NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 7 क्या निराश हुआ जाए

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क्या निराश हुआ जाए NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 7

Class 8 Hindi Chapter 7 क्या निराश हुआ जाए Textbook Questions and Answers

आपके विचार से

प्रश्न 1.
लेखक ने स्वीकार किया है कि लोगों ने उन्हें भी धोखा दिया है, फिर भी वह निराश नहीं है। आपके विचार से इस बात का क्या कारण हो सकता है ?
उत्तर:
लेखक निराश इसलिए नहीं है कि लोगों ने धोखा दिया है, फिर भी ऐसी घटनाएँ बहुत हैं जब लोगों ने अकारण सहायता की है। समय पड़ने पर ढाँढ़स भी बँधाया है।

प्रश्न 2.
समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और टेलीविजन पर आपने ऐसी अनेक घटनाएँ देखी-सुनी होंगी जिनमें लोगों ने बिना किसी लालच के दूसरों की सहायता की हो या ईमानदारी से काम किया हो। ऐसे समाचार तथा लेख एकत्रित करें और कम-से-कम दो घटनाओं पर अपनी टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
(i) पास के गाँव में जाने वाला मेहमान एक किसान के पास बैठकर पानी पीने लगा। इसके बाद बहुत देर तक बतियाता रहा। चलते समय उसका एक थैला वहीं घट थैला रुपयों से भरा हुआ था। किसान थैला लेकर उसी गाँव की ओर दौड़ा। गाँव के पास वह मेहमान मिल गया। किसान ने उसका रुपयों से भरा थैला लौटा दिया।

(ii) ट्रेन रात में बैरकपुर पहुँचती थी। मुसाफिर इस शहर के लिए अनजान था। उसकी बर्थ के पास दूसरे मुसाफिर ने उसकी परेशानी जानकर अपने मित्र का पता दे दिया। पहला मुसाफिर जब वहाँ पहुँचा तो उसका मित्र कहीं बाहर गया हुआ था। परिवार वालों ने उसको अपने पास ठहरा लिया और अगले दिन सुबह उसे उसके नए दफ्तर में लेकर गए।

प्रश्न 3.
लेखक ने अपने जीवन की दो घटनाओं में रेलवे टिकट बाबू और बस कंडक्टर की अच्छाई और ईमानदारी की बात बताई है। आप भी अपने या अपने किसी परिचित के साथ हुई किसी घटना के बारे में बताइए जिसमें किसी ने बिना किसी स्वार्थ के भलाई, ईमानदारी और अच्छाई के कार्य किए हों।
उत्तर:
दफ्तर में श्री शिवशंकर शर्मा बहुत लड़ाकू प्रवृत्ति के आदमी थे। इनकी साथियों से बिल्कुल नहीं बनती थी। ये अपने साथियों की फर्जी शिकायतें विभाग के अधिकारियों को भेजते रहते थे। श्री रामकुमार इनके सबसे बड़े विरोधी थे। शर्मा जी इनको हर तरह से बदनाम करने की साजिश रचते रहते थे। अचानक शर्मा जी को दिल का दौरा पड़ गया। इन्हें तुरंत अस्पताल ले जाना था। शर्मा जी का बेटा दूर केरल में नौकरी करता था। वह तुरंत नहीं आ सकता था। रामकुमार इन्हें तुरंत अस्पताल ले गए। इलाज के लिए बैंक से अपना पैसा निकालकर दवाई के लिए दे दिया। जब उतने पैसे से काम नहीं चला तो अपने मित्रों से उधार लेकर इनके इलाज में खर्च किया। शर्मा जी ने रामकुमार का यह पैसा अपनी सुविधा से लौटाया। रामकुमार को इससे दिक्कत भी हुई, फिर भी वे कहते थे–“उस समय मैंने जो किया, वही करना उचित था।”

पर्दाफाश

प्रश्न 1.
दोषों का पर्दाफाश करना कब बुरा रूप ले सकता है ?
उत्तर:
दोषों का पर्दाफाश करना तब बुरा रूप ले सकता है जब गलत पक्ष को बताने के लिए उसमें रस लिया जाता है और दोष बताना ही एकमात्र कर्त्तव्य हो जाता है।

प्रश्न 2.
आजकल के बहुत से समाचार-पत्र या समाचार चैनल ‘दोषों का पर्दाफाश कर रहे हैं। इस प्रकार समाचारों और कार्यक्रमों की सार्थकता पर तर्क सहित विचार लिखिए ?
उत्तर:
बहुत से समाचार-पत्र या समाचार चैनल ‘दोषों का पर्दाफाश कर रहे हैं। दोषों के प्रति जन-जागृति के लिए यह जरूरी है। इसका दोषपूर्ण पहलू यह है कि लगातार प्रसारण से दोषियों को ‘नायक’ का रूप मिलने लगता है। महसूस होने लगता है कि पूरा समाज भ्रष्ट हो गया है। असुरक्षा का भाव बढ़ता जा रहा है। समाचार-पत्र और समाचार चैनल अच्छी बातों को जोर-शोर से प्रस्तुत नहीं करते हैं।

कारण बताइए-

प्रश्न 1.
निम्नलिखित के संभावित परिणाम क्या-क्या हो सकते हैं ? आपस में चर्चा कीजिए, जैसे-“ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है।” परिणाम-भ्रष्टाचार बढ़ेगा।
1. “सच्चाई केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है।”
2. “झूठ और फरेब का रोज़गार करने वाले फल-फूल रहे हैं।”
3. “हर आदमी दोषी अधिक दिख रहा है, गुणी कम।”
उत्तर:
(i) परिणाम-झूठ का रास्ता अपनाने वाले लोग फलेंगे-फूलेंगे।
(ii) परिणाम-सही रास्ते पर चलने वाले लोग कमज़ोर होते जाएँगे।
(iii) परिणाम-दोषी लोगों का बहुमत हो जाएगा और सही काम करने वाले लोग अलग-थलग पड़ जाएँगे।

दो लेखक और बस यात्रा

प्रश्न 1.
आपने इस लेख में एक बस की यात्रा के बारे में पढ़ा। इससे पहले भी आप एक बस यात्रा के बारे में पढ़ चुके हैं। यदि दोनों बस यात्राओं के लेखक आपस में मिलते तो एक-दूसरे को कौन-कौन सी सही बातें बताते? अपनी कल्पना से उनकी बातचीत लिखिए।
उत्तर:
पहली बस यात्रा का लेखक-हमारी बस तो बूढ़ी हो चुकी, बेदम हो चुकी, इसलिए रुक गई है; पर आपकी बस तो नई लग रही है, फिर भी बीच सड़क पर रुक गई है।

दूसरी बस यात्रा का लेखक- मुझे लगता है-बस अचानक खराब हो गई है, लेकिन सवारियाँ डरी हुई हैं कि कहीं उन्हें कोई लूट न ले।

पहली बस यात्रा का लेखक- हमारा ड्राइवर तो नली से इंजन को पेट्रोल पिलाकर चला रहा था। यह शीशी से अपने बच्चों को भी इसी तरह दूध पिलाता होगा।

दूसरी बस यात्रा का लेखक- खैर! हमारी बस इतनी गई-बीती तो नहीं है। कंडक्टर डिपो तक गया है। शायद ठीक वाली बस लेता आए। हमारे बच्चों के लिए दूध और पानी भी लाने के लिए कहकर गया है।

सार्थक शीर्षक

प्रश्न 1.
लेखक ने लेख का शीर्षक ‘क्या निराश हुआ जाए’ क्यों रखा होगा ? क्या आप इससे भी बेहतर शीर्षक सुझा सकते हैं ?
उत्तर:
लेखक ने ‘क्या निराश हुआ जाए’ शीर्षक के प्रश्न के रूप में रखा है। इस प्रश्न का उत्तर यही हो सकता है कि निराश होने से जीवन चलने वाला नहीं। यही सोचकर यह शीर्षक रखा गया है। इसका दूसरा बेहतर शीर्षक हो सकता है-‘नर हो न निराश करो मन को।’

प्रश्न 2.
यदि ‘क्या निराश हुआ जाए’ के बाद कोई विराम चिह्न लगाने के लिए कहा जाए तो आप दिए गए चिह्नों में से कौन-सा चिह्न लगाएँगे ? अपने चुनाव का कारण भी बताइए।
-, ।!, ?, -, …………..
“आदर्शों की बातें करना तो बहुत आसान है, पर उन पर चलना बहुत कठिन है।” क्या आप इस बात से सहमत हैं ? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
हम प्रश्नवाचक चिह्न (?) लगाएँगे।
लेखक ने प्रश्नवाचक चिह्न वाक्य का प्रयोग सकारात्मक विचार प्रस्तुत करने के लिए लिखा है जिसका वास्तविक अर्थ है कि हमें निराश नहीं होना चाहिए।

हम इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि आदर्शों की बातें करना तो बहुत आसान है, पर उन पर चलना बहुत कठिन है। जो आदर्शों पर चलता है, अधिकतर लोग उसका विरोध करते हैं और उसको नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं। जो केवल आदर्शों की बात करते हैं, दूसरों को उन पर चलने की प्रेरणा देते हैं, वे भी ऐन मौके पर पीछे हट जाते हैं। इन तमाम परेशानियों के बावजूद हमें सही रास्ते पर ही चलना चाहिए।

सपनों का भारत

“हमारे महान मनीषियों के सपनों का भारत है और रहेगा।”

प्रश्न 1.
आपके विचार से हमारे महान विद्वानों ने किस तरह के भारत के सपने देखे थे ? लिखिए।
उत्तर:
हमारे महान विद्वानों ने उस भारत के सपने देखे थे जिसमें सच्चाई, त्याग, धर्म, परहित, संयम आदि गुणों को आचरण बनाने वाले लोग हों। लोग मेहनत करें। किसी का शोषण न करें। ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय न समझें। धर्मभीरु लोग कानून की कमियों का फायदा न उठाएँ। दरिद्रजनों के सारे अभाव दूर हो जाएँ।

प्रश्न 2.
आपके सपनों का भारत कैसा होना चाहिए ? लिखिए।
उत्तर:
मेरे सपनों के भारत में बेईमान, कामचोर, राष्ट्रद्रोही एवं भ्रष्ट लोगों का कोई स्थान नहीं है। गरीबों का खून चूस कर जेबें भरने वालों के लिए, राष्ट्रीय सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाने वालों के लिए एकमात्र जेल ही ठिकाना होना चाहिए। भ्रष्ट, घूसखोर, अपराधी लोग संसद में न पहुँचें। अधिकारी और नेता केवल जनहित की ही बात सोचेंगे। जिन लोगों ने देश का पैसा विदेशी बैंकों में चोरी छुपे जमा कराया है, उस पैसे को देश में लाकर कल्याण-कार्यों में खर्च किया जाएगा। जाति-बिरादरी और क्षेत्रवाद को बढ़ाने वाले नेताओं को सत्ता में नहीं आने दिया जाएगा।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
दो शब्दों के मिलने से समास बनता है। समास का एक प्रकार है-द्वंद्व समास । इसमें दोनों शब्द प्रधान होते हैं। जब दोनों भाग प्रधान होंगे तो एक-दूसरे में द्वंद्व (स्पर्धा, होड़) की संभावना होती है। कोई किसी से पीछे रहना नहीं चाहता, जैसे-चरम और परम = चरम-परम । भीरु और बेबस = भीरु-बेबस। दिन और रात = दिन-रात।
‘और’ के साथ आए शब्दों के जोड़े को ‘और’ हटाकर (-) योजक चिह्न भी लगाया जाता है। कभी-कभी एक साथ भी लिखा जाता है। द्वंद्व समास के बारह उदाहरण ढूँढकर लिखिए।
उत्तर:
(i) द्वंद्व समास के उदाहरण-
भाग और दौड़ = भाग-दौड़
घर और द्वार = घर-द्वार
ऊँच और नीच = ऊँच-नीच
छोटा और बड़ा = छोटा-बड़ा
भाई और बहिन = भाई-बहिन
नर और नारी = नर-नारी
खरा या खोटा = खरा-खोटा
सुख और दुख = सुख-दुख
भूखा और प्यासा = भूखा-प्यासा
आकाश और पाताल = आकाश-पाताल
देश और दुनिया = देश-दुनिया
पाप और पुण्य = पाप-पुण्य

प्रश्न 2.
पाठ से तीनों प्रकार की संज्ञाओं के उदाहरण खोजकर लिखिए।
उत्तर:
व्यक्तिवाचक संज्ञा- तिलक, गाँधी, मदन मोहन मालवीय, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, भारतवर्ष ।

जातिवाचक संज्ञा- समाचार-पत्र, आदमी, व्यक्ति, श्रमजीवी, मनुष्य, दरिद्रजन, कानून, टिकट, स्टेशन, नोट, डिब्बे, बस, डाकुओं, ड्राइवर, कंडक्टर, पानी, दूध।।

भाववाचक संज्ञा- विश्वासघात, धोखा, ढाँढ़स, हिम्मत, शक्ति, आशा, संभावना, मनुष्यता, माफी, धन्यवाद, दुर्घटना, बुराई, अच्छाई, विनम्रता, गलती, संतोष, गरिमा, ईमानदारी, वंचना, घटनाएँ, लोभ, मोह, काम, क्रोध, संयम, आध्यात्मिकता, आक्रोश, भ्रष्टाचार, मूर्खता, फरेब, आस्था, चिन्ता, चोरी, डकैती, तस्करी, ठगी, संग्रह।

अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
दरिद्रजनों की हीन अवस्था को दूर क्यों नहीं किया जा सकता ?
उत्तर:
जिन लोगों को दरिद्रजनों की हीन अवस्था को दूर करने के लिए लगाया गया था, उनका मन हर समय पवित्र नहीं होता। वे लोग अपनी सुख-सुविधा को ज्यादा महत्त्व देते हैं और अपना असली लक्ष्य भूल जाते हैं। इसी कारण से दरिद्रों की दशा में सुधार नहीं हो पाता।

प्रश्न 2.
भीतर-भीतर भारतवर्ष अब भी क्या अनुभव कर रहा है ?
उत्तर:
भीतर-भीतर भारतवर्प अब भी अनुभव कर रहा है कि धर्म कानून से बड़ी चीज है। अब भी सेवा, ईमानदारी और सच्चाई मूल्यों के रूप में मौजूद है।

प्रश्न 3.
हम किन तत्त्वों की प्रतिष्ठा कम करना चाहते हैं ?
उत्तर:
समाज में जो चरम-परम गलत तरीकों से धन या मान पाना चाहते हैं, हम आज भी उनकी प्रतिष्ठा कम करना चाहते हैं।

प्रश्न 4.
अवांछित घटनाएँ होने पर भी लेखक का क्या विश्वास है ?
उत्तर:
अवांछित घटनाएँ होने पर भी लेखक का विश्वास है कि ईमानदारी और सच्चाई लुप्त नहीं हुई है।

प्रश्न 5.
कुछ नौजवानों ने ड्राइवर को पीटने का हिसाब क्यों बनाया था ?
उत्तर:
बस खराब होने पर कंडक्टर उतर गया और एक साइकिल लेकर चलता बना। लोगों को संदेह हो गया कि उन्हें धोखा दिया जा रहा। इसी कारण से कुछ नौजवानों ने ड्राइवर को पीटने का हिसाब बनाया।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
इन्होंने भारतवर्ष का सपना नहीं देखा था-
(क) तिलक
(ख) गाँधी
(ग) मुहम्मद अली जिन्ना
(घ) रवीन्द्रनाथ टैगोर
उत्तर:
(ग) मुहम्मद अली जिन्ना

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में इन्हें जीवन मूल्य नहीं माना जाता-
(क) लोभ
(ख) ईमानदारी
(ग) सेवा
(घ) आध्यात्मिकता
उत्तर:
(क) लोभ

प्रश्न 3.
बस का कंडक्टर लेकर आया-
(क) रोटी
(ख) फल
(ग) दूध
(घ) दाल
उत्तर:
(ग) दूध

प्रश्न 4.
बस गन्तव्य से कितने किलोमीटर पर खराब हो गई?
(क) पाँच
(ख) आठ
(ग) तीन
(घ) दस
उत्तर:
(ख) आठ

बोध-प्रश्न

निम्नलिखित अवतरणों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

(क) मेरा मन कभी-कभी बैठ जाता है। समाचार-पत्रों में ठगी, डकैती, चोरी, तस्करी और भ्रष्टाचार के समाचार भरे रहते हैं। आरोप-प्रत्यारोप का कुछ ऐसा वातावरण बन गया है कि लगता है, देश में कोई ईमानदार आदमी ही नहीं रह गया है। हर व्यक्ति संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है। जो जितने ही ऊँचे पद पर हैं उनमें उतने ही अधिक दोष दिखाए जाते हैं।

प्रश्न 1.
समाचार-पत्रों में किस प्रकार के समाचार ज्यादातर रहते हैं ?
उत्तर:
समाचार-पत्रों में ठगी, डकैती, चौरी, तस्करी और भ्रष्टाचार के समाचार ज्यादातर रहते हैं।

प्रश्न 2.
आरोप-प्रत्यारोप से क्या लगता है ?
उत्तर:
आरोप-प्रत्यारोप से लगता है जैसे इस देश में कोई ईमानदार आदमी नहीं रह गया है।

प्रश्न 3.
क्या ऐसा सोचना ठीक है ?
उत्तर:
नहीं, ऐसा सोचना ठीक नहीं है।

प्रश्न 4.
ऊँचे पद पर बैठे व्यक्तियों के बारे में लोग क्या सोचते हैं ?
उत्तर:
जो व्यक्ति जितने ऊँचे पद पर बैठा है, उसमें उतनी ही ज्यादा कमियाँ नजर आ रही हैं। स्थिति यह है कि हर व्यक्ति को संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है।

प्रश्न 5.
क्या हर व्यक्ति को संदेह की दृष्टि से देखा जाना चाहिए ? कारण सहित बताइए।
उत्तर:
नहीं, हर व्यक्ति को संदेह की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। स्थितियाँ इतनी बदतर नहीं हुई हैं कि कोई ईमानदार ही न बचा हो। अभी भी ईमानदारी जिन्दा है।

(ख) यह सही है कि इन दिनों कुछ ऐसा माहौल बना है कि ईमानदारी से मेहनत करके जीविका चलाने वाले निरीह और भोले-भाले श्रमजीवी पिस रहे हैं और झूठ तथा फरेब का रोजगार करने वाले फल-फूल रहे हैं। ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है, सच्चाई केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है। ऐसी स्थिति में जीवन के महान मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था ही हिलने लगी है।

प्रश्न 1.
इन दिनों किस प्रकार का माहौल बन गया है ?
उत्तर:
इन दिनों कुछ ऐसा माहौल बन गया है कि ईमानदारी से रोटी-रोज़ी कमाने वाले भोले-भाले मजदूर पिस रहे हैं। छल-कपट का सहारा लेने वाले फल-फूल रहे हैं।

प्रश्न 2.
मूर्खता का पर्याय किसे मान लिया गया है ?
उत्तर:
ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय मान लिया गया है।

प्रश्न 3.
सच्चाई अब कैसे लोगों के हिस्से में आ गई है ?
उत्तर:
जो लोग डरते हैं, मजबूर हैं, उन्हीं के हिस्से में सच्चाई आ गई।

प्रश्न 4.
जीवन-मूल्यों के प्रति क्या दृष्टिकोण पनपने लगा है ?
उत्तर:
जीवन-मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था डगमगाने लगी है।

प्रश्न 5.
ईमानदारी से मेहनत करने वाले क्यों पिस रहे हैं ? अपना विचार लिखिए।
उत्तर:
झूठ और फरेव का रोजगार करने वालों के कारण ईमानदारी से मेहनत करने वाले पिस रहे हैं।

(ग) भारतवर्ष ने कभी भी भौतिक वस्तुओं के संग्रह को बहुत अधिक महत्त्व नहीं दिया है, उसकी दृष्टि से मनुष्य के भीतर जो महान आंतरिक गुण स्थिर भाव से बैठा हुआ है, वही चरम और परम है। लोभ-मोह, काम-क्रोध आदि विचार मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहते हैं, पर उन्हें प्रधान शक्ति मान लेना और अपने मन तथा बुद्धि को उन्हीं के इशारे पर छोड़ देना बहुत बुरा आचरण है। भारतवर्ष ने कभी भी उन्हें उचित नहीं माना, उन्हें सदा संयम के बंधन से बाँधकर रखने का प्रयत्न किया है। परंतु भूख की उपेक्षा नहीं की जा सकती, बीमार के लिए दवा की उपेक्षा नहीं की जा सकती, गुमराह को ठीक रास्ते पर ले जाने के उपायों की उपेक्षा नहीं की जा सकती।

प्रश्न 1.
भारत ने किस प्रकार के संग्रह को अधिक महत्त्व नहीं दिया ?
उत्तर:
भारतवर्ष में भौतिक वस्तुओं के संग्रह को बहुत अधिक महत्त्व नहीं दिया गया है।

प्रश्न 2.
भारत ने चरम और परम किसे माना है ?
उत्तर:
भारत ने मनुष्य के भीतर जो महान गुण स्थिर भाव से मौजूद हैं, उन्हें ही चरम और परम माना है।

प्रश्न 3.
मनुष्य में स्वाभाविक रूप से कौन-कौन से विचार मौजूद रहते हैं ?
उत्तर:
लोभ-मोह, काम-क्रोध आदि विचार मनुष्य में स्वभाव से मौजूद रहते हैं।

प्रश्न 4.
लेखक ने बुरा आचरण किसे कहा है ?
उत्तर:
लोभ-मोह, काम-क्रोध को ही प्रमुख ताकत मान लेना तथा अपने मन और बुद्धि को उन्हीं के इशारे पर काम करने देना बुरा आचरण है।

प्रश्न 5.
स्वाभाविक विचारों को किस रूप में रखा गया ?
उत्तर:
स्वाभाविक विचारों को सदा संयम में बाँधकर रखा गया है।

प्रश्न 6.
समाज में किन-किन बातों की उपेक्षा नहीं की जा सकती ?
उत्तर:
समाज में भूख, बीमारी और गुमराह व्यक्तियों की उपेक्षा नहीं की जा सकती। भूख का उपाय-भोजन, बीमारी का उपाय-दवाई और गुमराह का उपाय-सही रास्ता दिखाना है।

प्रश्न 7.
आपकी दृष्टि से क्या उचित है ?
उत्तर:
हमारे विचार से जीवन में संयम उचित है। संयम के द्वारा ही हम अपनी कमजोरियों पर काबू पा सकते हैं। भूख और बीमारी को दूर करना पड़ेगा। गुमराहों को सही दिशा का ज्ञान भी कराना पड़ेगा।

(घ) भारतवर्ष सदा कानून को धर्म के रूप में देखता आ रहा है। आज एकाएक कानून और धर्म में अंतर कर दिया गया है। धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता, कानून को दिया जा सकता है। यही कारण है कि लोग धर्मभीरु हैं, वे कानून की त्रुटियों से लाभ उठाने में संकोच नहीं करते।

प्रश्न 1.
भारतवर्ष कानून को किस रूप में देखता आ रहा है ?
उत्तर:
भारतवर्ष सदा से कानून को धर्म के रूप में देखता आ रहा है। कानून का पालन करना धर्म के दायरे में रहा है।

प्रश्न 2.
आज एकाएक कानून और धर्म में क्या अंतर कर दिया गया है ?
उत्तर:
आज एकाएक कानून और धर्म में यह अन्तर कर दिया गया कि धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता। कानून को धोखा दिया जा सकता है।

प्रश्न 3.
धर्मभीरु लोग किस तरह का आचरण करने लगे हैं ?
उत्तर:
धर्मभीरु लोग कानून की कमियों का लाभ उठाने लगे हैं। उन्हें कानूनन गलत काम करने में तनिक भी झिझक नहीं होती।

(ङ) दोषों का पर्दाफाश करना बुरी बात नहीं है। बुराई यह मालूम होती है कि किसी के आचरण के गलत पक्ष को उद्घाटित करके उसमें रस लिया जाता है और दोषोद्घाटन को एकमात्र कर्त्तव्य मान लिया जाता है। बुराई में रस लेना बुरी बात है, अच्छाई में उतना ही रस लेकर उजागर न करना और भी बुरी बात है। सैकड़ों घटनाएँ ऐसी घटती हैं कि जिन्हें उजागर करने से लोक-चित्त में अच्छाई के प्रति अच्छी भावना जगती है।

प्रश्न 1.
दोषों का पर्दाफाश करना कब बुरी बात बन जाता है ?
उत्तर:
जब पर्दाफाश करना ही एकमात्र काम मान लिया जाता है और गलत पक्ष को प्रकट करके उसमें रस लिया जाता है, तब यह कार्य बुरा बन जाता है।

प्रश्न 2.
अच्छाई के संदर्भ में किस आदत को बुरा कहा गया है ?
उत्तर:
अच्छाई को उजागर न करना, उसमें रस न लेना बुरा है। उजागर न करने से अच्छाई का प्रचार नहीं हो सकेगा, जबकि अच्छाई को उजागर करना लोकचित्त के लिए हितकर है।

प्रश्न 3.
अच्छी बातें क्यों उजागर करनी चाहिए ?
उत्तर:
अच्छाई को उजागर करने से लोगों का ध्यान अच्छी बातों की ओर जाएगा। समाज में अच्छी सोच विकसित होगी।

प्रश्न 4.
अच्छी और बुरी बातों के बारे में आपका क्या सोचना है ? छह वाक्यों में लिखिए।
उत्तर:
बुराई से बचने के लिए ‘बुरा क्या है ?’ इसकी जानकारी होना जरूरी है। लगातार बुराई का प्रचार करना समाज के लिए घातक है। लोग उसे अपनाना शुरू कर देते हैं। संचार माध्यम बुरी घटनाओं को लगातार दिखाकर यह गलती कर रहे हैं। समाज में जो अच्छा है, उसे बार-बार दिखाना चाहिए ताकि लोगों का सकारात्मक दृष्टिकोण बने। लोग अच्छे काम करने के लिए कमर कसकर तैयार हो जाएँ।

(च) ठगा भी गया हूँ, धोखा भी खाया है, परंतु बहुत कम स्थलों पर विश्वासघात नाम की चीज मिलती है। केवल उन्हीं बातों का हिसाब रखो, जिनमें धोखा खाया है तो जीवन कष्टकर हो जाएगा, परंतु ऐसी घटनाएँ भी बहुत कम नहीं हैं जब लोगों ने अकारण सहायता की है, निराश मन को ढाँढ़स दिया है और हिम्मत बँधाई है। कविवर रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपने प्रार्थना गीत में भगवान से प्रार्थना की थी कि संसार में केवल नुकसान ही उठाना पड़े, धोखा ही खाना पड़े तो ऐसे अवसरों पर भी हे प्रभो! मुझे ऐसी शक्ति दो कि मैं तुम्हारे ऊपर संदेह न करूँ।

प्रश्न 1.
ठगे जाने और धोखा खाने पर भी क्या बहुत कम मिला है ?
उत्तर:
ठगे जाने और धोखा खाने पर भी बहुत कम स्थलों पर विश्वासघात मिला है।

प्रश्न 2.
जीवन कब कष्टकर हो जाता है ?
उत्तर:
यदि केवल उन्हीं बातों का हिसाब रखा जाए, जिनमें धोखा खाया था तो जीवन कष्टकर हो जाता है।

प्रश्न 3.
किस प्रकार की घटनाएँ पर्याप्त हुई हैं ?
उत्तर:
अकारण सहायता करने की और निराश मन को ढाँढ़स देने की घटनाएँ पर्याप्त हुई हैं।

प्रश्न 4.
कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अपने प्रार्थना गीत में कैसी शक्ति मांगी है ?
उत्तर:
कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अपने प्रार्थना-गीत में भगवान के ऊपर संदेह न करने की शक्ति माँगी है।

(छ) मनुष्य की बनाई विधियाँ गलत नतीजे तक पहुंच रही हैं तो इन्हें बदलना होगा। वस्तुतः आए दिन इन्हें बदला ही जा रहा है, लेकिन अब भी आशा की ज्योति बुझी नहीं है। महान भारतवर्ष को पाने की संभावना बनी हुई है, बनी रहेगी।

प्रश्न 1.
मनुष्य की बनाई विधियों के परिणाम गलत हों तो क्या करना चाहिए ?
उत्तर:
मनुष्य की बनाई विधियाँ गलत हों तो उन्हें बदल देना चाहिए।

प्रश्न 2.
आए दिन क्या किया जा रहा है ?
उत्तर:
आए दिन सफल न होने वाली विधियाँ बदली जा रही हैं।

प्रश्न 3.
अभी भी क्या आशा बनी हुई है ?
उत्तर:
अभी भी आशा बनी हुई है कि हम महान भारतवर्ष को फिर से प्राप्त कर लेंगे। पुराना गौरव लौट आएगा।

क्या निराश हुआ जाए Summary

पाठ का सार

हमारे समाज में बहुत-सी बुराइयाँ आ गई हैं, जिनके कारण चारित्रिक मूल्यों में गिरावट आ गई है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि सब कुछ खत्म हो गया और समाज में अच्छाई नहीं बची है। हर व्यक्ति को सन्देह की दृष्टि से देखा जा रहा है। दोष खोजने वाले दोषों को ही बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने में लगे हैं। इससे लगता है कि गुणी व्यक्ति कम हो गए हैं। यह स्थिति परेशान करने वाली है।

कभी संदेह होता है कि क्या यह वही भारत है, जिसका सपना तिलक और गांधी ने देखा था ? क्या आदर्शों का महासमुद्र भारत सूख गया ? वस्तुतः ऐसा सोचना सही नहीं है। यह सही है कि काम करके गुजारा करने वाला ईमानदार व्यक्ति आज परेशान है। मजदूर पिस रहे हैं। धोखे-बाज फल फूल रहे हैं। ईमानदार को लोग मूर्ख समझने लगे हैं। सच्चाई केवल डरपोक लोगों के हिस्से रह गई है।

भारत में संग्रह को महत्त्व नहीं दिया गया है। आंतरिक गुण को ही उत्तम माना गया है। लोभ-मोह आदि विचार हर आदमी में होते हैं, लेकिन इन्हें प्रधान गुण नहीं मान सकते। भारत में संयम को महत्त्व दिया गया। यह सब होने पर भूख या बीमारी की उपेक्षा नहीं की जा सकती। गुमराह को सही रास्ते पर लाना ही होगा। गरीबों का जीवन सुधारने के लिए जो कानून बनाए गए हैं, उनको लागू करने वाले लोग सच्चे मन से इस काम को नहीं कर रहे हैं। लोग कानून की कमजोरियों का लाभ उठाने में पीछे नहीं रहना चाहते चाहे वे धर्मभीरु ही हों।

ऊपरी वर्ग में चाहे जो हो रहा हो, भीतर-भीतर अब भी धर्म कानून से बड़ी चीज है। सेवा, ईमानदारी, सच्चाई कुछ दब जरूर गए हैं, पर नष्ट नहीं हुए हैं। झूठ-चोरी आज भी गलत माने जाते हैं। अखबारों में भ्रष्टाचार के प्रति आक्रोश का यही कारण है कि हम गलत आचरण को रोकना चाहते हैं। दोषों को सामने लाना अच्छी बात है; परंतु उतना ही जरूरी है अच्छी बातों को भी सामने लाना। अच्छाई को छुपाना और भी बुरा है।

लेखक ने रेलवे स्टेशन पर टिकट लेते हुए दस के बदले सौ का नोट दे दिया, जो टिकट देने वाले ने उनको वापस किया। बस खराब हो जाने पर जब एक बार ड्राइवर को पीटने पर भीड़ उतारु थी, लेखक ने उसे बचाया। तभी बस का कंडक्टर दुसरी ठीक बस लेकर आया, साथ ही लेखक के बच्चों के लिए दूध और पानी भी लेकर आया। इससे पता चलता है कि इंसानियत खत्म नहीं हुई है। धोखा-ठगी का भी सामना करना पड़ता है। पर हम निराश हो जाएं कि अच्छी बातें नहीं बचीं सही नहीं है। जीवन में अच्छा भी बहुत है और वह खत्म नहीं हुआ है।

शब्दार्थ : तस्करी-चोरी से लाया माल; आरोप-लांछन; प्रत्यारोप-आरोप के बदले आरोप; गह्वर-गड्ढा; मनीषी-विद्वान; माहौल-वातावरण; जीविका-रोटी-रोजी; निरीह-इच्छा से रहित, नम्र व शांत; श्रमजीवी-मजदूर; फ़रेब-धोखा; पर्याय–समान अर्थ वाला; भीरु-डरपोक; आंतरिक-भीतरी; विद्यमान-मौजूद; आचरण-चाल-चलन; संयम-नियंत्रण; गुमराह-भटका हुआ; दरिद्रजन-गरीब लोग; धर्मभीरु-अधर्म से डरने वाला; प्रमाण-सुबूत; आध्यात्मिकता-मन से संबंध रखने वाला; व्यक्तिगत-निजी; आक्रोश-विरोध, गुस्सा, चिल्लाहट; प्रतिष्ठा-इज्जत; पर्दाफाश-दोष प्रकट करना; दोषोद्घाटन-दोष प्रकट करना; उजागर-प्रकट करना; लुप्त-गायब; अवांछित-गलत, जिसकी चाह न हो; वंचना-धोखा; निर्जन-सुनसान; कातर-भयभीत, बेचैन; चेहरे पर हवाइयाँ उड़ना;-घबराना विश्वासघात-विश्वास तोड़ना; कष्टकर-कष्ट देने वाला; अकारण-बिना कारण के; गंतव्य-स्थान जहाँ किसी को जाना हो; ढाँढस-धीरज, दिलासा।

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NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 6 भगवान के डाकिये

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भगवान के डाकिये NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 6

Class 8 Hindi Chapter 6 भगवान के डाकिये Textbook Questions and Answers

कविता से

प्रश्न 1.
कवि ने पक्षी और बादल को भगवान के डाकिए क्यों बताया है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि ने पक्षी और बादल को डाकिए इसलिए कहा है, क्योंकि ये भगवान का संदेश हमें और पूरी प्रकृति को भेजते हैं।

प्रश्न 2.
पक्षी और बादल द्वारा लाई गई चिट्ठियों को कौन-कौन पढ़ पाते हैं ? सोचकर लिखिए।
उत्तर:
पक्षी और बादल द्वारा लाई गई चिट्ठियों को पेड़-पौधे, पानी और पहाड़ पढ़ पाते हैं।

प्रश्न 3. किन पंक्तियों का भाव है-
(क) पक्षी और बादल प्रेम, सद्भाव और एकता का संदेश एक देश से दूसरे देश को भेजते हैं।
(ख) प्रकृति देश-देश में भेदभाव नहीं करती। एक देश से उठा बादल दूसरे देश में बरस जाता है।
उत्तर:
(क) पक्षी और बादल
ये भगवान के डाकिए हैं,
जो एक महादेश से
दूसरे महादेश को जाते हैं।

(ख) और एक देश का भाप
दूसरे देश में पानी
बनकर गिराता है।

प्रश्न 4.
पक्षी और बादल की चिट्ठियों में पेड़-पौधे, पानी और पहाड़ क्या पढ़ पाते हैं ?
उत्तर:
पेड़-पौधे, पानी और पहाड़ भगवान का भेजा संदेश पक्षी और बादल द्वारा लाई गई चिट्ठियों में पढ़ पाते हैं। इन सबका जुड़ाव पक्षी और बादल के माध्यम से भगवान तक हो जाता है।

प्रश्न 5.
“एक देश की धरती दूसरे देश को सुगंध भेजती है।” कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
“एक देश का सद्भाव, एक देश की सकारात्मक सोच, प्यार की सुगन्ध, दूसरे देश तक पहुँच जाती है।” यही इस कथन का आशय है।

पाठ से आगे

प्रश्न 1.
पक्षी और बादल की चिट्ठियों के आदान-प्रदान को आप किस दृष्टि से देख सकते हैं ?
उत्तर:
पक्षी और बादल की चिट्ठियों के आदान-प्रदान को हम आपसी समझ, आत्मीयता एवं भ्रातृत्व-भाव के रूप में देख सकते हैं।

प्रश्न 2.
आज विश्व में कहीं भी संवाद भेजने और पाने का एक बड़ा साधन इंटरनेट है। पक्षी और बादल की चिट्ठियों की तुलना इंटरनेट से करते हुए दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर:
पक्षी और बादल की चिट्ठियाँ प्रकृति से जुड़ी हैं। इन चिट्ठियों को सिर्फ पेड़-पौधे, पानी और पहाड़ ही समझ सकते हैं। ये चिट्ठियाँ आम आदमी की समझ में नहीं आ सकती हैं। इंटरनेट चिट्ठियाँ भेजने का नवीनतम साधन है। इसके द्वारा पलक झपकते ही हमारा संदेश हजारों मील दूर चला जाता है। इस माध्यम से खर्च भी बहुत कम आता है। हमारे चित्र, हमारी आवाज और हमारी गतिविधियाँ, क्रियाकलाप सात समुन्दर पार जा सकते हैं। ये भेजे गए संदेश हमारे पास भी सुरक्षित रहते हैं। हम अपने भेजे गए संदेश को दुबारा देख भी सकते हैं। सैकड़ों पृष्ठों का जरूरी दस्तावेज पलभर में दूर देश को भेजा जा सकता है।

प्रश्न 3.
हमारे जीवन में डाकिए की भूमिका पर दस वाक्य लिखिए।
उत्तर:
हमारे जीवन में डाकिए का सर्वाधिक महत्त्व है। हमारे जरूरी दस्तावेज, पत्रिकाएँ, पार्सल डाकिया ही लेकर आता है। जिन लोगों के परिजन दूर शहरों में नौकरी करते हैं, वे अपने घरों को मनीऑर्डर द्वारा पैसा भेजते हैं; जो उनके लिए बहुत बड़ा सहारा है। इसे बहुत कम वेतन मिलता है। इसे गाँवों, जंगलों और दूर-दराज के पहाड़ी क्षेत्रों में भी जाना पड़ता है। डाकिए के साथ सभी का आपसी जुड़ाव है। शहरों में भी इसकी भागदौड़ कम नहीं है। इसे लोगों की जरूरी डाक कई-कई मंजिल चढ़कर देनी होती है। भयंकर गर्मी, कड़ाके की सर्दी एवं बरसात में भी यह निरंतर अपने काम को पूरा करता रहता है। कम्प्यूटर एवं ई-मेल का युग आने पर भी डाकिए का महत्त्व कम नहीं हुआ है।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
डाकिया, इंटरनेट के वर्ल्ड वाइड वेब (डब्ल्यू. डब्ल्यू. डब्ल्यू. WWW.) तथा पक्षी और बादल-इन तीनों संवादवाहकों के विषय में अपनी कल्पना से एक लेख तैयार कीजिए। “चिट्ठियों की अनूठी दुनिया” पाठ का सहयोग ले सकते हैं।
उत्तर:
इनके विषय में पर्याप्त जानकारी दी जा चुकी है। उसी के समावेश से छात्र लेख तैयार करें।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
www का अर्थ है-
(क) वर्ड वाइड वेब
(ख) वर्ल्ड वाइड वेव
(ग) वर्ल्ड वेब वाइड
(घ) वर्ल्ड वाइज वेब
उत्तर:
(ख) वर्ल्ड वाइड वेव

प्रश्न 2.
इन्टरनेट का पर्याय इनमें से कौन-सा शब्द होगा ?
(क) विश्वजाल
(ख) विश्व डाक
(ग) अन्तर्जाल
(घ) विश्वनेत्र
उत्तर:
(ग) अन्तर्जाल

प्रश्न 3.
इनमें से कौन-सा पक्षी और बादल की चिट्ठियाँ नहीं बांचता है ?
(क) पानी
(ख) पहाड़
(ग) पेड़
(घ) ट्रेन
उत्तर:
(घ) ट्रेन।

प्रश्न 4.
पानी बरसने से एकदम पहले उसका रूप होता है-
(क) भाप
(ख) हवा
(ग) आँधी
(घ) धूल
उत्तर:
(क) भाप।

प्रश्न 5.
जिनके पंख होते हैं, उन्हें पक्षी कहा जाता है; क्योंकि पंख शब्द बना है इनसे-
(क) पक्ष
(ख) पर
(ग) उड़ान
(घ) वायु
उत्तर:
पक्ष।

सप्रसंग व्याख्या

(क) पक्षी और बादल,
ये भगवान के डाकिए हैं,
जो एक महादेश से
दूसरे महादेश को जाते हैं
हम तो समझ नहीं पाते हैं।
मगर उनकी लाई चिट्ठियाँ ।
पेड़, पौधे, पानी और पहाड़ बाँचते हैं।

प्रसंग- उपर्युक्त पद्यांश भगवान के डाकिए’ पाठ से उद्धृत है। इसके रचयिता राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी हैं। ‘ दिनकर जी ने पक्षी और बादल को भगवान के डाकिए बताया है।

व्याख्या- कवि कहते हैं कि भगवान भी हमारे पास संदेश भेजते हैं। उस संदेश को भेजने के लिए पक्षी और बादल भगवान के डाकिए का काम करते हैं। भगवान किसी सीमा में नहीं बँधा रहता। इसी प्रकार भगवान के डाकिए पक्षी और बादल भी किसी क्षेत्र की सीमा में नहीं बँधे रहते हैं। ये एक महादेश से बेरोक-टोक दूसरे महादेश को जाते हैं। ये जिन चिट्ठियों को लेकर आते है, उन्हें हम नहीं समझ पाते लेकिन पेड़-पौधे, पानी और पहाड़ जरूर पढ़ लेते हैं। पेड़-पौधों को बादलों का पानी मिल जाता है। पहाड़, बादलों का रुख मोड़कर बारिश करा देते हैं। पक्षी बादलों के आने की सूचना दे देते हैं। ये सब एक-दूसरे के अधिक निकट हैं।

विशेष-

  1. ‘पेड़-पौधे, पानी’ में अनुप्रास अलंकार है।
  2. कवि ने पक्षी और बादल को संदेशवाहक के रूप में चित्रित दिया है।

(ख) हम तो केवल यह आँकते हैं
कि एक देश की धरती
दूसरे देश को सुगंध भेजती है।
और वह सौरभ हवा में तैरते हुए
पक्षियों की पाँखों पर तिरता है।
और एक देश का भाप
दूसरे देश में पानी
बनकर गिरता है।

प्रसंग- ये काव्य-पंक्तियाँ ‘भगवान के डाकिए’ पाठ से ली गई हैं। इनके कवि श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी हैं। कवि ने इन पंक्तियों में ‘पूरी धरती अपना परिवार है’ का संदेश दिया है। हम खुद विभाजित होते हैं। प्रकृति हमें सदा जोड़कर ही रखती है।

व्याख्या- कवि कहते हैं कि हम यह अनुमान लगाते हैं कि किस प्रकार एक देश की धरती दूसरे देश को चुपचाप खुशबू भेजती है। जो पक्षी आकाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर तैरते हुए जाते हैं; वे अपने पंखों पर एक स्थान की खुशबू को दूसरे स्थान तक तैराकर ले जाते हैं। एक स्थान पर जो पानी भाप बन जाता है, वह उड़कर दूसरे देश में पहुँच जाता है और बादल बनकर बरस पड़ता है। इस प्रकार बादल दो देशों की तुच्छ सीमा में विभाजित नहीं होता। वह इस तुच्छ भेदभाव से ऊपर उठकर जीवन जीता है।

विशेष-

  1. इन पंक्तियों में ‘माता भूमि पुत्रोऽहं पृथिव्याः’ का उद्घोष सुनाई पड़ता है।
  2. कवि वर्तमान भौगोलिक संकीर्णता को स्वीकार नहीं करता है।

भगवान के डाकिये Summary

पाठ का सार

राष्ट्रकवि दिनकर जी ने पक्षी और बादल को भगवान के डाकिए कहा है। जिस प्रकार डाकिए संदेश पहुँचाने का काम करते हैं, उसी प्रकार पक्षी और बादल भी एक महादेश का संदेश दुसरे महादेश तक पहुँचाते हैं। हम इनके लाए संदेशों को नहीं समझ पाते; परंतु पेड़-पौधे, पानी और पहाड़ भली-प्रकार समझकर बाँच लेते हैं। एक देश की धरती दूसरे देशों को जो खुशबू का पैगाम भेजती है, वह इनके पंखों पर तैरकर जाता है। जो भाप एक देश में बनती है, वह बिना किसी भेदभाव के दूसरे देश की धरती पर पानी बनकर बादलों से बरसती है।

शब्दार्थ : महादेश-महाद्वीप, विशाल देश; बाँचते हैं-वाचन करते हैं, बोल-बोलकर पढ़ते हैं; आँकते हैं-अंदाज लगाते हैं, अनुमान करते हैं; पाँख-पंख; सौरभ-सुगन्ध ।

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NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 5 चिट्ठियों की अनूठी दुनिया

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चिट्ठियों की अनूठी दुनिया NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 5

Class 8 Hindi Chapter 5 चिट्ठियों की अनूठी दुनिया Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
पत्र जैसा संतोष फोन या एस.एम.एस. का संदेश क्यों नहीं दे सकता ?
उत्तर:
फोन या एस.एम.एस. के द्वारा बात संक्षेप में कही जाती है। इनके द्वारा हृदय की पूरी बात नहीं कही जा सकती। पत्र में मन की गहन भावनाएँ प्रभावशाली ढंग से प्रकट की जा सकती हैं। फोन या एस.एम.एस. की बात सहेजकर रखना कठिन है; जबकि पत्रों को वर्षों तक सहेजकर रखा जा सकता है। यही कारण है कि पत्र जैसा संतोष फोन या एस.एम.एस. नहीं दे सकते।

प्रश्न 2.
पत्र को खत, कागज़, उत्तरम्, जाबू, लेख काडिद, पाती, चिट्ठी इत्यादि कहा जाता है। इन शब्दों से संबंधित भाषा के नाम बताइए।
उत्तर:
शब्द – संबंधित भाषा
कागद – कन्नड़
लेख – तेलुगु
जाबू – तेलुगु
उत्तरम् – तेलुगु
काडिद – तमिल
पाती – हिन्दी
चिट्ठी – हिन्दी
पत्र – संस्कृत
खत – उर्दू

प्रश्न 3.
पत्र-लेखन की कला के विकास के लिए क्या-क्या प्रयास हुए ? लिखिए।
उत्तर:
पत्र-लेखन की कला के विकास के लिए पत्र-लेखन को स्कूली पाठ्यक्रम में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया। 1972 से विश्व डाक संघ ने 16 वर्ष से कम आयुवर्ग के बच्चों के लिए प्रतियोगिताओं का आयोजन किया, जिसमें पत्र-लेखन को शामिल करके महत्त्वपूर्ण कार्य किया। इन प्रयासों से पत्र-लेखन कला के विकास के लिए प्रयास हुआ।

प्रश्न 4.
पत्र धरोहर हो सकते हैं लेकिन एस.एम.एस. क्यों नहीं ? तर्क सहित अपना विचार लिखिए।
उत्तर:
पत्र अपने समय के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज का काम करते हैं। कुछ इन्हें सहेजकर रखते हैं। गांधी जी, नेहरू जी, टैगोर आदि के पत्र अपने समय को महत्त्वपूर्ण दस्तावेज हैं। लिखित रूप होने के कारण उस समय के यादगार पलों एवं विचारों को धरोहर की तरह संजोकर रखना कठिन नहीं है। एस.एम.एस. काम-चलाऊ, संदेश भर है। इनमें पत्रों जैसी गम्भीरता एवं गहराई नहीं होती और न ही इन्हें लम्बे समय तक संजोकर रखा जा सकता है। ये क्षणिक होते हैं।

प्रश्न 5.
क्या चिट्ठियों की जगह कभी फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन या मोबाइल ले सकते हैं? कारण सहित बताइए।
उत्तर:
चिट्ठियों की जगह कभी फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन या मोबाइल नहीं ले सकते हैं। कारण, इनसे दैनिक कामकाज निपटाया जा सकता है। इनमें अपनेपन का वह समावेश नहीं हो सकता जो चिट्ठी में मौजूद होता है। चिट्ठियों को लोग संभालकर रखते हैं। फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन और मोबाइल की भूमिका संदेश देने के बाद खत्म हो जाती है। प्रभावशाली पत्रों के संकलन गंभीर साहित्य के रूप में मौजूद हैं।

प्रश्न 6.
किसी के लिए बिना टिकट सादे लिफाफे पर सही पता लिखकर पत्र बैरंग भेजने पर कौन-सी कठिनाई आ सकती है ? पता कीजिए।
उत्तर:
बैरंग पत्र बिना डाक टिकट के लिखे पते पर चला जाएगा, लेकिन पाने वाले को निर्धारित टिकटों के मूल्य का दुगुना भुगतान करना पड़ेगा। उसके मना करने पर भेजने वाले को दण्डस्वरूप निर्धारित राशि का भुगतान करना पड़ेगा। जब भी कोई डाक भेजी जाए, उस पर तय मूल्य के टिकट जरूर लगाए जाएँ।

प्रश्न 7.
पिन कोड भी संख्याओं में लिखा गया एक पता है, कैसे ?
उत्तर:
पिन कोड उस क्षेत्र के डाकघर की स्थिति को सूचित करता है, जहाँ डाक जाएगी। इसे पूरा पता नहीं कह सकते। जैसे 110089 पिनकोड में 11 दिल्ली का संकेत है। 89 रोहिणी सेक्टर-17 का संकेत है। इससे केवल वितरण करने वाले डाकघर तक चिट्ठी की पहुँच हो जाती है। व्यक्ति तक पहुँचने के लिए चिट्ठी पर व्यक्ति के नाम के साथ पूरा पता होना जरूरी है।

प्रश्न 8.
ऐसा क्यों होता था कि महात्मा गांधी को दुनिया भर से पत्र ‘महात्मा गाँधी-इंडिया’ पता लिखकर आते थे?
उत्तर:
महात्मा गांधी बहुत लोकप्रिय व्यक्ति थे। वे जहाँ भी जाते थे, सबको पता रहता था। अतः कोई पत्र कहीं से भी क्यों न आया हो, उन तक जरूर पहुँच जाता था।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता ‘भगवान के डाकिए’ आपकी पाठ्य-पुस्तक में है। उसके आधार पर पक्षी और बादल को डाकिए की भाँति मानकर अपनी कल्पना से लेख लिखिए।
उत्तर:
‘डाकिये’ का काम संदेश ले जाना होता है। पक्षी और बादल दोनों ही संदेश ले जाने का काम करते हैं। दूर-दूर से आए पक्षी मानो कोई संदेश लेकर आए हों। बादल, पेड़-पौधों एवं पूरी प्रकृति के लिए खुशहाली का संदेश लेकर आते हैं। पानी बरसाकर बादल पूरी प्रकृति में हरियाली भर देते हैं।

प्रश्न 2.
संस्कृत साहित्य के महाकवि कालिदास ने बादल को संदेशवाहक बनाकर ‘मेघदूत’ नाम का काव्य लिखा है। ‘मेघदूत’ के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
मेघदूत संस्कृत भाषा के महाकवि कालिदास की महत्त्वपूर्ण काव्य-रचना है। कुबेर ने अलकापुरी से यक्ष को निर्वासित कर दिया था। निर्वासित यक्ष बादल के माध्यम से अपनी प्रेमिका के पास संदेश भेजता है। कवि ने प्रकृति के विभिन्न रूपों का वर्णन करते हुए यक्ष की विरह-वेदना का मार्मिक चित्रण किया है। मेघदूत पर संस्कृत में लगभग 50 टीकाएँ लिखी गईं। इसका संसार की सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

प्रश्न 3.
पक्षी को संदेशवाहक बनाकर अनेक कविताएँ एवं गीत लिखे गए हैं। एक गीत है ‘जा-जा रे कागा विदेशवा, मेरे पिया से कहियो संदेशवा’। इस तरह के तीन गीतों का संग्रह कीजिए। प्रशिक्षित पक्षी के गले में पत्र बाँधकर निर्धारित स्थान तक पत्र भेजने का उल्लेख मिलता है। मान लीजिए आपको एक पक्षी को संदेशवाहक बनाकर पत्र भेजना हो तो आप वह पत्र किसे भेजना चाहेंगे और उसमें क्या लिखना चाहेंगे ?
उत्तर:
एक राजस्थानी लोकगीत की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं-
उड़ उड़ रे उड़ उड़ रे
उड़ उड़ रे उड़ उड़ रे
उड़ उड़ रे म्हारा, काल्ला रे कागला
कद म्हारा पीब्जी घर आवे
कद म्हारा पीजी घर आवे, आवे रे आवे
कद म्हारा पीब्जी घर आवे
उड़ उड़ रे म्हारा काल्ला रे कागला
कद म्हारा पीब्जी घर आवे
खीर खांड रा जीमण जीमाऊँ
सोना री चौंच मंढाऊ कागा
जद म्हारा पीब्जी घर आवे, आवे रे आवे
उड़ उड़ रे उड़ उड़ रे
म्हारा काल्ला रे कागला
कद म्हारा पीजी घर आवे
पगला में थारे बांधू रे घुघरा
गला में हार कराऊँ कागा
जद महारा पीब्जी घर आवे
उड़ उड़ रे
म्हारा काल्ला रे कागला
कद म्हारा पीजी घर आवे
उड़ उड़ रे म्हारा काला रे कागला
कद म्हारा पीब्जी घर आवे
जो तू उड़ने सुगन बतावे
जनम जनम गुण गाऊँ कागा
जद म्हारा पीब्जी घर आवे, आवे रे आवे
जद म्हारा पीजी घर आवे।

वह पत्र में अपने मित्र हिमेश को भेजना चाहूँगा। मैं उस पत्र में हिमेश के साथ बिताए पाँच वर्षों का जिक्र करूँगा। हम दोनों मित्र किस प्रकार स्कूल में मिल-जुलकर खेलते थे, पढ़ाई करते थे। हमारे माता-पिता भी हमारी मित्रता को खूब सराहते थे। मैं आज भी हिमेश को बहुत याद करता हूँ, क्योंकि उस जैसा सरल हृदय वाला मित्र मिलना इस संसार में कठिन है।

प्रश्न 4.
केवल पढ़ने के लिए दी गई रामदरश मिश्र की कविता ‘चिट्ठियाँ’ को ध्यानपूर्वक पढ़िए और विचार कीजिए कि क्या यह कविता केवल लेटर बॉक्स में पड़ी निर्धारित पते पर जाने के लिए तैयार चिट्ठियों के बारे में है ? या रेल के डिब्बे में बैठी सवारी भी उन्हीं चिट्ठियों की तरह हैं जिनके पास उनके गंतव्य तक का टिकट है। पत्र के पते की तरह और क्या विद्यालय भी एक लेटर बॉक्स की भाँति नहीं है जहाँ से उत्तीर्ण होकर विद्यार्थी अनेक क्षेत्रों में चले जाते हैं ? अपनी कल्पना को पंख लगाइए और मुक्त मन से इस विषय में विचार-विमर्श कीजिए।

चिट्ठियाँ

लेटरबक्स में पड़ी हुई चिट्ठियाँ
अनंत सुख-दुख वाली अनंत चिट्ठियाँ
लेकिन कोई किसी से नहीं बोलती
सभी अकेले-अकेले
अपनी मंजिल पर पहुँचने का इंतजार करती हैं।

कैसा है यह एक साथ होना
दूसरे के साथ हँसना न रोना
क्या हम भी
लेटर बॉक्स की चिट्ठियाँ हो गए हैं।

-रामदरश मिश्र

उत्तर:
रामदरश मिश्र जी की इस कविता में विचार किया गया है कि यदि हम आपस में बातचीत नहीं करते हैं, एक-दूसरे का सुख-दुख नहीं बाँटते हैं तो हमारी हालत भी लेटरबक्स पड़ी चिहियों जैसी ही हो जाएगी विद्यालय भी लेटरबॉक्स की ही भाँति है, जहाँ से विद्यार्थी पढ़कर अनेक क्षेत्रों में चले जाते हैं। फिर सबका मिलना एकदम असंभव जैसा हो जाता है।
शायर निदा फाजली ने कुछ ऐसा ही कहा है-
‘सीधा-सादा डाकिया, जादू करे महान।
एक ही थैले में भरे, आँसू और मुस्कान ॥’

भाषा की बात

प्रश्न 1.
किसी प्रयोजन विशेष से संबंधित शब्दों के साथ पत्र शब्द जोड़ने से कुछ नए शब्द बनते हैं, जैसे-प्रशस्ति-पत्र, समाचार-पत्र। आप भी पत्र के योग से बनने वाले दस शब्द लिखिए।
उत्तर:
NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 5 चिट्ठियों की अनूठी दुनिया 1

प्रश्न 2.
‘व्यापारिक’ शब्द व्यापार के साथ ‘इक’ प्रत्यय के योग से बना है। इक प्रत्यय के योग से बनने वाले शब्दों को अपनी पाठ्य-पुस्तक से खोजकर लिखिए।
उत्तर:
प्रासंगिक, आंचलिक, शैक्षिक, स्वाभाविक, सांस्कृतिक, आर्थिक, पारिवारिक, सामाजिक, चारित्रिक, भौतिक, प्रारम्भिक।

प्रश्न 3.
दो स्वरों के मेल से होने वाले परिवर्तन को स्वर संधि कहते हैं; जैसे-रवीन्द्र = रवि + इन्द्र । इस संधि में इ + इ = ई हुई है। इसे दीर्घ संधि कहते हैं। दीर्घ स्वर संधि के और उदाहरण खोजकर लिखिए। मुख्य रूप से स्वर संधियाँ चार प्रकार की मानी गई हैं-दीर्घ, गुण, वृद्धि और यण।
ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ के बाद ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, आ आए तो ये आपस में मिलकर क्रमशः दीर्घ आ, ई, ऊ हो जाते हैं, इसी कारण इस संधि को दीर्घ संधि कहते हैं; जैसे-संग्रह + आलय = संग्रहालय, महा + आत्मा = महात्मा।
इस प्रकार के कम-से-कम दस उदाहरण खोजकर लिखिए और अपनी शिक्षिका/शिक्षक को दिखाइए।
उत्तर:
NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 5 चिट्ठियों की अनूठी दुनिया 2

अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
नेहरू जी अपनी पुत्री इंदिरा गाँधी को फोन करते तो क्या होता ?
उत्तर:
नेहरू जी अपनी पुत्री इंदिरा गाँधी को फोन करते तो ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम’ जैसी करोड़ों लोगों को प्रेरणा देने वाली पुस्तक न तैयार होती।

प्रश्न 2.
अंग्रेज अफसरों ने अपने परिवारजनों को जो पत्र लिखे, उनसे क्या साबित होता है ?
उत्तर:
अंग्रेज अफसरों ने जो पत्र अपने परिवारजनों को लिखे, उनसे सिद्ध होता है कि आजादी का संग्राम जमीनी मजबूती लिये हुए था।

प्रश्न 3.
लेखक ने पत्रों का जादू किसे कहा है ?
उत्तर:
कुछ लोग पत्रों को फ्रेम कराकर रखते हैं। पत्रों के आधार पर कई भाषाओं में बहुत-सी किताबें लिखी जा चुकी हैं। लेखक ने इसे पत्रों का जादू कहा है।

प्रश्न 4.
निराला के पत्रों का क्या नाम है ?
उत्तर:
निराला जी के पत्रों का नाम ‘हमको लिख्यो है कहा।’ है।

प्रश्न 5.
महर्षि दयानंद से जुड़ी पत्रों की पुस्तक का क्या नाम है ?
उत्तर:
महर्षि दयानन्द से जुड़ी पत्रों की पुस्तक का नाम है- ‘पत्रों के आईने में दयानन्द सरस्वती।’

प्रश्न 6.
मनीऑर्डर अर्थव्यवस्था का आधार किस प्रकार है ?
उत्तर:
दूर देहात में रहने वाले लोगों के परिचित मनीऑर्डर द्वारा पैसा भेजते हैं तब जाकर चूल्हे जलते हैं। अतः मनीऑर्डर को अर्थव्यवस्था का आधार कहा गया है।

बोध-प्रश्न

निम्नलिखित अवतरणों को पढ़िए और अन्त में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(क) पिछली शताब्दी में पत्र-लेखन ने एक कला का रूप ले लिया। डाक व्यवस्था के सुधार के साथ पत्रों को सही दिशा देने के लिए विशेष प्रयास किए गए। पत्र संस्कृति विकसित करने के लिए स्कूली पाठ्यक्रमों में पत्र-लेखन का विषय भी शामिल किया गया। भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में ये प्रयास चले और विश्व डाक संघ ने अपनी ओर से भी काफी प्रयास किए। विश्व डाक संघ की ओर से 16 वर्ष से कम आयुवर्ग के बच्चों के लिए पत्र-लेखन प्रतियोगिताएँ आयोजित करने का सिलसिला सन् 1972 से शुरू किया। यह सही है कि खास तौर पर बड़े शहरों और महानगरों में संचार साधनों के तेज विकास तथा अन्य कारणों से पत्रों की आवाजाही प्रभावित हुई है, पर देहाती दुनिया आज भी चिट्ठियों से ही चल रही है। फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल ने चिट्ठियों की तेजी को रोका है, पर व्यापारिक डाक की संख्या लगातार बढ़ रही है।

प्रश्न 1.
पत्र-लेखन ने कला का रूप कब लिया ?
उत्तर:
पत्र-लेखन ने पिछली शताब्दी में कला का रूप लिया।

प्रश्न 2.
पत्र-संस्कृति के प्रोत्साहन के लिए क्या कार्य किया गया ?
उत्तर:
पत्र-संस्कृति के प्रोत्साहन के लिए स्कूली पाठ्यक्रम में पत्र-लेखन को एक विषय के रूप में शामिल किया गया।

प्रश्न 3.
विश्व डाक संघ ने पत्र-लेखन को कैसे प्रोत्साहित किया ?
उत्तर:
विश्व डाक संघ ने 1972 से पत्र-लेखन प्रतियोगिताओं को आयोजित करना शुरू किया। इससे पत्र-लेखन को प्रोत्साहन मिला। यह प्रतियोगिता 16 वर्ष से कम आयु वर्ग के लिए है।

प्रश्न 4.
चिट्ठियों की तेजी को किन साधनों ने रोका है ?
उत्तर:
चिट्ठियों की तेजी से फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल ने रोका है।

(ख) पत्र-व्यवहार की परंपरा भारत में बहुत पुरानी है। पर इसका असली विकास आजादी के बाद ही हुआ है। तमाम सरकारी विभागों की तुलना में सबसे ज्यादा गुडविल डाक विभाग की ही है। इसकी एक खास वजह यह भी है कि यह लोगों को जोड़ने का काम करता है। घर-घर तक इसकी पहुँच है। संचार के तमाम उन्नत साधनों के बाद भी चिट्ठी-पत्री की हैसियत बरकरार है। शहरी इलाकों में आलीशान हवेलियाँ हों या फिर झोपड़पट्टियों में रह रहे लोग, दुर्गम जंगलों से घिरे गाँव हों या फिर बर्फबारी के बीच जी रहे पहाड़ों के लोग, समुद्र तट पर रह रहे मछुआरे हों या फिर रेगिस्तान की ढाँणियों में रह रहे लोग, आज भी खतों का ही सबसे बेसब्री से इंतजार होता है। एक दो नहीं, करोड़ों लोग खतों और अन्य सेवाओं के लिए रोज भारतीय डाकघरों के दरवाजों तक पहुँचते हैं और इसकी बहुआयामी भूमिका नजर आ रही है। दूर देहात में लाखों गरीब घरों में चूल्हे मनीऑर्डर अर्थव्यवस्था से ही जलते हैं। गाँवों या गरीब बस्तियों में चिट्ठी या मनीऑर्डर लेकर पहुँचने वाला डाकिया देवदूत के रूप में देखा जाता है।

प्रश्न 1.
पत्र-व्यवहार की परंपरा का असली विकास कब हुआ ?
उत्तर:
पत्र-व्यवहार की परंपरा का असली विकास आजादी के बाद हुआ।

प्रश्न 2.
डाक विभाग की सबसे ज्यादा गुडविल क्यों हैं ?
उत्तर:
डाक विभाग की सबसे ज्यादा गुडविल इसलिए है, क्योंकि यह लोगों को जोड़ने का काम करता है। घर-घर तक इसकी पहुँच है। तमाम उन्नत साधनों के बावजूद चिट्ठी की हैसियत बरकरार है।

प्रश्न 3.
आज भी खतों का बेसब्री से इन्तजार कौन-कौन लोग करते हैं ?
उत्तर:
आलीशान हवेलियों, झोपड़पट्टियों, दुर्गम जंगलों से घिरे गाँवों, बर्फबारी के बीच जी रहे पहाड़ी लोग, समद्री तट पर रह रहे मछुआरे, रेगिस्तान के अस्थायी निवास में रहने वाले लोग-सभी खतों का बेसब्री से इंतजार करते हैं।

प्रश्न 4.
गाँव में डाकिए को देवदूत के रूप में क्यों देखा जाता है ?
उत्तर:
दूर-देहात में लाखों गरीब घरों के चूल्हे मनीऑर्डर की व्यवस्था से ही जलते हैं। इसलिए चिट्ठी और मनीऑर्डर लेकर वहाँ पहुँचने वाले डाकिये को देवदूत के रूप में देखा जाता है।

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया Summary

पाठ का सार

इस पाठ में संवाद माध्यमों के विकास एवं उपयोग को रोचक ढंग से समझाया गया है। पत्र का स्थान कोई और माध्यम नहीं ले सकता। पत्र जैसा संतोष फोन, एस.एम.एस नहीं दे सकते। साहित्य, कला एवं राजनीति की दुनिया में पत्रों का महत्त्व बहुत है। मानव-सभ्यता के विकास में पत्रों की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता। पत्र को उर्दू में खत, कन्नड़ में कागद, तेलुगु में उत्तरम जाबू और लेख, तमिल में कडिद और संस्कृत में पत्र कहा जाता है। दुनिया में रोज करोड़ों पत्र लिखे जाते हैं। भारत में ही करीब साढ़े चार करोड़।

पिछली शताब्दी में पत्र-लेखन ने कला का रूप ले लिया। स्कूली पाठ्यक्रम में पत्र-लेखन एक अलग विधा के तौर पर शामिल है। विश्व डाक संघ द्वारा 16 वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों के लिए पत्र-लेखन प्रतियोगिताएँ शुरू की गईं। देहाती दुनिया तमाम उन्नति के बावजूद आज भी पत्रों पर निर्भर है। फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल ने चिट्ठियों की तेजी को रोका है। सीमा पर तैनात सैनिकों के लिए पत्र सबसे महत्त्वपूर्ण सम्पर्क माध्यम है।

आज देश में पत्रकारों, राजनीतिज्ञों, साहित्यकारों, समाजसेवकों द्वारा एक-दूसरे को लिखे गए पत्र महत्त्वपूर्ण साहित्य की श्रेणी में आ गए हैं। पंडित नेहरू के इंदिरा गाँधी को लिखे पत्र, गाँधी जी द्वारा लिखे गए पत्र बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। गाँधी जी पत्रोत्तर तुरंत देते थे, अतः उनके लिखे पत्र गाँव-गाँव में मिल जाते हैं। ये पत्र किसी ऐतिहासिक दस्तावेज से कम नहीं। पंत, निराला और दयानंद सरस्वती के पत्र मिल जाएँगे। प्रेमचन्द युवा लेखकों को प्रेरक पत्र लिखा करते थे। ‘महात्मा और कवि’ नाम से गाँधी जी और टैगोर के बीच हुआ 1915 से 1941 का पत्राचार मौजूद है। इन पत्रों में नए तथ्य उजागर हुए हैं। डाक-विभाग लोगों को जोड़ने का काम करता है। हर वर्ग के लोग पत्रों के माध्यम से जुड़े हैं। दूर-देहात में लाखों गरीब घरों में चूल्हे मनीऑर्डर अर्थव्यवस्था से ही जलते हैं। इन लोगों के लिए डाकिया किसी देवदूत से कम नहीं।

शब्दार्थ : अजीबो-गरीब-अनोखी; संचार-गमन; आधुनिकतम-सबसे आधुनिक; एस.एम.एस.-शॉर्ट मैसेज सर्विस (लघु संदेश सेवा); विवाद-बहस, झगड़ा; अनूठी-अनोखी, विशेष; साबित करती-प्रमाणित करती; अहमियत-महत्त्व संवाद-बातचीत; प्रयास-कोशिश; बेसब्री-बैचेनी, व्याकुलता; परिवहन-माल, यात्रियों आदि को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना; पुरखों-पूर्वजों; विरासत-उत्तराधिकार में मिली वस्तु; उद्यमी-व्यवसाय करने वाले धरोहर-थाती, अमानत; हस्तियों-विशेष व्यक्तियों; साबित-प्रमाणित; दिग्गज-बहुत बड़े जोड़-मुकाबला; प्रशस्ति-पत्र-प्रशंसा-पत्र; प्रेरक-प्रेरणा देने वाले मुस्तैद-नियमित; मनोदशा-मन की स्थिति; तथ्य-सच्चाई; हैसियत-वजूद, अस्तित्त्व; बरकरार-मौजूद; आलीशान-शानदार; दस्तावेज-प्रमाण संबंधी कागजात; ढाणियाँ-अस्थायी निवास; बहुआयामी-अधिक विस्तार वाला; देवदूत-देवता का दूत।

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Hindi NCERT Solutions Class 8

NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 4 दीवानों की हस्ती

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दीवानों की हस्ती NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 4

Class 8 Hindi Chapter 4 दीवानों की हस्ती Textbook Questions and Answers

कविता से

प्रश्न 1.
कवि ने अपने आने को ‘उल्लास’ और जाने को ‘आँसू बनकर बह जाना’ क्यों कहा है ?
उत्तर:
मनमौजी व्यक्ति नए स्थान पर पहुंचकर उल्लास से भर जाता है। इसी उल्लास के कारण उसकी सबसे आत्मीयता स्थापित हो जाती है। जब उसे वहाँ से चलना पड़ता है तब उसी अपनेपन के कारण आँखों से आँसू उमड़ पड़ते हैं। विदाई के समय मन दुखी हो ही जाता है।

प्रश्न 2.
भिखमंगों की दुनिया में बेरोक प्यार लुटाने वाला कवि ऐसा क्यों कहता है कि वह अपने हृदय पर असफलता का एक निशान भार की तरह लेकर जा रहा है ? क्या वह निराश है या प्रसन्न है ?
उत्तर:
कवि ने दुनिया के लिए अपना प्यार लुटाया। उसे प्यार के बदले में प्यार नहीं मिला। वह इसे अपनी असफलता समझता है। उसने दुनिया को इसीलिए भिखारी कहा। भिखारी केवल वह होता जो लेता है, परंतु बदले में देता कुछ नहीं, कवि निराश है। अगर उसे प्यार के बदले थोड़ा भी प्यार मिल जाता तो वह प्रसन्न हो जाता।

प्रश्न 3.
कविता में ऐसी कौन-सी बात है जो आपको सबसे अच्छी लगी ?
उत्तर:
कवि का जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण है। वह जीवन के सुख-दुख में समान रूप से रहने को महत्त्व देता है। उसे संसार से कुछ न मिले, वह तब भी प्रसन्न है। वह संसार को देने में विश्वास करता है।

 

कविता से आगे

प्रश्न 1.
जीवन में मस्ती होनी चाहिए, लेकिन कब मस्ती हानिकारक हो सकती है ? सहपाठियों के बीच चर्चा कीजिए।
उत्तर:
मस्ती यदि किसी के कार्य या जीवन जीने के तरीकों को नुकसान पहुँचाती है तो गलत है। मस्ती का अर्थ है-खुद खुश रहना और दूसरों को खुशी देना। पीड़ा देना मस्ती से जीने वालों का काम नहीं है।

अनुमान और कल्पना- एक पंक्ति में कवि ने यह कहकर अपने अस्तित्त्व को नकारा है कि “हम दीवानों की क्या हस्ती, है आज यहाँ, कल वहाँ चले।” दूसरी पंक्ति में उसने यह कहकर अपने अस्तित्त्व को महत्त्व दिया है कि “मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले।” यह फाकामस्ती का उदाहरण है। अभाव में भी खुश रहना फाकामस्ती कही जाती है। कविता में इस प्रकार की अन्य पंक्तियाँ भी हैं। उन्हें ध्यानपूर्वक पढ़िए और अनुमान लगाइए कि कविता में परस्पर विरोधी बातें क्यों की गई हैं ?

परस्पर विरोधी पंक्तियाँ-

आए बनकर उल्लास अभी
आँसू बनकर बह चले अभी
इन पंक्तियों में ‘उल्लास’ और ‘आँसू’ परस्पर विरोधी भाव दर्शाने वाली पंक्तियाँ हैं।
हम भिखमंगों की दुनिया में
स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले,
हम एक निशानी-सी उर में
ले असफलता का भार चले।

‘प्यार लुटाना’ और ‘असफलता का भार’ परस्पर विरोधी भाव हैं।
कविता में लगता है कि परस्पर विरोधी बातें की गई हैं। सच्चाई यह है कि मनमौजी आदमी प्यार लुटाता है, उसे प्यार मिला या नहीं मिला; उसकी चिन्ता नहीं करता। रही बात उल्लास के बाद आँसू की, यह उदार व्यक्ति की अपनी विशेषता है कि वह सबसे आत्मीयता स्थापित कर लेता है।

भाषा की बात- संतुष्टि के लिए कवि ने ‘छककर’ ‘जी भरकर’ और ‘खुलकर’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया है। इसी भाव को व्यक्त करने वाले कुछ और शब्द सोचकर लिखिए, जैसे-हँसकर, गाकर।
मचलकर-उमगकर
मुस्कराकर-गुनगुनाकर
खिलखिलाकर-चहककर

बोध-प्रश्न

निम्नलिखित अवतरणों को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(क) हम दीवानों की क्या हस्ती,
हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले,
मस्ती का आलम साथ चला,
हम धूल उड़ाते जहाँ चले।
आए बनकर उल्लास अभी,
आँसू बनकर बह चले अभी,
सब कहते ही रह गए, अरे,
तुम कैसे आए, कहाँ चले ?

प्रश्न 1.
‘दीवानों’ किस प्रकार के व्यक्तियों को कहा गया है ?
उत्तर:
जो व्यक्ति अपने मन के अनुसार काम करने वाला हो, सदा प्रसन्न रहने वाला हो; उसे मनमौजी कहा गया है।

प्रश्न 2.
धूल उड़ाकर चलने से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
धूल उड़ाकर चलने से तात्पर्य है-मस्ती में डूबकर चलना। रास्ते पर चलते हुए आनंदित होकर आगे बढ़ना।

प्रश्न 3.
ये दीवाने ‘उल्लास’ और ‘आँसू’ की स्थिति में कब-कब पहुँचे ?
उत्तर:
ये दीवाने दूसरों को प्रसन्न देखकर तुरंत खुश हो जाते हैं। प्रत्येक दुखी व्यक्ति से तुरंत आत्मीयता स्थापित कर . द्रवित हो जाते हैं।

प्रश्न 4.
‘अरे, तुम कैसे आए, कहाँ चले ?’ का भाव किस परिस्थिति की ओर संकेत करता है ?
उत्तर:
बिछुड़ते समय तुरंत आँखों से आँसू वहने लगते हैं। संवेदनशील और भावुक होने के कारण ये दोनों स्थितियों से तुरंत प्रभावित होते हैं।

(ख) किस ओर चले ? यह मत पूछो,
चलना है, बस इसलिए चले।
जग से उसका कुछ लिए चले,
जग को अपना कुछ दिए चले।
दो बात कही, दो बात सुनी,
कुछ हँसे और फिर कुछ रोए।
छककर सुख-दुख के घूटों को,
हम एक भाव से पिए चले।

प्रश्न 1.
मनमौजी व्यक्ति किस ओर चलता है ?
उत्तर:
मनमौजी व्यक्ति कब, किधर चल देगा; इस बात का पता करना कठिन होता है। जब और जहाँ चलने के लिए उसका मन होता है, वह चल पड़ता है।

प्रश्न 2.
मनमौजी व्यक्ति संसार से क्या लेता है और बदले में क्या देता है ?
उत्तर:
मनमौजी व्यक्ति संसार से केवल उसका दुख लेता है या बाँटता है। उससे जितना संभव होता है; संसार को उतनी खुशी प्रदान करता है।

प्रश्न 3.
मनमौजी व्यक्ति हँसने और रोने की स्थिति में कैसे पहुँचता है ?
उत्तर:
मनमौजी व्यक्ति दूसरों के दुख देखकर रो पड़ता है और दूसरे लोगों को खुशी देकर हँस पड़ता है। वह दूसरों के सुख में अपने को सुखी महसूस करता है।

प्रश्न 4.
‘छककर सुख-दुख को पीने’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
सुख-दुख को छककर पीने का अर्थ है-दोनों ही परिस्थितियों में आनंद महसूस करना। सुख-दुख दोनों ही जीवन की सच्चाई हैं, इसे भली-भाँति समझना ही आनंद है।

प्रश्न 5.
एक भाव से पीना किसे कहते हैं?
उत्तर:
चाहे सुख आएँ, चाहे दुख आएँ, दोनों स्थितियों में सामान्य रहना ही एक भाव से पीना है।

 

(ग) हम भिखमंगों की दुनिया में,
स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले।
हम एक निशानी-सी उर पर,
ले असफलता का भार चले।
अब अपना और पराया क्या ?
आबाद रहें रुकने वाले।
हम स्वयं बँधे थे, और स्वयं
हम अपने बँधन तोड़ चले।

प्रश्न 1.
भिखमंगों की दुनिया किस प्रकार की है ?
उत्तर:
जो दुनिया केवल दूसरों से लेना ही जानती है, देना नहीं जानती; वहीं भिखमंगों की दुनिया है।

प्रश्न 2.
प्यार को स्वच्छन्द क्यों कहा गया है ?
उत्तर:
प्यार किसी प्रकार के बंधन या नियंत्रण को स्वीकार नहीं करता, इसलिए उसे स्वच्छंद कहा गया है।

प्रश्न 3.
कवि ने असफलता का भार किसे कहा है ?
उत्तर:
प्यार के बदले प्यार प्राप्त न करने को कवि ने असफलता का भार कहा है।

प्रश्न 4.
‘रुकने वाले’ किसे कहा गया है ?
उत्तर:
जो दीवानों की तरह बेफिक्र होकर नहीं चल पड़ते, उन्हें ‘रुकने वाले’ कहा है।

प्रश्न 5.
दीवानों ने ‘बंधन’ की स्थिति से स्वयं को क्यों मुक्त किया ?
उत्तर:
‘बंधन’ दीवानों की मस्ती में बाधक हैं, इसलिए दीवानों ने सभी प्रकार के बंधनों से खुद को मुक्त कर लिया है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘हम दीवानों की क्या हस्ती’ पाठ के कवि कौन हैं ?
(क) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
(ख) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ग) नरोत्तम दास
(घ) भगवती चरण वर्मा
उत्तर:
(घ) भगवती चरण वर्मा

प्रश्न 2.
‘हम दीवानों की क्या हस्ती’ पाठ में दीवानों से कवि का क्या अभिप्राय है ?
(क) किसी के प्रेम में सब कुछ भूल जाने वाला
(ख) पागल
(ग) मस्तमौला
(घ) फकीर
उत्तर:
(ग) मस्तमौला

 

प्रश्न 3.
दीवाने किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहते हैं ?
(क) स्वच्छंद
(ख) सामाजिक
(ग) साधारण
(घ) शान-शौकत का
उत्तर:
(क) स्वच्छंद

प्रश्न 4.
दीवानों का आना कैसा होता है ?
(क) दुःखदायी
(ख) उल्लास से पूर्ण
(ग) कष्टकारक
(घ) शुभ
उत्तर:
(ख) उल्लास से पूर्ण

प्रश्न 5.
दीवाने मिखमंगो की दुनिया में क्या लुटाकर जाते हैं ?
(क) घन
(ख) शिक्षा
(ग) प्यार
(घ) सुख-चैन
उत्तर:
(ग) प्यार

प्रश्न 6.
दीवाने समाज से क्या लेकर जाते हैं ?
(क) धन
(ख) असफलता का भार
(ग) सफलताओं की खुशी
(घ) लोगों का प्यार
उत्तर:
(ख) असफलता का भार

प्रश्न 7.
दीवानों की सुख और दुःख में कैसी स्थिति रहती है ?
(क) दीवाने सुख में बहुत सुखी हो जाते हैं।
(ख) दीवाने दुःख सहन नहीं कर पाते
(ग) दीवाने अपनों सुखी की परवाह नहीं करते।
(घ) दीवाने सुख-दुःख को समान भाव से लेते हैं।
उत्तर:
(घ) दीवाने सुख-दुःख को समान भाव से लेते हैं।

प्रश्न 8.
कवि के अनुसार कैसा जीवन अच्छा होता है ?
(क) हर समय पढ़ते रहना
(ख) बंधन हीन
(ग) वैभवपूर्ण
(घ) गरीबी का जीवन
उत्तर:
(ख) बंधन हीन

सप्रसंग व्याख्या

(क) हम दीवानों की क्या हस्ती,
हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले,
मस्ती का आलम साथ चला,
हम धूल उड़ाते जहाँ चले।
आए बनकर उल्लास अभी,
आँसू बनकर बह चले अभी,
सब कहते ही रह गए, अरे,
तुम कैसे आए, कहाँ चले ?

प्रसंग- उपर्युक्त पद्यांश ‘दीवानों की हस्ती’ पाठ से उद्धृत है। इसके रचयिता श्री भगवतीचरण वर्मा हैं। जीवन को मौजमस्ती से जीने वाले लोग जहाँ भी जाते हैं, वहीं खुशी का वातावरण छा जाता है और उदासी विलीन हो जाती है। उसी का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि वे जीवन के सुख-दुख को सहज भाव से जीते हैं।

व्याख्या- हम दीवानों का कोई स्थायी ठौर-ठिकाना नहीं है, क्योंकि हम एक जगह टिककर नहीं रहते। हम आज यहाँ हैं, कल कहीं और चल देंगे। हम जहाँ भी जाते हैं, हमारे साथ मस्ती का वातावरण भी साथ चलता है। हमारे चलने में इतनी मस्ती भरी होती है कि पीछे केवल धूल उड़ती नजर आती है।

हमारी आँखों में यदि इस समय उल्लास की चमक है तो किसी का दुख देखकर इन्हीं आँखों में आँसू छलक पड़ते हैं। हम दूसरों के सुख में सुखी और दुख में दुखी महसूस करते हैं। लोग यह पूछते ही रह जाते हैं कि तुम यहाँ किसलिए आए थे और अब क्यों चले जा रहे हो। हमारे पास इस प्रकार अचानक चल देने का कोई उत्तर नहीं होता। हमारा यह मनमौजीपन ही इस प्रकार कहीं भी किसी भी समय हमें चलने के लिए उत्साहित करता है। हम एक जगह बँधकर नहीं रहते।

विशेष-

  1. इन पंक्तियों में ‘मनमौजीपन’ की विशेषता बताई है।
  2. ‘आज यहाँ कल वहाँ’ से तात्पर्य है कि एक स्थान पर बँधकर न रहना।
  3. ‘धूल उड़ाते’ हुए चलने का तात्पर्य ऐसी मस्ती भरी चाल से है, जिसकी ओर सबका ध्यान जाए।

 

(ख) किस ओर चले ? यह मत पूछो,
चलना है, बस इसलिए चले,
जग से उसका कुछ लिए चले,
जग को अपना कुछ दिए चले,
दो बात कहीं, दो बात सुनी;
कुछ हँसे और फिर कुछ रोए।
छककर सुख-दुख के घुटों को
हम एक भाव से पिए चले।

प्रसंग- उपर्युक्त पद्यांश ‘दीवानों की हस्ती’ पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता श्री भगवतीचरण वर्मा जी हैं। मस्तमौला लोग जिधर चाहे, उधर चल देते हैं। उनके लिए जीवन का प्रमुख उद्देश्य है-बस चलते जाना। वे जीवन के प्रत्येक पल का आनन्द उठाते हैं। इसी आनन्द का वर्णन कवि ने किया है।

व्याख्या- किधर जाना है ? इसका उत्तर देना हमारे लिए कठिन है। मनमौजी लोगों का गन्तव्य निश्चित नहीं होता। हम सिर्फ इतना जानते हैं कि हमें चलना है। संसार से जो कुछ मिला, हमने खुशी-खुशी ले लिया। जो हमारे पास था, हमने उसको भी अपना नहीं समझा। उसे हमने प्रसन्न होकर संसार को दे दिया। दूसरों की बातें अपनेपन से सुनीं। अपनी भी दो बातें उनसे करके अपनापन जोड़ लिया। हमने सुख और दुख दोनों भावों को एक ही रूप में छककर जिया। दुःख आने पर हम हताश या निराश नहीं हुए। मस्ती का यही जीवन सूत्र है कि हमें प्रत्येक परिस्थिति में सामान्य रहना चाहिए।

विशेष-

  1. ‘सुख-दुख के घुटों को हम एक भाव से पिए चले’ कवि की ये पंक्तियाँ गीता के इस महान संदेश ‘सुखे-दुखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ’ की ओर संकेत करती हैं।
  2. ‘चलना है, बस इसलिए चले’ में ‘चरैवेति-चरैवेति’ (चलते रहो-चलते रहो) का समर्थन किया गया है। कहा भी है- ‘जीवन है चलने का नाम’।
  3. ‘छककर’ का तात्पर्य है जीवन को पूर्ण तृप्ति के साथ जीना।

(ग) हम भिखमंगों की दुनिया में,
स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले,
हम एक निसानी-सी उर पर,
ले असफलता का भार चले।
अब अपना और पराया क्या ?
आबाद रहें रुकनेवाले!
हम स्वयं बँधे थे और स्वयं
हम अपने बंधन तोड़ चले।

प्रसंग- उपर्युक्त काव्यांश ‘दीवानों की हस्ती’ पाठ मे लिया गया है। इसके कवि श्री भगवती चरण वर्मा हैं। कवि रुकने वालों को अपनी शुभकामना देता है। वह खुले हाथ से प्यार लुटाने को अपनी सबसे बड़ी सफलता मानता है। असफलता सिर्फ यही है कि वह सबको अपने जैसा नहीं बना सकता।

व्याख्या- भिखारी केवल लेना जानता है, देना बिल्कुल नहीं। यह दुनिया इसी प्रकार की है। बस लेना ही जानती है। हमने इस दुनिया को अपना भरपूर प्यार लुटाया। हमारी असफलता की एक निशानी यह समझी जा सकती है कि हम दूसरों को अपनी तरह उदार नहीं बना सके। यह बोझ हम अपने हृदय पर महसूस करते हैं।

इस संसार में अपने-पराये का भेद करना बेकार है। हमारी उन सबके साथ भी शुभकामनाएँ हैं, जो हमारे साथ नहीं चल सकते। वे जहाँ हैं, वहीं पर आबाद रहें, प्रसन्न रहें। एक समय वह था कि हम खुद भी इन संसारिक बंधनों में बँधे थे। हमने खुद को अब उन बंधनों से मुक्त कर लिया है। अब हम हर हालत में खुद को प्रसन्न महसूस करते हैं।

विशेष- मनमौजी व्यक्तियों के लिए ‘अपना और पराया’ का भेद नहीं होता। उनके लिए सभी अपने होते हैं। इसे ही समरसता का भाव कहते हैं। उसके मन में सबके लिए शुभकामनाएँ भरी होती हैं। सरल और प्रवाहपूर्ण भाषा में बात कहना कवि की विशेषता है।

दीवानों की हस्ती Summary

पाठ का सार

कवि भगवतीचरण वर्मा ने ‘दीवानों की हस्ती’ के बारे में बताया है कि उनका मन जहाँ जाने को करता है, वे वहाँ चल देते हैं। वे कहीं भी जाएँ, मस्ती का वातावरण सदा उनके साथ बना रहता है। हँसी और मुस्कान के साथ-साथ कभी आँसू भी बह जाते हैं। संसार वालों से उनका दुख लेकर उन्हें अपना सुख, अपना उल्लास दे देते हैं। किसी को दो बातें कहकर खुश कर दिया। किसी की दो बात सुनी, दुख-दर्द सुना, हमदर्दी जताई और दुख का बोझ कम कर दिया। सुख और दुख.को समान भाव से जीने का प्रयास किया। इन दीवानों ने दुनिया को अपना प्यार लुटा दिया। इस प्यार लुटाने में दूसरों को ऐसा न बनाने की असफलता जरूर थी। इस संसार में चाहे कोई भी व्यक्ति हो, वह इनके लिए एक समान है। अपने और पराये का भेद यहाँ समाप्त हो गया है। इन्होंने खुद को खुद ही बाँधा था। अब उन बन्धनों को तोड़कर इन्होंने तमाम बन्धनों से खुद को मुक्त कर लिया है।

शब्दार्थ : दीवानों-मस्त रहने वाले; आलम-दुनिया, वातावरण; उल्लास-खुशी; जग-संसार; छककर-तृप्त होकर; स्वच्छन्द-मुक्त, बंधन रहित; उर-हृदय; असफलता-नाकामी, हार; आबाद-खुशहाल, बसा हुआ; बंधन-रुकावट, अवरोध; हस्ती-अस्तित्व।

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NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 3 बस की यात्रा

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बस की यात्रा NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 3

Class 8 Hindi Chapter 3 बस की यात्रा Textbook Questions and Answers

कारण बताएँ

प्रश्न 1.
“मैने उस कंपनी के हिस्सेदार की तरफ पहली बार श्रद्धाभाव से देखा।”
लेखक के मन में हिस्सेदार साहब के लिए श्रद्धा क्यों जग गई ?
उत्तर:
लेखक ने कम्पनी के हिस्सेदार की तरफ पहली बार श्रद्धाभाव से देखा, क्योंकि वह टायरों की हालत जानते हैं। फिर भी जान हथेली पर लेकर इसी बस से सफ़र कर रहे हैं। त्याग की ऐसी भावना सचमुच दुर्लभ है।

प्रश्न 2.
“लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफ़र नहीं करते।”
लोगों ने यह सलाह क्यों दी ?
उत्तर:
लोगों ने यह सलाह इसलिए दी कि इस बस का कोई भरोसा नहीं है। पता नहीं कहाँ रुक जाए। कहाँ रुकना पड़े। कहाँ रात गुजारनी पड़ जाए। बस पूरी तरह जर्जर है। कव इसका प्राणांत हो जाए, पता नहीं। बस डाकिन भी है।

प्रश्न 3.
“ऐसा जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे हैं।”
लेखक को ऐसा क्यों लगा ?
उत्तर:
इंजन के स्टार्ट होने पर सारी बस इंजन की तरह घरघराने लगी थी। लग रहा था जैसे सीट के नीचे भी इंजन है। इसीलिए लेखक को लगा कि सारी बस ही इंजन है।

प्रश्न 4.
“गज़ब हो गया। ऐसी बस अपने आप चलती है।”
लेखक को यह सुनकर हैरानी क्यों हुई ?
उत्तर:
बस खूब वयोवृद्ध थी। सदियों के अनुभव के निशान लिये हुई थी। इस तरह की बसें कुछ लोगों के धकेलने पर ही स्टार्ट होती हैं। ऐसी बस अपने आप चलती है, यह जानकर लेखक को हैरानी हुई थी।

प्रश्न 5.
“मैं हर पेड़ को अपना दुश्मन समझ रहा था।”
लेखक पेड़ों को दुश्मन क्यों समझ रहा था ?
उत्तर:
बस का पता नहीं था-कब ब्रेक फेल हो जाए या स्टीयरिंग टूट जाए। ऐसा होने पर बस किसी भी पेड़ से टकरा सकती थी; इसलिए लेखक पेड़ों को दुश्मन समझ रहा था।

 

पाठ से आगे

प्रश्न 1.
‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ किसके नेतृत्व में, किस उद्देश्य से तथा कब हुआ था? इतिहास की उपलब्ध पुस्तकों के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ गाँधी जी के नेतृत्व में हुआ। यह आंदोलन पूर्ण स्वराज्य के लिए 1930 में शुरू किया गया। देश भर के करोड़ों लोगों ने पूर्ण स्वराज्य की यह शपथ 26 जनवरी, 1930 को ली।

प्रश्न 2.
सविनय अवज्ञा का उपयोग व्यंग्यकार ने किस रूप में किया है ? लिखिए।
उत्तर:
गाँधी जी ने जो सविनय असहयोग अवज्ञा आंदोलन चलाया था, यह बस उस समय जवान रही होगी। इस बस ने उस समय ट्रेनिंग ली होगी। यह बस पूरी तरह खटारा हो चुकी थी। हर हिस्सा दूसरे हिस्से से असहयोग कर रहा था। सीट बॉडी से असहयोग कर रही थी। कभी लगता-सीट को छोड़कर बस की बॉडी आगे चली जा रही है। पता नहीं चल पा रहा था कि सीट पर हम बैठे हैं या सीट हम पर बैठी है। जर्जर होने के कारण बस का कहीं भी, कभी भी प्राणांत हो सकता था। इस कार्य से यात्रियों के साथ भी असहयोग ही हो जाता। इसी रूप में लेखक ने ‘सविनय अवज्ञा’ का उपयोग किया है।

प्रश्न 3.
आप अपनी किसी यात्रा के खट्टे-मीठे अनुभवों को याद करते हुए एक लेख लिखिए।
उत्तर:
हमें सहारनपुर से बरेली जाना था। स्टेशन पहुंचने पर पता चला कि गाड़ी पाँच घंटे लेट है। हम घर वापस चले गए। लगभग साढ़े चार घंटे बाद हम फिर स्टेशन पहुंचे तो पता चला कि पंद्रह मिनट पहले गाड़ी जा चुकी है। सूचना देने वाले कर्मचारी ने समय बताने में एक घंटे की गड़बड़ी कर दी थी। ऐसे और भी कई लोग थे, जिनकी गाड़ी छूट चुकी थी। स्टेशन मास्टर. ने सबको समझाया कि कर्मचारी घरेलू परेशानी में पड़ा होने के कारण यह गलती कर गया है। खैर हमने टिकट का पैसा वापस लिया। मेरठ होकर जाने वाली नौचन्दी से हमने अपनी अगली यात्रा शुरू की। रात में भयंकर आँधी आने से गाड़ी किसी सुनसान जगह पर कई घंटे खड़ी रही। अँधरे और सुनसान स्थान पर उतरकर पता करने की हिम्मत किसी में नहीं बची थी। थकान के कारण सब चूर-चूर हो रहे थे। गर्मी के कारण भी बहुत बुरा हाल हो गया था। पीने का पानी खत्म हो चुका था। अपनी इस यात्रा को हम अभी तक नहीं भुला पाए हैं।

मन-बहलाना

प्रश्न 1.
अनुमान कीजिए-यदि बस जीवित प्राणी होती, बोल सकती तो वह अपनी बुरी हालत और भारी बोझ के कष्ट को किन शब्दों में व्यक्त करती ? लिखिए।
उत्तर:
मेरे टायर पूरी तरह घिस चुके हैं। बॉडी जगह-जगह से टूट चुकी है। बारिश हो तो बादलों का सारा पानी भीतर भर जाए। खिड़कियों के काँच बरसों पहले बिदा हो चुके हैं। आँधी-पानी, लू-लपट, ठंडी हवाएँ बिना किसी से पूछे, बिना टिकट कटाए मुझमें आकर मुसाफिरों को परेशान करती हैं। मेरा पेट्रोल टैंक लीक करता रहता है। ब्रेक कभी भी काम करना बंद कर देता है। सामने से कोई बड़ा ट्रक देखकर तो मेरी साँस ही रुक जाती है। इंजन की हालत तो ऐसी है कि कब एक से अनेक हो जाए नहीं पता। मेरे स्वास्थ्य पर मालिक बिल्कुल ध्यान ही नहीं देते। मेरा खून चूसने में लगे हैं। मेरी मरम्मत पर फूटी कौड़ी भी खर्च नहीं करते। मैं बेदम हो चुकी हूँ, लेकिन ये बेरहम सवारियाँ और सामान लादने में कोई कमी नहीं करते। इन्हें मेरे बुढ़ापे पर ज़रा भी तरस नहीं आता। लगता है, श्रद्धाभाव इन मालिकों के दिलों से कूच कर चुका है। यह मेरी आराम करने की उम्र है। ये कठोर हृदय वाले लगता है-बूढ़ों की इज्जत करना भूल गए हैं।

 

भाषा की बात

प्रश्न 1.
बस, वश, बस तीन शब्द हैं-इनमें ‘बस’ सवारी के अर्थ में, ‘वश’ अधीनता के अर्थ में, और ‘बस’ पर्याप्त (काफी) के अर्थ में प्रयुक्त होता है, जैसे-बस से चलना होगा। मेरे वश में नहीं है। अब बस करो।
उपर्युक्त वाक्य के समान तीनों शब्दों से युक्त आप भी दो-दो वाक्य बनाइए।
उत्तर:
बस – मुझे बस से यात्रा करने में दिक्कत होती है।
दिल्ली में ब्लू लाइन बस अधिक दुर्घटनाएँ करती हैं।

वश – सलिल को सुधारना मेरे वश में नहीं।
मेरा वश चलता तो मैं घूसखोरों को जेल भेजा देता।

बस – बहुत हो चुका मेरे भाई! अब बस करो।
तम रुको, बस मैं अभी आया।

प्रश्न 2.
“हम पाँच मित्रों ने तय किया कि शाम चार बजे की बस से चलें। पन्ना से इसी कंपनी की बस सतना के लिए घंटे भर बाद मिलती है।”
ने, की, से आदि शब्द वाक्य के दो शब्दों के बीच संबंध स्थापित कर रहे हैं। ऐसे शब्दों को कारक कहते हैं। इसी तरह जब दो वाक्यों को एक साथ जोड़ना होता है ‘कि’ का प्रयोग होता है।
कहानी में से दोनों प्रकार के चार वाक्यों को चुनिए।
उत्तर:
बस को देखा तो श्रद्धा उमड़ पड़ी।
उस पर सवार कैसे हुआ जा सकता है।
बस कम्पनी के एक हिस्सेदार भी उसी बस से जा रहे थे।
डॉक्टर मित्र ने कहा, “डरो मत, चलो।”
सीट का बॉडी से असहयोग चल रहा था।

दो वाक्यों को एक साथ जोड़ने के लिए ‘कि’ का प्रयोग

(क)

  • मालूम हुआ कि पेट्रोल की टंकी में छेद हो गया है।
  • लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफर नहीं करते।
  • लोग इसलिए सफ़र नहीं करना चाहते कि वृद्धावस्था में इसे कष्ट होगा।
  • हमें ग्लानि हो रही थी कि बेचारी पर लदकर हम चले आ रहे हैं।

‘या’, ‘अथवा’ के लिए भी ‘कि’ का प्रयोग किया जाता है। उस स्थिति में भी दो वाक्य जुड़ते हैं। जैसे-

  • घर जाओगे कि नहीं ?
  • बच्चे मेरी बात समझेंगे कि नहीं, बताना कठिन है।
    [उपर्युक्त वाक्यों में ‘कि’ के स्थान पर ‘या’ ‘अथवा’ का प्रयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
“हम फौरन खिड़की से दूर सरक गए। चाँदनी में रास्ता टटोलकर वह रेंग रही थी।” ‘सरकना’ और ‘रेंगना’ जैसी क्रिया दो प्रकार की गति बताती है। ऐसी कुछ और क्रियाएँ एकत्र कीजिए जो गति के लिए प्रयुक्त होती हैं, जैसे-घूमना इत्यादि उन्हें वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
चलना-

  • सुहासिनी उज्जैन जा रही है। क्या तुम भी साथ चलोगे ?
  • चलो, बहुत हो चुका है। अब आराम करो।
  • झूठ का सिक्का सदा नहीं चलता
  • चलो, चलो! सब अपने घर जाओ।

उपर्युक्त वाक्यों में ‘चलना’ के विभिन्न अर्थ वाले रूप दिए गए हैं।

प्रश्न 4.
“काँच बहुत कम बचे थे। जो बचे थे, उनसे हमें बचना था।” इस वाक्य में ‘बच’ शब्द को दो तरह से प्रयोग किया गया है। एक ‘शेष’ के अर्थ में और दूसरा ‘सुरक्षा’ के अर्थ में।।
नीचे दिए गए शब्दों को वाक्यों में प्रयोग करके देखिए। ध्यान रहे, एक ही शब्द वाक्य में दो बार आना चाहिए और शब्दों के अर्थ में कुछ बलाव होना चाहिए।
(क) जल (ख) फल (ग) हार
उत्तर:
जल – हाथ जल जाने पर तुरन्त ठंडे जल में डुबो दें।
फल – फल के लिए जो पेड़ लगाएगा, उसे इस काम के पुण्य का फल भी जरूर मिलेगा।
हार – युद्ध में हार जाने वालों को कोई भी हार नहीं पहनाता।

प्रश्न 5.
भाषा की दृष्टि से देखें तो हमारी बोलचाल में प्रचलित अंग्रेजी शब्द ‘फर्स्ट क्लास’ में दो शब्द हैं-फर्स्ट और क्लास। यहाँ क्लास का विशेषण है-फर्स्ट। चूँकि फर्स्ट संख्या है, फर्स्ट क्लास संख्यावाचक विशेषण का उदाहरण है। महान आदमी में किसी आदमी की विशेषता है महान। यह गुणवाचक विशेषण है। संख्यावाचक विशेषण और गुणवाचक विशेषण के उदाहरण खोजकर लिखिए।
उत्तर:
संख्यावाचक विशेषण-

  1. पाँच मित्रों ने बस से चलने का निश्चय किया।
  2. आठ-दस मील चलने पर सारे भेदभाव मिट गए।
  3. अब रफ्तार पंद्रह-बीस मील हो गई थी।
  4. एक पेड़ निकल जाता तो दूसरे पेड़ का इंतजार करता।

गुणवाचक विशेषण-

  1. दूसरा घिसा टायर लगाकर बस फिर चली।
  2. समझदार आदमी इस शामवाली बस से सफ़र नहीं करते।
  3. खूब वयोवृद्ध थी।
  4. नयी-नवेली बसों से ज्यादा विश्वसनीय है।
  5. दोनों तरफ़ हरे-भरे पेड़ थे।
  6. मैं हर पेड़ को पक्का दुश्मन समझ रहा था।
  7. क्षीण चाँदनी में बस दयनीय लग रही थी।
  8. वह महान आदमी आ रहा है।

 

अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लेखक और उनके मित्रों को कहाँ पहँचना था ?
उत्तर:
लेखक और उनके मित्रों को जबलपुर पहुंचना था।

प्रश्न 2.
जबलपुर जाने के लिए ट्रेन कहाँ से पकड़नी थी ?
उत्तर:
जबलपुर जाने के लिए ट्रेन सतना से पकड़नी थी।

प्रश्न 3.
डॉक्टर मित्र ने क्या कहा ?
उत्तर:
डॉक्टर मित्र ने कहा-“डरो मत, चलो। बस अनुभवी है। नयी-नवेली बसों से ज्यादा विश्वसनीय है। हमें बेटों की तरह गोद में लेकर चलेगी।”

प्रश्न 4.
लेखक और उनके मित्रों को जो छोड़ने आए थे, उनकी आँखें क्या कह रही थीं ?
उत्तर:
जो लोग छोड़ने आए थे, उनकी आँखें कह रही थीं कि आना-जाना तो लगा ही रहता है। आया है सो जाएगा-राजा, रंक, फकीर। आदमी के संसार के कूच करने का कोई न कोई कारण होना चाहिए।

प्रश्न 5.
बस को सविनय अवज्ञा आंदोलन की ट्रेनिंग कब मिली होगी ?
उत्तर:
गाँधी जी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय बस जवान रही होगी। उसे वहीं से ट्रेनिंग मिली होगी।

बोध-प्रश्न

निम्नलिखित अवतरणों को पढ़िए एवं पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

(क) बस को देखा तो श्रद्धा उमड़ पड़ी। खूब वयोवृद्ध थी। सदियों के अनुभव के निशान लिए हुए थी। लोग इसलिए इससे सफ़र नहीं करना चाहते कि वृद्धावस्था में इसे कष्ट होगा। यह बस पूजा के योग्य थी। उस पर सवार कैसे हुआ जा सकता है!

प्रश्न 1.
बस को देखकर श्रद्धा क्यों उमड़ पड़ी ?
उत्तर:
बस बहुत वयोवृद्ध थी। जिस प्रकार वयोवृद्ध व्यक्ति को देखकर श्रद्धा उमड़ पड़ती है, उसी प्रकार इस बस को देखकर भी श्रद्धा उमड़ पड़ती थी।

प्रश्न 2.
‘सदियों के अनुभव के निशान’ का क्या आशय है ?
उत्तर:
बस बहुत खटारा हो चुकी थी। तरह-तरह की टूट-फूट-खरोंच के निशान उस पर पड़े हुए थे। इसी से लगता था कि बस बहुत अनुभवी है और उसने अपने कार्यकाल में ढेर सारी परेशानियाँ झेली हैं।

प्रश्न 3.
लोग इस बस में सफर करना क्यों नहीं चाहते थे ?
उत्तर:
लोग इस बस में सफर नहीं करना चाहते। हमारी संस्कृति में बूढ़ों को कष्ट देना अच्छा नहीं माना जाता। बस वृद्धावस्था में पहुँच चुकी थी; अतः उसे भी कष्ट देना ठीक नहीं था।

प्रश्न 4.
इस बस पर सवार क्यों नहीं हुआ जा सकता था ?
उत्तर:
बस पूजा के योग्य थी। जो पूजा के योग्य हो, भला उस पर सवार कैसे हुआ जा सकता है ? उसकी तो पूजा ही की जा सकती है।

 

(ख) एकाएक बस रुक गई। मालूम हुआ कि पेट्रोल की टंकी में छेद हो गया है। ड्राइवर ने बाल्टी में पेट्रोल निकालकर उसे बगल में रखा और नली डालकर इंजन में भेजने लगा। अब मैं उम्मीद कर रहा था कि थोड़ी देर बाद बस-कंपनी के हिस्सेदार इंजन को निकालकर गोद में रख लेंगे और उसे नली से पेट्रोल पिलाएँगे, जैसे माँ बच्चे के मुँह में दूध की शीशी लगाती है।

प्रश्न 1.
बस एकाएक क्यों रुक गई थी ?
उत्तर:
पेट्रोल की टंकी में छेद होने के कारण बस एकाएक रुक गई।

प्रश्न 2.
ड्राइवर ने इंजन में पेट्रोल कैसे भेजा ?
उत्तर:
ड्राइवर ने बाल्टी में पेट्रोल निकाल अपनी बगल में रख लिया और नली डालकर इंजन में पेट्रोल भेजने लगा।

प्रश्न 3.
लेखक बस कम्पनी के हिस्सेदार से क्या उम्मीद कर रहा था ?
उत्तर:
लेखक बस कम्पनी के हिस्सेदार से उम्मीद कर रहा था कि वे थोड़ी देर बाद इंजन को निकाल कर गोद में रख लेंगे और नली से पेट्रोल पिलाएँगे।

प्रश्न 4.
ड्राइवर इंजन को किस ढंग से पेट्रोल पिलाएगा?
उत्तर:
जैसे माँ बच्चे के मुँह में दूध की शीशी लगाती है, उसी तरह ड्राइवर इंजन को पेट्रोल पिलाएगा।

 

(ग) बस की रफ्तार अब पंद्रह-बीस मील हो गई थी। मुझे उसके किसी हिस्से पर भरोसा नहीं था। ब्रेक फेल हो सकता है, स्टीयरिंग टूट सकता है। प्रकृति के दृश्य बहुत लुभावने थे। दोनों तरफ हरे-भरे पेड़ थे जिन पर पक्षी बैठे थे। मैं हर पेड़ को अपना दुश्मन समझ रहा था। जो भी पेड़ आता, डर लगता कि इससे बस टकराएगी। वह निकल जाता तो दूसरे पेड़ का इंतजार करता। झील दिखती तो सोचता कि इसमें बस गोता लगा जाएगी।

प्रश्न 1.
अब बस की रफ्तार कितनी हो गई थी ?
उत्तर:
अब बस की रफ्तार पन्द्रह-बीस मील प्रति घंटा हो गई थी।

प्रश्न 2.
लेखक के अनुसार बस का कौन-कौन सा हिस्सा साथ छोड़ सकता था?
उत्तर:
लेखक के अनुसार ब्रेक फेल हो सकता था, स्टीयरिंग कभी भी टूट सकता था।

प्रश्न 3.
सड़क के पास के दृश्य लुभावने होने पर भी लेखक क्यों डरा हुआ था?
उत्तर:
सड़क के पास के दृश्य सुहावने होने पर भी लेखक डरा हुआ था, क्योंकि उसे हर पेड़ अपना दुश्मन लग रहा था। न जाने बस कब किस पेड़ से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो जाए।

प्रश्न 4.
झील दिखने पर लेखक क्या सोचता ?
उत्तर:
झील दिखती तो लेखक सोचता कि बस इसमें गोता लगा लेगी।

(घ) क्षीण चाँदनी में वृक्षों की छाया के नीचे वह बस बड़ी दयनीय लग रही थी। लगता, जैसे कोई वृद्धा थककर बैठ गई हो। हमें ग्लानि हो रही थी कि बेचारी पर लदकर हम चले आ रहे हैं। अगर इसका प्राणांत हो गया तो इस बियाबान में हमें इसकी अंत्येष्टि करनी पड़ेगी।

प्रश्न 1.
क्षीण चाँदनी में बस कैसी लग रही थी ?
उत्तर:
क्षीण चाँदनी में वृक्षों की छाया के नीचे खड़ी बस बड़ी दयनीय लग रही थी। लगता था, जैसे कोई बूढ़ी थककर बैठ गई हो।

प्रश्न 2.
लेखक को ग्लानि क्यों हो रही थी ?
उत्तर:
बस बहुत बूढ़ी थी। लेखक उस पर लदकर यहाँ तक पहुंचा था। अतः उसके मन में बस को कष्ट देने की ग्लानि हो रही थी।

प्रश्न 3.
बस का प्राणान्त होने पर क्या करना पड़ता ?
उत्तर:
यदि बस का प्राणान्त हो जाता तो सुनसान जंगल में ही उसकी अन्तिम क्रिया करनी पड़ती।

 

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘बस की यात्रा’ कहानी के कहानीकार कौन हैं ?
(क) भगवती चरण वर्मा
(ख) हरिशंकर परसाई
(ग) सुभास गाताड़े
(घ) प्रदीप तिवारी
उत्तर:
(ख) हरिशंकर परसाई

प्रश्न 2.
लेखक एवं उनके साथियों को कहाँ की ट्रेन पकड़नी थी ?
(क) सतना की
(ख) ग्वालियर की
(ग) भोपाल की
(घ) जबलपुर की
उत्तर:
(क) सतना की

प्रश्न 3.
चलते-चलते एकाएक बस क्यों रुक गई ?
(क) उसका इंजन खराब हो गया था
(ख) आगे रास्ता खराब था
(ग) डाकुओं ने बस को रुकवा लिया
(घ) पैट्रोल की टंकी में छेद हो गया
उत्तर:
(घ) पैट्रोल की टंकी में छेद हो गया

प्रश्न 4.
पुलिया के ऊपर पहुँचने के बाद क्या हुआ ?
(क) बस का टायर फट गया
(ख) बस का इंजन खराब हो गया
(ग) बस का पहिया गड्ढे में फँस गया
(घ) बस पुलिया से टकरा गई
उत्तर:
(क) बस का टायर फट गया

प्रश्न 5.
लेखक हर पेड़ को अपना दुश्मन क्यों समझ रहे थे ?
(क) उनको डर था कोई पेड़ उन पर न गिर पेड़
(ख) कोई भी पेड़ बस पर गिर सकता था
(ग) बस किसी भी पेड़ से टकरा सकती थी
(घ) लेखक को पेड़ अच्छे नहीं लगते थे
उत्तर:
(ग) बस किसी भी पेड़ से टकरा सकती थी

प्रश्न 6.
डाक्टर मित्र ने क्या कहा ?
(क) बस खटारा है
(ख) बस अनुभवी है
(ग) बस अच्छी है
(घ) बस में कोई खराबी नहीं
उत्तर:
(ख) बस अनुभवी है

 

बस की यात्रा Summary

पाठ का सार

लेखक को सतना से जबलपुर की ट्रेन पकड़नी थी। उसके लिए पन्ना से चार बजे सतना जाने वाली बस पकड़नी थी। पाँच मित्रों में से दो को सुबह दफ्तर जाना था। लोगों ने इस बस से सफर करने की मनाही की। बस बहुत पुरानी थी। इतनी पुरानी कि उस पर सवार कैसे हुआ जाए, यह सोचना पड़ रहा था। बस कम्पनी के एक हिस्सेदार भी इसी बस से जा रहे थे। पता चला कि यह बस चलती भी है। डॉक्टर मित्र ने कहा कि यह बस हमें बेटों की तरह गोद में लेकर जाएगी। जो बिदा करने के लिए आए थे, वे इस तरह देख रहे थे जैसे अंतिम विदाई देने आए हों। उन्हें पन्ना तक पहुँचने में संदेह था।

इंजन स्टार्ट हुआ तो पूरी बस हिलने लगी। खिड़कियों के काँच नदारद थे। बस सचमुच चल पड़ी। कभी लगता कि सीट बॉडी छोड़कर आगे निकल गई। पेट्रोल की टंकी में छेद होने पर बस रुक गई। ड्राइवर ने बाल्टी में पेट्रोल निकाल बगल में रख लिया और एक नली से इंजन में भेजना शुरू किया। कुछ भी हो सकता था। ब्रेक फेल हो सकता था, स्टीयरिंग टूट सकता था। कभी लगता कि बस किसी भी पेड़ से टकरा जाएगी या झील में गोता लगा लेगी। अगर इसकी मृत्यु हो गई तो जंगल में ही इसका अंतिम संस्कार करना पड़ेगा। हिस्सेदार ने इंजन सुधारा तो बस कुछ आगे बढ़ी। बस की रोशनी भी जाती रही। पुलिया पर पहुँची तो टायर फिस्स हो गया। बस नाले में गिर जाती तो सब लोग देवताओं की बाहों में होते। दूसरा घिसा टायर लगा तो बस आगे बढ़ी। हमने पन्ना पहुँचने की उम्मीद छोड़ दी थी।

शब्दार्थ : हाजिर-उपस्थित, मौजूद; डाकिन-चुडैल, डाइन; वयोवृद्ध-उम्र में बड़ी; वृद्धावस्था- बुढ़ापा; विश्वसनीय-विश्वास के योग्य; कूच करना-प्रस्थान करना, मरना; निमित्त-कारण; सविनय-आज्ञा न मानना; तरकीबें-उपाय; इत्तफाक- अचानक होने वाली घटना; दयनीय-दया के योग्य; ग्लानि-दुख, खेद; प्राणांत-मृत्यु; बियाबान-जंगल; अन्त्येष्टि-अंतिम संस्कार; उत्सर्ग- बलिदान; प्रयाण-प्रस्थान; बेताबी-बेचैनी; इत्मीनान-संतोष; ज्योति-रोशनी।

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Hindi NCERT Solutions Class 8

NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 2 लाख की चूड़ियाँ

Students who need help with their studies, don’t pass up the NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 2 लाख की चूड़ियाँ Questions and Answers opportunity. This is why they should take advantage of Class 8 Hindi Vasant Chapter 2 लाख की चूड़ियाँ Questions and Answers, which will provide them with all that’s needed in order to succeed during such as important year for students!

लाख की चूड़ियाँ NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 2

Class 8 Hindi Chapter 2 लाख की चूड़ियाँ Textbook Questions and Answers

कहानी से

प्रश्न 1.
बचपन में लेखक अपने मामा के गाँव चाव से क्यों जाता था और बदलू को ‘बदलू मामा’ न कहकर ‘बदलू काका’ क्यों कहता था ?
उत्तर:
लेखक अपने मामा के गाँव चाव से जाता था, क्योंकि ‘बदलू काका’ उसे लाख की गोलियाँ बनाकर देते थे। ये रंग-बिरंगी गोलियाँ किसी भी बच्चे का मन मोह सकती थीं।

गाँव के सभी बच्चे उसे ‘वदलू काका’ कहते थे, इसलिए लेखक भी उसे ‘बदलू मामा’ न कहकर ‘बदलू काका’ ही कहता था।

प्रश्न 2.
वस्तु-विनिमय क्या है ? विनिमय की प्रचलित पद्धति क्या है ?
उत्तर:
एक वस्तु देकर उसके बदले में दूसरी वस्तु लेना ही ‘वस्तु-विनिमय’ है। इस समय रुपये के बदले वस्तु ली जाती है, यही प्रचलित पद्धति है। गाँवों में मजदूरी के बदले अनाज देने की पद्धति आज भी प्रचलित है। सरकारी स्तर पर भी काम के बदले अनाज की पद्धति कना-कभी अपनाई जाती है।

प्रश्न 3.
“मशीनी युग ने कितने हाथ काट दिए हैं” इस पंक्ति में लेखक ने किस व्यथा की ओर संकेत किया है?
उत्तर:
मशीनों के कारण कुटीर उद्योग ठप्प हो गए हैं। जो कारीगर अपने हाथ से काम करके रोटी-रोजी कमाते थे, उनका काम-धंधा बंद हो गया है। इस प्रकार मशीनों के आने से बहुतों की कमाई बंद हो गई है। इसे ही लेखक ने ‘मशीनी युग ने कितने हाथ काट दिए हैं’-कहा है।

प्रश्न 4.
बदलू के मन में ऐसी कौन-सी व्यथा थी, जो लेखक से छिपी न रह सकी ?
उत्तर:
बदलू ने कहा था-जो सुन्दरता काँच की चूड़ियों में होती है, लाख में कहाँ सम्भव है”? यह व्यथा थी मशीन से उपजे संकट की। गाँव-गाँव काँच का प्रचार हो गया। मशीनी युग आ गया है। उसकी चूड़ियों को कोई नहीं पूछता। कारीगरों की उपेक्षा हो गई है। बदलू के मन का यह दर्द लेखक से न छिप सका।।

प्रश्न 5.
मशीनी युग से बदलू के जीवन में क्या बदलाव आया ?
उत्तर:
बदलू का लाख की चूड़ी का काम मशीनी युग आने से बंद हो गया। गाय को खिलाने के लिए चारे का प्रबन्ध नहीं हो सका तो वह बेच दी गई। उसे फसली खाँसी हो गई। अवस्था के साथ-साथ बदलू का शरीर ढल चुका था। हाथों और माथे पर नसें उभर आई थीं। बेरोज़गारी ने उसे और अधिक कमज़ोर कर दिया।

कहानी से आगे

प्रश्न 1.
आपने मेले-बाज़ार आदि में हाथ से बनी चीजों को बिकते देखा होगा। आपके मन में किसी चीज को बनाने की कला सीखने की इच्छा हुई हो और आपने कोई कारीगरी सीखने का प्रयास किया हो तो उसके विषय में लिखिए।
उत्तर:
दीपावली के अवसर पर मैंने रंग-बिरंगी मोमबत्तियाँ खरीदी थीं। मेरे मन में मोमबत्तियाँ बनाने का विचार उठा। मैंने अपने ‘कार्यानुभव शिक्षक’ से बात की। स्कूल में मोम और मोमबत्तियों के साँचे मौजूद थे। उन्होंने मुझे तरह-तरह की मोमबत्तियाँ बनाने की कला सिखाई। अब मैं यह कला और भी बच्चों को सिखा रहा हूँ। .

प्रश्न 2.
लाख की वस्तुओं का निर्माण भारत के किन-किन राज्यों में होता है ? लाख से चूड़ियों के अतिरिक्त क्या-क्या चीजें बनती हैं ? ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
लाख की वस्तुओं का काम राजस्थान और गुजरात में सबसे अधिक होता है। चूड़ियाँ ही नहीं वरन् लाख के गहने भी बनाए जाते हैं। लाख की मूर्तियाँ एवं खिलौने भी बनाए जाते हैं।

 

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
घर में मेहमान के आने पर आप उनका अतिथि-सत्कार कैसे करेंगे ?
उत्तर:
हम प्रसन्नतापूर्वक उन्हें बैठने के लिए कहेंगे। उनके पीने के लिए पानी व चाय या कॉफी प्रस्तुत करेंगे। यदि खाने का समय होगा तो उनके लिए खाने का प्रबन्ध करेंगे। उनके साथ ऐसा व्यवहार करेंगे कि उन्हें आने पर अपनापन लगे।

प्रश्न 2.
आपको छुट्टियों में किसके घर जाना सबसे अच्छा लगता है ? वहाँ की दिनचर्या अलग कैसे होती है ? लिखिए।
उत्तर:
मुझे छुट्टियों में मामा के घर जाना सबसे अच्छा लगता है। मामा का घर गाँव में है। वहाँ हमें सुबह जल्दी उठना पड़ता है। मामा के यहाँ दूध देने वाली कई गाएँ हैं। हमें ताजा दूध पीने को मिलता है। दही और मट्ठा भी भरपूर मिलता है। नाश्ते में रोटी के साथ ताजा मक्खन भी खाने को मिलता है। नहाने के लिए खेत में लगे ट्यूबवैल पर जाते हैं और जी भर नहाते और ऊधम मचाते हैं। रात को बड़े मामा जी हमें तरह-तरह की कहानियाँ सुनाकर हमारा मनोरंजन करते हैं।

प्रश्न 3.
मशीनी युग में अनेक परिवर्तन आए दिन होते रहते हैं। आप अपने आस-पास से इस प्रकार के किसी परिवर्तन का उदाहरण चुनिए और उसके बारे में लिखिए।
उत्तर:
हमारे गाँव में कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाते थे और जुलाहे खेस, दुतई एवं चादर बनाते थे। हँडिया, बटलोई का स्थान स्टील के बर्तनों ने ले लिया, अतः धीरे-धीरे उनका काम बन्द हो गया। शादी के समय पर सकोरों की जरूरत पड़ती थी, उसका स्थान प्लास्टिक के गिलासों ने ले लिया। जुलाहे के बुने कपड़ों का स्थान मशीन से बने कपड़ों ने ले लिया है। आज उनके हथकरघे खाली पड़े हैं। ये कारीगर अब खेतों में मजदूरी करने के लिए मजबूर है। मज़दूरी न मिलने पर इन्हें कई-कई दिन बेकार रहना पड़ता है।

प्रश्न 4.
बाज़ार में बिकने वाले सामानों की डिज़ाइनों में हमेशा परिवर्तन होता रहता है। आप इन परिवर्तनों को किस प्रकार देखते हैं ? आपस में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए बाजार में बिकने वाले सामान के डिज़ाइन में हमेशा परिवर्तन किया जाता है। ग्राहक हमेशा नई चीज़ की माँग करता है। वस्तुओं के निर्माता बदलाव लाकर उसे आकर्षक और टिकाऊ बनाने की कोशिश करते हैं। उस सामान में नई सुविधा जोड़ते हैं। हम इस परिवर्तन को अच्छा मानते हैं। टी.वी., वॉशिंग मशीन, कम्प्यूटर, प्रिंटर, वस्त्रों आदि के नए डिजाइन हमेशा बाज़ार पर छाए रहते हैं।

प्रश्न 5.
हमारे खान-पान, रहन-सहन और कपड़ों में भी बदलाव आ रहा है। इस बदलाव के पक्ष-विपक्ष में बातचीत कीजिए और बातचीत के आधार पर लेख तैयार कीजिए।
उत्तर:
खान-पान में फास्ट फूड हावी होता जा रहा है, जो जनसामान्य के स्वास्थ्य के लिए घातक है। एक दूसरा भी बदलाव है-सभी प्रांतों के प्रसिद्ध भोजन सब जगह मिल जाएँगे। सब उसका आनन्द उठा सकते हैं। रहन-सहन में बदलाव आया है। पहनावा देश और समाज की सीमा को पार करके सामान्य होता जा रहा है। कुछ बदलाव अच्छा भी है। हम दूसरों के भोजन एवं अच्छे पहनावे में से कुछ ग्रहण कर रहे हैं। पुराना फैशन लौटकर नए रूप में आ रहा है। जो कल तक बहिष्कृत एवं तिरस्कृत था, वह नए के रूप में स्वीकृत हो रहा है।

 

भाषा की बात

प्रश्न 1.
‘बदलू को किसी बात से चिढ़ थी तो काँच की चूड़ियों से’ और बदलू स्वयं कहता है-“जो सुन्दरता काँच की चूड़ियों में होती है, लाख में कहाँ संभव है”? ये पंक्तियाँ बदलू की दो प्रकार की मनोदशाओं को सामने लाती हैं। दूसरी पंक्ति में उसके मन की पीड़ा है। उसमें व्यंग्य भी है। हारे हुए मन से, या दुखी मन से अथवा व्यंग्य में बोले गए वाक्यों के अर्थ सामान्य नहीं होते। कुछ व्यंग्य वाक्यों को ध्यानपूर्वक समझकर एकत्र कीजिए और उनके भीतरी अर्थ की व्याख्या करके लिखिए।
(क) मशीन युग है न यह, लला! आजकल सब काम मशीन से होता है।
(ख) गाय कहाँ है, लला! दो साल हुए बेच दी। कहाँ से खिलाता ?
उत्तर:
भीतरी अर्थ-
(क) इन पंक्तियों में मशीन युग की बात की है कि सब काम मशीन से होता है। इसका अभिप्राय यह है कि हाथ से किया जाने वाला काम कम हो गया है और कारीगर बेकार हो गए हैं। उनके पास करने के लिए कोई काम नहीं बचा है।
(ख) ‘कहाँ से खिलाता’ में आर्थिक मजबूरी की ओर संकेत किया है। इसी कारण से गाय बेच दी गई। जब तक बदलू चूड़ियाँ बनाता था, तब तक सब सुविधाएँ थीं। बेरोजगार होने से सुविधाएँ भी छूट गई हैं।

प्रश्न 2.
‘बदलू’ कहानी में दृष्टि से पात्र है और भाषा की बात (व्याकरण) की दृष्टि से संज्ञा है। किसी भी व्यक्ति, स्थान, वस्तु, विचार अथवा भाव को संज्ञा कहते हैं। संज्ञा को तीन भेदों में बाँटा गया है।
(क) व्यक्तिवाचक संज्ञा, जैसे-शहर, गाँव, पतली-मोटी, गोल, चिकना इत्यादि।
(ख) जातिवाचक संज्ञा, जैसे-चरित्र, स्वभाव, वजन, आकार आदि द्वारा जानी जाने वाली संज्ञा।
(ग) भाववाचक संज्ञा, जैसे-सुंदरता, नाजुक, प्रसन्नता इत्यादि जिसमें कोई व्यक्ति नहीं है और न आकार, वजन। परंतु उसका अनुभव होता है। पाठ से तीनों प्रकार की संज्ञाएँ चुनकर लिखिए।
उत्तर:
व्यक्तिवाचक संज्ञा- बदलू, रज्जो।
जातिवाचक संज्ञा- आदमी, गोलियाँ, चूड़ियाँ, गाँव, बच्चे, काका, मकान, वृक्ष, लाख, चौखट, मुँगेरियाँ, मचिये, बेलन, वधू, मनिहार, स्त्रियाँ, अनाज, वस्त्र, पगड़ी, शहर, कलाइयाँ, मलाई, दूध, कलाई।
भाववाचक संज्ञा- चाव, पेशा, खपत, ज़िद, कसर, चिढ़, जीवन, खातिर, रुचि, दृष्टि, प्रचार, सुन्दरता, खाँसी, दमा, अवस्था, व्यथा, शांति, प्रसन्नता, हार, व्यक्तित्व।।

प्रश्न 3.
गाँव की बोली में कई शब्दों के उच्चारण बदल जाते हैं। कहानी में बदलू वक्त (समय) को बखत, उम्र (वय/आयु) को उमर कहता है। इस तरह के अन्य शब्दों को खोजिए जिनके रूप में परिवर्तन हुआ हो, अर्थ में नहीं।
उत्तर:
गाँव की बोली के कुछ और शब्द-मरद, लला।

भाषा की बात कुछ और

निम्नलिखित वाक्यों को पढ़िए-

  1. वह मुझे सुन्दर-सुन्दर लाख की गोलियाँ बनाकर देता था।
  2. मामा के गाँव का होने के कारण मुझे बदलू को ‘बदलू मामा’ कहना चाहिए था
  3. मकान के सामने बड़ा-सा सहन था जिसमें एक पुराना नीम का वृक्ष लगा था।

इन वाक्यों को इस प्रकार लिखना चाहिए-

  1. वह मुझे लाख की सुन्दर-सुन्दर गोलियाँ बनाकर देता था।
  2. मामा के गाँव का होने के कारण मुझे बदलू को ‘बदलू मामा’ कहना चाहिए
  3. मकान के सामने बड़ा-सा सहन था, जिसमें नीम का एक पुराना वृक्ष लगा था।

 

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘लाख की चूड़ियाँ कहानी के कहानीकार कौन हैं?
(क) कामतानाथ
(ख) रामदरश मिश्र
(ग) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(घ) इस्मत चुगताई
उत्तर:
(क) कामतानाथ

प्रश्न 2.
वस्तु विनिमय क्या है ?
(क) पैसा देकर वस्तु खरीदना
(ख) बाजार से वस्तु न लेना
(ग) वस्तु को सीधे उत्पादक
(घ) वस्तु के बदले वस्तु लेना
उत्तर:
(घ) वस्तु के बदले वस्तु लेना

प्रश्न 3.
‘हाथ कटने का’ इस कहानी में क्या अर्थ है ?
(क) घायल होना
(ख) अपनी बात न कह पाना
(ग) हाथों से रोजगार छिनना
(घ) काम करने में असमर्थ होना
उत्तर:
(ग) हाथों से रोजगार छिनना

प्रश्न 4.
‘मशीनी युग’ के कारण बदलू के जीवन में क्या बदलाव आया ?
(क) वह बीमार रहने लगा
(ख) उसका शरीर ढल गया
(ग) वह बेरोजगार हो गया
(घ) उपर्युक्त सभी कथन सत्य हैं
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी कथन सत्य हैं

प्रश्न 5.
लाख की वस्तुएँ सबसे ज्यादा किस राज्य में बनती है ?
(क) कर्नाटक
(ख) राजस्थान
(ग) महाराष्ट्र
(घ) पंजाब
उत्तर:
(ख) राजस्थान

प्रश्न 6.
व्यक्ति वाचक संज्ञा छाँटकर लिखो।
(क) मकान
(ख) सफलता
(ग) गीता
(घ) लड़ाई
उत्तर:
(ग) गीता

प्रश्न 7.
बदलू कौन था ?
(क) एक किसान
(ख) एक राज मिस्त्री
(ग) एक मनिहार
(घ) एक वकील
उत्तर:
(ग) एक मनिहार

प्रश्न 8.
बदलू लेखक को मलाई क्यों नहीं खिला पाया ?
(क) उसके घर में उस समय दूध नहीं था
(ख) दूध खराब हो गया था
(ग) बेरोजगारी के कारण उसकी गाय बिक चुकी थी
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) बेरोजगारी के कारण उसकी गाय बिक चुकी थी

 

बोध प्रश्नोत्तर

1. बदलू का मकान कुछ ऊँचे पर बना था। मकान के सामने बड़ा-सा शहर था जिसमें एक पुराना नीम का वृक्ष लगा था। उसी के नीचे बैठकर बदलू अपना काम किया करता था। बगल में भट्ठी दहकती रहती जिसमें वह लाख पिघलाया करता। सामने एक लकड़ी की चौखट पड़ी रहती जिस पर लाख के मुलायम होने पर वह उसे सलाख के समान पतला करके चूड़ी का आकार देता। पास में चार-छह विभिन्न आकार की बेलननुमा मुँगेरियाँ रखी रहतीं जो आगे से कुछ पतली और पीछे से मोटी होतीं। लाख की चूड़ी का आकार देकर वह उन्हें मुँगेरियों पर चढ़ाकर गोल और चिकना बनाता और तब एक-एक कर पूरे हाथ की चूड़ियाँ बना चुकने के पश्चात् वह उन पर रंग करता।

प्रश्न 1.
बदलू का मकान किस प्रकार का था ?
उत्तर:
बदलू का मकान कुछ ऊँचाई पर बना था। मकान के सामने बड़ा-सा आँगन था, जिसमें नीम का पुराना पेड़ लगा हुआ था।

प्रश्न 2.
बदलू कहाँ बैठकर लाख की चूड़ियाँ बनाया करता था ?
उत्तर:
बदलू नीम के पेड़ के नीचे बैठकर लाख की चूड़ियाँ बनाया करता था।

प्रश्न 3.
वह किससे चूड़ियाँ बनाता था ?
उत्तर:
वह लाख से चूड़ियाँ बनाता था।

प्रश्न 4.
बदलू चूड़ियाँ किस प्रकार बनाता था ?
उत्तर:
वह भट्टी में लाख पिघलाता, फिर उसे लकड़ी की एक चौखट पर रखकर मुलायम करता। लाख को सलाख की तरह पतला करके उसे चूड़ी का रूप देता। सामने रखी चार-छह मुंगरियों पर चढ़ाकर चूड़ी का आकार देता। उसे गोल व चिकना बनाता, तब उन पर रंग करता।

2. बदलू मनिहार था। चूड़ियाँ बनाना उसका पैतृक पेशा था और वास्तव में वह बहुत ही सुंदर चूड़ियाँ बनाता था। उसकी बनाई हुई चूड़ियों की खपत भी बहुत थी। उस गाँव में तो सभी स्त्रियाँ उसकी बनाई हुई चूड़ियाँ पहनती ही थीं आस-पास के गाँवों के लोग भी उससे चूड़ियाँ ले जाते थे। परंतु वह कभी भी चूड़ियों को पैसों से बेचता न था। उसका अभी तक वस्तु-विनिमय का तरीका था और लोग अनाज के बदले उससे चूड़ियाँ ले जाते थे। बदलू स्वभाव से बहुत सीधा था। मैंने कभी भी उसे किसी से झगड़ते नहीं देखा। हाँ, शादी-विवाह के अवसरों पर वह अवश्य जिद पकड़ जाता था। जीवन भर चाहे कोई उससे मुफ्त चूड़ियाँ ले जाए, परंतु विवाह के अवसर पर वह सारी कसर निकाल लेता था। आखिर सुहाग के जोड़े का महत्त्व ही और होता है। मुझे याद है-मेरे मामा के यहाँ किसी लड़की के विवाह पर जरा-सी किसी बात पर बिगड़ गया था और फिर उसको मनाने में लोहे लग गए थे। विवाह में इसी जोड़े का मूल्य इतना बढ़ जाता था कि उसके लिए उसकी घरवाली को सारे वस्त्र मिलते, ढेरों अनाज मिलता, उसको अपने लिए पगड़ी मिलती और रुपये जो मिलते सो अलग।

प्रश्न 1.
चूड़ियाँ बनाना बदलू का कैसा पेशा था ?
उत्तर:
चूड़ियाँ बनाना बदलू का पैतृक अर्थात् खानदानी पेशा था।

प्रश्न 2.
बदलू कैसी चूड़ियाँ बनाता था ?
उत्तर:
बदलू बहुत ही सुंदर चूड़ियाँ बनाता था।

प्रश्न 3.
उसकी चूड़ियों की खपत कैसी थी ?
उत्तर:
उसकी बनाई चूड़ियों की खपत खूब थी। उसके गाँव की तथा आस-पास के गाँव की स्त्रियाँ उसी की चूड़ियाँ पहनती थीं।

प्रश्न 4.
वह चूड़ियाँ किस प्रकार देता था ?
उत्तर:
बदलू अनाज के बदले चूड़ियाँ देता था। वह चूड़ियों को पैसों से नहीं बेचता था।

प्रश्न 5.
बदलू का स्वभाव कैसा था ?
उत्तर:
बदलू का स्वभाव अच्छा था। वह कभी किसे से झगड़ता नहीं था।

प्रश्न 6.
वह जिद कब पकड़ता था ?
उत्तर:
वह शादी-विवाह के अवसरों पर जिद पकड़ता था।

प्रश्न 7.
मामा की लड़की के विवाह के अवसर पर उसे क्या हो गया था ?
उत्तर:
मामा की लड़की की शादी के अवसर पर वह बिगड़ गया था। तब उसे बहुत मुश्किल से मनाया था।

प्रश्न 8.
सुहाग के जोड़े के बदले ‘बदलू’ को क्या-क्या मिलता था ?
उत्तर:
सुहाग के जोड़े के बदले बदलू को पगड़ी, अनाज और उसकी पत्नी को सारे वस्त्र मिलते थे, रुपये मिलते सो अलग।

 

लाख की चूड़ियाँ Summary

पाठ का सार

बदलू लाख की चूड़ियाँ बनाता था। वह लेखक को लाख की चूड़ियाँ सुन्दर-सुन्दर गोलियाँ बनाकर देता था। इस प्रकार लेखक ने अपने बचपन में ढेर सारी रंग-बिरंगी गोलियाँ एकत्र कर ली थीं। वह मेरे मामा का गाँव था, परन्तु मैं ‘बदलू’ को बदलू मामा न कहकर ‘बदलू काका’ कहता था। बदलू के आँगन में नीम का पुराना पेड़ था। उसी के नीचे बैठकर अपना काम करता। बगल में भट्टी दहकती जिसमें वह लाख पिघलाता। उसे चौखट पर रखकर पतला करके चूड़ी का आकार देता। फिर मुँगेरियों पर चढ़ाकर चूड़ी का आकार देता, उन्हें गोल और चिकना बनाता। पूरे हाथ की चूड़ियाँ बनाकर उन पर रंग करता। पुरानी मचिया पर वैठकर बदलू हुक्का गुड़गुड़ाता और अपना काम करता रहता। मैं जब उनके पास जाता, वे मेरे लिए मचिया मँगवा देते। मैं चुपचाप उनका काम देखता रहता था।

चूड़ियाँ बनाना बदलू का पैतृक पेशा था। गाँव की सभी स्त्रियाँ उसकी बनाई चूड़ियाँ पहनतीं। आस-पास के गाँव के लोग भी उससे चूड़ियाँ ले जाते। लोग अनाज के बदले चूड़ियाँ लेते थे। वह पैसे के बदले चूड़ियाँ नहीं बेचता था। वह कभी किसी से झगड़ा नहीं करता। जीवनभर कोई मुफ्त में चूड़ियाँ ले सकता था, पर शादी के समय वह सारी कसर निकाल लेता था। ऐसे मौके पर उसे मनाना बहुत कठिन था। विवाह के मौके पर उसकी पत्नी को सारे वस्त्र मिलते, ढेरों अनाज और उसको पगड़ी मिलती सो अलग से। वह काँच की चूड़ियों से बहुत चिढ़ता था।

वह मुझसे खूब अपनेपन से बात करता। मेरी बहुत खातिर भी करता था। गाय के दूध से मलाई बचाकर मेरे लिए रखता। आम की फसल में मैं रोज उसके यहाँ से दो-चार आम खा लेता। वह रोज मेरे लिए एक-दो गोलियाँ जरूर बना देता। मेरे पिता जी की दूसरे शहर में बदली हो गई। मैं काफी दिनों तक मामा के गाँव न जा सका। लाख की गोलियों में भी अब मेरी रुचि नहीं रह गई थी। मैं आठ-दस साल बाद मामा के गाँव गया। बहुत कुछ बदलाव आ गया। स्त्रियाँ काँच की चूड़ियाँ पहनने लगी थी।

मैं वदलू के पास गया। न मचिया वहाँ थी न बदलू की भट्टी। वह चूड़ियाँ बनाने का काम बन्द कर चुका था। गाँव भर में काँच की चूड़ियों का प्रचार हो चुका था। मशीनी युग ने बदलू काका का काम छीन लिया था। काका ने अपनी बेटी रज्जो को आवाज देकर मेरे लिए आम मँगवाए। गाय बेच दी गई थी। अतः मलाई खाने का मौका नहीं मिला। जो बदलू ने लाख की चूड़ियों का आखिरी जोड़ा बनाया था, वह रज्जो के हाथ की शोभा बढ़ा रहा था। ज़मीदार ने उस जोड़े का मनचाहा दाम नहीं दिया था, सो बदलू ने देने से मना कर दिया था। बदलू ने किसी के सामने हार नहीं मानी।

शब्दार्थ : चाव-तीव्र इच्छा, चाह; मोह लेना-आकर्षित कर लेना; सहन-आँगन; मचिया-छोटी खाट, चौकी; नव-वधू-नई बहू; खपत-माल की बिक्री; विनिमय-लेन-देन, अदल-बदल; कसर-कमी; लोहे लगना-कठिनाई होना; कुढ़ना-दुखी होना; नाजुक-कोमल; खातिर-स्वागत या सत्कार; विरले-बहुत कम; सहसा-अचानक; निहारना-देखना; स्मृति-पटल- याद में बना रहना अवस्था-उम्र; व्यथा-पीड़ा। लहककर-लहराकर; मुखातिब-जिससे कुछ कहा जाए; बखत-वक्त, समय; फबना- शोभा देना; मनिहार-चूड़ी बनाने वाला।

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Hindi NCERT Solutions Class 8

NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 1 ध्वनि

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ध्वनि NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 1

Class 8 Hindi Chapter 1 ध्वनि Textbook Questions and Answers

कविता से

प्रश्न 1.
कवि को ऐसा विश्वास क्यों है कि उसका अंत अभी नहीं होगा ?
उत्तर:
अभी-अभी कवि के जीवन में उल्लास-भरा बसन्त आया है। वसंत के आने से कवि के जीवन में नई ऊर्जा एवं शक्ति का संचार हुआ है। इसीलिए कवि को विश्वास है कि उसका अंत अभी नहीं होगा।

प्रश्न 2.
फूलों को अनंत तक विकसित करने के लिए कवि कौन-कौन सा प्रयास करता है?
उत्तर:
कवि अपना कोमलता से ओतप्रोत हाथ अलसाई कलियों पर फेरेगा, जिससे वे जागकर फूल बन जाएँगी। एक नया सवेरा आ जाएगा। कवि अपने प्रभावशाली काव्य की प्रेरणा से इस सक्रियता को अनंत तक बनाए रखने का प्रयास करता

प्रश्न 3.
कवि पुष्पों की तन्द्रा और आलस्य दूर हटाने के लिए क्या करना चाहता है ?
उत्तर:
कवि पुष्पों की तन्द्रा और आलस्य को दूर हटाने के लिए अपना स्वप्न के समान कोमल हाथ उन पर फेरेगा। पुष्प अभी कलियों के रूप में हैं। हाथ फेरने से वे खिल जाएँगे और उनका आलस्य दूर हो जाएगा।

कविता से आगे

प्रश्न 1.
वसंत को ऋतुराज क्यों कहा गया है ? आपस में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
ऋतुओं का राजा होने के कारण वसंत को ऋतुराज कहा गया है। इस समय मौसम न अधिक गर्म न अधिक ठंडा होता है। प्रकृति हरी-भरी एवं विविध प्रकार के फूलों से भरी होती है। खेतों में फसलें लहलहाती रहती हैं। जीवन में उल्लास भरा होता है। हर कार्य में उमंग का समावेश हो जाता है।

प्रश्न 2.
वसंत ऋतु में आने वाले त्योहारों के विषय में जानकारी एकत्र कीजिए और किसी एक त्योहार पर निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
वसंत ऋतु में आने वाले त्योहार हैं-वसंत पंचमी, महाशिवरात्रि एवं होली। वसंत पंचमी के अवसर पर सर्दी कम होने लगती है। लोग पीले वस्त्र पहनते हैं। साहित्यकार वसंत पंचमी के दिन महाप्राण निराला जी की जयंती भी मनाते हैं।

महाशिवरात्रि को भगवान शिव की पूजा की जाती है। आर्यसमाजी इसे ‘बोधरात्रि’ के नाम पर भी मनाते हैं क्योंकि इस दिन आर्यसमाज के प्रवर्तक महर्षि दयानन्द को आत्मबोध हुआ था।

होली- हमारे देश में अनेक त्योहार मनाये जाते हैं। इनमें से किसी का संबंध ऐतिहासिक घटना, संस्कृति, समाज अथवा धर्म से होता है और कुछ का सम्बन्ध ऋतु-परिवर्तन से है। यह फागुन मास की पूर्णिमा के दिन बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है।

होली का पर्व बसन्त ऋतु में मनाया जाता है। इन दिनों किसानों की फसलें पक जाती हैं। वे इन फसलों को देखकर झूम उठते हैं। प्रकृति के अंग-अंग में निखार आ जाता है। सर्दी समाप्त हो जाती है। मनुष्य के शरीर में चुस्ती एवं स्फूर्ति आ जाती है।

होली का संबंध एक पौराणिक घटना से जुड़ा हुआ है। हिरण्यकश्यप राजा स्वयं को ईश्वर मानता था। वह चाहता था कि लोग उसकी पूजा करे, लेकिन हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर-भक्त था। वह राजा की पूजा नहीं करता था। हिरण्यकश्यप ने उसे तरह-तरह से दण्डित किया। पहाड़ से गिराया, लेकिन ईश्वर ने उसे बचा लिया। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे नहीं जला सकती। भाई के कहने पर होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई। ईश्वर की कृपा से प्रह्लाद तो बच गया, लेकिन होलिका जल गई। इस घटना की याद में प्रतिवर्ष रात को होली जलाई जाती है।

इस तिथि को श्रीकृष्ण ने ‘पूतना’ नामक राक्षसी का वध किया था। इस खुशी में ब्रजवासियों ने रंग खेला और रास-रीला का उत्सव मनाया था।

होली के अगले दिन धुलेंडी होती है। इसी दिन प्रातःकाल से ही बच्चे, बूढ़े, वयस्क टोलियाँ बनाकर निकलते हैं, हँसते-गाते-नाच करते हुए रंग, गुलाल, अबीर एक-दूसरे को लगाते हैं। पानी में रंग घोलकर, पिचकारियों में भरकर डालते हैं। ऐसा करते हुए छोटे-बड़े, अमीर-गरीब में ऊँच-नीच का अन्तर समाप्त हो जाता है।

दोपहर तक यह त्योहार समाप्त हो जाता है। लोग नहा-धोकर नए वस्त्र पहनकर सायंकाल मेला देखने जाते हैं। हास्य-रस कवि-सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। वृंदावन की होली विशेष रूप से देखने वाली होती है।

आजकल हर त्योहार में कोई न कोई बुराई आती जा रही है। होली मनाने के ढंग में भी अपवित्रता आ गई है। लोग कीचड़, तारकोल एक-दूसरे पर लगाते हैं जिससे झगड़े भी हो जाते हैं। शराब पीकर लोग अश्लील हरकतें करते हैं।

होली रंगों का और उल्लास का पर्व है। हमें इसे उल्लास और पवित्रता से मनाना चाहिए। आपसी मतभेद को भुलाकर . एकता और प्रेम से मनाना चाहिए।

प्रश्न 3.
“ऋतु-परिवर्तन का जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है”-इस कथन की पुष्टि आप किन-किन बातों से कर सकते हैं ? लिखिए।
उत्तर:
ऋतु-परिवर्तन का जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। भयंकर गर्मी में पसीने से बेहाल होकर सब परेशान रहते हैं। विजली चली जाए फिर तो मुसीबत ही हो जाती है। भयंकर ठंड हमारे कार्यों को बहुत प्रभावित करती है। घना कोहरा सभी वाहनों को देर से चलने पर मजबूर कर देता है। वर्षा ऋतु आने पर फसलों को नया जीवन मिल जाता है। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था संतुलित वर्षा पर ही निर्भर है। अधिक वर्षा होने पर बाढ़ भी आती है जो जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर देती है। इस प्रकार सभी ऋतुएँ जीवन को प्रभावित करती हैं।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
कविता की निम्नलिखित पंक्तियाँ बताए कि इनमें किस ऋतु का वर्णन है ?
फूटे हैं आमों में बौर
भौंर वन-वन टूटे हैं।
होली मची ठौर-ठौर
सभी बंधन छूटे हैं।
उत्तर:
इस कविता की पंक्तियों में ‘वसंत ऋतु’ का वर्णन है। आमों में बौर इसी ऋतु में आते हैं और इसी ऋतु में होली मनाई जाती है।

प्रश्न 2.
स्वप्न भरे कोमल-कोमल हाथों को अलसाई कलियों पर फेरते हुए कवि कलियों को प्रभात के आने का संदेश देता है, उन्हें जगाना चाहता है और खुशी-खुशी अपने जीवन के अमृत से उन्हें सींचकर हरा-भरा करना चाहता है। फूलों-पौधों के लिए आप क्या-क्या करना चाहेंगे ?
उत्तर:
फूलों-पौधों के लिए हम ये काम करना चाहेंगे-

  1. फूलों और पौधों में से खरपतवार साफ करेंगे।
  2. उनमें खाद डालेंगे।
  3. पानी से सींचेगे। उन्हें मुरझाने नहीं देंगे।
  4. किसी को फूल या पत्ती नहीं तोड़ने देंगे।
  5. यह भी ध्यान रखेंगे कि हानिकारक कीट फूलों और पौधों को नुकसान न पहुँचाएँ।

प्रश्न 3.
कवि अपनी कविता में एक कल्पनाशील कार्य की बात बता रहा है। अनुमान कीजिए और लिखिए कि उसके बताए कार्यों का अन्य किन-किन संदर्भो से संबंध जुड़ सकता है ? जैसे नन्हे-मुन्ने बालक को माँ जगा रही हो..।
उत्तर:
माँ नन्हे-मुन्ने बालक को जगाने के लिए प्यार से हाथ फेरती है। पौधों से प्यार करने वाला व्यक्ति भी उसी प्रकार अपना स्नेह भरा हाथ फेरता है, उन्हें सींचकर हरा-भरा बनाता है। खिलते हुए फूलों को देखकर प्रसन्न होता है।

भाषा की बात

1. ‘हरे-हरे’, ‘पुष्प-पुष्प’ में एक शब्द की एक ही अर्थ में पुनरावृत्ति हुई है। कविता के ‘हरे-हरे’ ये पात’ वाक्यांश में ‘हरे-हरे’ शब्द-युग्म पत्तों के लिए विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुए हैं। यहाँ ‘पात’ शब्द बहुवचन में प्रयुक्त है। ऐसा प्रयोग भी होता है जब कर्ता या विशेष्य एक वचन में हो और कर्म या क्रिया या विशेषण बहुवचन में; जैसे-वह लंबी-चौड़ी बातें करने लगा। कविता में एक ही शब्द का एक से अधिक अर्थों में भी प्रयोग होता है-“तीन बेर खाती ते वे तीन बेर खाती है।” जो तीन बार खाती थी वह तीन बेर खाने लगी है। एक शब्द ‘बेर’ का दो अर्थों में प्रयोग करने से वाक्य में चमत्कार आ गया। इसे यमक अलंकार कहा जाता है। कभी-कभी उच्चारण की समानता से शब्दों की पुनरावृत्ति का आभास होता है, जबकि दोनों दो प्रकार के शब्द होते हैं; जैसे-मन का, मनका।

ऐसे वाक्यों को एकत्र कीजिए जिनमें एक ही शब्द की पुनरावृत्ति हो। ऐसे प्रयोगों को ध्यान से देखिए और निम्नलिखित पुनरावृत शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए-बातों-बातों में, रह-रहकर, लाल-लाल, सुबह-सुबह, रातों-रात, घड़ी-घड़ी।

कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर।
[1. पीर-पैगम्बर, 2. पीर-पीड़ा]
कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
उहि खाए बौराय जग, यहि पाय बौराय ॥
[1. कनक-सोना, 2. कनक-धतूरा]

वाक्य प्रयोग-

बातों-बातों में – मुझे बातों-बातों में पता चल गया कि सुमेर उधार माँगने के लिए आया है।
रह-रहकर – माँ को रह-रहकर अपने बेटे की याद परेशान कर रही थी।
लाल-लाल – सब्जी वाले की टोकरी लाल-लाल टमाटरों से भरी हुई थी।
सुबह-सुबह – सुबह-सुबह तैयार होकर मेरे साथ बाजार चलना।
रातों-रात – रातों-रात काम में लगा रहा तब जाकर सारा काम पूरा हो सका।
घड़ी-घड़ी – घड़ी-घड़ी उठकर उमा सड़क की ओर देखती है कि बच्चे स्कूल से आए या नहीं।

2. ‘कोमल गात, मृदुल वसंत हरे-हरे ये पात’
विशेषण जिस संज्ञा (या सर्वनाम) की विशेषता बताता है, उसे विशेष्य कहते हैं। ऊपर दिए वाक्य वाक्यांशों में गात, वसंत और पात शब्द विशेष्य हैं, क्योंकि इनकी विशेषता (विशेषण) क्रमशः कोमल, मृदुल और हरे-हरे शब्द बता रहे हैं।

हिन्दी विशेषणों के सामान्यतया चार प्रकार माने गए हैं-गुणवाचक विशेषण, परिमाणवाचक विशेषण, संख्यावाचक विशेषण और सार्वनामिक विशेषण।

कुछ करने को

1. वसंत पर अनेक सुंदर कविताएँ हैं। कुछ कविताओं का संकलन तैयार कीजिए।
2. शब्दकोश में वसंत’ शब्द का अर्थ देखिए।

वसंत पर कविताएँ

अश्विन गाँधी ने ‘गीत वसंत के’ कविता में वासंती प्रभाव को कुछ इस प्रकार चित्रित किया है-

खाली हाथ आए
और खाली ही जाएँगे
दे कर इस मौसम को
गीत वसंत के।

लम्बे सफर में
कठिन डगर में
मिलें सभी को
खिलें सभी पर

शाम सुरमई
सुबह सिंदूरी

सुखमय हों सभी छोर
फैले अनंत के
दे कर इस मौसम को-
गीत वसंत के।

चहकते पंछी
महकते गुलशन
भँवरों की गुनगुन
दूब के आँगन

उमंग का आँचल
उम्मीद का सम्बल
पूरे हों सपने-
आदि से अंत के
देकर इस मौसम को-
गीत वसंत के।

वासंती दोहे

रामेश्वर काम्बोज हिमांशु

वसंत द्वारे है खड़ा, मधुर-मधुर मुस्कान।
साँसों में सौरभ घुला, जग भर से अनजान ॥
चिहुँक रही सुनसान में, सुधियों की हर डाल।
भूल न पाया आज तक, सुमन-छुअन वह भाल ॥
जगा चाँद है देर तक आज नदी के कूल।
लगता फिर से गड़ गया, उर में तीखा शूल ॥
मौसम बना बहेलिया, जीना मरना खेल।
घायल पाखी हो गए, ऐसी लगी गुलेल ॥
अँजुरी खाली रह गई, बिखर गए सब फूल ।
सबके बिन मधुमास में, उपवन लगते शूल ॥

शब्दकोश में वसंत के अर्थ-

वर्ष की छह ऋतुओं में से एक ऋतु।
– फूलों का गुच्छा
– उन्नति काल
– सौभाग्य काल
– एक राग का नाम
– छह रागों में से एक।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
ध्वनि कविता के कवि कौन हैं ?
(क) निर्मल वर्मा
(ख) रामधारी सिंह दिनकर
(ग) सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
(घ) सूरदास
उत्तर:
(ग) सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

प्रश्न 2.
कवि क्यों कहता है कि मेरा अंत अभी नहीं होगा ?
(क) कवि अभी बच्चा है
(ख) कवि ने मौत पर विजय प्राप्त करली है ?
(ग) कवि को अभी बहत कार्य करने है।
(घ) कवि के जीवन में अभी-अभी वसंत आया है ?
उत्तर:
(घ) कवि के जीवन में अभी-अभी वसंत आया है ?

प्रश्न 3.
हरे-हरे पात कितका प्रतीक है?
(क) जीवन की खुशियों का
(ख) हरियाली का
(ग) जीवन के वैभव का
(घ) घन संपत्ति का
उत्तर:
(क) जीवन की खुशियों का

प्रश्न 4.
कवि फूल-फूल से क्या खींच लेना चाहता है ?
(क) शहद
(ख) तंद्रालस लालसा
(ग) प्राण
(घ) जल
उत्तर:
(ख) तंद्रालस लालसा

प्रश्न 5.
कवि उन फूलों को किससे सींचना चाहता है ?
(क) जल से
(ख) धन से
(ग) भावनाओं से
(घ) नव जीवन के अमृत से
उत्तर:
(घ) नव जीवन के अमृत से

प्रश्न 6.
‘प्रत्यूष’ शब्द का क्या अर्थ है ।
(क) प्रयोग
(ख) प्रतिदिन
(ग) प्रातःकाल
(घ) सायंकाल
उत्तर:
(ग) प्रातःकाल

निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़ो और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दो-

(क) अभी न होगा मेरा अंत
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसंत-
अभी न होगा मेरा अन्त ।

हरे-भरे ये पात
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात।
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘अभी न होगा मेरा अन्त’ का क्या आशय है ?
उत्तर:
मुझे अभी बहुत कुछ करना है। मुझमें अभी बहुत सारा रचनात्मक कार्य करने की शक्ति मौजूद है।

प्रश्न 2.
‘मेरे वन में मृदुल वसंत’ का क्या आशय है ?
उत्तर:
जैसे वन में मृदुल वसंत आता है, उसी प्रकार मेरे जीवन में भी नई-नई आशाओं का संचार हुआ है।

प्रश्न 3.
कवि कलियों पर किस प्रकार का हाथ फेरेगा ?
उत्तर:
कलियाँ अधनींदी अवस्था में हैं। कोमलता उनका सबसे बड़ा गुण है। कवि का हाथ उतना ही कोमल है जितने कोमल किसी के सपने होते हैं।

प्रश्न 4.
‘निद्रित कलियों’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
‘निद्रित कलियों’ से तात्पर्य वह युवा वर्ग है जिसमें जागृति नहीं है, जो अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत नहीं है।

प्रश्न 5.
कवि कैसा सवेरा जगाना चाहता है ?
उत्तर:
कवि एक मनोहर सवेरा जगाना चाहता है।

प्रश्न 6.
‘अभी-अभी ही’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि ने ‘अभी-अभी’ के साथ ‘ही’ का प्रयोग करके उसे तात्कालिक वर्तमान से जोड़ दिया है।

(ख) पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं
अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूंगा मैं,
द्वार दिखा दूंगा फिर उनको।
हैं मेरे वे जहाँ अनन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त।

प्रश्न 1.
प्रत्येक पुष्प से कवि क्या खींच लेगा ?
उत्तर:
प्रत्येक पुष्प से कवि तन्द्रा में डूबे हुए आलस्य को खींच कर उसे सक्रिय कर देगा।

प्रश्न 2.
प्रत्येक पुष्प का आलस्य दूर करने के बाद कवि क्या करेगा ?
उत्तर:
केवल आलस्य दूर करना ही कवि का काम नहीं है। वह साथ ही साथ उसे नए जीवन के अमृत से भी सींच देगा ताकि उसमें नया जोश भर जाए।

प्रश्न 3.
‘तन्द्रालस पुष्प’ कौन हो सकता है ?
उत्तर:
भारत का युवा वर्ग ‘तन्द्रालस पुष्प’ हो सकता है।

प्रश्न 4.
कवि कौन-सा द्वार दिखाने की बात करता है ?
उत्तर:
कवि अमरता का द्वार दिखाने की बात करता है।

काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. अभी न होगा मेरा अंत
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसंत-
अभी न होगा मेरा अंत।
हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ, कोमल गात।
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्युष मनोहर।

प्रसंग – उपर्युक्त पंक्तियाँ सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित ‘ध्वनि’ कविता से उद्धृत हैं। निराला जी ने कविता में नए प्रयोग किए। आलोचकों को लगा कि इन नए प्रयोगों से कवि के ‘साहित्यकार-जीवन’ का अन्त हो जाएगा। निराला जी ने उन भ्रांत धारणाओं का विरोध किया है।

व्याख्या – मेरे काव्य-जीवन का यह उत्कर्ष काल है। जो यह समझ बैठे हैं कि मेरे जीवन का अन्त होने वाला है, वे इस भ्रांतिपूर्ण विचार से स्वयं को मुक्त कर लें। ऐसा कुछ होने वाला नहीं है; क्योंकि अभी-अभी तो मेरे जीवन का वसन्त आया है। मेरे काव्य को ऊँचाई प्राप्त हुई है। अभी जीवन का प्रत्येक पल हरियाली से भरा हुआ है। उसके हाथों के स्पर्श में प्रेम का पुलक है जिसके सहलाने भर से कलियाँ खिल उठेगी। जीवन में रंग-बिरंगे फूल मुस्कराने लगेंगे। जिनकी चेतना सुप्त है, उन्हें मैं अपने स्पर्श से जाग्रत कर दूंगा। मैं ऐसे सभी युवकों में नई प्रेरणा का संचार कर दूंगा। देश में नए सवेरे का आगमन हो जाएगा।

विशेष-

  1. ‘अभी-अभी ही’ पदों के द्वारा कवि ने वर्तमान क्षण की पुष्टि की है। ‘ही’ का समावेश करके कवि ने और तीव्रता का समावेश कर दिया है।
  2. ‘कलियाँ, कोमल’ में ‘क’ व्यंजन की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।
  3. ‘हरे-हरे’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  4. ‘वन’ इन पंक्तियों में जीवन का प्रतीक है। ‘वंसत’ जीवन के उत्कर्ष का प्रतीक है।

2. पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नव जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूंगा मैं,
द्वार दिखा दूंगा फिर उनको।
हैं मेरे वे जहाँ अनंत-
अभी न होगा मेरा अंत।

प्रसंग- उपर्युक्त पंक्तियाँ सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित ‘ध्वनि’ कविता से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि तंद्रा में डूबी पीढ़ी को सचेत करने का निश्चय प्रकट करता है।

व्याख्या- कवि कहता है कि मैं प्रत्येक पुष्प से उसके आलस्य को खींचकर दूर कर दूंगा। जो युवाशक्ति पूरे उपवन की शोभा है, उसे जाग्रत कर सक्रिय कर दूंगा। उसके जीवन में नई चेतना का अमृत भर दूंगा। आलस्य का परित्याग ही उन्हें अमर जीवन की ओर ले जाएगा। अभी मेरा अन्त नहीं होगा। अभी तो मुझे इस संसार में बहुत कुछ करना है।
कवि प्रत्येक पल को वसंत की ताजगी के साथ जीना चाहता है।

विशेष-

  1. ‘सहर्ष सींच’ में अनुप्रास अलंकार है।
  2. ‘पुष्प-पुष्प’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  3. ‘द्वार दिखा दूंगा’ में अनुप्रास अलंकार है। कवि का ‘द्वार दिखा दूंगा’ से तात्पर्य सही दिशाबोध कराना है।

ध्वनि Summary

ध्वनि पाठ का सार

‘ध्वनि’ कविता में निराला जी ने कविता के प्रति मानवीय संवेदना को उद्घाटित किया है तो दूसरी ओर अपने जीवन के वसंत की बात भी की है। कवि कहता है कि अभी तो मेरे जीवन में कोमल वसंत का आगमन हुआ है। मेरे जीवन का अन्त अभी नहीं हो सकता है। हरे-हरे पत्तों पर, डालियों और कलियों पर, कोमल शरीर पर मैं अपना सुखद सपनों से भरा कोमल हाथ फेरूँगा। सोती हुई कलियाँ भी जग जाएँगी। एक नए सवेरे का आगमन हो जाएगा, क्योंकि सोई हुई कलियाँ जागकर फूल के रूप में खिल जाएँगी, प्रत्येक फूल में लालसा छुपी हुई है, मैं उस लालसा को खींच लूँगा। अपने जीवन के अमृत से सबको सींच दूँगा। फिर इन सबको भी सुखों का द्वार दिखा दूंगा। वह द्वार जहाँ मेरे अनन्त परमेश्वर का वास है। मुझे अभी बहुत कुछ करना है। अभी मेरा अन्त नहीं होगा।

शब्दार्थ : मृदुल-कोमल; वन-जंगल; गाल-शरीर; प्रत्यूष-प्रातःकाल; निद्रित-नींद में डूबी हुईं; तंद्रालस-हल्की नींद के आलस्य से भरे हुए; अनंत-ईश्वर; लालसा-कुछ पाने की इच्छा।

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  10. कामचोर Class 8 MCQ
  11. जब सिनेमा ने बोलना सीखा Class 8 MCQ
  12. सुदामा चरित Class 8 MCQ
  13. जहाँ पहिया हैं Class 8 MCQ
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  15. सूरदास के पद Class 8 MCQ
  16. पानी की कहानी Class 8 MCQ
  17. बाज और साँप Class 8 MCQ
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Summary

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Measures To Reform Educational System 

Measures To Reform Educational System

Over six decades number of measures have been taken to reform the educational system, These various measures can be grouped into three parts, viz., i) equality reforms, 11 quarry reforms, and iii) reforms for administrative ease. In an educationally advanced environment, the educational reforms seem to have achieved success but in a less-developed socio-economic and educational environment, educational reforms seem to have been less successful. It appears that reform meant for the classes seem to have taken a relatively shorter period to succeed.

In the case of a majority of educational reforms, the primary initiative was taken by the Government and the mass involvement was very much limited. The people, both the target group as well as others, simply followed this initiative on the part of the government or the leadership.

The global approach to educational change seems to have received greater attention by policymakers than the specific measures for educational change meant for specific target groups. The global measures have an implicit bias towards the socio implicit bias towards socio-economically better-off sections of society, as major benefits from such measures could be cornered by them.

In short, educational reforms have not been successful in overcoming the weakness of smaller coverage, lower quality and higher inequality. In some cases, the problems seem to have been aggravated with widening inter-regional disparities, inter-community disparities and still larger inequalities between the male and the female learners.

Resource Allocation in Plans: Education has been a low priority area in terms of the resource allocation in our plans. A glance at the percentage share of funds for education in the total plan outlay would reveal that it has been decreasing from the third plan onwards, as shown in the below table.

In simple words, education has been a low priority area in the Indian economy. After the higher priority areas like industry and agriculture had their required shares, whatever used to be left in the resource-pot would be distributed among the low priority areas, among which education also figured. There is a need for planning education expenditure on a priority basis.

Future Education Policy

Now that the demand for education is rising from across the cláss, caste and community divide, the three most important elements in future education policy should be: • To make primary education not only available but also reached to and availed of by all children so that at least in the next generation, we have a more educated, alive and alert population. To focus on the education of women and particularly female children, by reaching out to them. To make education worthwhile, and relate it to the actual needs of the population, in terms of suitability of the education imparted for employment, for better skills, for a better understanding of health, education, environmental and other relevant issues.

Primary education has, to be meaningful, to be imparted in the mother tongue of all children, at least in the 16 major languages ( and scripts) which are in common use across the country. To this may be added that school curricula have to be made less rigid, and innovative initiatives have to be adopted t in the field of education. A substantial increase in the proportion of funding of primary education is also necessary, at the same time increasing community involvement to make the education system work. This calls for decentralisation and debureaucratisation of the education system and giving the initiative to the community at large to run the education system. Also to give effect to the principle of equal opportunity all through education, primary has to be given to education for women and, in particular, girls of school-going age; education for other backward sections of the population like schedule castes and a people. convergence of services like the provision of nutrition for children, which will inter and also help to reduce the dropout rate. making education universally desired, through a change in the curricula and the education systems, and relating education to the needs of the people.

And above all these, and most immediate, the current policy of the ‘trickle down’ method has to be replaced by a movement that starts bottom up.

National Knowledge Commission

In early 2005., the government constituted the National Knowledge Commission to make India not only a knowledge-producing society but also a knowledge sharing and knowledge-consuming society. The Commission’s agenda would be shared by a “knowledge pentagon with five action areas” as follows.

Increasing access to knowledge for public benefit. Developing higher education concepts. Rejuvenating science and technology institutions. Enabling application of knowledge by industry to enhance manufacturing competitiveness. Encouraging intensive use of knowledge-based services by the government for citizen’s empowerment. Opportunities offered by forces of globalisation offer India scope to improve the quality of life of its people, provided appropriate policies are put in place.

Here are the notes for Health Policy.

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 2 Questions and Answers Summary तलाश

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 2 Questions and Answers Summary तलाश

प्रश्न 1.
नेहरू जी के मन में क्या प्रश्न उठते थे?
उत्तर:
नेहरू जी के मन में निम्नलिखित प्रश्न उठते थे-
• आखिर भारत है क्या?
• अतीत में भारत किस विशेषता का प्रतिनिधित्व करता था?
• भारत ने अपनी प्राचीन संस्कृति को कैसे खो दिया?
• क्या आज भी भारत के पास ऐसा कुछ बचा है जिसे जानदार कहा जा सके?
• आधुनिक विश्व से उसका तालमेल किस रूप में बैठता है?

प्रश्न 2.
लेखक ने भारत को किस रूप में देखा?
उत्तर:
लेखक ने भारत को आलोचक के रूप में देखा।

प्रश्न 3.
लेखक कहाँ खड़ा था?
उत्तर:
लेखक भारत के उत्तर-पश्चिम में स्थित सिंधुघाटी में मोहनजोदड़ो के एक टीले पर खड़ा था। उसके चारों तरफ प्राचीन नगर के घर और गलियाँ बिखरी पड़ी थीं।

प्रश्न 4.
सिंधु घाटी की सभ्यता का समय क्या बताया गया है?
उत्तर:
लेखक द्वारा इसका समय लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व बताया गया है।

प्रश्न 5.
सिंधु घाटी की सभ्यता के बारे में क्या बताया गया है?
उत्तर:
• यह सभ्यता पूर्ण व विकसित थी।
• इसका आधार ठेठ भारतीयपन था।
• इसका समय लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व था।
• इसका अन्य सभ्यताओं से भी संबंध रहा था।

प्रश्न 6.
लेखक पर किसने प्रभाव डाला?
उत्तर:
लेखक पर प्राचीन साहित्य के विचारों की ओजस्विता, भाषा की स्पष्टता और उसके पीछे सक्रिय मस्तिष्क की समृद्धि ने गहरा प्रभाव डाला।

प्रश्न 7.
इस सभ्यता का दूसरे किन देशों के लोगों से संपर्क रहा?
उत्तर:
फारस, मिस्र, ग्रीस, चीन, अरब, मध्य एशिया और भू-मध्यसागर के लोगों से उसका बराबर निकटसंपर्क रहा।

प्रश्न 8.
पहाड़ों के बारे में लेखक का क्या कहना है?
उत्तर:
लेखक का पहाड़ों के प्रति विशेष प्रेम था। कश्मीर के साथ उसका खून का रिश्ता था।

प्रश्न 9.
नदियों के बारे में नेहरू जी के क्या विचार हैं?
उत्तर:
पर्वतों से निकलकर भारत के मैदानी भागों में बहने वाली नदियों ने आकर्षित किया है। यमुना के चारों ओर नृत्य, उत्सव और नाटक से संबंधित अनेक पौराणिक कथाएँ हैं। भारत की प्रमुख नदी गंगा ने भारत के हृदय पर राज किया है। गंगा की गाथा भारत की सभ्यता और संस्कृति की कहानी है।

प्रश्न 10.
किसके पत्थर भारत के अतीत की कहानी कहते हैं?
उत्तर:
पुराने स्मारकों और भग्नावशेषों, पुरानी मूर्तियों, भित्तिचित्रों, अजंता-एलोरा, एलिफेंटा की गुफाएँ भारत के अतीत की कहानी कहते हैं।

प्रश्न 11.
नेहरू जी ने कुंभ पर्व पर क्या देखा?
उत्तर:
नेहरू जी अपने शहर इलाहाबाद व हरिद्वार में कुंभ पर्व पर मेले में जाते थे। वहाँ हजारों की संख्या में लोग आते और गंगा-स्नान करते थे।

प्रश्न 12.
नेहरू जी ने किन-किन ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण किया था?
उत्तर:
नेहरू जी ने निम्नलिखित ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण किया था-
• अजंता, एलोरा, एलिफेंटा की गुफाएँ।
• आगरा और दिल्ली में बनी इमारतें।
• बनारस के पास सारनाथ।
• फतेहपुर सीकरी, हरिद्वार आदि।

प्रश्न 13.
लेखक को किन-किन कारणों से उत्तरोत्तर गिरावट का अनुभव होता है?
उत्तर:
लेखक को लगता है-शब्दाडंबर की प्रधानता, भव्य कला एवं मूर्ति-निर्माण की जगह जटिल पच्चीकारी वाली नक्काशी का होना, सरल, सजीव और समृद्ध भाषा के स्थान पर अत्यंत अलंकृत और जटिल साहित्य शैली अपनाना, संकीर्ण रूढ़िवादिता उत्तरोत्तर गिरावट का कारण है।

प्रश्न 14.
लेखक को किससे संतोष नहीं हुआ?
उत्तर:
लेखक को पुस्तकों, प्राचीन स्मारकों और विगत् उपलब्धियाँ तो समझ आईं, लेकिन उसे वह नहीं मिला जिसकी वह तलाश कर रहा था। इसलिए उसे संतोष नहीं हुआ।

प्रश्न 15.
लेखक को किस बात से निराशा नहीं हुई?
उत्तर:
लेखक ने सामान्य व्यक्तियों से बहुत अपेक्षाएँ नहीं रखी थी, इसलिए उसे बहुत निराशा नहीं हुई। उसने उससे जितनी उम्मीद की थी, उससे अधिक पाया।

प्रश्न 16.
भारत माता के संबंध में नेहरू जी ने लोगों से क्या प्रश्न पूछे? उन्हें क्या उत्तर मिला?
उत्तर:
‘भारत माता की जय’ बोलने वालों से नेहरू जी प्रश्न पूछते थे कि इस जयकारे से उनका क्या आशय है? जब एक किसान ने उन्हें बताया कि भारत माता हमारी धरती है, भारत की प्यारी मिट्टी है। तब नेहरू जी पूछते-कौन-सी मिट्टी-अपने गाँव की, जिले की, राज्य की या पूरे भारत की मिट्टी?

प्रश्न 17.
नेहरू जी ने सीमित नजरिये वाले किसानों को क्या बताया?
उत्तर:
लेखक ने सीमित नजरिये वाले किसानों को बताया कि जिस देश की मुक्ति के लिए हम संघर्ष कर रहे हैं, उसका हर हिस्सा एक-दूसरे से भिन्न होते हुए भी भारत है। उन्होंने किसानों को उनकी समस्याओं के बारे में जानकारी दी।

प्रश्न 18.
भारत की विविधता कैसे अद्भुत है?
उत्तर:
भारत में विविधता प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देती है। यह शारीरिक व मानसिक दोनों रूपों में दिखाई देती है। उत्तर-पश्चिम क्षेत्र के पठानों और सुदूर दक्षिण के वासी तमिल में बहुत कम समानता है, पर उनके भीतरी सूत्र एक समान ही हैं।

प्रश्न 19.
क्या जानकारी हैरत में डालने वाली है?
उत्तर:
यह जानकारी बेहद हैरत में डाल देने वाली है कि बंगाली, मराठी, गुजराती तमिल, आंध्र, उडिया, असमी, कन्नड़, मलयाली, सिंधी, पंजाबी, पठान, कश्मीरी, राजपूत और हिंदुस्तानी भाषा-भाषी कैसे सैकड़ों वर्षों से अपनी पहचान बनाये रहते हैं। सबके गुण- दोष एक से हैं।

प्रश्न 20.
अब कौन-सी अवधारणा विकसित हो गई?
उत्तर:
अब राष्ट्रवाद की भावना अधिक विकसित हो गई है। विदेशों में भारतीय अनिवार्य रूप से एक राष्ट्रीय समुदाय बनाकर विभिन्न कारणों से जुटते रहते हैं; भले ही उनमें भीतरी भेद हो। एक हिंदुस्तानी ईसाई कहीं भी जाए, उसे हिंदुस्तानी ही माना जाता है।

प्रश्न 21.
अनपढ़ ग्रामीणों को क्या याद थे?
उत्तर:
अनपढ़ ग्रामीणों को महाकाव्यों व ग्रंथों के सैकड़ों पद याद थे जिनका प्रयोग वे अपनी बातचीत के दौरान करते थे। वे प्राचीन कथाओं में सुरक्षित नैतिक शिक्षाओं का भी उल्लेख करते थे।

प्रश्न 22.
लेखक कब विस्मय-मुग्ध हो जाता है?
उत्तर:
लेखक जब गाँवों से गुजरते हुए किसी मनोहर पुरुष व स्त्री को देखता था तो उनके संवेदनशील चेहरे, बलिष्ठ देह, महिलाओं में लावण्यता, नम्रता, गरिमा आदि देखकर वह मंत्र-मुग्ध हो जाता था।

भारत के अतीत की झाँकी-नेहरू जी कहते हैं कि बीते सालों में उनका भारत को समझने का प्रयास रहा है। उनके मन में देश के प्रति प्रश्न उठते हैं कि आखिर भारत क्या है? भारत भूतकाल की किस विशेषता का प्रतिनिधित्व करता था? उसने अपनी प्राचीन शक्ति को कैसे खो दिया? भारत उनके खून में रचा-बसा था। उन्होंने भारत को एक आलोचक की दृष्टि से देखना शुरू किया। उनके मन में तरह-तरह की शंकाएँ उठ रही थीं। वे विशेष तत्त्व को जानना चाहते थे।

नेहरू जी भारत के उत्तर-पश्चिम में स्थित सिंधु घाटी में मोहनजोदड़ो के एक टीले पर खड़े थे। उनके चारों ओर उस नगर के घर और गलियाँ बिखरी थीं। इस नगर को 5000 वर्ष पूर्व का बताया गया है। वहाँ एक प्राचीन और पूर्ण विकसित सभ्यता थी-इसका ठेठ भारतीयपन और यही आधुनिक भारतीय सभ्यता का आधार है। भारत ने फारस, मिस्र, ग्रीस, चीन, अरब, मध्य एशिया तथा भू-मध्यसागर के लोगों को अपनी सभ्यता से प्रभावित किया तथा स्वयं भी उनसे प्रभावित हुआ।

नेहरू जी ने भारतीय इतिहास और उसके विशाल प्राचीन साहित्य को पढ़ा जिससे वह प्रभावित हुए। उन्होंने चीन और पश्चिमी एशिया से आए पराक्रमी यात्रियों की दास्तान को पढ़ा और समझा। वे हिमालय पर भी घूमते रहे जिसका पुराने मिथकों और दंत-कथाओं के साथ निकट संबंध है, जिसने उनके विचारों और साहित्य को प्रभावित किया। पहाड़ों के प्रति, विशेषकर कश्मीर के प्रति उनका विशेष लगाव रहा है। भारत की विशाल नदियाँ उन्हें आकर्षित करती रही हैं। इंडस और सिंधु के नाम पर हमारे देश का नाम इंडिया और हिन्दुस्तान पड़ा। यमुना के चारों ओर नृत्य, उत्सव और नाटक से संबंधित न जाने कितनी पौराणिक कथाएँ एकत्र हैं। भारत की नदी गंगा ने भारत के हृदय पर राज किया है। प्राचीन काल से आधुनिक युग तक गंगा की धारा व गाथा भारत की सभ्यता और संस्कृति की कहानी है।

नेहरू जी कहते हैं कि उन्होंने भारत के पुराने स्मारकों, पुरानी मूर्तियों, अजंता, एलोरा, एलिफेंटा की गुफाओं को देखा है। वे अपने नगर इलाहाबाद और हरिद्वार में कुंभ के मेले के अवसर पर जाते थे। उनकी यात्राओं ने उन्हें अतीत में देखने की दृष्टि प्रदान की। उन्हें सच्चाई का बोध होने लगा। उनके मन में अतीत के सैकड़ों चित्र भरे हुए थे। बनारस के पास सारनाथ में उन्होंने बुद्ध को पहला उपदेश देते हुए अनुभव किया था। उन्हें अकबर का विभिन्न संतों और विद्वानों के साथ संवाद और वाद-विवाद की अनुभूति हो रही थी। इस प्रकार इतिहास के द्वारा भारत की लंबी झाँकी अपने उतार-चढ़ावों, विजय-पराजयों के साथ नेहरू जी ने देखा था।

भारत की शक्ति और सीमा- भारत की शक्ति के स्रोतों और नाश के कारणों की खोज लंबी और उलझी हुई है। नई तकनीकों ने पश्चिमी देशों को सैनिक बल दिया और उनके लिए अपना विस्तार करके पूरब पर अधिकार करना आसान हो गया। पुराने समय में भारत में मानसिक सजगता और तकनीकी कौशल की कमी नहीं थी, किंतु बाद की सदियों में गिरावट आने लगी। भव्य कला और मूर्ति-निर्माण का स्थल जटिल साहित्य-शैली विकसित हुई। विवेकपूर्ण चेतना लुप्त हो गई और अतीत की अंधी मूर्ति-पूजा ने उसकी जगह ले ली। इस हालात में भारत का ह्रास होने लगा, किंतु यह स्थिति का पूरा और पूर्णतः सही सर्वेक्षण नहीं है। एक युग के अंत पर नई चीजों का निर्माण होता रहा। समय-समय पर पुनर्जागरण के दौर आते रहे।

भारत की तलाश- लेखक ने भारत की समझ के लिए पुस्तकों, प्राचीन स्मारकों, विगत् सांस्कृतिक उपलब्धियों का अध्ययन किया, लेकिन उससे उसे संतोष नहीं हुआ। लेखक मध्य वर्ग व अपने जैसे लोगों का प्रशंसक नहीं था। मध्य वर्ग खुद तरक्की करना चाहता था। अंग्रेजी शासन के ढाँचे में ऐसा न कर पाने के कारण इस वर्ग में विद्रोह की भावना पनपी। लेकिन अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकना उसके वश की बात नहीं थी। नई ताकतों ने सिर उठाया। दूसरे ढंग का भारत अस्तित्व में आया। लेखक ने वास्तविक भारत की तलाश शुरू की। इससे उसके अंदर समझ और द्वंद्व पैदा हुआ। कुछ लोग ग्रामीण समुदाय से पहले से परिचित थे, इसलिए उन्हें कोई नया उत्तेजक अनुभव नहीं हुआ। भारत की ग्रामीण जनता में ऐसा कुछ था जिसे परिभाषित करना कठिन है। लेखक आम जनता की अवधारणा को काल्पनिक नहीं बनाना चाहता। उसके लिए भारत के लोगों का सारी विविधता के साथ अस्तित्व है। लेखक ने जितनी उम्मीद की थी, उससे कहीं अधिक पाया। भारत के लोगों में एक प्रकार की दृढ़ता और अंतःशक्ति है जिसका कारण भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परंपरा है। बहुत कुछ समाप्त हो जाने के उपरांत भी बहुत कुछ ऐसा है जो सार्थक है। इसके साथ काफी कुछ निरर्थक और अनिष्टकर भी है।

भारत माता- नेहरू जी अक्सर सभाओं में लोगों से भारत के स्वरूप के बारे में चर्चा करते थे। ‘भरत’ के नाम पर भारत का प्राचीन संस्कृत नाम है। यह बात उन्होंने सीमित दृष्टिकोण रखने वाले किसानों को बताने का प्रयास किया तथा इस महान देश को मुक्ति दिलाने के लिए जागरुक किया। उन्होंने अपनी यात्राओं में किसानों की विविध समस्याओं-गरीबी, कर्ज, निहित स्वार्थ, जमींदार, महाजन, भारी लगान, पुलिस अत्याचार पर चर्चा की। उन्होंने लोगों को अखंड भारत के बारे में सोचने के लिए कहा। यहाँ के लोगों को प्राचीन महाकाव्यों, दंत-कथाओं की पूरी जानकारी थी। लोग ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाते थे। नेहरू जी लोगों से ‘भारत माता की जय’ से उनका क्या आशय है, इसके बारे में पूछते थे। एक व्यक्ति ने उत्तर दिया-भारत माता हमारी धरती है, भारत की मिट्टी प्यारी है। भारत में ही सब कुछ है। भारत के पहाड़ और नदियाँ जंगल और फैले हुए खेत जो हमारे लिए भोजन मुहैया करते हैं, यह सब उसे प्रिय हैं। ‘भारत माता की जय’ ‘जनता- जनार्दन की जय’। लेखक ने उनसे कहा कि तुम भारत माता के हिस्से हो; एक तरह से खुद ही भारत माता हो। यह विचार धीरे-धीरे लोगों के दिमाग में बैठता जाता और उनकी आँखें चमकने लगती मानो उन्होंने कोई महान खोज कर ली हो।

भारत की विविधता और एकता- भारत की विविधता भी अद्भुत है। प्रकट रूप में यह दिखाई पड़ती है। बाहर से देखने पर उत्तर-पश्चिमी इलाके के पठान और सुदूर दक्षिण वासी तमिल में बहुत कम समानता है। इनमें चेहरे-मोहरे, खान-पान, वेशभूषा और भाषा में बहुत अंतर है। पठानों के लोक-नृत्य रूसी कोजक नृत्यशैली से मिलते हैं। इन तमाम विभिन्नताओं के बावजूद पठान पर भारत की छाप वैसी ही स्पष्ट है जैसी तमिल पर है। सीमांत क्षेत्र प्राचीन भारतीय संस्कृति के प्रमुख केंद्रों में से था। तक्षशिला का महान विश्वविद्यालय दो हजार वर्ष पहले प्रसिद्धि की चरम् सीमा पर था। पठान और तमिल तो मात्र दो उदाहरण हैं। बाकी की स्थिति इन दोनों के बीच की है। सबकी अपनी अलग-अलग विशेषताएँ हैं। सब पर गहरी छाप भारतीयता की है। भारत में विभिन्न भाषाएँ व बोलियाँ बोली जाती हैं। इसके बावजूद सभी भारतीय हैं, सबकी विरासत एक है। उनकी नैतिक व मानसिक विशेषताएँ एक हैं। प्राचीन चीन की तरह प्राचीन भारत अपने आप में एक दुनिया थी, एक संस्कृति और सभ्यता थी जिसने तमाम चीजों को आकार दिया। विदेशी भी आए और यहीं विलीन हो गए। किसी भी देशीय समूह में छोटी-छोटी विविधताएँ हमेशा देखी जाती हैं। आज राष्ट्रीयतावाद की अवधारणा कहीं अधिक विकसित हो गई, भले ही उनमें भीतरी मतभेद हो। एक हिंदुस्तानी ईसाई, मुसलमान कहीं भी जाए, एक हिंदुस्तानी ही समझा जाएगा। लेखक ने भारत की यात्रा की, उसे समझा है। इस कारण वह समग्र देश का चिन्तन व मनन करता है।

जन-संस्कृति- लेखक जनता में एक गतिशील जीवन नाटक देखता है। हर जगह एक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि है जिसका जनता पर गहरा प्रभाव है। इस पृष्ठभूमि पर लोक-प्रचलित दर्शन, परंपरा, इतिहास, मिथक, पुराकथाओं का मेल था। भारत के प्राचीन महाकाव्य-रामायण और महाभारत जनता के बीच प्रसिद्ध थे और हैं। नेहरू जी ऐसी कहानी का उल्लेख करते थे जिससे कोई नैतिक उपदेश निकलता हो। उनके मन में लिखित इतिहास और तथ्यों का भंडार था। गाँव के रास्ते से निकलते हुए लेखक की नज़र जब सुंदर स्त्री या पुरुष पर पड़ती थी तो वे विस्मय मुग्ध हो जाते थे।

उन्हें लगता था कि तमाम भयानक कष्टों के बावजूद जिनसे भारत सदियों से गुजरता रहा, आखिर यह सौंदर्य कैसे टिका और बना रहा। चारों ओर गरीबी और उनसे उत्पन्न होने वाली अनगिनत विपत्तियाँ फैली हुई थी और इसकी छाप हर मनुष्य के माथे पर थी। सामाजिक विकृति से तरह-तरह के भ्रष्टाचार उत्पन्न हुए थे। अभाव और सुरक्षा की भावना पैदा थी। इस सबके बावजूद नम्रता और भलमनसाहत लोगों में मौजूद थी जो हजारों वर्षों की सांस्कृतिक विरासत की देन थी।

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