NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 10 Comparative Development Experiences of India and its Neighbours (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 10 Comparative Development Experiences of India and its Neighbours (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 10 Comparative Development Experiences of India and its Neighbours (Hindi Medium)

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प्रश्न अभ्यास
(पाठ्यपुस्तक से)

प्र.1. क्षेत्रीय और आर्थिक समूहों के बनने के कारण दीजिए।
उत्तर : पिछले लगभग दो दशकों से वैश्वीकरण ने विश्व के प्रायः सभी देशों में तीन आर्थिक परिवर्तन किए हैं। इन परिवर्तनों के कुछ अल्पकालिक, तो कुछ दीर्घकालिक प्रभाव भी हैं। भारत भी कोई अपवाद नहीं है। अत: विश्व के सभी राष्ट्र अपनी अर्थव्यवस्थाओं को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत बनाने के लिए अनेक उपाय अपनाते रहे हैं। इस उद्देश्य की प्राप्ति में उन्हें क्षेत्रीय एवं आर्थिक समूह बनाना सहायक प्रतीत होता है।

प्र.2. वे विभिन्न साधन कौन-से हैं जिनकी सहायता से देश अपनी घरेलू व्यवस्थाओं को मजबूत बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं?
उत्तर : निम्नलिखित साधनों के द्वारा देश अपनी घरेलू व्यवस्था को मजबूत बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं
(क) राष्ट्र विभिन्न प्रकार का क्षेत्रीय एवं आर्थिक समूहों जैसे आसियान, सार्क, जी-8, जी-20 ब्रिक्स आदि बना रहे हैं।
(ख) राष्ट्र आर्थिक सुधार लागू कर रहे हैं और इस तरह अन्य देशों के लिए अपने देश की अर्थव्यवस्था को खोल रहे हैं।
(ग) विभिन्न राष्ट्र इस बात के लिए काफी उत्सुकता दिखा रहे हैं कि वे अपने पड़ोसी राष्ट्रों द्वारा अपनाई गई विकासात्मक प्रक्रियाओं को समझने की कोशिश करें। इससे उन्हें अपने पड़ोसी देशों की शक्तियों एवं कमजोरियों को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी।

प्र.3. वे समान विकासात्मक नीतियाँ कौन-सी हैं जिनका भारत और पाकिस्तान ने अपने-अपने विकासात्मक पथ के लिए पालन किया है?
उत्तर : भारत और पाकिस्तान की विकासात्मक पथ की समानताओं को सारांश रूप में नीचे दिया गया है

(क)
दोनों ने अपनी विकास की ओर यात्रा 1947 में एक साथ मिलती-जुलती समस्याओं जैसे विभाजन की समस्याएँ और शरणार्थियों को पुनर्वासित करने की समस्या आदि के साथ शुरू किया। भारत ने अपनी प्रथम पंचवर्षीय योजना 1951 में उद्घोषित की जबकि पाकिस्तान ने 1956 में अपनी मध्यकालिक योजना की उद्घोषणा की।

(ख)
दोनों ने विकास के लिए मिश्रित अर्थव्यवस्था प्रणाली को अपनाया। दोनों अर्थव्यवस्थाओं में सार्वजनिक और निजि का सह-अस्तित्व रहा।

(ग)
दोनों ही देशों ने सार्वजनिक क्षेत्रक को अधिक महत्त्व दिया। दोनों ही देशों ने एक बड़ा सार्वजनिक क्षेत्रक बनाया और सामाजिक विकास के लिए सार्वजनिक व्यय को बढ़ाया।

(घ)
दोनों ही देशों ने लगभग समान समय पर आर्थिक सुधार लागू किए। पाकिस्तान ने आर्थिक सुधार 1988 में और भारत ने 1991 में लागू किए।

(ङ)
दोनों ही देशों ने आर्थिक सुधार इच्छा से नहीं, दबाव के कारण शुरू किए। |

प्र.4. 1958 में प्रारंभ की गई चीन के ग्रेट लीप फॉरवर्ड अभियान की व्याख्या कीजिए।
उत्तर : 1958 में चीन द्वारा ‘ग्रेट लीप फॉरवर्ड’ नामक अभियान शुरू किया गया था जिसका उद्देश्य बड़े पैमाने पर देश का । औद्योगिकीकरण करना था।
(क) ‘ग्रेट लीप फॉरवर्ड’ का उद्देश्य कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था को तीव्र औद्योगिकरण के द्वारा एक आधुनिक अर्थव्यवस्था में परिवर्तित करना था।
(ख) इस कार्यक्रम के अंतर्गत लोगों को अपने घर के पास उद्योग शुरू करने की प्रेरणा दी गई।
(ग) इस कार्यक्रम के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में कम्यून पद्धति शुरू की गई। कम्यून पद्धति के अनुसार, लोग सामूहिक रूप से खेती करते थे। 1958 में 26000 कम्यून थे जिसमें समस्त कृषक शामिल थे।
(घ) जी.एल.एफ. अभियान में काफी समस्याएँ आई जब भयंकर सूखे ने चीन में तबाही मचा दी जिसमें लगभग 30 मिलियन लोग मारे गए।

प्र.5. चीन की तीव्र औद्योगिक संवृद्धि 1978 में उसके सुधारों के आधार पर हुई थी, क्या आप इस कथन से सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : हाँ, हम इस कथन से सहमत हैं कि चीन की तीव्र औद्योगिक संवृद्धि 1978 में उसके सुधारों के आधार पर हुई थी।

(क)
चीन में सुधार चरणों में लागू किए गए। सबसे पहले कृषि, विदेशी व्यापार और निवेश क्षेत्रकों में सुधार किए गए। कृषि क्षेत्रक में कम्यून भूमि को छोटे-छोटे भूखंडों में बाँट दिया गया जिन्हें अलग-अलग परिवारों में आबंटित किया गया।

(ख)
फिर इन सुधारों को औद्योगिक क्षेत्रक तक फैलाया गया। निजी फर्मों को विनिर्माण इकाइयाँ लगाने की अनुमति दे दी गई। स्थानीय लोगों और सहकारिताओं को भी उत्पादन की अनुमति दे दी गई। इस अवस्था में सार्वजनिक क्षेत्रक अथवा राज्य के उद्यमों को प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा।

(ग)
इससे दोहरी कीमत निर्धारण पद्धति लागू करनी पड़ी। इसका अर्थ यह है कि कीमत का निर्धारण दो प्रकार से किया जाता था। किसानों और औद्योगिक इकाइयों से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे सरकार द्वारा निर्धारित की गई कीमतों के आधार पर आगतें एवं निगतों की निर्धारित मात्राएँ खरीदेंगे और बेचेंगे और शेष वस्तुएँ बाजार कीमतों पर खरीदी और बेची जाती थीं।

(घ)
विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) स्थापित किए गए।

प्र.6. पाकिस्तान द्वारा अपने आर्थिक विकास के लिए किए गए विकासात्मक पहलों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर : पाकिस्तान द्वारा अपने आर्थिक विकास के लिए किए गए विकासात्मक पहलों को नीचे सारांश रूप में दिया गया है|

(क)
पाकिस्तान में सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रकों के सह-अस्तित्व वाली मिश्रित अर्थव्यवस्था मॉडल का अनुसरण किया गया।

(ख)
1950 और 1960 के दशकों के अंत में पाकिस्तान के अनेक प्रकार की नियंत्रित नीतियों का प्रारूप लागू किया गया। उक्त नीति में उपभोक्ता वस्तुओं के विनिर्माण के लिए प्रशुल्क संरक्षण करना तथा प्रतिस्पर्धी आयातों पर प्रत्यक्ष आयात नियंत्रण शामिल था।

(ग)
हरित क्रांति के आने से यंत्रीकरण का युग शुरू हुआ और चुनिंदा क्षेत्रों की आधारिक संरचना में सरकारी निवेश में वृद्धि हुई, जिसके फलस्वरूप खाद्यान्नों के उत्पादन में भी अंत तक वृद्धि हुई।

(घ)
1970 के दशक में पूँजीगत वस्तुओं के उद्योगों का राष्ट्रीयकरण हुआ। 1970 और 1980 के दशकों के अंत में अराष्ट्रीयकरण पर जोर दिया गया है तथा निजी क्षेत्रक को प्रोत्साहित किया जा रहा था। इस अवधि के दौरान पाकिस्तान को पश्चिमी राष्ट्रों से भी वित्तीय सहायता प्राप्त हुई और मध्य पूर्व देशों को जाने वाले प्रवासियों से निरंतर पैसा मिला।

(घ)
1988 में देश में सुधार शुरू किए गए।

प्र.7. चीन में एक संतान’ नीति का महत्त्वपूर्ण निहितार्थ क्या है?
उत्तर : चीन में एक संतान’ नीति का महत्त्वपूर्ण निहितार्थ नीचे दिया गया है

  • चीन में एक संतान’ नीति ने सफलतापूर्वक जनसंख्या वृद्धि दर को कम किया है।
  • कुछ दशकों के बाद चीन में युवा लोगों की तुलना में बुजुर्ग लोगों का अनुपात बढ़ जाएगा।
  • इससे चीन कम कार्यकर्ताओं के साथ अधिक लोगों को सामाजिक सुरक्षा लाभ देने पर मजबूर होगा।

प्र.8. चीन, पाकिस्तान और भारत के मुख्य जनांकिकीय संकेतकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर : चीन द्वारा एक संतान नीति 1979 से अपनाए जाने के फलस्वरूप जनसंख्या वृद्धि दर 1979 के 1.33% से 2005 में 0.64% तक कम हो गया है।
(i) जनसंख्या संवृद्धि दर देश
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उत्तर :
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प्र.9. मानव विकास के विभिन्न संकेतकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर : मानव विकास के विभिन्न संकेतक इस प्रकार हैं

(क)
मानव विकास सूचकांक-इसका मूल्य जितना कम हो प्रदर्शन उतना बेहतर माना जाता है तथा इसके विपरीत।
(ख) जन्म के समय जीवन प्रत्याशा-इसका उच्च मान बेहतर प्रदर्शन दर्शाता है तथा इसके विपरीत।
(ग) प्रौढ़ साक्षरता दर-इसका उच्च मान बेहतर प्रदर्शन दर्शाता है तथा इसके विपरीत।
(घ) सकल राष्ट्रीय आय प्रति व्यक्ति-इसका उच्च मान बेहतर प्रदर्शन दर्शाता है तथा इसके विपरित।
(ङ) निर्धनता रेखा के नीचे खरीबी-एक निम्न स्तर बेहतर प्रदर्शन दर्शाता है तथा इसके विपरीत।
(च) शिशु मृत्यु दर-एक निम्न स्तर बेहतर प्रदर्शन दर्शाता है तथा इसके विपरीत।
(छ) मातृ मृत्यु दर-एक निम्न स्तर बेहतर प्रदर्शन दर्शाता है तथा इसके विपरीत।
(ज) उत्तम जल तक धारणीय पहुँच वाली जनसंख्या (%)-एक उच्च स्तर बेहतर प्रदर्शन दर्शाता है तथा इसके विपरीत।
(झ) उत्तम स्वच्छता तक धारणीय पहुँच वाली जनसंख्या (%)-एक उच्च स्तर बेहतर प्रदर्शन दर्शाता है तथा इसके विपरीत।
(अ) नगरों में रहने वाली जनसंख्या-इसका उच्च स्तर बेहतर प्रदर्शन दर्शाता है।
(ट) निर्भरता अनुपात-इसका निम्न स्तर बेहतर प्रदर्शन दर्शाता है तथा इसके विपरीत।

प्र.10. स्वतंत्रता संकेतक की परिभाषा दीजिए। स्वतंत्रता संकेतकों के कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
 यह सामाजिक और आर्थिक निर्णय लेने में जनसंख्यिकीय भागीदारी का एक सूचक है। इसके उदाहरण इस प्रकार हैं
(क) सामाजिक व राजनैतिक निर्णय प्रक्रिया में लोकतांत्रिक भागेदारी।
(ख) नागरिकों के अधिकारों की संवैधानिक संरक्षण की सीमा।
(ग) न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए संवैधानिक संरक्षण की सीमा या न्यायपालिका की स्वतंत्रता को संरक्षण देने के लिए संवैधानिक सीमा।

प्र.11. उन विभिन्न कारकों का मूल्यांकन कीजिए जिनके आधार पर चीन में आर्थिक विकास में तीव्र वृद्धि (तीव्र आर्थिक विकास हुआ) हुई।
उत्तर :
(क) जी.एल.एफ. अभियान-1958 में एक ग्रेट लीप फॉरवर्ड अभियान शुरू किया गया जिसका उद्देश्य बड़े पैमाने पर देश का औद्योगिकीकरण करना था। इसके अंतर्गत लोगों को अपने घर के पास उद्योग लगाने के लिए प्रेरित किया गया। 1958 में 26,000 ‘कम्यून’ थे जिनमें प्रायः समस्त कृषक शामिल थे।
(ख) महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति-1965 में माओं ने महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति का आरंभ किया (1966-1976) छात्रों और विशेषज्ञों को ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने और अध्ययन करने के लिए भेजा गया।
(ग) 1978 के आर्थिक सुधार-संप्रति चीन में जो तेज औद्योगिक संवृद्धि हो रही है, उसकी जड़े 1978 में लागू किए गए सुधारों में खोजी जा सकती है। प्रारंभिक चरण में कृषि, विदेशी व्यापार और निवेश क्षेत्रकों में सुधार किए गए। बाद के चरण में औद्योगिक क्षेत्र में सुधार आरंभ किए गए।
(घ) दोहरी कीमत प्रणाली-सुधार प्रक्रिया में दोहरी कीमत निर्धारण प्रणाली लागू की गई। इसके अतिरिक्त विशेष आर्थिक क्षेत्र स्थापित किए गए।

प्र.12. भारत, चीन और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्थाओं से संबंधित विशेषताओं को तीन शीर्षकों के अंतर्गत समूहित कीजिये
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प्र.13. पाकिस्तान में धीमी संवृद्धि तथा पुनः निर्धनता के कारण बताइए।
उत्तर : पाकिस्तान में धीमी संवृद्धि तथा निर्धनता के पुनः निर्धनता के निम्नलिखित कारण बताइए
(क) कृषि संवृद्धि और खाद्य पूर्ति, तकनीकी परिवर्तन संस्थागत प्रक्रिया पर आधारित न होकर अच्छी फसल पर आधारित था। जब फसल अच्छी नहीं होती थी तो आर्थिक संकेतक नकारात्मक प्रवृत्तियाँ दर्शाते थे।
(ख) पाकिस्तान में अधिकांश विदेशी मुद्रा मध्य पूर्व में काम करने वाले पाकिस्तानी श्रमिकों की आय प्रेषण तथा अति अस्थिर कृषि उत्पादों के निर्यातों से प्राप्त होती है।
(ग) विदेशी ऋणों पर निर्भर रहने की प्रवृत्ति बढ़ रही थी, तो दूसरी ओर पुराने ऋणों को चुकाने में कठिनाई बढ़ती जा रही थी।

प्र.14. कुछ विशेष मानव विकास संकेतकों के संदर्भ में भारत, चीन और पाकिस्तान के विकास की तुलना कीजिए और उसका वैषम्य बताइए।
उत्तर : नीचे एक तालिका दी गई है जो भारत, पाकिस्तान और चीन के मानव विकास संकेतकों का एक तुलनात्मक अध्ययन कर रही है।
NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 10 (Hindi Medium) 4
उपरोक्त तालिका से स्पष्ट है कि चीन, भारत और पाकिस्तान से अनेक संकेतकों में अग्रणी है। पाकिस्तान भारत की तुलना में शहरीकरण, पेय स्वच्छ जल की धारणीय पहुँच तथा निर्धनता रेखा में अग्रणी है।

प्र.15. पिछले दो दशकों में चीन और भारत में देखी गई संवृद्धि दरों की प्रवृत्तियों पर टिप्पणी दीजिए।
उत्तर : पिछले दो दशकों में चीन और भारत की संवृद्धि दरें नीचे दी गई हैं। 1980-2003 में सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि दर
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(क) चीन का सकल घरेलू उत्पाद US $ क 7.2 ट्रीलियन के साथ विश्व में दूसरे स्थान पर है। भारत का सकल घरेलू उत्पाद $ 3.3 ट्रीलियन था।
(ख) चीन की संवृद्धि दर 10.3% की दर पर दोहरे अंकों में थी जबकि भारत के लिए यह आँकड़े 5.7% थी।

प्र.16. निम्नलिखित रिक्त स्थानों को भरिए।
(क) 1956 में ………………………….. में प्रथम पंचवर्षीय योजना शुरू हुई थी। (पाकिस्तान/चीन)
(ख) मातृ मृत्यु दर ………………………….. में अधिक है। (चीन/पाकिस्तान)
(ग) निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले लोगों का अनुपात ………………………….. में अधिक है। (भारत/पाकिस्तान)
(घ) ………………………….. में आर्थिक सुधार 1978 में शुरू किए गए थे। (चीन/पाकिस्तान)

उत्तर :

(क) पाकिस्तान
(ख) पाकिस्तान
(ग) भारत
(घ) चीन

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NCERT Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 7 (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 7

NCERT Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 7 Introduction to Remote Sensing (Hindi Medium)

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[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED] (पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न)

प्र० 1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
(i) धरातलीय लक्ष्यों को सुदूर संवेदन विभिन्न साधनों के
माध्यम से किया जाता है, जैसे –
(क) सुदूर संवेदक
(ख) मानवीय नेत्र
(ग) फोटोग्राफ़िक
(घ) इनमें से कोई नहीं।
निम्न में कौन-सा विकल्प उनके विकास का सही क्रम है:
(क) ABC
(ख) BCA
(ग) CAB
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर- (ख) BCA

(ii) निम्नलिखित में से कौन-से विद्युत चुम्बकीय विकिरण क्षेत्र का प्रयोग उपग्रह सुदूर संवेदन में नहीं होता है?
(क) सूक्ष्म तरंग क्षेत्र
(ख) अवरक्त क्षेत्र
(ग) एक्स रे क्षेत्र
(घ) दृश्य क्षेत्र
उत्तर- (ग) एक्स रे क्षेत्र

(iii) चाक्षुष व्याख्या तकनीक में निम्न में किस विधि का प्रयोग नहीं किया जाता है?
(क) धरातलीय लक्ष्यों की स्थानीय व्यवस्था
(ख) प्रतिबिंब के रंग-परिवर्तन की आवृत्ति
(ग) लक्ष्यों को अन्य लक्ष्यों के संदर्भ में
(घ) आंकिक बिंब प्रक्रमण
उत्तर- (क) धरातलीय लक्ष्यों की स्थानीय व्यवस्था

प्र० 2. निम्न प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें
(i) सुदूर संवेदन अन्य पारंपरिक विधियों से बेहतर तकनीक क्यों है?
उत्तर- सुदूर संवेदन अन्य पारंपरिक विधियों से निम्न कारणों से बेहतर तकनीक है
(i) यह किसी बड़े क्षेत्र का विहंगम दृश्य प्रस्तुत करता है।
(ii) यह समय आधार रेखा पर विश्वसनीय तथा वास्तविक अथवा लगभग वास्तविक सूचनाएँ प्रदान करता है।
(iii) यह भूमि सर्वेक्षण की अपेक्षा कम खर्चीला है और इससे सूचनाएँ शीघ्र ही एकत्रित हो जाती हैं।
(iv) यह दृष्टिगोचर तथा डिजिटल व्याख्या के लिए क्रमशः सादृश तथा डिजिटल आँकड़े प्रदान करता है।
(v) इस पर खराब मौसम तथा दुर्गम भूमि का प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।

(ii) आई०आर०एस० व इंसेट क्रम के उपग्रहों में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर- आई०आर०एस० वे इंसेट क्रम के उपग्रहों में अंतर-
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(iii) पुशबूम क्रमवीक्षक की कार्य-प्रणाली का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर- पुशबूम क्रमवीक्षक बहुत सारे संसूचकों पर आधारित होता है, जिनकी संख्या विभेदन के कार्य-क्षेत्र को क्षेत्रीय विभेदन से विभाजित करने से प्राप्त संख्या के समान होती है। उदाहरण के लिए फ्रांस के सुदूर संवेदन उपग्रह स्पॉट में लगे उच्च विभेदन दृश्य विकिरणमापी संवेदक का कार्य-क्षेत्र 60 किलोमीटर है तथा उसका क्षेत्रीय विभेदन 20 मीटर है। अगर हम 60 किलोमीटर अथवा 60,000 मीटर को 20 मीटर से विभाजित करें तो हमें 3,000 का आँकड़ा प्राप्त होगा अर्थात् SPOT में लगे HRV-1 संवेदक में 3,000 संसूचक लगाए गए हैं। पुशबूम स्कैनर में सभी डिटेक्टर पंक्ति में क्रमबद्ध होते हैं और प्रत्येक डिटेक्टर पृथ्वी के ऊपर अधोबिन्दु दृश्य पर 20 मीटर के आयाम वाली परावर्तित ऊर्जा का संग्रहण करते हैं।

प्र०3. निम्न प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दें६
(i) विस्कब्रूम क्रमवीक्षक की कार्यविधि का चित्र की सहायता से वर्णन करें तथा यह भी बताएँ कि यह पुशबूम क्रमवीक्षक से कैसे भिन्न है?
उत्तर- विस्कब्रूम क्रमवीक्षक में एक घूमने वाला दर्पण व एकमात्र संसूचक लगा होता है। दर्पण इस प्रकार से विन्यासित होता है कि जब यह एक चक्कर पूरा करता है, तो संसूचक स्पेक्ट्रम के दृश्य एवं अवरक्त क्षेत्रों में बहुत सारे सँकरे स्पेक्ट्रमी बैन्डों में प्रतिबिम्ब प्राप्त करते हुए दृश्य क्षेत्र में 90° से 120° के मध्य प्रस होता है। संवेदक का वह पूरा क्षेत्र, जहाँ तक यह पहुँच सकता है, उसे स्कैनर का कुल दृष्टि-क्षेत्र कहा जाता है। पूरे क्षेत्र के क्रमवीक्षण के लिए संवेदक का प्रकाशीय सिरा एक निश्चित आयाम का होता है, जिसे तात्क्षणिक दृष्टि-क्षेत्र कहा जाता है।
NCERT Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 7 (Hindi Medium) 3
NCERT Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 7 (Hindi Medium) 3.1
इसका मुख्य अंतर यह है कि विस्कब्रूम एकमात्र संसूचक पर आधारित है, जबकि पुशबूम में बहुत से संसूचक हैं।

(ii) नीचे के चित्रों में हिमालय क्षेत्र की वनस्पति आवरण में बदलाव को पहचानें व सूचीबद्ध करें।
NCERT Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 7 (Hindi Medium) 3.2
चित्र : आई०आर०एस० उपग्रह द्वारा प्राप्त मई (बाएँ) एवं नवंबर (दाएँ) में हिमालय तथा उत्तरी मैदान ( भारत ) के प्रतिबिंब वनस्पति | के प्रकार में अंतर दर्शाते हैं। मई के प्रतिबिंब में लाल धब्बे शंकुधारी वन दर्शाते हैं। नवंबर के प्रतिबिंब के अतिरिक्त लाल धब्बे पर्णपाती वन दर्शाते हैं तथा हल्का लाल रंग फ़सल को दर्शाता है।
उत्तर- हिमालय के तराई क्षेत्रों में पर्णपाती वन और हिमालय के लगभग 3,000 मीटर से कम ऊँचाई वाले क्षेत्रों में शंकुधारी वन मिलते हैं। शंकुधारी वन की पत्तियाँ नुकीली होती हैं। इस वन में पाए जाने वाले प्रमुख वृक्ष चीड़, फर, पाइन, स्पूस आदि हैं।

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NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 5 Human Capital Formation in India (Hindi Medium)

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प्रश्न अभ्यास
(पाठ्यपुस्तक से)

प्र.1. किसी देश में मानवीय पूँजी के दो प्रमुख स्रोत क्या होते हैं?
उत्तर : शिक्षा और स्वास्थ्य मानवीय पूँजी के दो प्रमुख स्रोत हैं।

प्र.2. किसी देश की शैक्षिक उपलब्धियों के दो सूचक क्या होंगे?
उत्तर : किसी देश की शैक्षिक उपलब्धियों के मुख्य सूचना इस प्रकार हैं|

  1. सकल नामांकन अनुपात ।
  2. साक्षरता दर

प्र.3. भारत में शैक्षिक उपलब्धियों में क्षेत्रीय विषमताएँ क्यों दिखाई दे रही हैं?
उत्तर : शैक्षिक उपलब्धियों में क्षेत्रीय विषमताएँ निम्न कारणों से हैं
(a) आय की असमानताएँ-सामान्यता उच्च आय वाले राज्यों में उच्च साक्षरता दर है भले ही यह आनुपातिक नहीं है।
(b) शिक्षा पर राज्य सरकार का व्यय-शिक्षा समवर्ती सूचि का विषय है अतः क्षेत्रीय असमानताएँ, विभिन्न राज्यों पर शिक्षा पर किये गए व्यय के विभिन्न स्तरों के कारण भी आ जाती है।

प्र.4. मानव पूँजी निर्माण और मानव विकास के भेद को स्पष्ट करें।
उत्तर : मानव पूँजी निर्माण और मानव विकास में भेद इस प्रकार हैं
NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 5 (Hindi Medium) 1
प्र.5. मानव पूँजी की तुलना में मानव विकास किस प्रकार अधिक व्यापक है?
उत्तर : मानव पूँजी की तुलना में मानव विकास अधिक व्यापक है क्योंकि

(a)
मानव पूँजी केवल मनुष्य जीवन के आर्थिक आयाम से संबंधित है जबकि मानव विकास बहुआयामी है जो आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक राजनैतिक-अध्यात्मिक पहलू पर विचार करता है।

(b)
मानव पूँजी उस प्रकार की शिक्षाओं को महत्त्व देता है जो उत्पादकता को बढ़ाए। मानव विकास शिक्षा और स्वास्थ्य को अच्छी गुणवत्ता वाले जीवन का अभिन्न हिस्सा मानती है। यह मानता है कि स्वास्थ्य और शिक्षा को उपयोगी साधन मानते हैं भले ही वे श्रम की उत्पादकता बढ़ाने में कोई योगदान न करें।

प्र.6. मानव पूंजी के निर्माण में किन कारकों का योगदान रहता है?
उत्तर : निम्नलिखित स्रोतों का मानव पूँजी निर्माण में योगदान है

(a) शिक्षा पर व्यय
(b) स्वास्थ्य पर व्यय
(c) प्रशिक्षण पर व्यय
(d) सूचना पर व्यय
(e) प्रवासन

प्र.7. सरकारी संस्थाएँ भारत में किस प्रकार स्कूल एवं अस्पताल की सुविधाएँ उपलब्ध करवाती है?
उत्तर : शिक्षा क्षेत्र- केंद्र और राज्य स्तर पर शिक्षा मंत्रालय, शिक्षा प्रभाग एवं अन्य संगठन राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (एन सी ई आर टी), विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.) तथा तकनीकी शिक्षा के लिए अखिल भारतीय परिषद (ए आई सी टी ई) शिक्षा क्षेत्र को विनियमित करते हैं।
स्वास्थ्य क्षेत्र-केंद्र एवं राज्य स्तर पर स्वास्थ्य मंत्रालय, स्वास्थ्य प्रभाग एवं संगठन जैसे भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आई सी एम आर) स्वास्थ्य क्षेत्र को विनियमित करते हैं।

प्र.8. शिक्षा को किसी राष्ट्र के विकास में महत्त्वपूर्ण आगत माना जाता है। क्यों?
उत्तर : शिक्षा को किसी राष्ट्र के विकास में महत्त्वपूर्ण आगत माना जाता है। एक राष्ट्र के विकास में यह एक महत्त्वपूर्ण आगत की भूमिका निम्नलिखित तरह से निभाता है

1. यह एक व्यक्ति को अधिक आय अर्जित करने की योग्यता देता है।
2. यह एक व्यक्ति को बेहतर सामाजिक स्थिति और गर्व देता है।
3. यह एक व्यक्ति को जीवन में बेहतर विकल्प चुनने में सक्षम बनाता है। यह समाज में हो रहे परिवर्तनों को समझने का ज्ञान देता है।
4. यह नवाचार को बढ़ावा देता है।
5. शिक्षित श्रम बल की उपलब्धता नई तकनीक अपनाने में सहायक होती है।

प्र.9. पूँजी निर्माण के निम्नलिखित स्रोतों पर चर्चा करें।
(क) स्वास्थ्य आधारिक संरचना
(ख) प्रवसन पर व्यय
उत्तर :
(क) स्वास्थ्य आधारिक संरचना निम्नलिखित प्रकारों से मानव पूँजी निर्माण में योगदान देता है

  1. एक बेहतर स्वास्थ्य आधारिक संरचना श्रम की उत्पादकता बढ़ाता है।
  2. इससे उनकी दक्षता, नियमितता बढ़ जाती है और अनुपस्थिति कम हो जाती है।
  3. यह जीवन की समग्र गुणवत्ता सुधारता है।
  4. यह अर्थव्यवस्था में निर्भर जनसंख्या के अनुपात को कम करता है।

(ख) प्रवसन पर व्यय निम्नलिखित प्रकार से मानव पूँजी निर्माण में योगदान देता है
1. प्रवसन में परिवहन की लागत, प्रवसित स्थान पर उच्च निर्वाह लागत और एक अनजान क्षेत्र में रहने की मनोवैज्ञानिक
लागत शामिल है।

  • इसका लाभ उच्च आय के रूप में मिलता है।
  • यदि लाभ, लागत से अधिक होता है तो व्यक्ति पलायन करने का निर्णय लेता है और इस तरह इससे व्यक्ति
    की समग्र उपयोगिता बढ़ जाती है।

प्र.10. मानव संसाधनों के प्रभावी प्रयोग के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा पर व्यय संबंधी जानकारी प्राप्त करने की आवश्यकता का निरूपण करें।
उत्तर : जब लोगों को स्वास्थ्य एवं शिक्षा संबंधी सही जानकारी होती है तो वे अधिक प्रभावी ढंग से मानव संसाधनों का उपयोग कर सकते हैं। एक बार उन्हें इन क्षेत्रों में निवेश करने से जीवन भर प्राप्त होने वाले लाभों का अहसास हो जाए तो वे इनकी अवहेलना नहीं करेंगे। इससे उनकी उत्पादकता, दक्षता और उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार होगा और इस तरह यह मानव पूँजी निर्माण में योगदान देगा।

प्र.11. मानव पूँजी में निवेश आर्थिक संवृद्धि में किस प्रकार सहायक होता है?
उत्तर : आर्थिक संवृद्धि का अर्थ अर्थव्यवस्था में वास्तविक उत्पादन में वृद्धि से है। निश्चित रूप से एक शिक्षित व्यक्ति एक अनपढ़ व्यक्ति की तुलना में वास्तविक उत्पादन में अधिक योगदान दे सकता है। इसी प्रकार से एक स्वस्थ कार्यकर्ता का योगदान एक बीमार कार्यकर्ता से अधिक होगा। शिक्षा एवं स्वास्थ्य सहित अन्य कई कारक जैसे कार्यस्थल पर प्रशिक्षण, प्रवसन एवं श्रम बाजार की सूचना एक व्यक्ति की उत्पादकता बढ़ा देता है अतः मानव पूँजी निर्माण की अधिक दर अधिक आर्थिक संवृद्धि में योगदान देती है।

आर्थिक संवृद्धि दर में वृद्धि से धन की उपलब्धता के कारण मानव पूँजी निर्माण दर बढ़ जाती है। अतः इनमें मुर्गी-अंडा संबंध

प्र.12. विश्व भर में औसत शैक्षिक स्तर में सुधार के साथ-साथ विषमताओं में कमी की प्रवृत्ति पाई गई हैं। टिप्पणी करें।
उत्तर : विश्व भर में औसत शैक्षिक स्तर में सुधार के साथ विषमताओं में कमी आई है क्योंकि शिक्षा में विस्तार के साथ लोग इंटरनेट के संपर्क में आते हैं और सूचना अधिक सुलभ हो जाती है। वे उन स्थानों पर पलायन करते हैं जहाँ कौशल का अत्यधिक भुगतान किया जाता है। श्रम में यह गतिशीलता मजदूरी दरों को समान स्तर पर ले आता है। यह दुनिया भर में असमानता को कम करता है।

प्र.13. किसी राष्ट्र के आर्थिक विकास में शिक्षा की भूमिका का विश्लेषण करें।
उत्तर : शिक्षा निम्न तरीकों में से एक देश के विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

(क)
इससे उत्पादन बढ़ता है-शिक्षित और कुशल कर्मियों की उत्पादकता निरक्षर और अकुशल कर्मियों से ज्यादा होती है। यह राष्ट्र की उत्पादकता में वृद्धि करता है।

(ख)
कुशलता और उत्पादकता बढ़ाता है-शिक्षा में निवेश में वृद्धि से कर्मियों की कुशलता और उत्पादकता बढ़ती है।

(ग)
समाज में सकारात्मक प्रभाव लाने में सहायक-शिक्षा लोगों के दृष्टिकोण में धर्म, जाति, लिंग तथा अन्य सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर सकारात्मक प्रभाव डालता है और इस तरह आर्थिक-सामाजिक समस्याएँ कम होती हैं।

(घ)
जीवन की गुणवत्ता में सुधार-शिक्षा जीवन को और अधिक गुणात्मक बनाती हैं। एक निरक्षर व्यक्ति के जीवन की तुलना एक शिक्षित व्यक्ति, भले वह आर्थिक गतिविधि में संलग्न न हो, से करें। एक शिक्षित व्यक्ति को एक निरंतर व्यक्ति की तुलना में कई लाभ हैं जो उसके जीवन को अधिक गुणात्मक बनाते हैं।

(ङ)
प्रौद्योगिकी अभिनव-शिक्षा बाजार में नवीनतम तकनीकों एवं नवाचार को लाने में मदद करता है।

प्र.14. किसी व्यक्ति के लिए कार्य के दौरान प्रशिक्षण क्यों आवश्यक है?
उत्तर : प्रौद्योगिकी परिवर्तन एक सतत प्रक्रिया है। यह कभी नहीं रूकती। अतः अपनी श्रम शक्ति को अद्यतन करने के लिए हमें उन्हें कार्य के दौरान प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है। मान लो एक व्यक्ति ने 1982 में एम.बी.बी.एस. की डिग्री ली। उस समय डेंगू नामक कोई बीमारी नहीं थी। हम एक डॉक्टर को एम.बी.बी.एस. पुनः करने को तो नहीं कह सकते। अतः सेमीनार एक कार्यशालाओं का आयोजन कर सकते हैं जिनमें उन्हें डेंगू के कारण और उसके उपचार के बारे में बताया जाएगा। इसी तरह 1990 के दशक में अपनी बी.एड. की डिग्री लेने वाली शिक्षिका को संभवतः ब्लाग बनाने का तथा अध्यापिका के रूप में इसे प्रयोग करने का प्रशिक्षण नहीं दिया गया होगा। अतः हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वह बी.एड. पुन: करे। ऐसे में कार्यस्थल पर प्रशिक्षण अपनी भूमिका निभाता है। अतः यह मानव पूँजी निर्माण में एक महत्त्वपूर्ण कारक है।

प्र.15. मानव पूँजी और आर्थिक संवृद्धि के बीच संबंध स्पष्ट करें।
उत्तर : मानव पूँजी और आर्थिक संवृद्धि में एक वृतीय या कारक-प्रभाव संबंध है। मानव पूँजी निर्माण की एक उच्च दर आर्थिक विकास की उच्च दर तथा आर्थिक विकास की उच्च दर मानव पूँजी निर्माण की उच्च दर को बढ़ावा देती है क्योंकि मानव पूंजी में निवेश करने के लिए अधिक साधन उपलब्ध होते हैं। हलाँकि यह अनुभवजन्य साक्ष्य से सिद्ध नहीं होता परंतु सामान्य ज्ञान एवं तर्क इस संबंध को मंजूरी देता है। यह निम्नलिखित चित्र द्वारा दिखाया गया है।
NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 5 (Hindi Medium) 2
प्र.16. भारत में स्त्री शिक्षा के प्रोत्साहन की आवश्यकता पर चर्चा करें।
उत्तर : भारत में महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा देना आवश्यक है क्योंकि

  • इससे स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ती है।
  • उससे उनका सामाजिक औचित्य सुधरता है।
  • यह प्रजनन दर पर सकारात्मक प्रभाव डालता है और इससे जन्म दर कम हो जाती है।
  • इससे स्त्रियों एवं बच्चों के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

प्र.17. शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में सरकार के विविध प्रकार के हस्तक्षेपों के पक्ष में तर्क दीजिए। (VBQ)
उत्तर : सरकार के लिए निम्नलिखित कारणों से शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में हस्तक्षेप करना जरूरी है

  • शिक्षा और सेवाएँ मानव अस्तित्व के लिए आधारभूत सेवाएँ हैं। इन सेवाओं को निजी क्षेत्र के हाथों में जो पूर्णतः लाभ केंद्रित है, सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त नहीं छोड़ा जा सकता।
  • शिक्षा और का प्रभाव जीवन पर्यंत का एवं अपरिवर्तनीय है। कोई सरकारी हस्तक्षेप न होने की स्थिति में यह अर्थव्यवस्था की मानव पूँजी पर हानिकारक प्रभाव डाल सकता है।
  • राष्ट्र के आर्थिक विकास के लिए इस क्षेत्र में व्यय आवश्यक है जिसके लिए सरकार को अवश्य हस्तक्षेप करना पड़ेगा।

प्र.18. भारत में मानव पूँजी निर्माण की मुख्य समस्याएँ क्या हैं?
उत्तर : भारत में मानवीय पूँजी निर्माण की मुख्य समस्याएँ इस प्रकार हैं|

  • सभी को शिक्षा-अभी भी एक सपना-हलाँकि भारतीय संविधान में शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में घोषित कर दिया गया है लेकिन फिर भी युवाओं तक में साक्षरता दर 2001 की जनगणना के अनुसार केरल 79.7% है। इसे 100% होना चाहिए था। इस लक्ष्य को प्राप्त करने वाला केरल एकमात्र राज्य है।
  • लिंग असमानता-पुरुषों और महिलाओं की साक्षरता दर में अंतर है। स्वास्थ्य स्थिति भी लिंग असमानता को इंगित करती है। महिला शिक्षा उसके आर्थिक स्वतंत्रता एवं सामाजिक स्थिति में सुधार के लिए जरूरी है। इससे प्रजनन दर कम होगी एवं महिलाओं एवं बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार होगा।
  • उच्च शिक्षा लेने वालों की कमी- भारतीय शिक्षा प्रणाली एक पिरामिड जैसी संरचना को इंगित करता है जिसमें कम और कम लोग उच्च शिक्षा की ओर जाते हैं। इसके अतिरिक्त शिक्षित लोगों में बेरोजगारी दर अधिक है। अतः हमें उच्च शिक्षा के लिए आबंटनों को बढ़ाने एवं उच्च शैक्षिक संस्थानों में मानकों में सुधार की आवश्यकता है ताकि पारित विद्यार्थियों के पास रोजगार कौशल हो।

प्र.19. क्या आपके विचार में सरकार को शिक्षा एवं स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों में लिए जाने वाले शुल्क की संरचना निर्धारित करनी चाहिए? यदि हाँ तो क्यों? (VBQ)
उत्तर : हाँ, मेरे विचार में, सरकार को शिक्षा एवं स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों में लिए जाने वाले शुल्क की संरचना निम्न कारणों से निर्धारित करनी चाहिए

  • इससे इस क्षेत्र में समरुपता आयेगी।
  • इससे इन संस्थाओं की जवाबदेही में वृद्धि होगी।
  • इससे समाज के कमजोर वर्ग को मदद मिलेगी।
  • इससे ये सेवाएँ सभी को उचित कीमतों पर उपलब्ध करायी जा सकेंगी।

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NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 6 Rural Development (Hindi Medium)

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प्रश्न अभ्यास
(पाठ्यपुस्तक से)

प्र.1. ग्रामीण विकास का क्या अर्थ है? ग्रामीण विकास से जुड़े मुख्य प्रश्नों को स्पष्ट करें।
उत्तर : ग्रामीण विकास एक व्यापक शब्द है जो एक ग्राम के चहुँमुखी विकास में बाधा उत्पन्न करने वाले सभी क्षेत्रों पर केंद्रित है। ग्रामीण विकास से जुड़े मुख्य प्रश्न इस प्रकार हैं
(क) आधारिक संरचना का विकास- यह ग्रामीण विकास में एक प्राथमिक प्रश्न है। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं

  1. साख सुविधाओं की व्यवस्था;
  2. ग्रामीण बाजारों का विकास तथा इनका शहरी बाजारों के साथ एकीकरण;
  3. परिवहन एवं संचार के साधनों, बैंकिंग सुविधाओं, बीमा सुविधाओं आदि का विकास;
  4. उत्पादन एवं घरेलू इकाइयों के लिए बिजली की उपलब्धता;
  5. सिंचाई के स्थायी साधनों का विकास;
  6. कृषि अनुसंधान और विकास के लिए सुविधाएँ।

(ख) मानव पूँजी निर्माण- भारत में ग्रामीण क्षेत्र शिशु मृत्यु दर, निरक्षरता, निर्धनता, बेरोजगारी, जीवन प्रत्याशा में कमी, पोषक स्तर में कमी में शहरी क्षेत्रों से आगे हैं। यह स्पष्ट करता है कि ग्रामीण क्षेत्र मानव पूँजी निर्माण के लिए कराह रहे हैं।

(ग) निर्धनता उन्मूलन- 
व्यक्तिगत स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों के प्रत्येक इलाके के उत्पादक संसाधनों की पहचान की जाए तथा गैर-कृषि गतिविधि के विकास के लिए उन्हें विकसित किया जाए। मौसमी और प्रच्छन्न बेरोजगारी का उन्मूलन करना आवश्यक है जो ग्रामीण निर्धनता का प्रमुख कारण है।

(घ) भू-सुधार- 
भू-सुधार भूमि को ज्यादा समानतापूर्वक पुनर्वितरित करने और उपरोक्त उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक है।

प्र.2. ग्रामीण विकास में साख के महत्त्व पर चर्चा करें।
उत्तर : कृषि में फसल की बुआई और आय प्राप्ति के बीच एक लंबा अंतराल है, किसानों को ऋण की बहुत जरूरत होती है। किसानों को बीज, उर्वरक, औजारों की प्रारंभिक निवेश के लिए तथा अन्य पारिवारिक व्ययों के लिए मुख्यतः जब वे मौसमी बेरोजगार होते हैं, धन की आवश्यकता होती है। अत: साख एक मुख्य कारक है जो ग्रामीण विकास में योगदान देता है। यदि संस्थागत स्रोत उपलब्ध नहीं होंगे तो किसान गैर-संस्थागत स्रोतों से ऋण लेगा जिससे ऋण की तथा इस तरह उत्पादन की लागत बढ़ेगी।

प्र.3. गरीबों की ऋण आवश्यकताएँ पूरी करने में अतिलघु साख व्यवस्था की भूमिका की व्याख्या करें।
उत्तर : स्वयं सहायता समूह (एस.एच.जी.) जिन्हें अतिलघु साख कार्यक्रम भी कहा जाता है, ग्रामीण ऋण के संदर्भ में एक उभरती हुई घटना है।

(क)
स्वयं सहायता समूह ग्रामीण परिवारों में बचत को बढ़ावा देते हैं। एस.एच.जी. छोटी बचतों को जुटाकर अपने अलग-अलग सदस्यों को ऋण के रूप में देने की पेशकश करते हैं।

(ख)
स्वयं सहायता समूहों द्वारा ऋण औपचारिक ऋण की तुलना में बेहतर है क्योंकि यह बिना कुछ गिरवी रखे ब्याज की एक सामान्य दर पर दिया जाता है।

(ग)
मार्च 2003 तक 7 लाख से ज्यादा स्वयं सहायता समूह कार्यशील थे।

(घ)
यह लोकप्रिय हो रहे हैं क्योंकि इनसे निर्धनों को बिना कुछ गिरवी रखे कम ब्याज दरों पर न्यूनतम कानूनी औपचारिकताओं के साथ ऋण मिल जाता है।

प्र.4, सरकार द्वारा ग्रामीण बाजारों के विकास के लिए किए गए प्रयासों की व्याख्या करें।
उत्तर : सरकार द्वारा ग्रामीण बाज़ारों के विकास के लिए निम्नलिखित प्रयास किए गए।

(क) बाजारों का विनियमने- 
पहला कदम व्यवस्थित एवं पारदर्शी विपणन की दशाओं का निर्माण करने के लिए बाजार का नियमन था। कुल मिलाकर इसे नीति का किसानों के साथ-साथ उपभोक्ताओं को भी लाभ हुआ।

(ख) भौतिक आधारिक संरचना का प्रावधान- 
दूसरा उपाय सड़कों, रेलमार्गों, भंडारण गृहों, गोदामों, शीत भंडारण गृहों, प्रसंस्करण इकाइयों आदि भौतिक बुनियादी सुविधाओं का प्रावधान है।

(ग) सहकारी विपणन- 
सरकार के तीसरे उपाय में सरकारी विपणन द्वारा किसानों को अपने उत्पादन का उचित मूल्य सुलभ कराना है। गुजरात तथा देश के अन्य कई भागों में दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियों ने ग्रामीण अंचलों के सामाजिक तथा आर्थिक परिदृश्य का कायाकल्प कर दिया।

(घ) नीतिगत साधन- 
चौथे उपाय के अंतर्गत नितिगत साधन हैं जैसे

  1. कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन कीमत का निर्धारण करना;
  2. भारतीय खाद्य निगम द्वारा गेहूँ और चावल के सुरक्षित भंडार का रख-रखाव और
  3. सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा खाद्यान्नों और चीनी का वितरण।

इन साधनों का ध्येय क्रमशः किसानों को उपज के उचित दाम दिलाना तथा गरीबों को सहायिकी युक्त कीमत पर वस्तुएँ । उपलब्ध कराना रहा है।

प्र.5. आजीविका को धारणीय बनाने के लिए कृषि का विविधीकरण क्यों आवश्यक है?
उत्तर : आजीविका को धारणीय बनाने के लिए कृषि का विविधीकरण आवश्यक है क्योंकि
(क) कृषि एक मौसमी गतिविधि है, अतः इसे अन्य गतिविधियों द्वारा पूरक बनाने की आवश्यकता है।
(ख) अजीविका के लिए पूर्णत: खेती पर निर्भर करने में बहुत खतरा है।
(ग) यह ग्रामीण लोगों को अनुपूरक लाभकारी रोजगार उपलब्ध कराने के लिए एवं आय के उच्च स्तर द्वारा निर्धनता उन्मूलने में सक्षम बनाता है।

प्र.6. भारत के ग्रामीण विकास में ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
उत्तर : बैंकिंग प्रणाली के तेजी से विस्तार का ग्रामीण कृषि एवं गैर कृषि उत्पादन, आय और रोजगार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। हरित क्रांति के बाद, ऋण सुविधाओं ने किसानों को अपनी उत्पादन आवश्यकता को पूरा करने के लिए ऋण की विविधताओं का लाभ उठाने में मदद की। अनाज के सुरक्षित भंडारों के चलते अकाल अतीत की घटना बन चुके हैं।

तब भी ग्रामीण बैंकिंग द्वारा निम्नलिखित समस्याओं का सामना किया जा रहा है
(क) अपर्याप्तता- देश में उपलब्ध ग्रामीण साख की मात्रा उसकी माँग की तुलना में आज भी बेहद अपर्याप्त है।
(ख) संस्थागत स्रोतों की अपर्याप्त कवरेज- संस्थागत ऋण व्यवस्था असफल रही है क्योंकि यह पूरे देश के ग्रामीण किसानों को कवर करने में विफल रहा है।
(ग) अपर्याप्त राशि की मंजूरी- किसानों के लिए मंजूर ऋण की राशि भी अपर्याप्त है।
(घ) सीमांत या निर्धन किसानों की ओर कम ध्यान- जरूरतमंद किसानों की ऋण आवश्यकताओं पर कम ध्यान दिया गया है।

(ङ) बढ़ती देय राशि- 
कृषि ऋण में अतिदेय राशि की समस्या चिंता का एक विषय बना हुआ है। लंबे समय से कृषि ऋण का भुगतान न कर पाने वालों की दरों में वृद्धि हुई है। 50% से अधिक उधारकर्ताओं को जानबूझकर ऋण का भुगतान न करने वालों की श्रेणी में रखा गया है। यह बैंकिंग प्रणाली के सुचारू संचालन के लिए एक खतरा है और इसे नियंत्रित किया जाना आवश्यक है।

सुधारों के बाद से कृषि बैंकिंग क्षेत्र के विस्तार एवं वृद्धि ने एक पिछला स्थान ले लिया है। वाणिज्यिक बैंकों के अतिरिक्त अन्य औपचारिक संस्थान जमा संग्रहण की एक संस्कृति, ज़रूरतमदों के लिए ऋण एवं प्रभावी ऋण वसूली करने में विफल रहे हैं।

परिस्थिति में सुधार करने के लिए

(क) बैकों का अपना दृष्टिकोण केवल उधारदाताओं से बदलकर बैंकिंग संबंधों के निर्माण के रूप में बनाया जाना चाहिए।
(ख) किसानों को बचत और वित्तीय संसाधनों के कुशल उपयोग की आदत विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

प्र.7. कृषि विपणन से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर : कृषि विपणन एक प्रक्रिया है जिसमें देशभर में उत्पादित कृषि उत्पादों का संग्रह, भंडारण, प्रसंस्करण, परिवहन, बैंकिंग, वर्गीकरण और वितरण शामिल है। भारतीय कृषि बाजार असक्षम और कुछ हद तक आदिमकाल के हैं। न्यूनतम समर्थन कीमत गेहूँ और चावल के पक्षों में पक्षपाती है। व्यवसायीकृत भारतीय कृषि ने संसाधन पूर्ण क्षेत्रों को अधिक लाभान्वित किया। पिछड़े क्षेत्रों में विपणन संरचनाएँ काफी हद तक व्यावसायिक रूप से कार्य नहीं करते।

प्र.8. कृषि विपणन प्रक्रिया की कुछ बाधाएँ बताइए।
उत्तर : कृषि विपणन प्रक्रिया की कुछ बाधाएँ इस प्रकार हैं
(क) कृषि बाजार पर अभी भी निजी क्षेत्र का प्रभुत्व है। कुल उत्पादन का केवल 10% सहकारी समितियों को मिलता है। शेष निजी क्षेत्र को जाता है।

(ख)
उचित भंडारण सुविधाएँ ग्रामीण क्षेत्रों में आज तक भी उपलब्ध नहीं है। ग्रामीण उत्पादन का 10% उत्पादन हर वर्ष भंडारण सुविधाओं के कारण बर्बाद हो जाता है।

(ग)
आज भी बारहमासी सड़कों की कमी है। ऐसी परिस्थितियों में जब भंडारण सुविधाएँ नहीं हैं कि वे सही बाजार स्थितियों का इंतज़ार कर सकें, सड़कें इतनी सही नहीं हैं कि वे अपना उत्पादन विनियमित बाजारों में जाकर बेच सकें तो वे अपनी फसलें कम कीमतों पर बेचने के लिए मजबूर हैं।

(घ)
भारतीय किसानों में बाजार की जानकारी एवं सूचना की कमी है। बाजार की मौजूदा कीमतों की जानकारी के अभाव में वे अपना उत्पादन कम कीमतों पर बेचने को मजबूर हैं।

प्र.9, कृषि विपणन की कुछ उपलब्ध वैकल्पिक माध्यमों के उदाहरण सहित चर्चा करें।
उत्तर : कृषि विपणन के लिए उपलब्ध कुछ वैकल्पिक माध्यम इस प्रकार हैं
(क) प्रत्यक्ष बाज़ार- कुछ ऐसे बाज़ार शुरू किए गए हैं जहाँ किसान स्वयं ही उपभोक्ता को अपना उत्पादन बेच सके और मध्यस्थों का अंत हो। इसके उदाहरण हैं-पंजाब, राजस्थान, हरियाणा में अपनी मंडी, पूणे की हाडपसार मंडी आदि।
(ख) बहुराष्ट्रीय कंपनियों और बड़ी भारतीय कंपनियों के साथ गठबंधन- कुछ किसानों ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों तथा फूड चेन के साथ गठबंधन किया है और वे एक पूर्व निर्धारित कीमत पर इन कंपनियों को सीधा अपना उत्पादन बेचने के लिए तैयार हो जाते हैं। परंतु उनसे एक गुणवत्ता फसल उत्पादन वांछनीय होता है।

  1. बहुत बार ये कंपनियाँ कृषि आदान और कभी-कभी फसल बीमा भी उपलब्ध कराते हैं।
  2. वे एक पूर्व निर्धारित कीमत पर उत्पादन खरीदने का भी आश्वासन देते हैं।
  3. इससे किसानों को जोखिम कम हो जाता है और उनका उत्पादन बढ़ जाता है।

प्र.10. ‘स्वर्णिम क्रांति’ और ‘हरित क्रांति’ में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर : स्वर्णिम क्रांति- हरित क्रांति अक्टूबर 1965 में कृषि उत्पादन की वृद्धि के लिए शुरू की गई एक रणनीति थी जिसके अंतर्गत उच्च पैदावार वाली किस्म (HYV) के बीज, उर्वरक, सिंचाई सुविधाएँ, कीटनाशक आदि उपलब्ध कराए गए।

हरित क्रांति- 1991-2003 की अवधि को स्वर्णिम क्रांति कहा जाता है क्योंकि इस अवधि में बागवानी में नियोजित निवेश अत्यधिक उत्पादक बन गया और यह क्षेत्र एक स्थायी आजीविका के विकल्प के रूप में उभरा।।

प्र.11. क्या सरकार द्वारा कृषि विपणन सुधार के लिए अपनाए गए विभिन्न उपाय पर्याप्त हैं? व्याख्या कीजिए।
उत्तर : नहीं, मुझे नहीं लगता कि सरकार द्वारा कृषि विपणन के लिए अपनाए गए विभिन्न उपाय पर्याप्त हैं।
(क) भारतीय कृषि बाज़ार अकुशल हैं तथा बहुत हद तक आदिमकाल के हैं।
(ख) न्यूनतम समर्थन कीमत नीति गेहूँ एवं चावल की फसलों के पक्ष में पक्षपाती हैं।
(ग) व्यावसायिक भारतीय कृषि ने संसाधन पूर्ण क्षेत्रों को अधिक लाभान्वित किया है।
(घ) पिछड़े क्षेत्रों में विपणन संरचनाएँ काफी हद तक व्यावसायिक रूप से कार्य नहीं करते।

प्र.12. ग्रामीण विविधीकरण में गैर-कृषि रोजगार का महत्त्व बताइए।
उत्तर : विविधीकरण का तात्पर्य तो फसल विविधीकरण से है या उत्पादन गतिविधियों के विविधीकरण से, जिसका अर्थ है कृषि गतिविधियों से गैर-कृषि गतिविधियों में स्थानांतरित होना। इसमें निम्नलिखित गतिविधियाँ शामिल है:

(क)
कृषि प्रसंस्करण गतिविधियाँ, खाद्य प्रसंस्करण गतिविधियाँ, चमड़ा उद्योग, हस्तशिल्प, पर्यटन, मिट्टी के बर्तन बनाना, हथकरघा आदि।

(ख)
पशुपालन- पशुधन आय की स्थिरता एवं खाद्य एवं पोषकता सुरक्षा को बढ़ा देता है तथा 70 मिलियन सीमांत एवं छोटे किसानों को वैकल्पिक रोज़गार का साधन प्रदान करता है। आपरेशन फ्लड’ के द्वारा 1960-2002 के बीच भारत का दुग्ध उत्पादन चार गुणा बढ़ा।

(ग)
मत्स्य पालन- कुल मछली उत्पादन का सकल घरेलू उत्पाद में 1.4% का योगदान हैं मत्स्य क्षेत्र निम्न आय स्तर, श्रम की गतिशीलता के निम्न स्तर एवं निरक्षरता के उच्च स्तरों से ग्रस्त है। निर्यात बाजार का 60% तथा 40% आंतरिक मत्स्य व्यापार का संचालन महिलाओं के हाथ में है।

(घ)
उद्यान विज्ञान- 1991 से 2003 की अवधि को स्वर्णिम क्रांति कहा जाता है। इसी दौरान बागवानी में सुनियोजित निवेश बहुत ही उत्पादक सिद्ध हुआ और इस क्षेत्रक ने एक धारणीय वैकल्पिक रोजगार का रूप धारण किया। बागवानी में लगे कितने ही कृषकों की आर्थिक दशा में बहुत सुधार हुआ है। ये उद्योग अब अनेक वंचित वर्गों के लिए आजीविका को बेहतर बनाने में सहायक सिद्ध हुए हैं।

प्र.13. विविधीकरण के स्रोत के रूप में पशुपालन, मत्स्यपालन और बागवानी के महत्त्व पर टिप्पणी करें।
उत्तर : पशुपालन का महत्त्वः भारत में कृषक समुदाय प्रायः मिश्रित कृषि पशुधन व्यवस्था का अनुसरण करता है। इसमें गाय-भैंस और मुर्गी-बत्तख बहुतायत में पाई जाने वाली प्रजातियाँ हैं।
(क) मवेशियों के पालन से परिवार की आय में अधिक स्थिरता आती है। साथ ही खाद्य सुरक्षा, परिवहन, ईंधन, पोषण आदि की व्यवस्था भी परिवार की अन्य खाद्य उत्पादक (कृषक) गतिविधियों में अवरोध के बिना ही प्राप्त हो जाती है।
(ख) आज पशुपालन क्षेत्रक देश के 7 करोड़ छोटे एवं सीमांत किसानों और भूमिहीन श्रमिकों को आजीविका कमाने के वैकल्पिक साधन सुलभ करा रहे हैं।
(ग) महिलाओं की भी एक बड़ी संख्या इस क्षेत्र से रोज़गार पाती हैं।

मत्स्य पालन का महत्त्वः
आजकल देश के समस्त मत्स्य उत्पादन का 49% अंर्तवर्ती देशों और 51% महासागरीय क्षेत्रों से प्राप्त हो रहा है।
(क) यह मत्स्य उत्पादन सकल घरेलू उत्पाद का 1.4% है।
(ख) सागरीय उत्पादकों में प्रमुख राज्य केरल, गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु हैं।।
(ग) यद्यपि महिलाएँ मछलियाँ पकड़ने के काम में नहीं लगी हैं पर 60% निर्यात और 40% आंतरिक मत्स्य व्यापार को संचालन इन्हीं के हाथों में है।

उद्यान विज्ञान
( बागवानी) का महत्त्वः 1991-2003 के बीच अवधि को ‘स्र्वाणमि क्रांति कहा जाता है।
(क) भारत आम, केला, नारियल, काजू जैसे फलों और अनेक मसालों के उत्पादन में आज विश्व का अग्रणी देश माना जाता है।
(ख) फल-सब्जियों के उत्पादन में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है।
(ग) बागवानी में लगे बहुत से कृषकों की दशा में बहुत सुधार हुआ है। पुष्पारोपण, पौधशाला की देखभाल, संकर बीजों का उत्पादन, ऊतक-संवर्धन, फल-फूलों का संवर्धन और खाद्य प्रसंस्करण ग्रामीण महिलाओं के लिए अब अधिक आय वाले रोज़गार बन गए हैं।

प्र.14, ‘सूचना प्रौद्योगिकी, धारणीय विकास तथा खाद्य सुरक्षा की प्राप्ति में बहुत ही महत्त्वपूर्ण योगदान करती है।’ टिप्पणी करें।
उत्तर : सूचना प्रौद्योगिकी ने भारतीय अर्थव्यवस्था के अनेक क्षेत्रकों में क्रांतिकारी परिवर्तन कर दिए हैं। 21वीं शताब्दी में देश में खाद्य सुरक्षा और धारणीय विकास में सूचना प्रौद्योगिकी निर्णायक योगदान दे सकती है।

(क)
सूचनाओं और उपयुक्त सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर सरकार सहजे ही खाद्य असुरक्षा की आशंका, वाले क्षेत्रों का समय रहते अनुमान लगा सकती है।
(ख) कृषि क्षेत्र में तो इसके विशेष योगदान हो सकते हैं। इस प्रौद्योगिकी द्वारा उदीयमान तकनीकों, कीमतों, मौसम तथा विभिन्न फसलों के लिए मृदा की दशाओं की उपयुक्त जानकारी का प्रसारण हो सकता है।
(ग) इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े स्तर पर रोजगार के अवसर उत्पन्न करने की संभावना भी है।
(घ) इसका उद्देश्य भारत के प्रत्येक गाँव को एक ज्ञान केंद्र बनाना है।

प्र.15. जैविक कृषि क्या है? यह धारणीय विकास को किस प्रकार बढ़ावा देती है?
उत्तर : जैविक कृषि का अर्थः जैविक कृषि प्राकृतिक रूप से खाद्यान्न उगाने की प्रक्रिया है। यह विधि रासायनिक उर्वरक और विषजन्य कीटनाशकों के प्रयोग की अवहेलना करती है।

धारणीय विकास का अर्थः यह वह विकास है जो वर्तमान पीढ़ी के विकास के लिए भावी पीढ़ी की गुणवत्ता को प्रभावित नहीं करता। यह संसाधनों के प्रयोग को निषेध नहीं करता परंतु उनके उपयोग को इस तरह प्रतिबंधित करने का लक्ष्य रखता है कि वे भविष्य पीढ़ी के लिए बचे रहें।

जैविक कृषि तथा धारणीय विकास के अर्थ से यह स्पष्ट है कि यदि जैविक कृषि किसी प्रकार के रासायनिक उर्वरक, विषजन्य कीटनाशक आदि का प्रयोग नहीं कर रही तो यह भूमि क्षरण में योगदान नहीं करेगी। यह महँगे कृषि आदानों जैसे संकर बीज, रासायनिक उर्वरक, कीटनाशकों आदि को स्थानीय स्तर पर उत्पादित जैविक आदान विकल्पों से प्रतिस्थापित करते हैं। यदि भूमि का क्षरण नहीं हो रहा तो यह एक पर्यावण अनुकूल कृषि विधि है। अतः यह धारणीय विकास को बढ़ावा देती है।

प्र.16. जैविक कृषि के लाभ और सीमाएँ स्पष्ट करें।
उत्तर : लाभः

(क) जैविक कृषि महँगे आगतों जैसे संकर बीजों, रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों आदि के स्थान पर स्थानीय रूप से बने जैविक आगतों के प्रयोग पर निर्भर होती है।
(ख) ये आगते सस्ती होती हैं और इसके कारण इन पर निवेश से प्रतिफल अधिक मिलता है।
(ग) विश्व बाजारों में जैविक कृषि उत्पादों की बढ़ती हुई माँग के कारण इनके निर्यात से भी अच्छी आय हो सकती है।
(घ) जैविक कृषि हमें परंपरागत कृषि की तुलना में अधिक स्वास्थ्यकर भोजन उपलब्ध कराती है।
(ङ) ये उत्पाद पर्यावरण की दृष्टि से धारणीय विधियों द्वारा उत्पादित होते हैं।
(च) यह छोटे किसानों के लिए अधिक उपयुक्त हैं जो महँगे कीटनाशक, उर्वरक तथा अन्य आगतों का खर्च नहीं उठा सकते।

सीमाएँ:
(क) प्रारंभिक वर्षों में जैविक कृषि की लागत रासायनिक कृषि से उच्च रहती है।
(ख) जैविक कृषि की लोकप्रियता के लिए नई विधियों का प्रयोग करने में किसानों की इच्छाशक्ति और जागरूकता जगाना आवश्यक है।
(ग) इन उत्पादों के लिए अलग से कोई उचित आधारिक संरचना एवं विपणन सुविधाओं की कमी है। जैविक कृषि के लिए एक उपयुक्त कृषि नीति अपनाई जानी चाहिए।
(घ) प्रारंभिक वर्षों में जैविक कृषि से उत्पादन, रासायनिक कृषि से उत्पादकता से कम होता है। अत: बहुत बड़े स्तर पर छोटे और सीमांत किसानों के लिए इसे अपनाना कठिन होता है।
(ङ) बे मौसमी फसलों का जैविक कृषि में उत्पादन बहुत सीमित होता है।
(च) जैविक रूप से उत्पादित खाद्य पदार्थ महँगे होते हैं। अत: भारत जैसे गरीब देश इसका वहन नहीं कर सकता।

प्र.17. जैविक कृषि का प्रयोग करने वाले किसानों को प्रारंभिक वर्षों में किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है?
उत्तर : जैविक कृषि का प्रयोग करने वाले किसानों को प्रारंभिक वर्षों में निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता है
(क) प्रारंभिक वर्षों में जैविक कृषि का उत्पादन रासायनिक कृषि से कम होता है, अत: बहुत बड़े स्तर पर छोटे और सीमांत किसानों के लिए इसे अपनाना कठिन होता है।
(ख) यह प्रारंभिक वर्षों में उपभोक्ताओं में भी कम प्रचलित होता है। कोई विपणन सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं होती।
(घ) जैविक उत्पादों की रासायनिक उत्पादन की तुलना में जल्दी खराब होने की संभावना रहती है। बे मौसमी फसलों का जैविक कृषि में उत्पादन बहुत सीमित होता है।

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NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 2 Collection of Data (Hindi Medium)

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प्रश्न अभ्यास
(पाठ्यपुस्तक से)

प्र.1. निम्नलिखित प्रश्नों के लिए कम से कम चार उपयुक्त बहुविकल्पीय वाक्यों की रचना करें।

(क) जब आप एक नई पोशाक खरीदें तो इनमें से किसे सबसे महत्त्वपूर्ण मानते हैं।
(ख) आप कम्प्यूटर का इस्तेमाल कितनी बार करते हैं?
(ग) निम्नलिखित में से आप किस समाचार-पत्र को नियमित रूप से पढ़ते हैं?
(घ) पेट्रोल की कीमत में वृद्धि क्या न्यायोचित है? (ङ) आपके परिवार की मासिक आमदनी कितनी है?

उत्तर

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 2 (Hindi Medium) 1

प्र.2. पाँच द्विमार्गी प्रश्नों की रचना करें (हाँ / नहीं के साथ)।
उत्तर

(क) क्या आपको फिल्में देखना पसंद है?
(ख) यदि आपका मित्र परीक्षा में नकल कर रहा है तो क्या आप अध्यापिका को बतायेंगे?
(ग) क्या आपका शादीशुदा हैं?
(घ) क्या आप कार्यरत हैं?
(ङ) क्या आपके पास कोई वाहन है?

प्र.3. सही विकल्प को चिह्नित करें।
(क) आँकड़ों के अनेक स्रोत होते हैं (सही / गलत)।
(ख) आँकड़ा संग्रह के लिए टेलीफोन सर्वेक्षण सर्वाधिक उपयुक्त विधि है, विशेष रूप से जहाँ पर जनता निरक्षर हो और दूर-दराज के काफी बड़े क्षेत्रों में फैली हो (सही / गलत)।
(ग) सर्वेक्षक / शोधकर्ता द्वारा संग्रह किए गए आँकड़े द्वितीयक आँकड़े कहलाते हैं (सही / गलत)। (घ) प्रतिदर्श के अयादृच्छिक चयन में पूर्वाग्रह (अभिनति) की संभावना रहती है (सही / गलत)।
(ङ) अप्रतिचयन त्रुटियों को बड़ा प्रतिदर्श अपनाकर कम किया जा सकता है (सही / गलत)।
उत्तर

(क) सही
(ख) सही
(ग) गलत
(घ) गलत
(ङ) गलत

प्र.4. निम्नलिखित प्रश्नों के बारे में आप क्या सोचते हैं? क्या आपको इन प्रश्नों की कोई समस्या दिख रही है? यदि हाँ, तो कैसे?

(क) आप अपने सबसे नजदीक के बाजार से कितनी दूर रहते हैं?
(ख) यदि हमारे कूड़े में प्लास्टिक थैलियों की मात्रा 5 प्रतिशत है तो क्या इन्हें निषेधित किया जाना चाहिए?
(ग) क्या आप पेट्रोल की कीमत में वृद्धि का विरोध नहीं करेंगे?
(घ) क्या आप रासायनिक उर्वरक के उपयोग के पक्ष में हैं?
(ङ) क्या आप अपने खेतों में उर्वरक इस्तेमाल करते हैं?
(च) आपके खेत में प्रति हेक्टेयर कितनी उपज होती है?

उत्तर
(क) इसे एक बहुविकल्पीय प्रश्न के रूप में रचा जाना चाहिए जिसके विकल्प निम्नलिखित हो सकते हैं

  1. 1 किमी से कम
  2. 1-3 किमी
  3. 3-5 किमी
  4. 5 किमी से अधिक

(ख) इसे द्विमार्गी प्रश्न होना चाहिए जिसमें हाँ या नहीं के विकल्प हों।
(ग) एक प्रश्न ऋणात्मकता रूप से नहीं रखा होना चाहिए। इसे हम इस प्रकार कह सकते थे क्या आप पेट्रोल की कीमत में वृद्धि का विरोध करेंगे?
(घ) प्रश्नों का क्रम उचित नहीं है। प्रश्नों का क्रम निम्नलिखित रूप से होना चाहिए।

  • रासायनिक उर्वरक का प्रयोग फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसलिए हम इसके उपयोग के पक्ष में हैं।

(ङ) हाँ, हम अपने खेतों में उर्वरक इस्तेमाल करते हैं।
(च) 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।

प्र.5. आप बच्चों के बीच शाकाहारी आटा नूडल की लोकप्रियता का अनुसंधान करना चाहते हैं। इस उद्देश्य से सूचना-संग्रह करने के लिए एक उपयुक्त प्रश्नावली बनाएँ।
उत्तर

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प्र.6. 200 फार्म वाले एक गाँव में फसल उत्पादन के स्वरूप पर एक अध्ययन आयोजित किया गया। इनमें से 50 फार्मों का सर्वेक्षण किया गया, जिनमें से 50 प्रतिशत पर केवल गेहूँ उगाए जाते हैं। समष्टि एवं प्रतिदर्श के आकार क्या हैं?
उत्तर

  • जनसंख्या : 200 फार्म
  • प्रतिदर्श : 50 फार्म

प्र.7. प्रतिदर्श, समष्टि तथा चर के दो-दो उदाहरण दें।
उत्तर
(क) प्रतिदर्शः यदि हम IQ स्तर जाँच करने के लिए 100 विद्यार्थियों का चयन कर लें तो यह प्रतिदर्श होगा। इसी प्रकार यदि हम 20% जनसंख्या के आधार पर लिंग अनुपात लायें तो 20% जनसंख्या प्रतिदर्श है।
(ख) समष्टिः एक विद्यालय के विद्यार्थियों का IQ स्तर जाँच करने के लिए समष्टि उस विद्यालय के कुल विद्यार्थी हैं। एक देश का लिंग अनुपात जानने के लिए समष्टि उस देश की जनसंख्या है।
(ग) चरः एक विद्यालय के विद्यार्थियों का IQ स्तर की जाँच तथा एक देश का लिंग अनुपात।

प्र.8. इनमें से कौन-सी विधि द्वारा बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं, और क्यों?

(क) गणना (जनगणना)
(ख) प्रतिदर्श

उत्तर
जनगणना से बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं क्योंकिः

(क) यह समष्टि के प्रत्येक इकाई पर आधारित होता है।
(ख) इसमें शुद्धता का उच्च स्तर होता है।
(ग) यह प्रतिचयन त्रुटि से मुक्त होता है।

प्र.9. इनमें कौन-सी त्रुटि अधिक गंभीर है और क्यों?

(क) प्रतिचयन त्रुटि
(ख) अप्रतिचयन त्रुटि

उत्तर प्रतिचयन त्रुटियाँ अधिक गंभीर है क्योंकि वे जानबूझकर पक्षपाती रूप से की जा सकती हैं। ऐसी त्रुटियों को ढूंढ पाना तथा सही करना बहुत कठिन है जबकि अप्रतिचयन त्रुटियाँ मापन की त्रुटियाँ होती हैं जिन्हें ध्यान से देंढ़कर ठीक किया जा सकता है।

प्र.10. मान लीजिए आपकी कक्षा में 10 छात्र हैं। इनमें से आपको तीन चुनने हैं, तो इसमें कितने प्रतिदर्श संभव हैं?
उत्तर बहुत से प्रतिदर्श संभव हैं।

(क) लॉटरी विधि
(ख) यादृच्छिक संख्याओं वाली तालिका
(ग) स्तरित प्रतिदर्श
(घ) व्यवस्थित प्रतिदर्श
(ङ) अभ्यंश प्रतिदर्श

प्र.11, अपनी कक्षा के 10 छात्रों में से 3 को चुनने के लिए लॉटरी विधि का उपयोग कैसे करेंगे? चर्चा करें।
उत्तर मैं निम्नलिखित कदम उठाऊँगा/उठाऊँगी

(क) 10 विद्यार्थियों को 1 से 10 संख्याएँ आबंटित करनी होगी।
(ख) फिर समान आकार तथा रंग की 10 पर्चियाँ बनानी होगी।
(ग) इन्हें एक कटोरे में डालकर सही ढंग से हिलाना होगा।
(घ) इनमें से किसी बाह्य व्यक्ति को 3 पर्ची निकालने को कहा जाएगा।
(ङ) इन तीन पर्चियों पर जिन छात्रों के आबंटित अंक लिखे हैं, वे मेरे प्रतिदर्श का हिस्सा होंगे।

प्र.12. क्या लॉटरी विधि सदैव एक यादृच्छिक प्रतिदर्श देती है? बताएँ।
उत्तर नहीं यह आवश्यक नहीं है कि लॉटरी विधि सदैव एक यादृच्छिक प्रतिदर्श देती है। इसे यादृच्छिक बनाने के लिए हमें नीचे दिए गए कदम उठाने पड़ते हैं:

(क) सभी पर्चियाँ बिल्कुल समान आकार तथा रंग की होनी चाहिए।
(ख) सभी पर्चियाँ बिल्कुले एक समान ढंग से मोड़ी जानी चाहिए।

यदि ये सावधानियाँ नहीं बरती गई तो यह संभव है कि पूर्व निर्धारित पर्चियाँ उठाई जाएँ। दूसरों को बेवकूफ बनाया जाए कि सभी इकाइयों को चयन का समान अवसर मिला।

प्र.13. यादृच्छिक संख्या सारणी का उपयोग करते हुए, अपनी कक्षा के 10 छात्रों में से 3 छात्रों के चयन के लिए यादृच्छिक प्रतिदर्श की चयन प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।
उत्तर मैं निम्नलिखित कदम उठाऊँगा/उठाऊँगी।

(क) सभी विद्यार्थियों को 1 से 10 संख्या आबंटित कर दी जायेगी।
(ख) फिर हम यादृच्छिक संख्या सारणी में जायेंगे परंतु हमारा संबंध केवल एक अंकीय संख्याओं से होगा।
(ग) पहले तीन एक अंकीय संख्याएँ चुन ली जायेगी।

प्र.14. क्या सर्वेक्षणों की अपेक्षा प्रतिदर्श बेहतर परिणाम देते हैं? अपने उत्तर की कारण सहित व्याख्या करें।
उत्तर
(क) कुछ परिस्थितियों में प्रतिदर्श सर्वेक्षणों से बेहतर परिणाम देते हैं। ऐसे कुछ उदाहरण नीचे दिये गये हैं

  1. एक बीमारी का पता लगाने के लिए या संक्रमण का पता लगाने के लिए हम पूरा रक्त नहीं ले सकते। हम रक्त की कुछ बूंदें लेते हैं।
  2. इसी प्रकार भोजन पकाते समय हम भोजन का कुछ हिस्सा चख लेते हैं कि यह पका है या नहीं। हम सर्वेक्षण विधि का प्रयोग नहीं कर सकते कि पूरा खाना खाकर हम तय करें कि खाना पक गया था।
  3. कोई भी अध्यापिका विद्यार्थी की ज्ञान की जाँच के लिए पूरी पुस्तक नहीं दे सकती। अत: वह कुछ प्रश्न प्रतिदर्श के रूप में देती हैं।

(ख) प्रतिदर्श विधि कम खर्चीली होती है।
(ग) प्रतिदर्श विधि कम समय लेती है।
(घ) प्रतिदर्श विधि में विस्तृत जाँच संभव है क्योंकि उत्तरदाताओं की संख्या कम होती है।

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NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 7 (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 7

NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 7 Landforms and their Evolution (Hindi Medium)

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[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED] (पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न)

प्र० 1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
(i) स्थलरूप विकास की किस अवस्था में अधोमुख कटाव प्रमुख होता है?
(क) तरुणावस्था
(ख) प्रथम प्रौढ़ावस्था
(ग) अंतिम प्रौढावस्था
(घ) वृद्धावस्था
उत्तर- (क) तरुणावस्था

(ii) एक गहरी घाटी जिसकी विशेषता सीढ़ीनुमा खड़े ढाल होते हैं; किस नाम से जानी जाती है?
(क) U आकार की घाटी
(ख) अंधी घाटी
(ग) गॉर्ज
(घ) कैनियन
उत्तर- (घ) कैनियन

(iii) निम्न में से किन प्रदेशों में रासायनिक अपक्षय प्रक्रिया यांत्रिक अपक्षय प्रक्रिया की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होती है?
(क) आर्दै प्रदेश
(ख) शुष्क प्रदेश
(ग) चूना-पत्थर प्रदेश
(घ) हिमनद प्रदेश
उत्तर- (ग) चूना-पत्थर प्रदेश

(iv) निम्न में से कौन-सा वक्तव्य लेपीज Lapies शब्द को परिभाषित करता है?
(क) छोटे से मध्यम आकार के उथले गर्त
(ख) ऐसे स्थलरूप जिनके ऊपरी मुख वृत्ताकार व नीचे से कीप के आकार के होते हैं।
(ग) ऐसे स्थलरूप जो धरातल से जल के टपकने से बनते हैं।
(घ) अनियमित धरातल जिनके तीखे कटक व खाँच
उत्तर- (घ) अनियमित धरातल जिनके तीखे कटक व खाँच

(v) गहरे, लंबे व विस्तृत गर्त या बेसिन जिनके शीर्ष दीवार खड़े ढाल वाले व किनारे खड़े व अवतल होते हैं, उन्हें क्या कहते हैं?
(क) सर्क
(ख) पाश्विक हिमोढ़
(ग) घाटी हिमनद्
(घ) एस्कर
उत्तर- (क) सर्क

प्र० 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए।
(i) चट्टानों में अधःकर्तित विसर्प और मैदानी भागों में जलोढ़ के सामान्य विसर्प क्या बताते हैं?
उत्तर- नदी विकास की प्रारंभिक अवस्था में प्रारंभिक मंद ढाल पर विसर्प लूप विकसित होते हैं और ये लूप चट्टानों में गहराई तक होते हैं जो प्रायः नदी अपरदन या भूतल के धीमे व लगातार उत्थान के कारण बनते हैं। कालांतर में ये गहरे तथा विस्तृत हो जाते हैं और कठोर चट्टानी भागों में गहरे गॉर्ज व कैनियन के रूप में पाए जाते हैं। ये उन प्राचीन धरातलों के परिचायक हैं, जिन पर नदियाँ विकसित हुई हैं। बाढ़ व डेल्टाई मैदानों पर लूप जैसे चैनल प्रारूप विकसित होते हैं, जिन्हें विसर्प कहा जाता है। नदी विसर्प के निर्मित होने का एक कारण तटों पर जलोढ़ का अनियमित व असंगठित जमाव है, जिससे जल का दबाव नदी पाश्र्वो की तरफ बढ़ना है। प्राय: बड़ी नदियों के विसर्प में उत्तल किनारों पर सक्रिय निक्षेपण होते हैं। और अवतल किनारों पर अधोमुखी कटाव होते हैं।

(ii) घाटी रंध्र अथवा युवाला का विकास कैसे होता है?
उत्तर- सामान्यतः धरातलीय प्रवाहित जल घोल रंध्रों व विलयन रंध्रों से गुजरता हुआ अन्तभौमि नदी के रूप में विलीन हो जाता है और फिर कुछ दूरी के पश्चात किसी कंदरा से भूमिगत नदी के रूप में फिर निकल
आता है। जब घोल रंध्र व डोलाइन इन कंदराओं की छत के गिरने से या पदार्थों के स्खलन द्वारा आपस में मिल जाते हैं तो लंबी तंग तथा विस्तृत खाइयाँ बनती हैं, जिन्हें घाटी रंध्र या युवाला कहते हैं।

(iii) चूनायुक्त चट्टानी प्रदेशों में धरातलीय जल प्रवाह की अपेक्षा भौम जल प्रवाह अधिक पाया जाता है, क्यों?
उत्तर- भौम जल का कार्य सभी प्रकार की चट्टानों में नहीं देखा जा सकता है। ऐसी चट्टानें जैसे चूना-पत्थर या डोलोमाइट, जिसमें कैल्सियम कार्बोनेट की प्रधानता होती है, वहाँ पर इसकी मात्रा अधिक देखने को मिलती
है क्योंकि रासायनिक प्रक्रिया द्वारा चूना-पत्थर घुल जाते हैं और उस स्थान पर भौम जल जमा हो जाता है। इसलिए चूना युक्त चट्टानी प्रदेशों में धरातलीय जल प्रवाह की अपेक्षा भौम जल प्रवाह पाया जाता है।

(iv) हिमनद घाटियों में कई रैखिक निक्षेपण स्थलरूप मिलते हैं। इनकी अवस्थिति व नाम बताएँ।
उत्तर- हिमनदियों के जमाव व निक्षेपण से अनेक स्थलाकृतियों का निर्माण होता है-

  1. हिमोढ़ – हिमोढ़, हिमनद टिल या गोलाश्मी मृत्तिका के जमाव की लंबी कटकें हैं। हिमनद द्वारा कई तरह के हिमोढ़ों का निर्माण होता है, जैसे – (क) अंतस्थ हिमोढ़ (ख) पार्श्विक हिमोढ़ (ग) मध्यस्थ हिमोढ़।
  2. एस्कर – हिमनद के पिघलने से बनी नदियाँ नदी घाटी के ऊपर बर्फ के किनारों वाले तल में प्रवाहित होती हैं। यह जलधारा अपने साथ बड़े गोलाश्म, चट्टानी टुकड़े और छोटा चट्टानी मलबा बहाकर लाती हैं जो हिमनद के नीचे इस बर्फ की घाटी में जमा हो जाते हैं। ये बर्फ पिघलने के बाद एक वक्राकार कटक के रूप में मिलते हैं, जिन्हें एस्कर कहते हैं।
  3. हिमानी धौत मैदान – हिमानी जलोढ़ निक्षेपों से हिमानी धौत मैदान निर्मित होते हैं।
  4. डुमलिन – डुमलिन का निर्माण हिमनद दरारों में भारी चट्टानी मलबे के भरने व उसके बर्फ के नीचे रहने से होता है।

(v) मरुस्थली क्षेत्रों में पवन कैसे अपना कार्य करती है? क्या मरुस्थलों में यही एक कारक अपरदित स्थलरूपों का निर्माण करता है?
उत्तर- उष्ण मरुस्थलीय क्षेत्रों में पवन रेत के कण उड़कर अपने आस-पास की चट्टानों का कटाव-इँटाव करते हैं, जिससे कई स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। मरुस्थलीय धरातल शीघ्र गर्म और ठंडे हो जाते हैं। ठंडी और गर्मी से चट्टानों में दरारें पड़ जाती हैं जो बाद में खंडित होकर पवनों द्वारा अपरदित होती रहती हैं। पवन अपवाहन, घर्षण आदि द्वारा अपरदन करते हैं। मरुस्थलों में अपक्षयजनित मलबा केवल पवन द्वारा ही नहीं, बल्कि वर्षा व वृष्टि धोवन से भी प्रभावित होता है। पवन केवल महीन मलबे का ही अपवाहन कर सकते हैं और बृहत अपरदन मुख्यतः परत बाढ़ या वृष्टि धोवन से ही संपन्न होता है। मरुस्थलों में नदियाँ चौड़ी, अनियमित तथा वर्षा के बाद अल्प समय तक ही प्रवाहित होती हैं।

प्र० 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए।
(i) आई व शुष्क जलवायु प्रदेशों में प्रवाहित जल ही सबसे महत्त्वपूर्ण भू-आकृतिक कारक है। विस्तार से वर्णन करें।
उत्तर- आर्द्र प्रदेशों में जहाँ अत्यधिक वर्षा होती है, प्रवाहित जल सबसे महत्त्वपूर्ण भू-आकृतिक कारक है जो धरातल के निम्नीकरण के लिए उत्तरदायी है। प्रवाहित जल के दो तत्त्व हैं। एक धरातल पर परत के रूप में फैला हुआ प्रवाह है; दूसरा रैखिक प्रवाह है। जो घाटियों में नदियों, सरिताओं के रूप में बहता है। प्रवाहित जल द्वारा निर्मित अधिकतर अपरदित । स्थलरूप ढाल प्रवणता के अनुरूप बहती हुई नदियों की आक्रमण युवावस्था से संबंधित हैं। कालांतर में तेज ढाल लगातार अपरदन के कारण मंद ढाल में परिवर्तित हो जाते हैं और परिणामस्वरूप नदियों का वेग कम हो जाता है, जिससे निक्षेपण आरंभ होता है। तेज ढाल से बहती हुई सरिताएँ भी कुछ निक्षेपित भू-आकृतियाँ बनाती हैं, लेकिन ये नदियों के मध्यम तथा धीमे ढाल पर बने आकारों की अपेक्षा बहुत कम होते हैं। प्रवाहित जल की ढाल जितना मंद होगा, उतना ही अधिक निक्षेपण होगा। जब लगातार अपरदन के कारण नदी तल समतल हो जाए, तो अधोमुखी कटाव कम हो जाता है और तटों का पार्श्व अपरदन बढ़ जाता है और इसके फलस्वरूप पहाड़ियाँ और घाटियाँ समतल मैदानों में परिवर्तित हो जाती हैं। शुष्क क्षेत्रों में अधिकतर स्थलाकृतियों का निर्माण बृहत क्षरण और प्रवाहित जल की चादर बाढ़ से होता है। यद्यपि मरुस्थलों में वर्षा बहुत कम होती है, लेकिन यह अल्प समय में मूसलाधार वर्षा के रूप में होती है। मरुस्थलीय चट्टानें अत्यधिक वनस्पतिविहीन होने के कारण तथा दैनिक तापांतर के कारण यांत्रिक एवं रासायनिक अपक्षय से अधिक प्रवाहित होती हैं। मरुस्थलीय भागों में भू-आकृतिकयों का निर्माण सिर्फ पवनों से नहीं बल्कि प्रवाहित जले से भी होता है।

(ii) चूना चट्टानें आई व शुष्क जलवायु में भिन्न व्यवहार करती हैं, क्यों? चूना प्रदेशों में प्रमुख व मुख्य भू-आकृतिक प्रक्रिया कौन-सी है और इसके क्या परिणाम हैं?
उत्तर- चूना-पत्थर एक घुलनशील पदार्थ है, इसलिए चूना-पत्थर आर्द्र जलवायु में कई स्थलाकृतियों का निर्माण करता है जबकि शुष्क प्रदेशों में इसका कार्य आर्द्र प्रदेशों की अपेक्षा कम होता है। चूना-पत्थर एक घुलनशील पदार्थ होने के कारण चट्टान पर इसके रासायनिक अपक्षय का प्रभाव सर्वाधिक होता है, लेकिन शुष्क जलवायु वाले प्रदेशों में यह अपक्षय के लिए अवरोधक होता है। इसका मुख्य कारण यह है। कि लाइमस्टोन की रचना में समानता होती है तथा परिवर्तन के कारण चट्टान में फैलाव तथा संकुचन नहीं होता है, जिस कारण चट्टान का बड़े-बड़े टुकड़ों में विघटन अधिक मात्रा में नहीं हो पाता है। चूना-पत्थर या डोलोमाइट चट्टानों के क्षेत्र में भौमजल द्वारा घुलन क्रिया और उसकी निक्षेपण प्रक्रिया से बने ऐसे स्थलरूपों को कार्ट स्थलाकृति का नाम दिया गया है। अपरदनात्मक तथा निक्षेपणात्मक दोनों प्रकार के स्थलरूप कार्ट स्थलाकृतियों की विशेषताएँ हैं। अपरदित स्थलरूप घोलरंध्र, कुंड, लेपीज और चूना-पत्थर चबूतरे हैं। निक्षेपित स्थलरूप कंदराओं के भीतर ही निर्मित होते हैं। चूनायुक्त चट्टानों के अधिकतर भाग गर्ते व खाइयों के हवाले हो जाते हैं और पूरे क्षेत्र में अत्यधिक अनियमित, पतले व नुकीले कटक आदि रह जाते हैं, जिन्हें लेपीज कहते हैं। इन कटकों या लेपीज का निर्माण चट्टानों की संधियों में भिन्न घुलन क्रियाओं द्वारा होता है। कभी-कभी लेपीज के विस्तृत क्षेत्र समतल चुनायुक्त चबूतरों में परिवर्तित हो जाते हैं।

(iii) हिमनद ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों को निम्न पहाड़ियों व मैदानों में कैसे परिवर्तित करते हैं या किस प्रक्रिया से यह कार्य संपन्न होता है, बताइए?
उत्तर- प्रवाहित जल की अपेक्षा हिमनद प्रवाह बहुत धीमा होता है। हिमनद प्रतिदिन कुछ सेंटीमीटर या इससे कम से लेकर कुछ मीटर तक प्रवाहित हो सकते हैं। हिमनद मुख्यतः गुरुत्वबल के कारण गतिमान होते हैं। हिमनदों से प्रबल अपरदन होता है, जिसका कारण इसके अपने भार से उत्पन्न घर्षण है। हिमनद द्वारा घर्षित चट्टानी पदार्थ इसके तल में ही इसके साथ घसीटे जाते हैं या घाटी के किनारों पर अपघर्षण व घर्षण द्वारा अत्यधिक अपरदन करते हैं। हिमनद, अपक्षयरहित चट्टानों का भी प्रभावशाली अपरदन करते हैं, जिससे ऊँचे पर्वत छोटी पहाड़ियों व मैदानों में परिवर्तित हो जाते हैं। हिमनद के लगातार संचालित होने से हिमनद का मलबा हटता रहता है, जिससे विभाजक नीचे हो जाता है और कालांतर में ढाल इतने निम्न हो जाते हैं कि हिमनद की संचलन शक्ति समाप्त हो जाती है तथा निम्न पहाड़ियों व अन्य निक्षेपित स्थलरूपों वाला एक हिमानी धौत रह जाता है।

परियोजना कार्य-
प्र० 1. अपने क्षेत्र के आसपास के स्थलरूप, उनके पदार्थ तथा वह जिन प्रक्रियाओं से निर्मित है, पहचानें।
उत्तर- छात्र स्वयं करें।

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NCERT Solutions for Class 11 History Chapter 7 Changing Cultural Traditions (Hindi Medium)

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अभ्यास प्रश्न (पाठ्यपुस्तक से) (NCERT Textbook Questions Solved)

संक्षेप में उत्तर दीजिए

प्र० 1. चौदहवीं और पंद्रहवीं शताब्दियों में यूनानी और रोमन संस्कृति के किन तत्वों को पुनर्जीवित किया गया?
उत्तर चौदहवीं और पंद्रहवीं शताब्दियों में यूनानी और रोमन संस्कृतियों व सभ्यताओं को पुनः जीवित करने का प्रयत्न किया गया। यूरोप में हुए परिवर्तनों का प्रभाव यूनान व रोमन संस्कृतियों पर भी पड़ा। 14वीं और 15वीं शताब्दी में आम जनता के मन में यूनानी व रोमन संस्कृतियों के अध्ययन के प्रति अनेक जिज्ञासाएँ उत्पन्न हुईं। कारण यह था कि अब तक शिक्षा व वाणिज्य में काफी प्रगति हो चुकी थी। यूनानी और रोमन संस्कृति व सभ्यता से प्रभावित होकर मानव को ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट रचना माना गया और अनेक चित्रकारों ने मानव से संबंधित विषयों पर अपनी रचनाएँ व चित्रकारियाँ कीं। इसके अतिरिक्त दार्शनिक व तर्कवाद की प्रवृत्ति से प्रभावित होकर अनेक वैज्ञानिकों ने आविष्कार किए और लोगों को मध्यकाल के अंधकार से बाहर निकालने का प्रयास किया। कई रूढ़ियों व अंधविश्वासों का पर्दाफाश यूनानी व रोमन तर्कवाद के माध्यम से किया गया। आत्मा और परमात्मा को छोड़कर लेखकों व चित्रकारों का प्रतिपाद्य मानव बन गया। उसके भौतिक जीवन की समस्याओं व उससे छुटकारा पाने की ओर अनेक विद्वानों ने अपने-अपने सिद्धांत प्रतिपादित किए। इसके साथ-साथ अनेक व्यापारिक मार्गों की खोज के फलस्वरूप यूरोप व अन्य देशों की संस्कृतियों का पता चला और सभ्यताओं के सभी आवश्यक सांस्कृतिक तत्व पुनर्जीवित हुए।

प्र० 2. इस काल की इटली की वास्तुकला और इस्लामी वास्तुकला की विशिष्टताओं की तुलना कीजिए।
उत्तर पंद्रहवीं शताब्दी में रोम नगर को अत्यंत भव्य रूप से बनाया गया। यहाँ अनेक भव्य भवनों व इमारतों का निर्माण किया गया। इटली की वास्तुकला के प्रारूप हमें गिरजाघरों, राजमहलों और किलों के रूप में दिखाई देते हैं। इटली की वास्तुकला की शैली को शास्त्रीय शैली कहा जाता था। शास्त्रीय वास्तुकारों ने इमारतों को चित्रों, मूर्तियों और विभिन्न प्रकार की आकृतियों से सुसज्जित किया। जबकि इस्लामी वास्तुकला ने इमारतों, भवनों व मस्जिदों की सजावट के लिए ज्यामितीय नक्शों और पत्थर में पच्चीकारी के काम का सहारा लिया। इटली की वास्तुकला की विशिष्टता के रूप में हमें भव्य गोलाकार गुंबद, भवनों की भीतरी सजावट, गोल मेहराबदार दरवाजे आदि दिखाई देते हैं। हालाँकि इस्लामी वास्तुकला इस काल में अपनी चरम सीमा पर थी। विशाल भवनों में बल्ब के आकार जैसे गुंबद, छोटी मीनारें, घोड़े के खुरों के आकार के मेहराब और मरोड़दार (घुमावदार) खंभे आश्चर्यचकित कर देने वाले हैं। ऊँची मीनारों और खुले आँगनों का प्रयोग हमें इस्लामी वास्तुकला के भवनों में नज़र आता है। उपरोक्त तुलना के आधार पर हम कह सकते हैं कि इटली की वास्तुकला और इस्लामी वास्तुकला में हमें कुछ अंतर व कुछ समानताएँ नज़र आती हैं।

प्र० 3. मानवतावादी विचारों का अनुभव सबसे पहले इतालवी शहरों में क्यों हुआ?
उत्तर इटली के अनेक नगरों से सामंतवाद की समाप्ति और स्वंतत्र नगरों की स्थापना होने से मानवतावादी विचारधारा को विकसित होने के लिए अनुकूल अवसर मिला। चौदहवीं शताब्दी में विद्वानों द्वारा प्लेटो एवं अरस्तू के सिद्धांतों एवं ग्रंथों के अनुवादों का अध्ययन किया गया। इसके अतिरिक्त मध्यकाल में कुस्तुनतुनिया पर तुर्को द्वारा आधिपत्य कायम कर लेने से अनेक विद्वानों एवं दार्शनिकों ने इटली में शरण ली और वे अपने साथ विपुल मात्रा में साहित्य ले गए। अरबवासियों की कृपादृष्टि से इटलीवासियों को अनेक साहित्यिक रचनाओं के अनुवाद भी प्राप्त हुए। प्राकृतिक विज्ञान, खगोल विज्ञान, गणित, औषधि विज्ञान आदि विषयों की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ। इसके अतिरिक्त इटली के अनेक विश्वविद्यालयों में मानवतावादी विषयों पर अध्यापन एवं अध्ययन शुरू होने लगा। इटली के पादुआ विश्वविद्यालय में मानवतावाद की शिक्षा दी जाती थी। इसकी स्थापना 1300 ई० में हुई थी। इटलीवासियों ने मानवतावादी विचारधारा के महत्त्वपूर्ण सिद्धांतों को ग्रहण किया। इटली के मानवतावादी विद्वानों ने मानव को ईश्वर की सर्वोत्तम रचना माना और उसके भौतिक जीवन की समस्याओं व उससे मुक्ति पाने के विषय पर चिंतन-मनन किया। परिणामतः मानवतावादी विचारों का अनुभव सर्वप्रथम इतालवी शहरों को प्राप्त हुआ।

प्र० 4. वेनिस और समकालीन फ्रांस में ‘अच्छी सरकार’ के विचारों की तुलना कीजिए।
उत्तर वेनिस -इटली का एक महत्त्वपूर्ण नगर राज्य था। वहाँ पर गणतंत्रीय शासन-प्रणाली पंद्रहवीं सदी में आरंभ हो चुकी थी।
वेनिस के अतिरिक्त फ़्लोरेंस और रोम विशेष रूप से उल्लेखनीय स्वतंत्र नगर राज्य थे। ये गणराज्य राजकुमारी द्वारा शासित किए जाते थे। यहाँ के धनी व्यापारी एवं महाजन नगर की शासन-प्रणाली में सक्रिय रूप से भूमिका निभाते थे। नगर का संपूर्ण अधिकार एक ऐसी परिषद् के हाथों में था जिसके सारे सदस्य सभ्रांत वर्ग के और 35 वर्ष से अधिक आयु वाले थे। वेनिस में शासन की बागडोर नागरिकों के हाथों में थी। वेनिस निवासियों में नागरिकता की भावना अत्यधिक व्याप्त थी।

दूसरी तरफ फ्रांस की शासन-प्रणाली वेनिस के एकदम विपरीत थी। फ्रांस में नगर राज्यों का संचालन निरंकुश शासक वर्ग के हाथों में था। चार्ल्स प्रथम, लुई बारहवाँ, लुई तेरहवाँ और लुई चौदहवाँ ऐसे ही निरंकुश शासक थे। धर्माधिकारी एवं सामंत राजनीतिक दृष्टि से ज्यादा शक्तिसंपन्म थे। नागरिकों का शोषण करना यहाँ पर सामान्य बात थी। नि:संदेह, वेनिस नगर में किसी प्रकार की क्रांति नहीं हुई किंतु फ्रांस के नगर राज्यों में अनेक क्रांतियों का जन्म हुआ और इसका असर वहाँ की सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था पर व्यापक रूप से पड़ा। इस प्रकार वेनिस और समकालीन फ्रांस की सरकारों में व्यापक स्तर पर भिन्नता थी।

संक्षेप में निबंध लिखिए

प्र० 5. मानवतावादी विचारों के क्या अभिलक्षण थे?
उत्तर यूरोप में तेरहवीं व चौदहवीं शताब्दी में शिक्षा के अनेक कार्यक्रमों का संचालन किया गया। विद्वानों का मत था कि केवल
धार्मिक शिक्षा विकास की दृष्टि से पर्याप्त नहीं है। इसी नयी संस्कृति को उन्नीसवीं सदी के इतिहासकारों ने मानवतावाद’ की संज्ञा दी। पंद्रहवीं शताब्दी के शुरुआत में मानवतावादी शब्द उन अध्यापकों के लिए प्रयुक्त किया जाता था जो व्याकरण, अलंकारशास्त्र, कविता, इतिहास तथा नीतिदर्शन में अध्ययन कार्य करते थे। यह शब्द लैटिन शब्द हयूमेनिटीस शब्द से बना है। सदियों पूर्व रोम के वकीलों तथा निबंधकारों में सिसरो (106-43 ई०पू०) ने जो कि जूलियस सीजर का समकालीन था, “संस्कृति” के अर्थ में ग्रहण किया। मानवतावादी विचारों के मुख्य अभिलक्षण इस प्रकार थे

  • मानवतावाद विचारधारा के अंर्तगत मानव के जीवन सुख और समृद्धि पर बल दिया जाता था।
  • मानवतावाद के माध्यम से यह तथ्य स्पष्ट हो गया कि मानव, धर्म और ईश्वर के लिए ही न होकर हमारे अपने लिए भी है।
  • मानव का अपना एक अलग विशेष महत्त्व है।
  • मानव जीवन को सुधारने व उसके भौतिक जीवन की समस्याओं का समाधान करने पर बल देना चाहिए, मानव का सम्मान करना चाहिए। इसका कारण यह है कि मानव ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट रचनाओं में से एक है।
  • पुनर्जागरण काल में महान कलाकारों की कृतियों और मूर्तियों में जीसस क्राइस्ट को मानव शिशु के रूप में और मेरी को वात्सल्यमयी माँ के रूप में चित्रित किया गया है। नि:संदेह मानवतावादी रचनाओं में धार्मिक भावनाओं का ह्रास पाया जाता है।
  • पुनर्जागरण काल में महान साहित्यकारों ने अपनी कृतियों में प्रतिपाद्य मानव की भावनाओं, दुर्बलताओं और शक्तियों का विश्लेषण किया है। उन्होंने अपनी कृतियों के केंद्र के रूप में धर्म व ईश्वर के स्थान पर मानव को रखा। इस युग की प्रमुख साहित्यिक कृतियों में डिवाइन कमेडी, यूटोपिया, हैमलेट आदि प्रसिद्ध हैं।

प्र० 6. सत्रहवीं शताब्दी के यूरोपीयों को विश्व किस प्रकार भिन्न लगा? उसका एक सुनिश्चित विवरण दीजिए।
उत्तर सत्रहवीं शताब्दी में आए सांस्कृतिक परिवर्तन में रोमन और यूनानी शास्त्रीय सभ्यता का ही केवल योगदान नहीं था। पुनर्जागरण ने प्रत्येक तथ्य को तर्क की कसौटी पर कसने की जिस अवधारणा को उत्पन्न किया उसके परिणामस्वरूप विज्ञान के क्षेत्र में विशेष रूप से प्रगति हुई। इसके अतिरिक्त रोमन संस्कृति के पुरातात्विक और साहित्यिक पुनरुद्धार के द्वारा भी इस सभ्यता के प्रति बहुत अधिक प्रशंसा के भाव व्यक्त किए गए। मध्ययुग का एक सिद्धांत था कि पृथ्वी विश्व की धुरी है। यह धारणा आलोचना का प्रतिपाद्य बन गई। कोपरनिकस, गैलिलियो और कैप्लर आदि वैज्ञानिकों ने * यह सिद्ध किया कि पृथ्वी एक बहुत बड़ा ग्रह है और यह चौबीस घंटे सूर्य के चारों ओर पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर घूमती है। हार्वे ने रुधिर संचार सिद्धांत का प्रतिपादन किया। नौसंचालन एवं चुंबकीय कंपास (Compass) के कारण लोगों ने अनेक समुद्री यात्राएँ शुरू कीं और अनेक नये-नये समुद्री मार्गों, द्वीपों एवं देशों की खोज इन नाविकों द्वारा की गई। कोलंबस ने सन् 1492 में अमेरिका का अन्वेषण किया तो 1498 में वास्कोडिगामा समुद्री मार्ग से भारत आया। यहाँ तक कि स्पेनी नाविक 1606 में ताहिती द्वीप पर पहुँच गए। इस्लाम के विस्तार और मंगोलों की जीत से एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका का संबंध यूरोप के अनेक देशों के साथ वाणिज्यिक आधार पर स्थापित हुआ। परिणामतः उन द्वीपों व देशों की सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्तर पर जानकारियाँ प्राप्त हुईं।

दूसरी तरफ यूरोपवासियों ने केवल यूनानी व रोमन लोगों से ही नहीं सीखा बल्कि अरब, ईरान, मध्य एशिया और चीन जैसे देशों से ज्ञान की प्राप्ति की। इतिहासकारों ने पर्याप्त सबूतों के अभाव में यूरोप को केन्द्रित-दृष्टिकोण में रखा। शंका प्रेक्षण और प्रयोग के नए-नए तरीके, जो पुनर्जागरण की बड़ी देन हैं। मानव ने अपने ज्ञान क्षेत्र में काफी हद तक विस्तार किया। वैसेलियस ने शल्य चिकित्सा के आधार पर मानव शरीर से संबंधित तथ्यों की जानकारी प्रदान की। इस प्रकार सत्रहवीं शताब्दी के यूरोपवासियों के लिए विश्व की अवधारणा पूर्णत: अलग थी।

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NCERT Solutions for Class 11 Economics in Hindi Medium and English Medium

NCERT Solutions for Class 11 Economics (Hindi Medium)

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CBSE Class 11th Economics NCERT Solutions in Hindi Medium and English Medium

Economics Class 11 NCERT Solutions in Hindi Medium

CBSE Class 11th Economics NCERT Textbook Solutions: Statistics for Economics (खण्ड-1 अर्थशास्त्र में सांख्यिकी)

Part B NCERT Solutions for Class 11 Microeconomics

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 7 (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 7 Correlation (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 7 Correlation (Hindi Medium)

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प्रश्न अभ्यास
(पाठ्यपुस्तक से)

प्र.1. कद (फुटों में) तथा वजन (किलोग्राम में) के बीच सहसंबंध गुणांक की इकाई है:

(क) कि. ग्रा/फुट
(ख) प्रतिशत
(ग) अविद्यमान

उत्तर (ग) अविद्यमान

प्र.2. सरल सहसंबंध गुणांक का परास निम्नलिखित होगा

(क) 0 से अनंत तक
(ख) -1 से +1 तक
(ग) ऋणात्मक अनंत से धनात्मक अनंत तक

उत्तर (ख) -1 से +1 तक

प्र.3. यदि rxy धनात्मक है तो x और y के बीच का संबंध इस प्रकार का होता है।

(क) जब y बढ़ता है तो x बढ़ता है।
(ख) जब y घटता है तो x बढ़ता है।
(ग) जब y बढ़ता है तो x नहीं बदलता है।

उत्तर (क) जब y बढ़ता है तो x बढ़ता है।

प्र.4. यदि rxy = 0 तब चर x और y के बीचः

(क) रेखीय संबंध होगा।
(ख) रेखीय संबंध नहीं होगा
(ग) स्वतंत्र होगा

उत्तर (ख) रेखीय संबंध नहीं होगा

प्र.5. निम्नलिखित तीनों मापों में कौन-सा माप किसी भी प्रकार के संबंध की माप कर सकता है।

(क) कार्ल पियरसन सहसंबंध गुणांक
(ख) स्पीयरमैन का कोटि सहसंबंध
(ग) प्रकीर्ण आरेख

उत्तर (ख) स्पीयरमैन का कोटि सहसंबंध

प्र.6. यदि परिशुद्ध रूप में मापित आँकड़े उपलब्ध हों, तो सरल सहसंबंध गुणांकः

(क) कोटि सहसंबंध गुणांक से अधिक सही होता है।
(ख) कोटि सहसंबंध गुणांक से कम सही होता है।
(ग) कोटि सहसंबंध की ही भाँति सही होती है।

उत्तर (ग) कोटि सहसंबंध की ही भाँति सही होता है।

प्र.7. साहचर्य के माप के लिए r को सहप्रसरण से अधिक प्राथमिकता क्यों दी जाती है?
उत्तर साहचर्य का माप x और y के बीच सहसंबंध गुणांक का चिह्न निश्चित करता है। मानक विचलन सदा धनात्मक होते हैं। जब सहप्रसरण शून्य होता है तो सहसंबंध भी शून्य होता है। सहसंबंध को सहप्रसरण से साहचर्य के माने के लिए अधिक प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि

(क) यह धनात्मक ऋणात्मक और शून्य सहसंबंध के विषय में बताता है।
(ख) सहसंबंध मूलों और पैमानों से स्वतंत्र होते हैं।

प्र.8. क्या आँकड़ों के प्रकार के आधार पर r, -1 तथा + 1 के बाहर स्थित हो सकता है?
उत्तर r (+1∠ r- 1) + 1 और -1 के बीच में स्थित होता है और यदि यह + 1 से बाहर हो तो इसका अर्थ है कि दो चरों में संबंध आरेखीय है। अत: इसका विवेचन करते हुए हमें यह याद रखना होगा कि अवश्य इसमें कुछ त्रुटियाँ हैं।

प्र.9, क्या सहसंबंध के द्वारा कार्यकारण संबंध की जानकारी मिलती है? 4
उत्तर नहीं सहसंबंध द्वारा कार्यकारण की जानकारी नहीं मिलती। अकसर विद्यार्थी यह विश्वास करने लगते हैं कि सहसंबंध दो चरों में वहाँ सहसबंधं सुझाता है जहाँ एक का कारण दूसरा है। उदाहरण: यह वस्तु की माँगी गई मात्रा और कीमत में सहसंबंध स्पष्टः कीमत में वृद्धि तथा माँगी गई मात्रा में कमी का कारण है और इसके विपरीत भी। कीमत में परिवर्तन माँगी गई मात्रा में परिवर्तन लाता है। परंतु जिस बिंदु पर ज्यादा बल देने की आवश्यकता है वह यह है कि चरों के बीच कारण और प्रभाव संबंध सहसंबंध के सिद्धांत में कोई भी पूर्व-स्थिति नहीं है। सहसंबंध दो चरों के बीच किसी कारण और प्रभाव संबंध के साथ या उसके बिना, संबंध की कोटि और तीव्रता को मापता है। सहसंबंध दो या दो से अधिक चर-मूलों में पारस्परिक संबंध की दिशा तथा मात्रा का अकात्मक माप है। परंतु सहसंबंध की उपस्थिति से यह नहीं मान लेना चाहिए कि दोनों चरों में आवश्यक रूप से प्रत्यक्ष कारण तथा परिणाम संबंध है। सह-संबंध सदैव कारण–परिणाम संबंध से ही उत्पन्न नहीं होता। परंतु कारण-परिणाम संबंध होने पर निश्चित रूप से सहसंबंध पाया जाता है।

प्र.10. सरल सहसंबंध गुणांक की तुलना में कोटि सहसंबंध गुणांक कब अधिक परिशुद्ध होता है?
उत्तर सरल सहसंबंध गुणांक की तुलना में कोटि सहसंबंध गुणांक अधिक परिशुद्ध होता है क्योंकि

  1. इस विधि का उस स्थिति में भी सुगमता से प्रयोग किया जाता है जबकि आँकड़ों के स्थान पर केवल श्रेणियाँ ही दी गई हों तथा साधारण गुणात्मक श्रृंखलाओं के ढीले सहसंबंध अनुमान लगाने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है।
  2. स्पीयरमैन श्रेणी अंतर सह-संबंध विधि पियरसन के सह-संबंध गुणांक की अपेक्षा समझने में सरल है।
  3. यह विधि गुणात्मक चरों की अच्छाई, बुराई, बुद्धिमत्ता, सुंदरता व पवित्रता आदि के सह-संबंधों को ज्ञात करने के लिए श्रेष्ठ है।

प्र.11. क्या शून्य सहसंबंध का अर्थ स्वतंत्रता है?
उत्तर शून्य सहसंबंध का अर्थ स्वतंत्रता नहीं है अपितु इसका अर्थ रेखीय । सहसंबंध की स्वतंत्रता है। दो चरों में आरेखीय सहसंबंध होने पर जब उन्हें प्रकीर्ण आरेख पर दर्शाया जायेगा। तो वे शून्य सहसंबंध दर्शायेंगे तथा जब उन्हें पियरसन या स्पीयरमैन विधि से निकाला जाता है तो यह निम्न सहसंबंध का मान देगा। नीचे दी गई आकृति के द्वारा इसे समझा जा सकता है।
NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 7 (Hindi Medium) 1

इसे शून्य सहसंबंध माना जायेगा, जबकि एक स्तर तक x और y धनात्मक रूप से संबंधित है तथा तदुपरांत उनमें ऋणात्मक सहसंबंध है।

प्र.12. क्या सरल सहसंबंध गुणांक किसी भी प्रकार के संबंध को माप सकता है?
उत्तर नहीं, सरल सहसंबध गुणाक केवल रेखीय सहसंबंध माप सकता है।

(क) यह आरेखीय सहसंबंध नहीं माप सकता।
(ख) यह ऐसे चरों के बीच सहसंबंध ज्ञात नहीं कर सकता जो संख्यात्मक रूप में व्यक्त नहीं किये जा सकते।
(ग) यह धनात्मक, ऋणात्मक तथा रेखीय सहसंबंध की अनुपस्थिति को माप सकता है।

प्र.13. एक सप्ताह तक अपने स्थानीय बाजार से 5 प्रकार की सब्जियों की कीमतें प्रतिदिन एकत्र करें। उनका सहसंबंध गुणांक परिकलित कीजिए। इसके परिणाम की व्याख्या कीजिए।
उत्तर इसका उत्तर छात्र प्रति छात्र भिन्न होगा। परंतु विधि इस प्रकार होगी।
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प्र.14. अपनी कक्षा के सहपाठियों के कद मापिए। उनसे उनके बेंच पर बैठे सहपाठी का कद पूछिए। इन दो चरों का सहसंबंध गुणांक परिकलित कीजिए और परिणाम का निर्वचन कीजिए।
उत्तर सभी बेंचों पर दायीं ओर बैठे छात्र को X तथा बायीं और बैठे छात्र की Y कहें। यदि कक्षा में 40 विद्यार्थी हैं तो 20 जोड़े बन जायेंगे। यदि संख्या विषम है तो एक विद्यार्थी को छोड़ना होगा। उनके कद ज्ञात करके कार्ल पियरसन की किसी भी विधि द्वारा सहसंबंध गुणांक ज्ञात किया जा सकता है।

प्र.15. कुछ ऐसे चरों की सूची बनाएँ जिनका परिशुद्ध माप कठिन हो।
उत्तर ऐसे कुछ चर इस प्रकार हैं:

(क) सुंदरता
(ख) बुद्धिमत्ता
(ग) ईमानदार
(घ) अनुशासन
(ङ) आत्मविश्वास
(च) संस्कार

प्र.16. r के विभिन्न मानों +1, -1, तथा 0 की व्याख्या करें।
उत्तर r = +1 पूर्ण धनात्मक सहसंबंध
r = -1 पूर्ण ऋणात्मक सहसंबंध
r = 0 रेखीय सहसंबंध की अनुपस्थिति।

प्र.17. पियरसन सहसंबंध गुणांक से कोटि सहसंबंध गुणांक क्यों भिन्न होता है?
उत्तर पियरसन सहसंबंध गुणांक की भाँति श्रेणी सहसंबंध भी + 1 तथा – 1 के बीच स्थित होता है। हालाँकि, सामान्य तौर पर यह सामान्य विधि की तरह यथावत नहीं होता है। इसका कारण यह है कि इसमें आँकड़ों से संबंधित सभी सूचनाओं का उपयोग नहीं होता है। श्रृंखला में मदों के मानों के वे प्रथम अंतर जो उनके परिमाण के अनुसार क्रम में व्यवस्थित किए जाते हैं, आमतौर पर कभी स्थिर नहीं होते। सामान्यतः आँकड़ा-कुछ केंद्रीय मानों के आसपास सारणी के मध्य में थोड़े बहुत अंतर पर एकत्रित होते हैं। यदि समान अंत्र पर स्थिर होते, तब r और rk समान परिमाण देते। प्रथम अतंर तथा क्रमिक मानों में अंतर होता है। कोटि सहसंबंध को पियरसन गुणांक की अपेक्षा तब अधिक प्राथमिकता दी जाती है, जब चरम मान दिए गए हों। सामान्यतः rk का मान r से कम या इसके बराबर होता है।

प्र.18. पिताओं (x) और उनके पुत्रों (y) के कदो का माप नीचे इंचों में दिया गया है। इन दोनों के बीच सहसंबंध गुणांक परिकलित कीजिए।
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उत्तर
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प्र.19. x और y के बीच सहसंबंध गुणांक को परिकलित कीजिए और उनके संबंध पर टिप्पणी कीजिए।
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उत्तर
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प्र.20. x और y के बीच सहसंबंध गुणांक परिकलित कीजिए और उनके संबंध पर टिप्पणी कीजिए।
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उत्तर

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NCERT Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 4 (Hindi Medium)

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NCERT Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 4 Map Projections (Hindi Medium)

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[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED] (पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न)

प्र० 1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
(i) मानचित्र प्रक्षेप, जो कि विश्व के मानचित्र के लिए न्यूनतम उपयोगी है
(क) मर्केटर
(ख) बेलनी
(ग) शंकु
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर- (ग) शंकु

(ii) एक मानचित्र प्रक्षेप, जो न समक्षेत्र हो एवं न ही शुद्ध आकार वाला हो तथा जिसकी दिशा भी शुद्ध नहीं होती है
(क) शंकु
(ख) ध्रुवीय शिराबिंदु
(ग) मर्केटर
(घ) बेलनी
उत्तर- (क) शंकु

(iii) एक मानचित्र प्रक्षेप, जिसमें दिशा एवं आकृति शुद्ध होती है, लेकिन ध्रुवों की ओर यह बहुत अधिक विकृत हो जाती है
(क) बेलनाकार समक्षेत्र
(ख) मर्केटर
(ग) शंकु
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर- (ख) मर्केटर

(iv) जब प्रकाश के स्रोत को ग्लोब के मध्य रखा जाता है, तब प्राप्त प्रक्षेप को कहते हैं
(क) लंबकोणीय
(ख) त्रिविम
(ग) नोमॉनिक
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर- (ग) नोमॉनिक

प्र० 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें
(i) मानचित्र प्रक्षेप के तत्वों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- मानचित्र प्रक्षेप के तत्व निम्नलिखित हैं

(क) पृथ्वी का छोटा रूप – पृथ्वी के मॉडल को छोटी मापनी की सहायता से कागज के समतल सतह पर दर्शाया जाता है।
(ख) अक्षांश के समांतर – ये ग्लोब के चारों ओर स्थित वे वृत्त हैं जो विषुवत्त वृत्त के समांतर एवं ध्रुवों से समान दूरी पर स्थित होते हैं।
(ग) देशांतर के याम्योत्तर – ये अर्धवृत्त होते हैं। जो कि उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर, एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव तक खींचे जाते हैं तथा दो विपरीत याम्योत्तर एक वृत्त का निर्माण करते हैं| जो ग्लोब की परिधि होती है।
(घ) ग्लोब के गुण – मानचित्र प्रक्षेप बनाने में ग्लोब की सतह के मूल गुणों को कुछ विधियों के द्वारा संरक्षित रखा जाता है।

(ii) भूमंडलीय संपत्ति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- एक मानचित्र में चार भूमंडलीय गुण- क्षेत्रफल, आकृति, दिशा और दूरी की शुद्धता को संरक्षित रखा जाता है। भूमंडलीय गुणों के आधार पर प्रक्षेपों को समक्षेत्र, यथाकृतिक तथा समदूरस्थ प्रक्षेप में वर्गीकृत किया
जाता है।

(iii) कोई भी मानचित्र ग्लोब को सही रूप में नहीं दर्शाता है, क्यों?
उत्तर- मानचित्र प्रक्षेप अक्षांश और देशांतर रेखाओं का जाल होता है। यह समतल कागज पर बनाया जाता है। ग्लोब पृथ्वी का सही प्रतिनिधित्व करता है। प्रक्षेप ग्लोब की छाया होती है जो कुछ स्थानों पर विकृत हो जाता है। इस तरह प्रक्षेप ग्लोब को सही रूप में नहीं दर्शाता।

(iv) बेलनाकार समक्षेत्र प्रक्षेप में क्षेत्र को समरूप कैसे रखा जाता है?
उत्तर- बेलनाकार समक्षेत्र प्रक्षेप को समरूप रखा जाता है। अक्षांश और देशांतर रेखाएँ सीधी रेखा के रूप में एक-दूसरे को समकोण पर काटती हैं।

प्र० 3. अन्तर स्पष्ट कीजिए|
(i) विकासनीय एवं अविकासनीय पृष्ठ
उत्तर- विकासनीय एवं अविकासनीय पृष्ठ में अन्तर-
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(ii) समक्षेत्र तथा यथाकृतिक प्रक्षेप
उत्तर- समक्षेत्र तथा यथाकृतिक प्रक्षेप में अंतर
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(iii) अभिलंब एवं तिर्यक प्रक्षेप
उत्तर- अभिलंब एवं तिर्यक प्रक्षेप में अंतर–
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(iv) अक्षांश के समांतर एवं देशांतर के याम्योत्तर
उत्तर- अक्षांश के समांतर एवं देशांतर के याम्योत्तर में अंतर-
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प्र० 4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 125 शब्दों में दीजिए-
(i) मानचित्र प्रक्षेप का वर्गीकरण करने के आधार की विवेचना कीजिए तथा प्रक्षेपों की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर- मानचित्र प्रक्षेप का वर्गीकरण करने के आधार|
(i) बनाने की तकनीक/विधि के आधार पर प्रक्षेपों को सामान्यतः दो वर्गों में विभाजित किया जाता है। संदर्श, असंदर्श तथा रूढ़ अथवा गणितीय प्रक्षेप।
(ii) विकासनीय पृष्ठ के गुणों के आधार पर प्रक्षेपों को बेलनी, शंकु तथा खमध्य प्रक्षेपों में वर्गीकृत किया जाता है।
(iii) भूमंडलीय गुणों के आधार पर प्रक्षेपों को समक्षेत्र प्रक्षेप, यथाकृतिक प्रक्षेप, समदूरस्थ प्रक्षेप में वर्गीकृत किया जाता है।
(iv) प्रकाश के स्रोत की स्थिति के आधार पर प्रक्षेपों को नोमॉनिक, त्रिविम एवं लंबकोणीय प्रक्षेपों में वर्गीकृत किया जाता है।
(v) ग्लोब की सतह को स्पर्श करने की स्थिति के आधार पर प्रक्षेपों को अभिलंब प्रक्षेप त्रिर्यक प्रक्षेप तथा ध्रुवीय प्रक्षेप में वर्गीकृत किया जाता है।

प्रक्षेप की मुख्य विशेषताएँ
(i) यह न तो समक्षेत्र है और न ही शुद्ध आकृति।
(ii) अक्षांश रेखाएँ समान दूरी पर खिंची संकेंद्रीय वृत्तों की चाप होती हैं एवं देशांतर रेखाएँ समान कोणात्मक अन्तरालों पर खिंची अरीय रेखीय होती है।
(iii) केंद्र या ध्रुव से प्रत्येक बिंदु अपनी यथार्थ दूरी पर तथा शुद्ध दिशा में स्थित होता है।
(iv) अक्षांशीय मापक शुद्ध नहीं होता है, यह मानक अक्षांश से परे तेज गति से बढ़ता जाता है। देशांतरीय मापक सर्वत्र शुद्ध रहता है।

(ii) कौन-सा मानचित्र प्रक्षेप नौसंचालन उद्देश्य के लि बहुत उपयोगी होता है? इस प्रक्षेप की सीमाओं एवं उपयोगों की विवेचना कीजिए।
उत्तर- मर्केटर प्रक्षेप नौसंचालन उद्देश्य के लिए बहुत उपयोगी होता है।
मर्केटर प्रक्षेप की सीमाएँ
(i) याम्योत्तर एवं अक्षांशों के सहारे मापनी का विस्तार उच्च अक्षांशों पर तीव्रता से बढ़ता है। जिसके परिणामस्वरूप, ध्रुव के निकटवर्ती देशों को आकार उनके वास्तविक आकार से अधिक हो जाता है। उदाहरण के लिए ग्रीनलैंड का आकार संयुक्त राज्य अमेरिका के बाराबर हो जाता है, जबकि यह अमेरिका के आकार का 1/10वाँ हिस्सा है।
(ii) इस प्रक्षेप में ध्रुवों को प्रदर्शित नहीं किया जा सकता। है, क्योंकि 90° अक्षांश समांतर एवं याम्योतर रेखाएँ अनंत होती है।

मर्केटर प्रक्षेप का उपयोग
(i) यह विश्व के मानचित्र के लिए बहुत ही उपयोगी है। तथा एटलस मानचित्रों को बनाने में इसका उपयोग किया जाता है।
(ii) यह समुद्र एवं वायु मार्गों पर नौसंचालन के लिए बहुत ही उपयोगी है।
(iii) अपवाह प्रतिरूपों, समुद्री धाराओं, तापमान, पवनों एवं उनकी दिशाओं, पूरे विश्व में वर्षा का वितरण इत्यादि को मानचित्र पर दर्शाने के लिए यह उपयुक्त है।

(iii) एक मानक अक्षांश वाले शंकु प्रक्षेप के मुख्य गुण क्या हैं तथा उसकी सीमाओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- एक मानक अक्षांश वाले शंकु प्रक्षेप के मुख्य गुण|
(i) सभी अक्षांशों के समांतर वृत्तों के चाप होते हैं तथा उनके बीच की दूरी बराबर होती है।
(ii) सभी याम्योत्तर रेखाएँ सीधी होती हैं, जो ध्रुवों पर मिल जाती हैं। याम्योत्तर समांतर को समकोण पर काटती हैं।
(iii) सभी याम्योत्तरों की मापनी सही होती है, अर्थात् याम्योत्तरों पर सारी दूरियाँ सही होती हैं।
(iv) एक वृत्त का चाप ध्रुव को दर्शाता है।
(v) मानक समांतर पर मापनी शुद्ध होती है, लेकिन इससे दूर यह विकृत हो जाती है।
(vi) याम्योत्तर ध्रुवों के निकट जाते हुए एक-दूसरे के समीप आ जाते हैं।
(vii) यह प्रक्षेप न तो समक्षेत्र है तथा न ही यथाकृतिक।

सीमाएँ
(i) यह विश्व मानचित्र के लिए उपयुक्त नहीं है, क्योंकि जिस गोलार्द्ध में मानक अक्षांश वृत्त चुना जाता है। उसके विपरीत गोलार्द्ध में चरम विकृति होती है।
(ii) जिस गोलार्द्ध में यह बनाया जाता है, उसके लिए भी यह उपयुक्त नहीं है, क्योंकि उसमें भी ध्रुव पर तथा विषुवत वृत्त के पास विकृत होने के कारण इसका उपयोग बड़े क्षेत्र को प्रदर्शित करने के लिए अनुपयुक्त है।

क्रियाकलाप
1. 30° उ० से 70° उ० तथा 40° प० से 30° प० के बीच स्थित एक क्षेत्र का रेखाजाल एक मानक अक्षांश वाले सामान्य शंकु प्रक्षेप पर बनाइए, जिसकी मापनी 1 : 20,00,00,000 तथा मध्यांतर 10° है।
2. विश्व का रेखाजाल बेलनाकार समक्षेत्र प्रक्षेप पर बनाइए, जहाँ प्रतिनिधि भिन्न 1:15,00,00,000 तथा मध्यांतर 15° है।
3. 1 : 25,00,00,000 की मापनी पर एक मर्केटर प्रक्षेप का रेखाजाल बनाइए, जिसमें अक्षांश एवं देशांतर 20° के मध्यांतर पर खींची जाए।
उत्तर- छात्र स्वयं करें।

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NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 4 (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 4

NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 4 Distribution of Oceans and Continents (Hindi Medium)

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[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED] (पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न)

प्र० 1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
(i) निम्न में से किसने सर्वप्रथम यूरोप, अफ्रीका व अमेरिका के साथ स्थित होने की संभावना व्यक्त की?
(क) अल्फ्रेड वेगनर
(ख) अब्राहम ऑरटेलियस
(ग) एनटोनियो पेलेग्रिनी
(घ) एडमंड हैस
उत्तर- (ख) अब्राहम ऑरटेलियस

(ii) पोलर फ्लीइंग बल Polar fleeing force निम्नलिखित में से किससे संबंधित है?
(क) पृथ्वी की परिक्रमण
(ख) पृथ्वी का घूर्णन
(ग) गुरुत्वाकर्षण
(घ) ज्वारीय बल
उत्तर- (ख) पृथ्वी का घूर्णन

(iii) इनमें से कौन-सी लघु Minor प्लेट नहीं है?
(क) नजका
(ख) फिलिपीन
(ग) अरब
(घ) अंटार्कटिक
उत्तर- (घ) अंटार्कटिक

(iv) सागरीय अधस्तल विस्तार सिद्धांत की व्याख्या करते हुए हेस ने निम्न में से किस अवधारणा पर विचार नहीं किया?
(क) मध्य-महासागरीय कटकों के साथ ज्वालामुखी क्रियाएँ।
(ख) महासागरीय नितल की चट्टानों में सामान्य व उत्क्रमण चुंबकत्व क्षेत्र की पट्टियों का होना।
(ग) विभिन्न महाद्वीपों में जीवाश्मों का वितरण।
(घ) महासागरीय तल की चट्टानों की आयु।
उत्तर- (ग) विभिन्न महाद्वीपों में जीवाश्मों का वितरण

(v) हिमालय पर्वतों के साथ भारतीय प्लेट की सीमा किस तरह की प्लेट सीमा है?
(क) महासागरीय-महाद्वीपीय अभिसरण
(ख) अपसारी सीमा
(ग) रूपांतर सीमा
(घ) महाद्वीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण
उत्तर- (घ) महाद्वीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण

प्र० 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए:
(i) महाद्वीपों के प्रवाह के लिए वेगनर ने निम्नलिखित में से किन बलों का उल्लेख किया?
उत्तर- महाद्वीपीय प्रवाह के लिए वेगनर ने दो बलों का उपयोग किया –
(i) पोलर या ध्रुवीय फ्लीइंग बल
(ii) ज्वारीय बल। ध्रुवीय फ्लीइंग बल पृथ्वी के घूर्णन से संबंधित है। पृथ्वी की आकृति एक संपूर्ण गोले जैसी नहीं है वरन यह भूमध्य रेखा पर उभरी हुई है। यह उभार पृथ्वी के घूर्णन के कारण है। दूसरा बल जो वेगनर महोदय ने सुझाया-वह ज्वारीय बल है। जो सूर्य व चंद्रमा के आकर्षण से संबद्ध है, जिससे महासागरों में ज्वार पैदा होते हैं। वेगनर का मानना था कि करोड़ों वर्षों के दौरान ये बल प्रभावशाली होकर विस्थापन के लिए सक्षम हो गए।

(ii) मैंटल में संवहन धाराओं के आरंभ होने और बने रहने के क्या कारण हैं?
उत्तर- संवहन धाराएँ रेडियोएक्टिव तत्वों से उत्पन्न ताप भिन्नता के कारण मैंटल भाग में उत्पन्न होती हैं। होम्स ने तर्क दिया कि पूरे मैंटल भाग में इस प्रकार की धाराओं की तंत्र विद्यमान है। यह उन प्रवाह बलों की व्याख्या प्रस्तुत करने का प्रयास था, जिसके आधार पर समकालीन वैज्ञानिकों ने महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत को नकार दिया।

(iii) प्लेट की रूपांतर सीमा, अभिसरण सीमा और अपसारी सीमा में मुख्य अंतर क्या है?
उत्तर- प्लेट की रूपांतर सीमा, अभिसरण सीमा और अपसारी सीमा में निम्न अंतर है
प्लेट की रूपांतर सीमा – जहाँ न तो नई पर्पटी का निर्माण होता है और न ही पर्पटी का विनाश होता है, उन्हें रूपांतर सीमा कहते हैं।
अभिसरण सीमा – जब एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे धंसती है और भूपर्पटी नष्ट होती है, वह अभिसरण सीमा है।
अपसारी सीमा – वह स्थान जहाँ से प्लेट एक-दूसरे से हटती है, अपसारी सीमा कहलाती है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण मध्य अटलांटिक कटक है।

(iv) दक्कन ट्रेप के निर्माण के दौरान भारतीय स्थलखंड की स्थिति क्या थी?
उत्तर- आज से 14 करोड़ वर्ष पहले भारतीय प्लेट सुदूर दक्षिण में 50° दक्षिणी अक्षांश पर स्थित था। भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट को टेथिस सागर अलग करता था और तिब्बतीय खंड, एशियाई स्थलखंड के करीब था। भारतीय प्लेट के एशियाई प्लेट की तरफ प्रवाह के दौरान एक प्रमुख घटना घटी। वह थी लावा प्रवाह से दक्कन ट्रेप का निर्माण होना। ऐसा लगभग 6 करोड़ वर्ष पहले आरंभ हुआ जो एक लंबे समय तक जारी रहा।

प्र० 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए।
(i) महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के पक्ष में दिए गए प्रमाणों का वर्णन करें।
उत्तर- महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के तहत वेगनर ने कहा है कि 20 करोड़ वर्ष पहले सभी महाद्वीप आज की तरह अलग-अलग नहीं थे, बल्कि पैंजिया के ही भाग थे। इसको प्रमाणित करने के लिए वेगनर ने कई साक्ष्य दिए हैं
(क) भूवैज्ञानिक क्रियाओं के फलस्वरूप 47 करोड़ से 35 करोड़ वर्ष पुरानी पर्वत पट्टी का निर्माण एक अविच्छिन्न कटिबंध के रूप में हुआ था। ये पर्वत अब अटलांटिक महासागर द्वारा पृथक कर दिए गए हैं।
(ख) कुछ जीवाश्म भी यह बताते हैं कि समस्त महाद्वीप कभी परस्पर जुड़े हुए थे। उदाहरण के लिए, ग्लोसोप्टेरिस नामक पौधे तथा मेसोसौरस एवं लिस्ट्रोसौरस नामक जंतुओं के जीवाश्म गोंडवानालैंड के सभी महाद्वीपों में मिलते हैं जबकि आज ये महाद्वीप एक-दूसरे से काफी दूर हैं।
(ग) अफ्रीका के घाना तट पर सोने का निक्षेप पाया जाता है जबकि 5000 कि०मी० चौड़े महासागर के पार दक्षिणी अमेरिका में ब्राजील के तटवर्ती भाग में भी सोने का निक्षेप पाया जाता है।
(घ) पर्मोकार्बनी काल में मोटे हिमानी निक्षेप उरुग्वे, ब्राजील, अफ्रीका, दक्षिणी भारत, दक्षिणी आस्ट्रेलिया तथा तस्मानिया के धरातल पर दिखाई देते थे। इन अवसादों की प्रकृति में एकरूपता यह सिद्ध करती है कि भूवैज्ञानिक अतीत काल में समस्त महाद्वीप एक-दूसरे से जुड़े हुए थे तथा यहाँ एक जैसी जलवायविक दशाएँ थीं।
(ङ) महाद्वीपों का विस्थापन अभी भी जारी है। अटलांटिक महासागर की चौड़ाई प्रतिवर्ष कई सेंटीमीटर के हिसाब से बढ़ रही है जबकि प्रशांत महासागर छोटा हो रहा है। लाल सागर भूपर्पटी में एक दरार का हिस्सा है जो भविष्य में करोड़ों वर्ष पश्चात एक नए महासागर की रचना करेगा। दक्षिणी अटलांटिक महासागर के चौड़ा होने से अफ्रीका तथा दक्षिणी अमेरिकी एक-दूसरे से अलग हो गए हैं।

(ii) महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत व प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत में मूलभूत अंतर बताइए।
उत्तर- महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत की आधारभूत संरचना यह थी कि सभी महाद्वीप पहले एक ही भूखंड के भागे थे, जिसे पैंजिया नाम दिया गया था। ये भूखंड एक बड़े महासागर से घिरा हुआ था। वेगनर के अनुसार, लगभग 20 करोड़ वर्ष पहले पैंजिया का विभाजन आरंभ हुआ। पैंजिया पहले दो बड़े भूखंड लारेशिया और गोंडवानालैंड के रूप में विभक्त हुआ। इसके बाद लारेशिया व गोंडवानालैंड धीरे-धीरे अनेक छोटे-छोटे हिस्सों में बँट गए जो आज के वर्तमान महाद्वीप के रूप में हैं। प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के अनुसार, पृथ्वी के स्थलमंडल को सात मुख्य प्लेटों व कुछ छोटी प्लेटों में विभक्त किया जाता है। नवीन वलित पर्वतश्रेणियाँ, खाइयाँ और भ्रंश इन मुख्य प्लेटों को सीमांकित करते हैं। महाद्वीप एक प्लेट का हिस्सा है और प्लेट गतिमान है। वेगनर की संकल्पना कि केवल महाद्वीप ही गतिमान है, सही नहीं है।

(iii) महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत के उपरांत की प्रमुख खोज क्या है, जिससे वैज्ञानिकों ने महासागर व महाद्वीप वितरण के अध्ययन में पुनः रुचि ली?
उत्तर- महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत के द्वारा वेगनर ने ज जानकारी प्रस्तुत की थी, वह पुराने तर्क पर आधारित थी। वर्तमान में जानकारी के जो स्रोत हैं, वे वेगनर के समय में उपलब्ध नहीं थे। चट्टानों के चुंबकीय अध्ययन और महासागरीय तल के मानचित्रण ने विशेष रूप से निम्न तथ्यों को उजागर किया
(क) यह देखा गया कि मध्य-महासागरीय कटकों के साथ-साथ ज्वालामुखी उद्गार सामान्य क्रिया है और ये उद्गार इस क्षेत्र में बड़ी मात्रा में लावा निकालते हैं।
(ख) महासागरीय कटक के मध्य भाग के दोनों तरफ समान दूरी पर पाई जाने वाली चट्टानों के निर्माण का समय, संरचना, संघटन और चुंबकीय गुणों में समानता पाई जाती है। महासागरीय कटकों के समीप की चट्टानों में सामान्य चुंबकत्व ध्रुवण पाई जाती है तथा ये चट्टानें नवीनतम हैं। कटकों के शीर्ष से दूर चट्टानों की आयु भी अधिक है।
(ग) महासागरीय पर्पटी की चट्टानें महाद्वीपीय पर्पटी की चट्टानों की अपेक्षा अधिक नई हैं। महासागरीय पर्पटी की चट्टानें कहीं भी 20 करोड़ वर्ष से अधिक पुरानी नहीं हैं। महाद्वीपीय पर्पटी के भूकंप उद्गम केंद्र अधिक गहराई पर हैं जबकि मध्य-महासागरीय कटकों के क्षेत्र के भूकंप उद्गम केंद्र कम गहराई पर विद्यमान हैं।
(घ) गहरी खाइयों में भूकंप उद्गम केंद्र अधिक गहराई पर हैं जबकि मध्य-महासागरीय कटकों के क्षेत्र के भूकंप उद्गम केंद्र कम गहराई पर विद्यमान हैं।

परियोजना कार्य-
प्र०. भूकंप के कारण हुई क्षति से संबंधित एक कोलाज बनाए।
उत्तर- छात्र स्वयं करें।

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