NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 18 टोपी

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टोपी NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 18

Class 8 Hindi Chapter 18 टोपी Textbook Questions and Answers

कहानी से

प्रश्न 1.
गवरइया और गवरा के बीच किस बात पर बहस हुई और गवरइया को अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर कैसे मिला ?
उत्तर:
गवरइया और गवरा के बीच कपड़े पहनने को लेकर बहस हुई। गवरइया का कहना था कि कपड़े मौसम की मार से बचने के लिए भी पहने जाते हैं। गवरइया टोपी पहनना चाहती है। उसे घूरे पर चुगते समय रूई का एक फाहा मिल जाता है। इसी से उसे अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर मिल गया।

प्रश्न 2.
गवरइया और गवरे की बहस के तर्कों को एकत्र करें और उन्हें संवाद के रूप में लिखें।
उत्तर:
गवरइया – आदमी को देखते हो ? कैसे रंग-बिरंगे कपड़े पहनते हैं! कितना फबता है उन पर कपड़ा!
गवरा – खाक फबता है! कपड़ा पहन लेने के बाद तो आदमी और बदसूरत लगने लगता है।
गवरइया – लगता है आज लटजीरा चुग आए हो ?

गवरा – कपड़े पहन लेने के बाद आदमी की कुदरती खूबसूरती ढंक जो जाती है। अब तू ही सोच! अभी तो तेरी सुघड़ काया का एक – एक कटाव मेरे सामने है, रोवें-रोवें की रंगत मेरी आँखों में चमक रही है। अब अगर तू मानुस की तरह खुद को सरापा ढंक ले तो तेरी सारी खूबसूरती ओझल हो जाएगी कि नहीं ?

गवरइया – कपड़े केवल अच्छा लगने के लिए नहीं, मौसम की मार से बचने के लिए भी पहनता है आदमी।

गवरा – तू समझती नहीं। कपड़े पहन-पहनकर जाड़ा-गरमी-बरसात सहने की उनकी सकत भी जाती रही है। ……. और कपड़े में बड़ा लफड़ा भी है। कपड़ा पहनते ही पहनने वाले की औकात पता चल जाती है…आदमी-आदमी की हैसियत में भेद पैदा हो जाता है।
[इसी प्रकार बाद में आए संवादों को इसमें जोड़ा जा सकता है। आगे के संवाद छात्र स्वयं लिखें।]

प्रश्न 3.
टोपी बनवाने के लिए गवरइया किस-किस के पास गई? टोपी बनने तक के एक-एक कार्य को लिखें।
उत्तर:
टोपी बनवाने के लिए गवरइया धुनिया, कोरी, बुनकर और दर्जी के पास गई। ये लोग राजा के किसी न किसी काम को बेगार के रूप में कर रहे थे। धनिया को आधा मेहनताना देकर गवरइया ने रूई धुनवाई, कोरी को आधा सूत देने का वायदा करके रूई से सूत कतवा लिया। बुनकर को आधा कपड़ा देने का आश्वासन देकर कपड़ा बुनवा लिया। इसी प्रकार दर्जी को मज़दूरी के तौर पर एक टोपी देने का वायदा करके टोपी सिलवा ली। सबने खुश होकर काम कर दिया; क्योंकि गवरइया ने मुफ्त में किसी से भी काम नहीं कराया था।

प्रश्न 4.
गवरइया की टोपी पर दर्जी ने पाँच फुदने क्यों जड़ दिए?
उत्तर:
दर्जी को मुँह माँगी मजूरी मिल गई थी। उसने खुश होकर टोपी सिल दी और गवरइया की टोपी पर इसीलिए पाँच फुदने भी जड़ दिए।

कहानी से आगे

प्रश्न 1.
किसी कारीगर से बातचीत कीजिए और परिश्रम का उचित मूल्य नहीं मिलने पर उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी? ज्ञात कीजिए और लिखिए।
उत्तर:
मैंने एक दरी बनाने वाले से बातचीत की। उसे सत्तर रुपये रोज़ मज़दूरी के रूप में मिलते हैं। उसकी बनाई दरी पर मालिक को एक सौ सत्तर रुपये का लाभ होता है। वहाँ पर दस मज़दूर काम करते हैं। मालिक एक दिन में एक हजार रुपये का लाभ प्राप्त कर लेता है और दस-दस घंटे काम करने वाले मज़दूर को रोटी का जुगाड़ करना भी भारी पड़ता है। इस बात को लेकर दरी बुनने वाले तनाव और दुख से घिरे रहते हैं। जाएँ भी तो कहाँ जाएँ? सब जगह इसी प्रकार शोषण होता है।

प्रश्न 2.
गवरइया की इच्छा पूर्ति का क्रम घूरे पर रूई के मिल जाने से प्रारंभ होता है। उसके बाद वह क्रमशः एक-एक कर कई कारीगरों के पास जाती है और उसकी टोपी तैयार होती है। आप भी अपनी कोई इच्छा चुन लीजिए। उसकी पूर्ति के लिए योजना और कार्य-विवरण तैयार कीजिए।
उत्तर:
मेरी इच्छा डॉक्टर बनने की है। मैं इसके लिए मन लगाकर पढ़ाई कर रहा हूँ। अपने अध्ययन को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए मैंने समय-सारणी बना ली है। में विज्ञान विषयों का गहराई से अध्ययन कर रहा हूँ। जानकारी बढ़ाने के लिए इंटरनेट और अपने विद्यालय की लाइब्रेरी का भी बहुत उपयोग करता हूँ। मुझे विश्वास है कि परीक्षा की योग्यता-सूची में मेरा स्थान अवश्य आ जाएगा। कालिज में भी मन लगाकर पढूंगा ताकि अपने कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकूँ।

प्रश्न 3.
गवरइया के स्वभाव से यह.प्रमाणित होता है कि कार्य की सफलता के लिए उत्साह आवश्यक है। सफलता के लिए उत्साह की आवश्यकता क्यों पड़ती है, तर्क सहित लिखिए।
उत्तर:
कार्य की सफलता के लिए उत्साह जरूरी है। उत्साह से ही व्यक्ति को जीवन में आगे बढ़ने की शक्ति मिलती है। जो व्यक्ति पहले ही हताश और निराश हो जाते हैं; सामने खड़ी सफलता भी उनके हाथ नहीं लगती। अपनी मंज़िल तक पहुंचने के लिए धैर्य के साथ आगे तभी बढ़ा जा सकता है; जब व्यक्ति के मन में उत्साह भरा हो। गवरइया के स्वभाव से भी यही प्रमाणित होता है।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
टोपी पहनकर गवरइया राजा को दिखाने क्यों पहुँची जबकि उसकी बहस गवरा से हुई और वह गवरा के मुँह से अपनी बड़ाई सुन चुकी थी। लेकिन राजा से उसकी कोई बहस हुई ही नहीं थी। फिर भी वह राजा को चुनौती देने को पहुँची। कारण का अनमान लगाइए।
उत्तर:
राजा ने सभी काम करने वालों से मुफ्त में काम कराया था। वह चाहता तो उन्हें मज़दूरी दे सकता था। गवरइया ने सभी को उचित मज़दूरी देकर काम करवाया; इसीलिए उसे खूबसूरत टोपी ओढ़ने के लिए मिली। वह राजा को महसूस कराना चाहती थी कि किसी से मुफ्त में काम लेना बहुत बड़ा अन्याय है। इस प्रकार के अन्याय से काम करने वाला दुखी और नाराज़ रहता है।

प्रश्न 2.
यदि राजा के राज्य के सभी कारीगर अपने-अपने श्रम का उचित मूल्य प्राप्त कर रहे होते तब गवरइया के साथ उन कारीगरों का व्यवहार कैसा होता? ।
उत्तर:
यदि राजा के राज्य के सभी कारीगर अपने-अपने श्रम का उचित मूल्य प्राप्त कर रहे होते तब गवरइया के साथ उनका व्यवहार रूखा न होता। वे अपने श्रम के मूल्य से संतुष्ट होते और गवरइया से भी प्रेमपूर्वक बात करते।

प्रश्न 3.
चारों कारीगर राजा के लिए काम कर रहे थे। एक रजाई बना रहा था। दूसरा अचकन के लिए सूत कात रहा था। तीसरा बागा बुन रहा था। चौथा राजा की सातवीं रानी की दसवीं संतान के लिए झब्ले सिल रहा था। उन चारों ने राजा का काम रोककर गवरइया का काम क्यों किया ?
उत्तर:
राजा श्रम का मूल्य दिये बिना काम करा रहा था। सभी काम करने वाले खीझकर ही काम कर रहे थे। गवरइया ने उनसे आधी मज़दूरी देने का वचन दिया। इसीलिए धुनिया, कोरी, बनुकर और दर्जी ने अपने हाथ का राजा का काम छोड़कर गवरइया का काम किया। वे अपनी उचित मज़दूरी पाकर गवरइया का काम करने को तैयार हो गए।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
गाँव की बोली में कई शब्दों का उच्चारण अलग होता है। उनकी वर्तनी भी बदल जाती है। जैसे गवरइया गौरेया का ग्रामीण उच्चारण है। उच्चारण के अनुसार इस शब्द की वर्तनी लिखी गई। फूंदना, फुलगेंदा का बदला हुआ रूप है। कहानी में अनेक शब्द हैं जो ग्रामीण उच्चारण में लिखे गए हैं, जैसे-मुलुक मुल्क खमा-क्षमा, मजूरी-मजदूरी, मल्लार-मल्हार इत्यादि। आप क्षेत्रीय या गाँव की बोली में उपयोग होने वाले कुछ ऐसे शब्दों को खोजिए और उनका मूल रूप लिखिए, जैसेटेम-टाइम, टेसन/टिसन-स्टेशन।
उत्तर:
टिकस-टिकट, करशाण-किसान, बखत-वक्त, पीसा-पैसा, पलेटफारम- प्लेटफार्म, बजार-बाज़ार, सास्सू-सास, रोट्टी-रोटी।

प्रश्न 2.
मुहावरों के प्रयोग से भाषा आकर्षक बनती है। मुहावरे वाक्य के अंग होकर प्रयुक्त होते हैं। इनका अक्षरशः अर्थ नहीं बल्कि लाक्षणिक अर्थ लिया जाता है। पाठ में अनेक मुहावरे आए हैं। टोपी को लेकर तीन मुहावरे हैं; जैसे- कितनों को टोपी पहनानी पड़ती है। शेष मुहावरों को खोजिए और उनका अर्थ ज्ञात करने का प्रयास कीजिए।
उत्तर:
टोपी से सम्बन्धित मुहावरे-

  1. टोपी सलामत रहना-इज्जत बनी रहना, सम्मान बरकरार रहना।
  2. टोपी उछलना-अपमान होना।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गवरइया का मन क्या पहनने को करता?
(क) साड़ी
(ख) टोपी।
(ग) कोट
(घ) हार
उत्तर:
(ख) टोपी।

प्रश्न 2.
गवरइया टोपी बनवाने के लिए इनमें से किसके पास नहीं गई?
(क) कोरी
(ख) बुनकर
(ग) राजा
(घ) दर्जी
उत्तर:
(ग) राजा।

प्रश्न 3.
इनमें से मज़दूरी के लिए किसने आधा सूत लिया?
(क) धुनिया
(ख) बुनकर
(ग) कोरी
(घ) दर्जी
उत्तर:
(ग) कोरी।

प्रश्न 4.
गवरइया ने मजदूरी में सबको कितना-कितना भाग दिया?
(क) आधा-आधा
(ख) आधे से कम
(ग) आधे से ज़्यादा
(घ) कुछ नहीं दिया
उत्तर:
(क) आधा-आधा।

प्रश्न 5.
गवरइया को रूई का फाहा कहाँ मिला?
(क) धुनिया के यहाँ
(ख) घूरे पर
(ग) राजा के यहाँ
(घ) घोंसले में
उत्तर:
(ख) घूरे पर।

प्रश्न 6.
दर्जी ने गवरइया की टोपी में कितने फुदने जोड़े?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) पाँच
उत्तर:
(घ) पाँच।

प्रश्न 7.
दर्जी ने पाँच फँदनों के बदले क्या लिया?
(क) आधा कपड़ा
(ख) कुछ नहीं
(ग) एक टोपी
(घ) एक रुपया
उत्तर:
(ख) कुछ नहीं।

प्रश्न 8.
“मैं तुम्हें पूरी उज़रत दूँगी” गवरइया ने किससे कहा?
(क) कोरी
(ख) दर्जी
(ग) बुनकर
(घ) धुनिया
उत्तर:
(घ) धुनिया।

प्रश्न 9.
“साव करे भाव तो चबाव करे चाकर”-किसने कहा?
(क) बुनकर ने
(ख) दर्जी ने
(ग) धुनिया ने
(घ) राजा ने
उत्तर:
(क) बुनकर ने।

प्रश्न 10.
राजा के चार टहलुये क्या-क्या नहीं कर रहे थे?
(क) सिर पर चम्पी कर रहा था
(ख) हाथ-पाँव की उँगलियाँ फोड़ रहा था
(ग) पाँव दबा रहा था
(घ) पीठ पर मुक्की मार रहा था
उत्तर:
(ग) पाँव दबा रहा था।

टोपी Summary

पाठ का सार

यह एक गवरा और गवरइया की कथा है। इस कथा में जनता और सत्ता के सम्बन्धों की गुत्थी को बड़े अच्छे ढंग से सुलझाने की कोशिश की है। एक दिन गवरइया ने रंग-बिरंगे कपड़े पहने आदमी को देखा और उसकी प्रशंसा की। गवरा का मानना था कि कपड़े पहनने से आदमी की कुदरती खूबसूरती ढक जाती है। गवरइया का अपना तर्क था कि कपड़े मौसम की मार झेलने के लिए भी पहने जाते हैं। गवरइया को आदमी के सिर पर टोपी अच्छी लगती है। उसने ठान लिया कि वह भी टोपी पहनेगी।

धुन की पक्की गवरइया को घूरे पर चुगते हुए रूई का फाहा मिल गया। गवरा ने उसे टोपी के लिए निराश करने की कोशिश की। गवरइया रूई का फाहा लेकर धुनिया के पास गई। गवरइया रूई धुनने के बदले उसे आधा फाहा देने की बात कहती है। न चाहते हुए भी धुनिया उसे रूई धुनकर दे देता है। उसे कभी आधी मज़दूरी नहीं मिली थी सो उसने मन लगाकर रूई धुन दी। फिर सूत कतवाने की लिए वह कोरी के पास पहुँची। वह राजा की अचकन के लिए सूत कात रहा था। वह आधा सूत देने के बदले कोरी से कताई करा लेती है। उसके जिद करके बुनकर से कपड़ा भी बुनवा लिया। उसे भी मज़दूरी के लिए आधा कपड़ा दे दिया।

जब गवरइया दर्जी के पास पहुँची, वह राजा के दसवें बेटे के लिए ढेरों झब्ले सिलने में व्यस्त था। एक टोपी के बदले एक टोपी सिलने के लिए दर्जी तैयार हो गया। खुश होकर दर्जी ने अपनी तरफ से टोपी पर फंदने भी लगा दिए। गवरइया उस टोपी को पहनकर राजा के महल के कँगूरे पर बैठ गई। राजा उस समय अपने सेवकों से चम्पी करा रहा था। गवरइया चिल्लाई-“मेरे सिर पर टोपी, राजा के सिर पर टोपी नहीं।”

राजा उसकी टोपी देखकर चकराया। राजा ने अपनी टोपी मँगवाकर पहन ली तो गवरया ने अपने पाँच फँदने वाली टोपी का राग अलापना शुरू कर दिया। राजा उसे मरवाना चाहता था किन्तु सबने ऐसा करने से मना कर दिया। एक सिपाही ने गुलेल मारकर गवरइया की टोपी नीचे गिरा दी, राजा ने दर्जी, बुनकर, कोरी और धुनिया को बुलाकर टोपी का रहस्य जानने की कोशिश की। सबने बताया कि उन्हें काम के बदले आधा हिस्सा दिया गया था। राजा ये काम बेगार में करवाता था। गवरइया ने कहा कि राजा कंगाल हो गया है। इसीलिए मेरी टोपी ले ली है। बदनामी से बचने के लिए राजा ने गवरइया की टोपी वापस कर दी, गवरइया कहाँ चूकने वाली थी। वह बोली- “यह राजा तो डरपोक है।” गवरइया के मुँह कौन लगता ? राजा ने चुप्पी साध ली।

शब्दार्थ : भिनसार-सवेरा; खोते-घोंसले; झुटपुटा-कुछ अँधेर कुछ, उजाले का समय; फबता–अच्छा लगता; तपाक-तुरंत; लटजीरा-एक पौधा, चिचड़ा; सरापा-सरसे पाँव तक, सकत-शक्ति, लफड़ा-झंझट, औकात-सामर्थ्य, हैसियत; लिबास-पहनावा; निरा-बिल्कुल; पौंगापन-ढोंग दिखावा; ठाठ उलटना-असलियत प्रकट हो जाना; टोपी उछालना-अपमान करना; टोपी सलामत रहना-इज्जत बनी रहना; टोपी पहनाना-बेवकूफ बनाना; जहाँ चाह वहाँ राह-जहाँ कुछ प्राप्त करने की इच्छा होती है, वहाँ उसका रास्ता भी मिल जाता है; मामूल-हमेशा की तरह; घूरे-कूड़े के ढेर; चाम का दाम चलाना-चमड़े का सिक्का चलाना; अगबग-भौंचक होकर, कारिंदे-सेवक; साब करे भाव तो चबाव करे चाकर-जब बड़े काम की बात करते हैं, उस समय नौकर-चाकर व्यर्थ की बात करते हैं; सेंत-मेंत में-मुफ्त में, गफ़श-घना; दबीज-मोट; झब्ले-बच्चों के कपड़े; कुछ देना न लेना-भर माथे पसीना-बिना मजदूरी लिए मेहनत करना; मूजी-दुष्ट, कंजूस; मनोयोग-मन लगाकर; फुदने-ऊन आदि का फुल; हुलस-उल्लास; टहलुओं-नौकरों, फुलेल-इत्र, फदगुद्दी-गौरैया; राग अलापना-बार-बार कहना; हेठी-अपमान, छोटापन; पखने-पंख, नायाब-बेजोड़; मानिंदा-समान, तरह; बेहतरीन-सबसे बढ़िया; नफासत-सजा-सँवरा, सजावट जुरती-जुड़ती, जुटती, प्राप्त होती; दंडवत-लेटकर प्रणाम करना; उज्र-विरोध, उज़रत-मजदूरी; लशकरी-फौजों वाला, लवाजिमा-सामान; बेपरदा करना-वास्तविकता बता देना; बागा-एक पुराना लम्बा पहनावा।

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Hindi NCERT Solutions Class 8

NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 17 बाज और साँप

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बाज और साँप NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 17

Class 8 Hindi Chapter 17 बाज और साँप Textbook Questions and Answers

शीर्षक और नायक

प्रश्न 1.
लेखक ने इस कहानी का शीर्षक कहानी के दो पात्रों के आधार पर रखा है। लेखक ने इस कहानी के लिए बाज और साँप को ही क्यों चुना होगा? क्या यही कहानी किन्हीं और पात्रों द्वारा कही जा सकती है ? आपस में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
‘बाज और साँप’ एक दूसरे के दुश्मन हैं। इस कहानी में क्रियाशीलता और आलस्य दो भावनाएँ क्रमशः बाज और साँप के माध्यम से प्रकट की गई हैं। बाज संघर्ष और सक्रियता में आनन्द महसूस करता है। साँप आलसी है। उसके लिए अपनी खोखल से बड़ा सुख कहीं नहीं है। इसलिए लेखक ने इन दोनों को शीर्षक के लिए चुना है। यह कहानी स्वच्छन्द विचरण करने वाले शेर और तोते और पालतू बनकर जीवन बिताने वाले बैल के द्वारा भी कही जा सकती है।

कहानी से

प्रश्न 1.
घायल होने के बाद भी बाज ने यह क्यों कहा- “मुझे कोई शिकायत नहीं है।” अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
बाज अपने जीवन से संतुष्ट था। जब तक शरीर में ताकत रही सारे सुख भोगे। दूर-दूर तक उड़ानें भरीं। आकाश की सीमाहीन ऊँचाइयों को अपने पंखों से नापा। इसीलिए उसने कहा कि मुझे कोई शिकायत नहीं है।

प्रश्न 2.
बाज जीवन भर आकाश में ही उड़ता रहा फिर घायल होने के बाद भी वह उड़ना क्यों चाहता था ?
उत्तर:
बाज को अँधेरी गुफा की सीलन और दुर्गन्ध पसन्द नहीं थी। वह आकाश जैसा खुलापन यहाँ नहीं पा सकता था। वह शरीर को घसीट कर बाहर लाया। आकाश को देखकर उसके मन में आशा जगी। इसीलिए वह घायल होने के बाद भी उड़ना चाहता था।

प्रश्न 3.
साँप उड़ने की इच्छा को मूर्खतापूर्ण मानता था फिर भी उसने उड़ने की कोशिश क्यों की ?
उत्तर:
साँप ने सोचा-आकाश में न जाने क्या खज़ाना रखा है। इस रहस्य का पता लगाना चाहिए। कम से कम उस आकाश का स्वाद तो चखना चाहिए इसीलिए उड़ने की इच्छा को मूर्खतापूर्ण मानने पर भी उसने उड़ने की कोशिश की।

प्रश्न 4.
बाज के लिए लहरों ने गीत क्यों गाया होगा ?
उत्तर:
बाज के लिए लहरों ने इसलिए गीत गाया होगा क्योंकि बाज साहसी, प्राणों की बाजी लगाने वाला बहादुर, निडर होकर शत्रुओं का मुकाबला करने के लिए तत्पर था।

प्रश्न 5.
घायल बाज को देखकर साँप खुश क्यों हुआ होगा ?
उत्तर:
बाज साँप का शत्रु है और उस पर आक्रमण कर सकता है। अब घायल होने के कारण बाज उसे हानि नहीं पहुंचा सकता था; अतः बाज को देखकर साँप मन ही मन खुश हुआ।

कहानी से आगे

प्रश्न 1.
कहानी में से वे पंक्तियाँ चुनकर लिखिए, जिनसे स्वतंत्रता की प्रेरणा मिलती हो।
उत्तर:
“यदि तुम्हें स्वतंत्रता इतनी प्यारी है तो इस चट्टान के किनारे से ऊपर क्यों नहीं उड़ जाने की कोशिश करते। हो सकता है कि तुम्हारे पैरों में अभी इतनी ताकत बाकी हो कि तुम आकाश में उड़ सको। कोशिश करने में क्या हर्ज है?”

प्रश्न 2.
लहरों का गीत सुनने के बाद साँप ने क्या सोचा होगा? क्या उसने फिर से उड़ने की कोशिश की होगी? अपनी कल्पना से आगे की कहानी पूरी कीजिए।
उत्तर:
लहरों का गीत सुनने के बाद साँप ने सोचा होगा कि बाज ने जो प्रयास किया, वह सही किया। बाज साहसी है। उसने घायल होने पर भी उड़ने की कोशिश की। वह आकाश में उड़ने वाला प्राणी है। उसके लिए आकाश ही सबसे खुबसूरत जगह है। मैं उड़ने वाला प्राणी नहीं हूँ इसलिए मैं जिस हालत में हूँ, मेरे लिए वही ठीक है। बाज की तरह उड़ने में मेरे प्राण जाते-जाते बच गए। मुझे दुबारा कोशिश करके खुद को परेशानी में नहीं डालना चाहिए।

प्रश्न 3.
क्या पक्षियों को उड़ते समय सचमुच आनन्द का अनुभव होता होगा या स्वाभाविक कार्य में आनन्द का अनुभव होता ही नहीं? विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
हरेक प्राणी को स्वाभाविक कार्य करने में आनन्द महसूस होता है। उड़ना पक्षियों का स्वाभाविक कार्य है। वे जब और जहाँ जाना चाहते हैं, उड़कर तुरन्त जा सकते हैं। उनके लिए कोई बाधा नहीं। उन्हें किसी की आज्ञा का पालन नहीं करना पड़ता। न ही उन पर किसी ने किसी प्रकार का आदेश बलपूर्वक थोपा है; अतः उड़ना पक्षियों के लिए आनन्ददायक है।

प्रश्न 4.
मानव ने भी हमेशा पक्षियों की तरह उड़ने की इच्छा मन में रखी है। मनुष्य की इस इच्छा का परिणाम क्या हुआ? आज मनुष्य उड़ने की इच्छा किन साधनों से पूरी करता है।
उत्तर:
मानव ने भी हमेशा उड़ने की इच्छा अपने मन में रखी है। उसने उड़ने की कोशिश की असफल हुए फिर कोशिशें की। आज वायुयान, हेलीकॉप्टर और अन्तरिक्ष यान मानव की उसी इच्छा शक्ति का परिणाम हैं।

अनुमान और कल्पना

  • यदि इस कहानी के पात्र बाज और साँप न होकर कोई और होते तब कहानी कैसी होती? अपनी कल्पना से लिखिए।
  • तोता और बैल

बैल को खूटे पर बँधा हुआ देखकर तोता हँसा-“भाई तुम्हारे तो ठाठ हैं। दिन भर हल खींचना पड़ता है। किसान के डण्डे भी खाए। तब जाकर तुम्हें चारा मिला। दिन की चिलचिलाती धूप भी तुम्हें अपनी पीठ पर झेलनी पड़ी।”

बैल चारा खाते-खाते रुका-“तुम्हारी तरह दिन भर चार दानों के लिए मीलों-मील मरमार तो नहीं करनी पड़ती। घर लौटने पर इतना तो तय रहता है कि पेट भरने के लिए पूरा चारा मिल जाएगा। फिर जो चारा खिलाएगा, वह काम तो लेगा ही। बिना काम किये खाना भी तो पाप है। तुम कोई काम नहीं करते। चुपके से किसी के मक्का के खेत में घुस जाते हो। किसी के बाग में चोरी-छिपे जाकर फल कुतरने लगते हो।”

“इस तरह खाने का अपना ही आनन्द है। तरह-तरह के बढ़िया फल खाने को मिल जाते हैं। अच्छे फल ढूँढ़ने के लिए भी तो कर्म करना पड़ता है। हमें जो आज़ादी मिली हुई है, उसका तो मज़ा ही कुछ अलग है। हम अपनी मर्जी के मालिक हैं। तुम अपनी मर्जी से कहीं भी नहीं जा सकते। अपनी मर्जी का खा भी नहीं सकते। तुम्हारे मालिक जो चने की बढ़िया दाल खाते हैं, हम उनके आँगन में जाकर कुछ दाने उसमें से खा लेते हैं। तुम्हारे आँगन में इस आम पर हर साल बढ़िया आम लगते हैं। तुमने कभी चखे भी नहीं होंगे। हमें देखिए-पके हुए आमों का आनन्द हम सबसे पहले उठाते हैं। तुम्हारे मालिक से भी पहले”-तोते ने आँखें मटका कर कहा।

बैल कहाँ चुप रहने वाला था। वह अपने थूथन को हिलाकर बोला-“ठण्ड और बारिश में मुझे अलग कोठरी में बाँध देते हैं। तुम्हें तो ठण्ड, बारिश और ओलों की मार झेलनी पड़ती है।”

“अरे भाई! हम भी किसी मकान के कोने में जाकर दुबक जाते हैं। हमारा भी समय कट जाता है। दिक्कत तो सभी के साथ है। हमें शिकारी मार गिराते हैं। चिड़ीमार पकड़ कर पिंजरे में बंद कर लेते हैं। बाज भी झपट्टा मार कर हमें मार देता है। आज़ादी मिली है तो उसकी कुछ कीमत तो चुकानी पड़ेगी। आनन्द और आज़ादी कोई मुफ़्त में थोड़े ही मिलते हैं?” तोते ने अपनी बात को महत्त्व देते हुए कहा-“खुली हवा में साँस लेने का आनन्द ही कुछ और है।”

“तुम सही कहते हो”-बैल ने सिर हिलाकर कहा-“परन्तु मेरा जीवन केवल मेरे लिए नहीं है। मैं जिस फसल को उगाने में मदद करता हूँ, उससे पूरे परिवार का पालन पोषण होता है। मेरा मालिक मुझे चारा खिलाने के बाद ही खाना खाता है। वह सुबह उठकर मुझे पहले चारा खिलाता है तब खुद कुछ खाता है। मेरा जीवन तुम्हारी तरह आज़ाद भले ही न हो, परन्तु एकदम निरर्थक भी नहीं है।”

तोते को बैल की बात सही लगी। वह बोला- “हम दोनों ही अपनी-अपनी जगह सही हैं। ईश्वर ने हमारा जीवन जैसा बनाया है, हमें वैसा ही जीवन जीना है। अच्छा चलता हूँ” कहकर तोता फुर्र से उड़ गया। बैल बहुत देर तक सिर उठाए आकाश की तरफ देखता रह गया।

‘हिमांशु’

भाषा की बात

प्रश्न 1.
कहानी में से अपनी पसंद के पाँच मुहावरे चुनकर उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
(क) अंतिम साँसें गिनना-शिकारी की गोली से आहत कबूतर अंतिम साँसें गिन रहा था।
(ख) आखिरी घड़ी आ पहँची-नेमचन्द कई महीने से बीमार थे। अब उनके जीवन की आखिरी घड़ी आ पहँची थी।
(ग) मिट्टी में मिलना-हमें घमण्ड नहीं करना चाहिए। यह शरीर एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा।
(घ) आँखों से ओझल होना-नौकर ने मालिक के आँखों से ओझल होते ही हेराफेरी का काम शरू कर दिया।
(ङ) प्राणों की बाजी लगाना-हजारों जवान प्राणों की बाजी लगाकर शत्रु की सेना पर टूट पड़े।

प्रश्न 2.
‘आरामदेह’ शब्द में ‘देह’ प्रत्यय है। ‘देह’ ‘देने वाला’ के अर्थ में प्रयुक्त होता है। देने वाला के अर्थ में ‘द’, ‘प्रद’, ‘दाता’, ‘दाई’ आदि का प्रयोग भी होता है, जैसे-सुखद, सुखदाता, सुखदाई, सुखप्रद ।
उपर्युक्त समानार्थी प्रत्ययों को लेकर दो-दो शब्द बनाइए।
उत्तर:
उत्तर:
प्रत्ययों से बनने वाले शब्द
द – दुखद, जलद, वारिद
प्रद – लाभप्रद, ज्ञानप्रद, आनन्दप्रद
दाता – अन्नदाता, दुखदाता, शरणदाता
दाई – दुखदाई, आनन्ददाई
देह – नुकसानदेह, तकलीफदेह
[‘नुकसान’ के साथ दायक जोड़कर नुकसानदायक नहीं बनता; इसी प्रकार ‘कष्ट’ के साथ देह जोड़कर ‘कष्टदेह’ नहीं बनता।]

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
साँप कहाँ रहता था ?
(क) चट्टान पर
(ख) पेड़ पर
(ग) अंधेरी गुफा में
(घ) रेगिस्तान में
उत्तर:
(ग) अंधेरी गुफा में।

प्रश्न 2.
बाज किस हालत में गुफा में आ गिरा ?
(क) खून से लथपथ
(ख) तीर से घायल
(ग) सही हालत में
(घ) उड़ते-उड़ते अचानक
उत्तर:
(क) खून से लथपथ।

प्रश्न 3.
बाज के किस हिस्से में जख्मों के निशान थे ?
(क) सिर पर
(ख) पंजों पर
(ग) छाती पर
(घ) आँखों पर
उत्तर:
(ग) छाती पर।

प्रश्न 4.
ज़मीन पर गिरते ही बाज ने क्या किया ?
(क) कुछ नहीं
(ख) चीख मारी
(ग) मुस्कराया
(घ) बड़बड़ाया
उत्तर:
(ख) चीख मारी।

प्रश्न 5.
साँप तुरन्त बाज के पास क्यों नहीं पहुँचा ?
(क) वह उससे मिलना नहीं चाहता था
(ख) नफरत करता था
(ग) डरता था
(घ) वह कुछ काम कर रहा था
उत्तर:
(ग) डरता था।

प्रश्न 6.
‘मिट्टी में मिलना’ का अर्थ है-
(क) नष्ट होना
(ख) बीज के रूप में तैयार होना
(ग) गायब होना
(घ) छुप जाना
उत्तर:
(क) नष्ट होना।

प्रश्न 7.
लुढ़कता हुआ बाज कहाँ जा गिरा ?
(क) घाटी में
(ख) समुद्र में
(ग) नदी में
(घ) पेड़ के नीचे
उत्तर:
(ग) नदी में।

प्रश्न 8.
छोटी-छोटी चट्टानों पर धप्प से जा गिरा। कौन ?
(क) बाज
(ख) साँप
(ग) मगरमच्छ
(घ) कोई नहीं
उत्तर:
(ख) साँप।

प्रश्न 9.
चट्टानों के नीचे से साँप ने क्या सुना ?
(क) रोने की आवाज़
(ख) कराहने की आवाज़
(ग) चीखने की आवाज़
(घ) गाने की आवाज़
उत्तर:
(ख) गाने की आवाज़।

बोध-प्रश्न

निम्नलिखित अवतरणों को पढ़िए एवं पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

(क) बाज में एक नयी आशा जग उठी। वह दूने उत्साह से अपने घायल शरीर को घसीटता हुआ चट्टान के किनारे तक खींच लाया। खुले आकाश को देखकर उसकी आँखें चमक उठीं। उसने एक गहरी, लंबी साँस ली और अपने पंख फैलाकर हवा में कूद पड़ा।

किंतु उसके टूटे पंखों में इतनी शक्ति नहीं थी कि उसके शरीर का बोझ सँभाल सकें। पत्थर-सा उसका शरीर लुढ़कता हुआ नदी में जा गिरा। एक लहर ने उठकर उसके पंखों पर जमे खून को धो दिया, उसके थके-माँदे शरीर को सफ़ेद फेन से ढक दिया, फिर अपनी गोद में समेटकर उसे अपने साथ सागर की ओर ले चली।

प्रश्न 1.
बाज में एक नयी आशा जागने पर क्या हुआ ?
उत्तर:
नयी आशा जागने पर बाज अपने घायल शरीर को घसीटता हुआ चट्टान के किनारे तक ले लाया।

प्रश्न 2.
खुले आकाश को देखकर बाज पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
खुले आकाश को देखकर बाज की आँखों में चमक जाग उठी।

प्रश्न 3.
हवा में कूदने का बाज पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
बाज के पंख टूटे हुए थे और उनमें शरीर का बोझ संभालने की ताकत नहीं थी। अतः हवा में कूदने पर उसका पत्थर-सा शरीर लुढ़कता हुआ नदी में जा गिरा।

प्रश्न 4.
लहर ने बाज के साथ क्या व्यवहार किया ?
उत्तर:
एक लहर ने उठकर बाज के पंखों पर जमे खून को धो दिया और उसके थके-माँदे शरीर को सफ़ेद फेन से ढक दिया फिर उसे गोद में समेटकर सागर तक पहुँचा दिया।

(ख) पक्षी भी कितने मूर्ख हैं! धरती के सुख से अनजान रहकर आकाश की ऊँचाइयों को नापना चाहते थे। किंतु अब मैंने जान लिया कि आकाश में कुछ नहीं रखा। केवल ढेर-सी रोशनी के सिवा वहाँ कुछ भी नहीं, शरीर को सँभालने के लिए कोई स्थान नहीं, कोई सहारा नहीं। फिर वे पक्षी किस बूते पर इतनी डींगें हाँकते हैं, किसलिए धरती के प्राणियों को इतना छोटा समझते हैं। अब मैं कभी धोखा नहीं खाऊँगा, मैंने आकाश देख लिया और खूब देख लिया। बाज तो बड़ी-बड़ी बातें बनाता था, आकाश के गुण गाते थकता नहीं था। उसी की बातों में आकर मैं आकाश में कूदा था। ईश्वर भला करे, मरते-मरते बच गया। अब तो मेरी यह बात और भी पक्की हो गई है कि अपनी खोखल से बड़ा सुख और कहीं नहीं है। धरती पर रेंग लेता हूँ, मेरे लिए यह बहुत कुछ है। मुझे आकाश की स्वच्छंदता से क्या लेना-देना? न वहाँ छत है, न दीवारें हैं, न रेंगने के लिए जमीन है। मेरा तो सिर चकराने लगता है। दिल काँप-काँप जाता है। अपने प्राणों को खतरे में डालना कहाँ की चतुराई है?”

प्रश्न 1.
पक्षी भी कितने मूर्ख हैं! यह बात किसने कही और क्यों ?
उत्तर:
यह बात साँप ने कही। पक्षी धरती के सुख से अनजान है-इसीलिए यह बात कही।

प्रश्न 2.
साँप ने क्या जान लिया था ?
उत्तर:
साँप ने जान लिया था कि आकाश में ढेर सारी रोशनी के सिवा कुछ भी नहीं है। शरीर को सँभालने के लिए न कोई स्थान है और न कोई सहारा।

प्रश्न 3.
साँप किसकी बातों में आकर कूदा था और क्यों ?
उत्तर:
साँप बाज की बातों में आकर कूदा था क्योंकि वह आकाश के गुण गाता था, बड़ी-बड़ी बातें बनाता था।

प्रश्न 4.
साँप के मन में क्या बात पक्की हो गई थी?
उत्तर:
साँप के मन में यह बात पक्की हो गई कि अपनी खोखल से बड़ा सुख कहीं भी नहीं।

प्रश्न 5.
साँप को आकाश की स्वच्छन्दता क्यों पसन्द नहीं थी ?
उत्तर:
साँप को आकाश की स्वच्छन्दता इसलिए पसन्द नहीं थी, क्योंकि वहाँ रेंगने के लिए न छत है, न दीवारें। उसका सिर चकराने लगा था और दिल काँपने लगा था।

प्रश्न 6.
साँप किस बात को उचित नहीं मानता था ?
उत्तर:
साँप अपने जीवन को खतरे में डालना ठीक नहीं समझता।

(ग) हमारा यह गीत उन साहसी लोगों के लिए है जो अपने प्राणों को हथेली पर रखे हुए घूमते हैं। चतुर वही है जो प्राणों की बाजी लगाकर जिंदगी के हर खतरे का बहादुरी से सामना करे।

ओ निडर बाज! शत्रुओं से लड़ते हुए तुमने अपना कीमती रक्त बहाया है। पर वह समय दूर नहीं है, जब तुम्हारे खून की एक-एक बूंद जिंदगी के अँधेरे में प्रकाश फैलाएगी औरी साहसी, बहादुर दिलों में स्वतंत्रता और प्रकाश के लिए प्रेम पेदा करेगी। तुमने अपना जीवन बलिदान कर दिया किंतु फिर भी तुम अमर हो। जब कभी साहस और वीरता के गीत गाए जाएँगे, तुम्हारा नाम बड़े गर्व और श्रद्धा से लिया जाएगा।

“हमारा गीत जिंदगी के उन दीवनों के लिए है जो मृत्यु से भी नहीं डरते।”

प्रश्न 1.
चतुर प्राणी किसे बताया गया है और क्यों ?
उत्तर:
बाज को चतुर प्राणी बताया गया है क्योंकि उसने प्राणों की बाजी लगाकर ज़िन्दगी के हर खतरे का बहादुरी से सामना किया था।

प्रश्न 2.
बाज को निडर क्यों कहा गया है ?
उत्तर:
बाज ने शत्रुओं से लड़ते हुए अपना कीमती रक्त बहाया था, इसलिए उसे निडर कहा गया था।

प्रश्न 3.
जीवन बलिदान करने पर भी बाज को अमर क्यों कहा गया है ?
उत्तर:
जब कभी साहस और वीरता के गीत गाए जाएँगे उस समय बाज का नाम गर्व और श्रद्धा से लिया जाएगा। इसीलिए बाज को अमर कहा गया है।

प्रश्न 4.
जीवन का गीत किस तरह के दीवानों के लिए है ?
उत्तर:
जीवन का गीत उन दीवानों के लिए है जो मृत्यु से भी नहीं डरते।

बाज और साँप Summary

पाठ का सार

समद्र के किनारे पर्वत की अँधेरी गफा में एक साँप रहता था। अँधेरी घाटियों में एक नदी भी बहती थी जो शोर मचाती हुई समुद्र में जाकर मिल जाती थी। सॉप अपनी हालत से खुश था। वह अपनी गुफा का स्वामी है, उसे किसी से कुछ लेन-देना नहीं है। एक दिन उड़ता हुआ एक घायल बाज़ गुफा में आ गिरा। वह पीड़ा से चीखा और धरती पर लोटने लगा साँप पहले उससे डरा परन्तु उसकी बेदम हालत को देख कर वह बाज के पास पहुँचा। बाज ने साँप को बताया कि उसने जीवन का आनन्द उठा लिया है। आकाश की ऊँचाइयों को अपने पंखों से नापा है। वह आनन्द तुम्हें नहीं मिलेगा। साँप ने आकाश की तुलना में अपनी गुफा में रहना अच्छा बताया।

साँप का सोचना था-चाहे आकाश में उड़ो, चाहे धरती पर रेंगकर चलो, एक दिन सबको मरना है। बाज ने सीलन भरी गुफा देखी और उड़ने की नाकामी पर दुखी हुआ। उसके दुख को देखकर साँप ने कहा की तुम उड़ने की कोशिश कर सकते हो। बाज गहरी साँस लेकर हवा में कूद पड़ा। पंख कमज़ोर थे। वह सँभल न सका और नदी में गिरकर बह गया। बाज की मृत्यु और आकाश के प्रति उसके प्रेम पर साँप सोचता रहा। साँप ने सोचा-आकाश में ऐसा क्या खज़ाना है। मुझे पता लगाना चाहिए। यह सोचकर साँप ने अपना शरीर सिकोड़ा और खुद को शून्य में छोड़ दिया। वह चट्टान पर जा गिरा लेकिन बच गया।

उसने सोचा आकाश में कुछ नहीं सिवाय ढेर सारी रोशनी के। पक्षी पता नहीं क्यों शेखी बघारते हैं। मैं किसी तरह बच गया। अब धोखा नहीं खाऊँगा। मुझे आकाश से क्या लेना ? बाज़ अभागा था जिसने आकाश की आज़ादी के लिए जान दे दी। तभी साँप ने चट्टानों के नीचे एक मधुर संगीत सुना। लहरें गा रही थीं यह गीत उन लोगों के लिए था जिन्होंने जिन्दगी के हर खतरे का सामना किया। बाज भी उन्हीं में से एक था। वह जान देकर अमर हो गया। “हमारा गीत ज़िन्दगी के उन दीवानों के लिए है जो मर कर भी मृत्यु से नहीं डरते।

शब्दार्थ : मिलाप-मेल; गर्जन-गरजना; तर्जन-डाँटना, धमकाना; अंतिम साँसें गिनना-मरने के निकट होना; आखिरी घड़ी आ पहुँचना-मृत्यु निकट होना; भोगा-आनंद उठाया, आरामदेह-आराम प्रदान करने वाला; मिट्टी में मिलना-मरना; सिटपिटा गया-घबरा गया; वियोग-बिछुड़ना; फेन-झाग; शून्यता-खालीपन; विस्तार-फैलाव; असीमसीमा रहित; आँखों से ओझल होना -गायब होना, दिखाई न देना; आँसू बहाना-दुखी होना; भरपाया-छक गया; प्राणों की बाजी लगाना-मरने के लिए तैयार होना; प्राणों को हथेली पर रखकर घूमना-मरने से बिल्कुल न डरना।

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Hindi NCERT Solutions Class 8

NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 16 पानी की कहानी

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पानी की कहानी NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 16

Class 8 Hindi Chapter 16 पानी की कहानी Textbook Questions and Answers

पाठ से

प्रश्न 1.
लेखक को ओस की बूंद कहाँ मिली?
उत्तर:
लेखक को ओस की बूंद बेर की झाड़ी पर मिली। वह उसके हाथ पर आ पड़ी; फिर कलाई से सरक कर हथेली पर आ गई।

प्रश्न 2.
ओस की बूंद क्रोध और घृणा से क्यों काँप उठी?
उत्तर:
ओस की बूँद क्रोध और घृणा से काँप उठी क्योंकि पेड़ बहुत बेरहम होते हैं। वे जलकणों को पृथ्वी के भीतर खींच लेते हैं। कुछ को पेड़ एकदम खा जाते हैं और अधिकतर का सब कुछ छीनकर उन्हें बाहर निकाल देते हैं।

प्रश्न 3.
हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को पानी ने अपना पूर्वज (पुरखा) क्यों कहा?
उत्तर:
हाइड्रोजन और ऑक्सीज़न के मिलने से पानी बनता है; इसलिए पानी ने इनको अपना पूर्वज कहा है।

प्रश्न 4.
‘पानी की कहानी’ के आधार पर पानी के जन्म और जीवन-यात्रा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की रासायनिक क्रिया से पानी बनता है। पानी की बूंद भाप के रूप में घूमती है। ठंडक मिलने से वह ठोस बर्फ का रूप धारण कर लेती है। वही बूंद गर्म जलधारा के रूप में मिलकर फिर पानी बन जाती है। वाष्प बनने पर फिर वही-बूंद बादल बनकर बरस पड़ती है।

प्रश्न 5.
कहानी के अंत और आरम्भ के हिस्से को पढ़कर देखिए और बताइए कि ओस की बूंद लेखक को आप बीती सुनाते हुए किसकी प्रतीक्षा कर रही थी?
उत्तर:
ओस की बूँद सूर्य की प्रतीक्षा कर रही थी।

पाठ से आगे

प्रश्न 1.
जलचक्र के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए और पानी की कहानी से तुलना करके देखिए कि लेखक ने पानी की कहानी में कौन-कौन सी बातें विस्तार से बताई हैं।
उत्तर:
महासागरों का जल भाप बनकर वायुमण्डल में बादल का रूप धारण करता है। बादल का पानी बरसकर फिर धरती पर आ जाता है एवं फिर समुद्र में जाकर मिल जाता है। यही चक्र जलचक्र है। लेखक ने पानी के ठोस, गैस एवं तरल रूपों की विस्तार से चर्चा की है।

प्रश्न 2.
“पानी की कहानी” पाठ में ओस की बूंद अपनी कहानी स्वयं सुना रही है और लेखक केवल श्रोता है। इस आत्मकथात्मक शैली में आप भी किसी वस्तु का चुनाव करके कहानी लिखें।
उत्तर:
मैं हूँ आलू का पापड़। मैं छोटे-छोटे बीज के रूप में था। किसान ने खेत की जुताई करके मुझे जमीन में दबा दिया। मेरा दम घुटने लगा। मुझे लगा मेरे प्राण पखेरू उड़ जाएंगे। किसान ने सिंचाई की। मुझसे अंकुर निकलने लगे और ऊपर की कोमल जमीन को चीरकर खुली हवा में साँस लेने का मौका मिला । ठण्ड पड़ने लगी। लगा कि मेरे पत्ते सूख जाएँगे। किसान ने सिंचाई करके मुझे सुखने से बचाया। कुछ कीट-पंतगों ने भी मेरे स्वास्थ्य को खराब करने का बीड़ा उठाया। मेरा मालिक बहुत होशियार था। उसने कीटनाशक छिड़ककर मुझे होने वाली बीमारियों से छुटकारा दिला दिया। मैं धीरे-धीरे बड़ा होने लगा। जमीन के भीतर मेरा आकार बढ़ने लगा।

किसान ने खुदाई करके मुझे बाहर निकाल लिया। बाहर का संसार बहुत सुन्दर था। एक दिन एक हलवाई मुझे खरीदकर ले गया। उसने पहले मुझे बड़े-बड़े भगौनों में उबाला। फिर मेरा छिलका बड़ी बेरहमी से उतारा। मेरी आँखों में इस हलवाई ने नमक-मिर्च झोंक दीं, मसाला भी मिला दिया। मुझे बुरी तहर कुचलकर बेलन से बेला और पापड़ बनाए। वह मुझे इतनी जल्दी छोड़ने वाला नहीं था। उसने मुझे तेज़ धूप में डाल दिया। मैं रो भी नहीं सकता था। इसके बाद उसने मुझे खौलते तेल में डालकर तला। आल से पापड़ बनने की यह मेरी कष्टकारी यात्रा थी।

प्रश्न 3.
समुद के तट पर बसे नगरों में अधिक ठंड और अधिक गर्मी क्यों नहीं पड़ती है?
उत्तर:
समुद्र तट के पास पानी होने के कारण वहाँ का तापमान दिन में अधिक नहीं बढ़ पाता और रात में अधिक कम नहीं हो पाता; इसीलिए समुद्र तट पर बसे नगरों में अधिक ठंड और अधिक गर्मी नहीं पड़ती है।

प्रश्न 4.
पेड़ के भीतर फव्वारा नहीं होता तब पेड़ की जड़ों से पत्ते तक पानी कैसे पहुँचता है? इस क्रिया को वनस्पति शास्त्र में क्या कहते हैं? क्या इस क्रिया को जानने के लिए कोई आसान प्रयोग है? जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
छात्र विज्ञान शिक्षक से यह जानकारी प्राप्त करें।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
पानी की कहानी में लेखक ने कल्पना और वैज्ञानिक तथ्य का आधार लेकर ओस की बूंद की यात्रा का वर्णन किया है। ओस की बूंद अनेक अवस्थाओं में सूर्यमंडल, पृथ्वी, वायु, समुद्र, ज्वालामुखी, बादल, नदी और जल से होते हुए पेड़ के पत्ते तक की यात्रा करती है। इस कहानी की भाँति आप भी लोहे अथवा प्लास्टिक की कहानी लिखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं लिखें।

प्रश्न 2.
अन्य पदार्थों के समान जल की भी तीन अवस्थाएँ होती हैं। अन्य पदार्थों से जल की इन अवस्थाओं में एक विशेष अंतर यह होता है कि जल की तरल अवस्था की तुलना में ठोस अवस्था (बफ) हलकी होती है। इसका कारण ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
पानी बर्फ बनने पर अधिक स्थान घेरता है जिससे उसका घनत्व कम हो जाता है। अधिक स्थान घेरने पर ज्यादा ठण्ड में पानी की आपूर्ति की पाइपलाइन फट जाती है।

प्रश्न 3.
पाठ के साथ केवल पढ़ने के लिए दी गई पठन-सामग्री ‘हम पृथ्वी की संतान!’ का सहयोग लेकर पर्यावरण संकट पर एक लेख लिखें।
उत्तर:
ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण, वायुप्रदूषण, भूमिप्रदूषण जैसी आपदा हमारे सिर पर खड़ी हैं। इनके दुष्प्रभाव हमारे जीवन पर लगातार पड़ रहे हैं। प्रत्येक पक्ष पर विचार-विमर्श करके छात्र लेख तैयार करें।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
किसी भी क्रिया को संपन्न अथवा पूरा करने में जो भी संज्ञा आदि शब्द संलग्न होते हैं, वे अपनी अलग-अलग भूमिकाओं के अनुसार अलग-अलग कारकों में वाक्य में दिखाई पड़ते हैं; जैसे-“वह हाथों से शिकार को जकड़ लेती थी।”
जकड़ना क्रिया तभी संपन्न हो पाएगी जब कोई व्यक्ति (वह) जकड़ने वाला हो, कोई वस्तु (शिकार) हो जिसे जकड़ा जाए। इन भूमिकाओं की प्रकृति अलग-अलग है। व्याकरण में ये भूमिकाएँ कारकों के अलग-अलग भेदों;
जैसे-कर्ता, कर्म, करण आदि से स्पष्ट होती हैं।
अपनी पाठ्यपुस्तक से इस प्रकार के पाँच और उदाहरण खोजकर लिखिए और उन्हें भली-भाँति परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
उदाहरण-
1. भारतवर्ष सदा कानून को धर्म के रूप में देखता आ रहा है।
(भारतवर्ष-कर्ता, कानून को-कर्म धर्म के सम्बन्ध, रूप में-अधिकरण)

2. कुछ नौजवानों ने ड्राइवर को पकड़कर मारने-पीटने का हिसाब बनाया।
(नौजवानों ने कर्ता, ड्राइवर-कर्म, मारने-पीटने का-सम्बन्ध)?

3. सुबह घर पहुँच जाएँगे। (घर-कर्म)

4. बस-कम्पनी के एक हिस्सेदार भी उसी बस से जा रहे थे।
(हिस्सेदार-कर्ता, बस से-करण)

5. सारा घर धूल से अट गया।
(घर-कर्ता, धूल से-करण)

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मोती-सी एक बूंद मेरे हाथ पर आ पड़ी। कहाँ से?
(क) आसमान से
(ख) आम के पेड़ से
(ग) बेर की झाड़ी से
(घ) बादलों से
उत्तर:
(ग) बेर की झाड़ी से।

प्रश्न 2.
क्रोध और घृणा से उसका शरीर काँप उठा। किसका ?
(क) लेखक का
(ख) ओस की बूंद का
(ग) मछली का
(घ) नदी का
उत्तर:
(क) ओस की बूंद का।

प्रश्न 3.
फटी हुई पृथ्वी से इनमें से कौन-सा पदार्थ नहीं निकला?
(क) लपटें
(ख) धुआँ
(ग) रेत
(घ) पीतल
उत्तर:
(घ) पीतल।

प्रश्न 4.
नदी तट पर ऊँची मीनार से किस रंग की हवा निकल रही थी?
(क) भूरे रंग की
(ख) काली-काली
(ग) बैंगनी
(घ) नीली
उत्तर:
(ख) काली-काली।

प्रश्न 5.
बूँद कहाँ नहीं पहुंची थी?
(क) मोटे नल में
(ख) टूटे नल में
(ग) बोतल में
(घ) पृथ्वी में
उत्तर:
(ग) बोतल में।

प्रश्न 6.
बूंद किसका इन्तज़ार कर रही थी?
(क) सूर्य का
(ख) समुद्र का
(ग) बेरं के पेड़ का
(घ) मछली का
उत्तर:
(क) सूर्य का।

प्रश्न 7.
हमारी पृथ्वी प्रारम्भ में क्या थी?
(क) जंगल से भरी
(ख) नदियों से भरी
(ग) आग का एक बड़ा गोला
(घ) चट्टानों से भरी हुई
उत्तर:
(ग) आग का एक बड़ा गोला।

प्रश्न 8.
हाइड्रोजन और आक्सीजन किसके पुरखे हैं?
(क) सूर्य के
(ख) पृथ्वी के
(ग) चन्द्रमा के
(घ) पानी के
उत्तर:
(घ) पानी के।

प्रश्न 9.
ओस की बूंद ने समुद्र में क्या नहीं देखा?
(क) घोंघे
(ख) पेंग्विन
(ग) कई-कई मन भारी कछुवे
(घ) जालीदार मछलियाँ
उत्तर:
(ख) पेंग्विन।

बोध-प्रश्न

एक-एक वाक्य में उत्तर दीजिए।

प्रश्न 1.
प्रदूषण के महासंकट से निपटने के लिए विश्वभर के राष्ट्रों की बैठक कब और कहाँ हुई?
उत्तर:
प्रदूषण के महासंकट से निपटने के लिए विश्व के राष्ट्रों की बैठक 5 जून, 1972 को स्टॉकहोम (स्वीडन) में हुई।

प्रश्न 2.
प्रत्येक वर्ष पर्यावरण-दिवस कब मनाया जाता है?
उत्तर:
पर्यावरण-दिवस 5 जून को मनाया जाता है।

प्रश्न 3.
पृथ्वी सम्मेलन, कहाँ और कब आयोजित किया गया?
उत्तर:
‘पृथ्वी सम्मेलन’ रियो डि जेनेरो (ब्राजील) में 1992 में आयोजित किया गया?

प्रश्न 4.
प्रकृति के पारिस्थितिकी तंत्र के दो प्रमुख घटक बताइए।
उत्तर:
प्रकृति के पारिस्थितिकी तंत्र के दो प्रमुख घटक जैविक और अजैविक मण्डल हैं।

प्रश्न 5.
जैवमण्डल का निर्माण किन पाँच तत्त्वों से होता है?
उत्तर:
जैवमण्डल का निर्माण भूमि, गगन, वायु, अग्नि और जल-इन पाँच तत्त्वों से होता है।

प्रश्न 6.
पर्यावरण किन दो शब्दों के योग के बना है?
उत्तर:
पर्यावरण-परि + आवरण से मिलकर बना है।

प्रश्न 7.
‘पर्यावरण’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
‘पर्यावरण’ का अर्थ है-वह आवरण जो हमें चारों तरफ से घेरे हुए है।

प्रश्न 8.
प्रकृति के असंतुलन के मुख्य कारण क्या हैं?
उत्तर:
प्रकृति के असंतुलन के मुख्य कारण हैं- वनों का विनाश, अवैध व असंगत उत्खनन, कोयला, पेट्रोल, डीजल के उपयोग में बेतहाशा वृद्धि तथा कल-कारखानों का विस्तार।

प्रश्न 9.
ओजोन गैस की परत का लाभ क्या है?
उत्तर:
यह गैस सूर्य से आने वाली हानिकारक गैसों को रोकती है और धरती के लिए रक्षा-कवच का काम करती है।

प्रश्न 10.
ग्लोबल वार्मिंग का क्या खतरा है?
उत्तर:
ग्लोबल वार्मिंग से द्वीप समूहों एवं महाद्वीपों के तटीय क्षेत्रों के डूब जाने का खतरा है।

प्रश्न 11.
‘ग्रीन हाउस प्रमुख’ क्या है?
उत्तर:
ग्लोबल वार्मिंग के कारण जो दुष्प्रभाव पड़ता है, उसे ‘ग्रीन हाउस प्रमुख’ कहा जाता है।

बोध-प्रश्न

(क) “हैं, उनके वंशज अपनी भयावह लपटों से अब भी उनका मुख उज्ज्वल किए हुए हैं। हाँ, तो मेरे पुरखे बड़ी प्रसन्नता से सूर्य के धरातल पर नाचते रहते थे। एक दिन की बात है कि दूर एक प्रचंड प्रकाश-पिंड दिखाई पड़ा। उनकी आँखें चौंधियाने लगीं। यह पिंड बड़ी तेजी से सूर्य की ओर बढ़ रहा था। ज्यों-ज्यों पास आता जाता था, उसका आकार बढ़ता जाता था। यह सूर्य से लाखों गुना बड़ा था। उसकी महान आकर्षण-शक्ति से हमारा सूर्य काँप उठा। ऐसा ज्ञात हुआ कि उस ग्रहराज से टकराकर हमारा सूर्य चूर्ण हो जाएगा। वैसा न हुआ। वह सूर्य से सहस्रों मील दूर से ही घूम चला, परंतु उसकी भीषण आकर्षण-शक्ति के कारण सूर्य का एक भाग टूटकर उसके पीछे चला। सूर्य से टूटा हुआ भाग इतना भारी खिंचाव सँभाल न सका और कई टुकड़ों में टूट गया। उन्हीं में से एक टुकड़ा हमारी पृथ्वी है। यह प्रारंभ में एक बड़ा आग का गोला थी।”

प्रश्न 1.
भयावह लपटों से अब भी किसका मुख उज्ज्वल किए हुए हैं?
उत्तर:
भयावह लपटों से अब भी सूर्य का मुख उज्ज्वल किए हुए है।

प्रश्न 2.
प्रचण्ड प्रकाश किस प्रकार का था?
उत्तर:
प्रचण्ड प्रकाश आँखें चौंधियाने वाला था।

प्रश्न 3.
पिण्ड तेजी से किस ओर बढ़ रहा था?
उत्तर:
पिण्ड तेज़ी से सूर्य की ओर बढ़ रहा था।

प्रश्न 4.
सूर्य के पास आने पर पिण्ड कैसा लग रहा था?
उत्तर:
सूर्य के पास आने पर पिण्ड का आकार बड़ा होता जा रहा था।

प्रश्न 5.
पिण्ड का सूर्य पर क्या प्रभाव पड़ने लगा।
उत्तर:
पिण्ड की आकर्षण शक्ति से सूर्य काँपने लगा। लगता था इससे सूर्य चूर-चूर हो जाएगा।

प्रश्न 6.
वह पिण्ड कहाँ से घूमकर चला गया।
उत्तर:
वह पिण्ड सूर्य से सहस्रों मील दूर से ही घूमकर चला गया।

प्रश्न 7.
उस पिण्ड की भीषण आकर्षण-शक्ति का क्या असर हुआ?
उत्तर:
उस पिण्ड की भीषण आकर्षण शक्ति से सूर्य का एक भाग टूटकर उसके पीछे चला गया।

प्रश्न 8.
हमारी पृथ्वी कौन-सा टुकड़ा है और किसका टुकड़ा है?
उत्तर:
सूर्य से टूटा हुआ भाग कई टुकड़ों में टूट गया। उन्हीं टुकड़ों में से एक हमारी पृथ्वी बन गई।

(ख) मैं और गहराई की खोज में किनारों से दूर गई तो मैंने एक ऐसी वस्तु देखी कि मैं चौंक पड़ी। अब तक समुद्र में अँधेरा था, सूर्य का प्रकाश कुछ ही भीतर तक पहुँच पाता था और बल लगाकर देखने के कारण मेरे नेत्र दुखने लगे थे। मैं सोच रही थी कि.यहाँ पर जीवों को कैसे दिखाई पड़ता होगा कि सामने ऐसा जीव दिखाई पड़ मानो कोई लालटेन लिए घूम रहा हो। यह एक अत्यंत सुंदर मछली थी। इसके शरीर से एक प्रकार की चमक निकलती थी जो इसे मार्ग दिखलाती थी। इसका प्रकाश देखकर कितनी छोटी-छोटी अनजान मछलियाँ इसके पास आ जाती थीं और यह जब भूखी होती थी तो पेट भर उनका भोजन करती थी।”

प्रश्न 1.
अब तक समुद्र में प्रकाश की स्थिति क्या थी?
उत्तर:
अब तक समुद्र में अँधेरा था। सूर्य का प्रकाश कुछ ही भीतर तक पहुँच पाता था।

प्रश्न 2.
बूंद ने ऐसी क्या चीज़ देखी थी, जिसे देखकर बूँद चौंक पड़ी?
उत्तर:
द को एक ऐसा जीव दिखाई दिया, जो मानो लालटेन लिये घूम रहा हो। यह जीव एक सुन्दर मछली थी।

प्रश्न 3.
इस प्रकाश वाली मछली की क्या विशेषता थी?
उत्तर:
इस मछली के शरीर से एक प्रकार की चमक निकलती थी, जो इसे मार्ग दिखलाती थी।

प्रश्न 4.
इसके प्रकाश का अन्य मछलियों पर क्या प्रभाव पड़ता था?
उत्तर:
इस मछली के प्रकाश से प्रभावित होकर छोटी-छोटी अनजान मछलियाँ इसके पास आ जाती थीं। जब यह भूखी होती थी तो इन छोटी मछलियों से अपना पेट भर लेती थी।

(ग) सरिता के वे दिवस बड़े मजे के थे। हम कभी भूमि को काटते, कभी पेड़ों को खोखला कर उन्हें गिरा देते। बहते-बहते मैं एक दिन एक नगर के पास पहुँची। मैंने देखा कि नदी के तट पर एक ऊँची मीनार में से कुछ काली-काली हवा निकल रही है। मैं उत्सुक हो उसे देखने को क्या बढ़ी कि अपने हाथों दुर्भाग्य को न्यौता दिया। ज्योंही मैं उसके पास पहुँची अपने और साथियों के साथ एक मोटे नल में खींच ले गई। कई दिनों तक मैं नल-नल घूमती फिरी। मैं प्रति क्षण उसमें से निकल भागने की चेष्टा में लगी रहती थी। भाग्य मेरे साथ था। बस, एक दिन रात के समय मैं ऐसे स्थान पर पहुँची जहाँ नल टूटा हुआ था। मैं तुरंत उसमें होकर निकल भागी और पृथ्वी में समा गई। अंदर घूमते-घूमते इस बेर के पेड़ के पास पहुँची।”

प्रश्न 1.
सरिता के रूप में कौन-से दिन बड़े मजे के थे?
उत्तर:
सरिता के वे दिन मज़े के थे; जब भूमि को काटने और पेड़ों को खोखला कर गिराने का मौका मिलता था।

प्रश्न 2.
नगर के पास बूँद ने क्या देखा?
उत्तर:
नगर के पास बूंद ने नदी के तट पर एक ऊँची मीनार देखी; जिसमें से काली-काली हवा निकल रही थी।

प्रश्न 3.
बूंद ने किस दुर्भाग्य को न्योता दिया?
उत्तर:
बूँद जैसे ही आगे बढ़ी एक मोटे नल ने उसको अपने भीतर खींच लिया। इस प्रकार उसने दुर्भाग्य को न्योता दिया।

प्रश्न 4.
बूंद को निकलने का मौका किस प्रकार मिला?
उत्तर:
बूंद एक रात में ऐसे स्थान पर पहुंची, जहाँ नल टूटा हुआ था। वह उसमें से होकर तुरन्त निकल भागी।

प्रश्न 5.
बूँद बेर के पेड़ के पास कैसे पहुँची?
उत्तर:
नल से निकल भागने पर वह पृथ्वी में समा गई और अंदर घूमते-घूमते बेर के पेड़ के पास पहुंची।

(केवल पढ़ने के लिए)

हम पृथ्वी की संतान 5 जून, 1972 को स्टॉक होम (स्वीडन) में प्रदूषण के महासंकट से निपटने के लिए विश्वभर के देशों की बैठक हुई। इस अवसर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने “माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः’ का सन्देश दिया। इस दिन की स्मृति में प्रत्येक वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस मानते हैं। सन् 1992 में रियो डि जेनेरो (ब्राजील) में पृथ्वी सम्मेलन का आयोजन किया गया। प्रकृति में दो प्रकार के घटक हैं-जैविक और अजैविक। जैव मण्डल का निर्माण-भूमि, गगन, वायु, अग्नि, जल नामक पाँच तत्त्वों से होता है। इसमें हम छोटे-बड़े एवं जैव-अजैव विविधताओं के बीच रहते रहे हैं। पेड़-पौधों का एवं प्राणियों का एक तयशुदा सन्तुलन इसको महत्त्वपूर्ण बनाता है।

पर्यावरण में वह आवरण प्रमुख है जो हमें चारों तरफ से सही ढंग से ढके हुए है। प्रकृति और मानव के बीच का संतुलन बिगड़ रहा है। बढ़ती जनसंख्या एवं प्रकृति का दोहन एवं शोषण इसमें प्रमुख कारण है। वनों की कटाई, भूमिगत संसाधनों का दोहन, नदियों का भयंकर प्रदूषण खतरनाक स्थिति तक पहुंच चुका है। ओजोन की परत धरती वासियों के लिए रक्षा-कवच का काम करती है। यह सूर्य की अनावश्यक किरणों को रोकती है, लेकिन इसकी परत में छेद हो चुके हैं जो ग्लोबल वार्मिंग का कारण बन गई है। पृथ्वी के इस बढ़ते तापमान से आने वाले समय में तटीय क्षेत्रों के डूबने का खतरा मँडरा रहा है। अमृत जैसा जल देने वाले ग्लेशियर लुप्त होते जा रहे हैं। गंगा अपने उद्गम से पीछे खिसक चुकी है।

विकास के नाम पर बहुत से लोग बेघर हो चुके हैं। वन कटने से नदियों में प्रलयंकारी बाढ़ आने लगी है। ‘हे पवित्र करने वाली भूमि! हम कोई ऐसा कार्य न करें जिससे तेरे हृदय को आघात पहुँचे।’ हमारी यह प्राचीन प्रार्थना आज बिसर गई है। विश्व को सभी मतभेद भुलाकर पर्यावरण की रक्षा करने के लिए संकल्प लेना चाहिए। हमारी धरती हमारे स्वार्थ के कारण बर्बाद न हो। यदि हमें ज़िन्दा रहना है तो पृथ्वी की रक्षा के बारे में जरूर सोचें। यह तभी सम्भव है जब हम अपने इस सम्बन्ध “भूमि हमारी माता है और हम पृथ्वी की संतान हैं को ठीक तरह से निभाएँ।”

पानी की कहानी Summary

पाठ का सार

बेर की झाड़ी से उतरकर ओस की बूंद लेखक की हथेली पर आ गई। वह अपनी कहानी लेखक को बता रही है। वायुमण्डल में भीड़ होने के कारण एवं सूर्यास्त होने से उसे पत्रों पर ही सिकुड़कर बैठे रहना पड़ा। बूंद को पौधों से डर लगता है; क्योंकि वे उसे अपने भीतर खींच लेते हैं। लेखक ने उसे सुरक्षा का भरोसा दिलाया।

उस यूँद के पुरखे हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन के रूप में मौजूद थे। उस समय वायुमण्डल में उथल-पुथल मच रही थी। उसी उथल-पुथल में सूर्य का एक भाग टूटकर पृथ्वी बन गया। पृथ्वी प्रारम्भ में आग का एक बड़ा गोला थी। बाद में धरती ठण्डी होती गई। यह लाखों साल पहले की बात है। हम और हमारे साथी बर्फ बन गए थे। एक दिन हम पिघलने शुरू हो गए। मैं कई महीने समुद्र में घूमी। गर्म धारा से मिलकर मैं भी पिघल गई और पानी बनकर समुद्र में मिल गई। समुद्र में पानी के अलावा अनेक प्रकार के जीवों की भी चहल-पहल रही है।

समुद्र के भीतर घुमकर देखा-रेंगने वाले घोंघे, जालीदार मछलियाँ, भारी कछुए और हाथों वाली मछलियाँ भी थीं। एक मछली तो आदमी से भी कई गुना लम्बी थी। अधिक दूर समुद्र में जाकर देखा-वहाँ घोर अंधेरा था। वहाँ एक ऐसा जीव दिखाई दिया जो मानो कोई लालटेन लेकर घूम रहा हो। वह सुन्दर मछली थी। इसकी चमक देखकर छोटी मछलियाँ पास आ जातीं और यह उनको खा जाती। समुद्र की तह में जंगल है। जहाँ मोटे पत्ते वाले ठिगने पेड़ उगे हुए हैं। यहाँ घाटियाँ, पहाड़ियाँ और गुफाएँ भी हैं जहाँ कई प्रकार के जीव रहते हैं। मैं समुद्रतल से ऊपर आना चाहती थी; परन्तु मेरे ऊपर पानी की कोई तीन मील मोटी तह थी। मैं भूमि में घुसकर जान बचाना चाहती थी।

मैं अपने दूसरे साथियों के साथ चट्टान में घुस गई। हम सब चलते रहे। अचानक ऐसी जगह पहुँचे जहाँ तापमान बहुत
अधिक था। हम देखते-देखते ऑक्सीजन और हाइड्रोजन में बदल गए और साथियों सहित वहाँ से भाग निकले। फिर ऐसे स्थान पर चले गए, जहाँ से धमाके के साथ हम बाहर फेंक दिए गए थे। यह ज्वालामुखी था। हम जब ऊपर पहुँचे तो भाप का एक बड़ा दल मिला। हम गरजकर आपस में मिले और आगे बढ़े।

भाप जल-कणों के मिलने से भारी होकर बूंद बने और नीचे कूद पड़े। मैं पहाड़ पर गिरी और उछलती-कूदती आगे बढ़ चली। मैं नीचे आकर समतल धारा में मिल गई। जब एक नगर में पहुँची तो मोटे नल में खींच ली गई। किसी तरह टूटे हुए नल से निकलकर भागी और पृथ्वी में समा गई।

सूर्य निकल आया था। वह यूँद धीरे-धीरे घटी और आँखों से ओझल हो गई।

शब्दार्थ : दृष्टि-नज़र; झंकार-गूंज; अनुभव-तजुर्बा; सुरीली-सुन्दर सुर वाली; निर्दयी-निर्दय, बेरहम; असंख्य-अनगिन; बंधुओं-भाइयों; उत्सुकता-जानने की चाह; साँसत-कठिनाई; भावपूर्ण-भाव से भरा हुआ; विचित्र-अनोखा; चौंधियाना-चकाचौंध करना; चूर्ण-चकनाचूर; सहस्रों-हजारों; प्रत्यक्ष-सामने; अस्तित्व-वजूद; सौन्दर्य-खूबसूरती वार्तालाप-वातचीत; फलस्वरूप-परिणाम के रूप में; वर्णनातीत-वर्णन से परे; निरा-बिल्कुल; ठिगने-छोटे; बहुतायत-बहुत संख्या में; नाना प्रकार-तरह-तरह; निपट-विल्कुल; स्वच्छंद-आजाद; किलोलें-खेल; प्रहार-चोट; उन्मत्त-मस्ती से भरा;

मुहावरे-
कमर कसकर तैयार रहना – पूरी तरह तैयार रहना;
दाल में नमक के समान – बहुत ही कम मात्रा में;
मुख पर हवाइयाँ उड़ना – बहुत घबराहट होना;
आँखों से ओझल होना – बिल्कुल गायब हो जाना;

सही रूप-निर्दयी-निर्दय;
एक बड़ा आग का गोला – आग का एक बड़ा गोला;
एक और भाप का बड़ा दल – भाप का एक और बड़ा दल;
सूर्य निकल आए थे – सूर्य निकल आया था, सूर्यदेव निकल आए थे

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Hindi NCERT Solutions Class 8

NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 15 सूरदास के पद

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सूरदास के पद NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 15

Class 8 Hindi Chapter 15 सूरदास के पद Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
बालक श्रीकृष्ण किस लोभ के कारण दूध पीने के लिए तैयार हुए?
उत्तर:
दूध पीने से उनकी चोटी बलराम की चोटी की तरह लम्बी और मोटी हो जाएगी। इसी लोभ के कारण बालक श्रीकृष्ण दूध पीने के लिए तैयार हुए।

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण अपनी चोटी के विषय में क्या-क्या सोच रहे थे?
उत्तर:
अपनी चोटी के बारे में श्रीकृष्ण सोच रहे थे कि काढ़ते समय, मूंथते समय और नहाते समय मेरी चोटी नागिन की तरह भूमि पर लहराने लगेगी अर्थात् उनकी चोटी इतनी लम्बी हो जाएगी कि भूमि का भी स्पर्श कर लेगी।

प्रश्न 3.
दूध की तुलना में श्रीकृष्ण कौन-से खाद्य पदार्थ को अधिक पसंद करते हैं?
उत्तर:
श्री कृष्ण दूध की तुलना में माखन-रोटी को अधिक पसन्द करते हैं।

प्रश्न 4.
‘तैं ही पूत अनोखौ जायौ’-पंक्तियों में ग्वालिन के मन के कौन-से भाव मुखरित हो रहे हैं?
उत्तर:
इन पंक्तियों में ग्वालन के मन में आए उलाहने और उपेक्षा के भाव प्रकट हुए हैं।

प्रश्न 5.
मक्खन चुराते और खाते समय श्री कृष्ण थोड़ा-सा मक्खन बिखरा क्यों देते हैं?
उत्तर:
श्रीकृष्ण जानबूझकर मक्खन नहीं बिखराते हैं। वे जब अपने सखाओं को भी मक्खन देते हैं तो कुछ मक्खन न चाहते हुए भी हड़बड़ी में गिर जाता है।

प्रश्न 6.
दोनों पदों में से आपको कौन-सा पद अधिक अच्छा लगा और क्यों?
उत्तर:
पहले पद में श्रीकृष्ण की बालसुलभ चेष्टाओं का वर्णन किया गया है जो उसके भोलेपन और निश्छल स्वभाव को सूचित करता है। इसलिए हमें यह पद अधिक अच्छा लगा।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
दूसरे पद को पढ़कर बताइए कि आपके अनुसार उस समय श्रीकृष्ण की उम्र क्या रही होगी?
उत्तर:
हमारे अनुसार उस समय श्रीकृष्ण की उम्र 7-8 साल की रही होगी।

प्रश्न 2.
ऐसा हुआ हो कभी कि माँ के मना करने पर भी घर में उपलब्ध किसी स्वादिष्ट वस्तु को आपने चुपके-चुपके थोड़ा-बहुत खा लिया हो और चोरी पकड़े जाने पर कोई बहाना भी बनाया हो। अपनी आपबीती की तुलना श्रीकृष्ण की बाल लीला से कीजिए।
उत्तर:
माँ के एक बार सबसे छुपाकर कोठरी में लड्डू रखे थे। मैंने धीरे-धीरे करके सब लड्डू खा लिये। जब माँ का सन्देह छोटी बहिन पर गया तो मैंने अपना पूरा कारनामा माँ को बता दिया। श्रीकृष्ण भी इसी तरह चुपचाप अपने या दूसरों के घर में से मक्खन चुराकर खा लेते थे।

प्रश्न 3.
किसी ऐसी घटना के विषय में लिखिए जब किसी ने आपकी शिकायत की हो और फिर आपके किसी अभिभावक (माता-पिता, बड़ा भाई-बहिन इत्यादि) ने आपसे उत्तर माँगा हो।
उत्तर:
घर में मेरी गुल्लक में पैसे डाले गए थे। मैंने बीच-बीच में उसमें से पैसे निकालकर स्कूल की कैंटीन से समोसे खरीदकर खा लिये। महीने भर बाद जब मेरी गुल्लक देखी गई तो उसमें कोई पैसा नहीं था। पिता जी ने कसकर डाँटा तो मुझे सब कुछ बता देना पड़ा।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
श्रीकृष्ण गोपियों का माखन चुरा-चुराकर खाते थे इसलिए उन्हें माखन चुराने वाला भी कहा गया है। इसके लिए एक शब्द दीजिए।
उत्तर:
इसके लिए एक शब्द है-माखनचोर

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण के लिए पाँच पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर:
श्रीकृष्ण के लिए पाँच पर्यायवाची शब्द हैं-
गिरिधर, मुरलीधर, पीताम्बर, यशोदानंदन, माघव।

प्रश्न 3.
कुछ शब्द परस्पर मिलते-जुलते अर्थ वाले होते हैं, उन्हें पर्यायवाची कहते हैं और कुछ विपरीत अर्थ वाले भी। समानार्थी शब्द पर्यायवाची कहे जाते हैं और विपरीतार्थक शब्द विलोम, जैसे-
पर्यायवाची-
चंद्रमा – राशि, इंदु, राका
मधुकर – भ्रमर, भौंरा, मधुप
सूर्य – रवि, भानु, दिनकर

विपरीतार्थक-
दिन – रात
श्वेत – श्याम
शीत – उष्ण
पाठों से दोनों प्रकार के शब्दों को खोजकर लिखिए।
उत्तर:
मिलते-जुलते अर्थ वाले शब्द
बेनी-चोटी
हलधर-बल
लाल-पूत-ढोटा

विलोम अर्थ वाले शब्द
छोटी – लम्बी
शहर – गाँव
बहुत – कम
जवान – बूढ़ा
व्यक्तिगत – सामाजिक
अच्छाई – बुराई

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
श्रीकृष्ण को सबसे अधिक क्या पसन्द था?
(क) दूध
(ख) माखन-रोटी
(ग) रोटी
(घ) छाछ
उत्तर:
(ख) माखन-रोटी।

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण के बड़े भाई का नाम क्या था?
(क) सुदामा
(ख) श्रीदामा
(ग) बलराम
(घ) मनसुखा
उत्तर:
(ग) बलराम।

प्रश्न 3.
श्रीकृष्ण छीके से गोरस कैसे उतार लेते थे?
(क) ओखली पर चढ़कर
(ख) सीढ़ी से
(ग) उछलकर
(घ) नीचे खड़े होकर
उत्तर:
(क) ओखली पर चढ़कर।

प्रश्न 4.
गोपी ने यशोदा को उलाहना देते हुए किस प्रकार के पुत्र की बात कही?
(क) आज्ञाकारी
(ख) अनोखा
(ग) बहुत भला
(घ) समझदार
उत्तर:
(ख) अनोखा।

प्रश्न 5.
गोपी ने प्रतिदिन होने वाली किस हानि की बात की?
(क) भोजन
(ख) रुपया
(ग) गोरस
(घ) दही का बर्तन
उत्तर:
(ग) गोरस।

सप्रसंग व्याख्या

(क) मैया, कबहिं बढ़ेगी चोटी?
किती बार मोहिं दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी।
तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं, है है लाँबी-मोटी।
काँचो दूध पियावत पचि-पचिए देतिन माखन-रोटी।
सूरज चिरजीवौ दोउ भैया, हरि-हलधर की जोटी।

शब्दार्थ : कबहि-कब; बढेगी-बढ़ेगी; किती-कितनी; बार-समय,देरी; मोहिं-मुझे पियत भई-पीते हो गया; अजहूँ-आज भी; बल-बलराम; बेनी-वेणि, चोटी; ज्यौं-समान; दै-हो जाएगी; लाँबी-लम्बी; काढ़त-काढ़ना; गुहत-Dथना; न्हवावत-नहाते समय; नागिनी सी-साँपिन की तरह; भुइँ-भूमि पर; लोटी-लेटी; काँचों-कच्चा; पियावत-पिलाती है; पचि-पचि-बार-बार; सूरज-सूरदास; चिरजीवौ-चिरंजीव रहो, लम्बी उम्र वाले बनो; हरि-कृष्ण; हलधर-बलराम; जोटी-जोड़ी।

प्रसंग- यह पद ‘सूरदास के पद’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके रचनाकार भक्त कवि ‘सूरदास’ जी हैं। यशोदा कृष्ण को दूध पिलाती हैं और कहती हैं कि इससे तुम्हारी चोटी बड़ी हो जाएगी। कृष्ण जी को यशोदा की बात पर भरोसा नहीं होता। .

व्याख्या- श्रीकृष्ण जी यशोदा से पूछते है कि हे माँ मेरी चोटी कब बड़ी होगी? मुझे दूध पीते हुए कितना समय बीत गया है, परन्तु मेरी चोटी तो पहले की तरह छोटी ही है। तू तो कहती है कि दूध पीने से तेरी चोटी बलराम की चोटी की तरह लम्बी और मोटी हो जाएगी, काढ़ते समय, मूंथते समय और नहाते समय चोटी नागिन की तरह धरती पर लोटने लगेगी, लगता है तू मुझे कच्चा दूध पिलाती है। बार-बार माँगने पर भी मक्खन और रोटी खाने के लिए नहीं देती है। कवि सूरदास कृष्ण की इन बाल सुलभ बातों से भाव-विभोर होकर कहते हैं कि कृष्ण और बलराम इन दोनों भाइयों की यह जोड़ी चिरंजीवी हो।

विशेष-

  1. कृष्ण की बाल-सुलभ चेष्टाओं का सहज एवं सुन्दर चित्रण हुआ है।
  2. ब्रज भाषा का प्रयोग, वाल्सल्य रस
  3. ‘नागिनी-सी’ में उपमा अलंकार है
  4. ‘हरि-हलधर’ में अनुप्रास अलंकार है।

(ख) तेरै लाल मेरौ माखन खायौ।
दुपहर दिवस जानि घर सूनो ढूंढि-ढंढोरि आपही आयौ।
खोलि किवारि, पैठि मंदिर मैं, दूध-दही सब सखनि खवायौ।
ऊखल चढ़ि, सींके कौ लीन्हौ, अनभावत भुइँ मैं ढरकायौ।
दिन प्रति हानि होति गोरस की, यह ढोटा कौनैं ढंग लायौ।
सूर स्याम कौं हटकि न राखै तैं ही पूत अनोखौ जायौ।

शब्दार्थ : लाल-पुत्र; दुपहर-दोपहर; दिवस-दिन; सूनो-सूना; दूँढ़ि-ढूंढ़कर; आपही-खुद ही; किवारि-किवाड़; पैठि-घुसकर; मंदिर-घर; मैं-में, भीतर; सखनि-मित्रों को; खवायौ-खिलाता है; चढ़ि-चढ़कर; सीके-छीके; लीन्हौ-लेना; अनभावत-जो अच्छा नहीं लगा; भुइँ-भूमि; ढरकायौ-गिरा दिया; गोरस-गाय के दूध से बने पदार्थ; ढोटा-पुत्र; कौनैं-कोई; ढंग-तरीका; हटकि न राखै-रोककर नहीं रखती; तें-त; अनोखौ-अनोखा; जायौ-पैदा किया।

प्रसंग- यह पद ‘सूरदास के पद’ से उद्धृत है। इस पद में सूरदास ने गोपियों की शिकायत को बहुत सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है। कृष्ण क्या-क्या शरारत करते हैं, एक गोपी उलाहना देकर यशोदा से कहती है

व्याख्या- हे यशोदा! तेरे पुत्र कृष्ण ने मेरा मक्खन खा लिया है। दोपहर के समय घर को सुना देखकर, ढूँढ़ते-ढाँढ़ते खुद ही आ पहुँचे। किवाड़ खोल कर घर में घुस गए। घर में जो भी दूध और दही था, वह सब मित्रों को खिला दिया। ओखली पर चढ़कर छीके पर जो कुछ भी रखा था, उसे उतार लिया। जो अच्छा नहीं लगा, उसे ज़मीन पर गिरा दिया। इस प्रकार हमारे गोरस की रोज हानि हो रही है। यह लड़का तरह-तरह की अनोखी शरारत करता रहता है। सूर गोपी की यशोदा को कही तीखी बात का वर्णन करते हुए कहते हैं कि अपने कृष्ण को तुम रोक कर नहीं रखतीं। लगता है तुमने ही अनोखे पूत को जन्म दिया है।

विशेष-

  1. गोपी के उलाहने को स्वाभाविक रूप में प्रस्तत किया है।
  2. ‘दुपहर दिवस’ ढूँढ़ि-टॅढ़ोरि, दूध-दही, सब सखनि, हानि होत, सूर स्याम-में अनुप्रास अलंकार का सौन्दर्य दर्शनीय है।
  3. ‘ते ही पूत अनोखौ जायौ’ का भाव है कि पुत्र तो औरों के यहाँ भी पैदा होते हैं। तुम कोई विशेष नहीं हो, जिसने अनोखा पुत्र पैदा किया हो।

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NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 14 अकबरी लोटा

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अकबरी लोटा NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 14

Class 8 Hindi Chapter 14 अकबरी लोटा Textbook Questions and Answers

कहानी की बात

प्रश्न 1.
“लाला ने लोटा ले लिया, बोले कुछ नहीं, अपनी पत्नी का अदब मानते थे।”
लाला झाऊलाला को बेढंगा लोटा बिलकुल पसंद नहीं था। फिर भी उन्होंने चुपचाप लोटा ले लिया आपके विचार से वे चुप क्यों रहे? अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
जो पत्नी का न हुआ, वह कैसा पति? लाला जी ने सोचा कि यदि विरोध कर दिया तो बालटी में भोजन मिलेगा। तब क्या करना बाकी रह जाएगा? इसीलिए लाला जी अपना गुस्सा पीकर चुप रहे।

प्रश्न 2.
“लाला झाऊलाल जी ने फौरन दो और दो जोड़कर स्थिति को समझ लिया” आपके विचार से लाला झाऊलाल ने कौन-कौन सी बातें समझ ली होंगी?
उत्तर:
लोटा गिरने से गली में ज़ोर का हल्ला उठा। जब तक नीचे उतरे, भीड़ उनके आँगन में घुस चुकी थी। एक अंग्रेज पूरी तरह भीगा हुआ है और एक हाथ से दूसरे पैर को सहला रहा है। उनकी समझ में लोटे द्वारा की गई करतूत समझ में आ गई थी।

प्रश्न 3.
अंग्रेस के सामने बिलवासी जी ने झाऊलाल को पहचानने तक से क्यों इनकार कर दिया था? आपके विचार से बिलवासी जी ऐसा अजीब व्यवहार क्यों कर रहे थे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बिलवासी जी ने झाऊलाल को पहचानने से इनकार इसलिए कर दिया था ताकि वे अंग्रेज की सहानुभूति और विश्वास प्राप्त कर सकें। वे झाऊलाल को परेशानी से बचाना चाहते थे और पूरे घटनाक्रम को लोटे के ऐतिहासिक होने की तरफ मोड़ना चाहते थे। उनका उद्देश्य लाला जी की आर्थिक सहायता करना था जो अंग्रेज को प्रभावित किए बिना सम्भव नहीं था।

प्रश्न 4.
बिलवासी जी ने रुपयों का प्रबन्ध कहाँ से किया था? लिखिए।
उत्तर:
बिलवासी जी ने पत्नी के सन्दूक से ढाई सौ रुपये चुपचाप निकाल लिए थे ताकि लाला जी की मदद की जा सके।

प्रश्न 5.
आपके विचार से अंग्रेज ने यह पुराना लोटा क्यों खरीद लिया? आपस में चर्चा करके वास्तविक कारण की खोज कीजिए और लिखिए।
उत्तर:
अंग्रेज का पड़ोसी मेजर डगलस पुरानी चीजों के संग्रह का शौकीन था और उससे बाज़ी मारने का दावा करता था। मेज़र डगलस ने दिल्ली के एक मुसलमान से जहाँगीरी अण्डा खरीदा था। भला फिर यह अंग्रेज एक पीढ़ी पुराना अकबरी लोटा खरीदने में क्यों पीछे रहता। उसने लाला झाऊलाला को पाँच सौ रुपये देकर ऐतिहासिक अकबरी लोटा खरीद लिया ताकि मेज़र डगलस के ऊपर अपना प्रभाव जमा सके।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
“इस भेद को मेरे सिवाए मेरा ईश्वर ही जानता है। आप उसी से पूछ लीजिए। मैं नहीं बताऊँगा।” बिलवासी जी ने यह बात किससे और क्यों कही? लिखिए।
उत्तर:
बिलवासी जी ने यह बात लाला झाऊलाल से कही। बिलवासी जी अपनी पत्नी की सन्दूक से रुपये निकालकर लाये थे और यह बात लाला जी को नहीं बताना चाहते थे, इसलिए ऐसी बात कही।

प्रश्न 2.
“उस दिन रात्रि में बिलवासी जी को देर तक नींद नहीं आई।” समस्या झाऊलाल की थी और नींद बिलवासी की उड़ी तो क्यों? लिखिए।
उत्तर:
बिलवासी जी ने पत्नी की सन्दूक ले चुपचाप ढाई सौ रुपये निकाल लिये थे। उन्हें वापस सन्दूक में रखने के लिए पत्नी के गले से सोने की जंजीर में बँधी ताली निकालनी थी। इसी अवसर की तलाश में उन्हें नींद नहीं आ रही थी। पत्नी के सो जाने पर ही ताली ली जा सकती थी और रुपये सन्दूक में रखे जा सकते थे। यह समस्या बिलवासी जी की थी न कि लाला झाऊलाल की।

प्रश्न 3.
“लेकिन मुझे इसी जिदंगी में चाहिए।”
“अजी इसी सप्ताह में ले लेना।”
“सप्ताह से आपका तात्पर्य सात दिन से है या सात वर्ष से?”
झाऊलाल और उनकी पत्नी के बीच की इस बातचीत से क्या पता चलता है? लिखिए।
उत्तर:
झाऊलाल और उनकी पत्नी के बीच हुई इस बातचीत से पता चलता है-

  1. लाला झाऊलाल बहुत अमीर आदमी न थे, बस जीवन-यापन कर रहे थे।
  2. पत्नी को उन पर विश्वास नहीं था।
  3. लाला जी पहले भी झूठे वायदे कर चुके होंगे अतः इस बार अपना वायदा पूरा करेंगे, इस बारे में पत्नी को सन्देह था। पत्नी लाला जी की तुलना में ज्यादा तेज़-तर्रार थी।

क्या होता यदि

प्रश्न 1.
अंग्रेज़ लोटा न खरीदता?
उत्तर:
यदि अंग्रेज लोटा न खरीदता तो लाला झाऊलाल को पाँच सौ रुपये नहीं मिलते। उन्हें पं. बिलवासी जी से ढाई सौ रुपये उधार लेने पड़ते।

प्रश्न 2.
यदि अंग्रेज पुलिस को बुला लेता?
उत्तर:
यदि अंग्रेज पुलिस को बुला लेता तो लाला झाऊलाल जी कानून के झमेले में फँसकर और परेशान होते।

प्रश्न 3.
जब बिलवासी अपनी पत्नी के गले से चाबी निकाल रहे थे, तभी उनकी पत्नी जाग जाती?
उत्तर:
चाबी निकालते समय बिलवासी जी की पत्नी जाग जाती तो उन्हें अपमानित होना पड़ता।

पता कीजिए

प्रश्न 1.
“अपने वेग में उल्का को लजाता हुआ वह आँखों से ओझल हो गया।” उल्का क्या होती है? उल्का और ग्रहों में कौन-कौन सी समानताएँ और अंतर होते हैं?
उत्तर:
उल्का पुच्छल तारे को कहते हैं। कुछ इसे टूटकर गिरने वाला तारा भी कहते हैं। यह एक प्रकार से तारे का टुकड़ा होता है। इसमें तेज़ रोशनी की पूँछ जैसी होती है। ये चट्टान, धूल और जमी हुई गैसें और धूल के कण सूर्य से विपरीत दिशा में फैल जाते हैं और सूर्य की रोशनी परिवर्तित कर चमकने लगते हैं। सिर का सिरा ज़्यादा चमकीला होता है। सूर्य की विपरीत दिशा का भाग पूँछ की तरह लगता है।

सूर्य या किसी अन्य तारे के चारों ओर परिक्रमा करने वाले खगोल पिण्डों को ग्रह कहते हैं। इनकी घुमक्कड़ प्रवृत्ति के कारण इन्हें ग्रह कहा गया है।

प्रश्न 2.
“इस कहानी में आपने दो चीज़ों के बारे में मजेदार कहानियाँ पढ़ी-अकबरी लोटे की कहानी और जहाँगीरी अंडे की कहानी।”
आपके विचार से ये कहानियाँ सच्ची हैं या काल्पनिक?
उत्तर:
अकवरी लोटे की कहानी और जहाँगीरी अण्डे की कहानियाँ काल्पनिक हैं।

प्रश्न 3.
अपने घर या कक्षा की किसी पुरानी चीज़ के बारे में ऐसी ही कोई मजेदार कहानी बनाइए।
उत्तर:
छात्र अपनी कल्पना के अनुसार ऐसी ही कहानी बना सकते हैं।

प्रश्न 4.
बिलवासी जी ने जिस तरीके से रुपयों का प्रबंध किया, वह सही था या गलत?
उत्तर:
बिलवासी जी ने जिस तरीके से रुपयों का प्रबन्ध किया था, वह गलत था।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
इस कहानी में लेखक ने जगह-जगह पर सीधी-सी बात कहने के बजाय रोचक मुहावरों, उदाहरणों आदि के द्वारा कहकर अपनी बात को और अधिक मजेदार/रोचक बना दिया है। कहानी से वे वाक्य चुनकर लिखिए जो आपको सबसे अधिक मजेदार लगे।
उत्तर:

  • इस समय अगर दुम दबाकर निकल भागते हैं तो फिर उसे क्या मुँह दिखलाएँगे?
  • अभी अगर यूँ कर देता हूँ तो बाल्टी में भोजन मिलेगा।
  • लाला अपना गुस्सा पीकर पानी पीने लगे।
  • लाला को काटो तो बदन में खून नहीं।
  • अंग्रेज को उसने सांगोपांग स्नान कराया।
  • अंग्रेजी भाषा में गालियों का ऐसा प्रकांड कोष है।
  • मेजर डगलस की डींग सुनते-सुनते मेरे कान पक गए।

प्रश्न 2.
इस कहानी में लेखक ने अनेक मुहावरों का प्रयोग किया है। कहानी में से पाँच मुहावरे चुनकर उनका प्रयोग करते हुए वाक्य लिखिए।
उत्तर:

  • गोलियों की आवाज़ सुनते ही पहलवान साहब दुम दबाकर निकल गए।
  • कमाकर नहीं ले जाएँगे तो परिवार वालों को क्या मुँह दिखाएँगे।
  • बाहर जो शेर बने घूमते हैं, वे घर में आकर यूँ भी नहीं करते।
  • बड़े भाई ऊल-जलूल बोलते रहे। मैं उनके सामने गुस्सा पीकर रह गया।
  • सतीश दबे पाँव घर में घुसा ताकि पिता जी को उसके देरी से आने का पता न चल जाए।

निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए-

1. यह लोटा न जाने किस अनाधिकारी के झोंपड़े पर काशीवास का सन्देश लेकर पहुंचेगा।
2. इसके बदले में उसे इसी प्रकार के दस सोने के लोटे प्रदान किए।
3. तो आप इस लोटे का क्या करिएगा ?
उत्तर:
1. यह लोटा न जाने किस अनधिकारी के झोंपड़े पर काशीवास का संदेश लेकर पहुँचेगा।
2. इसके बदले में उसे इसी प्रकार के सोने के दस लोटे प्रदान किए।
3. तो आप इस लोटे का क्या कीजिएगा?

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लाला झाऊलाल को दुकानों के किराये के रूप में मिलते थे-
(क) 200 रुपये मासिक
(ख) 100 रुपये मासिक
(ग) 50 रुपये मासिक
(घ) 250 रुपये मासिक
उत्तर:
(ख) 100 रुपये मासिक।

प्रश्न 2.
लाल झाऊलाल ने पत्नी को कितने समय में रुपये देने का वायदा किया?
(क) एक सप्ताह
(ख) एक माह
(ग) एक वर्ष
(घ) दो सप्ताह
उत्तर:
(क) एक सप्ताह।

प्रश्न 3.
लाला जी ने अपनी विपदा किसे सुनाई?
(क) पत्नी को
(ख) अंग्रेज को
(ग) पं. बिलवासी मिश्र को
(घ) किसी को भी नहीं
उत्तर:
(ग) पं. बिलवासी मिश्र को।

प्रश्न 4.
लोटे की गढ़न कैसी थी?
(क) सामान्य
(ख) सुन्दर
(ग) बेढंगी
(घ) प्रभावित करने वाली
उत्तर:
(ग) बेढंगी।

प्रश्न 5.
अंग्रेज को लोटे की चोट लगी-
(क) माथे पर
(ख) पैर पर
(ग) सिर पर
(घ) हाथ पर
उत्तर:
(ख) पैर पर।

प्रश्न 6.
अकबर ने ब्राह्मण को सोने के कितने लोटे दिये?
(क) पाँच
(ख) चार
(ग) दस
(घ) एक भी नहीं
उत्तर:
(ग) दस।

प्रश्न 7.
हुमायूं शेरशाह से हारकर किस रेगिस्तान में मारा-मारा फिर रहा था?
(क) सहारा
(ख) थार
(ग) गोबी
(घ) सिंध
उत्तर:
(घ) सिंध।

प्रश्न 8.
लोटे का प्लास्टर का मॉडल कहाँ रखा हुआ है?
(क) मुम्बई
(ख) कलकत्ता
(ग) चेन्नई
(घ) दिल्ली
उत्तर:
(ख) कलकत्ता।

प्रश्न 9.
अंग्रेज ने लोटा कितने रुपये में खरीदा ?
(क) 500 रुपये
(ख) 400 रुपये
(ग) 250 रुपये
(घ) 100 रुपये
उत्तर:
(क) 500 रुपये।

बोध-प्रश्न

निम्नलिखित अवतरणों को पढ़िए एवं पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

(क) लोटे ने दाएँ देखा न बाएँ, वह नीचे गली की ओर चल पड़ा। अपने वेग में उल्का को लजाता हुआ वह आँखों से ओझल हो गया। किसी ज़माने में न्यूटन नाम के किसी खुराफती ने पृथ्वी की आकर्षण शक्ति नाम की एक चीज़ ईजाद की थी। कहना न होगा कि यह सारी शक्ति इस समय लोटे के पक्ष में थी।

प्रश्न 1.
लोटा किधर चल पड़ा और कैसे?
उत्तर:
लोटा नीचे गली की तरफ चल पड़ा। लोटे ने दाएँ देखा न बाएँ, वह नीचे की ओर जा रहा था।

प्रश्न 2.
लोटा किस वेग से आँखों से ओझल हो गया?
उत्तर:
लोटा उल्का के वेग को भी लजाता हुआ आँखों से ओझल हो गया।

प्रश्न 3.
किस खुराफाती ने पृथ्वी की आकर्षण शक्ति को ईजाद किया था?
उत्तर:
किसी ज़माने में न्यूटन नाम के खुराफाती ने पृथ्वी की आकर्षण-शक्ति को ईजाद किया था।

प्रश्न 4.
इस समय सारी शक्ति कहाँ मौजूद थी?
उत्तर:
इस समय सारी शक्ति लोटे के पक्ष में मौजूद थी अर्थात् वह शक्ति लोटे को नीचे की ओर ले जा रही थी।

(ख) “जी, जनाब। सोलहवीं शताब्दी की बात है। बादशाह हुमायूँ शेरशाह से हारकर भागा था और सिंध के रेगिस्तान में मारा-मारा फिर रहा था। एक अवसर पर प्यास से उसकी जान निकल रही थी। उस समय एक ब्राह्मण ने इसी लोटे से पानी पिलाकर उसकी जान बचाई थी। हुमायूँ के बाद अकबर ने उस ब्राह्मण का पता लगाकर उससे इस लोटे को ले लिया और इसके बदले में उसे इसी प्रकार के दस सोने के लोटे प्रदान किए। यह लोटा सम्राट अकबर को बहुत प्यारा था। इसी से इसका नाम अकबरी लोटा पड़ा। वह बराबर इसी से वजू करता था। सन् 57 तक इसके शाही घराने में रहने का पता है। पर इसके बाद लापता हो गया। कलकत्ता के म्यूजियम में इसका प्लास्टर का मॉडल रंखा हुआ है। पता नहीं यह लोटा इस आदमी के पास कैसे आया? म्यूजियम वालों को पता चले तो फैंसी दाम देकर खरीद ले जाएँ।”

प्रश्न 1.
बादशाह हुमायूँ किससे हारकर भागा था? वह कहाँ मारा-मारा फिर रहा था?
उत्तर:
बादशाह हुमायूँ शेरशाह से हारकर भागा था। वह सिंध के रेगिस्तान में मारा-मारा फिरा था।

प्रश्न 2.
हुमायूँ को किसने पानी पिलाया था?
उत्तर:
एक ब्राह्मण ने हुमायूँ को पानी पिलाया था।

प्रश्न 3.
बाद में लोटे को किसने ले लिया और इसके बदले में क्या दिया?
उत्तर:
बाद में इस लोटे को उस ब्राह्मण से अकबर ने ले लिया और बदले में उसको सोने के दस लोटे प्रदान किये।

प्रश्न 4.
लोहे का नाम अकबरी लोटा क्यों पड़ा?
उत्तर:
यह लोटा सम्राट अकबर को बहुत प्यारा था, इसलिए इसका नाम अकबरी लोटा पड़ा।

प्रश्न 5.
अकबर इस लोटे को किस रूप में इस्तेमाल करता था?
उत्तर:
अकबर हमेशा इसी लोटे से वजू करता था।

प्रश्न 6.
यह लोटा शाही घराने में कब तक रहा?
उत्तर:
यह लोटा शाही घराने में 1857 तक रहा।

प्रश्न 7.
कलकत्ता के म्यूजियम में लोटे का कौन-सा मॉडल रखा हुआ है?
उत्तर:
कलकत्ता के म्यूजियम में लोटे का प्लास्टर का मॉडल रखा हुआ है।

प्रश्न 8.
म्यूज़ियम वालों को पता चले तो क्या होगा?
उत्तर:
म्यूज़ियम वालों को पता चले तो वे फैंसी दाम देकर इस लोटे को खरीद लेंगे।

प्रश्न 9.
क्या ऊपर दिए गए लोटे सम्बन्धी विवरण सही हैं?
उत्तर:
ऊपर दिए गए लोटे सम्बन्धी विवरण काल्पनिक हैं और केवल मनोरंजन के लिए दिए गए हैं।

(ग) उस दिन रात्रि में बिलवासी जी को देर तक नींद नहीं आई। वे चादर लपेटे चारपाई पर पड़े रहे। एक बजे वे उठे। धीरे, बहुत से अपनी सोई हुई पत्नी के गले से उन्होंने सोने की वह सिकड़ी निकाली जिसमें एक ताली बँधी हुई थी। फिर उसके कमरे में जाकर उन्होंने उस ताली से संदूक खोला। उसमें ढाई सौ के नोट ज्यों-के-त्यों रखकर उन्होंने उसे बंद कर दिया। फिर दबे पाँव लौटकर ताली को उन्होंने पूर्ववत् अपनी पत्नी के गले में डाल दिया। इसके बाद उन्होंने हँसकर अंगड़ाई ली। दूसरे दिन सुबह आठ बजे तक चैन की नींद सोए।

प्रश्न 1.
एक बजे बिलवासी जी ने उठकर क्या किया?
उत्तर:
एक बजे बिलवासी जी ने धीरे से उठकर सोई हुई पत्नी के गले से सोने की वह जंजीर निकाली जिसमें एक ताली बँधी थी।

प्रश्न 2.
बिलवासी जी ने सन्दूक में क्या रखा?
उत्तर:
बिलवासी जी ने सन्दूक में ढाई सौ रुपये रखे।

प्रश्न 3.
ये रुपये किसके रहे होंगे? आपने कैसे अनुमान लगाया?
उत्तर:
‘ढाई सौ के नोट ज्यों-के-त्यों रखने’ के प्रसंग से ज्ञात होता है कि ये रुपये बिलवासी जी की पत्नी के रहे होंगे।

प्रश्न 4.
बिलवासी जी ने हँसकर अंगड़ाई क्यों ली? अपने अनुमान से बताइए।
उत्तर:
बिलवासी जी ने हँसकर अंगड़ाई इसलिए ली कि बिना कुछ खर्च किए अपनी चालाकी से लाला झाऊलाल की मदद भी कर दी और ढाई सौ रुपये चुपचाप संदूक में रख दिये। पत्नी को भी खबर नहीं हुई।

प्रश्न 5.
बिलवासी जी चैन की नींद क्यों सोते रहे?
उत्तर:
बिलवासी जी अपने काम में बिना किसी बाधा के सफल हो गए थे, इसीलिए वे चैन की नींद सोते रहे।

अकबरी लोटा Summary

पाठ का सार

लाला झाऊलाल काशी में आराम का जीवन बिताते थे। पत्नी ने एकाएक ढाई सौ रुपये की माँग रख दी तो झाऊलाल एक बार सन्नाटे में आ गए। पत्नी ने भाई से रुपये लेने की बात की तो लाला जी को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने एक सप्ताह का समय माँगा। चार दिन बीत गए पर रुपयों का इतंजाम नहीं हुआ। लाला जी को अपना वायदा पूरा करना कठिन लगा। अब पत्नी को क्या मुँह दिखाएँगे? पाँचवें दिन घबराकर उन्होंने पं. बिलवासी मिश्र को अपनी परेशानी बताई। मिश्र जी की जेब भी उस समय खाली थी। फिर भी उन्होंने कोशिश करने का भरोसा दिलाया और कल शाम तक व्यवस्था करने की बात की। इंतज़ाम न होने पर लाला जी को अपनी हेकड़ी से हाथ धोना पड़ेगा।

लाला जी परेशान थे और छत पर टहल रहे थे। नौकर को पानी लाने के लिए आवाज़ दी। नौकर नहीं था, पत्नी ही पानी ले आई। गिलास लाना भूल गई थी। लाला जी लोटे से ही पानी पीने लगे। उन्हें यह बेढंगा लोटा पसन्द नहीं था। छत की मुँडेर के पास खड़े होकर पानी पीने लगे। हाथ हिलने से लोटा छूट गया और तिमंजले से नीचे की ओर बढ़ा। तभी नीचे हल्ला हुआ। लोटा एक अंग्रेज को जा लगा। भीड़ आँगन में घुस आई थी। ठीक उसी समय पं. बिलवासी जी आ पहुँचे। भीड़ को बाहर निकाला। अंग्रेज को कुर्सी पर बैठाया। अंग्रेज ने लाला जी को खतरनाक पागल बताया तो पंडित जी ने खतरनाक मुजरिम करार दिया और अंग्रेज को पुलिस स्टेशन ले जाने की सलाह दे डाली। चलने से पहले बिलवासी जी ने लोटे को खरीदने की बात की। उन्होंने लोटे को ऐतिहासिक बताया।

पंडित जी के ऐतिहासिक ज्ञान के अनुसार बादशाह हुमायूँ ने सिन्ध के रेगिस्तान में भागते समय इसी लोटे से पानी पिया था। जिस ब्राह्मण का यह लोटा था, उससे बाद में अकबर ने यह लोटा ले लिया था। बदले में उसको सोने के दस लोटे प्रदान किए थे। अकबर इसी से वजू करता था। सन् 1857 तक यह शाही घराने में रहा। इसके बाद लापता हो गया। म्यूजियम वाले बढ़िया दाम देकर इसे खरीद लेंगे। अंग्रेज ने सुना तो उत्सुक हो उठा। फिर पं. बिलवासी और अंग्रेज दोनों में लोटे को खरीदने की होड़ लग गई। बिलवासी जी ने ढाई सौ रुपये की बोली लगाई तो अंग्रेज पाँच सौ रुपये देने को तैयार हो गया। वह मेज़र डगलस के सामने अपना रौब दिखाना चाहता था कि उसके पास अकवरी लोटा है। डगलस यहाँ से जहाँगीरी अंडा ले गए थे। अकबरी लोटा तो एक पीढ़ी पुराना हुआ।

लाला झाऊलाल को अंग्रेज पाँच सौ रुपये देकर और लोटा लेकर चला गया। लाला जी की बढ़ी हुई दाढ़ी का एक-एक वाल खुशी से लहरा रहा था। बिलवासी जी अपने घर चले गए। उन्होंने अपनी पत्नी के संदूक से जो ढाई सौ रुपये निकाले थे, चुपचाप वापस रख दिए और चैन की नींद सोए।

शब्दार्थ : ठठेरी बाज़ार-वह बाज़ार जहाँ बर्तन बनाने का काम होता है; आँख सेंकना-आँखों को ठण्डक पहुँचाना, देखने का सुख प्राप्त करना; सनसनाया-हिला, सन-सन की आवाज़ की। प्रतिष्ठा-इज़्जत; वाहवाही-प्रशंसा; गाथाएँ-कहानियाँ चारों खाने चित्त होना-हार जाना; मुँह खोलकर सवाल करना-माँगना; दुम दबाकर निकलना-डरकर भागना; मुँह दिखाना-सामना करना; विपदा-परेशानी; संयोग-अवसर; खुक्ख-खाली, परम दरिद्र; माँग-जाँचकर-माँगकर; हेकड़ी-अकड़ डामलफाँसी-देश निकाला, आजीवन कारावास; मरोड़ पैदा होना-परेशानी होना; उधेड़-बुन-ऊहापोह-पशोपेश; गढ़न-बनावट; अदब-सम्मान; गनीमत-संतोष की बात; चूँ कर देना-विरोध करना, मना करना; गुस्सा पीना-क्रोध को काबू में रखना; उल्का-पुच्छल तारा, टूटकर गिरने वाला तारा, मशाल; खुराफाती-उपद्रव करने वाला; ईजाद-खोज करना; काटो तो खून नहीं-बहुत अधिक घबराहट; हँसी-खेल-मामूली बात; अनधिकारी-जिसको अधिकार न मिला हो; नख शिख से-नीचे से ऊपर तक, नाखून से शिखा तक; सायबान-वह छप्पर या कपड़े आदि का पर्दा जो धूप आदि से बचाव के लिए मकान या दुकान के आगे लगाया जाता है; सांगोपांग (सा + अंग + उप + अंग)-पूरी तरह, ऊपर से नीचे तक; प्रकांड-बहुत बड़ा; शख्स-व्यक्ति; इजाज़त-अनुमति; म्यूज़ियम-अजायबघर; फैंसी-बढ़िया; दून की-दुगुने की; सहेजना-सँभालकर रखना; मनमोहक-मन को मोहित करने वाला; सिकड़ी-जंजीर; पूर्ववत्-पहले की तरह; दबे पाँव-चुपचाप;

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Hindi NCERT Solutions Class 8

NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 13 जहाँ पहिया हैं

Students who need help with their Class 8 Hindi Vasant studies, don’t pass up the NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 13 जहाँ पहिया हैं Questions and Answers opportunity. This is why they should take advantage of Class 8 Hindi Vasant Chapter 13 जहाँ पहिया हैं Questions and Answers, which will provide them with all that’s needed in order to succeed during such as important year for students!

जहाँ पहिया हैं NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 13

Class 8 Hindi Chapter 13 जहाँ पहिया हैं Textbook Questions and Answers

जंजीरें

प्रश्न 1.
“….उन जंजीरों को तोड़ने का जिनमें वे जकड़े हुए हैं, कोई-न-कोई तरीका लोग निकाल ही लेते हैं….”।
आपके विचार से लेखक ‘जंजीरों’ द्वारा किन समस्याओं की ओर इशारा कर रहा है?
उत्तर:
जंजीरें वे गलत सामाजिक मान्यताएँ हैं जो व्यक्ति को जकड़े रहती हैं। इन मान्यताओं के कारण व्यक्ति नए तरीके इस्तेमाल नहीं कर पाता है। ये मान्यताएँ विकास के रास्ते में बाधा बन जाती हैं।

प्रश्न 2.
क्या आप लेखक की इस बात से सहमत हैं? अपने उत्तर का कारण भी बताइए।
उत्तर:
हाँ, हम लेखक की बात से सहमत हैं। जब बंधनों के कारण कोई समाज घुटन महसूस करने लगता है, तब वह उन बंधनों को तोड़ने का कोई न कोई रास्ता ढूंढ़ निकालता है।

पहिया

प्रश्न 1.
‘साइकिल आंदोलन’ से पुड्डुकोट्टई की महिलाओं के जीवन में कौन-कौन से बदलाव आए हैं?
उत्तर:
‘साइकिल आंदोलन’ से पुड्डुकोट्टई की महिलाओं में निम्नलिखित बदलाव आए हैं-

  • उनकी पुरुषों पर आत्मनिर्भरता बढ़ी है।
  • उनमें मन में आत्मविश्वास पैदा हुआ है।
  • वे कम समय में अपना पहले से अधिक काम कर लेती हैं।
  • उनका आर्थिक स्तर बेहतर हुआ है। वे अधिक दूरी तय करके सामान बेचने का काम कर लेती हैं, जिससे उन्हें पहले से ज़्यादा आमदनी हो जाती है। घर के लिए और आराम करने के लिए भी उन्हें समय मिल जाता है। इस बदलाव को क्षेत्र की खुशहाली के रूप में देखा जा सकता है।

प्रश्न 2.
शुरुआत में पुरुषों ने इस आन्दोलन का विरोध किया परन्तु आर.साइकिलस के मालिक ने इसका समर्थन किया, क्यों?
उत्तर:
इस डीलर के यहाँ से लेडीज़ साइकिल की बिक्री में साल भर के अन्दर काफी वृद्धि हुई। जो महिलाएँ लेडीज़ साइकिल की प्रतीक्षा नहीं कर सकती थीं, वे जेंट्स साइकिलें खरीदने लगीं। इसी कारण से आर.साइकिलस के मालिक ने महिलाओं के इस आन्दोलन का समर्थन किया।

प्रश्न 3.
प्रारम्भ में इस आंदोलन को चलाने में कौन-कौन सी बाधाएँ आईं?
उत्तर:
पुड्डकोट्टई इलाके में रूढ़िवादी मुस्लिम महिलाओं की संख्या अधिक है। पुरुषों ने विरोध किया और महिलाओं के साइकिल सीखने और चलाने पर फब्तियाँ कसीं। वहाँ पर प्रशिक्षण देने वालों की भी कमी थी।

शीर्षक की बात

प्रश्न 1.
आपके विचार से लेखक ने इस पाठ का नाम ‘जहाँ पहिया है’ क्यों रखा होगा?
उत्तर:
साइकिल से चलना, पहिए के द्वारा चलना है। इससे कार्य में तीव्रता को गति- शीलता आई। जहाँ पहिया है, अर्थात् साइकिल का साधन है; वहाँ के लोगों में गतिशीलता का आना बहुत आसान है। समय की बचत, परनिर्भरता में कमी पहिए के द्वारा प्राप्त हो गई। अतः यह शीर्षक उपयुक्त एवं सार्थक है।

प्रश्न 2.
अपने मन से इस पाठ का कोई दूसरा शीर्षक सुझाइए। अपने दिए हुए शीर्षक के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
इस पाठ का दूसरा शीर्षक हो सकता है-
‘चक्र ही जीवन है’
यह शीर्पक इसलिए सार्थक है क्योंकि ‘चक्र’ ने पुड्डकोट्टई की महिलाओं के जीवन को पहले की अपेक्षा अधिक सार्थक एवं सफल बना दिया था। चक्र हमारे राष्ट्र की प्रगति का भी प्रतीक है।

समझने की बात

प्रश्न 1.
(1) “लोगों के लिए यह समझना बड़ा कठिन है कि ग्रामीण औरतों के लिए यह कितनी बड़ी चीज़ है। उनके लिए तो यह हवाई जहाज़ उड़ाने जैसी बड़ी उपलब्धि है।”
साइकिल चलाना ग्रामीण महिलाओं के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है? समूह बनाकर चर्चा कीजिए।
(2) “पुड्डुकोट्टई पहुँचने से पहले मैंने इस विनम्र सवारी के बारे में इस तरह सोचा ही नहीं था।” साइकिल को विनम्र सवारी क्यों कहा गया है?
उत्तर:
(1) विद्यार्थी समूह बनाकर इस विषय पर चर्चा करें। चर्चा करते समय निम्न बिन्दुओं को ध्यान में रखा जा सकता है।
(क) पुड्डकोट्टई क्षेत्र के लोगों की आर्थिक स्थिति-मेहनत, मज़दूरी आदि करना।
(ख) साइकिल चलाने के विरोध का कारण
(ग) साइकिल चलाने से आर्थिक स्थिति में हुए सुधार
(घ) निर्भरता कम होने से कार्यक्षमता में सुधार, समय की बचत, घरेलू कामों का समय पर निपटारा।
(ङ) काम कम समय में करने से आराम मिलना।

(2) साइकिल को विनम्र सवारी इसलिए कहा गया है कि जब चाहो, जरा-से प्रयास से चलाना सीख लो। यह सवारी बदले में कुछ माँग भी नहीं करती है; इसीलिए इसे विनम्र सवारी कहा गया है।

साइकिल

प्रश्न 1.
फातिमा ने कहा,” … मैं किराए पर साइकिल लेती हूँ ताकि मैं आज़ादी और खुशहाली का अनुभव कर सकूँ।
साइकिल चलाने से फातिमा और पुड्डुकोट्टई की महिलाओं को ‘आजादी’ का अनुभव क्यों होता होगा?
उत्तर:
साइकिल चलाने से फातिमा और पुड्डुकोट्टई की महिलाओं को आज़ादी का अनुभव इसलिए होता होगा क्योंकि उन महिलाओं को कहीं आने-जाने के लिए घर के पुरुष सदस्यों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। उनकी कार्यक्षमता में भी सुधार हुआ जिससे उन्हें आर्थिक रूप से भी लाभ हुआ और उनका जीवन पहले से बेहतर हो गया।

कल्पना से

प्रश्न 1.
पुड्डुकोट्टई में कोई महिला अगर चुनाव लड़ती तो अपना पार्टी-चिन्ह क्या बनाती और क्यों?
उत्तर:
अगर पुड्डुकोट्टई में कोई महिला चुनाव लड़ती तो अपनी पार्टी का चिह्न ‘साइकिल’ को बनाती क्योंकि इस क्षेत्र की महिलाओं के लिए ‘साइकिल’ आज़ादी और आत्मविश्वास का प्रतीक है।

प्रश्न 2.
अगर दुनिया के सभी पहिए हड़ताल कर दें तो क्या होगा?
उत्तर:
अगर दुनिया के सभी पहिए हड़ताल कर दें तो जनजीवन एकदम ठप्प हो जाएगा। कारखाने बंद हो जाएंगे, आवागमन थम जाएगा, बिजली-पानी सब बन्द हो जाएँगे।

प्रश्न 3.
“1992 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के बाद अब यह जिला कभी भी पहले जैसा नहीं हो सकता। इस कथन का अभिप्राय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
महिलाओं में नई चेतना आने के कारण बदलाव आ गया है अतः यह जिला 1992 के बाद बेहतर हो गया है; इसलिए पहले जैसा नहीं हो सकता है।

प्रश्न 4.
मान लीजिए आप एक संवाददाता हैं। आपको 8 मार्च, 1992 के दिन पुड्डुकोट्टई में हुई घटना का समाचार तैयार करना है। पाठ में दी गई सूचनाओं और अपनी कल्पना के आधार पर एक समाचार तैयार कीजिए।
उत्तर:
महिलाओं ने की क्रांति-पुड्डुकोट्टई (तमिलनाडु) आज 8 मार्च, 1992 का यह दिन पुड्डकोट्टई की महिलाओं के लिए ऐतिहासिक हो गया। 1500 महिलाएँ, हैंडल पर झंडियाँ लगाए साइकिल की घंटिया टनटनाते हुए रंग-बिरंगी पोशाकों में सड़कों पर छा गई हैं। देखने वाले ठिठककर खड़े हो गए हैं। सभी महिलाओं में जो जोश उमड़ रहा था, उसका केवल अन्दाज़ लगाया जा सकता था। सबके चेहरे पर आत्मविश्वास झलक रहा था। लगता था सबको नई आज़ादी मिली हो।

प्रश्न 5.
अगले पृष्ठ पर दी गयी ‘पिता के बाद’ कविता पढ़िए। क्या कविता में और फातिमा की बात में कोई संबंध हो सकता है? अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
‘पिता के वाद’ और फातिमा की बात में समानता है। लड़कियाँ पिता के बाद घर सँभालती है और पिता की सच्ची वारिस हैं। वे पिता के बाद माँ को भी सँभालने की क्षमता रखती हैं। फातिमा की बात में भी आज़ादी और आत्मविश्वास का भाव है।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
उपसर्गों और प्रत्ययों के बारे में आप जान चुके हैं। इस पाठ में आए उपसर्गयुक्त शब्दों को छाँटिए उनके मूल शब्द भी लिखिए। आपकी सहायता के लिए इस पाठ में प्रयुक्त कुछ ‘उपसर्ग’ और ‘प्रत्यय’ इस प्रकार हैं-अभि, प्र, अनु, परि, वि (उपसर्ग), इक, वाला, ता, ना (प्रत्यय)
उत्तर:
NCERT-Solutions-for-Class-8-Hindi-Vasant-Chapter-13-जहाँ-पहिया-हैं-1
NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 13 जहाँ पहिया हैं 2

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
साइकिल चलाने का सामाजिक आंदोलन कहाँ शुरू हुआ?
(क) चेन्नई
(ख) हैदराबाद
(ग) पुड्डुकोट्टई
(घ) तिरुपति
उत्तर:
(ग) पुड्डकोट्टई।

प्रश्न 2.
“यह मेरा अधिकार है, अब हम कहीं भी जा सकते हैं-” किसने कहा?
(क) फातिमा ने
(ख) जमीला बीवी ने
(ग) अवकन्नी
(घ) आर.साइकिलस के मालिक ने
उत्तर:
(ख) जमीला बीवी ने।

प्रश्न 3.
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर 1992 में कितनी साइकिल सवार महिलाएँ एकत्र हुई?
(क) 1500
(ख) 1200
(ग) 1800
(घ) 1000
उत्तर:
(क) 1500

प्रश्न 4.
कुदिमि अन्नामलाई की चिलचिलाती धूप में किसने साइकिल सिखाने का काम किया?
(क) फातिमा
(ख) मनोरमनी
(ग) जमीला बीवी
(घ) अवकन्नी
उत्तर:
(ख) मनोरमनी।

प्रश्न 5.
साइकिल चलाना क्या आर्थिक लाभ का काम नहीं था?
(क) कृषि उत्पाद बेदना
(ख) बसों के इन्तजार में व्यय होने वाला समय बचाना
(ग) सामान बेचने पर ज्यादा ध्यान देना
(घ) घर में बैठे रहना
उत्तर:
(घ) घर में बैठे रहना।

प्रश्न 6.
साइकिल प्रशिक्षण से महिलाओं में कौन-सी भावना पैदा हुई?
(क) अविश्वास
(ख) आर्थिक लाभ
(ग) आत्म सम्मान
(घ) निराशा
उत्तर:
(ग) आत्म-सम्मान।

प्रश्न 7.
इनमें से महिलाओं का कौन-सा वर्ग साइकिल का प्रशंसक नहीं था?
(क) अध्यापिकाएँ
(ख) महिला खेतिहर मज़दूर
(ग) पत्थर खदान की मज़दूर
(घ) रूढ़िवाद का विरोध न करने वाली
उत्तर:
(घ) रूढ़िवाद का विरोध न करने वाली।

बोध-प्रश्न

निम्नलिखित अवतरणों को पढ़िए एवं पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

(क) इस जिले में साइकिल की धूम मची हुई है। इसकी प्रशंसकों में हैं महिला खेतिहर मज़दूर, पत्थर खदानों में मजदूरी करनेवाली औरतें और गाँवों में काम करनेवाली नर्से । बालवाड़ी और आँगनवाड़ी कार्यकर्ता, बेशकीमती पत्थरों को तराशने में लगी औरतें और स्कूल की अध्यापिकाएँ भी साइकिल का जमकर इस्तेमाल कर रही हैं। ग्राम सेविकाएँ और दोपहर का भोजन पहुँचाने वाली औरतें भी पीछे नहीं हैं। सबसे बड़ी संख्या उन की है जो अभी नवसाक्षर हुई हैं। जिस किसी नवसाक्षर अथवा नयी-नयी साइकिल चलाने वाली महिला से मैंने बातचीत की, उसने साइकिल चलाने और अपनी व्यक्तिगत आज़ादी के बीच एक सीधा संबंध बताया।

प्रश्न 1.
साइकिल की प्रशंसकों में कौन-कौन हैं?
उत्तर:
साइकिल की प्रशंसकों में महिला खेतिहर मजदूर, पत्थर की खदानों में मजदूरी करने वाली औरतें और गाँव में काम करने वाली नर्से हैं। स्कूल की अध्यापिकाएँ, बालवाड़ी और आँगनवाड़ी कार्यकर्ची भी साइकिल का जमकर प्रयोग कर रही हैं।

प्रश्न 2.
किस प्रकार की महिलाएँ साइकिल का प्रयोग करने में पीछे नहीं हैं?
उत्तर:
ग्राम सेविकाएँ और दोपहर का भोजन पहुँचाने वाली औरतें भी साइकिल का इस्तेमाल करने में पीछे नहीं हैं। इनमें नवसाक्षरों की सबसे बड़ी संख्या है।

प्रश्न 3.
नवसाक्षर साइकिल चलाना सीखने वाली महिला ने क्या बताया ?
उत्तर:
नवसाक्षर साइकिल चलाने वाली महिला ने बताया कि साइकिल चलाना और व्यक्तिगत आज़ादी दोनों आपस में सीधे तौर पर जुड़े हैं।

(ख) साइकिल चलाने के बहुत निश्चित आर्थिक निहितार्थ थे। इससे आय में वृद्धि हुई है। यहाँ की कुछ महिलाएँ अगल-बगल के गाँवों में कृषि संबंधी अथवा अन्य उत्पाद बेच आती हैं। साइकिल की वजह से बसों के इंतज़ार में व्यय होने वाला उनका समय बच जाता है। खराब परिवहन व्यवस्था वाले स्थानों के लिए तो यह बहुत महत्वपूर्ण है। दूसरे, इससे इन्हें इतना समय मिल जाता है कि ये अपने सामान बेचने पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित कर पाती हैं। तीसरे, इससे ये और अधिक इलाकों में जा पाती हैं। अंतिम बात यह है कि साइकिल प्रशिक्षण से महिलाओं के अंदर आत्मसम्मान की भावना पैदा हुई।

प्रश्न 1.
साइकिल चलाने का आर्थिक निहितार्थ क्या था?
उत्तर:
कुछ महिलाएँ आसपास के गाँवों में कृषि सम्बन्धी उपज बेच आती हैं। साइकिल के कारण बसों के इंतज़ार में खर्च होने वाला समय बच जाता है। इस प्रकार बचे हुए समय में और काम पूरे हो जाते हैं। यही साइकिल चलाने का आर्थिक लाभ है।

प्रश्न 2.
साइकिल कहाँ महत्त्वपूर्ण थी?
उत्तर:
खराब परिवहन व्यवस्था वाले स्थानों के लिए साइकिल महत्त्वपूर्ण है क्योंकि बसों के लम्बे इंतज़ार में समय बरबाद नहीं करना पड़ता।

प्रश्न 3.
साइकिल चलाने से समय की बचत का क्या लाभ हुआ? कैसे?
उत्तर:
साइकिल चला कर जाने से समय बच जाता है, जिसके कारण ये महिलाएँ अपना सामान बेचने पर ज्यादा ध्यान दे पाती हैं। समय बचने से और अधिक क्षेत्रों में जाकर अपना सामान वेच लेती हैं। इस प्रकार इन्हें समय की बचत का लाभ होता है।

प्रश्न 4.
साइकिल प्रशिक्षण से महिलाओं में क्या भावना पैदा हुई?
उत्तर:
साइकिल प्रशिक्षण से महिलाओं में आत्मसम्मान की भावना पैदा हुई।

(केवल पढ़ने के लिए)

पिता के बाद

लड़कियाँ खिलखिलाती हैं तेज़ धूप में,
लड़कियाँ खिलखिलाती हैं तेज़ बारिश में,
लड़कियाँ हँसती हैं हर मौसम में।
लड़कियाँ पिता के बाद सँभालती हैं
पिता के पिता से मिली दुकान,
लड़कियाँ वारिस हैं पिता की।
लड़कियों ने समेट लिया
माँ को पिता के बाद,
लड़कियाँ होती हैं माँ।
दुकान पर बैठ लड़कियाँ
सुनती हैं पूर्वजों की प्रतिध्वनियाँ,
उदास गीतों में वे ढूँढ लेती हैं जीवन राग,
धूप में, बारिश में,
हर मौसम में खिलखिलाती हैं लड़कियाँ।

-मुक्ता

कविता का आशय

जीवन में कई प्रकार के मौसम, उतार-चढ़ाव आते हैं। लड़कियाँ उन तमाम विषम परिस्थितियों को झेलकर खिलखिलाती रहती हैं। जब पिता नहीं रहते तो केवल पुत्र ही नहीं वरन् पुत्रियाँ भी घर को सँभाल लेती हैं। चाहे पिता की दुकान हो, चाहे पिता के पिता से मिली दुकान। अर्थात् लड़कियाँ कई पीढ़ियों से चली आई स्वस्थ परम्परा की रक्षा भी पूरे मन से करती हैं। पिता के न होने पर बेटियाँ माँ को भी सँभाल लेती हैं और वे खुद माँ जैसी जिम्मेदार बन जाती हैं। जीवन की उदासियाँ उन्हें उदास नहीं करतीं। वे उन उदास पलों में भी जीवन का सुन्दर राग ढूँढ़ कर उसमें प्रसन्नता महसूस करती हैं। जीवन के हर मौसम में लड़कियाँ खुशियाँ महसूस करती हैं।

इस कविता का अभिप्राय यह है कि लड़कियों के प्रति हमें अपना दृष्टिकोण बदलना चाहिए। लड़कियाँ लड़कों से भी ज्यादा जिम्मेदार होती हैं।

जहाँ पहिया हैं Summary

पाठ का सार

तमिलनाडु के पुड्ड्कोट्टई जिले में महिलाओं के लिए साइकिल चलाना एक आम बात है। हजारों नवसाक्षरों ने इसको एक जन-आन्दोलन का रूप दे दिया है। पिछड़ेपन और मानसिक बंधनों से निकलकर नई ताज़ा हवा में साँस लेना एक अद्भुत अनुभव है। अपनी आज़ादी और सक्रियता को व्यक्त करने के लिए प्रतीक रूप में साइकिल को चुना। दस वर्ष से कम की लड़कियों को अलग कर दें तो चौथाई महिलाओं ने साइकिल चलाना सीख लिया है। इस इलाके की रूढ़िवादी युवा मुस्लिम लड़कियाँ भी इस अभियान में शामिल हो गईं।

जमीला बीवी को लोगों के व्यंग्य सुनने पड़े। फातिया और अब-कन्नी भी जमीला से मिल गईं। तीनों ने और लड़कियों को भी साइकिल सिखाने का काम अपने जिम्मे ले लिया है।

साइकिल चलाना सीखने पर किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। पत्थर खदानों में काम करने वाली औरतें, बालवाड़ी के कार्यकर्ता, पत्थर तराशने का काम करने वाली, स्कूलों की अध्यापिकाएँ, ग्राम सेविकाएँ और दोपहर को भोजन पहुँचाने वाली औरतें भी पीछे नहीं हैं। काम करने के दूर स्थान पर जाना, सामान ढोना, बच्चों को भी साथ ले जाना, साइकिल सीखने से आसान हो गया है। लोगों ने इन पर प्रहार किए, गंदी टिप्पणियाँ की, परन्तु ये अपने इरादे से डिगी नहीं। किलाकुरूचि गाँव में साइकिल सीखने वाली महिलाएँ रविवार को इकट्ठी हुईं। साइकिल चलाने के साथ गाने भी जुड़ गए-ओ, बहिना, आ सीखें साइकिल, घूमें समय के पहिए संग-।’

जो साइकिल चलाना सीख चुकी थों उन्होंने और महिलाओं को साइकिल चलाना-सिखाना शुरू कर दिया। 1992 में अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के बाद यह ज़िला बदल गया। 1500 महिलाओं ने पुड्डुकोट्टई के लोगों को हक्का-बक्का कर दिया। कुदिमि अन्नामलाई की कड़ी धूप में मनोरमनी ने औरों को साइकिल चलाना सिखाया। शहर से कटा होने के कारण साइकिल ने गतिशीलता बढ़ा दी। इससे आर्थिक आधार मज़बूत हुआ। कुछ महिलाएँ गाँवों में कृषि सम्बन्धी उत्पाद बेच आती हैं। खराब परिवहन के चलते बसों का इंतज़ार नहीं करना पड़ता। काम जल्दी हो जाता है। आराम का भी समय मिल जाता है। पति, पिता, भाई और बेटों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। जिनके पास साइकिलें हैं, वे अपना घरेलू काम समय पर निबटाकर दूसरे काम भी कर लेती हैं।

ग्रामीण महिलाओं के लिए साइकिल बहुत बड़ी चीज है। गहराई से देखा जाए तो साइकिल आज़ादी और खुशहाली का प्रतीक बन गई है।

शब्दार्थ : नवसाक्षर-नई नई पढ़ी-लिखी; अजीबो-गरीब-अनोखा; रूढ़िवादी-पुरानी विचारधारा वाले; फब्तियाँ-व्यंग्य; अगुआ-आगे होकर चलने वाला; व्यवस्था-इन्तज़ाम; टिप्पणियाँ-संक्षिप्त विचार; प्रोत्साहन-बढ़ावा; निहितार्थ-वास्तविक अर्थ; परिवहन-यातायात; निहितार्थ-छिपा हुआ अर्थ; ग्रामीण-गाँव में रहने वाले; गतिशीलता-क्रियाशीलता; पृष्ठभूमि-आधार-भूमि; हैसियत-सामर्थ्य, तौर-तरीका; आत्मविश्वास-अपने पर भरोसा; प्रहार-चोट; असाधारण-विशेप; चिलचिलाती-बहुत ज्यादा गरम; उत्पाद-उपज, पैदावार; बेशक-बिना किसी सन्देह के।

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Hindi NCERT Solutions Class 8

NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 12 सुदामा चरित

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सुदामा चरित NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 12

Class 8 Hindi Chapter 12 सुदामा चरित Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
सुदामा की दीनदशा देखकर श्रीकृष्ण की क्या मनोदशा हुई? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
सुदामा की दीनदशा देखकर श्रीकृष्ण का हृदय द्रवित हो गया और उनकी आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी।

प्रश्न 2.
“पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोए।” पंक्ति में वर्णित भाव का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
सुदामा के धूल-भरे पैरों को धोने के लिए परात में पानी मँगवाया गया। पैरों में बिवाइयाँ पड़ी थीं। पैरों में काँटे गड़े हुए थे। कृष्ण जी, सुदामा का ऐसा हाल देखकर द्रवित हो गए। पैरों को धोने के लिए मँगाया परात का पानी रखा ही रह गया। उनकी आँखों से आँसुओं की धारा वहने लगी। उन्हीं आँसुओं से सुदामा के पैर धुल गए।

प्रश्न 3.
“चोरी की बान में हौ जू प्रवीने’
(क) उपर्युक्त पंक्ति कौन, किससे कह रहा है?
(ख) इस कथन की पृष्ठभूमि स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस उपालंभ (शिकायत) के पीछे कौन-सी पौराणिक कथा है?
उत्तर:
(क) कृष्ण जी सुदामा से कह रहे हैं।

(ख) सुदामा की पत्नी ने पोटली में बाँधकर चावल दिये थे। सुदामा संकोचवश उस पोटली को बगल में दबाए हुए हैं। कृष्ण जी ने इसे चोरी की आदत वताया और कहा कि इस आदत में तुम आज तक प्रवीण हो।

(ग) एक बार कृष्ण और सुदामा जंगल से लकड़ियाँ लाने के लिए गए थे। गुरुमाता ने उन्हें खाने के लिए चने दिये थे। चने सुदामा के पास थे। सुदामा अकेले ही चने चबाते रहे। कृष्ण के पूछने पर बता दिया कि मेरे दाँत ठण्ड से किटकिटा रहे हैं। इसी ओर कृष्ण जी ने संकेत किया कि तुमने पहले भी चोरी की थी और आज भी उसी आदत को बनाए हुए हो। लगता है कि तुम चोरी की आदत में बहुत निपुण हो।

प्रश्न 4.
द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा मार्ग में क्या-क्या सोचते जा रहे थे? वह कृष्ण के व्यवहार से क्यों खीझ रहे थे? सुदामा के मन की दुविधा को अपने शब्दों में प्रकट कीजिए।
उत्तर:
द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा रास्ते में सोचते जा रहे हैं। उनका सोचना है कि कृष्ण जी मुझे देखकर बहुत खुश हुए थे। उठकर प्रेमपूर्वक मिले थे। बहुत आदरपूर्वक बातें की थीं। जब भेजने का समय आया तो मुझे खाली हाथ भेज दिया। ये सारी बातें मेरी समझ में नहीं आ रही हैं कि उनका प्रेम सच्चा था या दिखावटी। अब राजा हो गए हैं। आसपास बहुत-से लोगों की भीड़ जुटी रहती है। एक वह भी वक्त था जब थोड़ी-सी दही के लिए हाथ फैलाना पड़ता था। मैं पहले ही यहाँ आने का इच्छुक न था। पत्नी मुझे टेलकर न भेजती तो मैं क्यों इधर आता? कृष्ण जी ने मुझे कुछ भी नहीं दिया। पत्नी पड़ोस से माँगकर जो चावल लाई थी, वे भी चले गए।

प्रश्न 5.
अपने गाँव लौटकर जब सुदामा अपनी झोंपड़ी नहीं खोज पाए तब उनके मन में क्या-क्या विचार आए? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अपने गाँव लौटकर जब सुदामा अपनी झोंपड़ी नहीं खोज पाए तब उनके मन में विचार आया कि कहीं मैं रास्ता भूलकर फिर से द्वारकापुरी में तो नहीं आ गया हूँ। उन्हें उनकी झोंपड़ी कहीं भी नज़र नहीं आ रही थी। चारों तरफ आलीशन भवन बन गए थे।

प्रश्न 6.
निर्धनता के बाद मिलने वाली सम्पन्नता का चित्रण कविता की अन्तिम पंक्तियों में वर्णित है। उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
कविता की अन्तिम पंक्तियों में निर्धनता के बाद मिलने वाली सम्पन्नता का चित्रण इस प्रकार किया गया है-

  • पहले टूटा-सा छप्पर होता था, अब उसके स्थान पर कंचन के महल सुशोभित हो रहे हैं।
  • कहाँ तो पैरों में जूती तक नहीं होती थी, कहाँ आज दरवाजे पर हाथी को लेकर महावत खड़े हैं।
  • पहले कठोर भूमि पर रात कटती थी, अब कोमल सेज पर भी नींद नहीं आती है।
  • कहाँ तो पहले खाने के लिए साधारण साँवक के चावल भी मुश्किल से जुट पाते थे और अब अंगूर खाना भी अच्छा नहीं लगता।

कविता से आगे

प्रश्न 1.
द्रुपद और द्रोणाचार्य भी सहपाठी थे, इनकी मित्रता और शुत्रता की कथा महाभारत से खोजकर सुदामा के कथानक से तुलना कीजिए।
उत्तर:
द्रुपद और द्रोणाचार्य भी साथी थे। द्रपद राजा बन गए द्रोणाचार्य की स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ। वे निर्धन ही बने रहे।

प्रश्न 2.
उच्च पद पर पहुँचकर या अधिक समृद्ध होकर व्यक्ति अपने निर्धन माता-पिता-भाई-बंधुओं से नजर फेरने लग जाता है, ऐसे लोगों के लिए सुदामा चरित कैसी चुनौती खड़ी करता है? लिखिए।
उत्तर:
उच्च पद पर पहुँचकर या अधिक समृद्ध होकर जो व्यक्ति अपने निर्धन माता-पिता-भाई-बंधुओं से नज़र फेर लेते हैं; उनके लिए चुनौती दी गई है कि हमें अपने आत्मीय जनों को समृद्ध होकर भी नहीं भूलना चाहिए। हमें समृद्ध होकर और अधिक विनम्र और उदार होना चाहिए।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
(क) अनुमान कीजिए यदि आपका कोई अभिन्न मित्र आपसे बहुत वर्षों बाद मिलने आए तो आप को कैसा अनुभव होगा?
(ख) कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।
विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत ॥
इस दोहे में रहीम ने सच्चे मित्र की पहचान बताई है। इस दोहे से सुदामा चरित की समानता किस प्रकार दिखती है? लिखिए।
उत्तर:
(क) यदि हमारा कोई मित्र बहुत वर्षों बाद मिलने के लिए आए तो हमें अपार प्रसन्नता होगी। हम अपने मित्र का जी भर आदर-सम्मान करेंगे और उसकी हर सुविधा का विशेष ध्यान रखेंगे।

(ख) सच्चा मित्र वही होता है जो विपत्ति के समय काम आए। सुदामा चरित के कृष्ण भी उसी प्रकार के हैं। जब सुदामा गरीबी के कारण दुर्दशाग्रस्त हो चुके थे, उस समय कृष्ण जी ने उसको अपनाकर सच्चे मित्र का कर्तव्य पूरा किया।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
“पानी परात को हाथ छयो नहिं, नैनन के जल सो पग धोए”
ऊपर लिखी गई पंक्ति को ध्यान से पढ़िए। इसमें बात को बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर चित्रित किया गया है। जब किसी बात को इतना बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है तो वहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है। आप भी कविता में से एक अतिशयोक्ति अलंकार का उदाहरण छाँटिए।
उत्तर:
इत आवत चलि जाति उत, चली छह सातेक हाय।
चढ़ि हिंडोरे सी रहें, लगि उसासन साथ”। -बिहारी
इन पंक्तियों में अतिशयोक्ति अलंकार है।”

प्रश्न 2.
कुछ करने को
1. इस कविता को एकांकी में बदलिए और उसका अभिनय कीजिए।
2. कविता के उचित सस्वर वाचन का अभ्यास कीजिए।
3. ‘मित्रता’ संबंधी दोहों का संकलन कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न संख्या 1-3 छात्र स्वयं करें। मित्रता सम्बन्धी तीन दोहे दिये जा रहे हैं-
1. मित्र-बिछोहा अति कठिन, मति दीजै करतार।
बाके गुण जब चित्त चढ़े, वर्षत नयन अपार ।।

2. साईं, सब संसार में, मतलब का व्यवहार ।
जब लगि पैसा गाँट में, तब लगि ताको यार।

3. जे गरीव को हित करें, ते रहीम बड़ लोग।
कहाँ सुदामा वापुरो, कृष्ण मिताई जोग।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
द्वारपाल ने सदामा के बारे में कृष्ण जी को कौन-सी पहचान नहीं बताई?
(क) सिर पर पगड़ी नहीं है
(ख) धोती फटी हुई है
(ग) जूते टूटे हुए हैं
(घ) दुर्बल ब्राह्मण हैं
उत्तर:
(ग) जूते टूटे हुए हैं।

प्रश्न 2.
सुदामा के पाँवों की स्थिति का वर्णन किस वाक्य में सही नहीं बताया गया है?
(क) बिवाइयों से बेहाल है
(ख) पैरों में काँटे चुभे हैं
(ग) काँटे जगह-जगह चुभे हुए हैं और पूरा जाल बनाए हुए हैं
(घ) दुर्बल ब्राह्मण हैं
उत्तर:
(घ) दुर्बल ब्राह्मण हैं।

प्रश्न 3.
सुदामा बगल में क्या छुपा रहे थे?
(क) पोटली
(ख) रुपये
(ग) पुस्तक
(घ) बटुआ
उत्तर:
(क) पोटली।

प्रश्न 4.
सुदामा की पुरानी आदत क्या थी; जो कृष्ण जी ने हँसकर बताई?
(क) चना चुराने की
(ख) अकेले खाने की
(ग) किसी को कुछ न बताने की
(घ) मिल-बाँटकर चना चबाने की
उत्तर:
(ख) अकेले खाने की।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कृष्ण के बारे में कौन-सी बात सुदामा ने मन में नहीं सोची?
(क) आदर की बात करना
(ख) कृष्ण द्वारा सुदामा की गरीबी का उपहास करना
(ग) देखकर पुलकित होना
(घ) दही के लिए घर-घर जाकर हाथ फैलाना
उत्तर:
(ख)कृष्ण द्वारा सुदामा की गरीबी का उपहास करना।

प्रश्न 6.
सुदामा अपने गाँव में जाकर क्यों परेशान हुए?
(क) वे खाली हाथ आए थे
(ख) पत्नी ने उनको खाली हाथ जाने पर टोका था
(ग) सुदामा को अपनी झोंपड़ी ढूँढे नहीं मिल पा रही थी
(घ) वे दुबारा द्वारका जाना चाहते थे
उत्तर:
(ग) सुदामा को अपनी झोंपड़ी ढूँढे नहीं मिल पा रही थी।

प्रश्न 7.
अब सुदामा के यहाँ कौन-सी सुविधा उपलब्ध नहीं थी?
(क) सोने के महल
(ख) महावत के साथ गजराज
(ग) कोमल सेज
(घ) पुरानी झोंपड़ी वाला घर
उत्तर:
(ख) पुरानी झोंपड़ी वाला घर।

प्रश्न 8.
‘अभिरामा’ का अर्थ है-
(क) सुन्दर
(ख) लगातार
(ग) पहचान
(घ) अभी
उत्तर:
(क) सुन्दर।

प्रश्न 9.
नीचे कुछ शब्दों के अर्थ दिये गए हैं? किस वर्ग में सही अर्थ नहीं दिया गया है?
(क) द्वि ज-ब्राह्मण
(ख) उपानह-जूता
(ग) दाख-आटा
(घ) तंदुल-चावल
उत्तर:
(ग) दाख-आटा।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित शब्दों में किस वर्ग में उपसर्ग गलत बनाए गए हैं?
(क) अभिरामा-अभि
(ख) प्रवीने-प्र
(ग) संभ्रम-सम्
(घ) बसुधा-ब
उत्तर:
(घ) बसुधा-ब।

प्रश्न 11.
‘सुदामा चरित’ पाठ में कौन-सा वर्णन नहीं आया है?’
(क) परात में भरा पानी
(ख) पोटली को बगल में छुपाना।
(ग) धन देकर विदा करना
(घ) अपनी झोंपड़ी के बारे में सुदामा को दूसरे लोगों से पूछना।
उत्तर:
(ग) धन देकर विदा करना।

सप्रसंग व्याख्या

(क) सीस पगा न सँगा तन में, प्रभु! जाने को आहि बसे केहि ग्रामा॥
धोती फटी-सी लटी दुपटी, अरु पाँय उपानह को नहिं सामा॥
द्वार खड़ो द्विज दुर्बल एक, रह्यो चकिसों बसुधा अभिरामा॥
पूछत दीनदयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥

प्रसंग- यह सवैया ‘सुदामा चरित’ पाठ से लिया गया है। इसके कवि श्री नरोत्तम दास जी हैं। जब सुदामा द्वारकापुरी में पहुँचते हैं तो द्वारपाल उन्हें द्वार पर रोककर, श्रीकृष्ण जी को उनके बारे में सूचना देने के लिए चला जाता है। द्वारपाल कृष्ण जी को सुदामा के बारे में जानकारी दे रहा है।

व्याख्या- कवि नरोत्तम दास सुदामा की दीन-हीन दशा का वर्णन करते हैं। द्वारपाल कृष्ण जी को बता रहा है कि हे प्रभु! शीश पर पगड़ी नहीं है, शरीर पर कुर्ता तक नहीं है। पता नहीं कौन है और किस गाँव का रहने वाला है। फटी हुई धोती पहने है, दुपट्टा भी जीर्ण-शीर्ण हो चुका है। उसके पाँव में तो जूते तक नहीं हैं। वह इतना निर्धन है कि जूते पहनना उसकी सामर्थ्य से परे है। द्वार पर एक दुर्बल ब्राह्मण खड़ा हुआ है। वह अचरज भरी दृष्टि से सुन्दर धरती को, आसपास की चीज़ों को देख रहा है। वह आपके महल के बारे में पूछ रहा था। वह अपना नाम सुदामा बता रहा है।

विशेष-

  1. द्विज दुर्बल में अनुप्रास अलंकार है।
  2. सुदामा की दीन दशा का चित्रात्मक वर्णन प्रस्तुत किया गया है।
  3. सवैया छन्द और ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है।
  4. द्वारपाल को विश्वास ही नहीं हुआ था कि ऐसा दीन-हीन व्यक्ति द्वारकाधीश का मित्र हो सकता है।

(ख) ऐसे बेहाल बिवाइन सों, पग कंटक जाल लगे पुनि जोए।
हाय! महादुख पायो सखा, तुम आए इतै न कितै दिन खोए॥
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिकै करुनानिधि रोए।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोए॥

प्रसंग- यह सवैया ‘सुदामा चरित’ से गया गया है। इसके कवि श्री नरोत्तम दास हैं। कृष्ण जी सुदामा जी के पैर धोना चाहते हैं। सुदामा के पैरों की हालत बहुत बुरी हो चुकी है। उसे देखकर श्रीकृष्ण जी अपनी पीड़ा प्रकट करते हैं।

व्याख्या- श्रीकृष्ण जी सुदामा जी से कहते हैं कि बिवाइयों के कारण तुम्हारे पैरों का हाल बहुत बुरा हो चुका है। पैरों में जगह-जगह काँटे चुभे हुए हैं। कोई भी जगह काँटों से खाली नहीं है। हे मित्र! तुमने बहुत दुख झेला है। तुम इधर चले आते। तुमने दुखों में अपना समय काट दिया पर तुम इधर क्यों नहीं आए? सुदामा की दीनदशा देखकर सब पर करुणा करने वाले श्रीकृष्ण जी की आँखों से आँसू बहने लगे। सुदामा के पैर धोने के लिए कृष्ण जी ने परात में पानी रखा था। परात के उस पानी को छूने का भी अवसर नहीं मिला। उनकी आँखों से आँसुओं की धारा वह रही थी। उसी से उन्होंने सुदामा के पैर धो दिये।

विशेष-

  1. बेहाल बिवाइन, दीन दसा, करुना करिकै करुनानिधि, पानी परात-में अनुप्रास अंलकार है।
  2. ‘पानी परात को ……… पग धोए’ पंक्ति में अतिशयोक्ति अलंकार है।
  3. सुदामा की दीन दशा का हृदयस्पर्शी वर्णन है।
  4. कृष्ण के करुणानिधि रूप का प्रभावशाली चित्रण है।

(ग) कछ भाभी हमको दियो, सो तुम काहे न देत।
चाँपि पोटरी काँख में, रहे कहो केहि हेतु ।।
आगे चना गुरुमातु दए ते, लए तुम चाबि हमें नहिं दीने।
स्याम कयो मुसकाय सुदामा सों, “चोरी की बान में हौ जू प्रवीने।।
पोटरि काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहि सुधा रस भीने।
पाछिलि बानि अजौ न तजो तुम, तैसई भाभी के तदुल कीन्हे ।।”

प्रसंग- ‘सुदामा चरित’ की ये पंक्तियाँ कवि नरोत्तम दास द्वारा रची गई हैं। इन पंक्तियों में कवि श्रीकृष्ण द्वारा स्मरण की गई अपने छात्र जीवन की घटनाओं का वर्णन करते हैं।

व्याख्या- श्रीकृष्ण जी उलाहना देते हुए सुदामा को टोकते हैं कि भाभी ने हमारे लिए कुछ दिया है। लगता है उसे ही तुम बगल में दबाकर छुपाने में लगे हो। तुम हमें क्यों नहीं दे रहे हो? जो चीज़ भाभी ने हमारे लिए भेजी है, कम से कम वह तो हमें दे दिये होते।

पहले भी तुम ऐसा ही कर चुके हो। तुम्हें अच्छी तरह याद होगा- एक बार गुरुमाता ने हम दोनों के लिए भुने हुए चने दिए थे। तुम चुपचाप उन चनों को अकेले ही चबा गए थे। मुझे बिल्कुल नहीं दिए थे। श्रीकृष्ण जी ने सुदामा जी से मुस्कराकर कहा-लगता है चोरी करने की आदत में तुम आज तक पहले जितने ही कुशल हो। तुम पोटली को बगल में छिपा रहे हो। कोई बढ़िया अमृतमयी वस्तु तुम्हारी पोटली में बँधी है। तुम उसे अकेले ही निपटाना चाह रहे हो, इसीलिए पोटली नहीं खोल रहे हो। तुमने चोरी की अपनी पिछली आदत को अभी तक नहीं छोड़ा। तुम वैसा ही भाभी द्वारा दिए गए चावलों के लिए कर रहे हो।

विशेष-

  1. कृष्ण जी पहले ‘कछु भाभी हमको दियो’ कहते हैं और अन्त में ‘तैसई भाभी के तुदंल कीन्हें-कहकर सुदामा को बता देते हैं कि तुम्हारी पोटली में चावल हैं।’
  2. प्रथम दो पंक्तियों में दोहा तथा अन्य चार पंक्तियों में सवैया छन्द है।
  3. कृष्ण जी सुदामा को पुरानी बातें याद दिलाकर छेड़ते हैं।

(घ) वह पुलकनि, वह उठि मिलनि, वह आदर की बात।
वह पठवनि गोपाल की, कछू न जानी जात।।
कहा भयो जो अब भयो हरि को राज-समाज।
घर-घर कर ओड़त फिरे, तनक दही के काज।
हौं आवत नहीं हुतौ, वाही पठयो टेलि।।
अब कहिहौं समुझाय कै, बहु धन धरौ सकेलि।।

प्रसंग- उपर्युक्त दोहा एवं सवैया ‘सुदामा चरित’ से उद्धृत है। इसके रचयिता कवि नरोत्तम दास जी हैं। सुदामा जी द्वारका जी से विदा होते समय खाली हाथ हैं। उन्हें कृष्ण जी पर क्रोध आ रहा है और पत्नी के प्रति भी उनके मन में खीझ है। वे कृष्ण के उस प्रेमपूर्वक मिलन पर शंका भी कर रहे हैं।

व्याख्या- सुदामा सोच रहे हैं कि कृष्ण का मुझे देखकर खुश होना, उठकर प्रेमपूर्वक मिलना, आदर की बातें करना; फिर मुझे विदा कर देना। कोई भी बात ठीक से समझ में नहीं आ रही है। वह मिलना-जुलना क्या दिखावा था? यदि दिखावा नहीं था तो मुझे खाली हाथ क्यों विदा कर दिया?

अब कृष्ण जी के पास बहुत बड़ा राज्य हो गया। यह कौन बड़ी बात है। एक वह भी दिन था जब थोड़ी-सी दही के लिए इन्हें घर-घर जाकर हाथ फैलाना पड़ता था। मैंने यहाँ आकर अच्छा नहीं किया। यदि ज़िद करके पत्नी मुझे यहाँ आने के लिए बाध्य न करती तो मैं यहाँ आता भी नहीं। ठीक है, अव समझाकर कहूँगा कि मित्र कृष्ण जी ने ढेर सारा धन दे दिया है। इसे संभालकर रखो।

विशेष-

  1. ‘धन धरौ’ में अनुप्रास अलंकार है।
  2. इन पंक्तियों में सुदामा का अविश्वास एवं खीझ प्रकट हुए हैं।
  3. सुदामा खाली हाथ लौटने के कारण अपनी खीझ प्रकट कर रहे हैं। महाराज श्रीकृष्ण ने चावलों की पोटली ले ली और बदले में कुछ भी नहीं दिया।

(ङ) वैसोई राज-समाज बने, गज, बाजि घने मन संभ्रम छायो।
कैधों पर्यो कहुँ मारग भूलि, कि फैरि कै मैं अब द्वारका आयो।।
भौन बिलोकिबे को मन लोचत, अब सोचत ही सब गाँव मझायो।
पूँछत पाड़े फिरे सब सों पर, झोपरी को कहुँ खोज न पायो।।

प्रसंग- यह सवैया ‘सुदामा चरित’ से लिया गया है। इसके रचयिता कवि नरोत्तम दास जी हैं। जब सुदामा अपने गाँव लौटते हैं तो चकित हो उठते हैं। वे तो द्वारका से खाली हाथ लौटने पर खीझ रहे थे। गाँव में पहुँचकर वे ठगे-से रह जाते हैं।

व्याख्या- सुदामा आश्चर्य-चकित होकर सोच रहे हैं कि ठीक वैसा ही राज-समाज, ठाठ-बाट यहाँ दिखाई दे रहा है, जैसा द्वारका पुरी में था। वैसे ही हाथी-घोड़े यहाँ भी दिखाई दे रहे हैं। इससे सुदामा का मन भ्रमित हो गया। वे सोचने लगे-मैं कहीं रास्ता तो नहीं भूल गया हूँ और रास्ता भटककर फिर द्वारका में ही लौट आया हूँ। वे अपना घर देखने को बेचैन हो उठे। उन्हें कहीं भी अपना घर ढूँढ़े नहीं मिला। पूरे गाँव में उन्हें पता ही नहीं चल पाया। परेशान होकर सुदामा सबसे पूछते फिरते हैं पर पूछने पर भी वे अपनी झोपड़ी को नहीं ढूँढ़ पाए।

विशेष- कृष्ण जी सच्चे मित्र थे। वे मित्रता का दिखावा नहीं करते थे। उन्होंने दीन-हीन सुदामा को सुख-समृद्धि देकर सच्चे मित्र के धर्म का निर्वाह किया है।

(च) कै वह टूटी-सी छानी हती, कहँ कंचन के अब धाम सुहावत।
कै पग में पनही न हती, कहँ लै गजराजहु ठाढ़े महावत ।।
भूमि कठोर पै रात कटै, कहँ कोमल सेज पै नींद न आवत।
के जुरतो नहिं कोदो सवाँ, प्रभु के परताप ते दाख न भावत।

प्रसंग- यह सवैया नरोत्तम दास द्वारा रचित ‘सुदामा चरित’ से उद्धृत है। इस सवैये में सुदामा को अनुभव होता है कि भगवान कृष्ण ने सच्चे मित्र का कर्तव्य निभाया है और उनकी सारी निर्धनता दूर कर दी है।

व्याख्या- सुदामा अपने बीते दिनों की तुलना वर्तमान दशा से करते हुए कहते हैं कि एक तो वे दिन थे जब सिर छुपाने के लिए एक टूटा-सा छप्पर था, कहाँ अब सोने के महल शोभा बढ़ा रहे हैं। कहाँ तो पहले पाँव में पहनने के लिए जूता तक नहीं होता था, नंगे पैर ही घूमना पड़ता था। अब दरवाजे पर हाथी लिये हुए महावत खड़े हैं। वह भी क्या समय था जब कठोर भूमि पर ही लेटना पड़ता था। सोने के लिए चारपाई तक नहीं थी। कहाँ अब कोमल सेज है परन्तु उस पर सोने की आदत न होने से नींद नहीं आती है। कहाँ तो कभी साँवक का मोटा चावल भी खाने के लिए बहुत मुश्किल से मिल पाता था अब हालत यह है कि प्रभु-कृष्ण की कृपा से अंगूर भी अच्छे नहीं लगते।

भाव यह है कि प्रभु की कृपा असीम है। उसकी कृपा से सारी दरिद्रता दूर हो गई है।

विशेष-

  1. सुदामा श्रीकृष्ण की परम कृपा का अनुभव करते हैं। इस अनुभव को तुलनात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
  2. ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है।

सुदामा चरित Summary

पाठ का सार

‘सदामा चरित’ कवि नरोत्तम दास द्वारा रचित है। सुदामा अपने सहपाठी एवं द्वारका के राजा श्रीकृष्ण के पास जाते हैं। उनकी दशा बहत दयनीय है। सिर पर न पगड़ी है, न तन पर कुर्ता है। फटी धोती और जर्जर सी पुरानी पगड़ी, पैर में जूते भी नहीं, ऐसी हालत में वह द्वार पर पहुंचते हैं। द्वारपाल को अपना नाम और परिचय बताते हैं। कृष्ण मिलने पर देखते हैं कि सुदामा के पैरों में बिवाइयाँ हैं, काँटे चुभे हुए हैं। उनकी आँखों में आँसू आ जाते हैं। परात के पानी से नहीं वरन अपने आँसुओं से सुदामा के पैर धो देते हैं।

सुदामा ने बगल में एक गठरी दबा रखी है। कृष्ण उन्हें टोकते हैं कि भाभी ने हमारे लिए कुछ दिया है पर तुम दे नहीं रहे हों। पहले भी तुम ऐसा कर चुके हो। हमारे गुरु संदीपनि की पत्नी ने चने दिये थे, जिसे तुम अकेले ही चबा गए थे। तुमने अपनी चोरी की आदत अभी तक नहीं छोड़ी है।

सुदामा लौटते समय खाली हाथ हैं। और सोचते हैं कि पत्नी के कहने से मैं यहाँ आया। मैं स्वयं कभी नहीं आता। आज कृष्ण राजा हो गए, कल तक दही के लिए हाथ पसारे घूमते थे। यही सोचते दुखी मन से जब घर पहुँचते हैं तो सब कुछ बदला हुआ गया। सुदामा की झोंपड़ी वहाँ है ही नहीं। उसकी जगह महल खड़े हैं। राजसी ठाटबाट हैं। सुदामा की समझ में यह सब देखकर कृष्ण की महिमा का पता चलता है।

शब्दार्थ : सीस-सिर; झगा-कुर्ता; पाँय-पाँव; चकिसों-चकित-सा; बेहाल-परेशान; इतै-इधर; करिकै-करके चाँपि-दबाए हुए; गुरुमातु-गुरु की पत्नी; पोटरि-पोटली; पाछिलि-पिछली; तैसई-वैसे ही; पुलकनि-प्रसन्न होना; कहा भयो-क्या हुआ; सकेलि-इकट्ठा करके; बाजि-घोड़ा; परयो भूलि-भूल गया; भौन-भवन, घर; मझायो-में, बीच में; कै-अथवा; कंचन-सोना; पनही-जूते; कहँ-कहाँ; जुरतो-जुड़ना, मिलना; परताप-कृपा।

पगा-पगड़ी; के हि-किस; उपानह-जूता; वसुधा-धरती; बिवाइन सों-बिवाइयों से; कितै-कितने; करुनानिधि-करुणा के समुद्र अर्थात् कृष्ण जी; काँख-बगल; बान-आदत; सुधा-अमृत; अजौ-आज तक; तंदुल-चावल; पठवनि-भेजना; ओड़त-हाथ पसारना; वैसोई-वैसा ही; संभ्रम-आश्चर्य; कि-अथवा; बिलोकिबै-देखने को; पाड़े-पांडे, सुदामा; छानी-छप्पर; धाम-महल; ठाढे-खड़े; सेज-शव्या; कोदो-चावल; दाख-अंगूर, मुनक्का।

को आहि-कौन है; लटी-कमजोर; द्विज-ब्राह्मण; अभिरामा-सुन्दर; कंटक-कांटे; दसा-दशा, हालत; आगे-पहले; प्रवीने-चतुर; भीने-पगे हुए; तजो-छोड़ा; कीन्हें-किये हैं; काज-काम; गज-हाथी; कैंधों-क्या तो; फैरि-लौटकर; लोचत-तरसना; झोपरी-झोपड़ी; हती-थी; महावत-हाथी हाँकने वाला, हाथीवान; के-क्या तो; सवाँ-साँवक; भावत-अच्छा लगना।

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Hindi NCERT Solutions Class 8

 

NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 11 जब सिनेमा ने बोलना सीखा

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जब सिनेमा ने बोलना सीखा NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 11

Class 8 Hindi Chapter 11 जब सिनेमा ने बोलना सीखा Textbook Questions and Answers

पाठ से

प्रश्न 1.
जब पहली बोलती फिल्म प्रदर्शित हुई तो उसके पोस्टरों पर कौन-से वाक्य छापे गए? उस फिल्म में कितने चेहरे थे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पहली बोलती फिल्म के पोस्टरों पर ये वाक्य छापे गए थे-‘सभी सजीव हैं, साँस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं, अठहत्तर मुर्दा इंसान ज़िदा हो गए, उनको बोलते, बातें करते देखो।’ उस फ़िल्म में 78 चेहरे थे।

प्रश्न 2.
पहला बोलता सिनेमा बनाने के लिए फिल्मकार अर्देशिर एम. ईरानी को प्रेरणा कहाँ से मिली? उन्होंने आलम आरा फिल्म के लिए आधार कहाँ से लिया? विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
पहला बोलता सिनेमा बनाने के लिए फ़िल्मकार अर्देशिर एम. ईरानी को 1929 में हालीवुड की एक बोलती फ़िल्म ‘शो बोट’ से मिली। उन्होंने आलम आरा फ़िल्म बनाने के लिए पारसी रंगमच के एक लोकप्रिय नाटक को आधार बनाया। गानों के लिए अर्देशिर ने स्वयं की धुनें चुनीं। पटकथा भी नाटक के आधार पर तय की गई।

प्रश्न 3.
विठ्ठल का चयन आलम आरा फिल्म के नायक के रूप में हुआ लेकिन उन्हें हटाया क्यों गया? विट्ठल ने पुनः नायक होने के लिए क्या किया? विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
विट्ठल को उर्दू बोलने में मुश्किलें आती थीं, इसी कमी के कारण उन्हें हटाया गया। विट्ठल ने अपना हक पाने के लिए मुकदमा किया। उनका मुकदमा उस समय के मशहूर वकील मोहम्मद अली जिन्ना ने लड़ा। विट्ठल जीत गए और भारत की पहली सवाक् फ़िल्म के नायक बने।

प्रश्न 4.
पहली सवाक् फ़िल्म के निर्माता-निदेशक अर्देशिर को जब सम्मानित किया गया तब सम्मानकर्ताओं ने उनके लिए क्या कहा था? अर्देशिर ने क्या कहा ? और इस प्रसंग में लेखक ने क्या टिप्पणी की हैं? लिखिए।
उत्तर:
‘आलम आरा’ के पच्चीस वर्ष पूरे होने पर जब अर्देशिर को सम्मानित किया था तो सम्मानकर्ताओं ने उनको ‘भारतीय फिल्मों का पिता’ कहा था। अर्देशिर ने उस मौके पर कहा था-‘मुझे इतना बड़ा खिताब देने की ज़रूरत नहीं है’ मैंने तो देश के लिए अपने हिस्से का ज़रूरी योगदान दिया है।” लेकर ने इस प्रसंग पर टिप्पणी करते हुए अर्देशिर को विनम्र बताया है।

पाठ से आगे

प्रश्न 1.
मूक सिनेमा में संवाद नहीं होते, उसमें दैहिक अभिनय की प्रधानता होती है। पर, जब सिनेमा बोलने लगा उसमें अनेक परिवर्तन हुए। उन परिवर्तनों को अभिनेता, दर्शक और कुछ तकनीकी दृष्टि से पाठ का आधार लेकर खोजें, साथ ही अपनी कल्पना का भी सहयोग लें।
उत्तर:
जब सिनेमा बोलने लगा तो उसमें संवादों को महत्त्व मिला। इसी कारण से पढ़े-लिखे अभिनेता-अभिनेत्रियों को महत्त्व मिलने लगा। विट्ठल उर्दू ठीक से नहीं बोल पाते थे इसीलिए उन्हें हटाकर मेहबूब को नायक बनाने का प्रयास किया गया था।

कई सामाजिक विषयों वाली फिल्में भी बनीं। एक फिल्म ‘खुदा की शान’ बनी जिसमें एक किरदार महात्मा गाँधी जैसा था। फिल्मों का जन-जीवन पर भी प्रभाव पड़ने लगा।

तकनीकी दृष्टि से काफी परिवर्तन हुए। फिल्मों में पार्श्व गायन की शुरुआत हुई। रात में शूटिंग के लिए कृत्रिम प्रकाश की व्यवस्था करनी पड़ती थी। यही बाद में चलकर फिल्म-निर्माण का ज़रूरी हिस्सा बनी।

प्रश्न 2.
डब फिल्में किन्हें कहते हैं? कभी-कभी डब फिल्मों में अभिनेता के मुँह खोलने और आवाज़ में अंतर आ जाता है। इसका कारण क्या हो सकता है ?
उत्तर:
डब फिल्मों में अभिनय अलग पात्रों का होता है और आवाज का संयोजन बाद में अलग पात्रों से कराया जाता है। अहिन्दी भाषा से डब की गई फिल्में इसी प्रकार की होती हैं। अभिनेता के हाव-भाव और आवाज देने वाले कलाकार की आवाज का ठीक से संयोजन नहीं हो पाता इसलिए अभिनेता के मुँह खोलने और आवाज़ में अंतर आ जाता है। डब कराने का कारण किसी दूसरी भाषा से अलग भाषा में संवाद होना या किसी अभिनेता से अभिनय कराकर दूसरे अभिनेता से उसके संवाद बुलवाना है।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
किसी मूक सिनेमा में बिना आवाज के ठहाकेदार हँसी कैसी दिखेगी? अभिनय करके अनुभव कीजिए।
उत्तर:
ठहाका लगाने पर मुँह ज्यादा खुलता है और चेहरे तथा शरीर में सक्रियता दिखाई देती है। विद्यार्थी अभिनय करके इसका अनुभव कर सकते हैं।

प्रश्न 2.
मूक फिल्म देखने का एक उपाय यह है कि आप टेलीविजन की आवाज़ बंद करके फिल्म देखें। उसकी ‘कहानी को समझने का प्रयास करें और अनुमान लगाएँ कि फिल्म में संवाद और दृश्य की हिस्सेदारी कितनी है ?
उत्तर:
टी.वी. की आवाज़ बन्द करके मूक फ़िल्मों के अभिनय को समझा जा सकता है। केवल हाव-भाव की बारीकी से कथा को समझा जा सकता है। वाचिक (संवाद) अभिनय के स्थान पर कायिक (हाव-भाव) अभिनय देखकर इस महत्त्वपूर्ण दशा को समझा जा सकता है।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
सवाक शब्द वाक् के पहले ‘स’ लगाने से बना है। स उपसर्ग से कई शब्द बनते हैं। निम्नलिखित शब्दों के साथ ‘स’ का उपसर्ग की भाँति प्रयोग करके शब्द बनाएँ और शब्दार्थ में होने वाले परिवर्तन बताएँ। हित, परिवार, विनय, चित्र, बल, सम्मान।
उत्तर:
NCERT-Solutions-for-Class-8-Hindi-Vasant-Chapter-11-जब-सिनेमा-ने-बोलना-सीखा-1

प्रश्न 2.
उपसर्ग और प्रत्यय दोनों शब्दांश होते हैं। वाक्य में इनका अकेला प्रयोग नहीं होता। इन दोनों में अंतर केवल इतना होता है कि उपसर्ग किसी भी शब्द में पहले लगता है और प्रत्यय बाद में। हिन्दी के सामान्य उपसर्ग इस प्रकार हैं-अ/अन, नि, दु, क/कु, स/सु, अध, बिन, औ आदि।
पाठ में आए उपसर्ग और प्रत्यय युक्त शब्दों के कुछ उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं-
NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 11 जब सिनेमा ने बोलना सीखा 2
NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 11 जब सिनेमा ने बोलना सीखा 3
इस प्रकार के 15-15 उदाहरण लिखिए और अपने सहपाठियों को दिखाइए।
उत्तर:
(i) उपसर्ग युक्त शब्दों के 15 उदाहरण
NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 11 जब सिनेमा ने बोलना सीखा 4

(ii) प्रत्यय युक्त शब्दों के 15 उदाहरण
NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 11 जब सिनेमा ने बोलना सीखा 5

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘जब सिनेमा ने बोलना सीखा’ लेख किसके द्वारा लिखा गया है ?
(क) सुभास गाताड़े
(ख) प्रदीप तिवारी
(ग) अरविंद कुमार सिंह
(घ) रामदरश मिश्र
उत्तर:
(ख) प्रदीप तिवारी

प्रश्न 2.
देश की पहली सवाक् (बोलती) फिल्म कौन सी थी ?
(क) आलम आरा
(ख) देवदास
(ग) आग
(घ) मदर इंडिया
उत्तर:
(क) आलम आरा

प्रश्न 3.
पहली बोलती फिल्म कब सिनेमा पर प्रदर्शित हुई ?
(क) 14 मई, सन् 1947 को
(ख) 14 मई, सन् 1931 को
(ग) 14 जनवरी, सन् 1930 को
(घ) 14 मार्च, सन् 1931 को
उत्तर:
(घ) 14 मार्च, सन् 1931 को

प्रश्न 4.
पहली बोलती फिल्म किसने बनाई ?
(क) मधुर भण्डारकर
(ख) बी. आर. चोपडा
(ग) अर्देशिर एम. ईरानी
(घ) इस्मत चुगताई
उत्तर:
(ग) अर्देशिर एम. ईरानी

प्रश्न 5.
‘आलम आरा’ फिल्म में पार्श्व गायक कौन थे ?
(क) कुंदन लाल सहगल
(ख) डब्लू. एम. खान
(ग) कमल बारोट
(घ) सुरेन्द्र
उत्तर:
(ख) डब्लू. एम. खान

प्रश्न 6.
‘आलम आरा’ फिल्म के नायक और नायिका कौन थे ?
(क) नायक के. एल. सहगल नायिका सुरैया
(ख) नायक सुरेन्द्र नायिका मधु
(ग) नायक विट्ठल नायिक जुबैदा
(घ) के. एल. सहगल
उत्तर:
(ग) नायक विट्ठल नायिक जुबैदा

प्रश्न 7.
इनमें से कौन-सा कलाकार ‘आलम आरा में नहीं था ?
(क) सोहराब मोदी
(ख) पृथ्वीराज कपूर
(ग) जगदीश सेठी
(घ) के. एल. सहगल
उत्तर:
(घ) के. एल. सहगल

प्रश्न 8.
‘आलम आरा’ फिल्म मुम्बई के किस सिनेमा हाल में प्रदर्शित हुई ?
(क) मैजेस्टिक
(ख) कुमार
(ग) लिबर्टी
(घ) अरविन्द
उत्तर:
(क) मैजेस्टिक

प्रश्न 9.
‘आलम आरा’ फिल्म की लम्बाई कितनी थी ?
(क) पाँच हजार फुट
(ख) दस हजार फुट
(ग) पन्द्रह हजार फुट
(घ) बीस हजार फुट
उत्तर:
(ख) दस हजार फुट

प्रश्न 10.
‘माधुरी’ फिल्म की नायिका कौन थी ?
(क) जुबैदा
(ख) सुलोचना
(ग) सुरैया
(घ) मधुबाला
उत्तर:
(ख) सुलोचना

बोध-प्रश्न

(क) पहली बोलती फिल्म आलम आरा बनाने वाले फिल्मकार थे अर्देशिर एम. ईरानी। अर्देशिर ने 1929 में हॉलीवुड की एक बोलती फिल्म ‘शो बोट’ देखी और उनके मन में बोलती फिल्म बनाने की इच्छा जगी। पारसी रंगमंच के एक लोकप्रिय नाटक को आधार बनाकर उन्होंने अपनी फिल्म की पटकथा बनाई। इस नाटक के कई गाने ज्यों के त्यों फिल्म में ले लिए गए। एक इंटरव्यू में अर्देशिर ने उस वक्त कहा था-‘हमारे पास कोई संवाद लेखक नहीं था, गीतकार नहीं था, संगीतकार नहीं था।’ इन सबकी शुरुआत होनी थी। अर्देशिर ने फिल्म के गानों के लिए स्वयं की धुनें चुनीं। फिल्म के संगीत में महज तीन बाय-तबला, हारमोनियम और वायलिन का इस्तेमाल किया गया। आलम आरा में संगीतकार या गीतकार में स्वतंत्र रूप से किसी का नाम नहीं डाला गया। इस फिल्म में पहले पार्श्वगायक बने डब्लू. एम. खान। पहला गाना था-‘दे दे खुदा के नाम पर प्यारे, अगर देने की ताकत है।’

उपर्युक्त अवतरण को ध्यानपूर्वक पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
पहली बोलती फिल्म बनाने वाले फिल्मकार कौन थे ?
उत्तर:
पहली बोलती फ़िल्म के निर्देशक थे–’अर्देशिर एम. इरानी’ ।

प्रश्न 2.
पहली बोलती फ़िल्म का नाम क्या था ? फिल्मकार के मन में किस फ़िल्म से सवाक् फ़िल्म बनाने की प्रेरणा जगी ?
उत्तर:
पहली सवाक् फ़िल्म थी ‘आलम आरा’। 1929 में हालीवुड की बोलती फ़िल्म ‘शो बोट’ देखकर अर्देशिर के मन में सवाक् फ़िल्म बनाने की प्रेरणा जगी।

प्रश्न 3.
इस सवाक् फ़िल्म के लिए किस प्रकार की पटकथा चुनी गई ?
उत्तर:
इस सवाक् फ़िल्म के लिए पारसी रंगमंच के एक लोकप्रिय नाटक को आधार बनाकर पटकथा चुनी गई।

प्रश्न 4.
इस फ़िल्म के लिए किसकी धुनें चुनी गईं ?
उत्तर:
इस पटकथा के लिए अर्देशिर ने अपनी ही धुनें चुनीं।

प्रश्न 5.
इस फ़िल्म में संगीत के लिए कौन-कौन से वाद्ययंत्र प्रयुक्त किए गए ?
उत्तर:
इस फ़िल्म के संगीत के लिए तबला, हारमोनियम और वायलिन वाद्ययंत्र चुने गए।

प्रश्न 6.
पहले पार्श्वगायक कौन थे ?
उत्तर:
पहले पार्श्वगायक डब्लू. एम. खान थे।

प्रश्न 7.
इस गायक का पहला गाना क्या था ?
उत्तर:
इस नायक का पहला गाना था-‘दे दे खुदा के नाम पर प्यारे, अगर देने की ताकत है।’

(ख) यह फिल्म 14 मार्च, 1931 को मुंबई के ‘मैजेस्टिक’ सिनेमा में प्रदर्शित हुई। फिल्म 8 सप्ताह तक ‘हाउसफुल’ चली और भीड़ इतनी उमड़ती थी कि पुलिस के लिए नियंत्रण करना मुश्किल हो जाया करता था। समीक्षकों ने इसे ‘भड़कीली फैंटेसी’ फिल्म करार दिया था मगर दर्शकों के लिए यह फिल्म एक अनोखा अनुभव थी। यह फिल्म 10 हजार फुट लंबी थी और इसे चार महीनों की कड़ी मेहनत से तैयार किया गया था।

प्रश्न 1.
‘आलम आरा’ फिल्म कब और किस सिनेमा हॉल में प्रदर्शित की गई ?
उत्तर:
‘आलम आरा’ फ़िल्म 14 मार्च, 1931 को ‘मैजेस्टिक’ सिनेमा हॉल में प्रदर्शित हुई।

प्रश्न 2.
यह फिल्म कितने सप्ताह तक ‘हाउसफुल’ चली ?
उत्तर:
यह फ़िल्म 8 सप्ताह तक हाउसफुल चली।

प्रश्न 3.
‘हाउसफुल’ होने से क्या समस्या आई ?
उत्तर:
3. ‘हाउसफुल’ के कारण इतनी भीड़ उमड़ती थी कि पुलिस के लिए नियंत्रण करना कठिन था।

प्रश्न 4.
समीक्षकों ने इस फ़िल्म को क्या बताया ?
उत्तर:
समीक्षकों ने इस फ़िल्म को भड़कीली फैन्टेसी करार दिया।

प्रश्न 5.
यह फ़िल्म कितने फुट लंबी थी ?
उत्तर:
यह फ़िल्म दस हज़ार फुट लंबी थी।

(ग) जब पहली बार सिनेमा ने बोलना सीख लिया, सिनेमा में काम करने के लिए पढ़े-लिखे अभिनेता-अभिनेत्रियों की जरूरत भी शुरू हुई क्योंकि अब संवाद भी बोलने थे, सिर्फ अभिनय से काम नहीं चलने वाला था। मूक फिल्मों के दौर में तो पहलवान जैसे शरीर वाले, स्टंट करने वाले और उछल-कूद करने वाले अभिनेताओं से काम चल जाया करता था। अब उन्हें संवाद बोलना था और गायन की प्रतिभा की कद्र भी होने लगी थी। इसलिए ‘आलम आरा’ के बाद आरंभिक ‘सवाक्’ दौर की फिल्मों में कई ‘गायक-अभिनेता’ बड़े पर्दे पर नजर आने लगे। हिंदी-उर्दू भाषाओं का महत्त्व बढ़ा। सिनेमा में देह और तकनीक की भाषा की जगह जन प्रचलित बोलचाल की भाषाओं का दाखिला हुआ। सिनेमा ज्यादा देसी हुआ। एक तरह की नयी आजादी थी जिससे आगे चलकर हमारे दैनिक और सार्वजनिक जीवन को प्रतिबिंब फिल्मों में बेहतर होकर उभरने लगा।

प्रश्न 1.
‘अब सिनेमा में किस प्रकार के अभिनेता-अभिनेत्रियों की ज़रूरत शुरू हुई? क्यों?
उत्तर:
अब सिनेमा में पढ़े-लिखे अभिनेता-अभिनेत्रियों की जरूरत शुरू हुई; क्योंकि अब संवाद भी बोलने थे, सिर्फ अभिनय करने से काम चलने वाला नहीं था।

प्रश्न 2.
मूक फ़िल्मों के दौर में कैसे कलाकारों से काम चल जाता था ?
उत्तर:
मूक फ़िल्म के दौर में पहलवान जैसे शरीर वाले, स्टंट करने वाले और उछल-कूद करने वाले कलाकारों से काम चल जाता था।

प्रश्न 3.
अब किस कार्य की अनिवार्यता बढ़ गई थी ?
उत्तर:
अब संवाद बोलना था और गायन भी करना था अतः इस कार्य का महत्त्व बढ़ गया।

प्रश्न 4.
फ़िल्मों में किस प्रकार की भाषा का महत्त्व बढ़ा ?
उत्तर:
फ़िल्में में उर्दू-हिन्दी भाषाओं का महत्त्व बढ़ा। इस प्रकार जन-प्रचलित बोलचाल की भाषाओं का दाखिला हुआ।

प्रश्न 5.
फ़िल्मों में कौन-सी बात उभरने लगी ?
उत्तर:
हमारे दैनिक और सार्वजनिक जीवन का प्रतिबिम्ब फ़िल्मों में उभरने लगा।

कम्प्यूटर गाएगा गीत

पाठ का सार

सवाक फ़िल्म ‘आमल आरा’ से शुरू हुई। तब से फिल्मीगीत लोकप्रिय सिनेमा का अटूट हिस्सा बने हए हैं। पहले पात्रों को अपने गीत खुद गाने पड़ते थे। बाद में सोचा गया कि कोई अभिनेता या अभिनेत्री गायन कला में निपुण हो, जरूरी नहीं। तभी से पार्श्वगायन की शुरुआत हुई। इसी बीच रिकार्डिंग की तकनीक बदली, गायन की शैली में बदलाव आया। गीत की शब्दावली का महत्त्व बढ़ा। इन्हीं के माध्यम से धुन का भावनात्मक प्रभाव पैदा होता है।

फिल्म संगीत में शास्त्रीय संगीत के अलावा भजन, कीर्तन, कव्वाली और लोकगीत भी जुड़े। थियेटर में गायक के लिए बुलन्द आवाज होना ज़रूरी था। यही गायक शुरू के दौर में फिल्मों से भी जुड़े, क्योंकि उस समय माइक्रोफोन और लाउडस्पीकर जैसे साधन नहीं थे। थियेटर में महिला पात्रों की भूमिकाएँ पुरुष ही निभाते थे। फ़िल्मों में इस तरह की भूमिकाओं में परिवर्तन हुआ। फ़िल्मों में गायिकाएँ भी अलग क्षेत्रों से आईं। ये गायिकाएँ शब्दों को चबाकर तथा नाक में बैठी आवाज़ में गाती थी। शीघ्र ही बदलाव आया और सहज रूप से गाने वाली गायिकाओं का दौर शुरू हुआ। काननवाला का गाया गीत ‘दुनिया ये दुनिया तूफानमेल’ था।

दूसरे दौर में ऐसी प्रतिभाएँ आईं, जिन्होंने माइक्रोफोन के अनुकूल अपनी आवाज़ को ढाल लिया। इनमें शमशाद बेगम, सुरैया, नूरजहाँ तथा कुन्दन लाल सहगल शामिल थे। इस दौर के बाद तीसरे दौर की नई आवाजें आईं। इनमें रफी, मुकेश, हेमन्त कुमार, मन्ना डे, किशोर कुमार, तलत महमूद, लता मंगेशकर प्रमुख थे। इन्होंने गायकी. के मापदण्ड ही बदल दिये। इनके अलावा आशा भोंसले, गीता दत्त, सुमन कल्याणपुरी ने अपनी खास शैली विकसित की।

बदलाव बहुत तेजी से हो रहा है। भविष्य में हो सकता है कम्प्यूटर ऐसी आवाज़ तैयार कर दे जो मानवीय आवाज़ से ज्यादा पूर्ण हो।

जब सिनेमा ने बोलना सीखा Summary

पाठ का सार

14 मार्च, 1931 को ‘आलम आरा’ से देश की पहली सवाक् फ़िल्म की शुरुआत हुई। इस दौर में मूक सिनेमा लोकप्रियता के शिखर पर था। इसी वर्ष कई मूक फ़िल्में भी प्रदर्शित हुईं। ‘आलमआरा’ के फ़िल्मकार थे ‘अर्देशिर एम. इरानी’ । इन्होंने 1929 में हालीवुड की एक बोलती फ़िल्म ‘शो बोट’ देखी थी। पारसी रंगमच के एक लोकप्रिय नाटक को आधार बनाकर इन्होंने यह फ़िल्म बनाई। इस नाटक के कई गाने फ़िल्म में लिये गए। इनके पास कोई संवाद लेखक, गीतकार या संगीतकार नहीं था। स्वयं धुनें चुनीं। संगीत में सिर्फ तबला, हारमोनियम और वायलिन का इस्तेमाल किया। इस फ़िल्म के पहले गायक बने डब्लू. एम. खान। गाना था-‘दे दे खुदा के नाम पर प्यारे, अगर देने की ताकत है।’ इसका संगीत डिस्क फॉर्म में रिकार्ड नहीं किया जा सका। इसकी शूटिंग साउंड के कारण रात में करनी पड़ी। प्रकाश की व्यवस्था की गई।

अर्देशिर की कंपनी ने डेढ़ सौ से अधिक मूक और लगभग सौ सवाक् फ़िल्में बनाईं। आलम आरा ‘अरेबियन नाइट्स’ जैसी फैंटेसी थी। इस फ़िल्म में हिन्दी-उर्दू के मिलजुले रूप की भाषा का प्रयोग किया गया। इस फ़िल्म की नायिका जुबैदा तथा नायक बिट्ठल थे। बिट्ठल की उर्दू अच्छी नहीं थी अतः उन्हें हटाकर मेहबूब को नायक बना दिया। बिट्ठल मुकदमा लड़े और जीत गए। फिर वही नायक बने ‘आलमआरा’ में सोहराब मोदी, पृथ्वीराज कपूर, याकूब और जगदीश सेठी जैसे अभिनेता भी थे जो बाद में फ़िल्म उद्योग के स्तम्भ बने।

‘आलमआरा’ 8 सप्ताह तक हाउसफुल चली। समीक्षकों ने इसे ‘भड़कीली फैंटेसी’ फ़िल्म करार दिया। यह 10 हजार फुट लम्बी फ़िल्म थी। सवाक् फिल्मों के लिए पौराणिक कथाएँ, पारसी नाटक और अरबी प्रेम कथाएँ आधार बनाई गईं। ऐसी ही एक फिल्म थी ‘खुदा की शान’ इसमें एक पात्र महात्मा गांधी जैसा था। निर्माता-निर्देशक अर्देशिर को 1956 में ‘आलमआरा’ के पच्चीस वर्ष पूरे होने पर सम्मानित किया गया। सवाक् फिल्मों में संवाद भी बोलने थे, केवल स्टंट करने या उछलकूद से काम चलने वाला नहीं था। गायन की भी कद्र होने लगी। कई गायक अभिनेता बड़े पर्दे पर नज़र आने लगे। हिन्दी-उर्दू भाषा को महत्त्व बढ़ने लगा। आने वाला सिनेमा हमारे जीवन को प्रतिबिम्बित करने लगा।

अभिनेता-अभिनेत्रियों की लोकप्रियता का असर दर्शकों पर खूब पड़ा। ‘आलमआरा’ श्रीलंका, वर्मा और पश्चिम एशिया में भी पसंद की गई, भारतीय सिनेमा के जनक दादा फाल्के ने ‘सवाक्’ सिनेमा के ‘पिता’ अर्देशिर ईरानी की उपलब्धि को अपनाना ही था। सिनेमा का एक नया युग शुरू हो गया।

शब्दार्थ : सवाक् फ़िल्म-मूक फ़िल्म के बाद वनी बोलती फ़िल्म; लोकप्रियता-प्रसिद्धि; शिखर-चोटी; विभिन्न-भिन्न-भिन्न, अलग-अलग; फ़िल्मकार-फ़िल्म बनाने वाले; पटकथा-फ़िल्म के लिए लिखी जाने वाली कथा; संवाद-बातचीत, फ़िल्म में की जाने वाली बातचीत; महज़-सिर्फ पार्श्वगायक-पर्दे के पीछे से गाने वाला; डिस्क फॉर्म-रिकार्डिंग का एक रूप; कृत्रिम-बनावटी; प्रणाली-विधि, तरीका; निर्माण-बनाना; संयोजन-मेल; सर्वाधिक-सबसे अधिक; पारिश्रमिक-मेहनताना, मानदेय; बतौर-तौर पर (‘व’ उपसर्ग + तौर); चयन-चुनाव; समीक्षक-समीक्षा करने वाले, गुण-दोप पर निष्पक्ष रूप से विचार करने वाले फैंटेसी-काल्पनिकता से पूर्ण अनोखी कथा; किरदार-भूमिका, चरित्र; खिताब-सम्मान, उपाधि; स्टंट-ध्यान आकर्षित करने की ट्रिक, कलावाजी, कमाल, पाखंड; उपलब्धि-प्राप्ति; प्रतिबिम्ब-झलक, परछाईं; केशसज्जा-सिर के बालों की सजावट।

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Hindi NCERT Solutions Class 8

NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 10 कामचोर

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कामचोर NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 10

Class 8 Hindi Chapter 10 कामचोर Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कहानी में मोटे-मोटे किस काम के हैं ? किनके बारे में और क्यों कहा गया ?
उत्तर:
‘कहानी में मोटे-मोटे किस काम के हैं’ घर के बच्चों के बारे में कहा गया है। बच्चे कामचोर थे और खुद उठकर अपने हाथ से लेकर पानी भी नहीं पीते थे।

प्रश्न 2.
बच्चों के ऊधम मचाने के कारण घर की क्या दुर्दशा हुई ?
उत्तर:
सारा घर धूल से अट गया। घड़े-सुराहियाँ इधर-उधर लुढ़क गए। दरी पर पानी छिड़कने से कीचड़ हो गया। झाडू बिखर गया। घर के सारे बर्तन बिखर गए। मुर्गियों ने घर गन्दा कर दिया। भेड़ों ने सारी सब्जी चटकर ली। भैंस ने अलग से ऊधम मचाकर चाचा जी को चारपाई समेत घसीटा। इस प्रकार सारा घर दुर्दशाग्रस्त हो गया।

प्रश्न 3.
“या तो बच्चा राज कायम कर लो या मुझे ही रख लो।” अम्मा ने कब कहा? और इसका परिणाम क्या हुआ?
उत्तर:
अम्मा ने घर की दुर्दशा होने पर यह बात कही। इसका परिणाम यह हुआ कि अब्बा ने कतार में खड़े करके बच्चों को कहा कि अगर किसी बच्चे ने घर की किसी चीज को हाथ लगाया तो बस रात का खाना बन्द हो जाएगा।

प्रश्न 4.
‘कामचोर’ कहानी क्या संदेश देती है ?
उत्तर:
‘कामचोर’ कहानी संदेश देती है कि बिना योजना बनाए कोई भी काम सही नहीं हो सकता। योजना बनाने के लिए भी समझदारी, अनुभव और उचित दिशा-निर्देश की ज़रूरत होती है। बिना सोचे-समझे काम करना मुसीबत और परेशानी का कारण बन जाता है।

प्रश्न 5.
क्या बच्चों ने उचित निर्णय लिया कि अब चाहे कुछ भी हो जाए, हिलकर पानी भी नहीं पिएँगे।
उत्तर:
बच्चों ने यह उचित निर्णय नहीं लिया। वे और अधिक कामचोर हो जाएंगे और उनका आने वाला जीवन और अधिक कठिन हो जाएगा।

कहानी से आगे

प्रश्न 1.
घर के सामान्य काम हों या अपना निजी काम, प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता के अनुरूप उन्हें करना आवश्यक क्यों है ?
उत्तर:
अपनी क्षमता के अनुरूप काम करने से ही काम करने का अनुभव प्राप्त होता है। जो काम न आए, उसे सीखना चाहिए। क्षमता से बाहर काम करना उचित नहीं। इससे काम सुधरने की जगह बिगड़ जाता है और सही अनुभव भी प्राप्त नहीं हो पाता।

प्रश्न 2.
भरा-पूरा परिवार कैसे सुखद बन सकता है और कैसे दुखद ? कामचोर कहानी के आधार पर निर्णय कीजिए।
उत्तर:
भरा-पूरा परिवार यदि अपनी क्षमता के अनुसार योजनाबद्ध ढंग से काम करे और अपने बड़ों से काम करने की जानकारी ले तो वह सुखद बन सकता है। मनमाने ढंग से, बिना किसी अनुभव, योजना और सलाह के काम करना घर के लिए मुसीबत खड़ी करना है। अच्छा काम करने के लिए आपसी सहयोग और समझ का होना ज़रूरी है।

प्रश्न 3.
बड़े होते बच्चे किस प्रकार माता-पिता के सहयोगी हो सकते हैं, और किस प्रकार भार? कामचोर कहानी के आधार पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
बच्चे यदि माता-पिता से सलाह लेकर काम करें तो वे पूरी तरह से सहायक हो सकते हैं। यदि बच्चे माता-पिता की सलाह न लेकर मनमाने ढंग से काम करें तो वे माता-पिता के लिए भार बन सकते हैं। बच्चों को काम अपनी क्षमता के अनुसार ही करना चाहिए।

प्रश्न 4.
‘कामचोर’ कहानी एकल परिवार की कहानी है या संयुक्त परिवार की? इन दोनों तरह के परिवारों में क्या-क्या अंतर होते हैं ?
उत्तर:
‘कामचोर’ कहानी संयुक्त परिवार की कहानी है। एकल परिवार में बच्चे और माता-पिता ही होते हैं। वहाँ पर बच्चों पर विशेष ध्यान दिया जा सकता है। लेकिन यह ध्यान सीमित ही होता है। संयुक्त परिवार में दादा-दादी, चाचा-चाची आदि सभी होते हैं। बच्चे उन्हें देखकर एक साथ मिलकर रहने का ढंग सीख सकते हैं। इस तरह के परिवार से आपसी सहयोग की भावना सीखी जा सकती है जबकि एकल परिवार में आदमी केवल सीमित दायरे में ही सोचता है।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
घरेलू नौकरों को हटाने की बात किन-किन परिस्थितियों में उठ सकती है? विचार कीजिए।
उत्तर:

  • घर के लोग सब काम करने में सक्षम हों। नौकर अधिक हों।
  • नौकर ठीक ढंग से काम न करते हों। धोखेबाज और निकम्मे हों।
  • घर की आर्थिक स्थिति कमज़ोर हो।
  • किसी की बात न सुनते हों। मनमाने ढंग से काम करते हों।

ऐसी परिस्थितियों में नौकरों को हटाया जा सकता है।

प्रश्न 2.
कहानी में एक समृद्ध परिवार के ऊधमी बच्चों का चित्रण है। आपके अनुमान से उनकी आदत क्यों बिगड़ी होगी? उन्हें ठीक ढंग से रहने के लिए आप क्या-क्या सुझाव देना चाहेंगे ?
उत्तर:
इन बच्चों की आदत बिगड़ने के ये सम्भावित कारण हो सकते हैं-

  • सारे काम नौकर कर देते होंगे।
  • माता-पिता भी झूठी शान के कारण बच्चों से कुछ काम नहीं कराते होंगे।
  • वे नौकरी से ही उनके छोटे-मोटे काम भी कराते होंगे।
  • परिवार के सभी लोग सोचते होंगे कि हमारे ही बच्चे क्यों काम करें।
  • घर के बड़े लोग उन्हें काम करने का सलीका नहीं बताते होंगे।

उन्हें ठीक ढंग से रहने के लिए ये सुझाव दिए जा सकते हैं-

  • उन्हें अपना काम खुद करने के लिए कहा जाए और काम करने का तरीका भी बताया जाए।
  • बच्चों के मन में श्रम के प्रति सम्मान का भाव पैदा किया जाए। इसके लिए घर के बड़े अपना उदाहरण पेश करें।

प्रश्न 3.
किसी सफल व्यक्ति की जीवनी से उसके विद्यार्थी जीवन की दिनचर्या के बारे में पढ़ें और सुव्यवस्थित कार्यशैली पर लेख लिखो।
उत्तर:
अपने विद्यार्थी जीवन में लाल बहादुर शास्त्री बहुत कर्मशील थे। वे तैरकर नदी पार करते और स्कूल जाते थे। हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अखबार बेचने का काम भी करते थे। गाँधी जी का जीवन भी उनकी अलग कार्यशैली को दर्शाता है।

बच्चे इन महापुरुषों की जीवनी पढ़ें और स्वयं लेख पूरा करें।

भाषा की बात

“धुली-बेधुली बालटी लेकर आठ हाथ चार थनों पर पिल पड़े।” धुली शब्द से पहले ‘बे’ लगाकर बेधुली बना है। जिसका अर्थ है ‘बिना धुली’ ‘बे’ एक उपसर्ग है। ‘बे’ उपसर्ग से बननेवाले कुछ और शब्द हैं-
बेतुका, बेईमान, बेघर, बेचैन, बेहोश आदि। आप भी नीचे लिखे उपसर्गों से बनने वाले शब्द खोजिए।
1. प्र ……….
2. आ ………
3. भर ………..
4. बद ……….
उत्तर:
1. प्र – प्रसिद्ध, प्रकार, प्रभाव, प्रमोद, प्रमुख, प्रयोग
2. आ – आंजन्म, आजीवन, आलाप, आहरण, आदान, आभार, आकार, आचरण, आमरण, आवरण, आयात, आमंत्रण, आशंका, आपात, आगंतुक।
3. भर – भरपेट, भरसक, भरपूर, भरपाई।
4. बद – बदनसीव, बदनाम, बदतमीज, बदकिस्मत, बददिमाग, बदमाश, बदसूरत, बदरंग, बदबू, वदुआ, बदहवास, बदहाल, बदचलन, बदइंतज़ाम, वदज़बान, बदनीयत, बदनुमा, बदमज़ा, बदशक्ल,बदहज़मी, बदसलूकी।

निम्नलिखित घटनाओं को सही क्रम से लिखिए

  • धुली-बेधुली बालटी लेकर आठ हाथ चार थनों पर पिल पड़े।
  • इतने में भेड़ें सूप को भूलकर तरकारी वाली की टोकरी पर टूट पड़ीं।
  • इधर सारी मुर्गियाँ बेनकेल का ऊँट बनीं चारों तरफ दौड़ रही थीं।
  • हज्जन माँ एक पलंग पर दुपट्टे से मुँह ढंके सो रही थी।

उत्तर:
घटनाओं का सही क्रम इस प्रकार है-

  • इधर सारी मुर्गियाँ बेनकेल का ऊँट बनीं चारों तरफ दौड़ रही थीं।
  • हज्जन माँ एक पलंग पर दुपट्टे से मुँह ढंके सो रही थी।
  • इतने में भेड़ें सूप को भूलकर तरकारी वाली की टोकरी पर टूट पड़ी।
  • धुली-बेधुली बालटी लेकर आठ हाथ चार थनों पर पिल पड़े।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
तरकारी वाली तोल-तोल कर रसोइए को क्या दे रही थी ?
(क) भिण्डी
(ख) लौकी
(ग) प्याज
(घ) मटर की फलियाँ
उत्तर:
(घ) मटर की फलियाँ

प्रश्न 2.
पेड़ों में पानी देने के लिए निम्नलिखित बर्तन नहीं लिया गया-
(क) तसला
(ख) जग
(ग) भगोना
(घ) लोटा
उत्तर:
(ख) जग

प्रश्न 3.
एक बड़ा-सा मुर्गा कूद पड़ा, कहाँ ?
(क) खीर के प्याले में
(ख) पतीली में
(ग) अम्मा के पानदान में
(घ) तसले में
उत्तर:
(ग) अम्मा के पानदान में

प्रश्न 4.
मैंस का दूध दुहने के लिए कितने बच्चे पिल पड़े ?
(क) तीन
(ख) चार
(ग) दो
(घ) आठ
उत्तर:
(ख) चार

प्रश्न 5.
ये लोग कुमुक में नहीं थे-
(क) बड़े भाई
(ख) मौसियाँ
(ग) बहिनें
(घ) चाचा
उत्तर:
(घ) चाचा

प्रत्येक शब्द के सामने दो-दो अर्थ दिए गए हैं। सही अर्थ छाँटकर लिखिए।

प्रश्न 1.
शब्द – अर्थ
फरमान – राजाज्ञा, अनुमति
कुमुक – राशन, फौज़ी टुकड़ी
लश्टम-पश्टम – सलीके से, अस्त-व्यस्त
मातम – शोक, प्रसन्नता
उत्तर:
फ़रमान – राजाज्ञा
कुमुक – फौज़ी टुकड़ी
लश्टम-पश्टम – अस्त-व्यस्त
मातम – शोक

बोध-प्रश्न

(क) अब सब लोग नल पर टूट पड़े। यहाँ भी वह घमासान मची कि क्या मजाल जो एक बूंद पानी भी किसी के बर्तन में आ सके। ठूसम-ठास! किसी बालटी पर पतीला और पतीले पर लोटा और भगोने डोंगे। पहले तो धक्के चले। फिर कुहनियाँ और उसके बाद बरतन। फौरन बड़े भाइयों, बहिनों, मामुओं और दमदार मौसियों, फूफियों की कुमुक भेजी गई, फौज मैदान में हथियार फेंककर पीठ दिखा गई।

इस धींगामुश्ती में कुछ बच्चे कीचड़ में लथपथ हो गए जिन्हें नहलाकर कपड़े बदलवाने के लिए नौकरों की वर्तमान संख्या काफी नहीं थी। पास के बंगलों से नौकर आए और चारआना प्रति बच्चा के हिसाब से नहलवाए गए।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
नल पर घमासान क्यों मचा था ?
उत्तर:
सब बच्चे अपने-अपने बर्तन में पानी भरने के लिए नल पर टूट पड़े थे, इसलिए वहाँ पर घमासान मचा था।

प्रश्न 2.
पहले तो धक्के चले। फिर कुहनियाँ और उसके बाद बरतन’ इसका आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पहले सब अपने-अपने बर्तन में पानी भरने के लिए एक-दूसरे को धक्का देने लगे, फिर कुहुनियों से धकेलने लगे और उसके बाद बरतनों का इस्तेमाल करके दूसरों को हटाकर खुद आगे बढ़ने की कोशिश करने लगे।

प्रश्न 3.
किसकी कुमुक भेजी गई और क्यों ?
उत्तर:
बच्चों का झगड़ा रोकने के लिए कुमुक भेजी गई। यह बड़े भाइयों, बहिनों, मामुओं और दमदार मौसियों, फूफियों की कुमुक थी।

प्रश्न 4.
कुमुक भेजने का असर क्या हुआ ?
उत्तर:
कुमुक भेजते ही बच्चों की फौज मैदान में हथियार फेंककर भाग गई।

प्रश्न 5.
बच्चे कीचड़ से लथपथ क्यों हो गए थे ?
उत्तर:
आपसी धींगामुश्ती के कारण बच्चे कीचड़ में लथपथ हो गए।

प्रश्न 6.
बच्चों के कपड़े बदलवाने के लिए क्या किया गया ?
उत्तर:
बच्चों के कपड़े बदलवाने के लिए उन्हें नहलवाना भी ज़रूरी था अतः पास के बंगलों से नौकर आए और चार आना प्रति बच्चा के हिसाब से उन्हें नहलवाया गया।

(ख) इतने में भेड़ें सूप को भूलकर तरकारीवाली टोकरी पर टूट पड़ीं। वह दालान में बैठी मटर की फलियाँ तोल-तोल कर रसोइए को दे रही थी। वह अपनी तरकारी का बचाव करने के लिए सीना तान कर उठ गई। आपने कभी भेड़ों को मारा होगा, तो अच्छी तरह देखा होगा कि बस, ऐसा लगता है जैसे रुई के तकिए को कूट रहे हों। भेड़ को चोट ही नहीं लगती। बिल्कुल यह समझकर कि आप उससे मजाक कर रहे हैं। वह आप ही पर चढ़ बैठेगी। जरा-सी देर में भेड़ों ने तरकारी छिलकों समेत अपने पेट की कड़ाही में झौंक दी।

प्रश्न 1.
सूप को भूलकर भेड़ों ने क्या किया ?
उत्तर:
भेड़ें सूप को भूलकर तरकारी की टोकरी पर टूट पड़ीं।

प्रश्न 2.
तरकारी वाली ने तरकारी के बचाव के लिया क्या किया ?
उत्तर:
तरकारी वाली तरकारी के बचाव के लिए सीना तानकर खड़ी हो गई।

प्रश्न 3.
भेड़ों पर मारने का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
तरकारी वाली ने कमी भेड़ों को नहीं मारा था। वह ऐसे मार रही थी जैसे रुई के तकिए कूट रही हो। उसकी मार का भेड़ों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

प्रश्न 4.
ज़रा-सी देर में भेड़ों ने क्या किया ?
उत्तर:
ज़रा-सी देर में भेड़ों ने छिलकों सहित तरकारी अपने पेट की कड़ाही में झोंक दी अर्थात् तरकारी सफाचट कर दी।

(ग) तय हुआ कि भैंस की अगाड़ी-पिछाड़ी बाँध दी जाए और फिर काबू में लाकर दूध दुह लिया जाए। बस, झूले की रस्सी उतारकर भैंस के पैर बाँध दिए गए। पिछले दो पैर चाचा जी की चारपाई के पायों से बाँध, अगले दो पैरों को बाँधने की कोशिश जारी थी कि भैंस चौकन्नी हो गई। छूटकर जो भागी तो पहले चाचा जी समझे कि शायद कोई सपना देख रहे हैं। फिर जब चारपाई पानी के ड्रम से टकाराई और पानी छलककर गिरा तो समझे कि आँधी-तूफान में फंसे हैं। साथ में भूचाल भी आया हुआ है। फिर जल्दी ही उन्हें असली बात का पता चल गया और वह पलंग की दोनों पटियाँ पकड़े, बच्चों को छोड़ देनेवालों को बुरा-भला सुनाने लगे।

प्रश्न 1.
भैंस को काबू में करने के लिए क्या तय किया गया ?
उत्तर:
भैंस को काबू में करने के लिए तय किया गया की भैंस की अगाड़ी-पिछाड़ी बाँध दी जाए।

प्रश्न 2.
इस योजना को पूरा करने के लिए क्या उपाय किया गया ?
उत्तर:
इस योजना को पूरा करने के लिए झूले की रस्सी उतार कर भैंस के पैर बाँध दिए गए। पिछले दो पैर चाचा जी की चारपाई से बाँध दिए।

प्रश्न 3.
चाचा जी ने सबसे पहले क्या समझा ?
उत्तर:
चाचा जी को सबसे पहले भैंस के भागने पर लगा जैसे वे कोई सपना देख रहे हैं।

प्रश्न 4.
बाद में चाचा जी को क्या पता चला ?
उत्तर:
बाद में चारपाई ड्रम से टकराने पर लगा कि वे आँधी-तूफान में फँसे हैं और साथ में भूचाल भी आया हुआ है।

प्रश्न 5.
चाचा जी ने किसको बुरा-भला कहा ?
उत्तर:
चाचा जी बच्चों को छोड़ देने वालों को बुरा-भला सुनाने लगे।

कामचोर Summary

पाठ का सार

घर में काम करने की आदत नहीं थी। सारा काम नौकरों के भरोसे था। घर के लोग ऊधम मचाने के सिवा कुछ नहीं करते थे। इस निकम्मेपन से छुटकारा पाने के लिए तय हुआ कि सारे नौकरों को निकाल दिया जाए। खुद पानी पीने के चक्कर में मटके और सुराहियाँ इधर-उधर लुढ़कने लगे। तय हुआ, जो काम नहीं करेगा उसे रात का खाना नहीं मिलेगा। काम थे-मैली दरी की सफाई, आँगन में पड़े कूड़े की सफाई, पेड़ों में पानी देना। तनख्वाह भी दी जाएगी। बच्चे काम में जुट गए। बहुत से बच्चों ने लकड़ियों से दरी को पीटना शुरू कर दिया। घर में धूल फैल गई। सब जगह धूल ही धूल । खाँसते-खाँसते बुरा हाल हो गया। आँगन में फौरन झाडू लगाई गई। झाडू एक थी। काम करने वाले अनेक। खींचतान में झाडू के पुर्जे उड़ गए। झाडू मारने से पहले पानी छिड़कना ठीक होगा। यह सोचकर दरी पर पानी छिड़क दिया गया। दरी की धूल कीचड़ बन गई।

आँगन से निकालने पर बच्चे घर की बालटियाँ, लोटे, तसले, भगोने आदि बर्तन लेकर पेड़ों को पानी देने के लिए निकले। नल पर घमासान युद्ध मच गया। किसी के बर्तन में एक बूंद पानी नहीं पहुँचा। घर के बड़े लोग निकले तो बच्चों की फौज भाग गई। इसके बाद बच्चों ने वाँस-छड़ी जो मिला, लेकर मुर्गियों को बाड़े में हाँकने लगे। वे भी इधर-उधर भागने लगीं। कुछ खीर के प्यालों के ऊपर से गुज़रीं । मुर्गा अम्मा के पानदान में कूदा और फिर अम्मा की चादर पर निशान छोड़े। एक मुर्गी दाल की पतीली में छपाक मारकर भागी। कुछ ने भेड़ों को दाना खिलाने की सोची तो भेड़ों ने भी अपनी भेड़चाल से सबको परेशान किया। सोती हुई हज्जन माँ के ऊपर से भेड़ें दौड़ गईं। कुछ सूप छोड़कर तरकारी वाली टोकरी पर टूट पड़ीं। छिलके समेत तरकारी साफ़ हो गई।

कुछ बच्चे धमकी के डर से कुछ काम न मिलने पर बालटी लेकर भैंसों को दुहने चल पड़े। थनों पर हाथ लगते ही भैंसें ‘बिदककर दूर जा खड़ी हुईं। फिर पैर बाँधने का उपाय ढूँढा गया। पिछले पैर चाचा जी की चार पाई से बाँधे। अगले पैर झुले की रस्सी से। भैंस छूटकर भागी और चारपाई को भी-साथ लेकर दौड़ पड़ी। चाचा जी भूचाल समझकर चारपाई से चिपके थे। बछड़ा न खोलने की भूल मालूम हुई। उसे भी खोल दिया गया तो भैंस रुकी। बालटी पहले ही गोबर में गिर चुकी थी।

तूफान जैसा हाल पूरे घर का हो गया था। अम्मा आगरा जाने के लिए सामान बाँधने लगीं। उन्होंने बच्चों के इस राज को चुनौती दी। अब्बा ने सबको कतार में खड़े करके कुछ भी करने से मना कर दिया। ‘किसी चीज़ को हाथ लगाया तो खाना बन्द’ । फिर पहले जैसा हाल हो गया। कोई हिलकर पानी भी नहीं पिएगा।

शब्दार्थ : दबैल-दबाव में आने वाला; फरमान-आदेश, राजाज्ञा; तनख्वाह-वेतन; बुजुर्ग-बूढ़े धींगामुश्ती-जोर-जबरदस्ती; कामदानी-बेल-बूटेदार कपड़ा; लटरम-पटरम-अस्त-व्यस्त; प्रलय-विनाश; बागी-विद्रोही; कतार-पंक्ति; मातम-शोक; हरगिज़-विल्कुल; मिसाल-उदाहरण; हवाला-सन्दर्भ, उल्लेख; कुमुक-फौजी टुकड़ी; कायल-मान लेने वाला; बेनकेल-विना नियंत्रण के; फलांगनी-कूदकर पार करना; चौकन्नी-सावधान; हँकाई गई-आवाज देकर भगाना; कोर्ट मार्शल-फौजी अदालत में सजा सुनाना; किसी करवट-किसी भी-तरह;

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NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 9 कबीर की साखियाँ

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कबीर की साखियाँ NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 9

Class 8 Hindi Chapter 9 कबीर की साखियाँ Textbook Questions and Answers

पाठ से

प्रश्न 1.
‘तलवार का महत्त्व होता है, म्यान का नहीं’-उक्त उदाहरण से कबीर क्या कहना चाहते हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘तलवार का महत्त्व होता है, म्यान का नहीं’–इस उदाहरण से कबीर कहना चाहते हैं कि म्यान वैसे ही है जैसे किसी की जाति होती है। यह ऊपरी आवरण है अर्थात् थोपी गई विशेषता है। तलवार से आशय है-ज्ञान। ज्ञान ही किसी व्यक्ति की असली पहचान होता है। व्यक्ति का बाहरी दिखावा भी म्यान की तरह है, जिसे लोग बाहरी पहनावे एवं कर्मकाण्ड से दर्शाते हैं। असली शक्ति तो मन का चिन्तन एवं शुद्ध आचरण है।

प्रश्न 2.
पाठ की तीसरी साखी-जिसकी एक पंक्ति है-“मनुवाँ तो चहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं’ के द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं ?
उत्तर:
इस पंक्ति के द्वारा कबीर कहना चाहते हैं कि चित्त की एकाग्रता ही सच्ची भक्ति है। जिसका मन चंचल है, कभी स्थिर नहीं रहता, किसी एक भाव पर नहीं टिकता, वह ईश्वर की सच्ची भक्ति नहीं कर सकता। जिसका मन इधर-उधर भटकता रहता है, वे पूजा या उपासना करने का ढोंग करते रहते हैं।

प्रश्न 3.
कबीरदास घास की निन्दा करने से क्यों मना करते हैं ? पढ़े हुए दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘घास’ से कबीर जी का आशय है-छोटे लोग, दबे-कुचले या प्रताड़ित लोग जो किसी भी डाँट-फटकार का विरोध करने की स्थिति में नहीं होते। कबीर ऐसे लोगों की निन्दा करने से मना करते हैं। कबीर ने अपने एक और दोहे ‘दुर्बल को न सताइए’ में भी ऐसी ही बात कही है। यदि आप समर्थ हैं तो असमर्थ लोगों की निन्दा मत करो। ऐसा करने से कोई बड़ा नहीं हो सकता। जिन्हें छोटा समझा जाता है, अगर वे विरोध करेंगे या पलटकर जवाब देंगे तो वह और अधिक दुःख का कारण बनेगा।

प्रश्न 4.
मनुष्य के व्यवहार में ही दूसरों को विरोधी बना लेने वाले दोष होते हैं। यह भावार्थ किस दोहे से व्यक्त होता है ?
उत्तर:
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।।

पाठ से आगे

प्रश्न 1.
“या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।”
“ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय।”
इन दोनों पंक्तियों में ‘आपा’ को छोड़ देने या खो देने की बात की गई है।
‘आपा’ किस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है ? क्या ‘आपा’ स्वार्थ के निकट का अर्थ देता है या घमंड का ?
उत्तर:
‘आपा’ का अर्थ अहंकार या घमण्ड है। ‘आपा’ छोड़ने का मतलब है-घमण्ड का परित्याग करना।
‘आपा’ स्वार्थ के निकट का अर्थ नहीं देता है। स्वार्थ उस घमण्ड का एक भाग जरूर है। जहाँ घमण्ड या अहंकार होगा, वहाँ स्वार्थ खुद चला आएगा।

प्रश्न 2.
आपके विचार में आपा और आत्मविश्वास में तथा आपा और उत्साह में क्या कोई अंतर हो सकता है ? स्पष्ट करो।
उत्तर:
‘आपा’ होने पर यह विश्वास मजबूत हो जाता है कि जो कुछ भी हूँ, मैं ही हूँ अर्थात् आत्मविश्वास (भले ही गलत दिशा में हो) के बिना आपा या अहंकार मजबूत नहीं हो सकता।

‘उत्साह’ काम करने में जोश की भावना को कहते हैं। इसका ‘आपा’ अर्थात् घमण्ड से कोई संबंध नहीं है। उत्साह एक सकारात्मक सोच की भावना है। इसके द्वारा व्यक्ति अच्छे काम करने के लिए अग्रसर होता है।

प्रश्न 3.
सभी मनुष्य एक ही प्रकार से देखते-सुनते हैं पर एक समान विचार नहीं रखते। सभी अपनी-अपनी मनोवृत्तियों के अनुसार कार्य करते हैं। पाठ में आई कबीर की किस साखी से उपर्युक्त पंक्तियों के भाव मिलते हैं, एकसमान होने के लिए आवश्यक क्या है ? लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त भाव वाली साखी-
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय ॥

एक समान होने के लिए मन शांत और शीतल होना चाहिए। अहंकार को छोड़ देना चाहिए। फिर सभी मनुष्य एक जैसे लगेंगे। कोई भी वैरी नहीं होगा। सब समान आचरण करेंगे।

प्रश्न 4.
कबीर के दोहों को ‘साखी’ क्यों कहा गया है ? ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
कबीर के दोहे ज्ञान के ‘साक्षी’ हैं, गवाह हैं। इनमें जीवन की कोई न कोई सीख या शिक्षा दी गई है। इसलिए इन्हें ‘साखी’ कहा गया है।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
बोलचाल की क्षेत्रीय विशेषताओं के कारण शब्दों के उच्चारण में परिवर्तन होता है, जैसे-वाणी शब्द बानी बन जाता है। मन से मनवा, मनुवा आदि हो जाता है। उच्चारण के परिवर्तन से वर्तनी भी बदल जाती है। नीचे कुछ शब्द दिए जा रहे हैं, उनका वह रूप लिखिए जिससे आपका परिचय हो। ग्यान, जीभि, पाऊँ, तलि, आँखि, बैरी।
उत्तर:
ग्यान-ज्ञान; जीभि-जिह्वा, जीभ; पाऊँ-पाँव; तलि-तले; आँखि-आँख; बैरी-वैरी।

सप्रसंग व्याख्या

1. जाति न पूछो साध की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥1॥

प्रसंग- यह दोहा संत कवि कबीरदास जी द्वारा रचित है। कबीर जी ने इस दोहे में ज्ञान का महत्त्व बताया है और जाति आदि के महत्त्व को नकारा है।

व्याख्या- कबीरदास जी कहते हैं कि साधु का महत्त्व केवल ज्ञान से होता है। इसलिए किसी साधु की जाति आदि पूछना बेकार है। अगर पूछना है तो उसका ज्ञान पूछ लीजिए। पता कर लीजिए कि साधु ज्ञानी है या नहीं। अगर मोल करना है तो सिर्फ तलवार का करो। म्यान का मोल करने से क्या लाभ ? सज्जनों का भी ज्ञान ही महत्त्वपूर्ण होता है। जाति बड़ी होने से कोई व्यक्ति बड़ा नहीं हो जाता।

विशेष-

  • ‘तलवार’ ज्ञान का और ‘म्यान’ जाति का प्रतीक है।
  • कबीर जी ने जाति-पांति के दिखावे का विरोध किया है।

2. आवत गारी एक है, उलटत होई अनेक।
कह कबीर नहिं उलटिए, वही एक ही एक ॥2॥

प्रसंग- कबीर दास जी ने इस ‘साखी’ में दुर्वचन के बदले दुर्वचन बोलने का विरोध किया है।

व्याख्या- कबीरदास जी कहते हैं कि जब कोई किसी को गाली देता है तो वह एक ही होती है। जब कोई पलटकर गाली के बदले गाली देने लगता है तो वह अनेक हो जाती हैं क्योंकि परस्पर गाली देने का यह सिलसिला आगे बढ़ने लगता है। इस सिलसिले का कोई अंत नहीं है। कबीरदास जी कहते हैं कि यदि गाली को नहीं उलटते हैं अर्थात् अगर पलटकर गाली का जवाब गाली से नहीं देते है तो वह गाली सिर्फ एक ही बनी रहती है और आपसी विचार आगे नहीं बढ़ता है।

विशेष-

  • ‘कह कबीर’ में अनुप्रास अलंकार है।
  • विवादों से दूर रहने की शिक्षा दी गई है।
  • सरल खड़ी बोली का प्रयोग किया है, जिसमें सधुक्कड़ी (साधुओं में प्रयोग की जाने वाली) भाषा का भी समावेश है।

3. माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि।
मनुवाँ तो चहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं ॥3॥

प्रसंग- जो लोग माला फेरकर भगवान का नाम लेने का ढोंग करते हैं, कबीर ने उनका विरोध किया है। इस दोहे में कबीर ने एक तरह से मन की एकाग्रता पर बल दिया है।

व्याख्या- कबीरदास जी कहते हैं कि माला तो हाथ में घूमती रहती है। जाप करने वाले उसके एक-एक दाने को घुमाते रहते हैं। जीभ जाप करते समय मुँह में घूमती रहती है। मन एक जगह टिकता नहीं। वह इधर-उधर बेकार की बातों में उलझा रहता है। उसका जाप से कोई तालमेल नहीं होता है। इसे भगवान का स्मरण नहीं कहा जा सकता। यह तो पूरी तरह से ढोंग है। भगवान का ध्यान करने के लिए मन को एकाग्र करना जरूरी है।

विशेष-

  • ‘मुख माँहि’ में अनुप्रास अलंकार है।
  • माला फेरने को कबीरदास जी ने ढोंग बताया है।
  • मन की एकाग्रता ही सच्ची ईश्वर-आराधना है।

4. कबीर घास न नीदिए, जो पाऊँ तलि होई।
उड़ि पड़े जब आँखि मैं, खरी दुहेली होई ॥4॥

प्रसंग- कबीरदास जी ने इस साखी में विनम्र और प्रतिरोध न करने वाले व्यक्ति की निन्दा करने से मना किया है।

व्याख्या- छोटे कहलाने वाले व्यक्तियों को प्रायः कुछ बड़े लोग डाँटते-फटकारते रहते हैं। ऐसा व्यवहार करना उचित नहीं है। अगर पाँव के नीचे दबी हुई हो तो भी हमें घास की अर्थात् छोटे कहलाने वाले लोगों की निन्दा नहीं करनी चाहिए। हमें उनके साथ शालीन एवं सम्मानजनक व्यवहार करना चाहिए। उसी घास का एक तुच्छ तिनका अगर उड़कर आँख में गिर जाए तो बहुत पीड़ा होगी अर्थात् वह छोटा व्यक्ति अगर पलटकर जरा-सी भी बात कह देगा तो हमें बहुत तकलीफ होगी।

विशेष-

  • कबीर ने सबके साथ शालीन व्यवहार करने की सलाह दी है।
  • छोटा समझकर कभी किसी का निरादर या उपेक्षा करना ठीक नहीं है।
  • ‘घास’ छोटे या विरोध न करने वाले साधारण व्यक्ति का प्रतीक है।

5. जग में बैरी कोई नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय ॥5॥

प्रसंग- इस साखी में कबीरदास जी ने अहंकार को शत्रुता का मुख्य कारण माना है। शीतल मन वाले व्यक्ति के मन में कभी अहंकार की भावना नहीं आ सकती।

व्याख्या- जिस व्यक्ति का मन शांत एवं शीतल है, उसका संसार में कोई भी दुश्मन नहीं हो सकता। मनुष्य का घमण्ड ही उसके शत्रुओं की संख्या बढ़ाता है। यदि कोई व्यक्ति इस अहंकार को पूरी तरह छोड़ दे तो उस पर सब लोग दया करने लगेंगे। उसके प्रति सबके मन में अपनेपन और आदर की भावना उत्पन्न हो जाएगी।

विशेष-

  • कबीर ने अहंकार को शत्रुता का मूल कारण माना है।
  • ‘आपा’ का प्रयोग अहंकार के लिए किया गया है।

कबीर की साखियाँ Summary

पाठ का सार

‘साखी’ शब्द मूलतः साक्षी से बना है। कबीर ने साखियाँ ‘दोहा’ छन्द में प्रस्तुत की हैं। इन दोहों में कबीर ने जीवन की विभिन्न ‘सीख’ या ‘शिक्षा’ प्रस्तुत की है।

शब्दार्थ : साध-साधु, सज्जन; तरवार-तलवार; आवत-आते समय; गारी-गाली; उलटत-उलटना, पलटकर कहना; कर-हाथ; माँहि-में, भीतर; मनुवाँ-मन; दहुँ-दस; दिसि- दिशाओं में सुमिरन-स्मरण, याद करना; नाहिं-नहीं; न नीदिए-निंदा मत कीजिए; पाऊँ-पाँव; तलि-तले, नीचे होइ-होगी; उड़ि-उड़कर; खरी-सही, सच्ची; दुहेली-दुःख, कठिन; सीतल-शीतल, शांत; आपा-घमण्ड, अहंकार; डारि-डाल दीजिए, छोड़ दीजिए; सब कोय-सब कोई, हर आदमी।

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Hindi NCERT Solutions Class 8

NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 8 यह सबसे कठिन समय नहीं

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यह सबसे कठिन समय नहीं NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 8

Class 8 Hindi Chapter 8 यह सबसे कठिन समय नहीं Textbook Questions and Answers

कारण बताएँ

प्रश्न 1.
‘यह कठिन समय नहीं है’ बताने के लिए कविता में कौन-कौन से तर्क प्रस्तुत किए हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘यह कठिन समय नहीं है’ बताने के लिए इस कविता में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए गए हैं-

  • चिड़िया की चोंच में अभी भी तिनका दबा है।
  • चिड़िया उड़ने की तैयारी में है।
  • झरती हुई पत्ती को थामने के लिए एक हाथ तत्पर है।
  • स्टेशन पर भीड़ है। रेलगाड़ी गंतव्य तक जा रही है।
  • लोग आने वालों का इन्तजार कर रहे हैं।
  • सूर्यास्त होने पर घर जल्दी आने के लिए कह रहे हैं।
  • बूढ़ी नानी अभी भी कथा का आखिरी हिस्सा सुनाने वाली है। जीवन के प्रति आस्था जगाने के लिए उपर्युक्त तथ्य पर्याप्त हैं।

प्रश्न 2.
चिड़िया चोंच में तिनका दबाकर उड़ने की तैयारी में क्यों है ? वह तिनकों का क्या करती होगी ? लिखिए।
उत्तर:
चिड़िया चोंच में तिनका दबाकर उड़ने की तैयारी इसलिए कर रही है कि उसे नए घोंसले को पूरा करना है। वह एक-एक तिनका जोड़कर अपने घोंसले को पूरा करती होगी।

प्रश्न 3.
कविता में कई बार ‘अभी भी’ का प्रयोग करके बातें रखी गई हैं, अभी भी का प्रयोग करते हुए तीन वाक्य बनाइए और देखिए उनमें लगातार, निरंतर, बिना रुके चलने वाले किसी कार्य का भाव निकल रहा है या नहीं ?
उत्तर:

  • अभी भी तुम यहीं बैठे हो।
  • मैं अभी भी सुबह के समय घूमने जाता हूँ।
  • दीपक अभी भी पुरानी जगह काम कर रहा है।

प्रश्न 4.
‘नहीं’ और ‘अभी भी’ को एक साथ प्रयोग करके तीन वाक्य लिखिए और देखिए ‘नहीं’, ‘अभी भी’ के पीछे कौन-कौन से भाव छिपे हो सकते हैं ?
उत्तर:

  • नहीं, अभी भी उसमें पहले जैसी ताकत है।
  • नहीं, अभी भी उसे तेज बुखार है।
  • नहीं, अभी भी मुझे अपने दोस्त चन्द्रेश पर भरोसा है।

कविता से आगे

प्रश्न 1.
घर के बड़े-बूढ़ों द्वारा बच्चों को सुनाई जाने वाली किसी ऐसी कथा की जानकारी प्राप्त कीजिए जिसके आखिरी हिस्से में कठिन पस्थितियों में जीतने का संदेश हो।
उत्तर:
मेरी दादी ने एक कथा सुनाई थी-‘सोने की खोज’। वह कथा इस प्रकार है-
एक किसान के दो बेटे थे। दोनों ही बहुत आलसी थे। कुछ काम-धाम नहीं करते थे। किसान चिन्तित था कि इन आलसी बेटों को सही रास्ते पर कैसे लाया जाए। इसी चिन्ता में किसान बीमार पड़ गया। दोनों बेटे खूब सेवा करते, पर किसान स्वस्थ नहीं हो सका। एक दिन किसान ने कहा- “मैंने सामने वाले खेत में सोने के सिक्के दबाए थे, उन्हें खोद कर निकाल लो। तुम्हें पूरा खेत खोदना पड़ेगा।” रुपयों के लालच में दोनों भाइयों ने खेत खोदना शुरू किया, परंतु कुछ नहीं निकला। चार दिन में पूरा खेत खोद डाला पर सोने के सिक्के नहीं मिले।

किसान ने समझाया-“और गहराई तक खुदाई करो।” दोनों भाई दिनभर फावड़ा चलाते । शाम तक बुरी तरह थक जाते। चार दिन और बीत गए, परंतु उन्हें सोने का एक भी सिक्का नहीं मिला। वे बहुत उदास और निराश बैठे थे। किसान ने कहा-“खेत में अंगूर की बेलें लगा दो।” वेटों ने ऐसा ही किया।

समय बीतता गया। अंगूर की बेलें हरी-भरी हो गईं। बेलों पर भरपूर अंगूर लगे। दोनों भाई रोज वाजार जाते और अंगूर बेचकर आते। इस तरह उनके पास ढेर सारा पैसा हो गया। किसान अब स्वस्थ होने लगा था। बेटों का मन भी काम में लगने लगा था। उन्होंने दूसरा खेत भी अंगूरों की खेती के लिए तैयार कर लिया। किसान ने कहा-“तुमने अपनी मेहनत से काफी पैसा कमा लिया है। यही असली सोना है, जिसे तुम खोदकर निकालना चाह रहे थे।”

प्रश्न 2.
आप जब भी घर से स्कूल जाते हैं, कोई आपकी प्रतीक्षा कर रहा होता है। सूरज डूबने का समय भी आपको खेत के मैदान से घर लौट चलने की सूचना देता है कि घर में कोई आपकी प्रतीक्षा कर रहा है-प्रतीक्षा करने वाले व्यक्ति के विषय में आप क्या सोचते हैं ? अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
मुझे स्कूल से घर पहुँचने में जरा-सी भी देर हो जाए तो मेरी माँ दरवाजे पर आकर खड़ी हो जाती है। वह कभी-कभी उस रास्ते पर आकर खड़ी हो जाती है, जहाँ मेरी बस मुझे छोड़ती है। खेल के मैदान से भी मैं सूरज डूबने से पहले चल देता हूँ ताकि समय पर घर पहुँच जाऊँ। मैं सोचता हूँ कि मेरी माँ मेरी बहुत चिन्ता करती है। वह मुझे प्यार भी बहुत करती है, इसीलिए उसे समय पर मेरे घर पहुंचने का इंतजार रहता है।

अनुमान और कल्पना:
अंतरिक्ष के पार की दुनिया से क्या सचमुच कोई बस आती है जिससे खतरों के बाद भी वचे हुए लोगों की खबर मिलती है ? आपकी राय में यह झूठ है या सच ? यदि झूठ है तो कविता में ऐसा क्यों लिखा गया ? अनुमान लगाइए यदि सच लगता है तो किसी अंतरिक्ष संबंधी विज्ञान कथा के आधार पर कल्पना कीजिए वह बस कैसी होगी? वे बचे हुए लोग खतरों से क्यों घिर गए होंगे ? इस संदर्भ को लेकर कोई कथा बना सकें तो बनाइए।

अंतरिक्ष के पार की दुनिया से सचमुच में कोई बस नहीं आती है। अतः किसी की खबर मिलने की बात केवल काल्पनिक है। कविता को रोचक बनाने के लिए इस कल्पना का समावेश किया गया है। अंतरिक्ष पार की बस यदि होगी तो अपने अंतरिक्ष यान की तरह ही होगी।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर (सी.सी.ई. प्लस)

प्रश्न 1.
नहीं, यह सबसे कठिन समय नहीं है, क्योंकि-
(क) चिड़िया पानी पी रही है।
(ख) पत्तियाँ झड़ने लगी हैं।
(ग) चिड़िया की चोंच में अभी भी तिनका दबा है।
(घ) मजदूर काम कर रहा है।
उत्तर:
(ग) चिड़िया की चोंच में अभी भी तिनका दबा है।

प्रश्न 2.
किसकी प्रतीक्षा नहीं की जा रही है ?
(क) मुसाफिरों की।
(ख) कथा के आखिरी हिस्से की।
(ग) अखबार वाले की।
(घ) किसी के जल्दी आने की।
उत्तर:
(ग) अखबार वाले की।

सप्रसंग व्याख्या

(क) नहीं, यह सबसे कठिन समय नहीं!
अभी भी दबा है चिड़िया की
चोंच में तिनका
और वह उड़ने की तैयारी में है।
अभी भी झरती हुई पत्ती
थामने को बैठा है हाथ एक
अभी भी भीड़ है स्टेशन पर
अभी भी एक रेलगाड़ी जाती है
गंतव्य तक
जहाँ कोई कर रहा होगा प्रतीक्षा।

प्रसंग- उपर्युक्त पंक्तियाँ जया जादवानी की कविता ‘यह सबसे कठिन समय नहीं’ से ली गई हैं। हर आदमी वर्तमान समय को सबसे कठिन समय बताने लगता है। निराशा के कारण ऐसा होता है। कवयित्री ने आशा को प्रमुखता दी है।

व्याख्या- जदा जादवानी कहती हैं कि हम वर्तमान समय को सबसे कठिन समय समझ बैठे हैं। वास्तविकता ऐसी नहीं है। चिड़िया अभी भी अपनी चोंच में तिनका दबाए हुए है। उसे उड़कर कहीं जाना है और अपना घोंसला बनाना है। वह निराश नहीं है। जो पत्ती झरने वाली है, उसको संभालने के लिए एक हाथ तैयार है। वह हाथ उसे नीचे नहीं गिरने देगा। स्टेशन पर अभी भी पहले की तरह भीड़ है। रेलगाड़ी अभी भी अपनी मंजिल की ओर जाएगी। वहाँ बहुत से अपने लोग होंगे जो इन्तजार कर रहे होंगे।

विशेष-

  • चिड़िया का चोंच में तिनका लेकर उड़ना जीवन के निर्माण का प्रतीक है।
  • ‘थामने को बैठा है हाथ एक’ में लाक्षणिक प्रयोग है।
  • ‘अभी भी’ में ‘भी’ का प्रयोग करके एक निकटतम समय का बोध कराया गया है।

(ख) अभी भी कहता है कोई किसी को
जल्दी आ जाओ कि अब
सूरज डूबने का वक्त हो गया
अभी कहा जाता है
उस कथा का आखिरी हिस्सा
जो बूढ़ी नानी सुना रही सदियों से
दुनिया के तमाम बच्चों को
अभी आती है एक बस
अंतरिक्ष के पार की दुनिया से
लाएगी बचे हुए लोगों की खबर!
नहीं, यह सबसे कठिन समय नहीं।

प्रसंग- उपर्युक्त काव्यांश ‘यह सबसे कठिन समय नहीं’ कविता से उद्धृत है। इसकी कवयित्री जया जादवानी हैं। इन पंक्तियों में जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है।

व्याख्या- कवयित्री कहती हैं कि अभी भी ऐसा कोई है जो व्याकुलता से इन्तजार कर रहा है और जल्दी आने का अनुरोध करता है, क्योंकि सूरज डूबने का समय हो गया है। जीवन के प्रति यह जुड़ाव कोई कम नहीं है। अभी उस कथा का आखिरी हिस्सा कहना बाकी है, जिसे बूढ़ी नानी सदियों से सुनाती आ रही है। पहली पीढ़ियों का यह लगाव कोई कम नहीं है कि दुनिया भर के तमाम बच्चे उन कहानियों को सुनते आ रहे हैं। अभी जीवन के कल्पनालोक को पार करके एक बस आएगी जो बचे । हुए लोगों की खबर लेकर भी लाएगी। इसलिए कहा जा सकता है कि हर तरफ जीवन की रोशनी बिखरी हुई है। आशा की किरणें अभी भी जीवन को खुशनुमा बना रही हैं। अतः यह समय जीवन का सबसे कठिन समय नहीं है।

विशेष-

  • ‘सूरज डूबने’ के साथ प्रिय व्यक्तियों के घर लौटने की बात जुड़ जाती है।
  • बूढ़ी नानी की कहानियों में आज भी पहले जैसा निजी स्पर्श है, जिन्हें सुनकर बच्चे बड़े हो रहे हैं।

पहाड़ से ऊँचा आदमी

तीन सौ साठ फीट लम्बा और तीस फीट चौड़ा पहाड़ काटना कोई आसान काम नहीं है। लेकिन दशरथ मांझी ने यह असम्भव-सा लगने वाला काम कर डाला। बिहार के गया जिले के गेलौर गाँव में एक मजदूर परिवार में इनका जन्म हुआ 1934 में और अंतिम सांस ली 2007 में दिल्ली में।

वर्ष 1966 में इन्होंने यह काम शुरू कर दिया। उस समय 32 वर्ष के युवक थे-दशरथ मांझी। लोग इन पर हँसते। इनकी पत्नी फागुनी देवी बिना इलाज के मर गई थी। बाईस साल बाद इनकी मेहनत रंग लाई। दशरथ के गाँव से सबसे नजदीकी अस्पताल 90 कि.मी. पड़ता था। वहाँ ले जाते समय ही इनकी पत्नी ने दम तोड़ दिया। पहाड़ से कोई रास्ता होता तो अस्पताल जल्दी पहुँचा जा सकता था। इसी धुन ने दशरथ से इतना बड़ा काम करा लिया। यह दुःख में खुद न टूटकर दुःख को तोड़ने जैसा काम था।

पांच छह साल तक इन्होंने अकेले काम किया। धीरे-धीरे लोग इनसे जुड़ते गए। कुछ अनाज देकर मदद करने लगे। गेलौर से वजीरगंज का यह रास्ता 13 किलोमीटर लम्बा रह गया। यह एक मजदूर के प्यार की निशानी है।

एक पत्रकार को कबीरपंथी की तरह घुमक्कड़ जीवन विताने वाले दशरथ ने समुद्र से अण्डे वापस लेने की टिटिहरी की कहानी सुनाई। वह मेहनत करने में ज्यादा विश्वास करते थे। पूजा-पाठ का दिखावा उन्हें उचित नहीं लगता था। आज दशरथ मांझी ऐसे इंसान के रूप में याद किए जाते हैं जो दानवी शक्तियों से लड़ने का इरादा रखते हैं।

उन्होंने एक पत्रकार से कहा था कि पहाड़ उतना ऊँचा कभी नहीं लगा, जितना लोग बताते ।

यह सबसे कठिन समय नहीं Summary

पाठ का सार

कवयित्री जया जादवानी का कहना है कि वर्तमान समय सबसे कठिन समय नहीं है। हमें निराश नहीं होना चाहिए, क्योंकि अभी भी चिड़िया की चोंच में तिनका दबा हुआ है। झरकर जो पत्ती गिरने वाली है, उसको थामने के लिए अभी भी एक व्यक्ति सजग होकर बैठा है। स्टेशन पर पहले जैसी भीड़ है। एक रेलगाड़ी अपनी मंजिल की ओर बढ़ रही है। वहाँ बहुत लोग अपने परिचितों के आने का इंतजार कर रहे होंगे। अभी भी कोई इन्तजार करने वाला अपनों को जल्दी आने के लिए कह रहा है। बूढ़ी नानी जिस कहानी को हमेशा से सुनाती आई है, उसका आखिरी हिस्सा अभी सुनाया जाना है। दूर-दराज रहने वाले लोगों की खबर लाने वाली बस अंतरिक्ष को पार करके आने वाली है। इतना होने पर इस समय को सबसे कठिन समय नहीं कहा जा सकता।

शब्दार्थ : झरती हुई-टूटकर गिरती हुई; गन्तव्य-मंजिल; बैठा है हाथ एक-एक व्यक्ति अपना हाथ आगे बढ़ाकर बैठा है; प्रतीक्षा-इन्तजार।

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