NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज

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श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 18

श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज Questions and Answers Class 12 Hindi Aroh Chapter 18

पाठ के साथ
प्रश्न 1.
जाति-प्रथा को श्रम-विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आंबेडकर के क्या तर्क ? (A.I..C.B.S.E. 2016, C.B.S.E. 2010 Set-1, 2011 Set-I, A.I.C.B.S.E. 2011, Set-III, 2012 Set-I, Outside Delhi 2017, Set-1)
उत्तर :
जाति-प्रथा को श्रम विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आंबेडकर के निम्नलिखित तर्क हैं
(i) जाति-प्रथा श्रम-विभाजन के साथ-साथ श्रमिक विभाजन का रूप लिए हुए है।

(ii) श्रम-विभाजन निश्चय ही सभ्य समाज की आवश्यकता है, परंतु किसी भी सभ्य समाज में श्रम-विभाजन की व्यवस्था श्रमिकों का विभिन्न वर्गों में अस्वाभाविक विभाजन नहीं करती।

(iii) भारत की जाति-प्रथा श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन ही नहीं करती, बल्कि विभाजित विभिन्न वर्गों को एक-दूसरे की अपेक्षा ऊँच-नीच भी करार देती है, जो कि विश्व के किसी भी समाज में नहीं पाया जाता।

(iv) जाति-प्रथा को यदि श्रम-विभाजन मान लिया जाए तो यह स्वाभाविक विभाजन नहीं है, क्योंकि यह मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं है।

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प्रश्न 2.
जाति-प्रथा भारतीय समाज में बेरोज़गारी व भुखमरी का भी एक कारण कैसे बनती रही है? क्या यह स्थिति आज भी है? (C.B.S.E. Model Q. Paper 2008)
उत्तर :
जाति-प्रथा भारतीय समाज में मनुष्य का पेशा उसके गर्भधारण या जन्म के समय ही निर्धारित कर देती है। यह पेशा उसके माता-पिता के – सामाजिक स्तर के अनुसार दिया जाता है। इसके साथ ही यह केवल पेशे का पूर्व निर्धारण ही नहीं करती, बल्कि मनुष्य को आजीवन उसी पेशे के साथ बाँध देती है। समय परिवर्तन के साथ उद्योग-धंधों, तकनीक आदि में निरंतर विकास होने के कारण प्राचीन पेशे समाज में अपर्याप्त होने लगते हैं तो आदमी बेकार हो जाता है।

वह अपने पेशे को बदलना चाहता है, लेकिन प्रतिकूल परिस्थितियाँ उसे पेशा नहीं बदलने देतीं, जिससे उसके जीवन में भुखमरी फैल जाती है। हिंदू धर्म की जाति-प्रथा किसी भी मनुष्य को पैतृक पेशे के अलावा अन्य पेशा चुनने की अनुमति प्रदान नहीं करती, चाहे उसमें वह अत्यंत कुशल ही क्यों हो। यही कारण है कि जाति-प्रथा के कारण भारतीय समाज में बेरोजगारी और भुखमरी फैलती रही है और यह स्थिति आज भी बनी हुई है।

प्रश्न 3.
लेखक के मत से ‘दासता’ की व्यापक परिभाषा क्या है? (Delhi C.B.S.E. 2016, Delhi C.B.S.E. 2013, Set-I, II, III, A.I. C..S.E. 2014, Set-I, II, III, C.B.S.E. Delhi 2017, Set-III, Outside Delhi 2017, Set-II)
उत्तर :
लेखक के अनुसार ‘दासता’ से अभिप्राय केवल कानूनी पराधीनता से नहीं है, बल्कि दासता में वह स्थिति भी सम्मिलित है जिससे कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों द्वारा निर्धारित व्यवहार एवं कर्तव्यों का पालन करने के लिए विवश होना पड़ता है। यह स्थिति कानूनी पराधीनता न होने पर भी पाई जा सकती है।

प्रश्न 4.
शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक परंपरा की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद डॉ. आंबेडकर ‘समता’ को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह क्यों करते हैं? इसके पीछे उनके क्या तर्क हैं?
उत्तर :
शारीरिक वंश-परंपरा की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद डॉ. आंबेडकर ‘समता’ को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह इसलिए करते हैं, ताकि समाज में सब मनुष्यों के साथ समान व्यवहार किया जाए। प्रत्येक मनुष्य को समता की दृष्टि से देखा जाए। यह आग्रह करने के पीछे डॉ. आंबेडकर के निम्नलिखित तर्क हैं

(i) उत्तम व्यवहार के हक में वे लोग बाजी मार ले जाएंगे, जिन्हें उत्तम कुल, शिक्षा, पारिवारिक ख्याति, पैतृक संपदा तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठा का लाभ प्राप्त है।

(ii) समाज को यदि अपने सदस्यों से अधिकतम उपयोगिता प्राप्त करनी है तो यह संभव है कि जब समाज के सदस्यों को आरंभ’ से ही समान अवसर एवं समान व्यवहार उपलब्ध कराया जाए।

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प्रश्न 5.
सही में आंबेडकर ने भावनात्मक समत्व की मानवीय दृष्टि के लिए जातिवाद का उन्मूलन चाहा है, जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों व जीवन-सुविधाओं का तर्क दिया है। क्या इससे आप सहमत हैं?
उत्तर :
हाँ, हम इससे पूर्णत: सहमत हैं कि डॉ. आंबेडकर ने भावनात्मक समत्त्व की मानवीय दृष्टि के लिए जातिवाद का उन्मूलन चाहा है, जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों और जीवन सुविधाओं का तर्क दिया है। समाज में जब तक समता का भाव नहीं आता, तब तक जातिगत विभिन्नता समाप्त नहीं हो सकती, क्योंकि जाति-प्रथा मनुष्य का जन्म से ही पेशा निश्चित कर देती है।

अतः श्रम-विभाजन के आधार पर समाज में विभाजन बढ़ने लगता है। जाति-प्रथा के आधार पर किया गया श्रम-विभाजन रुचि पर आधारित नहीं होता। अत: भावनात्मक समता लाने के लिए जातिगत श्रम-विभाजन की अपेक्षा व्यक्तियों की क्षमता इस सीमा तक विकसित करें जिससे वह अपने पेशे का चुनाव स्वयं कर सके।

प्रश्न 6.
आदर्श समाज के तीन तत्वों में से एक ‘भ्रातृता’ को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों को भी सम्मिलित किया है अथवा नहीं? आप इस भ्रातृता’ शब्द से कहाँ तक सहमत हैं? यदि नहीं तो आप क्या शब्द उचित समझेंगे?
उत्तर :
आदर्श समाज के तीन तत्वों-स्वतंत्रता, समता और भ्रातृता में से भ्रातृता को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों को भी सम्मिलित किया है। केवल स्त्रियों को ही नहीं, बल्कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को उन्होंने अपने आदर्श समाज का हिस्सा बनाया है। उनके आदर्श समाज में प्रत्येक बच्चे, युवा, लड़के-लड़कियाँ, पुरुष-स्त्री सबको समता का अधिकार दिया है। हर कोई स्वतंत्र है। समाज के प्रत्येक मनुष्य में परस्पर भाईचारा है।

हर कोई बंधुत्व की भावना के बंधन में बंधा है। यहाँ प्रत्येक मनुष्य का भाईचारा दूध-पानी के मिश्रण के समान है। जैसे दूध और पानी मिलकर अलग नहीं होते, ठीक वैसे ही इस आदर्श समाज में प्रत्येक व्यक्ति परस्पर अलग नहीं हो सकता। प्रत्येक मनुष्य में अपने साथियों के प्रति श्रद्धा व सम्मान का भाव है। समाज में इतना भाईचारा है कि कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक संचारित होता है। समाज के बहुविधि हितों में सबका हिस्सा है। सब उनकी रक्षा हेतु भी सजग हैं।

पाठ के आस-पास

प्रश्न 1.
डॉ. आंबेडकर ने जाति-प्रथा के भीतर पेशे के मामले में लचीलापन न होने की जो बात की है-उस संदर्भ में शेखर जोशी की कहानी ‘गलता लोहा’ पर पुनर्विचार कीजिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

प्रश्न 2.
‘कार्य कुशलता पर जाति-प्रथा का प्रभाव विषय’ पर समूह में चर्चा कीजिए। चर्चा के दौरान उभरने वाले बिंदुओं को लिपिबद्ध कीजिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

इन्हें भी जानें

आंबेडकर की पुस्तक ‘जातिभेद का उच्छेद’ और इस विषय में गांधी जी के साथ इनके संवाद की जानकारी प्राप्त कीजिए। हिंद स्वराज नामक पुस्तक में गांधी जी ने कैसे आदर्श समाज की कल्पना की है, उसे भी पढ़ें।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने कक्षा अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

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