NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 1 सिल्वर वैडिंग

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सिल्वर वैडिंग NCERT Solutions for Class 12 Hindi Vitan Chapter 1

सिल्वर वैडिंग Questions and Answers Class 12 Hindi Vitan Chapter 1

प्रश्न 1.
यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है, लेकिन यशोधर बाबू असफल रहते हैं। ऐसा क्यों? (Delhi C.B.S.E. 2016, 2008, 2010 Set-I, C.B.S.E. Outside Delhi Set-I, II, III)
उत्तर :
यशोधर बाबू सचिवालय में सेक्शन ऑफ़िसर हैं। वे अपने काम के प्रति सचेत एवं समय के पाबंद हैं। काम के समय वे अपने सह कर्मचारियों के साथ गंभीर व्यवहार करते हैं जबकि छुट्टी के बाद उनके साथ दोस्तों की तरह व्यवहार करते हैं। ये सभी आदर्श एवं संस्कार उन्हें अपने आदर्श कृष्णानंद से मिले हैं जिन्हें यशोधर आदर से किशनदा कहकर पुकारते हैं।

किशन के संस्कारों और आपसी व्यवहार ने यशोधर बाबू को गहरा प्रभावित किया है। वे प्रत्येक बात किशनदा के नजरिए से देखते हैं। किशनदा पहाड़ से आए युवाओं की समस्याओं को समझते हैं। यशोधर बाबू भी अल्मोड़ा से आकर दिल्ली में किशनदा के घर रहे थे। जब उनकी आयु नौकरी के लिए पूरी नहीं हुई तब तक वे किशनदा के यहाँ रसोइया के रूप में कार्य करते थे। जब आयु पूरी हो गई तो किशनदा ने यशोधर बाबू को अपने नीचे नौकरी दिलवा दी। इसलिए यशोधर बाबू किशनदा की अपनी जिंदगी में अहम भूमिका मानते हैं।

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उन्हीं के नक्शे-कदम चलते हुए यशोधर बाबू ने भी किशनदा की भाँति अपना घर नहीं बनाया है। वे दिल्ली (पहाड़गंज) में किराये के मकान में रहते हैं। घर बनाने के संदर्भ में किशनदा का मानना था कि “मूर्ख लोग घर बनाते हैं जबकि सियाने उन घरों में बसते हैं। इसलिए किशनदा से प्रभावित होकर यशोधर बाबू भी घर नहीं बनवाते हैं। उन्हें यह बात बिल्कुल भी पसंद नहीं आती कि उनके बच्चे उनकी सालगिरह को ‘सिल्वर वैडिंग’ के रूप में मनाएँ। वे इस आयोजन को फिजूलखर्ची मानते हैं। उनके बच्चे यशोधर बाबू के इसी दृष्टिकोण से सहमत नहीं हैं।

दूसरी ओर यशोधर बाबू की पत्नी अपने बेटों और आधुनिक बेटी के साथ अधिक समय व्यतीत करती है। वह यशोधर बाबू के -साथ इसलिए भी सामंजस्य नहीं बिठा पाती क्योंकि उसका मानना है कि यशोधर बाबू के संस्कारों की वजह से ही वह अपने जीवन को सुखमय ढंग से व्यतीत नहीं कर सकी। जेठानियाँ और बड़े बूढ़ों के दबाव में यशोधर बाबू की पत्नी अपने आप को असहज एवं असुरक्षित महसूस करती थी।

एक बार जब यशोधर बाबू अपनी बेटी को जीन्स और बिना बाजू का टॉप पहनने से मना करते हैं तो वह उनका विरोध करते हुए कहती है-“वह सिर पर पल्लू-वल्लू मैंने कर लिया बहुत तुम्हारे कहने पर समझे, मेरी बेटी वही करेगी जो दुनिया कर रही है।” इस प्रकार कहा जा सकता है कि यशोधर बाबू अपने आदर्श किशनदा से अधिक प्रभावित हैं और आधुनिक परिवेश में बदलते जीवन मूल्यों और संस्कारों के विरुद्ध हैं जबकि उनकी पत्नी अपने बच्चों के साथ खड़ी दिखाई देती है। वह अपने बच्चों के आधुनिक दृष्टिकोण से प्रभावित है। इसलिए यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ परिवर्तित होती है लेकिन यशोधर बाबू अभी भी किशनदा के संस्कारों और परंपराओं से चिपके हुए हैं।

प्रश्न 2.
पाठ में जो हुआ होगा’ वाक्य की कितनी अर्थ छवियाँ आप खोज सकते/सकती हैं? (A.I. C.B.S.E. 2011, 2012, Set-1)
उत्तर :
पाठ में ‘जो हुआ होगा’ वाक्य का संबंध यशोधर बाबू के आदर्श किशनदा की मृत्यु से है। इस कहानी में ‘जो हुआ होगा’ वाक्य की छवि सर्वप्रथम उस समय उभरती है जब किशनदा की मृत्यु के संदर्भ में लेखक का कथन सामने आता है। जिस जगह पर किशनदा का क्वार्टर था उसके सामने यशोधर बाबू ने सोचा कि किशनदा की तरह, घर-गृहस्थी का बवाल ही न पाला होता और ‘लाइफ’ कम्यूनिटी के लिए ‘डेडीकेट’ कर दी होती। फिर वे किशनदा के बारे में सोचने लगे कि किशनदा का बुढ़ापा सुखी नहीं था।

जब सेवानिवृत्ति के छह महीने बाद उन्हें सरकारी क्वार्टर खाली करना पड़ा तब किसी साथी ने उन्हें अपने यहाँ रहने की पेशकश नहीं की जबकि उन्होंने अपने प्रत्येक साथी पर कोई-न-कोई अहसान ज़रूर किया था। स्वयं यशोधर बाबू मजबूर थे क्योंकि उनका विवाह हो चुका था और उनके क्वार्टर में अपने परिवार के बाद कोई भी जगह ऐसी नहीं बची थी कि वे क्वार्टर के किसी कोने में किशनदा को जगह दे सकते। कुछ साल किशनदा राजेंद्र नगर में किराये के मकान में रहे और फिर अपने गाँव वापस चले गए। एक साल बाद वहाँ उनकी मृत्यु हो गई थी। उनके बारे में यह कहा जाता है कि उन्हें कोई गंभीर बीमारी भी नहीं थी। बस सेवानिवृत्ति के बाद उनका चेहरा सूखता मुरझाता-सा चला गया।

जब यशोधर बाबू ने किसी एक रिश्तेदार से पूछा कि किशनदा की मृत्यु कैसे हुई तो उत्तर मिला-“जो हुआ होगा” यानी पता नहीं, क्या हुआ। इस प्रकार यशोधर बाबू यही विचार करते हैं कि जिनके बाल-बच्चे नहीं होते तो उनकी मृत्यु ‘जो हुआ होगा’ जैसी बीमारी से हो जाती है। दूसरे शब्दों में जिनके बाल-बच्चे ही नहीं होते तो वह व्यक्ति अकेलेपन के कारण स्वस्थ दिखने के बाद भी बीमार-सा हो जाता है और उसकी मृत्यु हो जाती है, इसलिए किशनदा की मृत्यु के सही कारणों का पता नहीं चल सका है। बस यशोधर बाबू यही सोचते रह गए कि किशनदा की मृत्यु कैसे हो सकती है, जिसका उत्तर किसी के पास नहीं है।

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प्रश्न 3.
‘समहाउ इंप्रापर’ वाक्यांश का प्रयोग यशोधर बाबू हर वाक्य के प्रारंभ में तकिया कलाम की तरह करते हैं। इस वाक्यांश का उनके व्यक्तित्व और कहानी के कथ्य से क्या संबंध बनता है? (C.B.S.E. Delhi 2009, 2011, Set-1)
उत्तर :
यशोधर बाबू एक मर्यादित एवं संस्कार प्रिय व्यक्ति हैं, इसलिए जब आधुनिक परिवेश में ढले लोग उनसे आधुनिकता के साथ व्यवहार करते हैं या आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार व्यवहार करते हैं तो वे ‘समहाउ इंप्रापर’ कहकर अपनी भावनाएँ व्यक्त करते हैं। यह वाक्य उनका तकिया कलाम बन गई है। यशोधर बाबू जिस कार्यालय में सेक्शन ऑफिसर हैं उसी में एक नौजवान, जिसे सहकर्मी चड्ढा कहकर पुकारते हैं, वह चौड़ी मोहरी वाली पतलून और ऊँची एड़ी वाले फैशनेबल जूते पहने हुए है।

इसकी यही आधुनिक वेशभूषा यशोधर बाबू को ‘समहाउ इंप्रापर’ मालूम होती है। नई पीढ़ी के नये लोग जो आधुनिकता के रंग में रंगे हुए हैं, यशोधर बाबू को बिल्कुल भी ठीक नहीं लगते। इन्हें ही देखकर वे ‘समहाउ इंप्रापर’ जुमले का प्रयोग करते हैं। उनके व्यक्तित्व में यह जुमला पूरी तरह फिट हो गया है। वे यदा-कदा इस वाक्य को जरूर बोलते हैं। यशोधर बाबू अपने पारिवारिक जीवन में अपने बीवी-बच्चों के साथ ठीक से तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं क्योंकि उनके दृष्टिकोण में आधुनिकता हमारे संस्कारों और मर्यादाओं को समाप्त कर देती है।

उनके बेटे और बेटियाँ अपने जीवन में स्वतंत्र हैं। उनकी बेटी जींस और बिना बाजुओं वाला टॉप पहनती है। यशोधर बाबू उसके लिए अनेक वर ढूँढ़ चुके हैं परंतु वह उन सबको अस्वीकार कर चुकी है और पिता को यह धमकी देती है अगर आपने मेरे रिश्ते की बात की तो वह मेडिकल की पढ़ाई के लिए अमेरिका चली जाएगी। यशोधर बाबू अपने बच्चों की तरक्की से खुश तो हैं परंतु उन्हें यह बात ‘समहाउ इंप्रापर’ नहीं लगती कि यह खुशहाली किस काम की जो अपनों में परायापन पैदा कर देती है।

कहानी में यशोधर बाबू का अपने बीवी-बच्चों एवं नई पीढ़ी की सोच के साथ सामंजस्य न बिठा पाना ही मुख्य कथ्य है। संपूर्ण कथ्य में यशोधर बाबू का व्यक्तित्व नई पीढ़ी की नई सोच का विरोधी है। इस प्रकार यशोधर बाबू का यह तकिया कलाम ‘समहाउ इंप्रापर’ उनके व्यक्तित्व और कहानी के कथ्य को और अधिक प्रभावशाली बना देता है।

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प्रश्न 4.
यशाधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशनदा का महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आपके जीवन को दिशा देने में किसका महत्वपूर्ण योगदान रहा और कैसे? (C.B.S.E. Outside Delhi 2013. Set-III
अथवा
‘किशनदा के अमिट प्रभाव के कारण यशोधर बाब वर्तमान से ताल-मेल नहीं बिठा पाते।’ सिल्वर वैडिंग के आधार पर टिप्पणी कीजिए। (C.B.S.E. 2010, Set-I, A.I.C.B.S.E. 2011. Set-I)
अथवा
यगोधर पंत पार किशनटा के प्रभाव की समीक्षा कीजिए। C.B.S.E. 2012, Set-I)
उत्तर
किशनदा यशोधर बाबू के आदर्श थे। उनकी संपूर्ण शैली किशनदा से अधिक प्रभावित है। वे किशनदा से इतने अधिक प्रभावित हैं कि अपने परिवार से भी सामंजस्य नहीं बिठा पा रहे हैं। घर में छोटी-छोटी बातों को लेकर तनाव की स्थिति उत्पन्न होना कहीं-न-कहीं विचारों में सामंजस्य की कमी को दर्शाता है। कहानी के अंत में यह तथ्य भी उजागर होता है कि यशोधर बाबू संस्कारों और मर्यादाओं से जुड़े हैं। उनका मन भारतीय परिवेश के अनुकूल सोचता है परंतु यह भी सत्य है कि वे कहीं-न-कहीं इस बात से भी खुश हैं कि उनके बच्चे उनसे अधिक सुलझे हुए हैं।

जहाँ तक मेरे जीवन को दिशा देने में किसका महत्वपूर्ण योगदान रहा है, उसके लिए तीन बातें बड़ी महत्त्वपूर्ण हैं-माता-पिता के द्वारा दिए गए संस्कार, गुरुजनों द्वारा दी गई शिक्षाएँ और आदर्श तथा साहित्य के साथ जुड़ाव व साहित्यिक वातावरण में जीवन की लालसा। सर्वप्रथम माता-पिता उसकी पाठशाला के अध्यापक होते हैं। जैसे शिक्षा और संस्कार माँ-बाप देते हैं वैसी व्यक्ति की जीवन-शैली हो जाती है। भावुकता, संवेदना और पारिवारिक भाईचारा माँ और पिता के साथ जीने वाले पारिवारिक सदस्यों से जुड़कर पैदा होता है।

माता-पिता के सानिध्य में जीकर मैं अधिक संवेदनशील एवं भावुक बना हूँ। गुरुजनों के आदर्श और शिक्षाएँ व्यक्ति को अत्यधिक प्रभावित करते हैं। चरित्रवान अध्यापक आपके चरित्र को भी प्रभावित करता है। अध्यापक के सुच्चरित्र और परिश्रमी होने से विद्यार्थी भी चरित्रवान एवं परिश्रम करने लगता है। देशप्रेम, विश्व बंधुत्व और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को याद रखना शायद मैंने गुरुजनों की शिक्षाओं और आदर्शों से जाना है। मैं साहित्य का विद्यार्थी हूँ इसलिए समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को समझता हूँ।

साहित्य और समाज में एक सुमेल होता है। साहित्य समाज से प्रभावित भी होता है और समाज को प्रभावित करता है। इसलिए मेरी साहित्यिक अभिरुचियाँ मुझे समाज के प्रति जागरूक एवं सचेत बनाती हैं। इस प्रकार, मैं ऐसा समझता हूँ कि हमें यशोधर बाबू की भाँति संवेदनशील होना चाहिए। परंपराओं और संस्कारों से जुड़ना चाहिए। माता-पिता के प्रति हमें अपने कर्तव्यों का निर्वाहन ठीक से करना चाहिए। समाज के प्रति अधिक संवेदनशील एवं कर्तव्यशील बनना चाहिए। चरित्रवान गुरुजनों की शिक्षा और संस्कारों को जीवन में उतारना चाहिए।

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प्रश्न 5.
वर्तमान समय में परिवार की संरचना, स्वरूप से जुड़े आपके अनुभव इस कहानी से कहाँ तक सामंजस्य बिठा पाते हैं ?
अथवा
पीढ़ियों के अंतराल के कारणों पर प्रकाश डालिए। क्या इस अंतराल को कुछ पाटा जा सकता है? कैसे ? (A.I.C.B.S.E. 2009, 2010, Set-1, 2011, Set-II):
अथवा
‘यशोधर पंत की पीढ़ी की विवशता यह है कि वो पुराने को अच्छा समझते हैं और वर्तमान से तालमेल नहीं बैठा पाते’- इस कथन के आधार पर समीक्षा कीजिए। (C.B.S.E. 2012, Set-III)
अथवा
‘सिल्वर वैडिंग’ के आधार पर उन जीवन-मूल्यों की सोदाहरण समीक्षा कीजिए जो समय के साथ बदल रहे हैं। (C.B.S.E. 2014, Set-I, II, III)
उत्तर :
वर्तमान समय औद्योगिक, सूचना और तकनीकी क्रांति का युग है। मशीनीकरण और सूचना तकनीक ने संपूर्ण परिवेश को प्रभावित किया है। प्रत्येक मनुष्य की संवेदनाओं और भावनाओं में परिवर्तन आया है। पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव भारतीय पारिवारिक संरचना और स्वरूप को प्रभावित कर रहा है। पुराने समय में संयुक्त परिवार का चलन अधिक था। बच्चों का उन रिश्तों के प्रति संवेदनशील होना स्वाभाविक था। एक-दूसरे के सुख-दुःख में शामिल होना अनिवार्य था।

एक-दूसरे की भावनाओं को समझना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य था, परंतु आधुनिक परिवेश में व्यक्ति केवल अपने बारे में सोचता है।प्रस्तुत कहानी ‘सिल्वर वैडिंग’ में यशोधर बाबू अपने आदर्श किशनदा से अत्यधिक प्रभावित हैं। वे अपने बीवी-बच्चों को किशनदा के आदर्शों के अनुसार चलाना चाहते हैं। वे स्वयं अपने जीवन में समय के पाबंद, संवेदनशील, पारिवारिक एवं समाज के प्रति अपने कर्तव्य को समझते हैं। जीवन के मूल्यों और रिश्ते-नातों को बनाए रखना चाहते हैं। इसके विपरीत उनके बीवी-बच्चे उनके दृष्टिकोण से अलग सोच रखते हैं। यशोधर बाबू साइकिल से दफ्तर जाते हैं परंतु उनके बच्चों का सोचना है कि आज साइकिल से दफ्तर केवल चपरासी जाते हैं जबकि यशोधर बाबू सचिवालय में सेक्शन ऑफिसर हैं।

यशोधर बाबू को स्कूटर की सवारी बेहुदा लगती है और कार खरीदने की स्थिति में वे नहीं हैं इसलिए पैदल ही ऑफिस जाते हैं। वे अपने जीजा जी का हाल-चाल पूछने के लिए अहमदाबाद जाना चाहते हैं परंतु उनका नौकरीपेशा बेटा उन्हें वहाँ जाने के लिए किराए के रुपये देने से मना कर देता है। उन्होंने अपनी पढ़ी-लिखी बेटी को सौ बार समझाया कि वह जींस और बिना बाजुओं का टॉप मत पहने परंतु उनकी बेटी ज्यादातर इसी प्रकार की वेशभूषा पहनती है।

यशोधर बाबू ने अपने विवाह में लड्डू बनवाने के लिए बैंक से दस हजार रुपए कर्जा लिया था जबकि उनके बच्चे उनकी साल गिरह के पच्चीस वर्ष होने के मौके पर ‘सिल्वर वैडिंग’ मनाते हैं तथा व्हिस्की आदि नशीले द्रव्यों का सेवन करते हैं। यशोधर बाबू को अपने परिवार की ये सभी बातें दुःखी करती हैं।

कहानी की कथा-वस्तु के अनुसार यशोधर बाबू और उनके बच्चों की सोच में पीढ़ी अंतराल आ गया है। यशोधर बाबू संस्कारों से जुड़े रहना चाहते हैं और संयुक्त परिवार की संवेदनाओं को अनुभव करते हैं जबकि उनके बच्चे अपने आप में जीना चाहते हैं। इसलिए जरूरत इस बात की है कि यशोधर बाबू को अपने बच्चों की सकारात्मक नई सोच का स्वागत करना चाहिए, परंतु यह भी अनिवार्य है कि आधुनिक पीढ़ी के बेतुके संस्कार और जीवन-मूल्यों के प्रति उदासीनता संवेदनाओं और भावनाओं को खत्म करते हैं। इसलिए शुरूआत दोनों तरफ से होनी चाहिए ताकि एक नए एवं सांस्कारिक समाज की स्थापना की जा सके।

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से किसे आप कहानी की मूल संवेदना कहेंगे कहेंगी और क्यों ?
(क) हाशिए पर धकेले जाते मानवीय मूल्य
(ख) पीढ़ी अंतराल (C.B.S.F. 2013. Set-11)
(ग) पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव।
उत्तर :
‘सिल्वर वैडिंग’ सुप्रसिद्ध कथाकार ‘मनोहर श्याम जोशी’ द्वारा रचित एक संवेदनशील कहानी है। इस कहानी में अपने आदर्श किशनदा के संस्कारों और जीवन-मूल्यों से जुड़े यशोधर बाबू और उनके आधुनिक परिवेश में बड़े हो रहे बच्चों की नई सोच में अंतर को चित्रित किया गया है। उपर्युक्त प्रश्नों में तीन मुख्य बातों को दर्शाया गया है। अगर यह कहें कि इन बातों का ही मिश्रण प्रस्तुत कहानी की मूल संवेदना है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। कहानी में यह बात पूर्णतः सत्य है कि आधुनिक पीढ़ी मानवीय मूल्यों को ताक पर रख रही है।

वह केवल अपने तरीके से सोचती है, फिर चाहे उनके परिवार के अन्य सदस्य उनसे कितने ही असंतुष्ट ही क्यों न हों। दोनों पीढ़ियों के बीच अंतराल भी मूल हो सकता है और पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव भी कहीं-न-कहीं नई पीढ़ी को प्रभावित करता है। लेकिन यदि किसी एक बिंदु को ही कहानी की मूल संवेदना कहा जाए तो निश्चित रूप से पीढ़ी-अंतराल ही इस कहानी की मूल संवेदना ही है। कहानी के संपूर्ण कथानक का अगर अवलोकन किया जाए तो यह कथन अधिक संगत होगा कि यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी के पक्षधर हैं और उनके बच्चे नई पीढ़ी के प्रतिनिधि के रूप में सामने आते हैं।

यह कथन भी सही हो सकता है कि यशोधर बाबू की सोच बीवी-बच्चों की सोच से मेल नहीं खाती, परंतु कुछ बातें यशोधर बाबू केवल किशनदा के दृष्टिकोण से सोचते हैं जो समय परिवर्तन के साथ अप्रसांगिक हो गई हैं; जैसे यशोधर बाबू किशनदा से प्रभावित होकर घर नहीं बनाते जबकि उनके सभी सहकर्मियों ने अपने-अपने घर बना रखे हैं, इसलिए उनके बच्चों का यह कहना कि आपने डी० डी० ए० की स्कीम के अनुसार अपना घर क्यों नहीं बनवाया, एक प्रश्न हो सकता है। यशोधर बाबू की बेटी अभी विवाह नहीं करना चाहती है बल्कि अपना करियर बनाना चाहती है परंतु यशोधर बाबू को यह बात अखरती है।

अगर वह मेडिकल की पढ़ाई करके अपना भविष्य अधिक उज्ज्वल एवं सुरक्षित करना चाहती है तो यशोधर बाबू को बजाय इसका विरोध करने के बेटी का साथ देना चाहिए, क्योंकि जब वह जीवन में सफल हो जाएगी तो उसके लिए रिश्तों की कोई कमी नहीं रहेगी। दूसरी बात यह कि नौकरीपेशा बेटे भूषण के द्वारा पिता की ‘सिल्वर वैडिंग’ पर ऊनी डैसिंग को गिफ्ट देकर यह कहना, “आप सवेरे जब दूध लेने जाते हैं बब्बा, फटा फुलोवर पहन कर चले जाते हैं जो बहुत ही बुरा लगता है। आप इसे पहनकर जाया कीजिए।” यह बात यशोधर बाबू को और भी बुरी लगती है।

उन्हें तब और खुशी होती यदि बेटा यह कहता है कि पिता जी कल से दूध में लेकर आया करूँगा। अंततः यह कहना अधिक तर्कसंगत होगा कि पीढ़ी अंतराल के कारण यशोधर बाबू अपने अनुसार सोचते हैं जबकि उनके बच्चे नई पीढ़ी की सोच के अनुसार व्यवहार करते हैं। इसलिए इस कहानी की मूल संवेदना ‘पीढ़ी-अंतराल’ है।

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प्रश्न 7.
अपने घर और विद्यालय के आस-पास हो रहे उन बदलावों के बारे में लिखें जो सुविधाजनक और आधुनिक होते हुए भी बुजुर्गों को अच्छे नहीं लगते। अच्छा न लगने के क्या कारण होंगे?
उत्तर:
आधुनिक युग परिवर्तनशील एवं अधिक सुविधासंपन्न है। आज के युवा अपने अनुसार सोचते हैं। वे तत्काल नई जानकारियाँ चाहते हैं जिसके लिए उनके पास कंप्यूटर, इंटरनेट एवं मोबाइल जैसी आधुनिक तकनीक है। इसके माध्यम से वे कम समय में ज्यादा जानकारी एकत्र कर लेते हैं। घर से विद्यालय जाने के लिए अब उनके पास बढ़िया साइकिलें एवं मोटर-साइकिलें हैं। इनके माध्यम से उनका समय बच जाता है और वे समय पर विद्यालय और विद्यालय से घर पहुंच जाते हैं।

आज युवा लड़कों और लड़कियों के बीच का अंतर काफ़ी कम हो गया है। पुराने जमाने में लड़कियाँ लड़कों के साथ इतना घुल-मिलकर नहीं रहती थीं जैसे आज के परिवेश में रहती हैं। युवा लड़कों और लड़कियों द्वारा अंगदिखाऊ वस्त्र पहनना आज आम बात हो गई है। वे एक साथ देर रात तक पार्टियाँ कर लेते हैं। नशीले द्रव्यों और पदार्थों का सेवन कर लेते हैं। इंटरनेट के माध्यम से अश्लील चित्र
और असभ्य जानकारियाँ प्राप्त करते हैं।

ये सारी बातें उन्हें आधुनिक एवं सुविधाजनक लगती हैं। दूसरी ओर ये सभी बातें बुजुर्गों को अच्छी नहीं लगतीं। क्योंकि जब वे अपने समय में युवा थे, उस समय संचार के साधनों की कमी थी। पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण युवा अपनी भावनाओं को काबू में रखते थे। अपने से बड़ों के सामने अदब से बात करते थे और बड़ों की तरह ही सोचते थे। आज वे बड़ों की तरह नहीं सोचते। वे अपनी मर्जी के मालिक हैं। भारतीय संस्कारों और मर्यादाओं को वे बीते जमाने की बातें कहते हैं। उनकी इसी सोच को बुजुर्ग बुरा समझते हैं। आधुनिक परिवेश के युवा बड़े-बूढ़ों के साथ बहुत कम समय व्यतीत करते हैं, इसलिए सोच एवं दृष्टिकोण में अधिक अंतर आ जाता है। इसी अंतर को ‘पीढ़ी-अंतराल’ कहते हैं। इस प्रकार युवा पीढ़ी की यही नई सोच बुजुर्गों को अच्छी नहीं लगती।

प्रश्न 8.
यशोधर बाबू के बारे में आपकी क्या धारणा बनती है? दिए गए तीन कथनों में से आप जिसके समर्थन में हैं, अपने अनुभवों और सोच के आधार पर उसके लिए तर्क दीजिए
(क) यशोधर बाबू के विचार पूरी तरह से पुराने हैं और वे सहानुभूति के पात्र नहीं हैं।
(ख) यशोधर बाबू में एक तरह का वंव है जिसके कारण नया उन्हें कभी-कभी खींचता तो है पर पुराना छोड़ता नहीं, इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की ज़रूरत है।
(ग) यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व है और नई पीढ़ी द्वारा उनके विचारों को अपनाना ही उचित है।
उत्तर :
उपर्यक्त प्रश्न में दिए गए तीन कथनों में से मैं ‘ख’ कथन के साथ यशोधर बाब के बारे में धारणा बनाता है। इस कहानी के संपूर्ण कथानक में यशोधर बाबू के अंतद्वंद्व को दर्शाया गया है। वह अपने बीवी-बच्चों के साथ जुड़ना चाहते हैं, उनके साथ हँसना चाहते हैं। वह इस बात से काफ़ी संतुष्ट हैं कि उनके सभी बच्चे अपने-अपने काम के प्रति सचेत और जागरूक हैं। उसके सभी बच्चे अपनी जिंदगी में सफल हैं और एक सही जीवन जी रहे हैं।

उनका बड़ा बेटा भूषण उनके क्वार्टर को अपना घर बना लेता है। वह इस क्वार्टर में घर की सभी चीजें जैसे फ्रिज, टी०वी०, डबलबेड और डनलप के गद्दे आदि लेकर आता है। यशोधर बाबू को यह खुशी है कि आज उसके घर में सभी सुविधाएँ हैं परंतु भूषण का यह अत्यधिक खर्च उनको अच्छा नहीं लगता। उनके बीवी-बच्चे उनकी पच्चीसवीं साल गिरह को ‘सिल्वर वैडिंग’ के रूप में मनाते हैं। यशोधर बाबू को यह सोचकर बड़ी खुशी मिलती है कि उसने जब विवाह किया था तो बैंक से कर्ज लिया था।

आज उसके बच्चे उसके लिए उपहार लाते हैं परंतु उन्हें यह बात भी बुडी लगती है कि उनकी सिल्वर वैडिंग के समय भूषण और उसके दोस्त व्हिस्की के जाम चढ़ाते हैं। यशोधर जब सवेरे दूध लेने जाते हैं तो फटा हुआ फुलोवर पहनकर जाते हैं। बच्चों को यह बात बुरी लगती है और बड़ा बेटा भूषण उन्हें ऊनी ड्रेसिंग गाउन उपहार में देता है और कहता है कि आप सुबह ठंड से बचने के लिए इसे पहनकर दूध लाया करो। यशोधर मन ही मन खुश है कि वे आज ऊनी ड्रेसिंग गाउन पहन सकते हैं, परंतु भूषण की यह बात उन्हें कचोटती है कि वह मुझे दूध लाने को कहता है जबकि उनसे ये क्यों नहीं कहा कि अब आप आराम करो और मैं सुबह दूध लेकर आया करूँगा।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि यशोधर बाबू में एक तरह का द्वंद्व है जिसके कारण नया उन्हें खींचता तो है पर पुराना छोड़ता नहीं। दूसरे शब्दों में वे नयेपन से खुश तो है परंतु वे पुरानी परंपराओं और संस्कारों से जुड़े रहना चाहते हैं।

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