NCERT Solutions for Class 11 Sociology Understanding Society Chapter 5 Indian Sociologists (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Sociology Understanding Society Chapter 5 Indian Sociologists (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Sociology Understanding Society Chapter 5 Indian Sociologists (Hindi Medium)

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 11 Sociology. Here we have given NCERT Solutions for Class 11 Sociology Understanding Society Chapter 5 Indian Sociologists.

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न [NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED]

प्र० 1. अनंतकृष्ण अय्यर और शरतचंद्र रॉय ने सामाजिक मानव विज्ञान के अध्ययन का अभ्यास कैसे किया?
उत्तर- अनंतकृष्ण अय्यर (1861-1931) भारत में समाजशास्त्र के अग्रदूत थे।

  • अनंतकृष्ण अय्यर को कोचीन के दीवान द्वारा राज्य के नृजातीय सर्वेक्षण में मदद के लिए कहा गया।
  • महाप्रान्त क्षेत्र के अतिरिक्त ब्रिटिश सरकार इसी प्रकार का सर्वेक्षण सभी रजवाड़ों में करवाना चाहती थी। ये क्षेत्र विशेषतः उनके नियंत्रण में आते थे।
  • अनंतकृष्ण अय्यर ने इस कार्य को पूर्ण रूप से एक स्वयंसेवी के रूप में किया। अनंतकृष्ण अय्यर संभवतः पहले स्वयं शिक्षित मानवविज्ञानी थे जिन्होंने एक विद्धान और शिक्षाविद् के रूप में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की ख्याति प्राप्त की।
    शरतचंद्र रॉय के द्वारा समाजशास्त्र का प्रयोगः
  • शरतचंद्र रॉय जनजातीय समाज में अत्यधिक रुचि रखते थे। यह उनकी नौकरी की आवश्यकता भी थी। कारण यह था कि उन्हें अदालत में जानकारियों की परंपरा और कानून को दुभाषित करना था।
  • ओराव, मुंडा और खरिया जनजातियों पर किया गया सर्वप्रसिद्ध प्रबन्ध लेखन कार्य के अतिरिक्त रॉय ने सौ से अधिक लेख राष्ट्रीय और ब्रिटिश शैक्षिक जर्नल में प्रकाशित किये।
  • सन् 1922 ई० में उन्होंने मैन इन इंडिया नामक जर्नल की स्थापना की। भारत में यह अपने समय का पहला जर्नल था।

प्र० 2. जनजातीय समुदायों को कैसे जोड़ा जाए’-इस विवाद के दोनों पक्षों के क्या तर्क थे?
उत्तर-

  • अनेक ब्रिटिश प्रशासक ऐसे भी थे जो मानवविज्ञानी थे। वे भारतीय जनजातियों में रुचि रखते थे। उनका विश्वास था कि ये आदिम लोग थे और उनकी अपनी विशिष्ट संस्कृति थी। साथ ही ये भारतीय जनजातियाँ हिंदू मुख्यधारा से काफ़ी अलग थीं।
  • उनका मत था कि समाज में इन सीधे-सादे जनजातीय लोगों का न केवल शोषण होगा बल्कि उनकी संस्कृति का पतन भी होगा।
  • उन्होंने महसूस किया कि राज्य का यह कर्तव्य है कि वे इन जनजातियों को संरक्षण दे ताकि वे अपनी जीवन विधि और संस्कृति को कायम रख सके। इसका कारण भी था, यह कि उन पर लगातार दबाव बन रहा था कि वे हिंदू संस्कृति की मुख्यधारा में अपना समायोजन करें।
  • उनका मानना था कि जनजातीय संस्कृति को बचाने का कार्य गुमराह करने की कोशिश की और इसको परिणाम जनजातियों का पिछड़ापन है।
  • घूर्ये राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने इस तथ्य पर बल दिया कि भारतीय जनजातियों को एक भिन्न सांस्कृतिक समूह की तुलना में पिछड़े हिंदू समाज’ की तरह पहचाना जाना चाहिए।
    अंतर के मुख्य बिंदु (Main Points of Difference)
  • मतभेद यह था कि मुख्यधारा की संस्कृति के प्रभाव का किस प्रकार मूल्याकंन किया जाए। संरक्षणवादियों का विश्वास था कि समायोजन को परिणाम जनजातियों के शोषण और उनकी सांस्कृतिक विलुप्तता का रूप सामने आएगा।
  • घूयें और राष्ट्रवादियों का तर्क था कि ये दुष्परिणाम केवल जनजातीय संस्कृति तक ही सीमित नहीं हैं। बल्कि भारतीय समाज के सभी पिछड़े और दलित वर्गों में समान रूप से देखे जा सकते हैं।

प्र० 3. भारत में प्रजाति तथा जाति के संबंधों पर हरबर्ट रिजले तथा जी०एस०घूर्य की स्थिति की रूपरेखा दें।
उत्तर-

  • रिजले का मानना था कि मनुष्य को उसकी शारीरिक विशिष्टताओं के आधार पर अलग भिन्न जनजातियों में वगीकृत किया जा सकता है; जैसे-खोपड़ी की चौड़ाई, नाक की लंबाई या कपाल का भार अथवा खोपड़ी का वह भाग जहाँ मस्तिष्क स्थित है।
  • रिज़ले को विश्वास था कि विभिन्न प्रजातियों के उविकास के अध्ययन के संदर्भ में भारत एक विशिष्ट प्रयोगशाला’ है। इसका कारण यह है कि जाति एक लंबे समय से विभिन्न समूहों के बीच अंतनिर्वाह को निषिद्ध करती है।
  • उच्च जातियों ने भारतीय-आर्य प्रजाति की विशिष्टताओं को ग्रहण किया जबकि निम्न जातियों में अनार्य जनजातियों, मंगोल या अन्य प्रजातियों के गुण पाये जाते हैं।
  • रिजले और अन्य विद्धानों ने सुझाव दिया कि निम्न जातियाँ ही भारत की मूल निवासी हैं। आर्यों ने उनका शोषण किया जो कहीं बाहर से आकर भारत में फले-फूले थे।
  • रिजले के तर्को से घूर्ये असहमत नहीं थे। परंतु उन्होंने इसे केवल अंशतः सत्य माना। उन्होंने इस समस्या की ओर ध्यान दिया। वस्तुतः यह समस्या, केवल औसत के आधार पर बिना परिवर्तन सोच-विचार किए किसी समुदाय पर विशिष्ट मापदंड लागू कर देने से उत्पन्न होती है। जोकि विस्तृत एवं सुव्यवस्थित नहीं था।
  • प्रजातीय शुद्धता केवल उत्तर भारत में शेष रह गई थी। इसका कारण यह था कि वहाँ अंतर्विवाह निषिद्ध था।

प्र० 4. जाति की सामाजिक मानवशास्त्रीय परिभाषा को सारांश में बताएँ।
उत्तर- जाति की सामाजिक मानवविज्ञान संबंधी परिभाषा

  • जाति खंडीय विभाजन पर आधारित है – जाति एक संस्था है। और यह खंडीय विभाजन पर आधारित है। इसका तात्पर्य यह है कि जातीय समाज कई बंद और पारस्परिक खंडों एवं उपखंडों में विभाजित है।
  • जाति सोपानिक विभाजन पर आधारित हैं – जातिगत समाज का आधार सोपानिक विभाजन है। दूसरी जाति की तुलना में प्रत्येक जाति असमान होती है।
  • जाति सामाजिक अंतक्रिया पर प्रतिबंध लगाती है – संस्था के रूप में जाति सामाजिक अंत:क्रिया पर प्रतिबंध लगाती है विशेषकर साथ बैठकर भोजन करने के संदर्भ में।
  • अस्पृश्यता की संस्था के रूप में – अस्पृश्यता की संस्था के रूप में यहाँ तक किसी जाति विशेष के व्यक्ति द्वारा छू जाने मात्र से मनुष्य अपवित्र महसूस करता है।
  • विभिन्न जातियों के लिए भिन्न-भिन्न अधि कार और कर्तव्य – सोपानिक और प्रतिबंधित सामाजिक अंत:क्रिया के सिद्धांतों का अनुसरण करते हुए जाति विभिन्न जातियों के लिए भिन्न-भिन्न अधिकार और कर्तव्य भी निर्धारित करती है।
  • व्यवसाय के चुनाव पर प्रतिबंध जाति व्यवसाय के चुनाव को भी सीमित कर देती है – जाति के समान व्यवसाय भी जन्म पर आधारित और वंशानुगत होता है।
  • जाति विवाह पर कठोर प्रतिबंध लगाती है – जाति विवाह पर कठोर प्रतिबंध लगाती है। जाति में अंतर्विवाह या जाति में ही विवाह के अतिरिक्त ‘बहिर्विवाह’ के नियम भी जुड़े रहते हैं, या किसकी शादी किससे नहीं हो सकती है।

प्र० 5. जीवंत परंपरा से डी०पी० मुकर्जी का क्या तात्पर्य है? भारतीय समाजशास्त्रियों ने अपनी परंपरा से जुड़े रहने पर बल क्यों दिया?
उत्तर-

  • डी०पी० मुकर्जी के अनुसार, वह एक परंपरा है। जो भूतकाल से कुछ प्राप्त कर उससे अपने संबंध बनाए रखती है। इसके अतिरिक्त यह नयी चीजों को भी ग्रहण करती है।
  • इस प्रकार जीवंत परंपरा में पुराने और नए तत्वों का मिश्रण है।
  • डी०पी० मुकर्जी ने जिस तथ्य पर बल दिया वह यह है कि भारतीय समाजशास्त्रीयों को जीवंत परंपरा में रुचि रखनी चाहिए ताकि इसका उचित और सार भाव प्राप्त हो सके।
  • भारतीय समाजशास्त्री निम्नलिखित विषयों को अधिक सुलभता से जान सकते है
    • आपके उम्र के बच्चों द्वारा खेला जाने वाला खेल। (लड़का/लड़की)।
    • किसी लोकप्रिय त्योहार को मनाने के तरीके।
  • भातीय समाजशास्त्रीयों का प्रथम कर्तव्य भारत की सामाजिक परंपराओं का अध्ययन करना और जानना है। डी०पी० मुकर्जी के लिए, परंपरा का अध्ययन केवल भूतकाल तक ही सीमित नहीं था। इसके विपरीत वे परिवर्तन की संवेदनशीलता से भी जुड़े थे। डी०पी० मुकर्जी ने जो भी लिखा है, वह भारतीय समाजशास्त्रीयों के लिए पर्याप्त नहीं है। सर्वप्रथम उन्हें भारतीय होना अनिवार्य है। उदाहरण के लिए उन्हें रीति-रिवाजों, रूढ़ियों, प्रथाओं और परंपराओं की जानकारी देनी है। इसका उद्देश्य है संदर्भित सामाजिक व्यवस्था को समझना एवं इसके अंदर तथा बाहर के तथ्यों की जानकारी हासिल करना।
  • डी०पी० मुकर्जी ने तर्क किया कि पाश्चात्य संदर्भ में भारतीय संस्कृति और समाज व्यक्तिवादी नहीं हैं।
  • स्वैच्छिक व्यक्तिगत कार्यों की तुलना में भारतीय सामाजिक व्यवस्था मुख्य रूप से समूह, समुदाय अथवा जाति संबंधी कार्यों के प्रति अभिमुख है।

प्र० 6. भारतीय संस्कृति तथा समाज की क्या विशष्टिताएँ हैं तथा ये बदलाव के ढाँचे को कैसे प्रभावित करते हैं?
उत्तर-

  • डी०पी० मुकर्जी ने महसूस किया कि भारत का निर्णायक और विशष्ट लक्षण इसकी सामाजिक व्यवस्था है।
  • उनके अनुसार भारत में इतिहास, राजनीति और अर्थशास्त्र पश्चिम के मुकाबले और आयाम के दृष्टिकोण से कम विकसित थे।
  • पाश्चात्य अर्थ में भारतीय संस्कृति और समाज व्यक्तिवादी नहीं है लेकिन इनमें सामूहिक व्यवहार के प्रतिमान निहित हैं।
  • डी०पी० मुकर्जी का मत है कि भारतीय समाज और संस्कृति का संबंध केवल भूतकाल तक ही सीमित नहीं है। इसे अनुकूलन की प्रक्रिया में भी विश्वास है।
  • डी०पी० मुकर्जी का मत है कि भारतीय संदर्भ में वर्ग संघर्ष जातीय परंपराओं से प्रभावित होता है एवं उसे अपने में सम्मिलित कर लेता है, जहाँ नवीन वर्ग संघर्ष अभी स्पष्ट रूप से उभर कर सामने नहीं
    आया है।
  • डी०पी० मुकर्जी को भारतीय परंपरा जैसे श्रुति, स्मृति और अनुभव में विश्वास था। इन सब में आखिरी अनुभव या व्यक्तिगत अनुभव क्रांतिकारी सिद्धांत है।
  • सामान्यीकृत अनुभव या समूहों का सामूहिक अनुभव भारतीय समाज में परिवर्तन का सर्वप्रमुख सिद्धांत था।
  • उच्च परंपराएँ स्मृति और श्रुति में केंद्रित थी, लेकिन समय-समय पर उन्हें समूहों और संप्रदायों के सामूहिक अनुभवों द्वारा चुनौती दी जा रही है। उदाहरण के लिए, भक्ति आंदोलन। । डी०पी० मुकर्जी के अनुसार, भारतीय संदर्भ में बुद्धि-विचार परिवर्तन के लिए प्रभावशाली शक्ति नहीं है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अनुभव एवं प्रेम परिवर्तन के उत्कृष्ट कारक हैं।
  • भारतीय परिप्रेक्ष्य में संघर्ष और विद्रोह सामूहिक अनुभवों के आधार पर कार्य करते हैं।

प्र० 7. कल्याणकारी राज्य क्या है? ए०आर० देसाई कुछ देशों द्वारा किए गए दावों की आलोचना क्यों करते हैं?
उत्तर-

  • एक कल्याणकारी राज्य वह राज्य है जो विभिन्न परिप्रेक्ष्यों से संबंधित व्यक्तियों के कल्याण का कार्य करता है; जैसे-व्यक्तियों का राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, विकासात्मक आदि। ए०आर० देसाई की रुचि आधुनिक पूँजीवादी राज्य के महत्वपूर्ण विषय में था। देसाई ने कल्याणकारी राज्य की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं
  • कल्याणकारी राज्य एक सकारात्मक राज्य होता है। इसका अर्थ है कि उदारवादी राजनीति के शास्त्रीय सिद्धांत की ‘Laissez Faire’ नीति के विपरीत, कानून और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए कल्याणकारी राज्य केवल न्यूनतम कार्य ही नहीं करता है।
  • कल्याणकारी राज्य की अर्थव्यवस्था मिश्रित होती है। मिश्रित अर्थव्यवस्था का अर्थ है-ऐसी अर्थव्यवस्था जहाँ निजी पूँजीवादी कंपनियाँ और राज्य या सामूहिक कंपनियाँ दोनों साथ मिलकर कार्य करती हों।
  • एक कल्याणकारी राज्य न तो पूँजीवादी बाज़ार को ही समाप्त करना चाहता है एवं न ही यह उद्योगों और दूसरे क्षेत्रों में जनता को निवेश करने से वंचित रखता है। कुल मिलाकर सरकारी क्षेत्र जरूरत की वस्तुओं तथा सामाजिक अधिसंरचना पर ध्यान देता है। इसकी तरफ निजी उद्योगों का वर्चस्व उपभोक्ता वस्तुओं पर कायम रहता है।
  • देसाई कुछ ऐसे तरीकों का सुझाव देते हैं जिनके आधार पर कल्याणकारी राज्य द्वारा उठाये गए कदमों का परीक्षण किया जा सकता है। ये हैं।
    (i) गरीबी, भेदभाव से मुक्ति एवं सभी नागरिकों की सुरक्षा – कल्याणकारी राज्य गरीबी, सामाजिक भेदभाव से मुक्त और अपने सभी नागरिकों की सुरक्षा की व्यवस्था करता है।
    (ii) आय की समानता – कल्याणकारी राज्य आय संबंधी असमानता को दूर करने का प्रयास करता है। इसके लिए यह अमीरों की आय गरीबों में पुनः बाँटता है, धन के संग्रह को रोकता है।
    (iii) समुदाय की वास्तविक जरूरतों की प्राथमिकता – कल्याणकारी राज्य अर्थव्यवस्था को इस प्रकार परिवर्तित करता है जहाँ समाज की वास्तविक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए पूँजीवादियों को अधिक लाभ कमाने की मनोवृत्ति पर रोक लग जाय।
    (iv) स्थायी विकास – कल्याणकारी राज्य स्थायी विकास के लिए आर्थिक मंदी और तेजी से मुक्त व्यवस्था सुनिश्चित करता है।
    (v) रोजगार – यह सबके लिए रोजगार उपलब्ध कराता है।

प्र० 8. समाजशास्त्रीय शोध के लिए ‘गाँव’ को एक विषय के रूप में लेने पर एम०एन० श्रीनिवास तथा लुई डयूमों ने इसके पक्ष तथा विपक्ष में क्या तर्क दिए हैं?
उत्तर-

  • एम०एन० श्रीनिवास ने भारतीय गाँवों को समाजशास्त्रीय शोध/अनुसंधान के विषय के रूप में चुनाव किया। इसका कारण यह था कि उनकी रुचि ग्रामीण समाज से जीवनभर बनी रही।
  • उनके लेख दो प्रकार के हैं-गाँवों में किए गए क्षेत्रीय कार्यों का नृजातीय ब्यौरा तथा इन ब्यौरों पर परिचर्चा।
  • दूसरे प्रकार के लेख में सामाजिक विश्लेषण की एक इकाई के रूप में भारतीय गाँव पर ऐतिहासिक और अवधारणात्मक परिचर्चाएँ शामिल हैं।
  • श्रीनिवास का मत था कि गाँव एक आवश्यक सामाजिक पहचान है। इतिहास साक्षी है कि गाँवों ने अपनी एक एकीकृत पहचान बना रखी है। ग्रामीण समाज में ग्रामीण एकता का अत्यधिक महत्व है।
  • श्रीनिवास ने ब्रिटिश प्रशासक मानव वैज्ञानिकों की आलोचना की। इसका कारण यह था कि उन्होंने भारतीय गाँव को स्थिर, आत्मनिर्भर, छोटे गणतंत्र के रूप में चित्रित किया था।
  • गाँव कभी भी आत्मनिर्भर नहीं थे। वस्तुतः वे विभिन्न प्रकार के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक संबंधों से जुड़े हुए थे।

प्र० 9. भारतीय समाजशास्त्र के इतिहास में ग्रामीण अध्ययन का क्या महत्व है? ग्रामीण अध्ययन को आगे बढ़ाने में एम०एन० श्रीनिवास की क्या भूमिका रही?
उत्तर-

  • भारत गाँवों का देश है।
  • 65 प्रतिशत से अधिक लोग भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं।
  • यदि हम पाश्चात्य सामाजशास्त्रीयों के अपूर्ण और मिथ्या, तथ्यात्मक एवं शिक्षा संबंधी-जानकारियों को चुनौती देना चाहते हैं, तो गाँवों का अध्ययन आवश्यक है। ब्रिटिश सरकार के औपनिवेशिक हित, विचारधारा और नीतियों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपना शोध कार्य सम्पन्न किया था।
  • एम०एन० श्रीनिवास ने भारतीय समाज और भारत के ग्रामीण जीवन से संबंधित कुछ विचारों पर महत्वपूर्ण लेख लिखे हैं।
  • एम०एन० श्रीनिवास की रुचि भारतीय गाँव और भारतीय समाज में जीवनभर बनी रही।
  • 1950 – 1960 के दौरान श्रीनिवास ने ग्रामीण समाज से संबंधित विस्तृत नृजातीय व्यौरों का लेखा-जोखा को तैयार करने में सामूहिक परिश्रम को प्रोत्साहित तथा समन्वित किया।

Hope given Understanding Society Class 11 Solutions Chapter 5 are helpful to complete your homework.

NCERT Solutions for Class 11 History Chapter 6 The Three Orders (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 History Chapter 6 The Three Orders (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 History Chapter 6 The Three Orders (Hindi Medium)

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 11 History in Hindi Medium. Here we have given NCERT Solutions for Class 11 History Chapter 6 The Three Orders.

अभ्यास प्रश्न (पाठ्यपुस्तक से) (NCERT Textbook Questions Solved)

संक्षेप में उत्तर दीजिए

प्र० 1. फ्रांस के प्रारंभिक सामंती सामाज के दो लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर फ्रांस के प्रारंभिक सामंती समाज के दो लक्षण निम्नलिखित हैं

  • फ्रांसीसी समाज मुख्य रूप से तीन वर्गों में विभाजित था-(i) पादरी, (ii) अभिजात वर्ग, (ii) कृषक वर्ग। पश्चिमी चर्च के अध्यक्ष पोप होते थे और कैथोलिक चर्च से संबंध रखते थे। चर्को तथा पादरियों पर राजा का निंयत्रण नहीं रहता था। अभिजात वर्ग राजा पर निर्भर रहता था, किंतु तृतीय वर्ग की स्थिति अत्यंत दयनीय थी।
  • संसार में सर्वप्रथम सामंतवाद का उदय फ्रांस में हुआ। किसान अपने खेतों पर काम के रूप में सेवा प्रदान करते थे और जरूरत पड़ने पर वे उन्हें सैनिक सुरक्षा प्रदान करते थे।

प्र० 2. जनसंख्या के स्तर में होने वाली लंबी अवधि के परिवर्तनों ने किस प्रकार यूरोप की अर्थव्यवस्था और समाज को प्रभावित किया?
उत्तर कृषि में विस्तार के साथ ही उससे संबद्ध तीन क्षेत्रों-जनसंख्या, व्यापार और नगरों का विस्तार हुआ। यूरोप की
तत्कालीन जनसंख्या जो 1000 ई० में लगभग 420 लाख थी, 1200 ई० में बढ़कर 620 लाख और 1300 ई० में बढ़कर 730 लाख हो गई। बेहतर आहार के कारण लोगों की जीवन की अवधि बढ़ गई। तेरहवीं सदी तक एक औसत यूरोपीय आठवीं सदी की अपेक्षा दस वर्ष ज्यादा जीवन जी सकता था। पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों और बालिकाओं की जीवन अवधि लघु होती थी क्योंकि पुरुषों को बेहतर भोजन मिलता था।

ग्यारहवीं शताब्दी में जब कृषि का विस्तार हुआ और वह अधिक जनसंख्या का भार सहने में सक्षम हुई तो नगरों की तादाद में पुनः बढ़ोतरी होने लगी। नगरों में लोग, सेवा के बजाय लार्डो को, जिनकी भूमि पर वे बसे थे, उन्हें कर देने लगे। नगरों ने कृषक परिवारों के जवान (युवा) सदस्यों को वैतनिक कार्य और लार्ड के नियंत्रण से मुक्ति की अधिक संभावनाएँ प्रदान कीं। तेरहवीं शताब्दी के अंत तक पिछले तीन सौ वर्षों में उत्तरी यूरोप में तेज ग्रीष्म ऋतु का स्थान तीव्र ठंडी ऋतु ने ले लिया। परिणामतः पैदावार की अवधि कम हो गयी और ऊँची भूमि पर फसल उगाना कठिन हो गया। ऑस्ट्रिया व सर्बिया की चाँदी की खानों के उत्पादन में कमी के कारण धातु में कमी आई और इससे व्यापार प्रभावित हुआ। इसके अतिरिक्त, 1347 और 1350 के मध्य लोग प्लेग जैसी महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुए। आधुनिक आकलन के आधार पर यूरोप की आबादी का करीब 20% भाग इस दौरान काल-कवलित हो गया जबकि कुछ स्थानों पर मरने वालों की संख्या वहाँ की जनसंख्या के 40% तक थी। इस प्रकार जनसंख्या में परिवर्तनों के फलस्वरूप यूरोप की अर्थव्यवस्था और समकालीन समाज प्रभावित हुआ।

प्र० 3. नाइट एक अलग वर्ग क्यों बने और उनका पतन कब हुआ?
उत्तर यूरोप में नौवीं सदी के दौरान युद्ध अधिकतर होते रहते थे। शौकिया कृषक सैनिक इस युद्ध के लिए पर्याप्त नहीं थे और कुशल अश्वसेना की आवश्यकता थी। इसने एक नए वर्ग को उत्पन्न किया जिसे नाइट कहा जाता था। वे लार्ड से उस प्रकार संबद्ध थे जैसे लार्ड राजा से संबद्ध था। लार्ड नाइट को जमीन देता था तथा उसकी सुरक्षा का वचन देता था। उसके बदले में नाइट अपने लार्ड को एक निश्चित धनराशि देता था और युद्ध में उसकी तरफ से लड़ने का वचन देता था। बारहवीं सदी के शुरुआती वर्षों में नाइट समूह का पतन हो गया।

प्र० 4. मध्यकालीन मठों के प्रमुख कार्य कौन-कौन से थे?
उत्तर मध्यकाल में चर्च के अतिरिक्त धार्मिक गतिविधियों के केंद्र मठ भी थे। मठों को निर्माण आबादी से दूर किया जाता था। मठों में भिक्षु निवास करते थे। वे प्रार्थना करने के अतिरिक्त, अध्ययन-अध्यापन तथा कृषि भी करते थे। मठों का प्रमुख काम एक स्थान से दूसरे स्थान तक धर्म का प्रचार-प्रसार करना था। मठों में अध्ययन के अतिरिक्त अन्य कलाएँ भी सीखी जाती थीं। आबेस हिल्डेगार्ड प्रतिभासंपन्न संगीतज्ञ था। उसने चर्च की प्रार्थनाओं में सामुदायिक गायन की परंपरा के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया। तेरहवीं सदी से भिक्षुओं के कुछेक समूह, जिन्हें फ्रायर कहते थे, मठों में रहने का फैसला किया।

चौदहवीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों तक मठवाद के महत्त्व, उद्देश्यों के बारे में कुछ शंकाएँ व्यक्त की जाने लगीं। मठों के भिक्षुओं का मुख्य कार्य ईश्वर की आराधना करना तथा जनसाधारण को चर्च के सिद्धांतों के विषय में समझाना था। वे जनसामान्य के नैतिक जीवन को ऊँचा उठाने का कार्य करते थे। उन्हें शिक्षित करने तथा रोगियों की सेवा करने का प्रयास करते थे।

संक्षेप में निबंध लिखिए

प्र० 5. मध्यकालीन फ्रांस के नगर में एक शिल्पकार के एक दिन के जीवन की कल्पना कीजिए और इसका वर्णन | कीजिए।
उत्तर विद्यार्थी अपने अध्यापक की सहायता से स्वयं करने का प्रयत्न करें।

प्र० 6. फ्रांस के सर्फ और रोम के दास के जीवन की दशा की तुलना कीजिए।
उत्तर फ्रांस के सर्फ़ ओर रोम के दास के जीवन में शोषण की प्रमुखता थी, किंतु उन दोनों के जीवन-शैली में कुछ अंतर भी मौजूद थे।

रोमन समाज के तीन प्रमुख वर्गों में से सबसे निचला दर्जा दास वर्ग का था, जिसे पूर्णरूप से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्वतंत्रता के अधिकारों से अलग रखा गया था। उसे सामाजिक न्याय की प्राप्ति नहीं थी। रोमन दासों के साथ पशुओं जैसा व्यवहार किया जाता था। उन्हें जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं से भी वंचित रखा गया था, परंतु कालांतर में उच्च वर्ग द्वारा उनके प्रति कुछ सहानुभूति दिखलाई गई। इसके साथ ही, दास-प्रथा का सबसे बुरा प्रभाव वहाँ के समाज पर पड़ा। दासों को लेकर रोमन समाज में प्रायः संघर्ष होते रहते थे। कई बार मनोरंजन के लिए उन्हें जंगली पशुओं के सामने डाल दिया जाता था। दासों की तत्कालीन दशा बद-से-बदतर थी।

फ्रांस में सर्फ़ दास किसान थे और यह किसानों का निम्नतम वर्ग था। इनकी समाज में काफी संख्या थी। उन पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगे हुए थे। उदाहरण के लिए, उन्हें अपने मालिकों से खेती के लिए भूमि उपज का एक निश्चित भाग उन्हें देना पड़ता था। सर्कों को अपने भूस्वामियों के खेतों पर बिना पैसे के काम यानी बेगार करना पड़ता था। और मज़दूरी दिए बिना ही उनसे मकान बनवाये जाते थे, लकड़ी कटवाई-चिराई की जाती थी, पानी भराने जैसे घरेलू काम भी करवाये जाते थे। यदि वे आजाद या मुक्त होने का प्रयत्न करते थे तो उन्हें पकड़कर कठोर सजा दी जाती थी। इस प्रकार रोमन दासों वे फ्रांस के सफ़ की जीवन-शैली में कोई विशेष अंतर नहीं था। हम कह सकते हैं कि दोनों का जीवन पशु जैसा ही था।

Hope given NCERT Solutions for Class 11 History Chapter 6 are helpful to complete your homework.

NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 3 Liberalisation, Privatisation and Globalisation: An Appraisal (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 3 Liberalisation, Privatisation and Globalisation An Appraisal (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 3 Liberalisation, Privatisation and Globalisation: An Appraisal (Hindi Medium)

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 11 Economics. Here we have given NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Developments Chapter 3 Liberalisation, Privatisation and Globalisation: An Appraisal.

प्रश्न अभ्यास
(पाठ्यपुस्तक से)

प्र.1. भारत में आर्थिक सुधार क्यों आरंभ किए गए?
उत्तर : आर्थिक सुधार निम्न कारणों से आरंभ किए गए
(क) 1991 में भारत एक आर्थिक संकट का सामना कर रहा था।
(ख) सरकारी राजस्व से अधिक सरकारी व्यय ने भारी उधारी को जन्म दिया। 1991 में राष्ट्रीय ऋण सकल राष्ट्रीय उत्पाद का 60% था। सरकार ब्याज तक देने में असमर्थ थी। इसका मुख्य कारण विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र में संसाधन प्रबंधन की अक्षमता थी।
(ग) विदेशी मुद्रा भंडार जिन्हें हम आयातों के भुगतान के लिए रखते हैं, इतने कम हो गए की वे केवल तीन सप्ताह के लिए पर्याप्त थे।
(घ) खाड़ी युद्ध के कारण कीमतों के बढ़ने की दर दोहरे अंक में पहुँच गई, जिसने संकट को और बढ़ा दिया। मुद्रास्फीति की दर 12% प्रति वर्ष था।
(ङ) घटिया प्रबंधन के कारण बहुत से सार्वजनिक क्षेत्र के उपकर्म घाटे में चल रहे थे। इस संकट का जवाब सरकार ने 1991 की नई आर्थिक नीति की उद्घोषणा करके दिया।

प्र.2. विश्व व्यापार संगठन का सदस्य होना क्यों आवश्यक है?
उत्तर : आई.एम.एफ. और विश्व बैंक से ऋण प्राप्ति के लिए और अन्य देशों के साथ मुफ्त व्यापार करने के लिए विश्व व्यापार संगठन का सदस्य होना आवश्यक है। विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बने बिना एक देश वैश्वीकृत होते विश्व व्यापार का लाभ नहीं उठा सकता।

प्र.3. भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय क्षेत्र में नियंत्रक की भूमिका से स्वयं को सुविधाप्रदाता की भूमिका अदा करने में क्यों परिवर्तित किया?
उत्तर : भारतीय रिज़र्व बैंक नियंत्रक की भूमिका से स्वयं को सुविधाप्रदाता की भूमिका अदा करने का बड़ा परिवर्तन किया। पहले एक नियंत्रक के रूप में, आर.बी.आई. खुद ब्याज तय करता था तथा प्रबंधकीय निर्णयों को प्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित करता था। परंतु उदारीकरण के उपरांत इसने सुविधाप्रदाता की भूमिका निभाई जिसके अंतर्गत ब्याज दरों को बाज़ार बलों द्वारा निर्धारित होने के लिए स्वतंत्र कर दिया गया तथा प्रत्येक वाणिज्यिक बैंक को प्रबंधन निर्णयों की स्वतंत्रता दे दी गई। उन्हें बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाना आवश्यक था। उदारीकरण के साथ बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ गई। अतः बाज़ार से उत्तम प्राप्ति के लिए बैंकों को प्रबंधन निर्णय लेने की स्वतंत्रता देना आवश्यक हो गया।

प्र.4, रिज़र्व बैंक व्यावसायिक बैंकों पर किस प्रकार नियंत्रण रखता है?
उत्तर : रिज़र्व बैंक व्यावसायिक बैंकों पर निम्न प्रकार से नियंत्रण रखता है

(क)
यह उस न्यूनतम रोकड़ की राशि/अनुपात निर्धारित करता है जो हर व्यावसायिक बैंक को रिज़र्व बैंक के पास रखनी पड़ती है। इसे नकद आरक्षित अनुपात कहा जाता है।

(ख)
यह उस न्यूनतम अनुपात का निर्धारण करता है जो नकद था तरल परिसंपत्तियों के रूप में एक बैंक को अपने पास रखना होता है। इसे वैधानिक तरलता अनुपात कहते हैं।

(ग)
रिज़र्व बैंक वह ब्याज दर निर्धारित करता है जिस पर रिज़र्व बैंक व्यावसायिक बैंकों के विनिमय बिलों को छूट देगा। इसे बैंक दर कहते हैं।

प्र.5. रुपयों के अवमूल्यन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर : नियंत्रण प्राधिकारी के निर्णय से जब विनिमय दर में गिरावट आती है जिससे एक मुद्रा का मूल्य अन्य मुद्रा की तुलना में कम हो जाता है तो उसे अवमूल्यन कहते हैं। इसके परिणामस्वरूप, आयात महँगे और निर्यात सस्ते हो जाते हैं। अतः निर्यात बढ़ जाते हैं। और आयात कम हो जाते हैं। इस तरह व्यापार का संतुलन ठीक हो जाता है।

प्र.6. इनमें भेद करें:
(क) युक्तियुक्त और अल्पांश विक्रय
(ख) द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार
(ग) प्रशुल्क एवं अप्रशुल्क अवरोधक
उत्तर :
NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 3 (Hindi Medium) 1
NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 3 (Hindi Medium) 2

प्र.7. प्रशुल्क क्यों लगाए जाते हैं?
उत्तर : प्रशुल्क घरेलू वस्तुओं की तुलना में आयातित वस्तुओं को महँगा बनाने के लिए लगाए जाते हैं। इससे घरेलू वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है तथा विदेशी वस्तुओं की माँग कम हो जाती है। यह घरेलू उद्योग की रक्षा के दृष्टिकोण से लगाए जाते हैं।

प्र.8. परिमाणात्मक प्रतिबंधों का क्या अर्थ होता है?
उत्तर : यह भुगतान संतुलन (बी.ओ.पी.) के घाटे को कम करने और घरेलू उद्योग की रक्षा के लिए आयात पर लगाई गई कुल मात्रा या कोटे के रूप में प्रतिबंध को दर्शाता है।

प्र.9. ‘लाभ कमा रहे सार्वजनिक उपक्रमों को निजीकरण कर देना चाहिए। क्या आप इस बात से सहमत हैं? क्यों?
उत्तर : नहीं, इसका विपरीत है, हमें घाटे में चल रहे सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण कर देना चाहिए। यदि हम लाभ कमा रहे सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण करेंगे तो यह सरकारी राजस्व के लिए नुकसान होगा जो देश के विकास के लिए प्रयोग किया जा सकता था। सार्वजनिक उपक्रमों को प्रतिस्पर्धी, आधुनिकीकृत और दक्ष होने के लिए लाभ की ज़रूरत है।

प्र.10. क्या आपके विचार से बाह्य प्रापण भारत के लिए अच्छा है? विकसित देशों में इसका विरोध क्यों हो रहा है?
उत्तर : बाह्य प्रापण भारत के लिए अच्छा है क्योंकि
(क) यह कई भारतीयों को रोजगार प्रदान कर रहा है।
(ख) यह बहुराष्ट्रीय कंपनियों के माध्यम से देश में विदेशी मुद्रा ला रहा है। विकसित देश इसका विरोध कर रहे हैं क्योंकि
(क) इससे विकसित और विकासशील देशों के बीच आय की असमानता कम हो जाएगी।
(ख) यह उनके अपने देश में रोजगार के अवसर कम कर रहा है।

प्र.11. भारतीय अर्थव्यवस्था में कुछ विशेष अनुकूल परिस्थितियाँ हैं जिनके कारण यह विश्व का बाह्य प्रापण केंद्र बन रहा है। अनुकूल परिस्थितियाँ क्या हैं?
उत्तर : भारत एक विश्व बाह्य प्रापण केंद्र बन रहा है क्योंकि
(क) भारत में सस्ते दरों पर पर्याप्त कुशल जनशक्ति उपलब्ध है।
(ख) भारत में ऐसी सरकारी नीतियाँ हैं जो बाह्य प्रापण के पक्ष में हैं।
(ग) भारत विकसित देशों से दुनिया के एक अन्य भाग में स्थित है जिससे समय का अंतराल है।

प्र.12. क्या भारत सरकार की नवरत्न नीति सार्वजनिक उपक्रमों के निष्पादन को सुधारने में सहायक रही है? कैसे?
उत्तर :
सरकार ने कुछ लाभ कमा रही सार्वजनिक उपक्रमों को विशेष स्वायत्ता देने का निर्णय किया। 1996 में ‘नवरत्न नीजी’ अपनाई गई जिसके अंतर्गत 9 सर्वाधिक लाभ कमा रही सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को नवरत्न का दर्जा दिया गया तथा अन्य 97 लाभ कमाने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को ‘लघुरत्न’ कहा गया।

‘नवरत्न’ और ‘लघुरत्न’ नाम के अलंकरण के बाद इन कंपनियों के निष्पादन में अवश्य ही सुधार आया है। उन्हें अधिक प्रचालन और प्रबंधकीय स्वायत्ती दी गई जिससे उनकी दक्षता और उसके द्वारा मुनाफे में वृद्धि हुई है।

प्र.13. सेवा क्षेत्रक के विकास के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारक कौन-से रहे हैं?
उत्तर : सेवा क्षेत्रक के विकास के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी रहे हैं
भारत का एक मज़बूत औद्योगिक आधार नहीं है। अतः सुधार अवधि में द्वितीयक क्षेत्रक ने अधिक विकास नहीं किया। विदेशी निवेशक कृषि की भारतीय प्रकृति और जोखिम शामिल होने के कारण, उन्हें कृषि में और निवेश में कोई रुचि नहीं थी। उन्हें भारत अनुबंधित सेवाओं के लिए सर्वाधिक उपयुक्त लगता था।

प्र.14. सुधार प्रक्रिया से कृषि क्षेत्रक दुष्प्रभावित हुआ लगता है। क्यों?
उत्तर : यह बिल्कुल सही कहा गया है कि सुधार प्रक्रिया से कृषि क्षेत्रक दुष्प्रभावित हुआ है।

(क)
सुधार अवधि के दौरान कृषि में सार्वजनिक निवेश विशेष रूप से सिंचाई, बिजली, सड़क, बाजार, लिकेज, अनुसंधान और विस्तार के क्षेत्र में कम हुआ है।

(ख)
उर्वरक सहायिकी हटाने से उत्पादन की लागत बढ़ गई है जिसने छोटे और सीमांत किसानों को दुष्प्रभावित किया है।

(ग)
इस क्षेत्र में बहुत जल्दी जल्दी निति परिवर्तन हुए हैं जिसमें भारतीय किसानों को दुष्प्रभावित किया है क्योंकि अब उन्हें अधिक प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है।

(घ)
कृषि में निर्यात उन्मुख रणनीति के कारण उत्पादन घरेलू बाजार के बजाय निर्यात बाजार के लिए हो रहा है। इससे खाद्यान्न फसलों के उत्पादन के बदले नकदी फसलों पर ध्यान केंद्रित करवाया। इससे खाद्यान्नों की कीमतों पर दबाव बढ़ गया।

प्र.15, सुधार काल में औद्योगिक क्षेत्रक के निराशाजनक निष्पादन के क्या कारण रहे हैं?
उत्तर : औद्योगिक क्षेत्रक का सुधार अवधि में निराशाजनक निष्पादन रहा है क्योंकि

(क)
सस्ते आयात- यह इस तथ्य के कारण है कि विदेशों से आने वाले सस्ते आयातों ने भारतीय बाजार पर कब्जा कर लिया और घरेलू उत्पादकों को अधिक प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा।

(ख)
बुनियादी ढाँचे की कमी- निवेश में कमी के कारण आधारभूत सुविधाएँ, जैसे-बिजली आपूर्ति अपर्याप्त बनी रही।

(ग)
विकासशील देशों में रोजगार के प्रतिकूल हालात– वैश्वीकरण ने रोजगार की स्थिति के संदर्भ में घरेलू अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है परंतु रोज़गार के हालात प्रतिकूल हैं।

(घ)
अनुचित वैश्वीकरण- भारत जैसे विकासशील देशों की अब भी उच्च अप्रशुल्क अवरोधकों के कारण विकसित देशों के बाजार तक पहुँच नहीं है।

प्र.16. सामाजिक न्याय और जन-कल्याण के परिपेक्ष्य में भारत के आर्थिक सुधारों पर चर्चा करें।
उत्तर : जब हम आर्थिक सुधारों को सामाजिक न्याय और जन-कल्याण के परिप्रेक्ष्य में चर्चा करते हैं तो आर्थिक सुधारों को हानिकारक पाते हैं। अपने दृष्टिकोण के लिए हम निम्नलिखित कारण दे सकते हैं

(क)
हालाँकि सुधार अवधि में विकास दरों में वृद्धि हुई है परंतु यह एक व्यवसाय रहित वृद्धि रही है। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ इस बात को अनदेखा करते हुए कि भारत श्रम प्रधान देश है, पूँजी प्रधान तकनीकों का प्रयोग करती हैं।

(ख)
सुधारों ने निवेश की कमी के कारण कृषि को दुष्प्रभावित किया है तथा इस क्षेत्रक के वृद्धि दरों में सुधार अवधि में कमी आई है।

(ग)
सुधारों ने दुर्लभ संसाधनों का गलत आबंटन किया है। एक भारत जैसा देश जहाँ एक व्यक्ति पाँचवाँ हिस्सा अपनी न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं है, वह माल, कुत्ते के भोजन, चॉकलेट और आइसक्रीम पर निवेश कर रहा है।

(घ)
भारत के छोटे उत्पादक विशाल अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा बनाए रखने में असफल रहे हैं। अतः उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा।

(ङ)
जिन सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों का निजीकरण ले गया उसके कर्मचारियों के लिए रोजगार स्थितियाँ बदतर हो गई।

(च)
सुधारों ने एक दोहरी अर्थव्यवस्था को जन्म दिया है जिसके अंतर्गत हम विश्व स्तर के अस्पताल और असहनीय सरकारी अस्पताल, विश्व स्तर के स्कूल और तम्बू में चलाए जा रहे स्कूल एक साथ देखे जा सकते हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने महत्त्वपूर्ण क्षेत्र, जैसे-शिक्षा, स्वास्थ्य आदि में कोई निवेश नहीं किया और यदि किया भी तो ऐसा जो केवल भारत के अमीर वर्ग के लिए है।

Hope given Indian Economic Developments Class 11 Solutions Chapter 3 are helpful to complete your homework.

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 Measures of Central Tendency (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 Measures of Central Tendency (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 Measures of Central Tendency (Hindi Medium)

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 11 Economics. Here we have given NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 Measures of Central Tendency.

प्रश्न अभ्यास
(पाठ्यपुस्तक से)

प्र.1. निम्नलिखित स्थितियों में कौन सा औसत उपयुक्त होगा?

(क) तैयार वस्त्रों के औसत आकार।
(ख) एक कक्षा के छात्रों की औसत बौद्धिक प्रतिभा।
(ग) एक कारखाने में प्रति पाली औसत उत्पादन।
(घ) एक कारखाने में औसत मजदूरी।
(ङ) जब औसत से निरपेक्ष विचलनों का योग न्यूनतम हों।
(च) जब चरों की मात्रा अनुपात में हो।
(छ) मुक्तांत बारबारता बंटने के मामले में

उत्तर

(क) भूयिष्ठक।
(ख) भूयिष्ठक
(ग) माध्य
(घ) माध्य
(ङ) मध्यिका
(च) माध्य
(छ) मध्यिका

प्र.2. प्रत्येक प्रश्न के सामने दिये गये बहुविकल्पों में से सर्वाधिक उचित विकल्प को चिह्नित करें:

(i) गुणात्मक मापन के लिए सर्वाधिक उपयुक्त औसत है:

(क) समांतर माध्य।
(ख) मध्यिका
(ग) बहुलक
(घ) ज्यामितीय माध्ये
(ङ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

उत्तर (ख) मध्यिका

(ii) चरम मदों की उपस्थिति से कौन सा औसत सर्वाधिक प्रभावित होता है?

(क) मध्यिका
(ख) बहुलक
(ग) समांतर माध्य
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं

उत्तर (ग) समांतर माध्य

(iii) समांतर माध्य से मूल्यों के किसी समुच्चय के विचलन का बीजगणितीय योग है

(क)
(ख) 0
(ग) 1
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

उत्तर (ग) 1

प्र.3. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही है या गलत–

(क) मध्यिका से मदों के विचलनों का योग शून्य होता है।
(ख) श्रृंखलाओं की तुलना के लिए मात्र औसत ही पर्याप्त नहीं है।
(ग) समांतर माध्य एक स्थैतिक मूल्य है।
(घ) उच्च चतुर्थक शीर्ष 25 प्रतिशत मदों का निम्नतम मान है।
(ङ) मध्यिका चरम प्रेक्षणों द्वारा अनुचित रूप से प्रभावित होती है।

उत्तर

(क) गलत
(ख) सही
(ग) गलत
(घ) सही
(ङ) गलत।

प्र.4. नीचे दिए गए आँकड़ों का समांतर माध्य 28 है, तो (क) लुप्त आवृत्ति का पता करें, और (ख) श्रृंखला की मध्यिका ज्ञात करें।

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 (Hindi Medium) 1
उत्तर लुप्त आवृत्ति का पता करना

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 (Hindi Medium) 2

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 (Hindi Medium) 3

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 (Hindi Medium) 4

प्र.5. निम्नलिखित सारणी में एक कारखाने 10 मजदूरों की दैनिक आय दी गयी है। इसका समांतर माध्य ज्ञात कीजिए।
NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 (Hindi Medium) 5
उत्तर
NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 (Hindi Medium) 6

प्र.6. निम्नलिखित सूचना 150 परिवारों की दैनिक आय से संबद्ध है। इससे समांतर माध्य का परिकलन कीजिए।
NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 (Hindi Medium) 7
उत्तर
NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 (Hindi Medium) 8

प्र.7. नीचे एक गाँव के 380 परिवारों की जोतों का आकार दिया गया है। जोत का मध्यिका आकार ज्ञात कीजिए।
NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 (Hindi Medium) 9
NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 (Hindi Medium) 10
उत्तर
NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 (Hindi Medium) 11

प्र.8. निम्नलिखितश्रृंखला किसी कंपनी में नियोजित मजदूरों की दैनिक आय से संबद्ध है। अभिकलन कीजिए:

(क) निम्नतम 50% मजदूरों की उच्चतम आय
(ख) शेष 25% मजदूरों द्वारा अर्जित न्यूनतम आय और
(ग) निम्नतम 25% मजदूरों द्वारा अर्जित अधिकतम आय

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 (Hindi Medium) 12

सकेतः माध्य, निम्न चतुर्थक तथा उच्च चतुर्थक को अभिकलन कीजिए।
उत्तर

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 (Hindi Medium) 13

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 (Hindi Medium) 14

NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 (Hindi Medium) 15

प्र.9. निम्न सारणी में किसी गाँव के 150 खेतों में गेहूं की प्रति हेक्टेयर पैदावार दी गयी है। समांतर माध्य मध्यिका तथा बहुलक के मान की गणना कीजिए।
NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 (Hindi Medium) 16
उत्तर
NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 (Hindi Medium) 17
NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 (Hindi Medium) 18
NCERT Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 5 (Hindi Medium) 19

Hope given Statistics for Economics Class 11 Solutions Chapter 5 are helpful to complete your homework.

NCERT Solutions for Class 11 History in Hindi Medium and English Medium

NCERT Solutions for Class 11 History (इतिहास) : Themes in World History

Detailed, Step-by-Step NCERT Solutions for Class 11 History Textbook Questions and Answers of Themes in World History in Hindi Medium and English Medium were solved by Expert Teachers as per NCERT (CBSE) Book guidelines covering each topic in chapter to ensure complete preparation.

CBSE Class 11th History NCERT Solutions in Hindi Medium and English Medium

Class 11 History NCERT Chapters Solutions in English Medium

History Class 11 NCERT Solutions in Hindi Medium

NCERT Solutions of Class 11 History: (इतिहास) : Themes in World History

NCERT Solutions for Class 11 Sociology Understanding Society Chapter 4 Introducing Western Sociologists (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Sociology Understanding Society Chapter 4 Introducing Western Sociologists (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Sociology Understanding Society Chapter 4 Introducing Western Sociologists (Hindi Medium)

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 11 Sociology. Here we have given NCERT Solutions for Class 11 Sociology Understanding Society Chapter 4 Introducing Western Sociologists.

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न [NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED]

प्र० 1. बौद्धिक ज्ञानोदय किस प्रकार समाजशास्त्र के विकास के लिए आवश्यक है?
उत्तर-
(i) 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध और 18वी शताब्दी में पश्चिमी यूरोप में संसार के विषय में सोचने-विचारने के मौलिक दृष्टिकोण का जन्म हुआ। यह ज्ञानोदय अथवा प्रबोधन के नाम से जाना जाता है।
(ii) विवेकपूर्ण और आलोचनात्मक ढंग से सोचने की प्रवृत्ति ने मनुष्य को सभी प्रकार के ज्ञान का उत्पादन और उपभोक्ता दोनों में बदल दिया। मानव व्यक्ति को ज्ञान का पात्र’ की उपाधि दी गई।
(iii) जो व्यक्ति विवेकपूर्ण ढंग से सोच-विचार कर सकते थे, केवल उसी व्यक्ति को पूर्ण रूप से मनुष्य माना गया।
(iv) तर्कसंगत को मानव जगत की पारिभाषिक विशिष्टता का स्थान देने के लिए प्रकृति, धर्म-संप्रदाय तथा देवी-देवताओं के वर्चस्व को कम करना अनिवार्य था। इसका कारण यह था कि पहले मानव जगत को जानने-समझने के लिए इन्हीं विचारों का सहारा लेना पड़ता था। ।

प्र० 2. औद्योगिक क्रांति किस प्रकार समाजशास्त्र के जन्म के लिए उत्तरदायी है?
उत्तर-
(i) उत्पादन घर से बाहर निकल कर फैक्ट्रियों के हवाले चला गया। नवीन स्थापित उद्योगों में काम की तलाश में लोगों ने ग्रामीण क्षेत्रों को छोड़ दिया और शहरी क्षेत्रों में चले गए।
(ii) अमीर लोग बड़े-बड़े भवनों में रहने लगे और मजदूर वर्ग ने गंदी बस्तियों में रहना प्रारंभ कर दिया।
(iii) आधुनिक प्रशासनिक व्यवस्था के कारण राजतंत्र को लोक संबंधी विषयों और कल्याणकारी कार्यों की जवाबदेही उठाने के लिए बाध्य किया गया।

प्र० 3. उत्पादन के तरीकों के विभिन्न घटक कौन-कौन से हैं?
उत्तर- उत्पादन के तरीकों के निम्नलिखित घटक हैं

  • प्रथम, उत्पादन के साधन हैं जिसका अर्थ है मजदूर वर्ग जो उत्पादन करते हैं।
  • द्वितीय, पूँजीपति वर्ग है जिसका उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण रहता है।
  • उपभोग की वस्तुओं की तरह श्रम बाजार में बेचा जाता है।
  • अपने उत्पादन को मज़दूरों द्वारा निष्पादन के लिए पूँजीपति वर्ग के पास अर्थ और साधन हैं।
  • पूँजीपति वर्ग मजदूरों के दम पर अधिक अमीर बन गए।

प्र० 4. मार्क्स के अनुसार विभिन्न वर्गों में संघर्ष क्यों होते हैं?
उत्तर- मार्क्स ने दोनों वर्गों का अध्ययन किया है। प्रत्येक समाज में दो विरोधी समूह पाये जाते हैं। प्रारंभ से ही इन दो वर्गों के बीच संघर्ष सामान्यतया बढ़ता जा रहा है।

  • पूँजीपति वर्ग का उत्पादन के सभी साधनों पर नियंत्रण रहता है और यह वर्ग उत्पादन के अपने साधनों की सहायता से अन्य वर्गों का दमन करता है।
  • द्वितीय वर्ग मजदूर वर्ग है जिन्हें श्रमजीवी वर्ग की। संज्ञा दी गई है। शोषक और शोषित वर्ग के बीच संघर्ष सामान्यतया बढ़ता रहता है। इसका कारण यह है कि पूँजीपति वर्ग मजदूरों को शायद ही कुछ देने की इच्छा रखते हैं। मार्क्स के अनुसार, “आर्थिक प्रक्रियाएँ सामान्यतया वर्ग संघर्ष को जन्म देती हैं यद्यपि यह भी राजनीतिक और सामाजिक स्थितियों पर निर्भर करता है।”

प्र० 5. “सामाजिक तथ्य’ क्या हैं? हम उन्हें कैसे पहचानते हैं?
उत्तर-

  • ‘सामाजिक तथ्य’ सामूहिक प्रतिनिधित्व हैं जिनका उद्भव व्यक्तियों के संगठन से होता है।
  • वे किसी व्यक्ति के लिए विशिष्ट नहीं होते हैं, परंतु सामान्य प्रकृति के होते हैं और व्यक्तियों से स्वतंत्र होते हैं।
  • दुर्खाइम ने इसे ‘रगामी-स्तर’ कहा जोकि जटिल सामूहिकता का जीवन स्तर है जहाँ सामाजिक प्रघटनाओं का उद्भव हो सकता है।
  • दुर्खाइम की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि उनका प्रदर्शन है कि समाजशास्त्र एक ऐसा शास्त्र है जो अपूर्व तत्वों, जैसे सामाजिक तथ्यों का विज्ञान हो सकता है। परंतु एक ऐसा विज्ञान जो अवलोकन, आनुभविक इंद्रियानुभवी सत्यापनीय साक्ष्यों पर आधारित हो।
  • आत्महत्या पर दुर्खाइम के द्वारा किया गया अध्ययन नवीन आनुभविक आँकड़ों पर आधारित एक सर्वाधिक चर्चित उदाहरण है।
  • आत्महत्या के प्रत्येक अध्ययन का विशिष्ट रूप से व्यक्ति तथा उसकी परिस्थितियों से सरोकार है।

प्र० 6. ‘यांत्रिक’ और ‘सावयवी’ एकता में क्या अंतर है?
उत्तर- दुर्खाइम का मत है कि प्रत्येक समाज में कुछ मूल्य, विचार, विश्वास, व्यवहार के ढंग, संस्था और कानून विद्यमान होते हैं, जो समाज को संबंधों के बंधन से बाँध कर रखते हैं। इन तत्वों की उपस्थिति के कारण समाज में संबंधों और एकता का अस्तित्व कायम रहता है। उन्होंने सामाजिक एकता की प्रकृति के आधार पर समाज को वर्गीकृत किया जिसका समाज में अस्तित्व कायम है और जो निम्नलिखित हैं-
NCERT Solutions for Class 11 Sociology Understanding Society Chapter 4 (Hindi Medium) 6

प्र० 7. उदाहरण सहित बताएँ कि नैतिक संहिताएँ सामाजिक एकता को कैसे दर्शाती हैं?
उत्तर-

  • सामाजिकता को आचरण की संहिताओं में ढूंढा जा सकता था, जो व्यक्तियों पर सामूहिक समझौते के अंतर्गत थोपा गया था।
  • अन्य तथ्यों की तरह नैतिक तथ्य भी सामाजिक परिघटनाएँ हैं। उनका निर्माण क्रिया के नियमों से । हुआ है जो विशेष गुणों के द्वारा पहचाने जाते हैं। उनका अवलोकन, वर्णन और वर्गीकरण संभव है। और विशिष्ट कानूनों के द्वारा समझाया भी जा सकता है।
  • दुर्खाइम के मतानुसार, सामाज एक सामाजिक तथ्य है। इसका अस्तित्व नैतिक समुदाय के रूप में व्यक्ति से ऊपर था।
  • सामाजिक एकता समूह के प्रतिमानों और उम्मीदों के अनुरूप व्यवहार करने के लिए व्यक्तियों पर दबाव डालती है।
  • नैतिक संहिताएँ विशिष्ट सामाजिक परिस्थितियों का प्रदर्शन हैं।
  • एक समाज की उपयुक्त नैतिक संहिता दूसरे समाज के लिए अनुपयुक्त होती है।
  • वर्तमान सामाजिक परिस्थतियों का परिणाम नैतिक संहिताओं से निकाला जा सकता है। इसने समाजशास्त्र को प्राकृतिक विज्ञान के समान बना दिया है और इसका बृहत उद्देश्य समाजशास्त्र को एक कष्टदायी वैज्ञानिक संकाय के रूप में स्थापित करने के अत्यधिक निकट है।
  • व्यवहार के प्रतिमानों का अवलोकन कर उन प्रतिमानों, संहिताओं और सामाजिक एकताओं को पहचानना संभव है, जो उन्हें नियंत्रित करते हैं। व्यक्तियों के सामाजिक व्यवहारों के प्रतिमानों का अध्ययन कर अन्य रूप से अदृश्य वस्तुओं का अस्तित्व; जैसे- विचार, प्रतिमान, मूल्य और इसी प्रकार अन्य को आनुभविक रूप से सत्यापित किया जा सकता है।

प्र० 8. नौकरशाही की बुनियादी विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर-

  • नौकरशाहों के निश्चित कार्यालयी क्षेत्राधिकार होते हैं। इसका संचालन नियम, कानून तथा प्रशासनिक विधानों द्वारा होता है।
  • कार्यान्वयन के लिए उच्च अधिकारी द्वारा अधीनस्थ वर्गों को आदेश स्थायी रूप में दिए जाते हैं, परंतु जिम्मेदारियों को परिसीमित कर उसका जिम्मा अधिकारियों को सौंप दिया जाता है।
  • नौकरशाही में पदों की स्थितियाँ स्वतंत्र होती है।
  • अधिकारी और कार्यालय श्रेणीगत सोपान पर आधारित होते हैं। इस व्यवस्था के अंतर्गत उच्च अधिकारी निम्न अधिकारियों का निर्देशन करते हैं।
  • नौकरशाही व्यवस्थाओं का प्रबंधन लिखित दस्तावेजों के आधार पर चलाया जाता है। इन लिखित दस्तावेजों को फाइलें भी कहते है। इन फ़ाइलों को रिकॉर्ड के रूप में सँभाल कर रखा जाता है।
  • कार्यालय में अपने असीमित कार्यालय समय के विपरीत कर्मचारियों से समग्र एकाग्रता की अपेक्षा की जाती है। इस प्रकार कार्यालय में एक कर्मचारी का आचरण बृहत नियमों और कानूनों द्वारा नियंत्रित होता है।

प्र० 9. सामाजिक विज्ञान में किस प्रकार विशिष्ट तथा भिन्न प्रकार की वस्तुनिष्ठता की आवश्यकता होती है?
उत्तर- स्वयं करें।

प्र० 10. क्या आप ऐसे किसी विचार अथवा सिद्धांत के बारे में जानते हैं जिसने आधुनिक भारत में किसी सामाजिक आंदोलन को जन्म दिया हो?
उत्तर- स्वयं करें।

प्र० 11. मार्क्स तथा वैबर ने भारत के विषय में क्या लिखा है-पता करने की कोशिश कीजिए।
उत्तर-

  • मार्क्स ने तर्क दिया कि अर्थव्यवस्था लोगों के विचारों और विश्वासों का स्रोत है। वे इसी अर्थव्यवस्था के भाग हैं।
  • मार्क्स ने आर्थिक संरचना और प्रक्रियाओं पर अत्यधिक बल दिया। उनका विश्वास था कि वे प्रत्येक सामाजिक व्यवस्था के आधार हैं और मानव का इतिहास इसका साक्षी है।
  • मार्क्स का विश्वास था कि सामाजिक परिवर्तन के लिए वर्ग संघर्ष अत्यधिक महत्वपूर्ण ताकत है।
  • वैबर ने तर्क किया कि सामाजिक विज्ञान का समग्र उद्देश्य सामाजिक क्रियाओं की समझ के लिए व्याख्यात्मक पद्धति का विकास करना है।
  • सामाजिक विज्ञानों का केंद्रीय सरोकार सामाजिक कार्यों से है और कारण यह है कि मानव के कार्यों में व्यक्तिनिष्ठ अर्थ शामिल है, इसलिए सामाजिक विज्ञान से संबंधित जाँच की पद्धति को प्राकृतिक विज्ञान की पद्धति से भिन्न होना अनिवार्य है।
  • सामाजिक दुनिया, मूल्य, भावना, पूर्वाग्रह, विचार और इसी प्रकार अन्य जैसे व्यक्तिनिष्ठ मानव के गुणों पर आधारित है।
  • सामाजिक वैज्ञानिकों को समानुभूति समझ’ का निरंतर अभ्यास करना है। परंतु यह जाँच वस्तुनिष्ठ तरीके से किया जाना अनिवार्य है।
  • समाजशास्त्रीयों से आशा की जाती है कि वे दूसरों की विषयगत भावनाओं को परखने के बजाय केवल वर्णन करें।

प्र० 12. क्या आप कारण बता सकते हैं कि हमें उन चिंतकों के कार्यों का अध्ययन क्यों करना चाहिए जिनकी मृत्यु हो चुकी है? इनके कार्यों का अध्ययन न करने के कुछ कारण क्या हो सकते हैं?
उत्तर- स्वयं करें।

Hope given Understanding Society Class 11 Solutions Chapter 4 are helpful to complete your homework.

NCERT Solutions for Class 11 Sociology in Hindi Medium and English Medium

NCERT Solutions for Class 11 Sociology (Hindi Medium)

Detailed, Step-by-Step NCERT Solutions for Class 11 Sociology Textbook Questions and Answers of Introducing Sociology, Understanding Society were solved by Expert Teachers as per NCERT (CBSE) Book guidelines covering each topic in chapter to ensure complete preparation.

CBSE Class 11th Sociology NCERT Solutions in Hindi Medium and English Medium

Sociology Class 11 NCERT Solutions in Hindi Medium

Sociology NCERT Class 11 Solutions: Introducing Sociology

Class 12 Sociology Questions and Answers: Understanding Society

NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 4 Poverty (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 4 Poverty (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 4 Poverty (Hindi Medium)

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 11 Economics. Here we have given NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Developments Chapter 4 Poverty.

प्रश्न अभ्यास
पाठ्यपुस्तक से

प्र.1. कैलोरी आधारित तरीका निर्धनता की पहचान के लिए क्यों उपयुक्त नहीं है?
उत्तर : कैलोरी आधारित तरीका निर्धनता की पहचान के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि 2100/2400 कैलोरी एक मनुष्य जैसा जीवन जीने के लिए पर्याप्त नहीं है। यह एक संतुलन आहार की आवश्यकता को महत्त्व नहीं देता। एक गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने के लिए एक व्यक्ति को वस्त्र, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य, उचित स्वच्छ स्थितियाँ, ईंधन, बिजली आदि की भी आवश्यकता होती है। जब एक व्यक्ति की इन चीजों तक पहुँच होती है तब वह एक गुणवत्तापूर्ण जीवन जी सकता है।

प्र.2. ‘काम के बदले अनाज’ कार्यक्रम का क्या अर्थ है?
उत्तर : राष्ट्रीय कार्य के बदले अनाज कार्यक्रम को प्रचलित रूप से काम के बदले अनाज’ कहा जाता है जिसे 2004 में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य देश के आठ राज्यों नामित-गुजरात, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और उत्तराखंड के सूखा प्रभावित ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी रोजगार द्वारा खाद्य सुरक्षा प्रदान करना है। खाद्य अनाज केंद्रीय सरकार द्वारा इन आठ राज्यों को उपलब्ध कराए जाते हैं। मजदूरी राज्य सरकार द्वारा आशिक रूप से नकद और खाद्य अनाजों के रूप में दी जा सकती है।

प्र.3. भारत में निर्धनता से मुक्ति पाने के लिए रोजगार सृजन करने वाले कार्यक्रम क्यों महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर : निर्धनता और बेरोजगारी में एक कारण प्रभाव संबंध है। यदि हम बेरोज़गारी उन्मूलन कर दे गरीबी स्वतः दूर हो जायेगी। इसीलिए भारत सरकार ने गरीबी कम करने के लिए रोजगार सृजन कार्यक्रम शुरू किए हैं। अवश्य ही एक व्यक्ति आय के साधन या रोजगार के साधन की अनुपस्थिति में ही निर्धन होता है। यदि सरकार उसके लिए रोजगार का प्रबंध कर दे चाहे मजदूरी रोजगार चाहे स्वरोजगार के रूप में, तो वह निर्धनता के दुष्चक्र से बाहर आ सकता है।

प्र.4. आय अर्जित करने वाली परिसंपत्तियों के सृजन से निर्धनता की समस्या का समाधान किस प्रकार हो सकता है?
उत्तर : आय अर्जित करने वाली परिसंपत्तियाँ व्यक्ति को स्वरोजगार प्रदान करता है। जैसे ही एक व्यक्ति को स्वरोज़गार उपलब्ध हो जाता है उसके पास अपने निर्वाह के लिए आधारभूत आय आ जाती है। अत: व्यक्ति निर्धनता से बाहर आ जायेगा। इसे एक उदाहरण की सहायता से ज्यादा अच्छी तरह समझा जा सकता है। मान लो एक व्यक्ति निर्धनता रेखा से नीचे जी रहा है। सरकार उसे एक गाड़ी खरीदने के लिए कम ब्याज दर पर ऋण दे देती है। वह उससे बच्चों को स्कूल से घर और घर से स्कूल तक ले जा सकता है। अतः उसे स्वरोजगार मिल जायेगा और निर्धनता से बाहर आ जायेगा।

प्र.5. भारत सरकार द्वारा निर्धनता पर त्रि-आयामी प्रहार निर्धनता दूर करने में सफल नहीं रहा है। चर्चा करें।
उत्तर : यह कहना बिल्कुल सही है कि भारत सरकार द्वारा निर्धनता पर त्रि-आयामी प्रहार निर्धनता दूर करने में सफल नहीं रहा है। त्रि-आयामी प्रहार में निम्नलिखित शामिल हैं
(क) संवृद्धि आधारित रणनीति
(ख) विशिष्ट निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम
(ग) न्यूनतम आधारभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराना

परंतु इतने सारे कार्यक्रमों के बावजूद निर्धनों की संख्या जो 1973-74 में 321 मिलियन थी, वह 1999-00 में घटकर केवल 260 मिलियन रह गयी। 1990 के दशक में निर्धनता ग्रामीण क्षेत्रों में कम हुई तथा शहरी क्षेत्रों में बढ़ी जिसका सीधा अर्थ है कि निर्धनता उन्मूलन नहीं हुआ बल्कि निर्धनता ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में स्थानांतरित हुई है। ऐसा निम्नलिखित कारणों से हुआ है।

(क)
देश की राजनैतिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार
(ख) कार्यक्रमों के प्रभावी क्रियान्वयन में पर्यवेक्षण का अभाव
(ग) लाभार्थी समूह में उनके लाभ के लिए कार्य कर लाभ कार्यक्रमों के प्रति जागरूकता का अभाव।
(घ) शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए कोई कार्यक्रम न शुरू किया जाना। |

प्र.6. सरकार ने बुजुर्गों, निर्धनों और असहाय महिलाओं की सहायतार्थ कौन-से कार्यक्रम अपनाए हैं?
उत्तर : सरकार ने बुजुर्गों, निर्धनों और असहाय महिलाओं की सहायतार्थ निम्नलिखित कार्यक्रम अपनाए हैं
(क) राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एन.एस.ए.पी.)-इस कार्य के अंतर्गत गरीब घरों में बुजुर्ग, रोटी कमाने वाले की मृत्यु तथा प्रसूती देखभाल से प्रभावित लोगों को सामाजिक सहायता प्रदान की जाती है। यह कार्यक्रम 15 अगस्त 1995 को लागू किया गया। इस कार्यक्रम के तीन घटक हैं

  1. राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (एन.ए.ओ.एस
  2. राष्ट्रीय परिवार हितकारी योजना (एन.ए.बी.एस.)
  3. राष्ट्रीय मातृत्व हितकारी योजना (एन.एम.बी.एस.)
    2. अन्नपूर्णा- यह योजना अप्रैल, 2000 को शुरू की गई थी। यह 100% केंद्रीय प्रयोजित योजना है। यह उन वरिष्ठ नागरिकों को कैलोरी आवश्यकता को खाद्य सुरक्षा प्रदान करके पूरा करती है जो राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के अंतर्गत पेंशन पाने के योग्य हैं परंतु उन्हें पेंशन मिल नहीं रही है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत खाद्य अनाज 2 रुपये प्रति किलो गेहूँ और 3 रुपये प्रति किलो चावल की रियायती दर पर उपलब्ध कराई जाती है। वर्तमान में यह योजना पूरे भारत में कार्य कर रही है और 6.08 लाख परिवार इससे लाभ उठा रहे हैं। |

प्र.7, क्या निर्धनता और बेरोज़गारी के बीच कोई संबंध है? समझाइए।
उत्तर : निर्धनता और बेरोजगारी के बीच वृत्तीय संबंध है। यदि एक व्यक्ति बेरोजगार है तो उसके पास आजीविका का कोई साधन नहीं होगा। वह अपने जीवन की आधारभूत आवश्यकताएँ खरीदने में भी सक्षम नहीं होगा। अत: वह निर्धन ही बना रहेगा।
NCERT Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 4 (Hindi Medium)प्र.8. मान लीजिए कि आप एक निर्धन परिवार से हैं और छोटी-सी दुकान खोलने के लिए सरकारी सहायता पाना चाहते हैं। आप किस योजना के अंतर्गत आवेदन देंगे और क्यों?
उत्तर : हम किस योजना के अंतर्गत आवेदन देंगे वह इस पर निर्भर करता है कि हम ग्रामीण क्षेत्र के निवासी हैं या शहरी क्षेत्र के। यदि हम शहरी क्षेत्र के निवासी हैं तो हमें।

  • स्वर्ण जयंती शहरी रोज़गार योजना के अंतर्गत मदद मिल सकती है। यदि हम ग्रामीण क्षेत्र के निवासी हैं तो हमें
  • स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना
  • ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम ।
  • प्रधानमंत्री रोजगार योजना के अंतर्गत सहायता मिल सकती है।

प्र.9. ग्रामीण और शहरी बेरोजगारी में अंतर स्पष्ट करें। क्या यह करना सही होगा कि निर्धनता गाँवों से शहरों में आ गई है? अपने उत्तर के पक्ष में निर्धनता अनुपात प्रवृत्ति का प्रयोग करें।
उत्तर : स्वतंत्रता के समय से ग्रामीण बेरोजगारी शहरी बेरोज़गारी से अधिक रही है। यह कहना सही होगा कि निर्धनता गाँवों से शहरों में आ गई है। ग्रामीण क्षेत्र में छोटे तथा सीमांत किसान और कृषि श्रमिकों में मौसमी तथा प्रच्छन्न बेरोज़गारी है। वे कर्ज के जंजाल में भी फँस जाते हैं। ऐसे हालात में वे एक बेहतर आय की आशा में शहरों की ओर भागते हैं। इन क्षेत्रों में वे रेड़ी विक्रेता, रिक्शा चालकों तथा अनियत दिहाड़ी मजदूरों के रूप में काम करते हैं और शहरी बेरोज़गारी को बढ़ाते हैं।

समय के साथ जनसंख्या में वृद्धि से, निर्धनता रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या उतनी कम नहीं हुई जितना उनका प्रतिशत कम हुआ है।

प्र.10. मान लीजिए कि आप किसी गाँव के निवासी हैं। अपने गाँव से निर्धनता निवारण के कुछ सुझाव दीजिए।
उत्तर : मैं गाँवों से निर्धनता निवारण के लिए निम्नलिखित सुझाव दे सकता/सकती हूँ
(क) मानव पूँजी निर्माण, विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य पर सही रीति व्यय करना।
(ख) विभिन्न सरकारी योजनाओं के विषय में जागरूकता उत्पन्न करना।
(ग) स्वरोजगार शुरू करने के लिए आसान ऋण उपलब्ध कराना।
(घ) जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण करना।

 

Hope given Indian Economic Developments Class 11 Solutions Chapter 4 are helpful to complete your homework.

NCERT Solutions for Class 11 History Chapter 11 Paths to Modernisation (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 History Chapter 11 Paths to Modernisation (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 History Chapter 11 Paths to Modernisation (Hindi Medium)

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 11 History in Hindi Medium. Here we have given NCERT Solutions for Class 11 History Chapter 11 Paths to Modernisation.

अभ्यास प्रश्न (पाठ्यपुस्तक से) (NCERT Textbook Questions Solved)

संक्षेप में उत्तर दीजिए

प्र० 1. मेजी पुनस्र्थापना से पहले की वे अहम् घटनाएँ क्या थीं, जिन्होंने जापान के तीव्र आधुनिकीकरण को संभवकिया?
उत्तर 1867-68 में जापान में एक युगांतकारी घटना मेजी पुनस्र्थापना के रूप में घटी। सदियों पूर्व जापान में दो अहम प्रशासनिक शक्तियाँ थीं-सम्राट तथा प्रधान सेनापति अथवा शोगुन। हालाँकि प्रशासन की समस्त शक्तियाँ शोगुन में केंद्रित थीं। सम्राट मात्र राजनैतिक मुखौटा होता था। किंतु 1668 ई० में एक आंदोलन द्वारा शोगुन का पद समाप्त कर दिया गया। उसके सारे अधिकार सम्राट के हाथों में दे दिए गए। नए सम्राट चौदह वर्षीय मुत्सुहितों ने मेजी की उपाधि धारण की। मेजी पुनस्र्थापना से पूर्व जापान में कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटित हुईं। फलतः आधुनिकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ।

  • 16 वीं शताब्दी तक जापान में किसान भी हथियार रखते थे। फलतः यदा-कदा अराजकता का वातावरण उत्पन्न | हो जाता था। हालाँकि इस शताब्दी के अंतिम वर्षों में किसानों से हथियार ले लिए गए। अब मात्र सामुदाई वर्ग के लोग ही हथियार रख सकते थे। इससे किसान अपना संपूर्ण समय और ध्यान कृषि कार्य में लगाने लगे।
  • इससे पूर्व दम्यों को अधिकांश समय शोगुन के निर्देशानुसार राजधानी एदो में व्यतीत करना पड़ता था। फलतः अपने क्षेत्रों के प्रशासनिक कार्यों का संचालन सुचारु रूप से करने में असमर्थ हो जाते थे। 16वीं शताब्दी | के अंतिम वर्षों में उन्हें अपनी राजधानियों में रहने के आदेश दिए गए।
  • भूमि का सर्वेक्षण तथा उत्पादकता के आधार पर भूमि का वर्गीकरण किया गया। इस कार्य का मुख्य उद्देश्य मालिकों तथा करदाताओं का निर्धारण करना था। इस परिवर्तन ने राजस्व के स्थायी निर्धारण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
  • मेजी पुनस्र्थापना से पूर्व जापान में अनेक महत्त्वपूर्ण एवं विशाल शहरों का विकास हुआ। शहरों के विकास ने वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था के विकास को प्रोत्साहित किया। फलतः वित्त और ऋण की प्रणालियाँ स्थापित हुईं। गुणों को पद से अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाने लगा। व्यापार का विकास हुआ और शहरों की जीवित संस्कृति विकसित होने लगी। सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बढ़ावा मिला।
    इन सभी घटनाओं के सामूहिक प्रयास से जापान में तीव्रगति से आधुनिकीकरण का सपना साकार हुआ।

प्र० 2. जापान के विकास के साथ-साथ वहाँ की रोजमर्रा की जिंदगी में किस तरह बदलाव आए? चर्चा कीजिए।
उत्तर जापान का एक आधुनिक समाज में बदलाव रोजाना की जिंदगी में आए परिवर्तनों में भी देखा जा सकता है। परिवार व्यवस्था में कई पीढ़ियाँ परिवार के मुखिया के नियंत्रण में रहती थीं लेकिन जैसे-जैसे लोग समृद्ध एवं संपन्न हुए, परिवारों के संदर्भ में नये विचार फैलने लगे। नया घर (जिसे जापानी अंग्रेजी शब्द का इस्तेमाल करते हुए होम कहते हैं) का संबंध मूल परिवार से था, जहाँ पति-पत्नी साथ रहकर कमाते हैं और घर बसाते हैं। पारिवारिक जीवन की इस नयी समझ ने नए तरह के घरेलू उत्पादों, नए किस्म के पारिवारिक मनोरंजन और नए प्रकार की माँग पैदा की। 1920 के दशक में निर्माण कम्पनियों द्वारा शुरू में 200 येन देने के बाद लगातार 10 साल के लिए 12 येन प्रति माह की किस्तों पर लोगों को सस्ते मकान उपलब्ध कराए गए। यह एक ऐसे समय में जब एक बैंक कर्मचारी (उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति) की मासिक आय 40 येन प्रति मास थी।

जापान के विकास के साथ-साथ नवीन घरेलू उत्पादों; जैसे कुकर टोस्टर आदि का प्रयोग होने लगा। आधुनिकता के प्रसार ने नवीन मध्यमवर्गीय परिवारों को प्रभावित किया। ट्रामों के आने से आवागमन की गतिविधियाँ आसान हो गईं। मनोरंजन के नए-नए साधनों का आविष्कार हुआ। 1899 ई० में फिल्मों का निर्माण होने लगा। सन् 1925 ई० में पहला रेडियो स्टेशन खोला गया।

प्र० 3. पश्चिमी ताकतों द्वारा पेश की गई चुनौतियों का सामना छींग राजवंश ने कैसे किया?
उत्तर पाश्चात्य ताकतों द्वारा पेश की गई चुनौतियों से दो-चार होने के लिए छींग राजवंश ने निम्नलिखित उपायों का सहारा लिया

  • चीन को उपनिवेशीकरण से बचाने के लिए चीन की व्यवस्था को सुदृढ़ बनाना नितांत आवश्यक था। अतः उसने आधुनिक प्रशासन, नयी सेना और शिक्षा के लिए नयी नीतियों का निर्माण किया।
  • संवैधानिक सरकार की स्थापना हेतु स्थानीय विधायिकाओं के गठन की तरफ ध्यान आकृष्ट किया गया। प्रशासकों का विचार था कि एक संवैधानिक रूप से चुनी हुई सरकार की पश्चिमी ताकतों द्वारा प्रस्तुत की गई चुनौतियों से भली-प्रकार से निपट सकती है।
  • जनसामान्य द्वारा राष्ट्रीय जागरूकता उत्पन्न करने के प्रयास किए गए। लियांग किचाऊ जैसे सुप्रसिद्ध चीनी विचारकों का विचार था कि चीनियों में राष्ट्रीयता की भावना उत्पन्न करके ही चीन पश्चिम का सफलतापूर्वक विरोध कर सकता था। उनके मतानुसार अंग्रेज़ व्यापारियों के हाथों भारतीयों की हार का मुख्य कारण भारतीयों में एकता और राष्ट्रीयता की भावना का अभाव था। अतः चीनी विचारकों ने जनसामान्य को उपनिवेश बनाए गए देशों के नकारात्मक उदाहरणों से परिचित कराने का अहम कार्य किया। 18वीं शताब्दी में पोलैंड का विभाजन एक दृष्टांत बन गया। सर्वविदित है कि 1890 के दशक में चीन में ‘पोलैंड’ शब्द का प्रयोग एक क्रिया स्वरूप-टू पोलैंड रूस’ (बोलान वू) अर्थात् ‘हमें विभाजित करने’–किया जाने लगा।
  • जनसाधारण की परंपरागत सोच को बदलने की कोशिश की गई क्योंकि बुद्धिजीवी वर्ग का मानना था कि | परंपरागत सोच को बदलकर ही चीन का विकास संभव है। उल्लेखनीय है कि उस समय चीन की प्रमुख विचारधारा कन्फ्यूशियसवाद से ओतप्रोत थी।
  • 1890 के दशक में जिन विद्यार्थियों को जापान में अध्ययन हेतु भेजा गया था उन्होंने जापान के नए विचारों से रभावित होकर चीन में गणतंत्र स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।।
  • सरकारी पदों की नियुक्ति में योग्यता को आधार बनाया गया। 1905 ई० में रूसजापान युद्ध के बाद दीर्घकाल से प्रचलित चीनी परीक्षा प्रणाली को समाप्त कर दिया गया। परंपरागत परीक्षा प्रणाली में साहित्य पर बल दिया जाता था। फलतः यह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के लिए बाधक थी।
  • सैन्य-शक्ति को मजबूत बनाने के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार किए गए। सेना को अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित किया गया।

प्र० 4. सन यात-सेन के तीन सिद्धांत क्या थे?
उत्तर सन यात-सेन के नेतृत्व में 1911 में मांचू साम्राज्य को समाप्त कर दिया गया और चीनी गणतंत्र की स्थापना की गई। वे आधुनिक चीन के संस्थापक माने जाते हैं। वे एक गरीब परिवार से थे और उन्होंने मिशन स्कूलों से शिक्षा प्राप्त की जहाँ उनका परिचय लोकतंत्र व ईसाई धर्म से हुआ। उन्होंने डॉक्टरी की पढ़ाई की, परंतु वे चीन के भविष्य को लेकर चिंतित थे। उनका कार्यक्रम तीन सिद्धांत (सन मिन चुई) के नाम से प्रसिद्ध है। ये तीन सिद्धान्त हैं

  • राष्ट्रवाद-इसका अर्थ था मांचू वंश-जिसे विदेशी राजवंश के रूप में माना जाता था-को सत्ता से हटाना, | साथ-साथ अन्य साम्राज्यवादियों को हटाना।
  • गणतांत्रिक सरकार की स्थापना-अन्य साम्राज्यवादियों को हटाना तथा गणतंत्र की स्थापना करना।
  • समाजवाद-जो पूँजी का नियमन करे और भूस्वामित्व में समानता लाए। सन यात-सेन के विचार कुओमीनतांग के राजनीतिक दर्शन का आधार बने। उन्होंने कपड़ा, खाना, घर और
    परिवहन, इन चार बड़ी आवश्यकताओं’ को रेखांकित किया। संक्षेप में निबंध लिखिए

प्र० 5. क्या पड़ोसियों के साथ जापान के युद्ध और उसके पर्यावरण का विनाश तीव्र औद्योगीकरण की जापानी नीति के चलते हुआ?
उत्तर इतिहासविदों का मानना है कि औद्योगीकरण की जापानी नीति ने ही जापान को पड़ोसियों के साथ युद्धों में उलझा दिया और उसके पर्यावरण को समाप्तप्राय कर दिया। मेजी पुनस्र्थापना के तकरीबन चालीस वर्षों के अंतराल में जापान ने आर्थिक-राजनैतिक-सामाजिक सभी क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की। वहाँ के तत्कालीन सम्राटों ने विदेशियों को जंगली समझकर उनकी विशेषताओं को नज़रअंदाज़ नहीं किया, अपितु उनसे स्वयं सीखने का प्रयत्न किया।

‘फुकोकु क्योहे’ अर्थात् ‘समृद्ध देश, मजबूत सेना’ के नारे के साथ सरकार ने अपनी नवीन नीति की घोषणा की। इस नयी नीति का उद्देश्य था-अपनी अर्थव्यवस्था एवं सेना को मजबूत बनाना। मेजी सुधारों के अंतर्गत अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण पर अत्यधिक बल दिया गया। सरकार ने उद्योगों के विकास हेतु विदेशों से भी सहायता ली। सूती वस्त्र उद्योग को प्रोत्साहित करने हेतु कपास की नयी-नयी किस्मों को विकसित करने का प्रयास किया गया। संचार और यातायात के अत्याधुनिक संसाधनों ने आर्थिक क्रांति में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। बीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक तक जापान की गिनती विश्व के सर्वोत्तम औद्योगिक देशों में होने लगी।

औद्योगिक विकास की तीव्र गति ने जापान को पड़ोसियों के साथ युद्ध करने के लिए विवश कर दिया। जापान भी बाजार की खोज में 19वीं शताब्दी में औपनिवेशिक दौड़ में सम्मिलित हो गया। जापान के साम्राज्यवाद का एक अन्य प्रमुख कारण एशिया और प्रशांत क्षेत्र में अपनी श्रेष्ठता को साबित करना था। फलतः उसे 1894 ई०-95 ई० में चीन के साथ और 1904-05 में रूस के साथ युद्ध करना पड़ा।

1872 ई० में जापान की जनसंख्या 3.5 करोड़ थी। औद्योगिकीकरण की वजह से 1920 आते-आते जापान की जनसंख्या 5.5 करोड़ हो गयी।

प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् जापान की अर्थव्यवस्था निरंतर विकास की ओर बढ़ने लगी। वह सूती वस्त्र, रेयन और कच्चे रेशम का सबसे बड़ा निर्यातक देश बन गया। युद्धों के परवर्ती काल में इंजीनियरिंग एवं लोहा-इस्पात उद्योग के क्षेत्र में जापान ने अद्वितीय विकास किया। तीव्र गति से औद्योगिक विकास का एक नकारात्मक पक्ष था-पर्यावरण का दिन-पर-दिन दूषित होना। औद्योगिक विकास ने लकड़ी की माँग में वृद्धि की जिससे पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हुई। फलतः पर्यावरण पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। प्रथम संसद (1897 ई० में) के निम्न सदन के सदस्य तनाको शोज़ों ने औद्योगिक प्रदूषण के विरोध में पहला आंदोलन किया। उनका मानना था कि मानवीय हितों को नजरअंदाज करके औद्योगिक विकास करना मानव जाति के प्रति क्रियावादी कदम है।

द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् जापान में होने वाले तीव्र औद्योगिक विकास का जनसामान्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ा। अरगजी को जहर एक भयंकर कष्टदायी बीमारी का कारण था। यह एक आरंभिक सूचक भी था। फलतः 1960 के दशक के उत्तरार्द्ध में हवा इतनी दूषित हो गई कि अनेक समस्याएँ उठ खड़ी हुईं।

अतः यह कहना उचित ही होगा कि तीव्र औद्योगिकीकरण की जापानी नीति ने जापान को सीमावर्ती देशों के साथ युद्धों
में उलझा दिया। साथ-साथ वहाँ के पर्यावरण को भी दूषित कर दिया।

प्र० 6. क्या आप मानते हैं कि माओ त्सेतुंग और चीन के साम्यवादी दल ने चीन को मुक्ति दिलाने और इसकी मौजूदा कामयाबी की बुनियाद डालने में सफलता प्राप्त की?
उत्तर अधिकतर इतिहासकार इस विचार से सहमत हैं कि माओ त्सेतुंग और चीन के साम्यवादी दल ने चीन को मुक्ति दिलाने और इसकी मौजूदा कामयाबी की बुनियाद डालने में सफल रहे।

प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् से ही चीन में साम्यवादियों के प्रभाव में बढ़ोतरी होने लगी थी। 1921 ई० में साम्यवादी दल की स्थापना की गई जो अपने प्रारंभिक चरण में ही एक शक्तिशाली दल के रूप में उभरने लगा। हालाँकि एक समय चीन में दो सरकारों का अस्तित्त्व था। इनमें से एक कुओमीनतांग (राष्ट्रवादी दल) की सरकार थी। इसके अध्यक्ष सन यात-सेन थे। दूसरी सरकार का अध्यक्ष एक सैनिक जनरल च्यांग कोईशेक था। इसका मुख्यालय बीजिंग में था। डॉ० सन यात-सेन की मृत्यु के पश्चात् कुओमीनतांग का नेतृत्व च्यांग कोईशेक की सरकार के विरोध में था, क्योंकि वह अमरीका तथा ब्रिटेन के हाथों का कठपुतली मात्र था। मुद्रास्फीति की वजह से जनसामान्य की मुसीबतें बढ़ गई थी। जनता दोहरी मार झेल रही थी। पहली मार कर के रूप में थी जो जनता की कमर तोड़ रही तो दूसरी मार खाद्य-वस्तुओं की वजह से महँगाई थी।

चीनी साम्यवादी पार्टी के मुख्य नेता माओ त्सेतुंग की कोशिशों के फलस्वरूप यह पार्टी एक मजबूत राजनैतिक शक्ति बन गई थी। माओ त्सेतुंग घोर परिवर्तनवादी थे। उन्होंने एक ताकतवर किसान सोबित का गठन किया और भूमि अधिग्रहण करके पुनः नए नियमों के अनुसार वितरण किया। साथ-साथ उन्होंने स्वतंत्र सरकार एवं सैन्य-संगठन पर बल दिया। माओ त्सेतुंग स्त्रियों की समस्याओं से पूरी तरह से परिचित थे। अतः उन्होंने ग्रामीण महिला संघों को प्रोत्साहन दिया। विवाह संबंधी नए कानूनों का निर्माण किया। इन्होंने विवाह संबंधी समझौतों या क्रय-विक्रय पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया। तलाक की प्रक्रिया को आसान बनाया। वास्तविकता तो यह भी है कि माओ त्सेतुंग एक शोषणमुक्त राष्ट्र का निर्माण करना चाहते थे।

द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के पश्चात चीन को जापानी प्रभाव से पूरी तरह से मुक्ति मिल गई। तत्पश्चात् माओ त्सेतुंग के अधीन साम्यवादियों और च्योग कोई-शेक के नेतृत्व में राष्ट्रवादियों में सत्ता के गृहयुद्ध शुरू हो गया। इस संघर्ष में साभ्यवादियों की जीत हुई। अक्टूबर सन् 1943 को चीन में ‘पीपुल्स रिपब्लिक’ ऑफ चाइना’ के नाम से गणतंत्रीय सरकार की स्थापना कर दी गई।

नए गणतंत्र के प्रथम राष्ट्रपति माओ त्सेतुंग और प्रथम प्रधानमंत्री चाऊ-एन-लाई बने। इस सरकार ने अपने आरंभिक वर्षों में कुछ अहम् भूमि सुधार संबंधी कानून लागू किए। औद्योगिक क्रांति के लिए एक सुनियोजित कार्यक्रम भी तैयार किया गया। अर्थव्यवस्था के मुख्य क्षेत्रों पर सरकारी नियंत्रण स्थापित कर दिया गया। निजीकरण को धीरे-धीरे समाप्त कर दिया गया। 1953 तक इस कार्यक्रम के अनुसार आचरण होता रहा। इसके उपरांत समाजवादी परिवर्तन का कार्यक्रम बनाने की घोषणा की गई।

मौजूदा कार्यक्रम के तहत आंतरिक क्षेत्र में चीन जिस नए कार्यक्रम के तहत आंतरिक क्षेत्र में चीन जिस नए कार्यक्रम का पालन किया वह “लंबी छलाँग” के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस कार्यक्रम का प्रमुख लक्ष्य आर्थिक सुधार करना था। माओ ने 1954 ई० में तथा 1956 ई० में क्रमशः कृषि का सहकारिताकरण तथा सामूहिकीकरण आरंभ करने की दिशा में अहम कदम उठाया चीनवासियों को अपने-अपने घरों के पिछवाड़े इस्पात की भट्ठियाँ लगाने के लिए प्रेरित किया गया। गाँवों में ‘पीपुल्स कम्यून्स’ स्थापित किए गए। ये सामूहिक उत्पादन तथा सामूहिक अधिकार के तहत कार्य करते थे। ऐसे समुदायों में चीन के 98% कृषक आते थे।

माओ त्सेतुंग ऐसे ‘समाजवादी’ व्यक्तियों का निर्माण करना चाहते थे, जिन्हें पितृभूमि, जनता, काम, विज्ञान तथा जनसंपत्ति पाँचों से बेहद प्यार हो। उन्होंने महिलाओं के लिए ‘ऑल चाइना डेमोक्रेटिस वीमेन्स फेडरेशन’ तथा विद्यार्थियों के लिए ऑल चाइना स्टूडेंट्स फेडरेशन’ का निर्माण किया। वे योग्यता से अधिक महत्त्व विचारधारा को देते थे। अतः माओवादियों तथा उनके आलोचकों के मध्य संघर्ष प्रायः होता रहता था। माओ त्सेतुंग ने अपने आलाचकों को मुँहतोड़ जवाब देने

के लिए 1965 ई० में महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति का प्रारंभ किया। इसके अंतर्गत पुरानी आदतों, पुरानी संस्कृति तथा पुराने रिवाजों के प्रतिक्रियास्वरूप अभियान छेड़े गए। इन अभियानों में मुख्य रूप से सेना एवं छात्रों का प्रयोग किया गया। साम्यवादी विचारधारा पेशेवर योग्यता पर भारी पड़ी। दोषारोपण ने नारेबाजी और तर्कसंगत वाद-विवाद आच्छादित कर दिया।

जनमुक्ति सेना के युवा अंग लाल रक्षकों द्वारा क्रांति को करने या जारी रखने के नाम पर भयंकर अत्याचार किए गए। माओ त्सेतुंग की विचारधारा को न मानने वालों को नाना प्रकार की मुसीबतों और यातनाओं का सामना करना पड़ा। परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था एवं शिक्षा व्यवस्था में रुकावट आने लगी। साथ-साथ पार्टी भी बेहद कमजोर हुई। हालाँकि 1970 ई० में चीन की परिस्थितियों तेजी से बदलने लगीं। वहाँ की अर्थव्यवस्था विकास के पथ पर अग्रसर होने लगी। तथा चीन परमाणु शक्ति से भी संपन्न हो गया। राष्ट्रपति निक्सन के काल में संयुक्त राज्य अमरीका ने भी साम्यवादी चीन को मान्यता प्रदान कर दी। कालांतर में वह संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता तथा सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य भी बन गया।

इस प्रकार यह कहना उचित ही होगा कि चीन को मुक्ति दिलाने तथा इसकी तत्कालीन कामयाबी की आधारशिला रखने में साम्यवादी दल के प्रमुख माओ त्सेतुंग ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।

Hope given NCERT Solutions for Class 11 History Chapter 11 are helpful to complete your homework.

NCERT Solutions for Class 11 Sociology Introducing Sociology Chapter 3 Understanding Social Institutions (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Sociology Introducing Sociology Chapter 3 Understanding Social Institutions (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Sociology Introducing Sociology Chapter 3 Understanding Social Institutions (Hindi Medium)

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 11 Sociology. Here we have given NCERT Solutions for Class 11 Sociology Introducing Sociology Chapter 3 Understanding Social Institutions.

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न [NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED]

प्र० 1. ज्ञात करें कि आपके समाज में विवाह के कौन-से नियमों का पालन किया जाता है। कक्षा में अन्य विद्यार्थियों द्वारा किए गए प्रेक्षणों से अपने प्रेक्षण की तुलना करें तथा चर्चा करें।
उत्तर- भारतीय समाज में विवाह निश्चित नियमों द्वारा सुव्यवस्थित किया गया है। पुरुषों और स्त्रियों के पारिवारिक जीवन में प्रवेश के लिए यह एक संस्था है। हमारे समाज में विवाह केवल अनुबंध ही नहीं है, वरन् यह एक समग्र संबंध है। इसमें भावनात्मक उलझन, निष्ठा, एक-दूसरे के प्रति वचनबद्धता, आर्थिक लगाव और उत्तरदायित्व सम्मिलित है। यह स्थायी संबंध है, जिसमें पुरुष और स्त्री बच्चों की प्राप्ति के लिए सामाजिक तौर पर वचनबद्ध हैं। उन्हें यौन-संबंधों के अधिकार का प्रयोग कर बच्चे प्राप्त करने का अधिकार है। भारतीय समाज में विवाह विपरीत लिंग के दो विशिष्ट व्यक्तियों के मध्य स्वीकृत है। जाति और धर्म के संदर्भ में पारंपरिक रूढ़िवादी परिवारों में जीवन-साथी के चुनाव पर निश्चित प्रतिबंध हैं। भारतीय समाज में व्यवस्थित विवाह का प्रचलन है। हालाँकि शहरीकरण, औद्योगीकरण, स्त्री-शिक्षा, समाज सुधार, भूमण्डलीकरण और विभिन्न कानूनी संशोधनों; जैसे–नारी सशक्तिकरण और सम्पत्ति अधिकार के कारण हमारे समाज में अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। युवा पीढी वैसे व्यक्ति के साथ विवाह करने में संकोच अनुभव करती है, जिसको उसने पहले कभी देखा नहीं है या जिससे पहले मिला नहीं है, जिसके व्यवहार, मूल्य, अभिकल्पना, विश्वास के संबंध में उसे जानकारी नहीं है। ऐसी स्थिति में युवा वर्ग दवाब का अनुभव करता है। आजकल एकल परिवार ने संयुक्त परिवार का स्थान ग्रहण कर लिया है और माता-पिता को सामाजिक सहायता भी उपलब्ध नहीं है। अतः जहाँ तक विवाह जैसी संस्था की बात है, भारतीय समाज में यह संक्रमण काल है।

प्र० 2. ज्ञात करें कि व्यापक संदर्भ में आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तन होने से परिवार में सदस्यता, आवासीय प्रतिमान और यहाँ तक कि पारस्परिक संपर्क का तरीका कैसे परिवर्तित होता है; उदाहरण के लिए प्रवास।।
उत्तर- सामाजिक संबंध समूह संरचना के आधार हैं। भारतीय समाज का तेजी से परिवर्तन हो रहा है और यही बात संरचना एवं बनावट की भी है। परिवर्तन सार्वभौमिक तथा निरंतर प्रक्रिया है। औद्योगीकरण, शहरीकरण, भूमण्डलीकरण, सूचना एवं प्रौद्योगिकी, बिजली और इलैक्ट्रॉनिक मशीन तथा यातायात के साधन की सुगम उपलब्धता ने हमारी संचार व्यवस्था और सामाजिक प्रक्रिया को गहराई से प्रभावित किया है। वर्तमान में आधुनिक समाज विशेष रूप से संबंध आधारित नहीं रह गया है वरन् यह एक समय केंद्रित समाज बन गया है। अतः आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों के बृहद् परिदृश्य में देश के अंदर और देश के बाहर प्रवसन (Migration) सामान्यतया एक दृश्य प्रपंच (Phenomenon) है और कम कीमत पर कॉल्स (Calls), स्काइप (Skype), वॉट्सएप (Whatsapp) एवं अन्य स्रोतों के कारण
सामाजिक अंत:क्रिया का रिवाज बदल गया है।

प्र० 3. ‘कार्य’ पर एक निबंध लिखिए। कार्यों की विद्यमान श्रेणी और ये किस तरह बदलती हैं, दोनों पर ध्यान केंद्रित करें।
उत्तर- कार्य केवल जीविका के लिए ही नहीं, बल्कि संतुष्टि के लिए भी है। इसमें कठिन कार्य भी सम्मिलित हैं, जिसमें मानवीय और मानसिक क्रिया-कलापों की आवश्यकता पड़ती है। कार्य का संदर्भ अदा की गई नौकरी से है। इसे व्यक्ति के शारीरिक या मानसिक प्रयासों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसे अदा भी किया जा सकता है या नहीं भी किया जा सकता है। मानव की आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए सेवाओं के रूप में कार्य को सम्पन्न किया जाता है। वस्तुओं और सेवाओं के प्रत्यक्ष विनिमय में कार्य को सम्पन्न किया जाता है। अन्य सामाजिक और राजनीतिक क्रिया-कलापों से हटकर आर्थिक क्रिया-कलाप मानवीय सामाजिक जीवन का एक महत्वपूर्ण स्वरूप है। आर्थिक क्रिया-कलाप अद्यतन समाज के महत्वपूर्ण आयाम हैं, जिसमें उत्पादन और खपत सम्मिलित हैं। समाज में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण और खपत के संदर्भ में आर्थिक संस्थाएँ व्यक्तियों के क्रिया-कलापों के साथ मिलकर कार्य करती हैं।
कार्य के अनेक सोपान निर्दिष्ट हैं; जैसे

  • अनुबंध (Contract) – किसी निश्चित अवधि के अंतर्गत विशिष्ट लक्ष्य की प्राप्ति हेतु दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच समान नियमों और स्थितियों की वचनबद्धता।।
  • श्रम-विभाजन (Division of Labour) – इसका सरोकार कौशल और योग्यता पर आधारित लोगों के मध्य कार्य के वितरण की पद्धति से है। श्रम-विभाजन का जनसंख्या के घनत्व से प्रत्यक्ष संबंध है। यह समाज के लोगों को अन्योन्याश्रित बनाता है। आधुनिक समाज और इसकी अर्थव्यवस्था तकनीक पर आधारित है, जिसके लिए विशिष्टिकरण आवश्यक है।
  • वेतन (Wages) – वर्तमान औद्योगिक अर्थव्यवस्था में वेतन के निश्चित नियम हैं; जैसे कि-
    • वेतन अनुबंध को स्थिर और आवश्यक भाग है।
    • यह अव्यक्तिगत है और औपचारिक संबंधों पर आधारित है।
    • वेतन कामगार (worker) और नियोक्ता दोनों पर बंधनकारी है।
    • कुछ आर्थिक व्यवस्था के अंतर्गत व्यापार संघ या श्रम संघ (Labour Union) कामगारों के वेतन हित की रक्षा करता है।

अनेक अर्थव्यवस्थाएँ हैं, जिनके द्वारा कार्य का प्रदर्शन होता है।

  1. साधारण अर्थव्यवस्था (Primitive Economic System) – कार्य और वेतन की कोई विशिष्ट विनिमय नीति नहीं होती है। यह आवश्यक रूप से निजी, लेकिन समुदाय आधारित होती है, जिसमें आर्थिक, धार्मिक एवं जादुई क्रिया-कलाप सम्मिलित होते हैं।
  2. कृषि संबंधित अर्थव्यवस्था (Agrarian Economy) – यह अर्थव्यवस्था की द्वितीय अवस्था थी, जिसने कामगारों के लिए भोजन की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित की, पेशा जाति आधारित बन गया और वस्तु विनिमय पद्धति एवं जजमानी पद्धति प्रचलन में आई।
  3. औद्योगिक अर्थव्यवस्था (Industrial Economy) – यह वर्तमान अर्थव्यवस्था है, जिसका उदय 18वीं शताब्दी में इंग्लैंड में औद्योगीकरण के साथ हुआ। पूँजीवाद और समाजवाद का औद्योगिक समाज की
    दो मुख्य व्यवस्थाओं के रूप में उदय हुआ। यह समाज उत्पादन के लिए औजारों और मशीनों पर आधारित है। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था कार्य को
    स्थिर मुद्रा की सहायता से नियंत्रित करती है।

श्रम विभाजन, कारखाना पद्धति, उत्पादन के लिए अन्योन्याश्रिता (Interdependence) तथा कठिन कार्य का विशिष्टिकरण वर्तमान अर्थव्यवस्था के मुख्य अभिलक्षण हैं।
कार्य को निम्नवत् वर्गीकृत किया जा सकता है:

  1. औपचारिक क्षेत्र (Formal Sector) – यहाँ प्रदत्त नौकरी (Paid Employment) के विचार कार्य करते हैं।
  2. अनौपचारिक क्षेत्र (Informal Sector) – इसक संदर्भ ऐसी अर्थव्यवस्था से है, जिसमें वस्तुओं या सेवाओं का प्रत्यक्ष विनिमय सम्मिलित है। अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का संदर्भ नियमित रोजगार के क्षेत्र से बाहरी लेन-देन से है।
  3. सेवा क्षेत्र (Service Sector) – सेवा क्षेत्र में लोगों के लिए अधिकतम कार्य की व्यवस्था संचार, स्वास्थ्य, शिक्षा, होटल, विमान-उद्योग, आई०टी० (I.T.), यातायात, कम्प्यूटर इत्यादि के क्षेत्रों में की जाती है।
  4. राजकीय क्षेत्र (Public Sector) – सरकार द्वारा सृजित नौकरी को राजकीय कार्य क्षेत्र कहा जाता है। उदाहरण के लिए, रेलवे, भारी उद्योग। ये सरकारी क्षेत्र के भाग हैं। भारत एक कल्याणकारी राज्य होने के कारण अनेक क्षेत्र जैसे यातायात इत्यादि केवल सरकार के द्वारा व्यवस्थित की गई है।
  5. निजी क्षेत्र (Private Sector) – वे कार्य जो निजी स्वामित्व के अधीन आते हैं। ये वस्तुतः लाभ अर्जित करने वाले व्यवसायिक क्षेत्र हैं। उदाहरण के लिए, टीसीएस (TCS), इनफोसिस (Infosys) इत्यादि।
  6. पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) – यह एक नई अवधारणा है, जिसमें राजकीय क्षेत्र और निजी क्षेत्र एक-दूसरे का सहयोग करते हैं। इस सहयो का परिणाम अर्थव्यवस्था का विकास है।

प्र० 4. अपने समाज में विद्यमान विभिन्न प्रकार के अधिकारों पर चर्चा करें। वे आपके जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं?
उत्तर- अधिकार के प्रकार :

  1. नागरिक अधिकार (Civil Rights) – सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, अभिव्यक्ति का अधिकार, धर्म का अनुसरण करने का अधिकार और खाद्य अधिकार अनेक नागरिक अधिकार हैं, जो भारत जैसे प्रजातांत्रिक देश में सभी लोगों को प्रदान किए गए हैं।
  2. सामाजिक अधिकार (Social Rights) – सभी भारतीय नागरिकों को कल्याण और सुरक्षा जैसे कि स्वास्थ्य लाभ के न्यूनतम मानक अधिकार के रूप में प्रदान किए गए हैं। मजदूरी की न्यूनतम । दर, वृद्धावस्था से संबंधित लाभ या बीपीएल (BPL-Below the Poverty Line)। विशेषतः गरीबी-रेखा के नीचे बसर कर रहे लोगों के लिए रोजगार भत्ता।
  3. राजनीतिक अधिकार (Political Rights) – वोट डालने का अधिकार और अभिव्यक्ति का अधिकार हमारे नागरिक अधिकार हैं।
  4. कल्याणकारी अधिकार (Welfare Rights) – विकसित पश्चिमी देशों में सामाजिक सुरक्षा। भारत विश्व में सबसे बड़ा प्रजातंत्र और कल्याणकारी राज्य होने के कारण अपने नागरिकों को उपरोक्त अधिकार प्रदान करता है। इन अधिकारों ने भारतीय समाज की संरचना, बनावट और कार्यविधि को रूपांतरित कर दिया है। आजादी, समानता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विश्वास और धर्म ने सामाजिक जाल की बनावट को रूपांतरित कर दिया है। तथा लोगों को स्वयं में विश्वास है और वे राजनीतिक दृष्टिकोण से सजग और परिपक्व/प्रौढ़ हैं। सामाजिक अधिकार से गरीब लोगों को शिक्षा का अवसर, अच्छा स्वास्थ्य और न्यूनतम मजदूरी प्राप्त । होती है, जिससे लोगों को शोषण से सुरक्षित रखा जाता है। वोट देने का अधिकार लोगों को वस्तुतः राज-निर्माता बना देता है, क्योंकि इसी अधिकार के कारण भारत
    में सरकार को चुना जाता है।

प्र० 5. समाजशास्त्र धर्म का अध्ययन कैसे करता है?
उत्तर- इमाइल दुर्खाइम (Emile Durkheim) के अनुसार, “धर्म पवित्र वस्तुओं से संबंधित अनेक विश्वासों और व्यवहारों की एक ऐसी संगठित व्यवस्था है, जो उन व्यक्तियों को एक नैतिक समुदाय की भावना में बाँधती है, जो उसी प्रकार के विश्वासों और व्यवहारों को अभिव्यक्त करते हैं।”

  • समाजशास्त्री धार्मिक प्राणियों में विश्वास के रूप में धर्म का अध्ययन करते हैं।
  • धर्म, कार्य तथा विश्वास की पद्धति एक सामाजिक प्रपंच और व्यक्तिगत अनुभूति का एक तरीका है।
  • धर्म अलौकिक शक्ति में विश्वास पर आधारित है। जिसमें जीववाद की अवधारणा सम्मिलित है।
  • समाजशास्त्रीय परिदृश्य में धर्म समाज के लिए अनेक कार्यों का निर्वाह करता है। यह सामाजिक नियंत्रण का एक स्वरूप है।
  • धर्म सभी ज्ञात समाजों में विद्यमान है। हालाँकि धार्मिक विश्वास और व्यवहार का स्वरूप विभिन्न संस्कृतियों में अलग-अलग है।
  • धर्म वस्तुतः एक व्यक्तिगत प्रपंच है, लेकिन इसका सार्वजनिक पहलू भी है, जिसका सामाजिक संस्था पर व्यापक प्रभाव है।
  • धर्म प्रथाओं और अनुष्ठानों का संग्रह है। धर्म की उपस्थिति के कारण लोग प्रथाओं और प्रतिमानों का आदर करते हैं, जो सामाजिक तंत्र का पोषण करते हैं।
  • धर्म लोगों को जटिल, संतुलित, एकीकृत, स्वस्थ्य और खुशहाल व्यक्तित्व के निर्माण तथा सामाजिक कल्याणकारी कार्यों में सहभागिता के लिए प्रेरित करता है।
    समाजशास्त्री धर्म के लोक स्वरूप का अध्ययन करता है, क्योंकि सामाजिक परिदृश्य में इसका सर्वाधिक महत्व है, जो समाज और सामाजिक संस्था का ध्यान रखता है।

प्र० 6. सामाजिक संस्था के रूप में विद्यालय पर एक निबंध लिखिए। अपनी पढ़ाई और वैयक्तिक प्रेक्षणों, दोनों का इसमें प्रयोग कीजिए।
उत्तर-

  • विद्यालय एक सामाजिक संस्था है, जो व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के उद्देश्य के साथ औपचारिक शिक्षा की व्यवस्था करती है।
  • वर्ग शिक्षण और पाठ्यक्रम एवं सह-पाठ्यक्रम से संबंधित क्रिया-कलापों के माध्यम से विद्यालय छात्रों को बड़ा होने में, पूर्ण रूप से कार्य करने में, सृजनात्मक आत्म-विमोचन की क्रिया और अच्छा प्राणी बनने में सहायता करता है।
  • विद्यालय बच्चों के लिए शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, धार्मिक और सामाजिक विकास की व्यवस्था प्रस्तुत करता है।
  • विद्यालय ऐसे वातावरण की व्यवस्था करता है, जिसके द्वारा बच्चों तक सामाजिक प्रतिमानों को संचार होता है।
    निर्देश – उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर विद्यार्थी स्वयं निबंध लिखें।

प्र० 7. चर्चा कीजिए कि सामाजिक संस्थाएँ परस्पर कैसे संपर्क करती हैं। आप विद्यालय के वरिष्ठ छात्र के रूप में स्वयं के बारे में चर्चा आरंभ कर सकते हैं। साथ ही विभिन्न सामाजिक संस्थाओं द्वारा आपके व्यक्तित्व को किस प्रकार एक आकार दिया गया, इसके बारे में भी चर्चा करें। क्या आप इन सामाजिक संस्थाओं से पूरी तरह नियंत्रित हैं या आप इनका विरोध या इन्हें पुनःपरिभाषित कर सकते हैं?
उत्तर- विद्यार्थी स्वयं करें।

Hope given Introducing Sociology Class 11 Solutions Chapter 3 are helpful to complete your homework.

NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 15 (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 15

NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 15 Life on the Earth (Hindi Medium)

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 11 Geography. Here we have given NCERT Solutions for Class 11 Geography Fundamentals of Physical Geography Chapter 15 Life on the Earth.

[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED] (पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न)

प्र० 1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
(i) निम्नलिखित में से कौन जैव मंडल में सम्मिलित हैं
(क) केवल पौधे
(ख) केवल प्राणी
(ग) सभी जैव व अजैव जीव
(घ) सभी जीवित जीव
उत्तर- (ग) सभी जैव व अजैव जीव

(ii) उष्णकटिबंधीय घास का मैदान निम्न में से किसे नाम से जाने जाते हैं?
(क) प्रेयरी
(ख) स्टैपी
(ग) सवाना
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर- (ग) सवाना

(iii) चट्टानों में पाए जाने वाले लोहांश के साथ ऑक्सीजन मिलकर निम्नलिखित में से क्या बनाती है?
(क) आयरन कार्बोनेट
(ख) आयरन ऑक्साइड
(ग) आयरन नाइट्राइट
(घ) आयरन सल्फेट
उत्तर- (ख) आयरन ऑक्साइड

(iv) प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के दौरान, प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड जल के साथ मिलकर क्या बनाती है?
(क) प्रोटीन
(ख) कार्बोहाइड्रेटस
(ग) एमिनोएसिड
(घ) विटामिन
उत्तर- (ख) कार्बोहाइड्रेटस

प्र० 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तरे लगभग 30 शब्दों में दीजिए:
(i) पारिस्थितिकी से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- जीवधारियों का आपस में व उनका भौतिक पर्यावरण से अंतर्संबंधों का वैज्ञानिक अध्ययन ही पारिस्थितिकी है। पारिस्थितिकी ही प्रमुख रूप से जीवधारियों के जन्म, विकास, वितरण, प्रवृत्ति व उनके प्रतिकूल
अवस्थाओं में भी जीवित रहने से संबंधित है।

(ii) पारितंत्र क्या है? संसार के प्रमुख पारितंत्र प्रकारों को बताएँ।
उत्तर- किसी विशेष क्षेत्र में किसी विशेष समूह के जीवधारियों का भूमि, जल अथवा वायु (अजैविक तत्वों) से ऐसा अंतर्संबंध, जिसमें ऊर्जा प्रवाह व पोषण श्रृंखला स्पष्ट रूप से समायोजित हो, पारितंत्र कहा जाता है। पारितंत्र मुख्यतः दो प्रकार के हैं- (i) स्थलीय पारितंत्र (ii) जलीय पारितंत्र। स्थलीय पारितंत्र को वन, घास क्षेत्र, मरुस्थल तथा टुण्ड्रो पारितंत्र तथा जलीय पारितंत्र को समुद्री पारितंत्र तथा ताजे पानी के परितंत्र में बाँटा जाता है। समुद्री परितंत्र को महासागरीय, ज्वारनदमुख, प्रवाल भित्ति पारितंत्र तथा ताजे पानी के पारितंत्र को झीलें, तालाब, सरिताएँ, कच्छ व दलदल पारितंत्र में बाँटा जाता है।

(iii) खाद्य श्रृंखला क्या है? चराई खाद्य श्रृंखला का एक उदाहरण देते हुए इसके अनेक स्तर बताएँ।
उत्तर- प्राथमिक उपभोक्ता, द्वितीयक उपभोक्ताओं के भोजन बनते हैं। द्वितीयक उपभोक्ता फिर तृतीयक उपभोक्ताओं के द्वारा खाए जाते हैं। यह खाद्य क्रम और इस क्रम से एक स्तर से दूसरे स्तर पर ऊर्जा प्रवाह ही खाद्य श्रृंखला कहलाती है। चराई खाद्यश्रृंखला पौधों से शुरू होकर मांसाहारी तक जाती है, जिसमें शाकाहारी जीव घास खाता है और शाकाहारी जीव को मांसाहारी जीव खाता है, हर स्तर पर ऊर्जा का ह्रास होता है, जिसमें श्वसन, उत्सर्जन व विघटन प्रक्रियाएँ सम्मिलित हैं। खाद्य श्रृंखलाओं में तीन से पाँच स्तर होते हैं और हर स्तर पर ऊर्जा कम होती है। उदाहरणस्वरूप
घास-बकरी-शेर घास-कीट-मेढक-साँप-बाजे

(iv) खाद्य जाल से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित बताएँ।
उत्तर- खाद्य श्रृंखलाएँ पृथक अनुक्रम न होकर एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं। जैसे-एक चूहा, जो अन्न पर निर्भर है, वह अनेक द्वितीयक उपभोक्ताओं का भोजन है और तृतीयक माँसाहारी अनेक द्वितीयक जीवों से अपने भोजन की पूर्ति करते हैं। इस प्रकार प्रत्येक माँसाहारी जीव एक से अधिक प्रकार के शिकार पर निर्भर हैं। परिणामस्वरूप खाद्य श्रृंखलाएँ एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। प्रजातियों के इस प्रकार जुड़े होने (अर्थात जीवों की खाद्य श्रृंखलाओं के विकल्प उपलब्ध होने पर) को खाद्य जाल कहा जाता है।

(v) बायोम क्या है?
उत्तर- बायोम पौधों एवं प्राणियों का एक समुदाय है जो एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र में पाया जाता है। पृथ्वी पर विभिन्न बायोम की सीमा का निर्धारण जलवायु व अपक्षय संबंधी तत्व करते हैं। अत: विशेष परिस्थितियों में पादप एवं जंतुओं के अंतर्संबंधों के कुल योग को बायोम कहते हैं। इसमें वर्षा, तापमान, आर्द्रता व मिट्टी संबंधी अवयव भी शामिल हैं। संसार के कुछ प्रमुख बायोम वन, मरुस्थलीय, घास भूमि और उच्च प्रदेशीय हैं।

प्र० 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए:
(i) संसार के विभिन्न वन बायोम की महत्त्वपूर्ण विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर- वन बायोम को चार भागों में बाँटा जाता है
(i) भूमध्यरेखीय उष्ण कटिबंधीय
(ii) पर्णपाती उष्ण कटिबंधीय
(iii) शीतोष्ण कटिबंधीय
(iv) बोरियल।

(i) भूमध्यरेखीय उष्ण कटिबंधीय बायोम – यह भूमध्यरेखा से 10° उत्तर और दक्षिण अक्षांश के बीच स्थित है। यहाँ तापमान सालों भर 20° से 25° सेंटीग्रेड रहता है। यहाँ की मृदा अम्लीय है, जिसमें पोषक तत्वों की कमी है। यहाँ वृक्ष काफी लंबे और घने होते हैं।

(ii) पर्णपाती उष्ण कटिबंधीय बायोम – यह बायोम 10° से 25° उत्तर व दक्षिण अक्षांश के बीच स्थित है। यहाँ तापमान 25 से 30° सेंटीग्रेड के बीच होता है। यहाँ वर्षा का वार्षिक औसत 1,000 मि०मी० एक ऋतु में है। यहाँ मिट्टी पोषक तत्वों के मामले में धनी है। यहाँ अनेक प्रजातियों के कम घने तथा मध्यम ऊँचाई के वृक्ष एक साथ पाए जाते हैं।

(iii) शीतोष्ण कटिबंधीय बायोम – यह बायोम पूर्वी उत्तरी अमेरिका, उत्तर-पूर्वी एशिया, पश्चिमी एवं मध्य यूरोप में पाया जाता है। यहाँ का तापमान 20° से 30° सेंटीग्रेड के बीच रहता है। यहाँ वर्षा समान रुप से 750 से 1500 मि०मी० होती है। यहाँ असाधारण शीत पड़ती है तथा ऋतुएँ भी स्पष्ट हैं। यहाँ की मिट्टी उपजाऊ है, जो अवधटक जीवों व कूड़ा-कर्कट आदि पदार्थों-हयूमस से भरपूर है। यहाँ मध्यम घने चौड़े पत्ते वाले वृक्ष पाए जाते हैं। यहाँ पौधों की प्रजातियों में कम विविधता पाई जाती है। ओक, बीच, मेप्पल आदि कुछ सामान्य प्रजातियों के वृक्ष यहाँ बहुतायत में पाए जाते हैं। गिलहरी, खरगोश, पक्षी, काले भालू, पहाड़ी शेर व स्कंक यहाँ पाए जाने वाले कुछ प्रमुख प्राणी हैं।

(iv) बोरियल बायोम – यह बायोम यूरेशिया व उत्तरी अमेरिका के उच्च अक्षांशीय भाग, साइबेरिया के कुछ भाग, अलास्का, कनाडा व स्केंडेनेवियन देश में पाया जाता है। यहाँ छोटा आर्द्र ऋतु व मध्यम रूप से गर्म ग्रीष्म ऋतु तथा लंबी (वर्षा रहित) शीत ऋतु होती है। यहाँ वर्षा मुख्यतः हिमपात के रूप में 400 से 1000 मि०मी० होती है। यहाँ की मिट्टी अम्लीय है, जिसमें पोषक तत्वों की कमी है। यहाँ मिट्टी की परत अपेक्षाकृत पतली है। यहाँ सामान्यतः पाइप, फर, स्पूस आदि के सदाबहार कोणधारी वन पाए जाते हैं। कठफोड़ा, चील, भालू, हिरण, खरगोश, भेड़िया, चमगादड़ आदि यहाँ पाई जाने वाली प्रमुख प्रजातियाँ है।

(ii) जैव भू-रासायनिक चक्र क्या है? वायुमंडल में नाइट्रोजन का यौगिकीकरण कैसे होता है? वर्णन करों
उत्तर- सूर्य ऊर्जा का मूल स्रोत है, जिस पर संपूर्ण जीवन निर्भर है। यही ऊर्जा जैवमंडल में प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा जीवन प्रक्रिया आरंभ करती है, जो हरे पौधों के लिए भोजन व ऊर्जा का मुख्य आधार है। प्रकाश संश्लेषण के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन व कार्बनिक यौगिक में परिवर्तित हो जाती है। धरती पर पहुँचने वाले सूर्यातप का बहुत छोटा भाग (केवल 0.1 प्रतिशत) प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में काम
आता है। इसका आधे से अधिक भाग पौधे की श्वसन-विसर्जन क्रिया में और शेष भाग अस्थायी रूप से पौधे के अन्य भागों में संचित हो जाता है। विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि पिछले 100 करोड़ वर्षों में वायुमंडल एवं जलमंडल की संरचना में रासायनिक घटकों का संतुलन लगभग एक जैसा अर्थात् बदलाव रहित रहा है।

रासायनिक तत्वों का यह संतुलन पौधे व प्राणी ऊतकों से होने वाले चक्रीय प्रवाह के द्वारा बना रहता है। यह चक्र जीवों द्वारा रासायनिक तत्वों के अवशोषण से आरंभ होता है और उनके वायु, जल व मिट्टी में विघटन से पुनः आरंभ होता है। ये चक्रे मुख्यतः सौर ताप से संचालित होते हैं। जैवमंडल में जीवधारी व पर्यावरण के बीच ये रासायनिक तत्वों के चक्रीय प्रवाह जैव भू-रासायनिक चक्र कहे जाते हैं। जैव भू-रासायनिक चक्र दो प्रकार के हैं–एक गैसीय और दूसरा तलछटी चक्र। गैसीय चक्र में पदार्थ के मुख्य भंडार वायुमंडल व महासागर हैं। तलछटी चक्र के प्रमुख भंडार पृथ्वी की भूपर्पटी पर पाई जाने वाली मिट्टी, तलछट व अन्य चट्टाने हैं।

(iii) पारिस्थितिकी संतुलन क्या है? इसके असंतुलन को रोकने के महत्त्वपूर्ण उपायों की चर्चा करें।
उत्तर- किसी पारितंत्र या आवास में जीवों के समुदाय में परस्पर गतिक साम्यता की अवस्था ही पारिस्थितिकी संतुलन है। यह तभी संभव है जब जीवधारियों की विविधता अपेक्षाकृत स्थायी रहे। क्रमशः परिवर्तन भी होता है, लेकिन ऐसा प्राकृतिक अनुक्रमण के द्वारा ही होता है। इसे पारितंत्र में हर प्रजाति की संख्या के एक स्थायी संतुलन के रूप में भी वर्णित किया जा सकता है। यह संतुलन निश्चित प्रजातियों में प्रतिस्पर्धा
आपसी सहयोग से होता है। कुछ प्रजातियों के जिंदा रहने के संघर्ष से भी पर्यावरण संतुलन प्राप्त किया जाता है। संतुलन इस बात पर निर्भर करता है कि कुछ प्रजातियाँ अपने भोजन व जीवित रहने के लिए दूसरी प्रजातियों पर निर्भर रहती हैं। इसके उदाहरण विशाल घास के मैदानों में मिलते हैं, जहाँ शाकाहारी जंतु अधिक संख्या में होते हैं और उन्हें मांसाहारी जीव खाते हैं। इस तरह से पारिस्थितिकी में संतुलन बना रहता है।

पारिस्थितिकी असंतुलन को रोकने के उपाय – विशेष आवास स्थानों में पौधों व प्राणी समुदायों में घनिष्ट अंतर्संबंध पाए जाते हैं। निश्चित स्थानों पर जीवों में विविधता वहाँ के पर्यावरणीय कारकों का संकेतक है। इन कारकों का समुचित ज्ञान व समझ ही पारितंत्र के संरक्षण व बचाव के प्रमुख आधार हैं।

परियोजना कार्य-
(i) प्रत्येक बायोम की प्रमुख विशेषताओं को बताते हुए विश्व के मानचित्र पर विभिन्न बायोम के वितरण को दशाईए।
(ii) अपने स्कूल प्रांगण में पाए जाने वाले पेड़, झाड़ी व सदाबहार पौधों पर एक संक्षिप्त लेख लिखें और लगभग आधे दिन यह पर्यवेक्षण करें कि किस प्रकार के पक्षी इस वाटिका में आते हैं। क्या आप इन पक्षियों की विविधता का भी उल्लेख कर सकते हैं?
उत्तर- छात्र स्वयं करें।

Hope given Fundamentals of Physical Geography Class 11 Solutions Chapter 15 are helpful to complete your homework.

error: Content is protected !!