NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 2 जूझ

Our detailed NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 2 जूझ Textbook Questions and Answers help students in exams as well as their daily homework routine.

जूझ NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 2

जूझ Questions and Answers Class 12 Hindi Vitan Chapter 2

प्रश्न 1.
‘जूझ’ शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए यह स्पष्ट करें कि क्या यह शीर्षक कथा-नायक की किसी केंद्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है?
(A.I.C.B.S.E. 2011, 2012. C.B.S.E. Outside Delhi 2013. Set-I, II. III)
अथवा
“जूझ कहानी प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष की सफलता की कहानी है।” इस कथन की सोदाहरण पुष्टि कीजिए। (Delhi C.B.S.E. 2016, Set-I, II, C.B.S.E. 2011)
अथवा
‘जूझ’ कहानी के प्रमुख पात्र को अपना पढ़ना जारी रखने के लिए कैसे जूझना पड़ा था और वह किस उपाय से सफल (C.B.S.E. 2012, Set-I)
अथवा
‘जूझ’ कहानी प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष की प्रेरक कथा है-समीक्षा कीजिए। (C.B.S.E. 2012, Set-III) हुआ?
उत्तर
‘जूझ’ उपन्यास आनंद यादव द्वारा रचित बहुचर्चित उपन्यास है। यह उपन्यास आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया है। इस उपन्यास के कथा-नायक स्वयं लेखक (आनंद) हैं। वे आनंद नामक कथा-नायक के संघर्षपूर्ण जीवन-गाथा का वर्णन करते हैं। ‘जूझ’ शब्द का अर्थ संघर्ष’ है। कथा-नायक का जो चरित्र ‘जूझ’ उपन्यास के प्रस्तुत पाठ में दर्शाया गया है उसमें उनकी पाठशाला जाने की प्रबल इच्छाशक्ति और इच्छापूर्ति के लिए संघर्ष-गाथा है। संपूर्ण उपन्यास कथा-नायक के संघर्ष को रेखांकित करता है।

‘जूझ’ उपन्यास का कथा-नायक आनंद फिर से पाँचवीं कक्षा में प्रवेश चाहता है। पिछले वर्ष उसके पिता ने परीक्षा देने से पूर्व ही उसे स्कूल से निकाल लिया था। इस वर्ष फिर उसका मन स्कूल जाने के लिए बेचैन रहता है। वह अपनी माँ से ?? बार-बार प्रार्थना करता है कि वह मुझे स्कूल में पढ़ने के लिए पिता जी को मनाए। परंतु उसकी माँ भी पिता जी से डरी-सहमी रहती है। पिछले वर्ष जब से आनंद ने स्कूल छोड़ा वह सारा दिन अकेला काम करता रहता है जबकि उसका पिता सारा दिन गाँव में घूमता रहता है।

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 2 जूझ

माँ को बार-बार कहकर वह गाँव के मुखिया दत्ता जी राव के माध्यम से पिता जी पर दबाव डलवाने में सफल हो जाता है। उसकी माँ और वह स्वयं दत्ता जी राव को प्रार्थना करते हैं कि वह पिता जी पर दबाव डाले ताकि मैं स्कूल में पढ़-लिख कर कोई नौकरी प्राप्त कर सकूँ अथवा कोई व्यापार शुरू कर सकूँ। दत्ता जी राव पिता जी को अपने बाड़े में बुलाकर खूब खरी-खोटी सुनाते हैं तथा उन्हें बाध्य करते हैं कि वह स्वयं खेतों में काम करे और बेटे को स्कूल भेजे। घर आकर पिता जी ने आनंद को खूब डाँटने के बाद आनंद को स्कूल जाने की अनुमति दे दी। आनंद खुशी-खुशी स्कूल जाने लगा।

आनंद जब पहली बार कक्षा में गया तो वहाँ केवल गली के दो लड़के हा उस पहचानत थ। अब इस कक्षा म सभा उसस छोटे बच्चे थे जिन्हें वह कम अक्लवाला समझा करता था आज उनके साथ बैठकर उसे बहुत बुरा लग रहा था परंतु वह मजबूर था। उसकी कक्षा में एक शरारती लडका चहवाण था जो उसकी धोती को बार-बार खींचता था तथा उसके गमछे को इधर-उधर फेंकता था।

आनंद बहुत दुखी था। आधी छुट्टी में भी कुछ शरारती लड़कों ने उसे खूब तंग किया। एक बार तो उसे लगा कि इस कक्षा से बढ़िया तो वे खेत थे जहाँ कोई दूसरा तंग तो नहीं करता था। धीरे-धीरे उसका मन कक्षा में रमने लगा। वह वसंत पाटिल नामक लड़के के पास बैठने लगा जो गणित विषय में बहुत होशियार था। आनंद को भी लगा कि वह भी गणित के सवाल निकालकर वसंत पाटिल की तरह होशियार बन जाए इसलिए वह घर जाकर खूब मेहनत करता और स्कूल में वसंत पाटिल के साथ दोस्ती का फ़ायदा उठाकर गणित विषय में होशियार हो गया। अब वह भी पाटिल की तरह जल्दी-जल्दी गणित के सवाल हल करने लगा।

मराठी के अध्यापक स्कूल में कोई कविता पढ़ाते समय उसमें पूरी तरह डूब जाते थे। वे कविता को गुनगुनाते और अभिनय भी करते थे। आनंद को लगा कि वह भी कविता गा सकता है तथा अभिनय भी कर सकता है। जो कविता कक्षा में पढ़ाई जाती वह उसे खेतों में पानी लगाते समय खूब ज़ोर-ज़ोर से गाया करता था। पहले जब वह अकेला होता था उसे बोरियत महसूस होती परंतु अब वह अकेले में नई कविताएँ बनाता और उन्हें अभिनय के साथ गाया करता था। इन कविताओं ने उसकी जीवन-शैली ही बदल दी थी।

इस प्रकार इस कथावस्तु के वर्णन से यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि कथा-नायक (आनंद) में संघर्ष करने की प्रवृत्ति केंद्रीय चारित्रिक विशेषता है। वह जीवन भर संघर्ष कर उसे सफल बनाना चाहता है। संघर्ष से वह घबराता नहीं बल्कि संघर्ष को अपनी आदत बनाता है। संपूर्ण कथावस्तु में वह संघर्ष करता था। अपनी स्कूल जाने की इच्छा को पूरा करता है तथा एक बाल कवि के रूप में सफल होता है।

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 2 जूझ

प्रश्न 2.
स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ? (C.B.S.E. Delli 2008. A.I. C.B.S.E. 2009-10. Set-II. 2011. Set-I. 2012, Set-I)
अथवा
‘जन’ के लेखक के कवि बनने की कहानी का वर्णन कीजिए। (CBSE 2014. Set-II)
उत्तर
लेखक जब पाँचवीं कक्षा के विद्यार्थी थे तब उनकी कक्षा में सौंदलगेकर नामक अध्यापक मराठी पढ़ाते थे। पढ़ाते समय वे स्वयं कविता में पूरी तरह से डूब जाते थे। उनका गला सुरीला था तथा छंद बनाने की बढ़िया चाल भी थी। मराठी के साथ उन्हें अंग्रेजी की अनेक कविताएँ कंठस्थ थीं। वे कविता को गाते समय लय, गति, यति और ताल का बखूबी प्रयोग करते थे। लेखक जब उनसे कविता सुना करते थे तो वे भी कविता के भावों में पूरी तरह से रम जाते थे। वे मास्टर जी के हाव-भाव, ध्वनि, ताल, रस और चाल को पूरी तल्लीनता के साथ सुना करते थे।

वहीं से वे काव्य में पूरी रुचि लेने लगे। जब वे खेतों में काम करते थे उस समय मास्टर की भाँति पूरे हाव-भाव, यति-गति और आरोह-अवरोह के अनुसार कविता गाया करते थे। जिस प्रकार मास्टर जी अभिनय करते थे वे उसी प्रकार अभिनय किया करते थे। कविता गाते समय उन्हें यह भी पता नहीं चलता था कि क्यारियाँ पानी से कब भर गईं। मास्टर जी भी आनंद के कविता गाने में रुचि लेने लग गए थे। उन्होंने बड़ी कक्षा के बच्चों के सामने आनंद को कविता सुनाने के लिए कहा और आनंद ने इस अवसर का खूब फ़ायदा उठाया।

अब वे अपने आसपास, अपने गाँव और खेतों के दृश्यों की कविता बनाने लगे। भैंस चराते-चराते जंगली फूलों पर तुकबंदी करने लगे। जब रविवार के दिन कोई कविता बन जाती तो अगले दिन मास्टर जी को दिखाता और सुनाता। मास्टर जी उन्हें शाबाशी देते। मास्टर जी ने उन्हें भाषा-शैली, छंद, अलंकारों के साथ-साथ शुद्ध लेखन की बारीकियाँ सिखा दी। वे उन्हें अलग-अलग प्रकार की कविताओं के संग्रह देते थे। इस प्रकार लगातार अभ्यास से वे मराठी में कविताएँ लिखने लगे। उनपर कविता लिखते समय शब्दों का नशा चढ़ने लगा। इस प्रकार लेखक के मन में स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास पैदा हुआ।

प्रश्न 3.
श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की उन विशेषताओं को रेखांकित करें, जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रुचि जगाई। (C.B.S.E. Delhi 2009)
अथवा
जुझ’ के लेखक को मराठी अध्यापक क्यों अच्छे लगते थे? (A.I. C.B.S.E. 2014 Set-I. II, III)
अथवा
सौंदलगेकर एक आदर्श अध्यापक क्यों प्रतीत होते हैं? ‘जूझ कहानी के आधार पर उनकी विशेषताओं पर प्रकाश (C.B.S.E. Delhi 2017, Set-I, II, III, Outside Delhi 2017)
उत्तर :
श्री सौंदलगेकर कथा-नायक के पाँचवीं कक्षा में मराठी के मास्टर थे। वे कविता के अध्यापन के साथ कविता गाया भी करते थे। जब वे कक्षा में कोई कविता पढ़ाया करते तो उसे गाने के साथ, हाव-भाव के अनुसार अभिनय भी किया करते थे। वे कविता को गाते समय ताल, छंद, लय, गति और यति का पूरा ध्यान रखते थे। जब कक्षा में मास्टर जी कविता गाते तो लेखक उन्हें खब ध्यान लगाकर सुना करते थे। मास्टर जी कक्षा में कवि यशवंत, बा० भ० बोरकर, भा० रा० ताँबे, गिरीश तथा केशव कुमार आदि कवियों की कविताएँ सुनाते तथा उनके साथ अपनी मुलाकात के संस्मरण सुनाया करते थे।

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 2 जूझ

मास्टर जी स्वयं भी कविता किया करते थे। कभी-कभी वे अपनी कोई कविता कक्षा में सुनाते थे। लेखक मास्टर जी से इतने प्रभावित हुए कि वे कविता को गाने लगे तथा साथ ही अभिनय करने लगे। उन्होंने बड़ी कक्षाओं के बच्चों के सामने लेखक को कविता सुनाने के लिए प्रेरित किया। जब लेखक कोई कविता बनाते तो अगले दिन मास्टर जी को दिखाया करते। मास्टर जी उनकी कविता को ध्यान से पढ़ते और उन्हें शाबाशी दिया करते थे। उन्होंने लेखक को छंद, लय, अलंकार, भाषा-शैली और शुद्ध लेखन के बारे में समझाया। उनके अध्यापन की इन्हीं विशेषताओं के कारण कवि के मन में कविता के प्रति रुचि पैदा होने लगी।

प्रश्न 4.
कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?
उत्तर :
मास्टर सौंदलगेकर लेखक को पाँचवीं कक्षा में मराठी पढ़ाते थे। कविता पढ़ाते समय वे स्वयं भी उसमें डूब जाते थे। उनके पास सुरीला गला और छंद की बढ़िया चाल भी थी। उन्हें मराठी के साथ-साथ अंग्रेज़ी की भी कुछ कविताएँ कंठस्थ थीं। जब वे कविता सुनाते थे तब साथ-साथ अभिनय भी किया करते थे। लेखक उनकी कविताएँ पूरी तल्लीनता से सुनते थे। वे अपनी आँखों और कानों की पूरी

शक्ति लगाकर दम रोककर मास्टर जी के हाव-भाव, ध्वनि, यति, गति, चाल और रसों का आनंद लिया। लेखक खेतों में पानी लगाते समय खुले गले से मास्टर जी के हाव-भाव और आरोह-अवरोह के अनुसार कविताएँ गाया करते थे। जिस प्रकार मास्टर जी अभिनय करते थे उसी प्रकार लेखक भी अभिनय करते थे। इस प्रकार लेखक भी कविताओं के साथ खेलने लगे।

इन कविताओं के माध्यम से लेखक में नई रुचियाँ पैदा होने लगीं। पहले जब वे खेतों में पानी लगाते थे उस समय उन्हें अकेलापन खटकता था। अगर काम करते समय कोई साथ नहीं है तो उन्हें बोरियत होती थी, इसलिए कोई-न-कोई साथ होना चाहिए। लेकिन कविता के प्रति लगाव होने के पश्चात उन्हें अकेलापन नहीं खटकता था। बल्कि अब उन्हें अकेलापन अच्छा लगता था क्योंकि अकेलेपन में कविता ऊँची आवाज़ में गाई जा सकती थी। कविता के भाव के अनुसार अभिनय भी किया जा सकता था। लेखक अब कविता गाते-गाते नाचने भी लगा था। इस प्रकार कविता के प्रति लगाव ने लेखक की अकेलेपन की धारणा को बदल दिया।

प्रश्न 5.
आपके खयाल से पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवेया सही था या लेखक के पिता का? तर्कसहित उत्तर दें। (C.B.S.E. Delhi 2008, 2017)
उत्तर :
‘जूझ’ आनंद यादव का एक बहुचर्चित उपन्यास है। आत्मकथात्मक शैली में लिखित यह उपन्यास लेखक के जीवन से जुड़ा हुआ है। लेखक के पिता लेखक को पाँचवीं कक्षा से हटाकर खेतों के काम में लगा देते हैं। लेखक को यह बात बहुत बुरी लगती है। वे बार-बार यह सोचते हैं कि कोई उनके पिता को समझा दे ताकि वे फिर अपनी पढ़ाई पूरी कर सके। एक दिन अपनी माँ के साथ कंडे थापते हुए उसने अपनी माँ के समक्ष अपनी मंशा व्यक्त की।

माँ और बेटे दोनों गाँव के मुखिया दत्ता जी राव के पास पिता पर दबाव डलवाने की योजना बनाते हैं। लेखक का मत है कि जीवनभर खेतों में काम करके कुछ भी हाथ लगने वाला नहीं है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी खेतों में काम करके कुछ भी प्राप्त नहीं हो सका। वे मानते हैं कि यह खेती हमें गड्ढे में धकेल रही है। अगर मैं पढ़-लिख गया तो कहीं मेरी नौकरी लग जाएगी या कोई व्यापार करके अपने जीवन को सफल बनाया जा सकता है।

रात के समय माँ-बेटा जब दत्ता जी राव के घर जाकर पूरी बात बताते हैं तो दत्ता जी राव पिता जी को बुलाकर खूब डाँटते हैं और कहते हैं कि तू सारा दिन क्या करता है। बेटे और पत्नी को खेतों में जोत कर तू सारा दिन साँड की तरह घूमता रहता है। कल से बेटे को स्कूल भेज, अगर पैसे नहीं हैं तो फीस मैं भर दूंगा। परंतु पिता जी को यह सब कुछ बुरा लगा। दत्ता जी राव के सामने ‘हाँ’ करने के बावजूद भी वे आनंद को स्कूल भेजने के पक्ष में नहीं थे।

इसलिए बेटे को कहते हैं स्कूल से आने के बाद खेतों में यदि नहीं आया किसी दिन तो देख गाँव में जहाँ मिलेगा वहीं कुचलता हूँ कि नहीं तुझे। तेरे ऊपर पढ़ने का भूत सवार है। मुझे मालूम है, बलिस्टर नहीं होनेवाला है तू? इस प्रकार लेखक और उनके पिता जी की सोच में एक बड़ा अंतर है। हमारे खयाल से पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया लेखक के पिता की सोच से ज्यादा ठीक है क्योंकि पढ़ने-लिखने से व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है।

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 2 जूझ

पढ़ा-लिखा व्यक्ति ही अपने और समाज के बारे में ठीक से समझ सकता है। पढ़ा-लिखा व्यक्ति ही नौकरी कर सकता है अथवा अपने व्यापार को ठीक से चला सकता है। तो यह बिलकुल सही है कि पढ़ाई व्यक्ति के विकास में सहायक सिद्ध होती है। व्यक्ति की बुद्धिमत्ता बढ़ाती है। खेतों में सारा दिन काम करनेवाला लेखक अब गणित के सवाल झट से हल कर देता है। वह अब कविता करने लगा है। कविता लिखने के साथ उन्हें गाता है और हाव-भाव के अनुसार अभिनय भी करता है। उसके मन में छिपी प्रतिभा पढ़ाई के माध्यम से बाहर आ जाती है। इस प्रकार पढ़ाई-लिखाई किसी भी व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में सहायक सिद्ध होती है।

प्रश्न 6.
दत्ता जी राव से पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ को एक झूट का सहाग लेना पड़ा! यदि झूठ का सहारा न लेना पड़ता, तो आगे का घटनाक्रम क्या होता? अनुमान लगाएँ।
उत्तर :
दत्ता जी राव ‘जूझ’ उपन्यास में एक महत्वपूर्ण चरित्र है। वे गाँव के बड़े व्यक्ति हैं। गाँव के लोग उनके सामने दबते हैं। चूँकि लेखक के पिता ने लेखक को पाँचवीं कक्षा से हटाकर खेतों में काम पर लगा दिया था इसलिए लेखक के मन में यह विचार आया कि यदि पिता जी को कोई समझा दे तो मैं फिर अपनी पढ़ाई शुरू कर सकता हूँ। पढ़ाई से ही मेरा जीवन सुधर सकता है वरना खेती के काम में ऐसे ही जिंदगी गुज़र जाएगी और कुछ हाथ नहीं आएगा। इसलिए वह अपनी माँ के साथ दत्ता जी राव के पास यह झूठ बोलकर कि दादा (पिता जी) सारा दिन बाज़ार में रखमाबाई के पास गुज़ार देता है।

खेती के काम में हाथ नहीं लगाता है। माँ दत्ताजी राव को यह विश्वास दिलाती है कि दादा को सारे गाँव में आजादी से घूमने को मिलता रहे, इसलिए उन्होंने आनंद का पढ़ना बंद कर खेती में जोत दिया है। बस, यह सुनते ही दत्ताजी राव चिढ़ गए। बाद में उन्होंने दादा को घर बुलाकर खूब खरी-खोटी सुनाई और लेखक को सुबह पाठशाला जाने को कहा। इस प्रकार लेखक एक बार फिर अपनी पढ़ाई शुरू कर पाते हैं।

अगर लेखक की पढ़ाई शुरू करने में इस झूठ का सहारा न लिया जाता तो लेखक की सारी जिंदगी खेत जोतने में ही गुजर जाती। उसके मन की चंचलता और भावुकता समाप्त हो जाती। उसका कवि मन मचल कर रह जाता। मराठी के मास्टर जी की सहायता से वह नए-नए दृश्यों को देखकर कविता के छंद लिखने लगा था। कविता के भावों के अनुसार वह अभिनय और नृत्य भी करने लगा था। अगर उसकी पढ़ाई छूट जाती तो लेखक (आनंद) न केवल कहीं खो जाते बल्कि एक महान उपन्यासकार का भी वहीं अंत हो जाता।

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 2 जूझ

error: Content is protected !!