NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 9 टिकट अलबम

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टिकट अलबम NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant Chapter 9

Class 6 Hindi Chapter 9 टिकट अलबम Textbook Questions and Answers

कहानी से

प्रश्न 1.
अलबम पर किसने और क्यों लिखा? इसका असर क्लास के दूसरे लड़के-लड़कियों पर क्या हुआ ?
उत्तर:
अलबम के पहले पृष्ठ पर मोती जैसे अक्षरों में नागराजन के मामा ने लिख भेजा था
ए० एम० नागराजन,
‘इस अलबम को चुराने वाला बेशर्म है। ऊपर लिखे नाम को कभी देखा है ? यह अलबम मेरा है। जब तक घास हरी है और कमल लाल; सूरज जब तक पूर्व से उगे और पश्चिम में छिपे, उस अनंत काल तक के लिए यह अलबम मेरा है, रहेगा।’ लड़कों ने इसे अपने अलबम में उतार लिया। लड़कियों ने झट कापियों और किताबों में टीप लिया।

प्रश्न 2.
नागराजन के अलबम के हिट हो जाने के बाद राजप्पा के मन की क्या दशा हुई ?
उत्तर:
राजप्पा अब बहुत दुखी रहो लगा था। वह नागराजन के अलबम की तारीफ सुनकर कुढ़ जाता था। राजप्पा को अब स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता था। अब वह घर में ही घुसा रहता था। वह दिन में कई बार अलबम को उलट-पलट कर देखता रहता। रात में भी वह लेटे-लेटे उठ जाता और ट्रंक खोलकर अलबम देखने लगता। वह अपने मन में सोचने लगा था कि शायद अब उसका अलबम कूड़ा हो गया है।

प्रश्न 3.
अलबम चुराते समय राजप्पा किस मानसिक स्थिति से गुजर रहा था ?
उत्तर:
अलबम चुराते समय राजप्पा का दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था। वह बहुत घबरा रहा था कहीं कोई देख न ले। घर जाकर भी उसको ऐसा लग रहा था जैसे उसका सारा शरीर जल रहा हो। उसने रात में खाना भी नहीं खाया।

प्रश्न 4.
राजप्पा ने नागराजन का टिकट अलबम अंगीठी में क्यों डाल दिया ?
उत्तर:
राजप्पा ने सोचा कि अब नागराजन के पिता पुलिस में शिकायत करेंगे और पुलिस आकर उसे पकड़ लेगी। ‘अपू’ ने राजप्पा को बहुत डरा दिया था। जब राजप्पा की माँ ने किवाड़ खटखटाया तो राजप्पा ने समझा कि पुलिस आ गई है। उसने हड़बड़ाहट में वह अलबम अंगीठी में डाल दिया जिससे पुलिस को अलबम का पता न चले।

प्रश्न 5.
लेखक ने राजप्पा के टिकट इकट्ठा करने की तुलना मधुमक्खी से क्यों की ?
उत्तर:
जिस प्रकार मधुमक्खी सारा दिन दूर-दूर घूमकर शहद की एक-एक बूंद इकट्ठा करती है उसी प्रकार राजप्पा भी सारा दिन मेहनत करके दूर-दूर से एक-एक टिकट इकट्ठा करके लाता था।

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कहानी से आगे

प्रश्न 1.
टिकटों की तरह बच्चे और बड़े भी दूसरी चीजों को जमा करते हैं, सिक्के उनमें से एक हैं ?
क्या तुम और ऐसी चीजें सोच सकते हो जिन्हें जमा किया जा सके, उनके नाम लिखो ?
उत्तर:
प्ले कॉर्ड, ग्रीटिंग कार्ड, पत्थर, पैन, पुस्तकें आदि को जमा किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
टिकट अलबम का शौक रखने वाले राजप्पा और नागराजन के तरीके में क्या फर्क है ? आप अपने शौक को पूरा करने के लिए कौन सा मॉडल अपनाएंगे?
उत्तर:
राजप्पा का टिकट एलबम उसकी मेहनत से एक-एक टिकट इकट्ठा करके तैयार किया गया था, उसके पास बहुत-सी टिकटें थीं जबकि नागराजन का एलबम उसके मामा द्वारा भेजा गया था। अपना शौक पूरा करने के लिए हम अपने आप टिकटों को एकत्र करना चाहेंगे।

प्रश्न 3.
इकट्ठा किए हुए टिकटों का अलग-अलग तरह से वर्गीकरण किया जा सकता है। जैसे देश के आधार पर ही। और आधार सोचकर लिखो।
उत्तर:
महापुरुषों की श्रेणी का भी एक आधार हो सकता है जैसे-राजनैतिक नेता, स्वतंत्रता सेनानी इसके अतिरिक्त खिलाड़ी एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में ख्याति प्राप्त व्यक्ति।

प्रश्न 4.
कई लोग चीजें इकट्ठा कर ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में अपना नाम दर्ज करवाते हैं। इसके पीछे उनकी क्या प्रेरणा होती होगी ? सोचो और अपने दोस्तों से इस पर बातचीत करो।
उत्तर:
चीजें इकट्ठा कर ‘गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड’ में अपना नाम दर्ज कराने के पीछे कुछ अलग करके दिखाने की प्रेरणा काम कर रही होती है। इससे प्रेरित होकर ही व्यक्ति ऐसे कामों को करता है। उसको ऐसा करने की धुन सवार हो जाती है।

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अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
राजप्पा अलबम को जलाए जाने की बात नागराजन को क्यों नहीं कह पाता है ? अगर वह कह देता तो कहानी के अंत पर कुछ फ़र्क पड़ता ? कैसे ?
उत्तर:
यदि राजप्पा एलबम को जलाए जाने की बात नागराजन को बता देता तो दोनों में शत्रुता हो जाती और नागराजन राजप्पा से घृणा करने लगता।

प्रश्न 2.
‘ऑस्ट्रेलिया के दो टिकटों के बदले फ़िनलैंड का एक टिकट लेता। पाकिस्तान के दो टिकटों के बदले एक रूस का।’ वह ऐसा क्यों करता था ?
उत्तर:
जो टिकट उसके पास अधिक होते थे वह उन टिकटों के बदले उन देशों के टिकटों को ले लेता था जो उसके पास उपलब्ध नहीं होते थे। वह दुर्लभ टिकट को प्राप्त करने के लिए अधिक टिकट भी दे देता था।

प्रश्न 3.
कक्षा के बाकी विद्यार्थी स्वयं अलबम क्यों नहीं बनाते थे ? वह राजप्पा और नागराजन के अलबम के दर्शक मात्र क्यों रह जाते हैं ? अपने शिक्षक को बताओ।
उत्तर:
सभी विद्यार्थियों को कुछ नया काम करने का शौक नहीं होता। वे अधिक मेहनत भी नहीं करना चाहते। वे दूसरों की वस्तुओं को देखकर ही प्रसन्न हो लेते हैं।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों को कहानी में ढूँढ़कर उनका अर्थ समझो। अब स्वयं सोचकर इनसे वाक्य बनाओ-
खोंसना, जमघट, टटोलना, कुढ़ना,
अगुआ, पुचकारना, खलना, हेकड़ी
उत्तर:
खोंसना : रामदयाल ने अपनी फटी कमीज पैंट में खोंस ली।
जमघट : सड़क पर पड़े घायल व्यक्ति के चारों और जमघट लग गया।
टटोलना : मैंने पूरी अलमारी टटोल ली पर कहीं कुछ नहीं मिला।
कुढ़ना : जो दूसरों को सुखी नहीं देखना चाहते वे अक्सर कुढ़ते रहते हैं।
अगुआ : गाँधी जी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अगुआ थे।
पुचकारना : माँ ने मोहन को पुचकारकर रोने का कारण पूछा।
खलना : मुझे परीक्षा के दिनों में मेहमानों का घर पर आना खलता है।
हेकड़ी : दो थप्पड़ पड़ते ही रामू सारी हेकड़ी भूल गया।

प्रश्न 2.
कहानी से व्यक्तियों या वस्तुओं के लिए प्रयुक्त हुए ‘नहीं’ अर्थ देने वाले शब्दों (नकारात्मक विशेषण) को छाँटकर लिखो। उनका उल्टा अर्थ देने वाले शब्द भी लिखो।
उत्तर:
राजप्पा को कोई नहीं पूछता, अलबम को कोई पूछने वाला नहीं था। किसी को हाथ नहीं लगाने देता, राजप्पा नहीं माना, अलबम की बात तक नहीं करता, अलबम देखने की इच्छा कभी नहीं प्रकट की। कृष्णन भी कम नहीं था इतना बड़ा अलबम नहीं है।

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कुछ करने को

प्रश्न 1.
मान लो कि स्कूल में तुम्हारी कोई प्रिय चीज़ खो गई है। तुम चाहते हो कि जिसे वह चीज़ मिले वह तुम्हें लौटा दे। इस संबंध में स्कूल के बोर्ड पर लगाने के लिए एक नोटिस तैयार करो जिसमें निम्नलिखित बिंदु हों-
(क) खोई हुई चीज़ का वर्णन
(ख) कहाँ खोई
(ग) मिल जाने पर कहाँ लौटाई जाए
(घ) नोटिस लगाने वाले/वाली का नाम और कक्षा
उत्तर:
कल दिनांक 5-7-06 को पी०टी० के पीरियड़ में मेरी घड़ी कहीं गुम हो गई। मेरी घड़ी सुनहरे रंग की है तथा वह एच.एम. टी. कम्पनी की है। उस घड़ी में सुनहरे रंग की चेन है। वह खेल के मैदान में कहीं गिर गई है यदि वह किसी को मिले तो कृपया उसे प्रधानाचार्य कक्ष में दे दें।
धन्यवाद।

भवदीय
सुभाष चंद्र गुप्ता
कक्षा IX ‘अ’
दिनांक : 5-7-06

प्रश्न 2.
डाक टिकटों के बारे में और जानना चाहते हो तो नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली से छपी पुस्तक ‘डाक टिकटों की कहानी’ पढ़ो।
उत्तर:
छात्र अपने पुस्तकालयाध्यक्ष को यह पुस्तक मँगाने के लिए कहें।

सुनना-सुनाना

1. राजप्पा और नागराजन की तरह क्या तुम भी कोई गंभीर शौक रखते हो ? उससे जुड़े किस्से सुनाओ।
2. कुछ कहानियाँ सुखांत होती हैं और कुछ कहानियाँ दुःखांत होती हैं। इस कहानी के अंत को तुम क्या मानोगे ? बताओ।
उत्तर:
इस कहानी का अंत सुखांत है।

पढ़ो और समझो

  • कुढ़ता चेहरा
  • भूखा चेहरा
  • घमंडी चेहरा
  • अपमानित चेहरा
  • ईर्ष्यालु चेहरा
  • चालबाज़ चेहरा
  • भयभीत चेहरा
  • रुआँसा चेहरा

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महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. अब राजप्पा के अलबम को कोई पूछने वाला नहीं था। वाकई उसकी शान अब घट गई थी। राजप्पा के अलबम की, लड़कों में काफी तारीफ रही थी। मधुमक्खी की तरह उसने एक-एक करके टिकट जमा किये थे। उसे तो बस एक यही धुन सवार थी। सुबह आठ बजे वह घर से निकल पड़ता। टिकट जमा करने वाले लड़कों के चक्कर लगाता। दो ऑस्ट्रेलिया के टिकटों के बदले एक फिनलैंड का टिकट लेता। दो पाकिस्तान के बदले एक रूस का। बस शाम, जैसे ही घर लौटता, बस्ता कोने में पटककर अम्मा से चबेना लेकर निकर की जेब में भर लेता और खड़े-खड़े कॉफी पीकर निकल जाता। चार मील दूर अपने दोस्त के घर से कनाडा का टिकट लेने पगडंडियों में होकर भागता। स्कूल भर में उसका अलबम सबसे बड़ा था। सरपंच के लड़के ने उसके पच्चीस रुपये लगाये थे।

प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वसंत’ भाग-1 में संकलित पाठ ‘टिकट अलबम’ से लिया है। इस पाठ के लेखक ‘सुंदरा रामस्वामी’ जी हैं। इस पाठ का तमिल से हिन्दी में अनुवाद ‘सुमति अय्यर’ ने किया है।

व्याख्या- नागराजन के अलबम के आने के बाद राजप्पा के अलबम का महत्त्व कम हो गया है। अब उसकी शान उतनी नहीं रही जितनी नागराजन के अलबम की है। राजप्पा के अलबम की पहले बहुत तारीफ हुआ करती थी। लड़के राजप्पा के अलबम को देखने के लिए झपट पड़ते थे। राजप्पा एक-एक टिकट के लिए इतनी मेहनत करता था जितनी मेहनत मधुमक्खी शहद जुटाने में करती है। उसको टिकट इकट्ठा करने की धुन सवार थी। वह सुबह घर से निकलकर टिकट इकट्ठा करने वाले लड़कों के चक्कर लगाता रहता था। वह उनको कोई टिकट देकर बदले में अन्य टिकट ले लेता था जैसे-दो आस्ट्रेलिया के टिकटों के बदले एक फिनलैंड का। दो पाकिस्तान के बदले एक रूस का। राजप्पा शाम को घर आता और अम्मा से खाने को चबेना वगैरह लेकर अपनी जेबों में भरकर टिकट इकट्ठे करने के लिए निकल पड़ता था। वह चार-चार मील तक भी अपने दोस्तों के पास कनाड़ा का टिकट लेने चला जाता था। स्कूल में उसका अलबम सबके अलबम से बड़ा था।

2. राजप्पा मन ही मन कुढ़ रहा था। स्कूल जाना अब खलने लगा था; और लड़कों के सामने जाने में शर्म आने लगी आम- तौर पर शनिवार और रविवार को टिकट की खोज में लगा रहता, परन्तु अब घर-घुसा हो गया था। दिन में कई बार अलबम को पलटता रहता। रात को लेट जाता। सहसा जाने क्या सोचकर उठता, ट्रंक खोलकर अलबम निकालता और एक बार पूरा देख जाता। उसे अलबम से चिढ़ होने लगी थी। उसे लगा, अलबम वाकई कूड़ा हो गया है।

प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वसंत’ में संकलित पाठ ‘टिकट अलबम’ से लिया है। जिसके लेखक ‘सुंदरा स्वामी’ हैं। टिकट अलबम का तमिल भाषा से हिन्दी में अनुवाद ‘सुमति अय्यर’ ने किया है।

व्याख्या- जब से नागराजन का अलबम आया और राजप्पा के अलबम का महत्त्व कम हो गया तब से राजप्पा अपने मन ही मन नागराजन से ईर्ष्या का भाव रखने लगा था। अब उसे स्कूल जाना भी अच्छा नहीं लगता था। लड़कों के सामने जाने में वह अपमानित महसूस करने लगा था। पहले राजप्पा शनिवार और रविवार के दिन टिकटों की खोज में दौड़ता रहता था परन्तु अब वह घर से बाहर ही नहीं निकलता था। वह अपने अलबम को उठाकर दिन में उसे कई-कई बार पलटता था। रात को लेटे-लेटे अचानक उठ जाता फिर ट्रंक खोलकर अलबम देखने लगता था। उसकी स्थिति अजीब-सी हो गई थी। उसे अपने अलबम से चिढ़ होने लगी थी। वह भी अब सोचने लगा था कि शायद उसका अलबम कूड़ा ही है।

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टिकट अलबम Summary

पाठ का सार

आजकल सभी लड़के नागराजन को घेरे रहते, राजप्पा को कोई नहीं पूछता था। नागराजन के मामा जी ने सिंगापुर से एक अलबम भिजवाया था। राजप्पा सभी लड़कों को कहता फिरता कि नागराजन घमण्डी हो गया है। लेकिन लड़के उसकी बातों पर ध्यान नहीं देते थे। सुबह पहली घंटी के बजने तक सभी लड़के नागराजन को घेरकर उसका अलबम देखा करते थे। आधी छुट्टी के समय भी उसके पास लड़कों की भीड़ लगी रहती। नागराजन सभी को अपना अलबम गोद में रखकर दिखाता पर किसी को हाथ नहीं लगाने देता। लड़कों के अलावा कक्षा की लड़कियाँ भी अलबम को देखने के लिए उत्सुक रहती थीं। पार्वती लड़कियों की अगुवा बनी और अलबम माँगने आयी। नागराजन ने उसे अपना अलबम दे दिया। शाम तक लड़कियों ने अलबम देखकर वापिस कर दिया।

राजप्पा की शान घट गयी थी। राजप्पा के अलबम की लड़कों में काफी तारीफ रही। स्कूल भर में उसका अलबम सबसे बड़ा था। सरपंच के लड़के ने उसके अलबम को पच्चीस रुपये में खरीदना चाहा लेकिन राजप्पा नहीं माना। उसने बड़बड़ाकर तीखा जवाब दिया, तुम्हारे घर में जो प्यारी बच्ची है उसे दो न तीस रुपये में। लेकिन अब उसके अलबम की कोई बात नहीं करता। अब सभी उसके अलबम की तुलना नागराजन के अलबम से करने लगे। सब कहने लगे राजप्पा.का अलबम फिसड्डी है। लेकिन राजप्पा ने नागराजन के अलबम को देखने की इच्छा कभी नहीं की। जब दूसरे लड़के देखते तो वह नीची आँखों से देख लेता। सचमुच नागराजन का अलबम बहुत प्यारा था। अलबम के पहले पृष्ठ पर मोती जैसे अक्षरों में उसके मामा ने लिख भेजा था- ए०एम० नागराजन इस अलबम को चुराने वाला बेशर्म है, जब तक घास हरी है और कमल लाल। सूरज जब तक पूर्व से उगे और पश्चिम में छिपे उस अनंत काल के लिए यह अलबम मेरा है और रहेगा।

लड़कों ने इसे अपने अलबम में उतार लिया और लड़कियों ने किताबों, कापियों में टीप लिया। तुम लोग नकल करते हो नकलची कहीं के। राजप्पा ने लड़कों को घुड़की दी। सब चुप रहे लेकिन कृष्णन से नहीं रहा गया। जा जलता है ईर्ष्यालु कहीं का। मैं काहे जलूँ जले तेरा खानदान। मेरा अलबम उसके अलबम से कहीं बड़ा है, राजप्पा ने शान बघारी। राजप्पा को लगा अपने अलबम के बारे में बातें करना फालतू है उसने कितनी मेहनत और लगन से टिकट बटोरे हैं। सिंगापुर से आए एक पार्सल ने नागराजन को एक ही दिन में मशहूर कर दिया। पर दोनों में कितना अंतर है, राजप्पा मन ही मन कुढ़ रहा था। स्कूल जाना अब उसे खलने लगा। दिन में कई बार अलबम को निकालकर देखता और रात को लेट जाता। उसे अलबम से चिढ़ होने लगी, उसे लगा कि अलबम कूड़ा हो गया है।

एक दिन शाम को वह नागराजन के घर गया। नागराजन के हाथ अचानक एक अलबम लगा वह क्या समझे कि एक-एक टिकट की क्या कीमत होती है। फिर सोचता होगा जितना बड़ा टिकट होगा उतना ही कीमती होगा। उसके पास जितने भी टिकट हैं उन्हें टरका कर नए टिकट ले लेगा। कितनों को तो उसने यूँही उल्लू बनाया। कितनी चालबाजी करनी पड़ती है फिर भला नागराजन किस खेत की मूली है। राजप्पा नागराजन के घर पहुँचकर ऊपर गया। वह मेज के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। थोड़ी देर बाद नागराजन की बहिन कामाक्षी ऊपर आयी बोली-भैया शहर गया है। अरे हाँ! तुमने भैया का अलबम देखा उसने पूछा, हूँ उसे हाँ कहने में शर्म आ रही थी बहुत सुन्दर अलबम है ना। सुना है स्कूल भर में किसी के पास इतना बड़ा अलबम नहीं है। तुमसे किसने कहा! भैया ने कहा! वह कुढ़ गया। कामाक्षी कुछ देर वहीं पर रही फिर वह नीचे चली गयी। राजप्पा मेज पर पड़ी किताबों को टटोलने लगा। अचानक उसका हाथ दराज के ताले से टकराया। उसने ताले को खींचा, ताला बंद था। उसने वहीं मेज पर चाबी ढूंढ़ निकाली और दराज खोल लिया। फिर सीढ़ियों के पास जाकर झाँककर देखा फिर जल्दी में दराज खोली, अलबम ऊपर ही रखा हुआ था पहला पृष्ठ खोला और पढ़ा। उसकी धड़कन तेज होने लगी। उसने अलबम कमीज में खोंस लिया और दराज बंद करके घर की ओर भागा। घर जाकर सीधा पुस्तक की अलमारी के पीछे अलबम छुपा दिया। उसका गला सूख रहा था और चेहरा तमतमाने लगा।

रात को आठ बजे अप्पू घर आया और बोला सुना तुमने नागराजन का अलबम खो गया। हम दोनों शहर गए हुए थे, लौटकर देखा तो अलबम गायब। राजप्पा चुप रहा। उसने किसी तरह से अप्पू को टालकर दरवाजा बंद कर लिया, और अलमारी के पीछे से अलबम निकालकर देखा, उसे फिर छिपा दिया। डर था कि कहीं कोई देख न ले। रात में उसने खाना नहीं खाया उसने सोने की कोशिश की पर नींद नहीं आयी। अलबम तकिये के नीचे रखकर सो गया। सुबह अप्पू दोबारा आया। नागराजन तब भी बिस्तर पर बैठा हुआ था। अप्पू नागराजन के घर होकर आया था। अप्पू ने पूछा कल तुम उसके घर गए थे ? राजप्पा की साँस ऊपर की ऊपर नीचे की नीचे रह गयी और फिर सिर हिला दिया। कामाक्षी ने कहा था कि हमारे जाने के बाद केवल तुम वहाँ पर थे। अब सब उसी पर शक करने लगे हैं। अप्पू ने कहा शायद उसके पापा पुलिस को खबर दें। उसके पापा डी०एस०पी० के दफ्तर में तो काम करते ही हैं। पलक झपक दें, पुलिस की फौज हाजिर! अप्पू जैसे आग में घी डाल रहा था, तभी बाहर की सांकल खटकी। ‘पुलिस’ राजप्पा डर गया। भीतर सांकल लगी थी। दरवाजा खटकने की आवाज तेज हो गयी। राजप्पा ने तकिये के नीचे से अलबम उठाया और ऊपर भागा, अलबम को अलमारी के पीछे छिपाने के लिए। डर था कि पुलिस ने तलाशी ली तो पकड़ा जाएगा। अलबम को कमीज के नीचे छुपाकर वह नीचे आ गया दरवाजा अब भी बज रहा था। कौन है! दरवाजा खोलता क्यों नहीं अम्मा भीतर से चिल्लाई। राजप्पा पिछवाड़े की ओर भागा और बाथरूम में घुसकर दरवाजा बंद कर लिया। अम्मा ने अँगीठी पर गरम पानी की देगची चढ़ा रखी थी। उसने अलबम को अँगीठी में डाल दिया। अलबम जलने लगा। कितने प्यारे टिकट थे, राजप्पा की आँखों में आँसू आ गए।

तभी अम्मा ने आवाज लगायी। जल्दी नहाकर आ नागराजन तुझे ढूँढ़ता हुआ आया है। राजप्पा कपड़े बदल कर ऊपर आ गया। नागराजन कुर्सी पर बैठा हुआ था बोला मेरा अलबम खो गया है यार! उसका चेहरा काफी उतरा हुआ था शायद काफी रोकर आया था कहाँ रखा था तुमने राजप्पा ने पूछा। शायद दराज में: शहर से लौटा तो गायब। नागराजन की आँखों में आँसू आ गए। राजप्पा से आँखें बचाकर उसने आँखें पोंछ लीं। रो मत यार राजप्पा ने उसे पुचकारा। राजप्पा नीचे गया हाथ में अपना अलबम लिये ऊपर आया बोला यह लो मेरा अलबम। अब तुम इसे रख लो। मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ सच कह रहा हूँ। ‘बहला रहे हो यार’ । नहीं यार सचमुच तुम्हें दे रहा हूँ। राजप्पा अपनी बात बार-बार दोहरा रहा था। उसका गला भर आया। ठीक है मैं इसे रख लेता हूँ। पर तुम्हें एक भी टिकट नहीं चाहिए, नहीं! तुम कैसे रहोगे बगैर टिकट के। रोता क्यों है यार, इस अलबम को तू ही रख ले, इतनी मेहनत की है तूने, नागराजन बोला। नहीं तुम रख लो इसे लेकर चले जाओ यहाँ से वह चीखा और फूट-फूटकर रो दिया। नागराजन अलबम लेकर नीचे उतर गया। कमीज से आँखों को पोंछता हुआ राजप्पा भी नीचे उतर आया। बहुत-बहुत धन्यवाद! मैं घर चलूँ? नागराजन सीढ़ियाँ उतरने लगा। सुनो राजू! राजप्पा ने पुकारा, नागराजन ने उसे पलटकर देखा। अलबम दे दो मैं आज रात जी भरकर इसे देख लूँ कल सुबह तुम्हें दे जाऊँगा। ठीक है, नागराजन ने उसका अलबम लौटा दिया। राजप्पा ऊपर आया उसने दरवाजा बंद कर लिया और अलबम को छाती से लगाकर फूट-फूटकर रो दिया।

शब्दार्थ:
अलबम – चित्र संग्रह, सरपंच – पंचों का मुखिया, मेहनत – परिश्रम, शक – संदेह, देगची – चौड़े मुँह एवं छोटे पेट का एक बर्तन, घमंडी – अहंकारी, जमघट – आदमियों की भीड़, जमाव, टोली – मंडली, झुंड, उत्सुक – इच्छुक, अगुबा – नेता, चबेना – चबाकर खाने वाली खाद्य सामग्री, वाकई – वास्तव में, पगडंडी – खेत या मैदान में पैदल चलने वालों, तारीफ – बड़ाई के लिए बना पतला रास्ता, फिसड्डी – काम में पीछे रह जाने वाला, तीखा – गुस्से से भरा, टीपना – हू-ब-हू उतारना, नकल करके लिखना, अंनत – जिसका कोई अंत नहीं, बघारना – पांडित्य दिखाने के लिए किसी विषय, कुढ़ना – ईर्ष्या करना की चर्चा करना, कोरस – एक साथ मिलकर गाना, टरकाकर – बहाना बनाकर, मशहूर – प्रसिद्ध, जाना-माना, खलना – अखरना, देगची – चौड़े मुँह एवं छोटे पेट का बर्तन, टरकाना – खिसका देना, टाल देना, हेकड़ी – ज़बरदस्ती, बलात कुछ करने की प्रवृत्ति, भेड़ लेना – भिड़ा देना, सटा देना, बंद करना, आग में घी डालना – क्रोध या झगड़े को बढ़ाना, साँकल – दरवाज़ा बंद करने के लिए लगाई जाने वाली लोहे की कड़ी

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