Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 2 Questions and Answers Summary तलाश

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 2 Questions and Answers Summary तलाश

प्रश्न 1.
नेहरू जी के मन में क्या प्रश्न उठते थे?
उत्तर:
नेहरू जी के मन में निम्नलिखित प्रश्न उठते थे-
• आखिर भारत है क्या?
• अतीत में भारत किस विशेषता का प्रतिनिधित्व करता था?
• भारत ने अपनी प्राचीन संस्कृति को कैसे खो दिया?
• क्या आज भी भारत के पास ऐसा कुछ बचा है जिसे जानदार कहा जा सके?
• आधुनिक विश्व से उसका तालमेल किस रूप में बैठता है?

प्रश्न 2.
लेखक ने भारत को किस रूप में देखा?
उत्तर:
लेखक ने भारत को आलोचक के रूप में देखा।

प्रश्न 3.
लेखक कहाँ खड़ा था?
उत्तर:
लेखक भारत के उत्तर-पश्चिम में स्थित सिंधुघाटी में मोहनजोदड़ो के एक टीले पर खड़ा था। उसके चारों तरफ प्राचीन नगर के घर और गलियाँ बिखरी पड़ी थीं।

प्रश्न 4.
सिंधु घाटी की सभ्यता का समय क्या बताया गया है?
उत्तर:
लेखक द्वारा इसका समय लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व बताया गया है।

प्रश्न 5.
सिंधु घाटी की सभ्यता के बारे में क्या बताया गया है?
उत्तर:
• यह सभ्यता पूर्ण व विकसित थी।
• इसका आधार ठेठ भारतीयपन था।
• इसका समय लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व था।
• इसका अन्य सभ्यताओं से भी संबंध रहा था।

प्रश्न 6.
लेखक पर किसने प्रभाव डाला?
उत्तर:
लेखक पर प्राचीन साहित्य के विचारों की ओजस्विता, भाषा की स्पष्टता और उसके पीछे सक्रिय मस्तिष्क की समृद्धि ने गहरा प्रभाव डाला।

प्रश्न 7.
इस सभ्यता का दूसरे किन देशों के लोगों से संपर्क रहा?
उत्तर:
फारस, मिस्र, ग्रीस, चीन, अरब, मध्य एशिया और भू-मध्यसागर के लोगों से उसका बराबर निकटसंपर्क रहा।

प्रश्न 8.
पहाड़ों के बारे में लेखक का क्या कहना है?
उत्तर:
लेखक का पहाड़ों के प्रति विशेष प्रेम था। कश्मीर के साथ उसका खून का रिश्ता था।

प्रश्न 9.
नदियों के बारे में नेहरू जी के क्या विचार हैं?
उत्तर:
पर्वतों से निकलकर भारत के मैदानी भागों में बहने वाली नदियों ने आकर्षित किया है। यमुना के चारों ओर नृत्य, उत्सव और नाटक से संबंधित अनेक पौराणिक कथाएँ हैं। भारत की प्रमुख नदी गंगा ने भारत के हृदय पर राज किया है। गंगा की गाथा भारत की सभ्यता और संस्कृति की कहानी है।

प्रश्न 10.
किसके पत्थर भारत के अतीत की कहानी कहते हैं?
उत्तर:
पुराने स्मारकों और भग्नावशेषों, पुरानी मूर्तियों, भित्तिचित्रों, अजंता-एलोरा, एलिफेंटा की गुफाएँ भारत के अतीत की कहानी कहते हैं।

प्रश्न 11.
नेहरू जी ने कुंभ पर्व पर क्या देखा?
उत्तर:
नेहरू जी अपने शहर इलाहाबाद व हरिद्वार में कुंभ पर्व पर मेले में जाते थे। वहाँ हजारों की संख्या में लोग आते और गंगा-स्नान करते थे।

प्रश्न 12.
नेहरू जी ने किन-किन ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण किया था?
उत्तर:
नेहरू जी ने निम्नलिखित ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण किया था-
• अजंता, एलोरा, एलिफेंटा की गुफाएँ।
• आगरा और दिल्ली में बनी इमारतें।
• बनारस के पास सारनाथ।
• फतेहपुर सीकरी, हरिद्वार आदि।

प्रश्न 13.
लेखक को किन-किन कारणों से उत्तरोत्तर गिरावट का अनुभव होता है?
उत्तर:
लेखक को लगता है-शब्दाडंबर की प्रधानता, भव्य कला एवं मूर्ति-निर्माण की जगह जटिल पच्चीकारी वाली नक्काशी का होना, सरल, सजीव और समृद्ध भाषा के स्थान पर अत्यंत अलंकृत और जटिल साहित्य शैली अपनाना, संकीर्ण रूढ़िवादिता उत्तरोत्तर गिरावट का कारण है।

प्रश्न 14.
लेखक को किससे संतोष नहीं हुआ?
उत्तर:
लेखक को पुस्तकों, प्राचीन स्मारकों और विगत् उपलब्धियाँ तो समझ आईं, लेकिन उसे वह नहीं मिला जिसकी वह तलाश कर रहा था। इसलिए उसे संतोष नहीं हुआ।

प्रश्न 15.
लेखक को किस बात से निराशा नहीं हुई?
उत्तर:
लेखक ने सामान्य व्यक्तियों से बहुत अपेक्षाएँ नहीं रखी थी, इसलिए उसे बहुत निराशा नहीं हुई। उसने उससे जितनी उम्मीद की थी, उससे अधिक पाया।

प्रश्न 16.
भारत माता के संबंध में नेहरू जी ने लोगों से क्या प्रश्न पूछे? उन्हें क्या उत्तर मिला?
उत्तर:
‘भारत माता की जय’ बोलने वालों से नेहरू जी प्रश्न पूछते थे कि इस जयकारे से उनका क्या आशय है? जब एक किसान ने उन्हें बताया कि भारत माता हमारी धरती है, भारत की प्यारी मिट्टी है। तब नेहरू जी पूछते-कौन-सी मिट्टी-अपने गाँव की, जिले की, राज्य की या पूरे भारत की मिट्टी?

प्रश्न 17.
नेहरू जी ने सीमित नजरिये वाले किसानों को क्या बताया?
उत्तर:
लेखक ने सीमित नजरिये वाले किसानों को बताया कि जिस देश की मुक्ति के लिए हम संघर्ष कर रहे हैं, उसका हर हिस्सा एक-दूसरे से भिन्न होते हुए भी भारत है। उन्होंने किसानों को उनकी समस्याओं के बारे में जानकारी दी।

प्रश्न 18.
भारत की विविधता कैसे अद्भुत है?
उत्तर:
भारत में विविधता प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देती है। यह शारीरिक व मानसिक दोनों रूपों में दिखाई देती है। उत्तर-पश्चिम क्षेत्र के पठानों और सुदूर दक्षिण के वासी तमिल में बहुत कम समानता है, पर उनके भीतरी सूत्र एक समान ही हैं।

प्रश्न 19.
क्या जानकारी हैरत में डालने वाली है?
उत्तर:
यह जानकारी बेहद हैरत में डाल देने वाली है कि बंगाली, मराठी, गुजराती तमिल, आंध्र, उडिया, असमी, कन्नड़, मलयाली, सिंधी, पंजाबी, पठान, कश्मीरी, राजपूत और हिंदुस्तानी भाषा-भाषी कैसे सैकड़ों वर्षों से अपनी पहचान बनाये रहते हैं। सबके गुण- दोष एक से हैं।

प्रश्न 20.
अब कौन-सी अवधारणा विकसित हो गई?
उत्तर:
अब राष्ट्रवाद की भावना अधिक विकसित हो गई है। विदेशों में भारतीय अनिवार्य रूप से एक राष्ट्रीय समुदाय बनाकर विभिन्न कारणों से जुटते रहते हैं; भले ही उनमें भीतरी भेद हो। एक हिंदुस्तानी ईसाई कहीं भी जाए, उसे हिंदुस्तानी ही माना जाता है।

प्रश्न 21.
अनपढ़ ग्रामीणों को क्या याद थे?
उत्तर:
अनपढ़ ग्रामीणों को महाकाव्यों व ग्रंथों के सैकड़ों पद याद थे जिनका प्रयोग वे अपनी बातचीत के दौरान करते थे। वे प्राचीन कथाओं में सुरक्षित नैतिक शिक्षाओं का भी उल्लेख करते थे।

प्रश्न 22.
लेखक कब विस्मय-मुग्ध हो जाता है?
उत्तर:
लेखक जब गाँवों से गुजरते हुए किसी मनोहर पुरुष व स्त्री को देखता था तो उनके संवेदनशील चेहरे, बलिष्ठ देह, महिलाओं में लावण्यता, नम्रता, गरिमा आदि देखकर वह मंत्र-मुग्ध हो जाता था।

भारत के अतीत की झाँकी-नेहरू जी कहते हैं कि बीते सालों में उनका भारत को समझने का प्रयास रहा है। उनके मन में देश के प्रति प्रश्न उठते हैं कि आखिर भारत क्या है? भारत भूतकाल की किस विशेषता का प्रतिनिधित्व करता था? उसने अपनी प्राचीन शक्ति को कैसे खो दिया? भारत उनके खून में रचा-बसा था। उन्होंने भारत को एक आलोचक की दृष्टि से देखना शुरू किया। उनके मन में तरह-तरह की शंकाएँ उठ रही थीं। वे विशेष तत्त्व को जानना चाहते थे।

नेहरू जी भारत के उत्तर-पश्चिम में स्थित सिंधु घाटी में मोहनजोदड़ो के एक टीले पर खड़े थे। उनके चारों ओर उस नगर के घर और गलियाँ बिखरी थीं। इस नगर को 5000 वर्ष पूर्व का बताया गया है। वहाँ एक प्राचीन और पूर्ण विकसित सभ्यता थी-इसका ठेठ भारतीयपन और यही आधुनिक भारतीय सभ्यता का आधार है। भारत ने फारस, मिस्र, ग्रीस, चीन, अरब, मध्य एशिया तथा भू-मध्यसागर के लोगों को अपनी सभ्यता से प्रभावित किया तथा स्वयं भी उनसे प्रभावित हुआ।

नेहरू जी ने भारतीय इतिहास और उसके विशाल प्राचीन साहित्य को पढ़ा जिससे वह प्रभावित हुए। उन्होंने चीन और पश्चिमी एशिया से आए पराक्रमी यात्रियों की दास्तान को पढ़ा और समझा। वे हिमालय पर भी घूमते रहे जिसका पुराने मिथकों और दंत-कथाओं के साथ निकट संबंध है, जिसने उनके विचारों और साहित्य को प्रभावित किया। पहाड़ों के प्रति, विशेषकर कश्मीर के प्रति उनका विशेष लगाव रहा है। भारत की विशाल नदियाँ उन्हें आकर्षित करती रही हैं। इंडस और सिंधु के नाम पर हमारे देश का नाम इंडिया और हिन्दुस्तान पड़ा। यमुना के चारों ओर नृत्य, उत्सव और नाटक से संबंधित न जाने कितनी पौराणिक कथाएँ एकत्र हैं। भारत की नदी गंगा ने भारत के हृदय पर राज किया है। प्राचीन काल से आधुनिक युग तक गंगा की धारा व गाथा भारत की सभ्यता और संस्कृति की कहानी है।

नेहरू जी कहते हैं कि उन्होंने भारत के पुराने स्मारकों, पुरानी मूर्तियों, अजंता, एलोरा, एलिफेंटा की गुफाओं को देखा है। वे अपने नगर इलाहाबाद और हरिद्वार में कुंभ के मेले के अवसर पर जाते थे। उनकी यात्राओं ने उन्हें अतीत में देखने की दृष्टि प्रदान की। उन्हें सच्चाई का बोध होने लगा। उनके मन में अतीत के सैकड़ों चित्र भरे हुए थे। बनारस के पास सारनाथ में उन्होंने बुद्ध को पहला उपदेश देते हुए अनुभव किया था। उन्हें अकबर का विभिन्न संतों और विद्वानों के साथ संवाद और वाद-विवाद की अनुभूति हो रही थी। इस प्रकार इतिहास के द्वारा भारत की लंबी झाँकी अपने उतार-चढ़ावों, विजय-पराजयों के साथ नेहरू जी ने देखा था।

भारत की शक्ति और सीमा- भारत की शक्ति के स्रोतों और नाश के कारणों की खोज लंबी और उलझी हुई है। नई तकनीकों ने पश्चिमी देशों को सैनिक बल दिया और उनके लिए अपना विस्तार करके पूरब पर अधिकार करना आसान हो गया। पुराने समय में भारत में मानसिक सजगता और तकनीकी कौशल की कमी नहीं थी, किंतु बाद की सदियों में गिरावट आने लगी। भव्य कला और मूर्ति-निर्माण का स्थल जटिल साहित्य-शैली विकसित हुई। विवेकपूर्ण चेतना लुप्त हो गई और अतीत की अंधी मूर्ति-पूजा ने उसकी जगह ले ली। इस हालात में भारत का ह्रास होने लगा, किंतु यह स्थिति का पूरा और पूर्णतः सही सर्वेक्षण नहीं है। एक युग के अंत पर नई चीजों का निर्माण होता रहा। समय-समय पर पुनर्जागरण के दौर आते रहे।

भारत की तलाश- लेखक ने भारत की समझ के लिए पुस्तकों, प्राचीन स्मारकों, विगत् सांस्कृतिक उपलब्धियों का अध्ययन किया, लेकिन उससे उसे संतोष नहीं हुआ। लेखक मध्य वर्ग व अपने जैसे लोगों का प्रशंसक नहीं था। मध्य वर्ग खुद तरक्की करना चाहता था। अंग्रेजी शासन के ढाँचे में ऐसा न कर पाने के कारण इस वर्ग में विद्रोह की भावना पनपी। लेकिन अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकना उसके वश की बात नहीं थी। नई ताकतों ने सिर उठाया। दूसरे ढंग का भारत अस्तित्व में आया। लेखक ने वास्तविक भारत की तलाश शुरू की। इससे उसके अंदर समझ और द्वंद्व पैदा हुआ। कुछ लोग ग्रामीण समुदाय से पहले से परिचित थे, इसलिए उन्हें कोई नया उत्तेजक अनुभव नहीं हुआ। भारत की ग्रामीण जनता में ऐसा कुछ था जिसे परिभाषित करना कठिन है। लेखक आम जनता की अवधारणा को काल्पनिक नहीं बनाना चाहता। उसके लिए भारत के लोगों का सारी विविधता के साथ अस्तित्व है। लेखक ने जितनी उम्मीद की थी, उससे कहीं अधिक पाया। भारत के लोगों में एक प्रकार की दृढ़ता और अंतःशक्ति है जिसका कारण भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परंपरा है। बहुत कुछ समाप्त हो जाने के उपरांत भी बहुत कुछ ऐसा है जो सार्थक है। इसके साथ काफी कुछ निरर्थक और अनिष्टकर भी है।

भारत माता- नेहरू जी अक्सर सभाओं में लोगों से भारत के स्वरूप के बारे में चर्चा करते थे। ‘भरत’ के नाम पर भारत का प्राचीन संस्कृत नाम है। यह बात उन्होंने सीमित दृष्टिकोण रखने वाले किसानों को बताने का प्रयास किया तथा इस महान देश को मुक्ति दिलाने के लिए जागरुक किया। उन्होंने अपनी यात्राओं में किसानों की विविध समस्याओं-गरीबी, कर्ज, निहित स्वार्थ, जमींदार, महाजन, भारी लगान, पुलिस अत्याचार पर चर्चा की। उन्होंने लोगों को अखंड भारत के बारे में सोचने के लिए कहा। यहाँ के लोगों को प्राचीन महाकाव्यों, दंत-कथाओं की पूरी जानकारी थी। लोग ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाते थे। नेहरू जी लोगों से ‘भारत माता की जय’ से उनका क्या आशय है, इसके बारे में पूछते थे। एक व्यक्ति ने उत्तर दिया-भारत माता हमारी धरती है, भारत की मिट्टी प्यारी है। भारत में ही सब कुछ है। भारत के पहाड़ और नदियाँ जंगल और फैले हुए खेत जो हमारे लिए भोजन मुहैया करते हैं, यह सब उसे प्रिय हैं। ‘भारत माता की जय’ ‘जनता- जनार्दन की जय’। लेखक ने उनसे कहा कि तुम भारत माता के हिस्से हो; एक तरह से खुद ही भारत माता हो। यह विचार धीरे-धीरे लोगों के दिमाग में बैठता जाता और उनकी आँखें चमकने लगती मानो उन्होंने कोई महान खोज कर ली हो।

भारत की विविधता और एकता- भारत की विविधता भी अद्भुत है। प्रकट रूप में यह दिखाई पड़ती है। बाहर से देखने पर उत्तर-पश्चिमी इलाके के पठान और सुदूर दक्षिण वासी तमिल में बहुत कम समानता है। इनमें चेहरे-मोहरे, खान-पान, वेशभूषा और भाषा में बहुत अंतर है। पठानों के लोक-नृत्य रूसी कोजक नृत्यशैली से मिलते हैं। इन तमाम विभिन्नताओं के बावजूद पठान पर भारत की छाप वैसी ही स्पष्ट है जैसी तमिल पर है। सीमांत क्षेत्र प्राचीन भारतीय संस्कृति के प्रमुख केंद्रों में से था। तक्षशिला का महान विश्वविद्यालय दो हजार वर्ष पहले प्रसिद्धि की चरम् सीमा पर था। पठान और तमिल तो मात्र दो उदाहरण हैं। बाकी की स्थिति इन दोनों के बीच की है। सबकी अपनी अलग-अलग विशेषताएँ हैं। सब पर गहरी छाप भारतीयता की है। भारत में विभिन्न भाषाएँ व बोलियाँ बोली जाती हैं। इसके बावजूद सभी भारतीय हैं, सबकी विरासत एक है। उनकी नैतिक व मानसिक विशेषताएँ एक हैं। प्राचीन चीन की तरह प्राचीन भारत अपने आप में एक दुनिया थी, एक संस्कृति और सभ्यता थी जिसने तमाम चीजों को आकार दिया। विदेशी भी आए और यहीं विलीन हो गए। किसी भी देशीय समूह में छोटी-छोटी विविधताएँ हमेशा देखी जाती हैं। आज राष्ट्रीयतावाद की अवधारणा कहीं अधिक विकसित हो गई, भले ही उनमें भीतरी मतभेद हो। एक हिंदुस्तानी ईसाई, मुसलमान कहीं भी जाए, एक हिंदुस्तानी ही समझा जाएगा। लेखक ने भारत की यात्रा की, उसे समझा है। इस कारण वह समग्र देश का चिन्तन व मनन करता है।

जन-संस्कृति- लेखक जनता में एक गतिशील जीवन नाटक देखता है। हर जगह एक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि है जिसका जनता पर गहरा प्रभाव है। इस पृष्ठभूमि पर लोक-प्रचलित दर्शन, परंपरा, इतिहास, मिथक, पुराकथाओं का मेल था। भारत के प्राचीन महाकाव्य-रामायण और महाभारत जनता के बीच प्रसिद्ध थे और हैं। नेहरू जी ऐसी कहानी का उल्लेख करते थे जिससे कोई नैतिक उपदेश निकलता हो। उनके मन में लिखित इतिहास और तथ्यों का भंडार था। गाँव के रास्ते से निकलते हुए लेखक की नज़र जब सुंदर स्त्री या पुरुष पर पड़ती थी तो वे विस्मय मुग्ध हो जाते थे।

उन्हें लगता था कि तमाम भयानक कष्टों के बावजूद जिनसे भारत सदियों से गुजरता रहा, आखिर यह सौंदर्य कैसे टिका और बना रहा। चारों ओर गरीबी और उनसे उत्पन्न होने वाली अनगिनत विपत्तियाँ फैली हुई थी और इसकी छाप हर मनुष्य के माथे पर थी। सामाजिक विकृति से तरह-तरह के भ्रष्टाचार उत्पन्न हुए थे। अभाव और सुरक्षा की भावना पैदा थी। इस सबके बावजूद नम्रता और भलमनसाहत लोगों में मौजूद थी जो हजारों वर्षों की सांस्कृतिक विरासत की देन थी।

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