसार में उस मनुष्य की मृत्यु सुमृत्यु कही जाती है जिसके मरने के बाद लोग उसके सत्कार्यों के लिए उसे याद करें, उसके लिए आँसू बहाएँ, जो दूसरे लोगों की यादों में बसा रहे, जो परोपकार के कारण सम्मानीय हो, जो दूसरों के लिए प्रेरणास्त्रोत हो, ऐसी यशस्वी मृत्यु को ही कवि ने सुमृत्यु कहा है।

प्रश्न 2.
उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है?
उत्तर
किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कार्यों से होती है। जिस प्रकार दुष्ट को उसकी दुष्टता के कारण जाना-पहचाना जाता है उसी प्रकार उदार व्यक्ति की पहचान उसके द्वारा किए गए उदारतापूर्ण कार्यों से होती है। उदार व्यक्ति दूसरों के प्रति अपने मन में उदारभाव रखते हैं तथा दूसरों को दुख में देख उसकी मदद के लिए आगे आ जाते हैं। वे दूसरों के प्रति सहानुभूति का भाव रखते हैं और दूसरे के दुख को अपना दुख समझते हैं। ऐसा करते हुए वे ऊँच-नीच या अपने-पराए का भेद नहीं करते हैं। उदार व्यक्ति अपना तन-मन और धन देकर दूसरों की मदद अथवा परोपकार करने से पीछे नहीं हटते हैं।

प्रश्न 3.
कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर ‘मनुष्यता के लिए क्या संदेश दिया है?
उत्तर
कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर सारी मनुष्यता को त्याग और बलिदान का संदेश दिया है। अपने लिए तो सभी जीते हैं पर जो परोपकार के लिए जीता और मरता है उसका जीवन धन्य हो जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार दधीचि ऋषि ने वृत्रासुर से देवताओं की रक्षा करने के लिए अपनी अस्थियों तक का दान कर दिया। इसी प्रकार कर्ण ने अपने जीवन-रक्षक, कवच-कुंडल को अपने शरीर से अलग करके दान में दिया था। रंतिदेव नामक दानी राजा ने भूख से व्याकुल ब्राह्मण को अपने हिस्से का भोजन दे दिया था। राजा शिवि ने कबूतर के प्राणों की रक्षा हेतु अपने शरीर का मांस काटकर दे दिया। ये कथाएँ हमें परोपकार का संदेश देती हैं। ऐसे महान लोगों के त्याग के कारण ही मनुष्य जाति का कल्याण संभव हो सकता है। कवि के अनुसार मनुष्य को इस नश्वर शरीर के लिए मोह का त्याग कर देना चाहिए। उसे केवल परोपकार करना चाहिए। वास्तव में सच्चा मनुष्य वही होता है, जो दूसरे मनुष्य के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दे।

प्रश्न 4.
कवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व-रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए?
उत्तर
हमें गर्वरहित जीवन जीना चाहिए, यह भाव निम्नांकित पंक्तियों में व्यक्त हुआ है-
रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,
दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।

प्रश्न 5.
“मनुष्य मात्र बंधु है” से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कवि के अनुसार ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है और सभी मनुष्यों में ईश्वर का अंश है। वह मनुष्यों की सहायता मनुष्य के रूप में ही करता है। सभी मनुष्य उस परमपिता ईश्वर की संतान हैं तथा एक पिता की संतान होने के नाते सभी मनुष्य एक दूसरे के भाई के समान हैं। इसलिए हमें छोटे-बड़े, ऊँच-नीच, रंग-रूप, जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। मनुष्यों ने आपस में जाति-पाँति, छुआछूत के भेद पैदा किए हैं, अतः हमें भेदभावों को भुलाकर भाईचारे से रहना चाहिए। जिस प्रकार हम अपने भाई-बंधुओं का अहित नहीं करते, ठीक उसी तरह हमें विश्व में किसी का अहित न कर भाई समान एक-दूसरे की सहायता करनी चाहिए। अहंकार वृत्ति का परित्याग करना चाहिए।

प्रश्न 6.
कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है? ।
उत्तर
कवि ने सभी को एक साथ चलने की शिक्षा इसलिए दी है ताकि मनुष्य कठिन काम में भी सफलता प्राप्त कर सके। यह सर्वविदित है कि मिल-जुलकर काम करने में भी सफलता के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों का सामना सरलतापूर्वक किया जा सकता है जब कि अकेला व्यक्ति थोड़ी सी भी कठिनाई आने पर हार मानकर निराश हो उठता है। अकेले व्यक्ति का मनोबल टूट जाता है और सरल कार्य भी उसके लिए केवल इसलिए दुरूह हो जाता है क्योंकि उसका मनोबल बढ़ाने और उत्साहवर्धन करने वाला कोई नहीं होता है। मिल-जुलकर करने से व्यक्ति एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते हुए, आपसी मेल-जोल और सद्भाव बनाए रखते हुए अपनी मंजिल की ओर बढ़ते जाते हैं और सफलता प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 7.
व्यक्ति को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए? इस कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर
कवि के अनुसार व्यक्ति को सदैव परोपकार करते हुए जीवन व्यतीत करना चाहिए। मनुष्य को केवल अपने लिए नहीं अपितु | मानव-हित को सर्वोपरि मानते हुए जीवन बिताना चाहिए। स्वार्थपूर्ण जीवन व्यतीत करना पशुप्रवृत्ति है, मानव स्वभाव नहीं। मनुष्य को अपने में उदारता, त्यागशीलता जैसे गुणों को विकसित करना चाहिए। दूसरों की भलाई के लिए यदि सर्वस्व त्याग करना पड़े तो उसके लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए। उसे कभी तुच्छ धन पर घमंड नहीं करना चाहिए। निरंतर कर्मशील रहते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए। मनुष्य को ऐसा जीवन व्यतीत करना चाहिए कि लोग उसकी मृत्यु के पश्चात भी उसके सद्गुणों, त्याग, बलिदान को याद करें। वह यश रूपी शरीर से सदैव अमर बना रहे।

प्रश्न 8.
‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर
मनुष्यता कविता के माध्यम से कवि यह संदेश देना चाहता है कि मनुष्य मरणशील प्राणी है। उसके पास सोचने-समझने की बुद्धि के अलावा त्याग और परोपकार जैसे मानवीय मूल्य भी हैं। उसमें चिंतनशीलता, त्याग, उदारता, प्रेम, सद्भाव जैसे मानवोचित गुणों का संगम है। उसे इनका सदुपयोग करते हुए अपनी मनुष्यता बनाए रखना चाहिए और दूसरों की भलाई में लगे रहना चाहिए। मनुष्य को ऐसे कर्म करना चाहिए कि वह अपने सत्कार्यों से ‘सुमृत्यु’ प्राप्त करे और दूसरों के प्रेरणा स्रोत बन जाए। इसके अलावा कवि ने अभिमान न करने और मिल-जुलकर रहने का भी संदेश दिया है।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए

प्रश्न 1.
सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही;
वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।
विरुद्धवाद बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा,
विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा?
उत्तर
कवि ने सहानुभूति को मनुष्य की सबसे बड़ी पूँजी इसलिए कहा है क्योंकि यही गुण मनुष्य को महान, उदार और सर्वप्रिय बनाता है। इसी के कारण सारी दुनिया मनुष्य के वश में हो जाती है। दूसरों के साथ दया, करुणा और सहानुभूति का व्यवहार करके धरती को वश में किया जा सकता है। वही महान विभूति होते हैं, जो दूसरों को सहानुभूति देते हैं। बुद्ध ने करुणावश उस समय ही पारंपरिक मान्यताओं का विरोध किया था, विरोधी लोगों को भी उनकी बातों को मानना पड़ा। उदार वही होता है जो परोपकार करता है जो मनुष्यता के काम आता है, सबके लिए जीता-मरता है। उदारता, विनम्रता आदि गुणों के सामने सभी नतमस्तक हो जाते हैं।

प्रश्न 2.
रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,
दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।
उत्तर
भाव यह है कि मनुष्य धन आने पर अभिमान और घमंड में चूर हो जाता है। वह दूसरों को तुच्छ और हीन समझने लगता है। वास्तव में मनुष्य को धन का घमंड करने की भूल नहीं करना चाहिए। उसे अपने ऊपर हुई इस ईश्वरीय कृपा का भी अभिमान नहीं करना चाहिए। जिस ईश्वर ने उस पर कृपा की है वही सबकी मदद के लिए अपना हाथ बढ़ाए हुए है, अतः किसी को अनाथ समझने की भूल नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 3.
चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,
विपत्ति, विघ्न जो पड़े उन्हें ढकेलते हुए।
घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।
उत्तर
कवि एक-दूसरे की बाधाओं को दूर करते हुए आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हुए कहता है कि सबका अभीष्ट मार्ग भिन्न होगा। हर व्यक्ति अपनी इच्छा और रुचि के अनुसार अपना लक्ष्य निर्धारित करेगा परंतु अंतिम लक्ष्य होना चाहिए-मानव-मानव में एकता स्थापित करना। अपने जीवन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हँसते-खेलते आगे बढ़ो। रास्ते में जो भी विपत्ति आए उससे विचलित हुए बिना अपना लक्ष्य प्राप्त करो। आपस में सभी में प्यार बना रहे, वह कभी कम न हो। तर्क से परे होकर अपनी मंजिल को पाने के लिए सावधानीपूर्वक आगे बढ़ो। वास्तव में मनुष्य वही होता है जो मनुष्य के लिए अपना जीवन न्योछावर कर देता है। मानव-मानव की एकता को सर्वमान्य कहा गया है। इसमें विश्वबंधुत्व की भावना प्रकट हुई है।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 3 दोहे

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

(क) निम्नलिखत प्रश्नों के उत्तर लिखिए

प्रश्न 1.
छाया भी कब छाया हूँढ़ने लगती है?
उत्तर
ग्रीष्म ऋतु के जेठ मास की दोपहर में सूरज बिलकुल सिर के ऊपर आ जाता है, तो विभिन्न वस्तुओं की छाया सिकुड़कर वस्तुओं के नीचे दुबक जाती है। गर्मी इतना प्रचंड रूप धारण कर लेती है कि सारे मानव और मानवेत्तर प्राणियों के लिए उसे सहन कर पाना असंभव हो जाता है। वृक्षों की और घर की दीवारों की छाया उनके अंदर ही अंदर रहती है, वह बाहर नहीं जाती। तेज धूप से बचने के लिए छाया घने जंगलों को अपना घर बनाकर उसी में प्रवेश कर जाती है इस प्रकार छाया कहीं दिखाई नहीं देती। ऐसा लगता है कि मानो गर्मी से त्रस्त होकर छाया भी छाया हूँढ़ने लगती है।

प्रश्न 2.
बिहारी की नायिका यह क्यों कहती है ‘कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात’- स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात’–बिहारी की नायिका ने ऐसा इसलिए कहा है, क्योंकि इस समय नायक नायिका के पास नहीं है। वह विरह व्यथा झेल रही है। विरह की पीड़ा इतनी अधिक है कि दुर्बलता के कारण उसके हाथ काँपने लगे हैं और वह पसीने से तरबतर हो जाती है। इस हालत में वह अपने दिल की बातों को कागज़ पर उतारकर उसके पास नहीं भेज पा रही है। नायिका अपने दिल की बातें किसी संदेशवाहक से भी नहीं कहलवा पाती है, क्योंकि दूसरों से बताते हुए उसे शर्म आ रही है। वह संदेशवाहक से दोनों ओर की विरह व्यथा महसूस कर ऐसा कहती है क्योंकि दोनों के हृदय की दशा एक जैसी ही है।

प्रश्न 3.
सच्चे मन में राम बसते हैं-दोहे के संदर्भानुसार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कवि के अनुसार प्रभु उन लोगों के मन में बसते हैं जिनकी भक्ति सच्ची होती है। राम को सच्चे हृदय से ही पाया जा सकता है। जो लोग तरह-तरह ढोंग करते हैं, सांसारिक आकर्षणों के जाल में उलझे रहते हैं, जो भक्ति का नाटक करते है, वे स्वयं भ्रमित होते हैं और दूसरों को भी भ्रमित करते हैं। माला जपनी, शरीर पर चंदन का छाप लगाना, माथे पर तिलक लगाना, ये सब बाहरी दिखावे हैं, जो इन व्यर्थ के आडंबरों में भटकते रहते हैं, वे झूठा प्रदर्शन करके दुनिया को धोखा दे सकते हैं, परंतु ईश्वर को नहीं। इसलिए व्यक्ति को बाह्य आडंबर, ढोंग आदि न करके सच्चे मन से ईश्वर की आराधना करनी चाहिए।

प्रश्न 4.
गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी क्यों छिपा लेती हैं?
उत्तर
गोपियों की इच्छा रहती थी कि वे कृष्ण से बातें करते हुए बातों का आनंद उठाएँ। इसके लिए वे तरह-तरह की शरारतें करती हैं। वे कृष्ण की मुरली को छिपा देती हैं और कृष्ण के पूछने पर वे साफ़ मना कर जाती हैं, परंतु आँखों की भौंहों से हँसकर मुरली अपने पास होने का संकेत दे देती हैं ताकि कृष्ण उनसे बार-बार मुरली के बारे में पूँछे तथा वे बतरस का आनंद उठा सकें। यही कारण है कि गोपियाँ कृष्ण की मुरली को छिपा देती हैं।

प्रश्न 5.
बिहारी कवि ने सभी की उपस्थिति में भी कैसे बात की जा सकती है, इसका वर्णन किस प्रकार किया है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
बिहारी नगरीय जीवन से परिचित कवि हैं। उन्होंने ‘हाव-भाव’ के कुशल वर्णन को नायक-नायिका के माध्यम से इस प्रकार किया है कि नायक नायिका से आँखों के संकेतों से प्रणय निवेदन करता है। नायिका सिर हिलाकर मना कर देती है। नायक-नायिका के मना करने के तरीके पर रीझ जाता है। नायिका उसकी दशा देखकर खीझ जाती है। बनावटी गुस्सा करती है। नायक उसके खीझने पर प्रसन्न होता है, दोनों के नेत्र मिलते हैं। दोनों की आँखों में प्रेम-स्वीकृति का भावे आता है। स्वीकृति पाकर नायक प्रसन्न हो उठता है जिस पर नायिका लजी जाती है। इस प्रकार आँखों के संकेतों की भाषा से दोनों अपने मन की बातें कर लेते हैं और किसी को पता नहीं चलता।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए

प्रश्न 1.
मनौ नीलमनि-सैल पर आतपु पर्यों प्रभात।
उत्तर
भाव-इस पंक्ति का भाव यह है कि कृष्ण के नीले शरीर पर पीले रंग के वस्त्र शोभायमान हो रहे हैं। वे देखने में ऐसे
लग रहे हैं मानो नीलमणि पर्वत पर प्रातःकालीन धूप खिल उठी हो। यह संभावना और कल्पना रंग-रूप और चमक की | समानता के कारण बहुत सुंदर बन पड़ी है।

प्रश्न 2.
जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ।
उत्तर
भाव यह है कि गरमी अपने चरम पर है जिससे सारे प्राणी व्याकुल हो रहे हैं। व्याकुलता के कारण वे अपना स्वाभाविक बैर-भाव भूल बैठे हैं। इसी कारण अब शेर और मृग, साँप और मोर जैसे प्राणियों को साथ-साथ देखा जा सकता है। ऐसा लगता है कि संसार तपोवन बन गया है जहाँ किसी को किसी से कोई भय नहीं रह गया है। ऐसा गरमी की प्रचंडता के कारण संभव हो पाया है।

प्रश्न 3.
जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु ।
मन-काँचै नाचे वृथा, साँचे राँचै राम्।।।
उत्तर
भाव-इस दोहे में बिहारी का कहना कि ईश्वर को निश्छल भक्ति द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। उसके लिए बाह्य आडंबरों
या दिखावे की आवश्यकता नहीं होती। भक्ति का नाटक करने; जैसे माला जपना, तिलक लगाना, चंदन का शरीर पर छाप लगाना, ये सब व्यर्थ है, ईश्वर को पाने के लिए अंतःकरण को शुद्ध रखना, मन की स्थिरता, सच्ची भावना और आस्था को स्थान देना चाहिए; क्योंकि व्यर्थ के बाह्य आडंबरों का झूठा प्रदर्शन करके लोगों को धोखा दिया जा सकता है। भगवान को नहीं।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 2 पद

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
पहले पद में मीरा ने हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती किस प्रकार की है?
उत्तर
मीरा श्री कृष्ण को संबोधित करते हुए कहती हैं कि हे श्री कृष्ण! आप तो सदैव अपने भक्तों की पीड़ा को दूर करते हैं। अनेक उदाहरणों के माध्यम से श्री कृष्ण को अपनी पीड़ा हरने की बात कहती हैं। जिस प्रकार भरी सभा में कौरवों द्वारा अपमानित होने पर जब द्रोपदी ने रक्षा के लिए पुकारा तो आपने वस्त्र बढ़ाकर उसके मान-सम्मान की रक्षा की। इसी प्रकार भक्त प्रह्लाद को बचाने हेतु नरसिंह का रूप धारण कर हिरण्यकश्यप को मारा था। मुसीबत में पड़े ऐरावत हाथी को मगरमच्छ के मुँह से बचाया । मीरा इन सब दृष्टांतों के माध्यम से अपनी पीड़ा हरने के साथ-साथ सांसारिक बंधनों से मुक्ति के लिए भी विनती करती हैं।

प्रश्न 2.
दूसरे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी क्यों करना चाहती हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
दूसरे पद में कवयित्री मीराबाई अपने आराध्य श्रीकृष्ण की चाकरी इसलिए करना चाहती हैं ताकि उन्हें इसी चाकरी के बहाने दिन-रात कृष्ण की सेवा का अवसर मिल सके। मीरा अपने कृष्ण का दर्शन करना चाहती हैं, उनके नाम का दिनरात स्मरण करना चाहती हैं तथा अनन्य भक्तिभाव दर्शाना चाहती है। ऐसा करने से मीरा प्रभु-दर्शन, नाम-स्मरण की जेब खर्ची और भक्ति भाव की जागीर के रूप पाकर अपनी तीनों इच्छाएँ पूरी कर लेना चाहती हैं।

प्रश्न 3.
मीराबाई ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन कैसे किया है?
उत्तर
मीराबाई ने श्री कृष्ण के रूप-सौंदर्य का अलौकिक वर्णन किया है। श्रीकृष्ण के शरीर पर पीले वस्त्र सुशोभित हो रहे हैं। सिर पर मोर पंख युक्त मुकुट सुशोभित हो रहा है। गले में बैजयंती माला उनके सौंदर्य में चार चाँद लगा रहा है। वे बाँसुरी बजाते हुए वृंदावन में गौएँ चराते हुए घूमते हैं। इस प्रकार इस रूप में श्रीकृष्ण का बहुत ही मनोरम रूप उभरता है।

प्रश्न 4.
मीराबाई की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
मीराबाई के काव्य का कला पक्ष भी उनके भाव पक्ष की तरह सबल है। उन्होंने अपने पदों में मुख्य रूप से ब्रजभाषा का प्रयोग किया है जिसमें पंजाबी, राजस्थानी और गुजराती भाषा के शब्दों की बहुलता है। भाषा सरल, सहज बोधगम्य है। उनका शब्द चयन सटीक है जो भावों की सहजाभिव्यक्ति में समर्थ है। इन पदों में ब्रजभाषा की कोमलकांत पदावली और राजस्थानी की अनुनासिकता के कारण मिठास और कोमलता का संगम बन गया है। पदों में भक्ति प्रवणता में गेयता और संगीतात्मकता के कारण वृद्धि हुई है। कवयित्री ने शब्दों को भावों के अनुरूप ढाल बनाकर प्रयोग किया है। इसके अलावा अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। इन अलंकारों में अनुप्रास और रूपक मुख्य हैं।

प्रश्न 5.
वे श्रीकृष्ण को पाने के लिए क्या-क्या कार्य करने को तैयार हैं?
उत्तर
मीराबाई ने श्रीकृष्ण को अपने प्रियतम के रूप में देखा है। वे बार-बार श्रीकृष्ण का दर्शन करना चाहती हैं। उन्हें पाने के लिए उन्हें उनकी दासी बनना भी स्वीकार है। वे प्रतिदिन दर्शन पाने के लिए उनके महलों में बाग लगाने के लिए तैयार हैं। वे बड़े-बड़े महलों का निर्माण करवाकर उनके बीच में खिड़कियाँ बनवाना चाहती हैं ताकि वे श्रीकृष्ण के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त कर सकें। वे उनके दर्शन पाने के लिए कुसुंबी साड़ी पहनकर यमुना के तट पर आधी रात को प्रतीक्षा करने को तैयार हैं। मीरा के मन में अपने आराध्य से मिलने के लिए व्याकुलता है इसलिए वे उन्हें पाने के लिए हर संभव
प्रयास करने को तत्पर हैं।

(ख) निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-

प्रश्न 1.
हरि आप हरो जन री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर।।
भगत कारण रूप नरहरि, धर्यों आप सरीर।
उत्तर
भाव पक्ष-प्रस्तुत पंक्तियाँ मीराबाई के पद से ली गई हैं। जिसमें मीराबाई ने कृष्ण से अपने कष्टों को दूर करने का आग्रह किया है। मीरा के अनुसार श्रीकृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाने के लिए चीर बढ़ाया था। भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए नरसिंह का अवतार धारण किया था। इस पद के माध्यम से मीरा कृष्ण से कहना चाहती हैं कि प्रभु! जब जिस भक्त को आपकी जिस रूप की आवश्यकता पड़ती है, वह रूप धारण कर आप उसके कष्टों को हरण करते हैं। उसी प्रकार आप मेरे भी सभी कष्टों को दूर कीजिए।
कला पक्ष-

  1. राजस्थानी, गुजराती व ब्रज भाषा का प्रयोग है।
  2. भाषा अत्यंत सहज व सुबोध है।
  3. शब्द चयन भावानुकूल है।
  4. पद में माधुर्य भाव है।
  5. भाषा में प्रवाहमयता और सरसता का गुण विद्यमान है।
  6. दैन्य भाव की भक्ति है तथा शांत रस की प्रधानता है।
  7. दृष्टांत अलंकार का प्रयोग किया गया है।

प्रश्न 2.
बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुण्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर।।
उत्तर
भाव सौंदर्य – इन पंक्तियों में कवयित्री मीरा द्वारा अपनी पीड़ा दूर करने के लिए प्रार्थना करते हुए उनकी भक्तवत्सलता का वर्णन किया है। मीरा ने प्रभु को स्मरण कराया है कि किस तरह उन्होंने जलाशय की अतल गहराई में मगरमच्छ द्वारा खींचे जाने पर डूबते गजराज की मदद की थी।
शिल्प सौंदर्य –
भाषा – कोमलकांत पदावली युक्त मधुर ब्रजभाषा का प्रयोग। तत्सम, तद्भव शब्दों का मेल।
अलंकार – काटी कुण्जर’ में अनुप्रास तथा पूरे पद में दृष्टांत अलंकार है।
रस – भक्ति एवं शांत रस की प्रधानता।
छंद – पद छंद का प्रयोग।
अन्य – पद में गेयता एवं संगीतात्मकता।

प्रश्न 3.
चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनँ बाताँ सरसी।
उत्तर
भाव पक्ष-प्रस्तुत पंक्तियों में मीराबाई कृष्ण की सेविका बन कर उनकी चाकरी करना चाहती हैं क्योंकि कृष्ण की सेविका बनकर वे प्रतिदिन उनके दर्शन प्राप्त कर सकेंगी और स्मरण रूपी धन को प्राप्त कर पाएँगी तथा इस भक्ति रूपी, साम्राज्य को प्राप्त करके मीराबाई तीनों कामनाएँ बड़ी सरलता से प्राप्त कर लेंगी। अर्थात् प्रभु के दर्शन, नाम स्मरण रूपी खरची और नाम भक्ति रूपी जागीर तीनों ही प्राप्त कर लेंगी।
कला पक्ष

  1. प्रस्तुत पंक्तियों की भाषा राजस्थानी है।
  2. भाषा अत्यंत सहज व सुबोध है।
  3. कवयित्री की कोमल भावनाओं की सुंदर ढंग से अभिव्यक्ति हुई है।
  4. भाषा में लयात्मकता तथा संगीतात्मकता है।
  5. भाषा सरलता, सरसता और माधुर्य से युक्त है।
  6. दास्य भाव एवं शांत रस की प्रधानता है।
  7. “भाव भगती’ में अनुप्रास अलंकार है।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
उदाहरण के आधार पर पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए
उदाहरण-भीर-पीड़ा/कष्ट/दुख; री-की
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 2 1
उत्तर
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 2 2

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ?

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा अनुभूति उनके लेखन में कहीं अधिक मदद करती है, क्यों?
उत्तर
लेखक का मानना है कि अनुभव घटित का होता है परंतु अनुभूति संवदेना और कल्पना के सहारे उस सत्य को आत्मसात् कर लेती है जो वास्तव में कृतिकार के साथ घटित नहीं हुआ है। जो आँखों के सामने नहीं आया वही आत्मा के सामने ज्वलंत प्रकाश में आ जाता है तब वह अनुभूति-प्रत्यक्ष हो जाता है।

अतः लेखक का मानना है कि जब तक रचनाकार का हृदय संवेदना से व्यथित नहीं होता है तब तक प्रत्यक्ष अनुभव उसे लिखने के लिए विवश नहीं कर सकता है। लिखने की यह विवशता अंदर की अनुभूति से होती है और भावना स्वयं शब्दों में प्रस्फुटित होने लगती है। यही कारण है कि लिखने में अंदर की अनुभूति विशेष मदद करती है।

प्रश्न 2.
लेखक ने हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता कब और किस तरह महसूस किया?
उत्तर
लेखक विज्ञान का विद्यार्थी था। उसे अणु, रेडियोधर्मी तत्व उनका भेदन, रेडियोधर्मिता की सैद्धांतिक जानकारी होने पर भी जब उसने हिरोशिमा पर अणु बमबारी के बारे में सुना तथा वहाँ जाकर उनके कुप्रभावों को प्रत्यक्ष रूप से देखा तब भी उस विस्फोट का भोक्ता नहीं बन पाया। एक दिन सड़क पर घूमते हुए जब एक बड़े से जले पत्थर पर मानव छाया देखी तो उसने जान लिया कि विस्फोट के समय यहाँ कोई मनुष्य खड़ा था। मनुष्य से रुद्ध होकर जो किरणें रुक गई, उन्होंने पत्थर को जला दिया और मनुष्य से टकराई किरणों ने उसे भाप बनाकर उड़ा दिया होगा। इससे उसके मन में विस्फोट का प्रत्यक्ष दृश्य साकार हो उठा और वह विस्फोट का भोक्ता बन गया।

प्रश्न 3.
‘मैं क्यों लिखता हूँ?’ के आधार पर बताइए कि
(क) लेखक को कौन-सी बातें लिखने के लिए प्रेरित करती हैं?
(ख) किसी रचनाकार के प्रेरणास्रोत किसी दूसरे को कुछ भी रचने के लिए किस तरह उत्साहित कर सकते हैं?
उत्तर
(क) किसी भी लेखक को लिखने के लिए निम्न बातें प्रेरित करती हैं

  1. आंतरिक विवशता-लेखकीय प्रवृत्ति में जब अपनी व्यक्तिगत अनुभूति को प्रकट करने की उत्कंठा इतनी बलवती हो जाती है कि उसे न लिखने तक बेचैन बनाए रखती है।
  2. संपादक और प्रकाशक का आग्रह-जब लेखक प्रसिद्ध हो जाते हैं तो संपादक और प्रकाशक कुछ लिखने के लिए आग्रह करते हैं और लेखक लिख देते हैं।
  3. आर्थिक विवशता-लेख लिखने के लिए सम्मान के साथ पारिश्रमिक भी मिलता है। आर्थिक आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए भी लेखक लिखते हैं।
  4. प्रसिद्ध पाने के लिए-ऐसे भी लेखक होते हैं जिन्हें कोई आकांक्षा नहीं होती वे लिखते हैं लिखते रहते हैं। उनमें आत्मसंतुष्टि की भावना होती है और यह भी कामना होती है कि लिखते-लिखते इतना सुधार आ जाए और पहचान बन सके।

(ख) किसी रचनाकार के प्रेरणास्रोत रचनाकार को कुछ भी लिखने के लिए विविध प्रकार से उत्साहित करते और कुछ भी लिखने की अपेक्षा करते हैं। लेखक को जो बातें लिखने के लिए प्रेरित करती हैं उन सबकी सम्पूर्ति को पूरा होने की बात कहते हैं या उनसे मुक्त हो जाने का प्राप्त अवसर बताते हैं।

प्रश्न 4.
कुछ रचनाकारों के लिए आत्मानुभूति/स्वयं के अनुभव के ण्य-साथ बाह्य दबाव भी महत्त्वपूर्ण होता है। ये बाह्य दबाव कौन-कौन से हो सकते हैं?
उत्तर
कुछ रचनाकारों के लिए आत्मानुभूति या स्वयं के अनुभव के साथ जो वाह्य दबाव महत्त्वपूर्ण होते हैं, वे निम्नलिखित हो सकते हैं-

  1. प्रकाशकों का आग्रह – लेखक को ख्याति मिलते ही प्रकाशक उससे लेखन का आग्रह करने लगते हैं।
  2. संपादकों का आग्रह – प्रकाशकों की तरह ही संपादकों का आग्रह भी लेखकों के लेखन में प्रेरक बनता है।
  3. आर्थिक लाभ – लेखन से मिलने वाला आर्थिक लाभ भी लेखन के लिए आवश्यक बन जाता है।
  4. प्रचार-प्रसार का दवाब – जब लेखकों पर किसी नए तथ्य के प्रचार-प्रसार का दबाव होता है, तब वे लेखन के लिए विवश हो जाता है।

प्रश्न 5.
क्या बाह्य दबाव केवल लेखन से जुड़े रचनाकारों को ही प्रभावित करते हैं या अन्य क्षेत्रों से जुड़े कलाकारों को भी प्रभावित करते हैं, कैसे?
उत्तर
बाह्य-दबाव केवल रचनाकारों को ही प्रभावित नहीं करते अपितु शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो जो बाह्य-दबाव से मुक्त हो। अतः अन्य क्षेत्रों से जुड़े कलाकार भी। बाह्य-दबावों से प्रभावित होते हैं; जैसे

  1. गायक-गायिकाएँ-आयोजकों और श्रोताओं का दबाव बना रहता है।
  2. सिनेमा-जगत् से संबंधित कलाकार-इन पर निर्देशक का दबाव रहता है। इसके अलावा आर्थिक दबाव भी रहता है।
  3. चित्रकार और मूर्तिकार-इन पर बनवाने वाले ग्राहकों की इच्छाओं का दबाव रहता है।

प्रश्न 6.
हिरोशिमा पर लिखी कविता लेखक के अंतः व बाह्य दोनों का परिणाम है यह आप कैसे कह सकते हैं?
उत्तर
हिरोशिमा पर लिखी कविता लेखक के अंतः एवं बाह्य दबाव दोनों का परिणाम है, क्योंकि लेखक ने हिरोशिमा में बम विस्फोट से उत्पन्न त्रासदी को देखा। लेखक ने देखा कि रेडियोधर्मी किरणों ने मनुष्य को भाप बनाकर उड़ा दिया जिसकी छाया पत्थर पर अंकित हो गई है। यह देखकर लेखक के मन में अनुभूति जगी, जिसकी प्रेरणा से प्रेरित होकर लेखक ने यह कविता जापान में नहीं लिखी बल्कि प्रेरणा की तीव्रता ने भारत आकर उसे कविता लेखन के लिए विवश कर दिया।

प्रश्न 7.
हिरोशिमा की घटना विज्ञान का भयानकतम दुरुपयोग है। आपकी दृष्टि में विज्ञान का दुरुपयोग कहाँ-कहाँ और किस तरह से हो रहा है?
उत्तर
हिरोशिमा पर अणु-बम गिराया जाना ऐसी घटना थी जिसने संपूर्ण मानवता को हिलाकर रख दिया, यह विज्ञान का निकृष्टतम प्रयोग था। विज्ञान कुछ दुरुपयोग निम्नलिखित

  1. विज्ञान के बढ़ते हुए दुरुपयोग से बढ़ती हुई भ्रूण हत्याएँ।
  2. कंप्यूटर में वायरस जैसा कुछ गलत कार्य।
  3. देश की सुरक्षा के लिए निर्मित हथियारों का आतंकवादियों द्वारा निर्दोषों की हत्या के लिए प्रयोग में लाना।।
  4. विविध कीटनाशकों का प्रयोग आत्महत्या के लिए।

प्रश्न 8.
एक संवेदनशील युवा नागरिक की हैसियत से विज्ञान का दुरुपयोग रोकने में आपकी क्या भूमिका है?
उत्तर
एक संवेदनशील युवा नागरिक की हैसियत से मैं विज्ञान का दुरुपयोग रोकने के लिए कई प्रकार से अपनी भूमिका निभा सकता हूँ, जैसे-

  1. अल्ट्रासाउंड मशीनों का दुरुपयोग कर कन्याभ्रूण हत्या रोकने के लिए लोगों को सजग करूँगा तथा भविष्य में इससे होने वाले खतरों के प्रति आगाह करूंगा।
  2. प्लास्टिक की थैलियों तथा उनसे बनी वस्तुओं का प्रयोग कम से कम करने के लिए लोगों में जनचेतना और सजगता फैलाऊँगा।
  3. विज्ञान के विभिन्न उपकरणों एवं यंत्रों का मैं खुद भी दुरुपयोग नहीं करूंगा और लोगों से अनुरोध करूँगा कि वे भी इसका दुरुपयोग न करें।
  4. लोगों से आग्रह करूंगा कि वे अपनी-अपनी गाड़ियों का प्रयोग कम करके सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करें ताकि प्रदूषण में कमी आए।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न 1.
हमारी आजादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं रहा है। इस कहानी में लोगों के योगदान को लेखक ने किस प्रकार उभारा है?
उत्तर
यद्यपि हमारी आजादी की लड़ाई में सभी वर्गों का योगदान रहा है। उनमें समाज में उपेक्षित समझे जाने वाले वर्ग का भी योगदान कम नहीं रहा। पाठ के पात्र टुन्नू और दुलारी दोनों ही कजली गायक हैं। दोनों ने आजादी के समय आंदोलन में अपनी सामर्थ्य के अनुसार भरपूर योगदान दिया है।

टुन्नू : टुन्नू सोलह-सत्रह वर्ष का संगीत प्रेमी बालक है। वह खद्दर का कुर्ता पहनता था और सिर पर गाँधी टोपी लगाता था। उसने दुलारी को भी गाँधी आश्रम में बनी खद्दर की साड़ी उपहार स्वरूप दी थी, वह विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार करने वालों के जुलूस में शामिल था जहाँ उसे अली सगीर ने अपने बूट से ऐसी ठोकर मारी कि वह अपनी जान से हाथ धो बैठा। इस तरह उसने अपना बलिदान दे दिया।

दुलारी : दुलारी भी टुन्नू की तरह कजली गायिका है। विदेशी वस्त्रों का संग्रह करने वाली टोली को चादर, कोरी धोतियों का बंडल दे देती है। वह टुन्नू दूद्वारा दी गई गाँधी आश्रम की धोती को सगर्व पहनती है। वह पुलिस के मुखबिर फेंकू की झाड़ से पिटाई करती है। लेखक ने इस तरह समाज से उपेक्षित लोगों के योगदान को स्वतंत्रता के आंदोलन में महत्त्वपूर्ण माना है।

प्रश्न 2.
कठोर हृदयी समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उटी?
उत्तर
दुलारी समाज के उपेक्षित वर्ग से संबंध रखने वाली कजली गायिका थी। समाज के कुछ लोगों की लोलुप नज़रों से बचने के लिए उसका कठोर हृदयी होना भी आवश्यक था। इसके अलावा समय और समाज के थपेड़ों ने भी दुलारी को कठोर बना दिया। इसी बीच टुन्नू से मुलाकात, उसकी देशभक्ति और उसके निश्चल प्रेम ने दुलारी के हृदय की कठोरता को करुणा में बदलने पर विवश कर दिया। दुलारी ने जान लिया था कि टुन्नू का प्रेम उसकी आत्मा से है, शरीर से नहीं। दुलारी अपने प्रति टुन्नू के प्रेम से अनभिज्ञ नहीं थी, इसलिए कठोर हृदयी दुलारी उसकी मृत्यु पर विचलित हो उठी।

प्रश्न 3.
कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन क्यों हुआ करता होगा? कुछ परंपरागत लोक आयोजनों का उल्लेख कीजिए?
उत्तर
कजली गन्न भी अन्य मनोरंजक आयोजनों की तरह होता है। इसमें दो टन इकटे होकर गायन-प्रतियोगिता करते हैं और अलग-अलग भावों में व्यंग्य-शैली अपनाते हुए एक-दूसरे के सवालों का जवाब देने के साथ प्रश्न भी कर देते हैं। यह सिलसिला काफी देर तक चलता रहता है। वाह-वाह करने के लिए दोनों दलों के साथ संगतकार होते हैं। स्वतंत्रता से पहले लोगों में देश-प्रेम की भावना उत्पन्न करना, लोगों को उत्साहित  रना, प्रचार करना इन दंगलों के मुख्य कार्य थे।
कजली दंगल की तरह समाज में कई अन्य प्रकार के दंगल किए जाते हैं; जैसे-

  1. रसिया-दंगल : यह ब्रज-क्षेत्र में अधिक प्रचलित है।
  2. रागिनी-दंगल : यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में अधिक प्रचलित है।
  3. संकीर्तन-दंगल : जहाँ-तहाँ संपूर्ण भारत में इसकी परंपरा है।।
  4. पहलवानों का कुश्ती-दंगल : यह दंगल भी संपूर्ण भारत में होता है।

प्रश्न 4.
दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक, सांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी अति विशिष्ट है। इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी अपनी विशिष्टताओं जैसे-कजली गायन में निपुणता, देशभक्ति की भावना, विदेशी वस्त्रों का त्याग करने जैसे कार्यों से अति विशिष्ट बन जाती है। दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. कजली गायन में निपुणता-दुलारी दुक्कड़ पर कजली गायन की जानी पहचानी गायिका है। वह गायन में इतनी कुशल है कि अन्य गायक उसका मुकाबला करने से डरते हैं। वह जिस पक्ष में गायन के लिए खड़ी होती है, वह पक्ष अपनी जीत सुनिश्चित मानता है।
  2. स्वाभिमानी-दुलारी भले ही गौनहारिन परंपरा से संबंधित एवं उपेक्षित वर्ग की नारी है पर उसके मन में स्वाभिमान की उत्कट भावना है। फेंकू सरदार को झाड़ मारते हुए अपनी कोठरी से बाहर निकालना इसका प्रमाण है।
  3. देशभक्ति तथा राष्ट्रीयता की भावना-दुलारी देशभक्ति एवं राष्ट्रीयता की भावना के कारण विदेशी साड़ियों का बंडल होली जलाने वालों की ओर फेंक देती है।
  4. कोमल हृदयी-दुलारी के मन में टुन्नू के लिए जगह बन जाती है। वह टुन्नू से प्रेम करने लगती है। टुन्नू के लिए उसके मन में कोमल भावनाएँ हैं।
    इस तरह दुलारी का चरित्र देश-काल के अनुरूप आदर्श है।

प्रश्न 5.
दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस प्रकार हुआ?
उत्तर
भादों की तीज पर खोजवाँ और बजरडीहा वालों के बीच कजली दंगल हो रहा था। उस समय दुक्कड़ पर गाने वालियों में दुलारी की महती ख्याति थी। उसमें पद्य में सवाल-जवाब करने की अद्भुत क्षमता थी। खोजवाँ वाले दुलारी के अपनी ओर होने से अपनी जीत के लिए आश्वस्त थे। दूसरी ओर बजरडीहा वाले अपनी ओर से टुन्नू को लाए थे। उसने भी पद्यात्मक शैली में प्रश्न-उत्तर करने में कुशलता प्राप्त की थी। टुन्नू दुलारी की ओर हाथ उठाकर चुनौती के रूप में ललकार उठा। दुलारी मुसकुराती हुई मुग्ध होकर सुनती रही। यहीं पर गायक के रूप में दुलारी और टुन्नू का परिचय हुआ।

प्रश्न 6.
दुलारी का टुन्नू को यह कहना कहाँ तक उचित था-“तै सरबला बोल जिन्नगी में कब देख ले लोट?…” दुलारी के इस आक्षेप में आज के युवावर्ग के लिए क्या संदेश | छिपा है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कजली की सुप्रसिद्ध गायिका दुलारी को खोजवाँ बाजार में गाने के लिए बुलाया गया था। इसी दंगल में जब उसकी गायिकी का जवाब देने टुन्नू नामक एक किशोर उठ खड़ा हुआ और अपने गीतों से दुलारी को माकूल जवाब दिया तो दुलारी ने गीत के माध्यम से कहा, “तें सरबउला बोल जिन्नगी में कब देखले लोट?..। उसका यह आक्षेप मुख्य रूप से टुन्नू के लिए था जिसका बाप घाटों पर पूजा पाठ करके जीवन की गाड़ी खींच रहा था। दुलारी के इस कथन में आज के युवाओं के लिए निहित संदेश है-

  1. युवाओं को अपने लक्ष्य पर ध्यान देना चाहिए गाने बजाने पर नहीं।
  2. युवा अपनी यथार्थ स्थिति को ध्यान में रखकर ही कल्पना की दुनिया में हुए।
  3. युवा रचनात्मक कार्यों से विमुख न हों तथा समाजोपयोगी काम करें।
  4. युवा अपने कार्यों से माता-पिता की प्रतिष्ठा और इज्ज़त दाँव पर न लगाएँ।

प्रश्न 7.
भारत के स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपना योगदान किस प्रकार दिया?
उत्तर
भारत के स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपनी सामर्थ्य और सोच से अधिक योगदान दिया । दुलारी एक सामान्य महिला थी। जब देश के दीवानों का दल विदेशी वस्त्रों का संग्रह कर रहा था तब दुलारी ने मुँचेस्टर और लंका-शायर के मिलों की बनी बारीक सूत की मखमली किनारी वाली नयी कोरी धोतियों के बंडल को अनासक्त भाव से फेंक कर आंदोलन में योगदान दिया। देश के दीवानों की टोली में सम्मिलित हुए टुन्नू की मृत्यु पर टुन्नू की ही दी हुई गाँधी आश्रम की धोती को पहन कर उसने उसके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की।

इसी प्रकार टुन्नू भी देश के दीवारों की टोली में शामिल होकर आंदोलन में अपनी भूमिका निभाता है और अपना बलिदान दे देता है। इस प्रकार उसका बलिदान भी लोगों को देश-प्रेम के लिए प्रेरणा देता है। इस तरह दोनों का योगदान सराहनीय है।

प्रश्न 8.
दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी। यह प्रेम दुलारी को देश-प्रेम तक कैसे पहुँचाता है?
उत्तर
दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी। एक ओर दुलारी कजली की प्रसिद्ध गायिका थी वहीं टुन्नू भी उभरता हुआ युवा गायक था। दोनों की प्रथम मुलाकात कजली दंगल में हुई थी। उन्होंने अपनी कला के माध्यम से एक दूसरे पर जहाँ व्यंग्य किया, वहीं एक-दूसरे का सम्मान भी। टुन्नू के मन में अपने प्रति छिपा आकर्षण दुलारी ने महसूस कर लिया था पर यह प्रेम मुखरित न हो सका था। विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार करने के कारण जब टुन्नू की हत्या कर दी जाती है और यह बात दुलारी को पता चलती है तो वह शोक प्रकट करने खादी की सूती साड़ी पहनकर जाती है। टुन्नू के प्रति यह प्रेम इस तरह देश प्रेम में बदल जाता है।

प्रश्न 9.
जलाए जाने वाले विदेशी वस्त्रों के ढेर में अधिकांश वस्त्र फटे-पुराने थे परंतु दुलारी द्वारा विदेशी मिलों में बनी कोरी साड़ियों को फेंका जाना उसकी किस मानसिकता को दर्शाता
उत्तर
आज़ादी के दीवानों की एक टोली जलाने के लिए विदेशी वस्त्रों का संग्रह कर रही थी। अधिकतर लोग फटे-पुराने वस्त्र फेंक रहे थे। उनमें देश-प्रेम कम दिखावे का भाव अधिक था, किंतु बिना किसी मोह के विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करते हुए दुलारी ने विदेश की बनी उन साड़ियों को फेंक दिया जिनकी अभी तह तक नहीं खुली थी। उसके मन में देश-प्रेम की भावना पूर्णरूपेण अपनी जगह बना चुकी थी। उसका विदेशी वस्त्रों के प्रति मोह समाप्त हो चुका था। जिस रास्ते पर टुन्नू चल रहा था उस पर चलकर
उसने टुन्नू के प्रति आत्मीय स्नेह को स्पष्ट किया।

प्रश्न 10.
“मन पर किसी का बस नहीं, वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।” टुन्नू के इस | कथन में उसका दुलारी के प्रति किशोर जनित प्रेम व्यक्त हुआ है, परंतु उसके विवेक ने उसके प्रेम को किस दिशा की ओर मोड़ा?
उत्तर
टुन्नू का यह कहना, ‘मन पर किसी का वश नहीं, वह रूप या उमर का कायल नहीं होता” उसके मन की उन कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति है जो दुलारी के प्रति है। दुलारी भी इस निश्छल प्रेम को महसूस करती है तथा समझ जाती है कि टुन्नू का यह प्रेम शारीरिक न होकर मानसिक है, पर दुलारी द्वारा सकारात्मक जवाब न पाकर टुन्नू सूती धोतियाँ दुलारी को देकर उस दल में शामिल हो जाता है जो विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने तथा उनकी होली जलाने के लिए गली-गली घूमकर उनका संग्रह कर रहा था। इस प्रकार उसके विवेक ने उसके प्रेम को देश प्रेम की ओर मोड़ दिया।

प्रश्न 11.
‘एही टैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ का प्रतीकार्थ समझाइए।
उत्तर
इसी जगह पर मेरी नाक की झुलनी (लौंग) खो गई है-यह इसका शाब्दिक अर्थ है। दुलारी स्पष्ट करती है कि थाने आकर मेरी नाक की लौंग खो गई–अर्थात मेरी प्रतिष्ठा जाती रही। थाने में दुलारी को बुलाकर उसकी इच्छा के विपरीत गाने के लिए विवश किया गया था। इस तरह वह अपनी प्रतिष्ठा का खोना मानती है।

दुलारी टुन्नू को अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार कर चुकी थी जिसे वहीं अली सगीर ने बूट की ठोकर मारी थी और वह उस चोट से वहाँ गिरकर मर गया था। इसलिए दूसरा अर्थ है कि मेरी नाक की लौंग, यानी मेरा सुहाग (टुन्नू) यहीं पर मार दिया गया है। अर्थात् मेरी सबसे प्रिय चीज़ यहीं कहीं खो गई है।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 1 साखी

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 1 साखी

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 1 साखी

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प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?
उत्तर
मीठी वाणी जीवन में आत्मिक सुख व शांति प्रदान करती है। इसके प्रयोग से संपूर्ण वातावरण सरस व सहज बन जाता है। यह सुननेवाले के मन को प्रभावित व आनंदित करती है। इसके प्रभाव से मन में स्थित शत्रुता, कटुता वे आपसी ईष्र्या-द्वेष के भाव समाप्त हो जाते हैं। मीठी वाणी बोलने से सुननेवालों को शांति प्राप्त होती है। इसलिए हमें ऐसी वाणी बोलनी चाहिए कि जिसे सुनकर लोग आनंद की अनुभूति करें। हम मीठी वाणी बोलकर अपने शरीर को भी शीतलता पहुँचाते हैं। कठोर वाणी हमें क्रोधित व उत्तेजित करती है। मीठी वाणी अहंकारशून्य होने के कारण तन को शीतलता प्रदान करती है तथा आनंद की सुखद अनुभूति कराती है। इस प्रकार मीठी वाणी बोलने से न केवल दूसरों को हम सुख प्रदान करते हैं अपितु स्वयं भी शीतलता का अनुभव करते हैं।

प्रश्न 2.
दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
साखी के संदर्भ में ‘दीपक ज्ञान रूपी प्रकाश का प्रतीक है। जिस प्रकार दीपक का प्रकाश अंधकार को मिटा देता है, उसी प्रकार से जब ईश्वरीय ज्ञान की लौ दिखाई देती है, तब अज्ञान रूपी अंधकार मिट जाता है और मनुष्य के भीतर-बाहर ज्ञान का प्रकाश फैल जाता है। ज्ञान का प्रकाश तभी प्रज्वलित होता है, जब मनुष्य का ‘अहम्’ नष्ट हो जाता है और परमात्मा से उसका साक्षात्कार हो जाता है।

प्रश्न 3.
ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?
उत्तर
ईश्वर संसार के कण-कण में व्याप्त है परंतु हम उसे देख नहीं पाते, क्योंकि हमारा अस्थिर मन सांसारिक विषय-वासनाओं, अज्ञानता, अहंकार और अविश्वास से घिरा रहता है। अज्ञान के कारण हम ईश्वर से साक्षात्कार नहीं कर पाते। जिस प्रकार कस्तूरी नामक सुगंधित पदार्थ हिरण की नाभि में विद्यमान होता है लेकिन वह उसे जंगल में इधर-उधर ढूँढ़ता रहता है उसी प्रकार ईश्वर हमारे हृदय में निवास करते हैं परंतु हम उन्हें अज्ञानता के कारण मंदिरों, मस्जिदों, गिरिजाघरों व गुरुद्वारों में व्यर्थ में ही खोजते फिरते हैं। कबीर के मतानुसार कण-कण में छिपे परमात्मा को पाने के लिए ज्ञान का होना अत्यंत आवश्यक है।

प्रश्न 4.
संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
संसार में सुखी वही व्यक्ति है, जिसने घट-घट और कण-कण में बसने वाले ईश्वर से प्रीति कर ली है, उसके तत्व ज्ञान को जान और मान लिया है। दुखी मनुष्य वह है, जो दिन में खाकर और रात में सोकर हीरे जैसे अनमोल जीवन साखी 5 को व्यर्थ गॅवाकर भौतिक सुखों की चकाचौंध में खोया हुआ है। यहाँ जो व्यक्ति संसार के विषयों से अनासक्त होकर ईश्वर में मन को लगाए हुए है, वह ‘जागना’ का प्रतीक है और जो व्यक्ति विषय-विकारों में मस्त है, भौतिक दृष्टि से उसकी आँखें बेशक खुली हुई हैं, पर वास्तव में वह सोया हुआ है, अर्थात् ‘सोना’ का प्रतीक है।

प्रश्न 5.
अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर
स्वभाव की निर्मलता के लिए आवश्यक है कि मनुष्य का मन निर्मल हो । मन तभी निर्मल रह सकता है जब हम उसे विकारों से मुक्त रखेंगे। इसके लिए आवश्यक है कि हम बुरे काम न करें। इसके लिए कबीर ने यह उपाय सुझाया है कि हमें सदा निंदक अर्थात आलोचना करनेवाले को सम्मान सहित आँगन में कुटी बनाकर रखना चाहिए। क्योंकि उन्हें यह विश्वास है कि निंदक ही वह प्राणी है जो मनुष्य की गलतियों को सुधारने का अवसर देता है। जिससे मनुष्य के स्वभाव में निर्मलता का भाव उत्पन्न होता है।

प्रश्न 6.
एकै अषिर पीव का, पढ़े सु पंडित होइ’-इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर
इस पंक्ति के द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि ईश्वर को पाने के लिए तो उसके नाम, भक्ति और प्रेम का एक अक्षर पढ़ लेना ही बड़े-बड़े वेदों तथा ग्रंथों को पढ़ने के समान है। पंडित बनने के लिए ईश्वर के नाम के एक अक्षर को गहराई से समझकर हृदय में आत्मसात् कर लेना पर्याप्त है। पुस्तकीय ज्ञान द्वारा व्यक्ति द्वंद्व, विवाद एवं वैचारिक मतभेदों में फँस जाता है।

प्रश्न 7.
कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कबीर जी द्वारा रचित इन साखियों की भाषा सधुक्कड़ी है। इसमें अवधी, ब्रज, खड़ी बोली, पूर्वी हिंदी तथा पंजाबी के शब्दों का सुंदर प्रयोग हुआ है। कबीर की भाषा में देशज शब्दों का भी प्रयोग मिलता है। कवि ने अपनी बात कहने के लिए साखी को अपनाया है। यह वस्तुतः दोहा छंद है। इनमें अत्यंत सामान्य भाषा में लोक व्यवहार की शिक्षा दी गई है। इनमें मुक्तक शैली का प्रयोग हुआ है तथा गीति तत्व के सभी गुण विद्यमान है। भाषा सहज तथा मधुर है। भाषा में अनुप्रास, रूपक पुनरुक्ति प्रकाश, उदाहरण व दृष्टांत अलंकार प्रयुक्त है। अपनी चमत्कारी भाषा के कारण कबीर जगत् प्रसिद्ध हैं।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए

प्रश्न 1.
विरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।
उत्तर
विरह-व्यथा विष से भी अधिक मारक है, दारुण है। इस व्यथा का वर्णन शब्दों द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता। यह केवल अनुभूति का विषय है। सर्प और विष का उदाहरण देते हुए कवि ने राम वियोगी की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है। कबीर के अनुसार विरह सर्प की भाँति है। विरह-विष तन में व्याप्त है। कोई मंत्र (झाड़-फॅक) इस विष को मार नहीं सकता है। राम का वियोगी-विरह व्यथा में मरता है अगर जीता है तो बावला हो जाता है।

प्रश्न 2.
कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूंढे बन मॉहि।
उत्तर
मनुष्य के घट (शरीर) में ही परमात्मा का वास है अर्थात् शक्ति का स्त्रोत हमारे भीतर है पर इसके प्रति हमारा विश्वास नहीं। हम उसे बाहर कर्मकांड आदि में ढूंढते हैं अपने भीतर ढूंढने का यत्न नहीं करते। यही भ्रम है-यही भूल है, मृग जैसी हमारी दशा है। उसकी नाभि में ही कस्तूरी है पर उसे उसका बोध नहीं और उस सुगंध की खोज में वह स्थान-स्थान पर भटकता फिर रहा है।

प्रश्न 3.
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नॉहि।
उत्तर
कबीर के अनुसार जब तक मैं अर्थात् अहंकार को भाव मन में था तब तक वहाँ ईश्वर का वास नहीं था। केवल मन में अज्ञान रूपी अंधकार ही समाया हुआ था। जब ज्ञान दीपक में स्वयं के स्वरूप को पहचाना तब मन में छाया अज्ञान दूर हो गया। मन निर्मल हो गया। मन निर्मल हो ईश्वर से अभिन्नता का अनुभव करने लगा।

प्रश्न 4.
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भयो ने कोइ।
उत्तर
कबीर प्रेम मार्ग की श्रेष्ठता पर बल देते हुए कहते हैं कि शास्त्र पढ़-पढ़कर सारा संसार नष्ट होता जा रहा है। युग बीतते जा रहे हैं लेकिन कौन सच्चे अर्थों में पंडित या विद्वान बन पाया? किसने वह अलौकिक आनंद प्राप्त किया जो प्रेम से मिलता है। कबीर की दृष्टि से जिसने प्रेम के दो अक्षरों को जान लिया है। वही विद्वान है, पंडित है। प्रेम हृदय का भाव है और पढ़ना मस्तिष्क का । प्रेम के मार्ग में पढ़ाई साधक भी हो सकती है और बाधक भी।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप उदाहरण के अनुसार लिखिए-
उदाहरण-जिवै – जीना
औरन, माँहि, देख्या, भुवंगम, नेड़ा, आँगणी, साबण, मुवा, पीव, जालौं, तास
उत्तर
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 1 1

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